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APRIL-JUNE 2021, YEAR-6, VOLUME-2 www.echetana.com 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 Received on 09 th April 2021, Revised on 15 th April 2021, Accepted 17 th April 2021 vkys[k शमशेर बहादुर सह के काʩ ौय सबɾका ˢप एव सवʶेषण * डा. सयेर कुमागाव-पोट मोरवा (पलानी) तहसील -सूरजगढ, पजला-झुझुनू (राज.) [email protected], Mob. +918003657445 lkj la{ksi कĮि शमशĸर बहĭदIJर ĮŃह दij रĸ तĭर ɑक (1951) कĸ ĽȽŊ ि Ůĸम कĸ कĮि हĹ ! शमशĸर अŃतŀ और बĭ˨ कı गहरĭईļŃ कļ अपनĸ कĭʩ कĭ Įिष बनĭतĸ हĹ ! शमशĸर कı रचनĭ ŮĮŢĭ मĸ Įबɾ Įबखरĸ पङĸ हĹ ! उनकı कĮितĭएŁ ĮबɾļŃ कı फल ĴĮʼ करतı हœ , तļ िहıŃ उनकı रचनĭ ŮĮŢĭ कĭ Įिशĸष आĭम हĹ -उनकı गजलĸ और नǚ! आधIJĮनक कĭʩ मĸ शमशĸर एक ĮबɾधमŎ कĮि कĸ ŝप मĸ जĭनĸ जĭतĸ हĹ ! Įबɾ कļ कĭʩ भĭषĭ मĸ ĽȽŊ कĸ ŝप मĸ ŮIJƅ करनĸ िĭलĸ कĮि शमशĸर कĸ Įबɾ अनijठĸ मĭŁल ऐİȾ, गĮतशıल ि ijƘ हĹ ! ĮनʺषŊत: कĮि शमशĸर बहĭदIJर ĮŃह कı कĮितĭ कĭ ĽȽŊ , Įबɾ Įिधĭन कı ŮĮŢĭ मŐ नı कĮितĭ कı धĭरĭ मŐ धिल चĭŃदनı कı तरह नĸ Įशʙ मŐ बŃधĭ Šआ हĹ ˑावना Įबɾ रचनĭ नı कĮितĭ कı एक ĮिĮशʼ पहचĭन हĹ ! पĭʮĭȑ ĭĮहȑ मŐ Įबɾ कĸ जɉदĭतĭ टı..हŀijम और एफ.. ĮफʐŃ हĹ ! एजरĭ पĭउǷ नĸ Įबɾ कļ ĭĮहİȑक ŝप Ůदĭन Įकĭ! 1912 मŐ एजरĭ पĭउǷ नĸ Įबɾ कĭʩĭȽļलन कĭ पIJरˋĭर Ůĭɑ Įकĭ! पĮʮमı कĭʩ आȽļलन कĭ Ůभĭि ĮहȽı ĭĮहȑ ि कĭʩ पर पङतĭ रहĭ हĹ ! नı कĮितĭ कĸ कलĸिर कļ Łिĭरनĸ कĸ Įलए Ůȑĸक कĮि नĸ अपनĸ कĭʩ मŐ Įबɾिĭद कļ अपनĭĭ! अǒĸ, शमशĸर, नरĸ श मĸहतĭ, कĸदĭरनĭथ ĮŃह, िőʷर दĭल ƛĸनĭ आĮद नĸ कĭʩ ĽȽŊ मĸ िĴ İȠ करनĸ हĸतIJ Įबɾ कļ Įिशĸष थĭन Įदĭ! िĭˑि मĸ दĸ खĭ जĭĸ तļ Įबɾ कĸ मĭȯम ĸ जıिन कĸ अनIJभि आȏĭत Įकĸ जĭतĸ हĹ ! Ō ĭईन कĸ अनIJĭर -"िĭˑि मĸ Įबɾ हı कĭʩ कı िŖDŽ ऊŁचĭई और उकĭ Ůĭण हĹ ! सबɾ का अय A picture made out of words अथĭŊतŀ - शɨ ĮनĮमŊत Įचũ | Įबɾ कĸ अनĸक मĭनथŎ हĹ जĹĸ -मĭन ŮĮतकĴĮȅ, ŮĮतDžĭĭ, ŮĮतĮबɾ, छĭĭ Įचũ इȑĭĮद | eq [; 'kCn& ऐपरय पिि, वतुपरक पिि, कााथ पिि,रग पिि , तीक पिि, सुररयल पिि vkfnA

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APRIL-JUNE 2021, YEAR-6, VOLUME-2 www.echetana.com 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46 46

Received on 09th April 2021, Revised on 15th April 2021, Accepted 17th April 2021

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शमशेर बहादुर स िंह के काव्य ौन्दर्य में सबम्बिं का स्वरूप एविं सवशे्लषण

* डा. सत्यने्द्र कुमार

गाांव-पोस्ट मोरवा (पपलानी)

तहसील -सूरजगढ, पजला-झुन्द्झुन ू(राज.)

