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हिदी खबर : दिण अीका Hindi Khabar, South Africa : September 2018: Issue No 73 +27 31 4019788 : [email protected] or [email protected] Hindi Khabar – September 2018 हिदी शििा संघ (दिण अीका) HINDI SHIKSHA SANGH – South Africa Bharat: Dr M L Gupta Adaitya’s message to Hindi Shiksha Sangh (S.A.) on Hindi Diwas September 14, 2018 (Dr Gupta in 2012, attended the 9 th World Hindi Conference in Johannesburg and thereafter travelled by bus to Durban, 600kms away to visit the Hindi Shiksha Sangh Head Quarters) दिण अीका के सभी भाई बिन को मेरी नमते। 2012 म जब जोिासबग म विि हिंदी समेलन ि आ था तब म पिली बार आप लो के बीच आया था। आप लो के दय म भारत, भारतिाशसय और भारत के जन जन की भाषा और राजभाषा हिंदी के तत जो समान मैने देखा उसे देख कर मुझे बि त अछा ला। तब से मेरे शलए जिां भारत मेरा अपना दे ि ि, ििदिण अका िमारे अपन का दे ि िै। जो िॉ िग सी डरबन तक की सफर म िन जाने कतने ररते बन ए थे , म तो दोबारा यिां निीं आ सका लेकन रते आे बते रिे। आप लो िारा हदए ए ेम को म कभी भुला निीं सकता। असर लो ऐसा मानते ि क भाषा के िल संिाद का मायम िै। लेकन मेरा यि मानना िै क संिाद का मायम िोने के साथ - साथ भाषा एक ऐसा मायम िै जो िम अपनी जड सै जोड कर रखता िै। इसके मायम से िम अपनी संसक , अपने संकार और अपने धमग से जुडते ि। यिी कारण िै क आज भी दिण अीका सहित दु तनया के तमाम भारतिं िी देि म ििां के यादातर लो रामचरतमानस के मायम से हिंदी से जुडे रिे , और हिंदी के मायम से अपनी संक त और धमग से जुडे ि ए ि। अपनेपन का एिसास तभी िता िै जब कोई यत अपनी भाषा म बात करता िै। मां बच से िमेिा अपनी भाषा म बात करती िै इसशलए उसकी भाषा मात भाषा बन जाती िै। इसशलए हिंदी हदिस के अिसर पर म आप सब से के िल इतनी विनती करना चाि ा क आप जो भी भाषा सीख , अपने देि की आियकताओं के अनुसार जस भी भाषा का यो कर लेकन अपनी जड से जुडे रिने के शलए, अपनी संक त ि संकार से जुडे रिने के शलए बच को हिंदी अिय पाएं। दिण अीका के िमारे भाई - बिन िारा जस कार हिंदी शििा संघ के मायम से दे ि भर म हिंदी की शििा दी जाती िै और हिंद िाणी के मायम से हिंदी सहित तमाम भारतीय भाषाओं के कायगम तुत करते ि ए इनका चार - सार कया जा रिा िै िि अयधधक सरािनीय िै। मुझे लता िै क आपके इस कायग से भारत के लो को भी ेरणा शमल सकती ि। इसके शलए म हिंदी शििा संघ के सभी पदाधधकाररय, इससे जुडे सभी यतय के साथ साथ सभी भारतिं िी भाई बिन को एक बार फर सभी भारतिाशसय की ओर से नमन करता ि तनदेिक: ि िक हिंदी समेलन। बई, भारत। Founder: Pandit Nardevji Vedalankar Hindi Shiksha Sangh (S.A.) April 25, 1948

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हिन्दी खबर : दक्षिण अफ्रीका Hindi Khabar, South Africa : September 2018: Issue No 73 +27 31 4019788

: [email protected] or [email protected]

Hindi Khabar – September 2018

हिन्दी शििा संघ (दक्षिण अफ्रीका) HINDI SHIKSHA SANGH – South Africa

Bharat: Dr M L Gupta Adaitya’s message to Hindi Shiksha Sangh (S.A.) on Hindi Diwas September 14, 2018

(Dr Gupta in 2012, attended the 9th World Hindi Conference in Johannesburg and thereafter travelled by bus to

Durban, 600kms away to visit the Hindi Shiksha Sangh Head Quarters)

