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Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies, Online ISSN 2278-8808, SJIF 2018 = 6.371, www.srjis.com PEER REVIEWED & REFERRED JOURNAL, JULY-AUG, 2019, VOL- 7/52 Copyright © 2017, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies महामा योतिरावफु ले : शैतिक तिकोि की सामातिक भूतमका A Critical Analysis of the Social Role of Mahatma JyotibaPhule’s Educational Perspective कतविा ना. खोागडे शोध छाा (पीएच.डी. शा शा ), शा शिभाग , महामा गा धी तररारीय शह दी शिशिालय, िधा, महारा. .मेल : [email protected] इस शोध महामा योशतराि फु ले के शैशिक शिकोि की सामाशजक भूशमका का अययन शकया गया है।भारत ि से चलतीआई िियिथाने शनचली जाशत और नारी शा की उपेा की थी ।महामा फु ले के काल जाशतयता और िियिथा परम शखर पर थी। शनचली जाशत और नारी जाशत के शा की उस समय की शथशत अय भीर थी महामा फु ले तकाशलन शथशत का अययन कर चुके थे और िशा को मानिी शिकास का एकमा साधनमानते ह।शशा अपने अशति के होने का एहसास शदलाती हैयह उनका मानना था ।उहोन शनचली जाशत और नारी शा के शिकास को लेकर टर आयोग तकालीन शा यिथा को चुनौती देनेिाले शिचार रखे तथा तकालीन ि शचत,पीशित,दशलत और नारी आशद को मानो शा का एक शिकप शतमान शदया।फुले ारा शदया गया शा का शिकप शतमानआज भी ास शगक है।यह शिकप शतमान सामाशजक शा का एक अछा उदाहरि है।तुत शोध ारा शोधकती ने महामा योशतराि फु ले के शैशक शिकोि की सामाशजक भूशमका का अययन शकया तुत शोध गुिामक शोध शिशध के आधार पर ऐशतहाशसक शोध शिधाारा पूिा शकया गया है।द कलन हेतु ाथशमक और शतीय ोत के आधारपर को कशलत शकया गया ह।योशतराि फु ले समाज पररितान के अद तरहे ह।आज ि शचत, पीशित और दशलत समाज की शैशक गशत सोचनीय है।इस शपछिे समाज के शिकास का मुदा हरदम शििाशदत रहा है पर आज तक समाधान कारक चचासामने नह आयी है।सही मायने शपछिे समाज का सिाागीि शिकास शा यिथा की बिी चुनौती रही है।शैशक शिकास हेतु महामा फु ले ने तकालीन शथशत शपछिे समाज के शिकास हेतु या यास और सुझाि शदए और उनके शैशक शिकोि की सामाशजक भूशमका या रही आशद का अययन तुत शोध दारा शकया गया ।इस शोध ारा महामा फु ले की सामाशजक शा और ि शचत, पीशित तथा दशलत समाज पर रहे भाि को भी देखा गया ह। मुय शब : महामा योशतराि फु ले , सामाशजक शा, समाज पररितान, शनचली जाशत, िियिथा. िावना : “ दबे -कु चले वग बुिमा ,नैतकता,गत एव समृि का वकास करने हेतु िा की आवयकता सवााधक है।” --- महामा फु ले Scholarly Research Journal's is licensed Based on a work at www.srjis.com Abstract

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  • Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies,

    Online ISSN 2278-8808, SJIF 2018 = 6.371, www.srjis.com PEER REVIEWED & REFERRED JOURNAL, JULY-AUG, 2019, VOL- 7/52

    Copyright © 2017, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies

    महात्मा ज्योतिरावफुले: शैक्षतिक दृतिकोि की सामातिक भूतमका

    A Critical Analysis of the Social Role of Mahatma JyotibaPhule’s Educational

    Perspective

    कतविा ना. खोब्रागडे

    शोध छात्रा (पीएच.डी. शशक्षा शास्त्र ), शशक्षा शिभाग , महात्मा गाांधी अांतरराष्ट्रीय शहांदी शिश्वशिद्यालय,

    िधाा, महाराष्ट्र. ई.मेल : [email protected]

    इस शोध पत्र में महात्मा ज्योशतराि फुले के शैक्षशिक दृशिकोि की सामाशजक भशूमका का अध्ययन शकया गया ह।ैभारत में िर्षों से

    चलतीआई ििाव्यिस्थाने शनचली जाशत और नारी शशक्षा की उपेक्षा की थी ।महात्मा फुले के काल में जाशतयता और ििाव्यिस्था

    परम शशखर पर थी। शनचली जाशत और नारी जाशत के शशक्षा की उस समय की शस्थशत अत्यांत गांभीर थी । महात्मा फुले तत्काशलन

    शस्थशत का अध्ययन कर चकेु थे और िेंशशक्षा को मानिी शिकास का एकमात्र साधनमानते हैं।शशक्षा अपने अशस्ति के होने का

    एहसास शदलाती हयैह उनका मानना था ।उन्होनें शनचली जाशत और नारी शशक्षा के शिकास को लेकर हांटर आयोग में तत्कालीन

    शशक्षा व्यिस्था को चनुौती देनेिाले शिचार रख ेतथा तत्कालीन िांशचत,पीशित,दशलत और नारी आशद को मानो शशक्षा का एक

    शिकल्प प्रशतमान शदया।फुले द्वारा शदया गया शशक्षा का शिकल्प प्रशतमानआज भी प्रासांशगक ह।ैयह शिकल्प प्रशतमान सामाशजक

    शशक्षा का एक अच्छा उदाहरि ह।ैप्रस्तुत शोध द्वारा शोधकती ने महात्मा ज्योशतराि फुले के शैशक्षक दृशिकोि की सामाशजक

    भशूमका का अध्ययन शकया हैं । प्रस्तुत शोध गुिात्मक शोध शिशध के आधार पर ऐशतहाशसक शोध शिधाद्वारा पिूा शकया गया

    ह।ैप्रदत्त सांकलन हते ुप्राथशमक और शद्वतीय स्त्रोत के आधारपर प्रदत्तों को सांकशलत शकया गया हैं।ज्योशतराि फुले समाज पररितान के

    अग्रदतूरह ेहैं।आज िांशचत, पीशित और दशलत समाज की शैशक्षक प्रगशत सोचनीय ह।ैइस शपछिे समाज के शिकास का मदु्दा हरदम

    शििाशदत रहा ह ैपर आज तक समाधान कारक चचाा सामने नहीं आयी ह।ैसही मायने में शपछिे समाज का सिाागीि शिकास शशक्षा

    व्यिस्था की बिी चनुौती रही ह।ैशैशक्षक शिकास हतेु महात्मा फुले ने तत्कालीन शस्थशत में शपछिे समाज के शिकास हते ुक्या प्रयास

    और सझुाि शदए हैं और उनके शैशक्षक दृशिकोि की सामाशजक भशूमका क्या रही आशद का अध्ययन प्रस्तुत शोध व्दारा शकया गया

    हैं ।इस शोध द्वारा महात्मा फुले की सामाशजक शशक्षा और िांशचत, पीशित तथा दशलत समाज पर रह ेप्रभाि को भी देखा गया हैं।

    मखु्य शबांद ु: महात्मा ज्योशतराि फुले, सामाशजक शशक्षा, समाज पररितान, शनचली जाशत, ििाव्यिस्था.