[email protected], Mob. +918003657445

lkj la{ksi

कवि शमशेर बहादुर व िंह दू रे तार प्तक (1951) के ौन्दर्य ि पे्रम के कवि है! शमशेर अिंत ् और बाह्य की गहराईर् िं क अपने काव्य

का विषर् बनाते है! शमशेर की रचना प्रविर्ा मे वबम्ब वबखरे पङे है! उनकी कविताएँ वबम्ब िं की फल ृवि करती हैं, त िही िं उनकी रचना

प्रविर्ा का विशेष आर्ाम है -उनकी गजले और नज्म! आधुवनक काव्य मे शमशेर एक वबम्बधमी कवि के रूप मे जाने जाते है! वबम्ब क

काव्य भाषा मे ौन्दर्य के रूप मे प्ररु्क्त करने िाले कवि शमशेर के वबम्ब अनूठे माँ ल ऐन्द्रिर्, गवतशील ि ूक्ष्म है! वनष्कषयत: कवि शमशेर

बहादुर व िंह की कविता का ौन्दर्य, वबम्ब विधान की प्रविर्ा में नर्ी कविता की धारा में धिल चािंदनी की तरह नरे् वशल्प में बिंधा हुआ है।

प्रस्तावना

वबम्ब रचना नर्ी कविता की एक विवशि पहचान है! पाश्चात्य ावहत्य में वबम्ब के जन्मदाता टी.ई.ह्रू्म और एफ.ए . वफल्टिं है! एजरा पाउण्ड

ने वबम्ब क ावहन्द्रत्यक रूप प्रदान वकर्ा! 1912 में एजरा पाउण्ड ने वबम्ब काव्यान्द लन का पुरस्कार प्राप्त वकर्ा! पवश्चमी काव्य आन्द लन

का प्रभाि वहन्दी ावहत्य ि काव्य पर पङता आ रहा है! नर्ी कविता के कलेिर क ँिारने के वलए प्रते्यक कवि ने अपने काव्य में वबम्बिाद

क अपनार्ा! अजे्ञर्, शमशेर, नरेश मेहता, केदारनाथ व िंह, िेश्वर दर्ाल के्सना आवद ने काव्य ौन्दर्य मे िृन्द्रि करने हेतु वबम्ब क विशेष

स्थान वदर्ा! िास्ति मे देखा जारे् त वबम्ब के माध्यम े जीिन के अनुभि आत्म ात वकरे् जाते है! ड्र ाईड्न के अनु ार -"िास्ति मे वबम्ब ही

काव्य की िोच्च ऊँचाई और उ का प्राण है!

सबम् का अर्य

A picture made out of words अथायत् - शब्द वनवमयत वचत्र | वबम्ब के अनेक मानथी है जै े -मान प्रवतकृवि, प्रवतच्छार्ा, प्रवतवबम्ब,

छार्ा वचत्र इत्यावद |

eq[; 'kCn& ऐपन्द्रय पिम्ि, वस्तुपरक पिम्ि, काव्यार्थ पिम्ि,रांग पिम्ि , प्रतीक पिम्ि, सुरररयल पिम्ि vkfnA

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शमशेर बहादुर स िंह के काव्य ौन्दर्य में सबम्बिं का स्वरूप एविं सवशे्लषण

शमशेर के काव्य मे वबम्ब ियत्र वबखरे पङे है |वबम्ब विधान मे ूक्ष्म रूपक िं की ृवि है |शमशेर अपने मकालीन िं े कही िं अलग है, इ

अलगाि का कारण है -उनका जीिन िंघषय और िंिेदना े रु्क्त ह ना |शमशेर मे बाल्यकाल के कुछ प्र िंग और सृ्मवत वचत्र इतने गहरे

उनके अचेतन मे पैठ गरे् है वक बार -बार िे वबम्ब के रूप मे उनकी कविता मे उभरकर आते है! जीिन के कटुतम िंघषो क लेकर उन्हें

कविता में एकदम बना कना शमशेर के काव्य व्यन्द्रक्तत्व की पहचान है | उनकी रचना प्रविर्ा मे वचत्रात्मकता और िंगीत की मन: न्द्रस्थवत

बराबर चलती रहती है |एक ओर शमशेर की कविताओिं में वचत्रकला की मूतयता उभरती है त दू री ओर िंगीत की अमूतयता |अत: रचना

प्रविर्ा में वचत्रकला और िंगीत का अनूठा वमश्रण है | शमशेर के कृवतत्व के विषर् मे श्री राम स्वरूप चतुिेदी की मान्यता है -"शमशेर मे

रचना के खुलेपन का एक कारण और प्रमाण र्ह है वक उनकी काव्य भाषा मे िंज्ञा शब्द िं े कुछ अवधक ही महत्व ियनाम िं , विर्ा पद िं