दक्षिण अफ्रीका के सभी भाई बिनों को मेरी नमस्त।े 2012 में जब जोिान्सबर्ग में विश्ि हिदंी सम्मेलन िुआ था तब मैं पिली बार आप लोर्ों के बीच आया था। आप लोर्ों के हृदय में भारत, भारतिाशसयों और भारत के जन जन की भाषा और राजभाषा हिदंी के प्रतत जो सम्मान मनेै देखा उसे देख कर मझु ेबिुत अच्छा लर्ा। तब से मेरे शलए जिां भारत मेरा अपना देि िै, ििीं दक्षिण अफ्रफ्रका िमारे अपनों का देि िै। जो िॉन्र् स्िर्ग सी डरबन तक की सफर में िी न जाने फ्रकतने ररश्त ेबन र्ए थे, मैं तो दोबारा यिां निीं आ सका लफे्रकन ररश्त ेआर्े बढ़त ेरिे। आप लोर्ों द्िारा हदए र्ए पे्रम को मैं कभी भलुा निीं सकता।

अक्सर लोर् ऐसा मानत ेिैं फ्रक भाषा केिल सिंाद का माध्यम िै। लेफ्रकन मेरा यि मानना िै फ्रक सिंाद का माध्यम िोने के साथ -साथ भाषा एक ऐसा माध्यम िै जो िमें अपनी जडों स ैजोड कर रखता िै। इसके माध्यम से िम अपनी ससं् कृतत, अपने ससं्कारों और अपने धमग से जुडत ेिैं।

यिी कारण िै फ्रक आज भी दक्षिण अफ्रीका सहित दतुनया के तमाम भारतििंी देिों में ििां के ज्यादातर लोर् रामचररतमानस के माध्यम से हिदंी से जुड ेरिे, और हिदंी के माध्यम से अपनी ससं्कृतत और धमग से जुड ेिुए िैं। अपनेपन का एिसास तभी िोता िै जब कोई व्यक्क्त अपनी भाषा में बात करता िै। मां बच्चों स ेिमेिा अपनी भाषा में बात करती िै इसशलए उसकी भाषा मातभृाषा बन जाती िै।

इसशलए हिदंी हदिस के अिसर पर मैं आप सब से केिल इतनी विनती करना चाि ंर्ा फ्रक आप जो भी भाषा सीखें, अपने देि की आिश्यकताओं के अनसुार क्जस भी भाषा का प्रयोर् करें लेफ्रकन अपनी जडों से जुड ेरिने के शलए, अपनी ससं्कृतत ि ससं्कारों से जुड ेरिने के शलए बच्चों को हिदंी अिश्य पढ़ाएं।

दक्षिण अफ्रीका के िमारे भाई -बिनों द्िारा क्जस प्रकार हिदंी शििा सघं के माध्यम से देि भर में हिदंी की शििा दी जाती िै और हिदं िाणी के माध्यम से हिदंी सहित तमाम भारतीय भाषाओं के कायगक्रम प्रस्ततु करत ेिुए इनका प्रचार - प्रसार फ्रकया जा रिा िै िि अत्यधधक सरािनीय िै। मझुे लर्ता िै फ्रक आपके इस कायग से भारत के लोर्ों को भी पे्ररणा शमल सकती िै। इसके शलए मैं हिदंी शििा सघं के सभी पदाधधकाररयों, इससे जुड ेसभी व्यक्क्तयों के साथ साथ सभी भारतििंी भाई बिनों को एक बार फ्रफर सभी भारतिाशसयों की ओर से नमन करता ि ं।

तनदेिक: िकै्श्िक हिदंी सम्मलेन। मुबंई, भारत।

Founder: Pandit Nardevji Vedalankar

Hindi Shiksha Sangh (S.A.)

