नारंदा भहाઋिहाय मा नारंदा ... · 2020. 12. 3. ·...

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नारंदा भहाविहाय

मा नारंदा विश्िविद्मारम

प्रो. (डॉ.) सुयेन्द्र कुभाय

प्रोपेसय औय विबागाध्मऺ-

इततहास

ऩटना विश्िविद्मारम,

ऩटना-800005

फौद्धकार भें बायत शिऺा का कें र था। फौद्ध विि ्िविद्मारम विक्रभशिरा, तऺशिरा औय नारंदा विश्िविद्मारम की ख्मातत दयू-दयू तक पैरी थी। नारंदा विश्िविधारम के अतीत औय उसके गौयििारी इततहास को सबी जानते हैं।

तऺशिरा के फाद नारंदा विश्िविद्मारम की चचाा होती है। बफहाय की याजधानी ऩटना से कयीफ 120 ककरोभीटय दक्षऺण-उत्तय भें प्राचीन नारंदा विश्िविद्मारम के अििषे आज बी देखे जा सकत े हैं। इस

विश्िविद्मारम की स्थाऩना गुप्त कार के िासक कुभायगुप्त ने की थी। महां इतनी ककताफें यखी थीं कक जजन्द्हें गगन ऩाना आसान नही ंथा। हय

विषम की ककताफें इस विश्िविद्मारम भें भौजूद थीं। बफहाय तो फौद्ध धभा का गढ़ था। इस गढ़ को ढहाने के शरए एक तुका सेनाऩतत फजख्तमाय

खखरजी को बेजा गमा था।

नारंदा संस्कृत िफ ्द नारभ+्दा से फना है। संस ्कृत भें 'नारभ'्

का अथा 'कभर' होता है। कभर ऻान का प्रतीक है। नारभ+्दा मानी कभर देने िारी, ऻान देने िारी। कारक्रभ से महां भहाविहाय की स ्थाऩना के फाद इसका नाभ 'नारंदा भहाविहाय'

यखा गमा। मह बायत भें उच्च शिऺा का सिाागधक भहत्िऩूणा औय

विश्िविख्मात कें र था। भहामान फौद्ध धभा के इस शिऺा-कें र भें हीनमान फौद्ध धभा के साथ ही अन्द्म धभों के तथा अनेक देिों के

छात्र ऩढ़ते थे। महा ं धभा ही नहीं, याजनीतत, शिऺा, इततहास,

ज्मोततष, विऻान आदद की बी शिऺा दी जाती थी।

कह ां है न ऱांद : नारंदा विश्िविद्मारम िताभान बफहाय याज्म भें ऩटना से 95 ककरोभीटय, याजगीय से 12 ककरोभीटय, फोधगमा से 90

ककरोभीटय (गमा होकय), ऩािाऩुयी से 26 ककरोभीटय की दयूी ऩय

जस्थत है। इस विश्िविद्मारम के खंडहयों को अरेक्जेंडय कतनघंभ ने

तरािकय फाहय तनकारा था जजसके जरे हुए बग्नाििषे इसके

प्राचीन िैबि की दास्तां फमा ंकयत ेहैं। ह्िेनसांग के रेखों के आधाय ऩय ही इन खंडहयों की ऩहचान नारंदा विश्िविद्मारम के रूऩ भें की गई थी। 7िीं िताब्दी भें बायत आए

ह्िेनसांग नारंदा विश्िविद्मारम भें न केिर विद्माथी यहे, अवऩतु

फाद भें उन्द्होंने एक शिऺक के रूऩ भें बी महा ंअऩनी सेिाएं दी थीं।

चीनी य त्री ह्वेनस ांग : जफ ह्िेनसांग बायत आमा था, उस

सभम नारदंा विि ्िविद्मारम भें 8,500 छात्र एि ं 1,510

अध्माऩक थे। अनेक ऩुयाशबरेखों औय 7िीं सदी भें बायत

भ्रभण के शरए आए चीनी मात्री ह्िेनसांग तथा इजत्सगं के

मात्रा विियणों से इस विश्िविद्मारम के फाये भें विस्ततृ

जानकायी प्राप्त होती है। प्रशसद्ध चीनी मात्री ह्िेनसांग ने

7िीं िताब्दी भें महां जीिन का भहत्िऩूणा 1 िषा एक

विद्माथी औय एक शिऺक के रूऩ भें व्मतीत ककमा था। प्रशसद्ध फौद्ध 'सारयऩुत्र' का जन्द्भ मही ंऩय हुआ था।