और अिर्ि िं का है |र्ह विन्या उदूय मे बहुत न्द्रखला - तुम मेरे पा ह ते त ग र्ा ,जब क ई दू रा नही िं ह ता | वहन्दी कविता मे गुण पा ना

का रु्ग िंज्ञाओिं क महत्व देता है , पर जब-जब वनराकार की िा फैलती है , कविता में तुम और मै की प्रवतष्ठा ह ती है |" 1´ शमशेर की

काव्य र्ात्रा र मािंवटक भािधारा (छार्ािाद िर) े प्रारम्भ ह कर नर्ी कविता की धारा े जुङ जाती है | ड्ा. रिंजना अरगङे के अनु ार -

"वबम्ब िं का ज िं ार उनकी रचनाओिं में प्रकट हुआ है उ में उ में उनकी कविताओिं का ौन्दर्य व्यक्त हुआ है ; उनकी रचना प्रविर्ा में

शाम, मुद्र, वदि , ूर्य ,आकाश, विवतज, नदी, धूप, लहरें , वकरणें, बादल,इत्यावद वबम्ब के रूप मे उभरें है |"2 शमशेर र्थाथय ब ध े ग्रस्त

है |इ र्थाथय ब ध के नरे् स्तर मे "शराब" का भी एक महत्वपूणय िंदभय है ;ज कला के प्रवत कवि के दृविक ण क रेखािंवकत करता है |र्ह

"शराब" इिं ावनर्त की तलछट का छ ङा हुआ एक स्वाद है ,ज र्ह तथ्य प्रकट करता है वक मानिता का ज ार है ज उ का पवित्र और

ुन्दर रूप बचा हुआ है , उ े ही कवि अपने काव्य का विषर् बनाना चाहता है |इ शराब (काव्य) का नशा नही िं ह ता है | र्ह शराब

लौवकक नही िं है , अवपतु अलौवकक है |र्ह शराब ऐ ी है वज का नशा र्वद ह ता है त ह्रदर् पाठक क ह ता है |कवि शमशेर इ प्रकार

की शराब की आकािंिा करते है र्था -

नश्शा मुझे नह िं हबता! नह िं हबता!

मुझे, प ने वालब िं कब हबता है | ------

मेर कसवता कब अगर वब उठा के एक घ िंट, प के,

अगर ------

इ सलए ब मुझे वह शराब दब! ब | (मुझे नश्शा नह िं चासहए) “3"

इ पीने की प्रविर्ा मे स्वाद वबम्ब का ऐन्द्रिर् वबम्ब उभरता है | शमशेर की रचना प्रविर्ा मे अनूठे वचत्र उभरते है |"टूटी हुई, वबखरी हुई"

कविता त वबम्ब िं मे खुलती हुई वबम्ब में ही माप्त ह जाती है | "टूटी हुई, वबखरी हुई " में पे्रम का उदाि रूप है आत्मीर् वबम्ब िं के माध्यम े

खुलता हुआ पे्रम के उच्च पान िं क स्पशय करता हुआ वदखाई देता है | र्था-

तुम मुझ े पे्रम करब, जै े मै तुम े करता हूँ |

शमशेर िंिेदनशील ि ह्रदर् कवि है |उनकी कविताओिं मे िंिेदना के वबम्ब वबखरे पङे है | र्था -

मुझे प्या के पहाङब पर सलटा दब,

जहाूँ मै एक झरने क तरह तङप रहा हूँ,

मुझकब रज क सकरणब िं मे जलने दब,

तासक उ क आूँच और लपट में तुम फौव्वारे क तरह नाचब!

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प्या के पहाङ का तात्पर्य है - वचर अतृन्द्रप्त की कामना | झरने का बहना पे्रम की तङप है |फौव्वारा शीतलता का प्रतीक है, ज पे्रवमका के

मन भाि िं क प्रकट करता है | आग की लपट पे्रम की प्रचण्ड ज्वाला है | शमशेर ने अवि, जल आवद का रूपक बाँधकर फल वबम्ब की

जयना की है | शमशेर रिंगधमी कवि के रूप में जाने जाते है |अत: रचना प्रविर्ा में वचत्रात्मकता है |रिंग वबम्ब, स्पशय वबम्ब, गिंध वबम्ब, श्रव्य

वबम्ब ारी िंिेदनाएँ “उषा" कविता मे एक ाथ उभरती है, र्था –

एक फ ल उषा क खिल खिलाहट पहनकर,

रात का गङता हुआ, काला कम्ल उतारता हुआ,

मुझ े सलपट गर्ा! "4"

र्हाँ उषा की न्द्रखलन्द्रखलाहट में श्रव्य वबम्ब, फूल की गिंध मे घ्राण्य वबम्ब, काला कम्बल मे रिंग वबम्ब, वलपट गर्ा मे स्पशय वबम्ब की फल