April 25, 1948

हिन्दी खबर : दक्षिण अफ्रीका Hindi Khabar, South Africa : September 2018: Issue No 73 +27 31 4019788

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Hindi Diwas 2018 was celebrated with Hindi Teachers’ Workshop at the Pattundeen Kasieprasad Hindi Centre, Durban

On September 16, 2018, Srm Shereen Behadar, Chairperson of the Academic Committee of Hindi Shiksha Sangh organised the Teacher’s Workshop which was attended by 60 teachers. It was well received. Teachers commented that they felt they could address their problem areas with their students. A wide range of topics were covered and emphasis was placed on the use of the prescribed texts as a basis for grammar rules. Teachers called for more workshops. Teachers also made their details available to start a WhatsApp group so that they could receive assistance whenever the need arose. A handout with grammar rules and the format of the year-end examination papers for the Junior Grades were presented in preparation for the examination on October 21, 2018. A quick evaluation, an encouraging workshop. All the best to the teachers for their revision programmes and more so to all the students writing the examinations.

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Proud Moment for the Hindi Fraternity Hindi Activist, Dr M L Gupta Aditya, India Honoured by the

Government of India with “The Pride of National Language Award”

उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा डॉ एम .एल .

गुप्िा 'आदित्य' को 'राजभाषा गौरव' पुरस्कार’

भारत सरकार, र्िृ मतं्रालय, राजभाषा विभार् के अतंर्गत हिदंी शििण योजना, मुबंई के सिायक तनदेिक डॉ एम .एल .र्पु्ता 'आहदत्य' को 14 शसतबंर को नई हदल्ली के विज्ञान भिन में आयोक्जत एक भव्य समारोि में उपराष्ट्रपतत श्री िेंकैया नायड द्िारा 'राजभाषा र्ौरि' प्रथम स्थान िेत ुपरुस्कृत फ्रकया र्या। यि परुस्कार उन्िें विदेि मतं्रालय के अनतर्गत 'भारतीय सांस्कृततक सबंधं पररषद' द्िारा प्रकाशित प्रततक्ष्ट्ित पत्रत्रका 'र्र्नांचल' में प्रकाशित लेख 'भाषा -प्रौद्योधर्की :सत्तर साल का सफरनामा' के शलए प्रदान फ्रकया र्या। कायगक्रम की

अध्यिता भारत के माननीय र्िृ मतं्री श्री राजनाथ शसिं जी द्िारा की र्ई। मचं पर र्िृ राज्यमतं्री श्री फ्रकरण ररक्जजु तथा श्री िंसराज अिीर और राजभाषा विभार् के सधचि श्री िलैेंद्र भी उपक्स्थत थे। इसके अततररक्त समारोि में ससंदीय राजभाषा सशमतत, कें द्रीय हिदंी सशमतत के सदस्यों के अततररक्त अनेक सांसद, भारत सरकार की अनेक िररष्ट्ि अधधकारी ि विद्िान उपक्स्थत थे।

मुबंई विश्िविद्यालय के बोडग ऑफ स्टडीज़ (हिदंी )के प िग सदस्य डॉ .र्पु्ता इसके प िग कें द्रीय र्िृ मतं्रालय के अन्तर्गत राजभाषा विभार् के िते्रीय उप तनदेिक

(कायागन्ियन )के रूप में र्जुरात, मिाराष्ट्र, र्ोिा, दमण, दीि ि दादरा नर्र ििेली िते्र क्स्थत कें द्रीय कायागलयों, बैंकों, उपक्रमों आहद में राजभाषा नीतत के कायागन्ियन की मॉनीटरररं् का कायग करत ेरिे िैं।डॉ एम .एल .र्पु्ता आहदत्य 'िकै्श्िक हिदंी सम्मेलन' ससं्था के तनदेिक के रूप में भी देि - विदेि में हिदंी सहित भारतीय भाषाओं के प्रचार प्रसार में मित्िप णग भ शमका तनभात ेआ रिे िैं। डॉ .एम.एल .र्पु्ता आहदत्य ने िाल िी में मॉरीिस में आयोक्जत 11िें विश्ि हिदंी सम्मेलन में भाषा प्रौद्योधर्की तथा मीडडया में भारतीय भाषाओ ंको ले कर अपने विचार प्रखरता से प्रस्ततु फ्रकए थे।

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(This article will be published in a series form)