    प्रस्िावना :

    “ दबे-कुचले वगों में बुद्धिमत्ता,नैद्धतकता,प्रगद्धत एवं समदृ्धि

    का द्धवकास करने हते ुद्धिक्षा की आवश्यकता सवााद्धधक ह।ै”

    --- महात्मा फुले

    Scholarly Research Journal's is licensed Based on a work at www.srjis.com

    Abstract

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  • कशिता ना. खोब्रागडे

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    महात्मा ज्योद्धतराव फुलेएक समता मलूक और न्याय पर आधाररत समाज रचना की बात करते रह।े उन्होंने अपनी

    रचनाओ ंमें द्धकसानों और खेद्धतहर मजदरूों केद्धलए द्धवस्ततृ योजना का उल्लेख द्धकया ह।ै पिपुालन, खेती, द्धसंचाई

    व्यवस्था के बारे में उन्होंने द्धवस्तार से द्धलखा ह ैतथा गरीबों के बच्चों की द्धिक्षा पर उन्होंने बहुत ध्यान द्धदया।उन्होंने

    आज से 150 वर्ा पहले कृद्धर् द्धिक्षा के द्धलए कृद्धर्द्धवद्यालय खोलने की बात की।1875 में पणेु और अहमदनगर

    द्धजले में द्धकसानों का प्रथम आंदोलन महात्मा फुलेकी पे्ररणा से हुआ था। इस समय समाज के अन्य सधुारकों में

    द्धकसानों के बारे में द्धवस्तार से सोच-द्धवचार करने का ररवाज़ नहीं था लेद्धकन महात्मा फुले ने इसे अपने आंदोलन

    का द्धहस्सा बनाया। स्त्री द्धिक्षा से सम्बद्धन्धत महात्मा फुलेके द्धवचार क्ांद्धतकारी रह।े मनु की व्यवस्था में सभी वणों

    की स्त्री को िदू्र के श्रेणी में द्धगनाजाता था।महात्मा फुलेने प्रचद्धलत द्धववाह पिद्धत में बडे सधुार के साथ नई द्धववाह

    द्धवद्धध का द्धनमााण अपने सत्यधमा नामक सगंठन के जररए द्धकया। प्रचद्धलत द्धववाह प्रथा के कमाकांड में स्त्री को परुुर्

    के अधीन माना जाता था लेद्धकन महात्मा फुलेका दिान हर स्तर पर गैर-बराबरी का द्धवरोध करता था।महात्मा

    ज्योद्धतराव फुले महानद्धवचारक, समाज सेवी तथा क्ाद्धन्तकारी कायाकताा थे। महात्मा फुले ने मद्धहलाओ,ं दद्धलतों

    एवं िदू्रो कीद्धिक्षा के द्धवकास हते ुअपना संपणूा जीवन समद्धपात द्धकया।महात्मा फुले भारतीय समाज के सभी वगों

    को समान द्धिक्षा प्रदान करने के प्रबल समथाकरहे ।

    डॉ. अम्बेडकर महात्मा फुलेके व्यद्धित्व-कृद्धतत्व से अत्यद्धधक प्रभाद्धवत रह ेहैं ।महात्मा फुलेसन् 19वीं िताब्दी के

    सामाद्धजक पररवतान के महानायक रह े। उन्होनें सामाद्धजक न्याय और द्धिक्षा के द्धवद्धिष्ट ध्येय के द्धलए अपना जीवन

    समद्धपात द्धकया। काया और द्धवचार से ओतपे्रत महात्मा ज्योद्धतरावफुले चमु्बकीय व्यद्धित्व के धनी और महान

    व्यद्धि रह।े महात्मा फुलेने स्त्री द्धिक्षा, द्धवधवा द्धववाह, जाद्धत द्धनमूालन, द्धकसान और कामगारों के जीवन में मलूभतू

    पररवतान लाए।सामाद्धजक समता, धाद्धमाक सद्धहष्णतुा, आद्धथाक न्याय, और िोर्ण मदु्धि के द्धलए ज्योद्धतराव ने

    जीवन के अद्धन्तम क्षण तक संघर्ा द्धकया। आधदु्धनक महाराष्र के एक महान समाज-द्धचंतकज्योद्धतराव फुले

    मानवतावादी द्धवचारों से पे्रररत थे।

    द्धिक्षा हर दृद्धष्ट से प्रत्येक व्यद्धि के सधुार का माध्यम हैं यह उनकी धारणा थी।महात्मा फुले ने इसी द्वार को िदू्रों-

    अद्धतिदू्रों तथा मद्धहलाओ ंके द्धलए खोलकर नवभारत की नींव रखी। दद्धलत और िोद्धर्त वगा को उनके मानवीय

    हक द्धदलाने के द्धलए उन्होनें जीवन भर संघर्ा द्धकया। ज्योद्धतराव और उनकी पत्नी साद्धवत्रीबाई दोनों का जीवन हर

    भारतीय के द्धलए गौरवपणूा और गवा करने वाला ह।ै आधदु्धनक महाराष्र की रचना में फुलेदंपद्धत्त ने महत्वपणूा

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    योगदान द्धदया।सामाद्धजक क्ांद्धत के संगठन रूप में महाराष्र और भारत के इद्धतहास में महात्मा फुलेका स्थान

    अलौद्धकक ह।ै अपने जीवन मे उन्होनें द्धवचार और कमा को अद्धधक महत्व द्धदया। बचपन से सामाद्धजक, धाद्धमाक,

    और आद्धथाक भेदभाव को तथा जातीयता के कारण उस समय के उच्च वगा द्वारा द्धनम्न वगा के साथ िोद्धर्त बतााव

    के ज्योद्धतराव गवाह रह।े इसद्धलए सामाद्धजक क्ांद्धत की मिाल अपनी २५ वर्ा की आय ुमें लेकर जीवन के अन्त

    तक समाज पररवतान के द्धलए जझूते रह ेतथा आधदु्धनक भारतीय समाज के द्धनमााण में महत्वपणूा योगदान देते रह े

    ।तत्कालीन सामाद्धजक नवजागरण का प्रभाव और क्ांद्धत ने उन्हें समाज पररवतान की पे्ररणा दी थी। तत्कालीन

    ईसाई द्धमिनरी का मानवतावाद, थॉमस पेन का मानव अद्धधकार, धाई मााँ सगुणाबाई के मानव धमा के संस्कार और

    ईसाई पादररयों के व्यद्धित्त्व और काया प्रणाली का प्रत्यक्ष प्रभाव आद्धद सभी प्रभाव उनके जीवन में सामाद्धजक

    काया कीनींव रही। द्धमत्रों के साथ बचपन में खेल-कूदकी उम्र में उन्होंने द्धवद्धभन्न पसु्तकों का अध्ययन द्धकया।उन्होंने

    भारत के सामाद्धजक, आद्धथाक और राजकीय पषृ्ठभदू्धम का अध्ययन द्धकया। भारतीय समाज में प्रचद्धलत प्रथा,

    परम्परा, रीद्धत-ररवाजजो इस समाज के द्धवकास की मखु्यधारा को रोक लगाई बैठी थी इसका द्धवरोध कर सामाद्धजक

    पररवतान की मिाल जलाई।द्धजसके कारण द्धनचली जाद्धत और स्त्री समाज अपने मानव होने के अद्धधकार से वंद्धचत

    हैं इस सामाद्धजक द्धवडम्बना को फुले महोदय जानते थे ।इस द्धवडम्बना का द्धवरोध कर समाज में नवपररवतान का

    ध्वज लहराया। ज्योद्धतराव ने िराब बंदी के द्धलए आंदोलन कर िहर में िराब बंद कराई।िदू्रों के द्धलए अपने घर में

    पानी पीने का तालाब खदुवाए। जैसी कथनी वैसी करनी के चररत्राथा नायक महात्मा ज्योद्धतराव फुले ने 28 नवम्बर

    1890 में संसार से द्धवदाली।सम्पणूा मानव जाद्धत को मानव होने के भाव से पररद्धचत कराने वाले ज्योद्धतराव सच में

    महान क्ांद्धतकारी थे।महात्मा फुले ने कोद्धिपीद्धडत, वंद्धचत, अस्पशृ्य, दद्धलत समाज के लोगों का अपनी आत्म

    उन्नद्धत और द्धवकास का मागा (द्धदिा) द्धदखाया ।

    शोध प्रश्न :

    महात्मा फुले के समय की सामाद्धजक कैसी थी ?