र् जना है | पुन: आगे कविता मे कवि का मन र मान्द्रिक ह उठता है, वज मे पे्रम के िं गय का रूपक बाँधकर अ ीम कल्पना कर कवि "

फूल " क “पे्रवमका" का प्रतीक बनाकर फल र्ौन वबम्ब की जयना करने मे फल ह जाते है | र्था-

उ मे काूँटें नह िं रे् -- स फय एक बहुत काल ,

बहुत जुल्फ र् , जब जम न तक, छार्ा सकरे् र् ------

जहाूँ मेरे पाूँव िब गरे् रे्! वह गुल मबसतर्ब िं कब चबाता हुआ,

स तारब िं कब अपन कनखिर्ब िं में घुलाता हुआ,

मुझ पर एक सजन्दा इत्रपाश बनकर बर पङा ------

और तब मैने देिा सक - मै स फय एक ाूँ हूँ,

जब उ क ब िंदब िं मे ब गर् है! मै उ के पाूँवब िं मे कबई स जदा न बन का;

क्बिंसक मेरे झुकते न झुकते, उ के पाूँव क सदशा मेर आूँिबिं कब लेकर िब गर् र् |

र्हाँ वजन्दा इत्रपाश बनकर बर पङना पे्रम के रवत भाि का फल प्रतीक है ज स्पशय वबम्ब बनकर उभरा है | शमशेर ने विलिण वबम्ब की

जयना की है, ज अथय गािंभीर्य वलरे् हुए है |

ड्ा. रिंजना अरगङे के अनु ार –"जीिन के बदलते हुए मूल्य िं क जहाँ कवि अपनी रचनाओिं मे वचवत्रत करते है ,िहाँ शाश्वत मूल्य िं की गररमा

क भी िह गाते है | त्य, वशि ि ुन्दर की मवहमा गाना कविर् िं का वप्रर् विषर् रहा है | प्रार्: ऐ ी रचनाओिं के ब ध-प्रधान ह ने का भर् रहता

है |अवभव्यन्द्रक्त पाटबानी का रूप धारण कर ले ,ऐ ी म्भािना भी बनी रहती है |लेवकन शमशेर की चेतना इ े पूरी वबम्बात्मकता के ाथ

ग्रहण करती है |"5 शमशेर कहते है : " च्चाइर्ाँ/ज गिंगा के ग मुख े म ती की तरह वबखरती रहती है /वहमालर् की बफीली च टी पर

चाँदी के उनु्मक्त नाचते / पैर िं मे वझलवमलाती रहती है /ज एक हजार रिंग िंके म वतर् िं का न्द्रखलन्द्रख ाता मन्दर है /उमिंग िं े भरी फूल िं की

जिान कन्द्रिर्ाँ /वक ब िंत के नरे् प्रभात - ागर में छ ङ दी गर्ी है |"6" शमशेर ने र्हाँ एक ही वबम्ब रिंग वबम्ब की फल वबम्ब िं की

जयना की है | त्य का रिंग शे्वत माना गर्ा है | त्य एक पवित्र मूल्य है वज के वलए ियस्व न्यौछािर वकर्ा जा कता है |इन ब बात िं मे

वबम्बात्मक अवभव्यन्द्रक्त है | च्चाइर्ाँ -मान िं गिंगा के मुख े वबखरे म ती है ; मे म ती शे्वत वबम्ब का ही रूपक है ! वहमालर् के ऊपर बफय भी

शे्वत का ही ब ध कराती है | चाँदनी मे भी शे्वत की अन्द्रस्तत्व ब ध ह उठा है! अत: त्य में ऊँचाई है, शे्वतत्व है, उज्ज्वलता है,चमक है | च्चाई

हजार रिंग िं के म वतर् िं का न्द्रखलन्द्रखलाता मन्दर है | उ शे्वत रिंग े ही हजार रिंग फूट पङते प्रतीत ह रहे है | ड्ा.िीरेि व िंह के अनु ार-

"शमशेर का जयना ब ध तथागतीकरण प्रविर्ा ामने लाता है ज कवि की अन्तदृयवि और ामरस्य का ूचक है |शमशेर मे ऐन्द्रिर् िंिेदना

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तीव्र है ,अत:रचना प्रविर्ा में जयक कल्पना के आधार पर वबम्ब िं का स्वरूप है |कवि का मान 'ग पन' क इतना महत्व देता है वक िे अपनी

बात क एक ' ें र' का रूप देते है |" '7' शमशेर के काव्य मे "बात" और "भेद" की एक आँख वमचौनी ी चलती रहती है ; र्था –

बात बबलेग हम नह िं; और जब बात बबलेग तब अवश्य ह भेद िबलेग ; हम नह िं!