ववश्वववद्य ऱय क स्थ पन क ऱ : इस भहान

विश्िविद्मारम की स्थाऩना गुप्तकारीन सम्राट

कुभायगुप्त प्रथभ ने 413-455 ईऩू भें की। इस

विश्िविद्मारम को कुभायगुप्त के उत्तयागधकारयमों का ऩूया सहमोग औय संयऺण शभरा। ह्नेनसांग के

अनुसाय 470 ई. भें गपु्त सम्राट नयशसहं गुप्त

फाराददत्म ने नारंदा भें एक संुदय भंददय तनशभात

कयिाकय इसभें 80 पुट ऊंची तांफे की फुद्ध प्रततभा को स्थावऩत कयिामा।

सांरऺण : गुप्त ििं के ऩतन के फाद बी आने िारे सबी िासक िंिों ने इसके संयऺण भें अऩना भहत्िऩूणा मोगदान जायी यखा औय फाद

भें इसे भहान सम्राट हषािधान औय ऩार िासकों का बी संयऺण

शभरा। स्थानीम िासकों तथा विदेिी िासकों से बी इस

विश्िविद्मारम को अनुदान शभरता था। नन:शुल्क पढ ई : नारंदा विश्िविद्मारम भें शिऺा, आिास, बोजन

आदद का कोई िुल्क छात्रों से नही ं शरमा जाता था। सबी सुविधाएं

तन:िुल्क थीं। याजाओ ंऔय धनी सेठों द्िाया ददए गए दान से इस

विश्िविद्मारम का व्मम चरता था। इस विश्िविद्मारम को 200

ग्राभों की आम प्राप्त होती थी।

फौद्ध धभा से इस शिऺण संस्थान के प्रभखुता से जडु ेहोने के

ऩश्चात बी महा ंदहन्द्द ूतथा जैन भतों से संफंगधत अध्ममन

कयाए जाने के संकेत शभरत ेहैं, साथ ही साथ िेद, विऻान,

खगोरिास्त्र, सांख्म, िास्तकुरा, शिल्ऩ, भतूताकरा, व्माकयण, दिान, िल्मविद्मा, ज्मोततष, मोगिास्त्र तथा गचककत्सािास्त्र बी ऩाठ्मक्रभ भें िाशभर थे। इससे ऩता चरता है कक फौद्ध िासन होने के फािजदू फौद्धों ने कबी दसूये धभों के अनुमातममों के साथ बेदबाि नही ंककमा था।

अत्मंत सुतनमोजजत ढंग से औय विस्ततृ ऺेत्र भें फना हुआ मह विश्िविद्मारम

स्थाऩत्म करा का अद्भतु नभनूा था। इसका ऩूया ऩरयसय एक वििार दीिाय से

तघया हुआ था जजसभें प्रिेि के शरए एक भखु्म द्िाय था। उत्तय से दक्षऺण की ओय

भठों की कताय थी। अबी तक खदुाई भें 13 भठ शभरे हैं। भठ एक से अगधक

भंजजर के होत ेथे। भठों के साभने अनेक बव्म स्तूऩ औय भंददय थे। भंददयों भें फुद्ध

बगिान की भूतत ामां स्थावऩत थी।ं

कें रीम विद्मारम भें 7 फड ेकऺ थे औय इसके अरािा 300 अन्द्म कभये थे। इनभें व्माख्मान हुआ कयत ेथे। कभये भें सोने के शरए ऩत्थय की चौकी होती थी। दीऩक,

ऩुस्तक इत्मादद यखने के शरए आरे फने हुए थे। प्रत्मेक भठ के आंगन भें एक

कुआं फना था। 8 वििार बिन, 10 भंददय, अनेक प्राथाना कऺ तथा अध्ममन कऺ

के अरािा इस ऩरयसय भें सुदंय फगीच ेतथा झीरें बी थीं। जनै ग्रंथ 'सूत्रकृतांग' भें नारंदा के 'हजस्तमान' नाभक सुंदय उद्मान का िणान है।

ये 3 प्रमुख पुस्तक ऱय थे- यत्नोदगध, यत्नसागय औय यत्नयंजक। एक

ऩुस्तकारम बिन तो 9 तरों का हुआ कयता था। इन ऩुस्तकारमों भें हस्तशरखखत हजायों ऩुस्तकें औय छऩी हुई राखों ककताफें थीं। कई दरुाब