    महात्मा फुले के समय की राजकीय द्धस्थद्धत कैसी थी ?

    महात्मा फुले के समय की आद्धथाक कैसी थी ?

    महात्मा फुले के सामाद्धजक क्ांद्धत में सामाद्धजक द्धिक्षाका द्धवकल्प प्रद्धतमान क्या था ?

    महात्मा फुले की सामाद्धजक द्धिक्षा क्या थी ?

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    महात्मा फुले के सामाद्धजक क्ांद्धत मे सामाद्धजक द्धिक्षा का काया क्या था ?

    शोध के उदेश्य :

    महात्मा फुले के काल की सामाद्धजक,आद्धथाक, राजकीय द्धस्थद्धत का अध्ययन करना ।

    महात्मा फुले के सामाद्धजक द्धिक्षा की भदू्धमका का अध्ययन करना ।

    वंद्धचत, द्धपद्धडत, द्धपछडे और स्त्री समाज के द्धिक्षा में सकारात्मक पररवतान हते ुमहात्मा फुले के द्धवकल्प

    प्रद्धतमान का अध्ययन करना ।

    महात्मा फुले कालीन (ित्कातलन) सामातिक तस्िति :

    "भारत में राष्रीयता की भावना का द्धवकास तब तक नही होंगा ,जब तक खान-पान एवं वैवाद्धहक संबधो पर

    जाद्धतय बंधन बने रहेंगे ।" -

    महात्मा फुले

    प्रस्िावना :

    १९वी िताब्दी के पवूााधा और उत्तराध्दा में भारतीय राजनौद्धतक, सामाद्धजक, आद्धथाक, आद्धद सभी के्षत्र मे बडे

    उथल-पथुल के साक्षी रह ेहैं । १९ वी िताब्दी में भारत में यगुान्तरकारी पररवतानों का सतू्रपात हो गया था । १६ वी

    िताब्दी मे आये अग्रेंजो नें अब तक पंजाब को छोडा तो सम्पणूा भारत मे अपना वचास्व बना द्धलया था । भारत मे

    आझादी के आंदोलन िरुू हो चकेु थे । फ्रान्स की राज्यक्ांद्धत के कारण यरुोप में एक नई द्धवचारधारा का प्रारम्भ हो

    चकुा था । इगं्लन्ड की औद्योद्धगक क्ांद्धत के कारण भारत मे माद्धिनों का उपयोग बढा था, यातायात के साधनों में

    वदृ्धि हुई थी । दरूसंचार, रेल, बैंक, आद्धद सदु्धवधा से परस्पर संपका और व्यवहार बढे, द्धवचारों के आदान-प्रदान को

    गद्धत द्धमली । भारतीय लोग पढने लगे थे । अथाात भारतीयों के द्धवचारों में दासता के द्धवरुि संघर्ा की आग द्धनमााण

    हो चकुी थी । द्धिद्धिि िासन के आगमन तक भारतीय समाज को द्धवद्धभन्न कुरीद्धतओ ंने जखड् रखा था । सतीप्रथा,

    कन्यावध जैसी भीर्ण एवं बाल द्धववाह जैसी घातक और अस्पशृ्यता तथा जाद्धतभेद जैसी हाद्धनकारक कुरीद्धतयों ने

    देि को पतन के गता में धकेल रखा था । यरुोप की नई द्धवचारधारा एवं द्धिक्षा के कारण भारत के सामाद्धजक द्धजवन

    में क्ांद्धतकारी पररवतान होने िरुू हो गये थे ।

    भारतीय बुिीजीद्धवयों में महात्मा फुले नई द्धवचारधारा से पे्रररत होकर महाराष्र की एक अद्धव्दतीय

    द्धवभदू्धतके रूप मे महाराष्र के सामाद्धजक बदला व हतेू मानोवें महानक्ांद्धतकारी के द्धलए उभार आये थे। (कुमार

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    ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान" ,प.ृस.२०-२१,चंचरीक, कन्हयेालाल ," महात्मा ज्योद्धतराव फुले",

    प.ृस.११ )

    तत्काद्धलन भारत की सामाद्धजक द्धस्थद्धत :

    भारतमें अंग्रेजोंसे पहले ग्रामसंस्था, जातीसंस्था, और पररवार का प्रचलन यही गावके जीवन की आधारिीला थी।

    लेकीन अंग्रेजों के िासन का पररणाम इन तीनों पर हुआ और कूछ ही समय बाद ये संस्था लपु्त हो गई । धमा संस्था

    के िद्धििाली समथान से चातुवर्णया प्रणाली पर आधाररत जाद्धत व्यवस्था अद्धधक सख्ती से जीद्धवत रहने लगी थी ।

    सामाद्धजक जीवन का कें द्रद्धबंद ूअब व्यद्धि न रहा था । व्यद्धि ग्रामसंस्था से केवल वणा और पररवार की संस्थाओ ं

    के माध्यम से ही संपका बनाए रखते थे । राजसंस्था से ग्रामसंस्थाओ ंके माफा त ही व्यद्धि का जीवन परंपराओ,ं

    अंधाद्धवश्वासों से जकडा हुआ था । मोक्ष की कल्पना व्यद्धिगत स्वरूप की थी । िाह्मणों का कमा था परुोद्धहती ।

    उनके पास जमीन बहुत कम थी । गाव की खेती योग्य जमीन के मद्धलक अद्धधकतर मराठे थे । दद्धलत जाद्धतयों के

    पास जमीन होती भी थी पर बहुत थोडी । गाव का पािील मराठा जाद्धत का द्धजन्ह ेवंिानकु्म से पािील बनने का

    अद्धधकार प्राप्त होता था । पािील का प्रमखु काया ग्रामसंस्था और राजसंस्था के बीच संबंध बनाये रखना । यह गााँव

    से लगान इकठा करता था और उसे समय समय पर सरकार के दरबार में जमा करता था । उसकी यह द्धजम्मेदारी

    प्रथम थी । इस काया में उसे कुलकणी की साहायता द्धमलती थी । कुलकणी के पद भी वंिानकु्म से प्राप्त होते थे ।

    चौकीदारी का काम उन महार, मांग, दद्धलतों को सौंपा जाता था द्धजनके पवूाजों ने भी यह काया द्धकया था ।(कुमार

    ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान" ,प.ृस.१९ ,चंचरीक, कन्हयेालाल ," महात्मा ज्योद्धतराव फुले",

    प.ृस.१६ )

    महात्माफुलेकालीनमहाराष्रसामाद्धजकद्धस्थद्धत :वास्तवमेंइद्धतहास का पनेुलेखन इद्धतहास का अद्धवभाज्य अंग होता

    ह ै । अतीत के तथ्थों की तलाि उनकी प्रामाद्धणकता-प्रासंद्धगकता की पदृ्धष्ट करना, द्धवशे्लर्ण करना और व्याख्या

    करना ।१९ वी िताब्दी के मध्य तक भारतीयों में राजनैद्धतक एकता के द्धवचार का उदय नही हुआ था । प्राचीन

    काल से उच्च वगों का सांस्कृद्धतक दृद्धष्टकोण एक जैसा था । द्धिद्धिि िासकों की एक नीद्धत थी द्धक, भारत मे

    द्धवद्धभन्न जाद्धत, पंथ, धमा, के लोग थे द्धजनकी भार्ा, संस्कृद्धत अलग-अलग थी । इसद्धलए द्धवद्धभन्न सामदुाद्धयक

    चेतनाओ ं को प्रोत्साहन देने की नीद्धत का अनसुरण द्धिद्धिि कर रह े थे । भारतीय जनता मे एकता का प्रभतु्व

    द्धिद्धििों के द्धलए भयावह था इसद्धलए िाहमण-अिाहमण तथा उच्चवगा और दद्धलत वगा के भेदों का दरुुपयोग