शमशेर बहादुर व िंह के काव्य ौन्दर्य मे वबम्ब िं का स्वरूप एििं विशे्लषण वनम्नवलन्द्रखत िगीकरण के आधार पर द्रिव्य है:

1. ऐन्द्रिर् वबम्ब :(1) चािुष वबम्ब र्ा दृश्य वबम्ब (2) श्रव्य वबम्ब (3) स्पशय वबम्ब (4) घ्राण वबम्ब र्ा गिंध वबम्ब (5) स्वाद वबम्ब |

2. िसु्तपरक वबम्ब: (1) स्थूल वबम्ब र्ा विराट वबम्ब (2) गवत वबम्ब (3) वचत्र वबम्ब

3. काव्याथय वबम्ब :(1) िंन्द्रश्लि वबम्ब (2) अमूतय वबम्ब

4. रिंग वबम्ब

5. प्रतीकात्मक वबम्ब

6. ुरररर्वलन्द्रिक वबम्ब र्ा अ म्बि वबम्ब |

1. ऐखिर् सबम्

ऐन्द्रिर्ता वबम्ब का अवनिार्य धमय है | ऐन्द्रिर् िंिेदना का िंबिंध हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रिर् िं े है; र्था -आँख, नाक, कान, जीभ, और त्वचा | इन्ही िं

ज्ञानेन्द्रिर् िं े ऐन्द्रिर् वबम्ब िं की ृवि ह ती है |शमशेर की रचना प्रविर्ा मे ऐन्द्रिर् वबम्ब िं की फल अवभव्यन्द्रक्त है |

(1) चाकु्षष सबम् र्ा दृश्य सबम्

चािुष वबम्ब का िंबिंध चिु(नेत्र) े है |ऐन्द्रिर् वबम्ब िं मे चािुष वबम्ब र्ा दृश्य वबम्ब अवधक तीव्र और प्रभािशाली ह ते है |वचत्रकार ह ने े

शमशेर के काव्य मे चािुष र्ा दृश्य वबम्ब िं की अवधकता है | र्था: -

देिा र्ा वह प्रभात; तुम्हें ार्; पुन: रात /पुलसकत –

सफर सशसर्ल गात; तप्त मार्; से्वद - स्नात; मौन म्लान;

प त पात; पुन: अशु्र सबम् -ल न; शनै स्वप्न कम्प वात | “

शमशेर की रचना प्रविर्ा में एक वचत्रकार की भािनाएिं वबम्ब का रूप धारण कर ह्रदर् क भािुक बना देती है | "पे्रर् ी" कविता मे

शमशेर की िंिेदनाएिं तीव्र अनुभूवत के अनेक रूपक बाँधकर वबम्ब िंर् जन करती है | शमशेर ने प्रकृवत के ौन्दर्य (ब िंत ऋतु )की छटा

दृश्य वबम्ब के माध्यम े आत्म ात करिाई है ; र्था -वफर बाल ब िंत आर्ा /वफर लाल ब िंत आर्ा /वफर पीले गुलाब िं का /र भीने गुलाब िं

का /आर्ा ब िंत / ौ चाँद े म ले हुए जौबन पर /शृ्रिंगार की बजती हुई रागवनर्ाँ/ र राज मधुपुरी की गवलर् िं मे / ौ नूरजहािंएँ ; ौ

पविवनर्ाँ /वफर लार्ी ब िंत /उन्मि ब िंत आर्ा | " 8 "रावत्र" कविता मे कवि प्राकृवतक आभा मे पे्रर् ी क ख जने की पररकल्पना दृश्य

वबम्ब के माध्यम े इ प्रकार करते है :-

मैं म िंचकर आूँिें; सक जै े सक्षसतज तुमकब िं िबजता हूँ | “9"

(2) श्रव्य सबम्

श्रव्य वबम्ब का िंबिंध कान े है |श्रिण के उपरािंत ज वबम्ब मन्द्रस्तष्क मे उभरता है; िह श्रव्य वबम्ब है| "रेवड्र् पर एक रू्र पीर् िंगीत ुनकर

"शमशेर श्रव्य वबम्ब क मूतय रूप इ प्रकार देते है: -

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तेर आवाज, ख्वाबबिं मे घ मत -झ मत आहबिं क एक तस्व र ;

ुन ूँगा: मेर -तेर है वह; िबई हुई; रबई हुई; एक तकद र !

शमशेर एक ान्द्रत्वक पे्रमी है |पत्नी की अ मर् मृतु्य की िेदना उनकी कविता मे ािात है |उनकी सृ्मवत मे र्ह िेदना वबम्ब िं के रूप मे देखी

जा कती है | र्था: -

रात क हूँ है तेरे गले में; ने में;

बहुत काल ुरमर् पलकबिं मे ािं ब िं मे;

लहर ल अलकबिं में; आर् त ; ओ सक क --------!

