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Sample Copy. Not For Distribution.

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  • Sample Copy. Not For Distribution.

  • i

    म ाँ की आव ज़ (र ज की लघकुथ एाँ)

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  • ii

    Publishing-in-support-of,

    EDUCREATION PUBLISHING

    RZ 94, Sector - 6, Dwarka, New Delhi - 110075 Shubham Vihar, Mangla, Bilaspur, Chhattisgarh - 495001

    Website: www.educreation.in __________________________________________________

    © Copyright, 2019, Rekha Tamrakar Raj

    All rights reserved. No part of this book may be reproduced, stored in a retrieval system, or transmitted, in any form by any means, electronic, mechanical, magnetic, optical, chemical, manual, photocopying, recording or otherwise, without the prior written consent of its writer.

    ISBN: 978-93-88910-47-7

    Price: ` 215.00

    The opinions/ contents expressed in this book are solely of the author and do not represent the opinions/ standings/ thoughts of Educreation.

    Printed in India

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  • v

    तावना आज का समय जीवन म आपाधापी से भरा हुआ है। सा ह य के सजृन म वयंमेव सम साम यक सा ह य के दशन हो रहे ह। आज िजस तरह पाठक के पास रचनाय पढ़ने और उनम समय देने का उतना समय नह ं है, उसी तरह सजृक कृ तकार भी चाहता है क कम श द म अपनी बात कह द। िजसे हर पाठक त ल नता से पूरा समय देकर पढ़ सके। ऐसे म हमारे साथ पु यस लला मा ँनमदा के अंचल म रेखा ता कार ‘राज’ न ेमा ँक आवाज़ के प म लघुकथाओं क सु दर तु त द है। न संदेह इनका यास सराहनीय है। लघुकथाओं क सबसे मुख वशेषता यह है क उसम कहानी के पूरे त व समा हत ह और अगल वशेषता यह है सभी त व के साथ िजतने कम से कम श द म कहानी पूर हो उतनी ह अ धक भावशाल मानी जाती है। कम श दो का सा ह य अ धक से अ धक पाठक वारा तुर त पढ़ा जाता है और सराहा भी जाता है। य द कोई उप यास या लंबी कहा नय का सं ह हाथ म आता है तो पाठक उसे पढ़ना शु करने के लये सोचता ह रहता है। और यह सोचकर क इसम अ धक समय लगगेा उस पु तक को कनारे रख देता है।

    माँ क आवाज़ शीषक से ीमती रेखा ता कार ने जो लघुकथाओं का सं ह पाठक के सम परोसा है न संदेह शंसनीय है इनक भाषा सधी हुई है। कम श द म पूरा मंतबय् उड़ले देना रेखा जी क लेखनी का चम कार है। लघुकथा लखना इतना सहज नह ं है, क तु रेखा जी ने इस लघुकथा सं ह को तुत करके बडा ़ह सराहनीय काय कया है। इसम न हत कहा नयां संदेश द भी ह। “पड़ोसी का पेड़” कहानी म एक प उसी पेड़ के त अपना आ ोश दशाता है और उस पेड़ म क डे लग जाने तक क कामना करता है जब क वाथ म ल त

    दसूरा प उसी पेड़ से ा त आम के फल को सावधानी से सहेज कर रख रहा है। इसी तरह कमजोर कंध,े कामचोर, बुढापा, अ य लघुकथा भी तरह-तरह से संदेश देती हु ई उ कृ ट लघुकथाएं ह।

    ‘माँ क आवाज’ प रवार के सभी सद य के वारा अनसुनी कर दये जाने पर अंततः मॉ का चुप हो जाना बड़ी ह मा मक लघुकथा है। सधी हु ई लेखनी से लखी गई ये सभी लघुकथाय अ धक से अ धक पाठक तक पहु ंच और भ व य म रेखाजी क लखेनी से सा ह य जगत उपकृत हो और लेखनी को ग त मले। इस सं ह क

    तावना लखने का मुझै सौभा य मला बहुत आभार हू ँ। म दय से रेखा जी के व थ और द घ जीवन व उ जवल भ व य क कामना करता हू ँ।

    ी वजय सहं चौधर

    (व र ठ सा ह यकार) मंडला (म. .)