  • कशिता ना. खोब्रागडे

    (Pg. 12641-12666)

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    द्धकया गया था ।(सचूना ,ताराचंद."भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का इद्धतहास " खंड -४ मंत्र्यालय भारत सरकार

    प.ृस.xvii)सद्धदयोंतकगााँवोकीसामाद्धजक और बौद्धिक द्धस्थद्धत अंधाद्धवश्सास पणूा , संकुद्धचत और रूढीवादी बनी

    रही । गााँव आद्धथाक प्रवाह हीनता ,सामाद्धजक प्रद्धतद्धक्यावाद और सांस्कृद्धतक अन्धेपण के अलग-अलग केन्द्र बने

    थे ।द्धिवाजी ने स्थाद्धपत मराठा राज्य और बाद पेिवाई िासन के समाप्त होते-होते सामाद्धजक द्धस्थद्धत में भी बहुत

    बडा पररवतान आया । द्धव्दतीय बाजीराव के िासनकाल में अनैद्धतकता, जाद्धतवाद खलुकर सामने आने लगा था ।

    मात्र िाह्मण अपने स्वाथा की द्धसध्दी के द्धलए बाजीराव को कृष्ण, द्धिव का अवतार मानकर उसकी पजूा, अचाना

    करने लगे थे । उसके िासनकाल में जातीयता चरम सीमा पर पहुच गई थी ।(कुमार ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले

    का योगदान" ,प.ृस. २२ चंचरीक, कन्हयेालाल ," महात्मा ज्योद्धतराव फुले", प.ृस.१६ )

    तत्काद्धलन द्धहनं्द ूस्त्री की सामाद्धजक द्धस्थद्धत : द्धहदं ू िास्त्रों के अनसुारस्त्री को अद्धवश्वासी, दृष्ट, चंचल, अद्धवचारी

    और से्त्रण माना जाता था । स्त्री का पती के साथ बैठकर भोजन करना अपमान माना जाता था । उसका द्धववाह

    बाल्यावस्था कर द्धदया जाता था । पती के साथ न रहना और ससरु के लोगों की सेवा करने के द्धलए उसे रखा जाता

    था । लोभी परुुर् अद्धधक सखु प्राप्त करने और अपनी आकांक्षाओ ंकी पतुी हते ूदो या तीन द्धववाह करते थे और

    अपनी पत्नी को एक घर में रखते थे ।(कुमार ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान" ,प.ृस. ,चंचरीक,

    कन्हयेालाल ," महात्मा ज्योद्धतराव फुले", प.ृस.१६ ,)

    पेिवािासनमेिाह्मण का समाज मे स्थान :िाह्मणअपनेस्वाथाकीद्धसद्धध्दकेद्धलएबाजीरावकोकृष्ण , द्धिव का अवतार

    मानकर उसकी पजूा, अचाना करके और उसकी झठुी तारीफ व प्रिंसा करने के कारण बाजीराव खिु होकार उन्ह े

    भदू्धम देना, लगान मे छुि देना, राजकीय करों में भी उन्ह ेअब भारी छुि द्धमलने से िाह्मण वगा आद्धथाक संप्पन्न होने

    लगे थे । पनुा के आस-पास बार बार अकाल की द्धस्थद्धत द्धनमााण होती थी इस पररद्धस्थती मे द्धकसान मजदरू भखू से

    बेहाल रहते थे, पर पेिवा संपन्न पद्धर्णडत, वेदप्ाठीयों और िाह्मणों को भरपेि भोजन, पयााप्त मात्र में अनाज का

    द्धवतरण करता था । (मेश्राम ,एल. जी." महात्मा फुले रचनावली " प ृ .स. १४५-१४६ ,िहा. म,ुबा. " भारतीय

    समाज क्ांद्धत के जनक ",प.ृस. १५ ,कुमार ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान",प.ृस.२९ )

    पेिवा िासनमे द्धकसान कामगारों की सामाद्धजक द्धस्थद्धत :

    गरीब जनता का िोर्ण पेिवाई काल में सबसे ज्यादा हुआ। कारण पेिवा बाजीराव द्धनरन्तर अपने

    र्ड्यंतत्रों के तहत होने वाले यधु्दों और द्धवलाद्धसतापणूा जीवन मे व्यस्त रहता था । उसके द्धलए पेिवा की बार-बार

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    धन की मााँग बनी ही रहती थी । इस धनपदु्धता के द्धलए पेिवा के कमाचारी द्धकसानों की फसलें जबरन लिु द्धलया

    करते थे । द्धकसानों के पिओु ं को भी बेच देते थे । पेिवा का इतना आतंक था की, कोई भी द्धकसान राज्य-

    कमाचारी या उनके नीद्धत के द्धखलाफ आवाज तक नही उठा सकता था । द्धकसानों से चौथ और सरदेिमखुी या

    जबरन धनवसलुी एक आम बात हो गई थी । महात्मा फुले ने अपने द्धकसान कोंडा नामक पसु्तक मे द्धकसान के

    हाल का द्धवस्तार से लेखन कर द्धकसानों की समस्या को उजागार द्धकया ह ै। (िहा. म,ुबा. " भारतीय समाज क्ांद्धत

    के जनक" ,प.ृस. १५ )

    द्धकसानतीनभागोंमेबिाहुआह।ै िदु्र समाज के द्धकसान कुणबी, माली और धनगर नाम से जाने जाते हैं जो िदु्र

    केवल खेती कर अपना पेि पालते थे व े 'कुलवाडी' या कुणबी कहलाते थे । जो खेद्धतहार अपनी खेती संभालकर

    बागवानी करने लगे थे उन्ह े 'माली' कहा गया । जो यह दोनों काम करते हुए भेड-बकरी चराने और उनके समहू

    पालने लगे व ेगडररए कहलाते थे । लेकीन इन तीनों समदुायों में रोिी-बेिी व्यवहार नही होता था पर मेलजोल बना

    रहता हैं । इससे यह लगता हैं की ये जाद्धत एक ही िदु्र जाद्धत से उपजी होंगी । अद्धधकांि लोग अनपढ और

    ईश्वरभिी में द्धवश्वास करनेवाले और भखू-ेकंगाल, द्धजसके पास आजीद्धवका का कोई साधन नही था । ज्योद्धतराव

    इस ग्रंथ मे महाराष्र के गरीब द्धकसान के तंगहाल और दयनीय जीवन का द्धचत्रण करते हुए कहते ह ैकी, िाह्मण

    परुोद्धहत िदु्रों को जन्म से लेकर स्मिान तक और गभाधारणा से लेकर तीथायात्रा तक द्धवद्धभन्न अवसरों पर धमा के

    नाम पर लिुते थे ।( फुले द्धलद्धखत द्धकसान कोंडा ग्रन्थ की प्रस्तावना से ,फुले, ज्योतीराव. "गुलामद्धगरी " प.ृस.२३

    मेश्राम ,एल. जी." महात्मा फुले रचनावली " कुमार ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान" ,प.ृस.२८ )

    पेिवा िासन मे दद्धलत िदु्र की सामाद्धजक द्धस्थद्धत : सामाद्धजक द्धस्थद्धत के द्धवर्य में फुलेने अपने ग्रंथ गुलामद्धगरी

    में द्धलखा ह ैद्धक, "आजतक द्धजतनी भी द्धधंगामस्ती हुई ह ैउसमे भी तरसे कहो या बाहर से, िाह्मण पद्धर्णडत परुोद्धहत

    वगा के लोग अगुवाई नही कर रह े थे, ऐसा हो ही नही सकता । इस द्रोह का परुा नेततृ्व व ेलोग ही कर रह ेथे ।

    उमाजी नाईक रामोिी महाराष्र का एक िदु्र जाद्धत में पैदा हुआ व्यद्धि था, जो लडाकू था, अंग्रेंजों से मकुाबला