सफर मुस्करार् त ; न िंद मे िामबश--वस्ल | "10"

(3) स्पशय सबम्

स्पशय वबम्ब का िंबिंध मानिीर् त्वचा े है |त्वचा द्वारा जब अनुभूवत का आभा ह ता है, तब स्पशय वबम्ब की जयना ह ती है |"टूटी हुई, वबखरी

हुई" कविता मे कवि शमशेर स्पशय अनुभूवत क आत्म ात कर ह्रदर् पाठक क भािुक बना देते है | र्था: -

वह मुझ पर हूँ रह है; जब मेरे हबठब िं पर एक तलुए के बल िङ है;

मगर उ के बाल मेर प ठ के न चे दबे हुरे् है!

और मेर प ठ कब मर् के बार क तारब िं क तरह िुरच रहे हैं;

उ के एक चुम्न क स्पष्ट परछार् मुहर बनकर;

उ के तलुओिं के ठपे्प े मेरे मुूँह कब कुचल चुक है;

और उ का ना मुझकब प कर बराबर कर चुका है! "11"

कवि शमशेर ने र्हाँ प्रणर् िं गय के रवत भाि की ुखद सृ्मवत स्पशय वबम्ब के माध्यम े व्यक्त कर पाठक िं मे भी रवत का भाि जागृत कर

वदर्ा है |"तुमक पाना है अविराम"कविता स्पशय वबम्ब की अवभव्यन्द्रक्त हुई है: - मलँूगा मै िि े तुम्हारे; अपने जीिन का मस्त िि स्थल;

वलपटूिंगा मै अिंग अिंग े तुम्हारे!

(4) घ्राण सबम् र्ा गिंध सबम्

घ्राण वबम्ब का िंबिंध नाव का े है | िे वबम्ब ज गिंध िंबिंधी अप्रसु्तत विषर् में घ्राण म्बन्धी चेतना जागृत करके ह्रदर् पाठक क भाि

विभ र कर देते है; घ्राण र्ा गिंध वबम्ब कहलाते है |शमशेर बहादुर व िंह गिंध वबम्ब का िंर् जन इ प्रकार करते है: -

एक िुशब जब मेर पलकबिं में, इशारब िं क तरह, ब गई,

जै े तुम्हारे नाम क नन् िं , से्पसलिंग हब, छबट , प्यार , सतरछ , से्पसलिंग! *****

कवि शमशेर के काव्य में गिंध वबम्ब की जयना प्र िंगानुकूल है, र्था: -

वह गुल मबसतर्ब िं कब चबाता हुआ;

स तारब िं कब अपन कनखिर्ब िं में घुलाता हुआ;

मुझ पर एक सजन्दा इत्रपाश बनकर बर पङा!"12"

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(5) स्वाद सबम्

स्वाद वबम्ब का िंबिंध र ना (जीभ) े है |कविता पठन र्ा श्रिण े जब स्वाद की अनुभूवत ह ती है; तब स्वाद वबम्ब की जयना ह ती है |

"दूब" कविता मेेे शमशेर चार् के रूपक के माध्यम े स्वाद वबम्ब की जयना करते है: -

मबट , धुल लबन क द ब, ाफ मिमल क काल न ××××××××××××××××

हल्क म ठ चा-- ा सदन; म ठ चुस्क - बाते; मुलार्म बाूँहब िं ा अपनाव!"13"

"टूटी हुई, वबखरी हुई" कविता मे शमशेर स्वाद वबम्ब ि स्पशय वबम्ब की एक ाथ अवभव्यन्द्रक्त इ प्रकार करते है | र्था: -

ऐ ा लगता है जै े तुम मझ े चारब िं तरफ े सलपट हुई हब;

और मै तुम्हारे व्यखित्व के मुि में; आनिंद का स्र्ार् ग्रा हूँ!

शमशेर की रचना प्रविर्ा मे ऐन्द्रिर् वबम्ब िं के द्वारा पाठक र ास्वादन कर स्वर्िं क अनुभूवत े आत्म ािात्कार करिाकर शमशेर े अपना

िंबिंध ज ङ लेता है |

2. वसु्तपरक सबम्

ड्ा. िीरेि व िंह ने िसु्तपरक वबम्ब िं मे स्थूल वबम्ब, गवत वबम्ब और वचत्र वबम्ब का िंर् जन वकर्ा है |कवि शमशेर के िसु्तपरक वबम्ब द्रिव्य

है-

(1) स्र् ल सबम् र्ा सवराट सबम्

काव्य मे जहाँ न्द्रस्थरता का आभा ह िहाँ; न्द्रस्थर वबम्ब र्ा विराट वबम्ब ह ते है |दू रा प्तक मे िंकवलत कविता मे शमशेर स्थूल वबम्ब की

जयना इ प्रकार करते है; र्था: -

िं ार के चके्क पर है: दब हार् /दब हार्: प रब पखिम!