South Africa: Professor Rambhujan Sitaram writes on नेटाली हिन्दी

“Natalie Hindi” in South Africa हिषय प्रिेश

सन ् 1860 अपने ग्रामीण स्वरूप में नेटालमें उत्तर भारत से हिन्दी भाषा , दहिण

अफ़्रीका आयी। अवधी तथा भोजपरुी अहधकाांश लोगों की बोली थी, अतः

यिााँ पर हवकहसत िो रिी सामान्य सांपकक भाषा का नाम नेटाली हिन्दी पड़ गया

। वैसे भोजपरुी के लिणों के आहधक्य से यि भोजपरुी / साउथ अफ़्रीकन

भोजपरुी भी किलाने लगी । भारतीय भाषाओ ां के हवकास तथा हवभाजन के

आधार पर अवधी, भोजपरुी तथा उत्तर प्रदशे एवां हबिार की सभी भाषाएाँ जो

नेटाल में बोली जा रिी थीं, वे सभी हिन्दी की उपभाषाएाँ अथवा बोहलयााँ थीं । हवमलेश काांहत वमाक ने अपने ग्रांथ

“हिन्दी और उसकी उपभाषाएाँ” में हलखा ि ैहक “हिन्दी एक भाषा का िी निीं वरन ्एक भाषा समहि का नाम भी

ि ै।” सभी उपभाषाओ ां में, हजनमें भोजपरुी के साथ अवधी तथा खड़ीबोली भी शाहमल िैं, पयाकप्त लोक साहित्य

प्राप्त ि,ै तथा “िेत्र हवशषे में विााँ के हनवाहसयों की भावाहभव्यहि का माध्यम ि ै” (1995:3)।

नेटाल / दहिण अफ़्रीका में हिन्दी के ऐहतिाहसक सांदशक पर दृहिपात करते िुए यिााँ हवकहसत और प्रयिु हिन्दी पर

ध्यान हदया जाएगा । भारतेत्तर हगरहमहटयों द्नारा बसाये गये दशेों में हिन्दी का स्थान एक सा निीं ि ै । फीजी,

मोरीशस, गयुाना, सरूीनाम तथा ट्रीनीडाड में भारतीयों की सांख्या अन्य जाहतयों की तलुना में लगभग समान ि,ै

अतः हिन्दी को प्रशासन द्वारा भी सहुवधाएाँ प्रदान की जाती ि ै। दहिण अफ़्रीका एक बड़ा राष्ट्ट्र ि ैहजसमें हवहभन्न

जाहतयााँ तथा 11 आहधकाररक भाषाएाँ भी िैं तथा जिााँ भारतीयों की सांख्या केवल 3 स में भी प्रहतशत ि ै। और इ

हिन्दी भाहषयों की सांख्या 50 प्रहतशत से कम ि ै । ऐसी पररहस्थहतयों में हिन्दी का प्रयोग स ीीहमत िेत्रों में

(restricted domain ) िोता ि ै। तथाहप हिन्दी भाहषयों के मन में हिन्दी के प्रहत लगाव कम निीं िुआ ि ै। अतः

प्रयोग िेत्र के साथ हिन्दी भाषा में रचनात्मक तथा वैज्ञाहनक कृहतयों का सवेिण िोगा, हजसमें हशिण सांबांधी

रचनाओ ां, हिन्दी हवद्वानों द्वारा अनसुन्धान कायक तथा हिन्दी मनीहषयों के ग्रांथों की समीिा िोगी । इस के साथ

नेटाल / दहिण अफ़्रीका में अन्य भाषाओ ां के सांपकक में हिन्दी भाषा में पररवतकन, शब्द - भांडार में अहभवहृि और

हिन्दी के हवकास के हलए हकये जा रि ेप्रयासों पर दृहिपात हकया जाएगा ।

भारत में माना जाता ि ैहक पानी और वानी कुछ िी दरूी पर बदलते िैं । हतसपर नेटाल में हवहभन्न प्रान्तों तथा हजलों

के प्रवासी भारतीय एक साथ रिने लगे । अल्प काल में िी एक सरल जनसांपकक भाषा (Lingua Franca) का

उभरना कोई आश्चयक की बात निीं । अतः हिन्दी िेत्र के आहतररि, दहिण भारत के तहमल, तेलगु ुऔर दहिणी

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उदूक भाषी भारतीय भी हिन्दी में वाताकलाप करने लगे । गााँधी जी ने भी इसी हमहित सरल भाषा को “टूटी - फूटी ”