    कर िहीद हो गया लेकीन िाह्मण िहीदों को याद द्धकया जाता िदु्र को नही ।"( फुले, ज्योतीराव. "गुलामद्धगरी "

    प.ृस.२९ )

    दद्धलत का जीवन गुलामों से भी बदतर हो गया था । वे अपनी मलुभतू जरुरतों को पेिवाई स्वरक्षण प्राप्त िाह्मणो,

    साहुकारो से कजा लेकर परुा करते थे और सदू से मिु नही हो पाते थे । भ्रष्टाचार समाज में परुी तरह व्याप्त हो चकुा

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    था। सन १८१८ में जब मराठा राज्य का पणूा रूप से पतन हो गया तो आम जनता में ख़िुी की लहर व्याप्त हुई,

    दद्धलत और िदु्र वगा ने तो बहुत ही राहत महससू की । (कुमार ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान"

    ,प.ृस.२६ ,मेश्राम ,एल. जी." महात्मा फुले रचनावली " प ृ.स. १९८-१९९)

    महाराष्र के ग्रामों की सामाद्धजक द्धस्थद्धत :महाराष्रके ग्रामों मे िाह्मण ,मराठा,माली, सतुार,लहुार तेली जैसी जाद्धत

    आधाररत समाज रचना और जाद्धत आधाररत व्यवसाय थे । िाह्मणणों का कमा परुोद्धहती था । खेती योग्य जमीन के

    मद्धलक अद्धधकतर मराठे थे । ग्राम संस्था, जातीसंस्था और संयिु पररवार का प्रचलन था । व्यद्धि इस परंपरागत

    सामाद्धजक जीवन का कें द्रद्धबंद ून था । सामंतवादी व्यवस्था में राजा सवोच्च होता था, लेकीन ग्रामीण भदू्धम पर

    उसका कोई अद्धधकार नही होता था । ग्रामीण भदू्धम तो ग्राम समाज और ग्रामीण लोगों के अधीन रहती थी । कुल

    पैदावार का एक द्धनद्धित भाग राजा को लगान के रूप में जरूर द्धदया जाता था । राजा को कर के रूप में द्धदये गये

    भाग के अद्धतररि िेर् पैदावर गााँव के ही उपयोग के द्धलए होती थी । गााँव मे बढई, लहुार, कुम्हार, मोची, धोबी,

    तेली, आद्धद जैसे वंिनकु्म से प्राप्त व्यवसाय द्धकये जाते थे, यह गााँव की जरुरतों को परुा करते थे । गााँव मे हलखोर

    का काम करने वाले वगा को अछुत समझा जाता था । लोगों के व्यवसाय उनकी जाद्धत के आधार पर द्धनद्धित थे ।

    लोग अपनी जरुरतों को परुा करने के द्धलए अन्य समदुायों से नाममात्र का लेन-देन या द्धवद्धनमय करते थे । यातयात

    के साधन सीद्धमत थे । (मेश्राम ,एल. जी." महात्मा फुले रचनावली " प ृ .स. २१०,िहा. म,ुबा. " भारतीय समाज

    क्ांद्धत के जनक ",प.ृस. १२ ,कुमार ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान" ,प.ृस.२३,)

    महाराष्र की तत्काद्धलन राजकीय द्धस्थद्धत

    महाराष्र मे मराठा िासन की िद्धि और द्धवनाि :-

    मराठािद्धिकेप्रद्धतकद्धिवाजी ने अपनी बाल्याकाल मे पनुा की जागीर प्राप्त की थी । यह जागीर उन्ह े द्धवरासत से

    अपनी द्धपता से द्धमली थी । तत्काद्धलन महाराष्र के सामाद्धजक पषृ्ठभमूी को समझने के द्धलए इस देि की मराठा

    िद्धि को जानना जरुरी ह ै । मराठा िद्धि के प्रद्धतक द्धिवाजी को जागीर अपने द्धपता िहाजी से द्धमली । िहाजी

    द्धबजापरू ररयासत के प्रमखु सामन्त थे और उनकी सेना में अद्धधकांि द्धनम्न जाद्धत वगा के पराक्मी, वीर योध्दा,

    द्धकसान थे । जागीर द्धमलने के बाद द्धिवाजी ने सबसे पहले द्धवकें द्धद्रत मराठा िद्धि को एकीकृत द्धकया

    ।महाराष्रकेिद्धिसंपन्नमराठासरदारमहात्ववांक्षा के द्धिकार होकार आपसी संघर्ा में उलझ गये। िाहूजी की िद्धि

    क्षीण होने लगी, तब राजकाज में चतुर नीद्धत-द्धनपणु द्धचतपावन िाहमन पररवार के लोगों को आगे आने का अवसर

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    द्धमला । व ेिाहुजी के नए पेिवा के रूप में सामने आये और मराठा सरदार सबसे अद्धधक संपन्न हो गये । बाद मे

    इन पेिवाओ ं ने चातुया से द्धिवाजी के वंिजों को नाममात्र का िासक बना द्धदया और सम्पणूा िासन को की

    बागडोर अपने हाथों में ले ली । इस प्रकार पनुा दरबार में पेिवाओ ंका प्रभाव स्थाद्धपत हो गया ।पेिवा बालाजी

    द्धवश्वनाथ (१७१३-१७२०), बाजीराव (१७२०-१७४०), बालाजी बाजीराव द्धव्दतीय (१७४०- १७६१), । १७६०

    में जब पाद्धनपत की तीसरी लडाई हूई तो मराठे अहमदिाह अब्दाली से हार गए और अब मराठों की िद्धि धीरे-

    धीरे क्षीण होते गयी । बाद में पेिवा माधवराव (१७६१-१७७२) और पेिवा नारायणराव (१७७२-१७७३ ) ने

    पनुा ररयासत में िद्धि संन्तुलन बनाए रखने का बहुत प्रयास द्धकया गया लेकीन इस्ि ईदं्धडया कम्पनी की साम्रज्य

    द्धवस्तार की नीद्धत का द्धनरन्तर दबाव बढता गया । मराठा राज्य के िासक वगा के लोग आम जनता के द्धहतों को

    दरद्धकनार कर अपने द्धहतों और महत्वकांक्षाओ ंकी पतुी में लग गए , द्धजस से आम जनता खासकर मराठा जाद्धतयों,

    कामगारों, द्धकसानों, तथा द्धनम्न वगा के लोगों में उनके प्रद्धत असंतोर् उत्त्पन हो गया ।िाह्मण वगा के लोग उस समय

    िासकीय पदों पर थे, व ेहर तरह से अपने तथा अपनी जाद्धत के लोगों के द्धहतों प्रद्धत संलन्ग थे । उसके कारण

    जाद्धतवाद बहुत ही द्धघनौने रूप में सम्पणूा महाराष्र में फैलने लगा था । (चंचरीक, कन्हयेालाल."महात्मा ज्योद्धतराव

    फुले",प.ृस.१३ ,मेश्राम ,एल. जी." महात्मा फुले रचनावली " प ृ.स. १९५ ,िहा. म,ुबा. " भारतीय समाज क्ांद्धत

    के जनक ",प.ृस. १२ ,कुमार ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान" ,प.ृस.१६ )

    मराठा सघंषष और तब्रतिश का आगमन :

    पेिवा माधवराव की उनके चाचा रघनुाथ रावने िासन के लालच में हत्या करदी, द्धजससे मराठा सरदार रघनुाथ के

    द्धखलाफ होग येथे। अपनों के द्धखलाफ के कारण उसे अंग्रेजो की मदद लेनी पडी । पररणाम स्वरूप सन १७७५ में

    प्रथम अंग्रेज मराठा यधु्द हुआ । यही से मराठों का पतन होने लगा ।१माचा१७७६ को अंग्रेजों और पनुादरबार के

    बीच परुांदर की सद्धन्ध हुई। बम्बई सरकार द्वारा पनुा दरबार से एक और सद्धन्ध की गई, जो बडगााँव मे हुई थी । इस