आूँि दबनब िं देित एक ार् /र्ह एक ह दृश्य! "13"

शमशेर उलझी हुई िंिेदनाओिं के द्वारा स्थूल वबम्ब की जयना कर हताश जीिन क म्बल देते है; - र्था: -

एक प ल शाम, पतझर का जरा अटका हुआ पत्ता, शािंत -----------

मेर भावनाओिं मे तुम्हारा मुि कमल, कृश म्लान हारा ा ----

(सक मै हूँ वह मौन दपयण में तुम्हारें कह िं)

प्रकृवत के िातािरण े प्रभावित ह कर कवि विराट वबम्ब की जयना कर फल काव्य ौन्दर्य का िंर् जन करते है; र्था: -

चाूँदन में घुल गरे् हैं, बहुत े तारे, बहुत कुछ,

घुल गर्ा हूँ मै, बहुत कुछ अब! रह, गर्ा --------

एक धा सबिंब! ुधी आल चक िं ने (गर्ा एक ीधा वबिंब) पिंन्द्रक्त में र्ौन वबम्ब िं तक की पररकल्पना कर ली है | अत: शमशेर का काव्य त

वबम्ब िं का जाल ा प्रतीत है |

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(2) गसत सबम्

शमशेर के काव्य मे प्रते्यक शब्द पर वबम्ब की मारक िमता है | "पे्रर् ी "कविता मे कवि क अपनी पत्नी की सृ्मवत ह उठती है; ज गवत

वबम्ब के द्वारा व्यक्त ह ती है |र्था: -

मुझ े द र, अलग न जाओ, मुझकब छबङ न दब,

कह िं मुझकब छबङ न दब, तुमे्ह मेरे प्राणब िं क ौगिंध, जाओ ------

सकनु्त मुझमें ब कर!

शमशेर का प्रकृवत म्बन्धी गत्यात्मक वबम्ब आकषयक है; र्था –

ध प र्पेङे मारत है -र्प -र्प,

केले के हातब िं े पातब िं े, केले के र्म्बिं पर,

ि र -ि र एक सचकनाहट,

हवा में मक्खन ा घबलत है!

(3) सचत्र सबम्

शमशेर लेखनी लेकर ही नही िं चले , कूिं ची लेकर भी उन्ह िंने अपने आभ्यान्तर का वचत्रािंकन वकर्ा है |िे स्वर्िं कविताओिं के ाथ रेखाओिं द्वारा

कविता की ाथयकता वदखाते है | "टूटी हुई, वबखरी हुई " रचना की भूवमका मे स्वर्िं कहते है - "एक कविता क वचत्र देना पङा , िास्ति में

घनीभूत पीङा क वजन रेखाओिं के िंकेत और हारे े शब्द वमले , िे मुझे आज िषों बाद भी लगता है वक उ का अवभन्न अिंग है |" "14"

शमशेर त िास्ति मे वबम्ब िं के बहादुर ही है ,पे्रम की भािनाओिं मे त वचत्र वबम्ब जीि ह उठा है |उकील बिंधुओिं े उन्ह िंने वचत्रकला का

मूचा ज्ञान प्राप्त वकर्ा था | वचत्रकला उनके अध्यर्न का विषर् भी रहा है | अत: काव्य मे वचत्र वबम्ब वबखरा पङा है , मेटने ि मझने

िाला ह्रदर् ह ना अपेवित है | वचत्र वबम्ब की जयना कवि 'गीली मुलार्म लटें" कविता मे रिंग िं के वमश्रण द्वारा इ प्रकार करते है ; र्था :-

ग ल मुलार्म लटें

आकाश

ािंवलापन रात का गहरा लबना

स्तनबिं के सबिंसबत उभार सलरे्

हवा में बादल

नर्ा गहरापन तुम्हारा शमशेर ने र्हाूँ स्तनबिं के सबम् मे हलचल मचा द है |

शमशेर की काव्य भाषा लर् और गवत े रु्क्त ह ने के कारण वचत्रात्मक है | इन वचत्र िं मे अनेक रिंग और उनकी छार्ािं है |बादल, हले्क रिंगीन

पिे, कत्थई, गुलाबी, के ररर्ा, ािंिलापन, दबाए हुए कगार, हरा नीला ा, काली ील, वचवङर्ा लाल भूरी, म म ा पीला, नभ और मौज

गहरी ुनहरी आवद ऐ े ही रिंगारिंग शब्द वचत्र उनकी कविताओिं मे वबखरे पङे है | काव्य भाषा िंगीत की मधुरता के ाथ वचत्र शैली मे फल

वबम्ब र् जना का रूपक बािंधती है |

3. काव्यार्य सबम्

काव्य का अथय की दृवि े द प्रकार के वबम्ब माने गरे् है| (1) िंन्द्रश्लि वबम्ब (2) अमूतय वबम्ब |

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(1) िंखश्लष्ट सबम्

कविता मे जहाँ एक ही भाि र् जना मे एक ाथ अनेक प्रतीक र्ा भाि िं की पररकल्पना कर वबम्ब जयना की जारे् िहाँ िंन्द्रश्लि वबम्ब ह ते है |

अत: एक ाथ अनेक भाि िं क ग्रहण कर अनेक वबम्ब िं की जयना करना |"िाम और माक्सय " े प्रभावित रचनाओिं मे िंन्द्रश्लि वबम्ब र् जना

अवधक है | र्था: -

वाम-वाम सदशा / मर्: ाम्यवाद /

पृष्ठभ सम का सवरबध अन्धकार-ल न /व्यखि ----

कुहाङस्पष्ट ह्रदर्-भार, आज ह न ह न भाव, ह न भाव -----------

मध्य वगय का माज, द न!