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  • vi

    अपनी बात

    मातारानी क असीम कृपा रह है मुझ पर तभी तो हाथ क कलम से दल- दमाग म उभर आई भावनाएँ श द-श द म नखर कर कभी क वता, कभी भजन, कभी गीत, गजल, छंद तो कभी कसी कथा-कहानी के प म ऊभर कर आती रह ह। उस समय म बहु त छोट थी अपने बड़ ेभैया ी हंस कुमार ता कर जी को उनक लखी क वता सबको सुनात ेव सबके वारा वाह-वाह करत ेदेख मेरे मन म आया क जब भैया क क वता सुन सभी इतना खुश हो ताल बजा रहे ह तो य द म क वता लखूँ तो मरेे लए भी सब ताल बजाएंग-े बस फर या था मन के कसी कोने म छोटा सा एक क व/लेखक जो बैठा हुआ था हरकत म आ गया और म दो-चार लाइन जब जैसी भी बनती लखने लगी कभी कोई भाई-ब हन हंसी भी उड़ात ेपर मेरे दोन बड़ ेभाई हंस भैया, कृ ण भैया हमेशा तार फ़ करत ेऔर लखने को ो सा हत करते। म बहुत खुशनसीब हू ँ मुझ ेमेरे माँ-बाबूजी, सभी भैया-भाभी, जेठ जी-िजठानी, जीजी-जीजा जी, भतीजे-भतीिजय का भरपूर यार मला है और मेरे जीवन साथी ी वनोद ता कार जी का पल-पल सहयोग मला है। मुझे याद है मेर पहल कहानी आज राखी बंधने का दन है हथकड़ी नह ं सन 1983 म नार नकँुज म नकल थी जब मुझे इस बात का पता चला तो म पागल क तरह नाच उठ थी। बाद म नरंतर मेर क वताएँ, कहा नयाँ, लेख पपेर म छपते रहे। मुझे शहर म सभी सा ह यकार के बीच लेकर आ तमा द द और म ज द ह म ह यम त नगर के जान-े

    पहचाने, व र ठ सा ह यकार क चहेती बन गई। आद; सा व ी मेडम, अ वाल अंकल, मोद अंकल, अ णा मेडम,

    द त मेडम, राजकुमार मेडम, कोस या बुआ, ड गरे चाचा जी, व.ग वद अंकल जी कस- कस का नाम लँू म

    मुझे सभी ने बहु त यार से, अपन व से सुना व सराहा तभी तो आज म इतना आगे चल पा हू ँ वरना एक समय

    वो भी था जब म क वता पाठ करने जाती तो आवाज के साथ ह साथ मेरे हाथ-पावँ भी कांप जाते।

    शायद हर लेखक का सपना होता है उसने जो लखा वो एक पु तक के प म न केवल उसके बि क पूर दु नया

    के सामने आये। मेरा भी सपना था एक ऐसा सपना िजसके पूरे होने के आसार अभी दरू-दूर तक नह ं थे, ले कन

    गीतेश भाई, जुनैद भाई और राजीव भाई के कहने पर म यह साहस कर पाई हू ँ िजसका नतीजा है मेर कुछ

    लघुकथाओं का संकलन माँ क आवाज।

    जीवन म घ टत होने वाल छोट -छोट घटनाओं से े रत हो उपजी कुछ लघुकथाओं का संकलन है मा ँक आवाज िजसका क हर पेज भतीजे ग वत और बेटा त न क ने ां ग कया है। उ मीद है इसक हर एक कहानी आप सभी को पसंद आयगी और बदले म मुझ े साद व प आपका आशीवाद अव य ह ा त होगा।

    रेखा ता कार 'राज'

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  • vii

    लेखक प रचय

    नाम - ीमती रेखा ता कार 'राज' प त - ी वनोद कुमार ता कार पता - ी रतन लाल ता कार जी माता- ीमती सुभागा देवी ता कार जी ज म त थ - 14 फरवर श ा - एम.ए, पीजीडीसीए यवसाय- सरकार सेवा कले ेट मंडला म लेखन वधा- कहानी, लघुकथा, लेख गीत, क वता, गजल, भजन, कहानी, आ द काशन- व भ न प -प काओं म रचनाएँ का शत होती रहती है का शत पु तक- 'भजन राज' (पारंप रक व मौ लक भजन)

    स मान- का य ी, श दशि त, शतकवीर स मान, म हला सा ह यकार स मान, क वय ी स मान, का य तभा स मान आ द।

    वतमान म िजला संयोजक, रा य क व संगम म डला एवं अनेक सा हि यक सामािजक सं थाओं के व भ न पद पर आसीन, मंच तु त | नवास - हनुमान जी वाज महाराजपुर मंडला म. . मोबा. 7999226530, 9826313552 WS इ-मेल-- [email protected]

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  • viii

    समपण

    “माँ क आवाज़” सम पत करती हू ँ अपने ज मदाता, पालनकता माँ ीमती सुभागा देवी ता कार, एवं बाबूजी ी

    रतन लाल ता कार जी के क ण ह त को

    दो श द…….

    होगा तो होगा कोई अमीर धन जमीन जायजाद से।

    ‘राज’ अमीर ह अपने माँ - बाबूजी के आशीवाद से।।

    उनक अपनी दुलार

    रेखा

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  • ix

    अनु म

    . शीषक पेज न.