    सद्धन्ध का कारण था अंग्रेजों का मराठे से हारना १७ मई १७८२ को सालबाई में पनुा दरबार और अंग्रेजो के मध्य

    एक सद्धन्ध हुई । सन १८०० में नाना फडणवीस की मतु्य ुके पेिवा और द्धसंद्धधया के बीच सद्धन्ध हुई लेकीन दोनों

    एक-दसुरे को िंका की दृष्टी से देखते थे ।देखते-देखते पनुा के दरबार से िाह्मण जाद्धत के पेिवाकी गद्दी हाथसे

    आपसी उलझन के कारण द्धनकाल गई । पेिवाओ ंके इस कृद्धतत्व से पनुा और दद्धक्षण के लोगो का मनोबल िूि

    चकुा था । पेिवा ने आद्धखर ३१ द्धदसंबर १८०२ को लॉडा वैलेजली से सद्धन्ध से मराठो से २६ लाख रुपये वाद्धर्ाक

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    आय की भदू्धम भी पेिवाओ ंद्वारा हद्धथया ली । पेिवा िाह्मण का जप-तप, पजूा-पाठ, सब कूछ धरा का धरा रह

    गया।२० फरवरी १८१८ को अंग्रेजो के समक्ष आत्मसमपाण कर द्धदया । पेिवाई का अन्त हो गया । इस प्रकार पनुा

    में परुी तरह अंग्रेजी राज्य कायम हो गया । इस प्रकार द्धिवाजी द्वारा बडे यत्न और पररश्रमपवूाक स्थाद्धपत स्वत्रत

    मराठा राज्य को इन पेिवाओनें अपनी महत्वाकांक्षा और स्वाथापरता, जाद्धतवाद, छंुआछंुत, ऊचनीच, पारस्पाररक

    वैमनस्य, कें द्धद्रय सत्ता का अभाव और िाह्मण धमा में पाखर्णड के वचास्व के कारण हमेिा-हमेिा के द्धलए खो द्धदया

    और अंग्रेजी िासन का गुलाम बना द्धदया । (कुमार ,प्रभात. " समाज सधुार मे फुले का योगदान" ,प.ृस.१८ )

    भारत की राजव्यवस्था : भारत में अंग्रेजों से पहले ग्रामसंस्था, जातीसंस्था, और पररवार का प्रचलन यही गावके

    जीवन की आधारिीला थी। लेकीन अंग्रेजों के िासन का पररणाम इन तीनों पर हुआ और कूछ ही समय बाद ये

    संस्था लपु्त हो गई । धमा संस्था के िद्धििाली समथान से चातुवर्णया प्रणाली पर आधाररत जाद्धत व्यवस्था अद्धधक

    सख्ती से जीद्धवत रहने लगी थी । सामाद्धजक जीवन का कें द्रद्धबंद ूअब व्यद्धि न रहा था । व्यद्धि ग्रामसंस्था से केवल

    वणा और पररवार की संस्थाओ ंके माध्यम से ही संपका बनाए रखते थे । राजसंस्था से ग्रामसंस्थाओ ंके माफा त ही

    व्यद्धि का जीवन परंपराओ,ं अंधाद्धवश्वासों से जकडा हुआ था । मोक्ष की कल्पना व्यद्धिगत स्वरूप की थी ।

    िाह्मणों का कमा था परुोद्धहती । उनके पास जमीन बहुत कम थी । गााँव की खेती योग्य जमीन के मद्धलक अद्धधकतर

    मराठे थे । दद्धलत जाद्धतयों के पास जमीन होती भी थी पर बहुत थोडी । गााँव का पािील मराठा जाद्धत का द्धजन्ह े

    वंिानकु्म से पािील बनने का अद्धधकार प्राप्त होता था । पािील का प्रमखु काया ग्रामसंस्था और राजसंस्था के

    बीच संबंध बनाये रखना । यह गााँव से लगान इकठा करता था और उसे समय समय पर सरकार के दरबार में जमा

    करता था । उसकी यह द्धजम्मेदारी प्रथम थी । इस काया में उसे कुलकणी की साहायता द्धमलती थी । कुलकणी के

    पद भी वंिानकु्म से प्राप्त होते थे । चौकीदारी का काम उन महार, मांग, दद्धलतों को सौंपा जाता था द्धजनके पवूाजों

    ने भी यह काया द्धकया था ।

    महात्मा फुले कालीन भारि की आतिषक तस्िति :

    भारतपरअद्धधकारकरनेमेंअग्रेंजोकोसौसालभीकमसमयलगा। १७५७ से १८५७ के बीच कम्पनी की नीद्धत में अनेंको

    बार पररवतान हुए थे । द्धकन्तु इस दरम्यान कम्पनी ने अपने मखु्य उद्देंश्यों कों कभी भी अपने आखों से ओझल नही

    द्धकया । व ेउद्देश्य थे-कम्पनी के मनुाफे में वदृ्धध्द करना, भारत से होने वाले द्धििेन के लाभों में वदृ्धध्द करना, तथा

    भारत में द्धिद्धिि प्रभतु्व को बनाए रखना । भारत में अंग्रेजों के द्धहतों को ध्यान में रखकर और उन्ह ेबढावा देने के

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    द्धलए कम्पनी तथा द्धििेन की सरकार ने नई आद्धथाक द्धनद्धतयों का प्रद्धतपादन द्धकया और समयानकुुल उन्ह ेलागू द्धकया

    । अग्रोजों ने द्धजन आद्धथाक द्धनद्धतयों को अपनाया उनके कारण भ-ूराजस्व प्रणाली, कृर्ी, व्यापार, और उद्योग के

    के्षत्र में अनेक पररवतान हुए । इन पररवतानों का भारतीय जन-जीवन पर बडा प्रभाव पडा । उसमे कूछ अच्छे भी थे,

    द्धकन्तु स्वाथा से पे्रररत होने कारण भारतीयों के द्धलए ये ज्यादातर अद्धहतकारक साद्धबत हुए । (फुले,

    ज्योतीराव,गुलामद्धगरी प.ृस ४३ .मेश्राम .एल. जी- महात्मा फुले रचनावली- प ृ.स. २०२,३०९ ,३१३ )

    ग्रामीि अिषव्यवस्िा : अंग्रेंजों के आगमन के पहले तक भारत मे सभी गांव लगभग आत्मद्धनभार थे । द्धकसान

    खेती करते थे और अपनी उपज का एक भाग राजस्व के रूप में िासक को देते थे । िासक ग्राम प्रधान के माध्यम

    से वसलुी करते थे । अंग्रेजों ने अपने िासन मे अपने अद्धधकारीयों और भारतीयों एजेंन्िों के द्धनयंत्रण में परुानी

    व्यवस्था को जारी रखा । परन्तु यह भारतीय एजेंि उच्च वगा के थे । यह द्धकसानों को कष्ट देने लगे । राजस्व द्धनद्धित

    रािी के रूप में वसलू द्धकया जाने लगा, द्धफर उपन्न चाहे जो भी हो । राजस्व की वसलुी मदु्रा के रूप में होने लगी

    इसद्धलए द्धकसान ऐसी फसलें उगाने के द्धलए मजबूर हुए द्धजन्ह ेबाजार में बेचा जा सके । माद्धिनों द्वारा बनाये कपडे

    और अन्य उत्पाद्धदत वस्तूओ ं के कारण स्थानीय दस्तकारों के धन्द े भी चौपि होने लगेथे । अब गावों की

    आत्मद्धनभारता समाप्त होने लगी थी । (मेश्राम .एल. जी."महात्मा फुले रचनावली". प ृ.स. ६८ ,कीर,ध . "महात्मा

    ज्योतीराव फुले "प.ृसं.१८२-१८४ )

    भारि की लुि :लगान के नाम पर द्धकसानों का खनू चसुा जा रहा था । उनकी तबाही और बरबादी का अन्दाजा