हिन्दी नाम हदया तथा समथकन हकया । लगभग 750 वषक पवूक अमीर खसुरो ने जो उदगार हकया था – “मैं हिन्दसु्तान

की ततूी ि ाँ, यहद तमु कुछ पछूना चािते िो तो हिन्दी में पछूो, मैं तमु्िें उसमें बता सकूाँ गा”, नेटाल में चररताथक िोने

लगा । हिन्दी साहित्य का हवहधवत अध्ययन, और ऐहतिाहसक सांदशक का हवशे्लशण बीसवीं शताब्दी के आरांभ से

िी शरुू िआु । इस हवषय पर यहत्कां हचत ्ध्यान दनेा आवश्यक ि,ै क्योंहक दहिण अफ़्रीका में जो हिन्दी पिुाँची,

तथा जो आज सीखी -हसखायी जा रिी िै , वि उसी उदगम स्त्रोत से जडु़ी ि ै। इस बात पर भी प्रकाश पडे़गा हक

भाषा वैज्ञाहनक राजेन्द हमस्त्री ने नेटाल / दहिण अफ़्रीका में बोली जानेवाली भाषा को साउथ अफ़्रीकन भोजपरुी

नाम हदया, तथा उससे “हिन्दी” नाम को पथृक रखने का सांकल्प प्रकट हकया (राजेन्द हमस्त्री 1991: Prologue )।

हिन्दी भाषा / साहित्य के परुोधा आचायक रामचन्र शकु्ल ने हिन्दी साहित्य का आधहुनक काल सन् 1843 से

माना िै (1957 : 1 ) राजनीहतक -समाहजक -ऐहतिाहसक कारणों से हत्रभवुन हसांि ने (2010 : 16 ) काल हवभाजन

को हनम्न प्रकार से हकया - रीहत / िृांगार काल के पश्चात सन ् 1875 से 1947 तक जागरण काल तथा 1947 से

आधहुनक काल । शकु्ल जी के आधहुनक तथा हत्रभवुन वतकमान तक हसांि के जागरण काल का उल्लेख

इसहलए मित्वपणूक ि ैक्योंहक 1843 से प्रारम्भ िोनेवाली कालावहध प्रवासी भारतीयों के हलए अथकपणूक थी। यि

सवकहवहदत ि ैहक भारत से िहमक के रूप में भारतीयों का प्रव्रजन सन ् 1834 रम्भ िुआ और आहधकाररक से प्रा

तौर पर 1917 तक चला । ये प्रवासी भारतीय अपने दशे तथा पररजनों से अलग िोकर िजारों मील दरू अत्यांत

किपणूक पररहस्थहतयों में िम तथा जीवन यापन हकया । नेटाल – दहिण अफ़्रीका में सन ् 1860 से आये भारतीयों

वा हगरहमहटयों की तरि थी । इन डायस्पोरा दशेों मकी दशा अन्य शतकबन्द मजदरूों अथ ीीेां अभी भी उन्नीसवीं

शताब्दी का भारत दखेने को हमल जाएगा । उनकी भाषा, हवचार पिहत, रस्म -ररवाज सब परांपरा से प्राप्त हवरासत

के अनरुूप ि ै। भाषा और उसका साहित्य / लोकसाहित्य सहदयों से जो मलू्य तथा जीवन दृहि लेकर चल रिा

था, उसका प्रभाव इन प्रवासी भारतीयों पर भी पड़ा । आहदकाल/ वीरगाथाकाल की रचना आल्िाखण्ड हिन्दी

हगरहमहटयों में लोकहप्रय था । आल्िा की पांहियााँ (हत्रभवुन हसांि 2010 : 35)

बारि बररस लें कूकुर जीयै औ तेरि लें हजयै हसयार

बररस अठारि िहत्रय जीयै आगे जीवन के हधक्कार

भारतीयों को, हवशषेतः िहत्रयों को, यिु में आत्मबहलदान के हलए उदु्बि करती ि ै। यि उस समय (12 वीं सदी )

की माांग थी । इसी तरि भहिकाल का कृष्ट्ण भहि तथा रामभहि काव्य और कबीर की वाणी आध्याहत्मक सत्य

जीवन में रस के साथकी ओर पे्रररत करती थी । िृांगारकाल में भी सांयम की हशिा प्राप्त िोती थी ।

(to be continued)

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