ऩुस्तकों का बंडाय था।

छ त्र और शशऺक : मह विश्ि का प्रथभ ऩूणात: आिासीम विश्िविद्मारम

था औय विकशसत जस्थतत भें इसभें विद्मागथामों की संख्मा कयीफ 10,000

एिं अध्माऩकों की संख्मा 2,000 थी। नारंदा के प्रशसद्ध आचामों भें िीरबर, धभाऩार, चंरऩार, गुणभतत औय जस्थयभतत प्रभुख थे। 7िी ंसदी भें ह्िेनसांग के सभम इस विश्िविद्मारम के प्रभुख िीरबर थे, जो एक

भहान आचामा, शिऺक औय विद्िान थे। प्रशसद्ध बायतीम गखणतऻ एिं

खगोरऻ आमाबट्ट बी इस विश्िविद्मारम के एक सभम कुरऩतत यहे थे।

विश्वभर के छात्र पढ़त े थ े : इस विश्वविद्यालय में भारत के विवभन्न के्षत्रों से ही नहीं, बवकक कोररया,

जापान, चीन, वतब्बत, इंडोनेविया, श्रीलंका, फारस, तुकी और ग्रीक से भी विद्याथी विक्षा ग्रहण करने आते

थे। नालंदा के विविष्ट विक्षाप्राप्त स्नातक बाहर जाकर बौद्ध धमम के साथ ही अन्य ज्ञान का प्रचार करते थे।

सभी विषय पढ़त े थ े छात्र : नालंदा में बौद्ध धमम के अवतररक्त हेतुविद्या, िब्दविद्या, वचवकत्सािास्त्र,

अथिमिेद तथा सांख्य से संबवधत विषय भी पढाए जाते थे। युिानचिांग ने वलखा था वक नालंदा के एक

सहस्र विद्वान आचायों में से 100 ऐसे थे, जो सतू्र और िास्त्र जानते थे तथा 500, तीन विषयों में पारंगत थे

और 20, पचास विषयों में। केिल िीलभद्र ही ऐसे थे वजनकी सभी विषयों में समान गवत थी।

छात्रों का चयन : विद्यावथमयों का प्रिेि नालंदा विश्वविद्यालय में काफी कविनाई से होता था, क्योंवक केिल

उचच कोवि के विद्यावथमयों को ही प्रविष्ट वकया जाता था। इसके वलए बाकायदा परीक्षा ली जाती थी।

इस विश्िविद्मारम की 4थी से 11िी ं सदी तक

अंतयााष्ट्रीम ख्मातत यही थी, रेककन फजख्तमाय

खखरजी नाभक एक भुजस्रभ तुका रुटेये ने 1199

ईस्िी भें इसे जराकय नष्ट्ट कय ददमा। इस कांड भें हजायों दरुाब ऩुस्तकें जरकय याख हो गईं। भहत्िऩूणा दस्तािेज नष्ट्ट हो गए। कहा जाता है कक िहा ंइतनी ऩुस्तकें थी ं कक आग रगने के फाद बी 3 भाह तक

ऩुस्तकें ध-ूध ूकयके जरती यहीं।

कहते हैं कक कई अध्माऩकों औय फौद्ध शबऺुओं ने अऩने कऩडों भें छुऩाकय कई दरुाब ऩांडुशरवऩमों को फचामा तथा उन्द्हें ततब्फत की ओय रे गए। कारांतय भें इन्द्ही ंऻान-तनगधमों ने ततब्फत ऺेत्र को फौद्ध धभा औय ऻान के फड ेकें र भें ऩरयिततात कय ददमा।

आश्चमा की फात मह है कक िह रुटेया शसपा 200 घुडसिायों के साथ

आमा था औय नारंदा विश्िविद्मारम भें उस सभम कभ से कभ

20,000 छात्र ऩढ़ यहे थे। तनहत्थे औय अदहसंक फौद्ध शबऺुओं ने

कबी मह कल्ऩना बी नहीं कक थी कक इस विि ्िविद्मारम को सुयऺा की जरूयत बी होगी।

Replica of the seal of Nalanda set in terracotta

on display in the Archaeological Survey of India

Museum in Nalanda

A map of Nalanda and its environs from Alexander

Cunningham's 1861–62 ASI report which shows a number of

ponds (pokhar) around the Mahavihara.

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