    1 माँ क आवाज़ 1 2 सच झूठ 2 3 न ह ं समझ 3 4 तभा 4 5 दखावा 5 6 चहेरा 6 7 कामचोर 7 8 ा का भोजन 8 9 रेवा 9 10 तोहफ़ा 10 11 बुढ़ापा 11 12 हण 12 13 बेट क फ़रमाइश 13 14 पड़ोसी के घर का पड़े 14 15 नई कालोनी 15 16 पजंरा 16 17 मासूम सवाल 17 18 हॉि पटल का म या

    वृ दा म 18

    19 तबा 19 20 भूख 20 21 चौराहा 21 22 परदेश म 22 23 एक ेम ऐसा भी 23 24 नतीज़ा 24 25 पहल 25 26 याद 26 27 सं कृ त का रण 27 28 घर संसार 28 29 भर पटे खाना 29 30 माँ क ममता 30 31 अपमान 31 32 बड़ा तरंगा 33 33 सबस ेबड़ी पूजा 35 34 ग़र ब क बटे 37 35 नसीहत 38 36 दख़ल 40 37 म हला दवस 42 38 दद का र ता 44

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  • x

    39 बचपना 46 40 मातृ मे - देश मे 48 41 अदालत 50 42 मोलभाव 52 43 मतदान 54 44 त नक सी हँसी 56 45 बेट का प 58 46 ायि चत 60 47 तम ना 62 48 सुई धागा 64 49 प रवार क ख़ुशी 66 50 स नो 68 51 झालू 70 52 अहंकार क पीड़ा 72 53 अपराधबोध 74 54 श मदा 76 55 वा रस 78 56 क मत क मार 80 57 ख़ुशी 82 58 एहसास 84 59 प र य ता 86 60 सपन ेसच नह ं होते 88 61 उ मीद 90 62 बेटा या बटे 92 63 जान हथले पर 93 64 नयनसुख 94 65 कट पतंग 96 66 आदमी 98 67 कमजोर कंध े 100 68 बूढ़ा चेहरा 102 69 अ हड़ बचपन 104 70 बड़ क -छाया 106

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  • रेखा ता कार 'राज'

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    1. माँ क आवाज बूढ़ बीमार माँ ने अपने बड़ े बेटे को आवाज

    द पर उ होने नह ं सुनी, माँ न ेबड़ी बहू को आवाज़ द पर उनको भी सुनाई नह ं दया। पास से नकलती हू ई मीतू (बड़े बटेे क बेट ) को माँ ने रोकना चाहा पर वो भी नह ं क ।

    माँ को बड़े जोर क यास लगी थी और आस-पास कह ं पानी नह ं था। न जाने कतनी देर तक वो बार -बार से घर के हर एक सद य का नाम ले-लेकर आवाज़ लगाती रह पर कसी ने नह ं सुनी। माँ ने फर आवाज लगाई - "अरे कोई हो तो मुझ ेएक गलास पानी दे दो..... कोई है.।" "ओ फ ओह.... ये माँ भी न.... कतना च लाती ह, चैन से रहने ह नह ं देती।" छोट बहू अपने कमरे म बैठ ट . ह . देख रह थी, वह झुंझला पड़ी। माँ क आवाज उसे ड टब जो कर रह थी। "अरे. तुम य वहाँ यान देती हो, चुपचाप बैठ रहो।" बीबी को परेशान होता देख छोटे बटेे ने धीरे से कहा और उठकर दरवाजा बंद कर दया। अब माँ क आवाज सुनाई नह ं दे रह थी।

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  • मा ँक आवाज़

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    2. सच – झूठ 'तड़ातड़' दो तमाचे मोलू के गाल म रसीद करते हु ऐ

    मायावती च लाई- "तेर ह मत कैसे हू ई मेरे बटुआ को हाथ लगाने क l"

    या हुआ अ मा" राधा दौड़ते हु ऐ आई- " य रे या कया तूने l"

    "इससे या पूछती है, म बताती हू ँन.... ये अभी-अभी मेरे बटुआ को उठा रहा था जैसे ह मने देखा तो चुपचाप खड़ा हो गया l"

    " नह ं वो तो म........l" मोल ू ने कुछ कहना चाहा तभी "चुप" कहते हु ये राधा ने बगैर कुछ सोच ेसमझ ेउसके गाल म चटाचट दो चांटे जड़ दये l पाँच साल का न हा मोल ूअपने गालो को सहलाता हु ऐ धीरे-धीरे सुबकने लगा l

    हाला क राधा को व वास था उसका बेटा गलत काम नह ं कर सकता है ले कन वो अपनी माल कन क बात को झुठला भी तो नह सकती थी- "बोल अब ऐसा दोबारा करेगाl" राधा ने उसके कान जोर से पकड़ लये तभी उसक नज़र माल कन के बटुऐ के पास पड़े क चे पर पड़ी उसे समझते देर नह ंलगी क स चाई या है फर भी वह खामोश ह रह य द बेटे के प म कुछ बोल तो माल कन नाराज़ हो जायगी।

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