    प्रद्धतवर्ा बढने वाली मालगुजारी की रकम के आकडे १७७५-७६ तक यह रकम २८ लाख, १८ हजार पौन्ड थी ।

    अनेक भागों से भारत का सोना इगं्लंड जाने लगा था । (िहा. म,ुबा. "भारतीय समाज क्ांद्धत के जनक",प.ृस.४ )

    औद्योतगक पंुिीवाद का युग :भारतकेआद्धथाकिोर्ण के इद्धतहास में १८१३ ई. वर्ा महत्वपणूा माना जाता ह ै।

    अब कम्पनी के एकाद्धधकार का अन्त हो गया था और औद्योद्धगक पुंजीवाद द्वारा भारत के िोर्ण का नया अध्याय

    िरुू हुआ था । इगं्लंड में औद्योद्धगक क्ाद्धन्त के फलस्वरूप बडे-बडे कारखाने खलु चकेु थे इन कारखानों में कम

    खचा पर अद्धधक कापडों का उत्पादन होने लगा था । अब हाथ से बने भारतीय कापडों से सस्ते अंग्रेजी कपडे

    द्धमलने कारण भारतीय वस्त्र उद्योग खत्म होने लगा था । इससे देि का आद्धथाक ऱ्हास बडी तीव्रता से होने लगा था

    । भारत का कच्चा माल सस्ते दाम में खरीद कर कारखानों में बना पक्का माल भारत के बाजार में बेचा जाने लगा

    । औद्योद्धगक पुंजीवाद के कारण बेकारों की संख्या मे वदृ्धध्द होने लगी और लाखों भारतीय आजीद्धवका के अभाव

  • कशिता ना. खोब्रागडे

    (Pg. 12641-12666)

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    में अकाल के महु में समा गये । १९ वी सदी के पवुााध्दा में सात बार अकाल पडा द्धजसमें अनेक व्यद्धि भखू से

    तडप-तडपकर मर गये । १८३३ के बाद औद्योद्धगक पुंजीवाद ने औपद्धनवेद्धिक िोर्ण का एक और के्षत्र द्धनकाला

    की, भारत में जमीन खरीद कर बागानों के माद्धलकों कें रूप में वहा बस जाने की इजाजत दी जाने लगी । भारत में

    बागानों की प्रथा थी । (िहा. म,ुबा. "भारतीय समाज क्ांद्धत के जनक",प.ृस. १)

    महाराष्र की तत्काद्धलन आद्धथाक द्धस्थद्धत :

    महाराष्र के ग्रामोंका आद्धथाक िोर्ण : सामंतवादी व्यवस्थामें राजा सवोच्च होता था, लेकीन ग्रामीण भदू्धमपर

    उसका कोई अद्धधकार नही होता था। ग्रामीण भदू्धम तो ग्राम समाज और ग्रामीण लोगों के अधीन रहती थी । कुल

    पैदावार का एक द्धनद्धित भाग राजा को लगान के रूप में जरूर द्धदया जाता था । राजा को कर के रूप में द्धदये गये

    भाग के अद्धतररि िेर् पैदावर गाव के ही उपयोग के द्धलए होती थी । गााँव मे बढई, लहुार, कुम्हार, मोची, धोबी,

    तेली, आद्धद जैसे वंिनकु्म से प्राप्त व्यवसाय द्धकये जाते थे, यह गााँव की जरुरतों को परुा करते थे । गााँव मे हलखोर

    का काम करने वाले वगा को अछुत समझा जाता था । लोगों के व्यवसाय उनकी जाद्धत के आधार पर द्धनद्धित थे ।

    लोग अपनी जरुरतों को परुा करने के द्धलए अन्य समदुायों से नाममात्र का लेन-देन या द्धवद्धनमय करते थे । यातयात

    के साधन सीद्धमत थे । दद्धलत िदु्र वगा के लोग खतेी-मजदरुी करके, दस्तकारी करके भी अपने पररवार को भरपेि

    भोजन, तन ढकने को सही ढग के कपडे तथा रहने को दो हाथ जगह व छत भी नही जिूा पाते थे । उनका जीवन

    गुलामों से भी बदतर हो गया था । वे अपनी मलुभतू जरुरतों को पेिवाई स्वरक्षण प्राप्त िाह्मणो, साहुकारो से कजा

    लेकर परुा करते थे और सदू से मिु नही हो पाते थे । भ्रष्टाचार समाज में परुी तरह व्याप्त हो चकुा था । (कुमार

    ,प्रभात." समाज सधुार मे फुले का योगदान" प.ृस.२२ २१, चंचरीक, कन्हयेालाल."महात्मा ज्योद्धतराव

    फुले",प.ृस.१२,)

    महात्मा फुले की सामातिक तशक्षा

    सामातिक तशक्षा :सामाद्धजक द्धिक्षा का तात्पया प्रौढ द्धिक्षा के समान साक्षरता प्रदान करने मात्र से नही ह ै ।

    साक्षरता तो एकमात्र आगामी द्धिक्षा को प्राप्त करने का साधन द्धजसे उपलब्ध कराकर द्धिद्धक्षत द्धकया जा सकता ह ै।

    हस्ताक्षर करना द्धिक्षा नही ह ै । देि में द्धवद्धभन्न सामाद्धजक रूढी, परम्परा, बुराईयााँ, द्धपछडापण, अंधद्धवश्वास,

    संकीणाता, अवैज्ञाद्धनकता, द्धनधानता आद्धद को समलू नष्ट कर सामाद्धजक पनुरुत्थान कर आध्याद्धत्मक एवं नैद्धतक

    द्धवकास, वैज्ञाद्धनक एवं तकनीकी उन्नद्धत आद्धद द्धवकास सामाद्धजक द्धिक्षा के अंग ह।ै

  • कशिता ना. खोब्रागडे

    (Pg. 12641-12666)

    12653

    Copyright © 2017, Scholarly Research Journal for Interdisciplinary Studies

    महात्मा फुले की सामाद्धजक द्धिक्षा और सामाद्धजक क्ांद्धत मे योगदान

    प्रस्िावना :

    ज्योद्धतबा फुले ने दद्धलत आंदोलन का एक सनु्दर बीज बोया था । तत्काद्धलन समाज व्यवस्था िाह्मण

    व्यवस्था के द्धवरुि जोतीबा फुले ने क्ांद्धत की घोर्णा की । जोतीबा फुले ने समाज से छंुआ-छंुत द्धमिाने का द्धपडा

    उठाया । तत्काद्धलन समाज ने क्ांद्धत ज्योद्धत के साथ जो व्यवहार द्धकया, वह उनके साले अपनी बहन साद्धवत्री को

    द्धलखे एक पत्र से स्पष्ट होता ह ैव ेद्धलखते ह,ै "बहन तुम और द्धजजाजी बद्धहष्कृत हो गए हो । महार मांग दद्धलत के

    द्धलए तुम जो काम करते हो, वह कुल भ्रष्ट करने वाला ह ै। इसद्धलए कहता हु ंद्धक जाद्धत रूढी के अनसुार िाह्मण जो

    कह,े उसी प्रकार आचरण करना चद्धहए । "साद्धवत्रीबाई अपने भाई को उत्तर देते हुए पत्र द्धलखती ह ैऔर उससे

    उनका सामाद्धजक काया का दृढ द्धनिय स्पष्ट होता ह,ै" भाई तुम्हारी बुद्धि कम ह ैऔर िाह्मण भट्ट लोगों की द्धिक्षा

    से वह दबुाल बनी हुई ह ै। तुम तो गाय बकरी के पास जाकर उन्ह ेसहला सकते हो । नाग पंचमी के अवसर पर

    द्धवरे्ले नागों को दधु द्धपला सकते हो, लेकीन महार, मांगों को जो तुम जैसे ही ह,ै उन्ह ेअछंुत मानते हो । भट्ट लोग

    तुम्ह ेभी कलदु्धर्त मानते ह ैऔर महार मांगों जैसा ही समझते ह ै। महार मांग पढ द्धलखकर इन्सान बनकर जीए ।

    इसके द्धलए कोद्धिि करने वाले ज्योद्धतबा महार-मांगों को पढाते ह ैऔर मै दावे के साथ कहती हु ंद्धक व ेयह अच्छां

    काया कर रह े हैं । मैं उनकी मदद करती हु ं । यह इतना आनन्दायक ह ै द्धक इससे परमानन्द द्धमलता ह ैउसके

    अद्धतररि मनषु्यत्व की सीमा भी दृष्टीगोचार होती हैं । " उपरोि द्धववरण से तत्काद्धलन समाज ने फुले के साथ जो

    व्यवहार द्धकया वह स्पष्ट होता ह ैअथाात इसका मतलब बचपन से द्धनचले जाद्धत मे जन्म में ज्योती को हर समय

    उच्च वणा के व्यवहार से परेिानी हुई । उनके सामाद्धजक क्ांद्धत की पे्ररणा अब उन्ह ेबैचेन कर रही थी । (कीर

    धनंजय, "महात्मा जोद्धतराव फुले " प.ृस.११७ ,जगताप ,म.ु '' यगुपरुुर् महात्मा फुले '' प,ृस,७७ ,नरके ,एच."

    महात्मा फुले साद्धहत्य और द्धवचार" प.ृसं.१९ )

    ज्योतीराव का प्रथम बाद्धलका स्कूल :

    १८४४ में ज्योद्धतबा ने खोली प्रथम स्कूल मे प्रारम्भ में ६ बाद्धलकाएं थी, द्धजसमे ४ िाह्मण , १ मराठा, १ धनगर ।

    उनके नाम इस प्रकार –

  • कशिता ना. खोब्रागडे

    (Pg. 12641-12666)

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    उपरोि सारणी से पता चलता हैं की ज्योद्धतराव द्वारा खोला गया प्रथम द्धवद्यालय द्धजसमे सभी जाद्धत की नारी का

    प्रवेि हैं । अथाात उस समय सभी जाद्धत के नारी की द्धिक्षा के द्धलए महात्मा फुले काया कर रह ेथे ।

    प्रथम बालिका स्कूि :

    (द्धवद्रोही एम.आर." दद्धलत दस्तावेज "प.ृस. ९९)

    नारी तशक्षा के तलए योगदान :

    हमारे देि का दभुााग्य ही ह ैकी द्धजस देि मे आद्धदििी के रूप में नारी की कल्पना की गई हो और जहा

    "यंत्र नायस्तुा पजू्यते तत्र देवता" उद्धि प्रचद्धलत हो उसी देि में नारी की द्धस्थद्धत एक पिसुमान हो गई थी । धमा के

    ठेकेदारों ने िास्त्रों को तोड-मोडकर कर कुछ ऐसा रच द्धदया द्धक नारी केवल भोग्या ही बन गयी थी । वास्तव में जो

    समाज की द्धनमाात्री थी उसकी यह दिा देखकर ज्योतीराव बहुत द्राद्धवत हुए हुए । दसुरी ओर हमारे देि के पतन के

    गता में पहुची नारी अद्धिक्षा और अज्ञानवि परुूर्ों के अत्याचार सहते हुए गुलामी के बन्धन में जकडी हुई थी ।

    नारी द्धिक्षा के कारय् में ज्योतीराव को बडी मदु्धश्कलों का सामना करना पडा । उन पर अत्याचार द्धकये गये । द्धहदं ू

    नाम आय ु

    १ . अन्न पणूाा जोशी ५

    २ . समुती मोकाशी ४

    ३. दगुाा दशेमखु ६

    ४ . माधवी धत्ते ६

    ५ . सोन ूपवार ४

    ६ . जनी करडडले ५

  • कशिता ना. खोब्रागडे

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    लडद्धकयों के द्धलए अमेररकन द्धमिन द्वारा सन १८१९ में १९ वी सदी की की प्रथम पाठिाला खोली गई थी । सन

    १८४० में कूछ अन्य द्धवद्यालय पणेु के आस-पास भी खोली गई थी । स्कािीि द्धमिन के द्वारा पणेु मे एक

    द्धवद्यालय खोला गया था, उसमें १० बाद्धलका यें पढती थी।

    सन १८४८ उनके िाह्मण द्धमत्र गोवंडे इनाम कद्धमिन में काम करते थे, उनका स्थानांतरण अहमदनगर के

    जज कायाालय मे हुआ था । यह जगह द्धमिनरी द्धवद्यालय के द्धलए बहुत प्रद्धसि थी । ज्योतीराव अपने द्धमत्र से

    द्धमला और वहा के कुमारी फरार की अमेररकन द्धमिन द्वारा संचाद्धलत स्त्री स्कूल को देखने गये । भारत के स्त्री

    द्धिक्षा को लेकर फराार इतनी द्धचंद्धतत देख ज्योद्धतराव व गोवंडे प्रभाद्धवत हुए । उन्होनें द्धनणाय द्धलया की पनुा जाकर

    वह दद्धलत स्त्री के द्धलए पाठिाला खोलकर इसका संदेि परेु महाराष्र जाए। ज्योद्धतराव पनुा लौिते ही सन १९४८

    के अगस्त माह में बुधवार पेठ महुहे्ल में द्धभडे के मकान में द्धनम्न जाद्धत के लडकीयों के प्रथम स्कूल खोली गई ।

    स्कूल की प्रथम मद्धहला द्धिद्धक्षका के रूप में अपनी पत्नी साद्धवत्री की द्धनयदु्धि की । अब समाज में हलचल मच

    गई । इससे धमा भ्रष्ट होगा । धमा ग्रंथ के अनसुार िदु्र पढ नही सकते, यह ईश्वर, धमा, और समाज की इच्छा और

    मयाादा के द्धवपरीत हैं । द्धवद्या िदु्र के घर द्धनवास नही कर सकती आद्धद जैसी चचाा और आलोचना होने लगी ।

    साद्धवत्री पर तो पाखंडीयों ने पत्थर गोबर, लकडी, फेकी पर साद्धवत्री अपने काया से जरा भी नही हिी । इतना दृढ

    संकल्प था । बेिा ज्योती अब नही सनू रहा तो द्धपता गोद्धवदराव को समझाया गया की इस धमा भ्रष्ट कृत्य को बंद

    करे । द्धपता ने ज्योद्धत को द्धिक्षा प्रसार और सधुार काया को बंद करने को कहा नही तो घर से द्धनकल जाने को कहा

    । ज्योतीराव और साद्धवत्री ने घर छोड द्धदया । अब उनका आद्धथाक बल ओर कमजोर हो गया पर व ेअपने दृढ

    संकल्प पर द्धस्थर थे । ज्योतीराव का यह काया अब काफी प्रगद्धत पर था । अपनी इस संस्था की बदौलत उन्होने सन

    १८५१ की १७ द्धसतम्बर को रास्ता पेठ नामक महुल्ले में एक अन्य कन्या द्धवद्यालय की स्थापना की । इस

    द्धवदयालय का द्धनरीक्षण करने के बाद दादोबा पांडुरंग तखाडकर ने यह मत व्यि करते हुए कहा था की, ''इतने काम

    समय में द्धवद्यालय की प्रगद्धत का श्रेय उसके संचालकों को ही जाता ह ै। द्धिक्षा बोडा के अध्यक्ष जॉन वाडान और

    न्यायाधीि िाऊन ने द्धवद्यालय के काया को देखकर काफी सन्तोर् व्यि द्धकया था । नारी द्धिक्षा और द्धनम्न जाद्धत

    के द्धिक्षा की द्धहमायत करने वाले के रूप में ज्योतीराव का नाम सम्पण