"चाँद े थ ङी गपे्प " कविता में कवि एक ाथ श्रव्य वबम्ब, गवत वबम्ब, स्थूल वबम्ब, वचत्र वबम्ब, दृश्य वबम्ब की जयना करते है; र्था: -

आप हूँ तें है, मगर

र्ब िं भ सदल ि िंच तब लेते ह है आप: (हाूँ ज ) मुन्दर क तरह,

और मै बेचैन हब जात हूँ; उ क लहरब िं क तरह,

ज्वार भाटा ा अजब, जाने क्बिं, उठने लगता है, ख्यालबिं में मेरे, ख्वामिाह!

"शाम और रात: तीन िेजा" कविता मे शमशेर ने रिंग वबम्ब, दृश्य वबम्ब, वचत्र वबम्ब, ि स्पशय वबम्ब की एक ाथ जयना की है | र्था: -

तसकरे् पे ुिय गुलाब मैने मझे ..............

दब ेब मैने मझे दब....................

क्बिं?

वब तब ...... वब तब, दब सदल रे्!

िंग ---------------

शाम का रिंग लपेटे ------------तुम रे्!

तसकरे् पे स फय मेरा स र र्ा:

आूँिबिं मे रात जल रह र् !

"िह ल ना वजस्म" कविता मे शमशेर ने पे्रमालाप के िंस्मरण ऐन्द्रिर् वबम्ब िं के द्वारा िंन्द्रश्लिता के ाथ कर मािं ा बाँध वदर्ा है| र्था: -

वह लबना सजस्म!

उ क अधिुल अूँगङाइर्ाूँ है, कमल के सलपटे हुए दल

कै भ न गिंध में बेहबश भौ िंरे कब! वह ुबह क चबट है,

हर पिंिुङ पर! रात क तारब िं भर शबनम, कहाूँ ड ब है!

नमय कसलर्ब िं के, पर झटकते हैं, हवा क ठिं ड कब!

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(2) अम तय सबम्

जहाँ कवि अमूतय भाि िं क मूतय रूप देता है ; िहाँ अमूतय वबम्ब ह ते है | अमूतय भाि िं क मूतय रूप प्रदान करना कवि की कल्पना शन्द्रक्त पर

वनभयर है | अमूतय वबम्ब र् जना मे प्रतीक िं का बहुत अवधक महत्व है| वज प्रकार मन के भाि वछपे हुरे् रहते है ; िै े ही वबम्ब वनमायण की

प्रविर्ा मे प्रतीक अमूतय रहते है | अमूतय वबम्ब र् जना मे कवि शमशेर अग्रणी है | "काल तुझ े ह ङ है मेरी " कविता मे काल ( मर्) अमूतय

है | कवि शमशेर काल ( मर्) क मूतय रूप देकर उ े ह ङ कर रहे है | काल क जीि रूप देकर अमूतय वबम्ब की फल अवभव्यन्द्रक्त

की है | र्था :-

काल, तुझ े हबङ है मेर : अपरासजत त , तुझमे अपरासजत मै वा करूूँ !

इ सलए तेरे ह्रदर् में मा रहा हूँ! धा त र- ा, जब रूका हुआ ा लगता है!

सक जै े ध्रव -नक्षत्र भ न लगे, एक एकसनष्ठ, खस्र्र, कालबपरर!

" ागर -तट" कविता में अमूतय भाि िं क मूतय रूप देकर अमूतय वबम्ब जयना हुई है; र्था: -

र्ह मिंदर क पछाङ, तबङत है हाङ तट का -- असत कठबर पहाङ!

मौन; मर् के आघात े पबल िङ द वारें , सज तरह घहरें , एक के बाद एक ह ा!

"वजन्दगी का प्यार" कविता मे कवि ने अमूतय पे्रम के भाि िं का िंर् जन वकर्ा है; र्था: -

से्नह लताओिं पर सचर्ङे है लटके, सवगत पे्रसमर्ब िं के! ..................

अजब रूर मृतु्य क बाूँहब िं में, अजब गरूर....

ज वन क झुकत आूँिबिं में! मुझ े द र, उ का वक्षस्र्ल!

ि न के आगबश में, वह हमकनार, सजन्दग का प्यार!

4. रिंग सबम्

शमशेर बहादुर व िंह के काव्य में" रिंग और प्रकाश का एक विशेष महत्व है |ड्ा. िीरेि व िंह के अनु ार-"शमशेर काव्य मे रिंग और प्रकाश,

वबम्ब तरल और ठ द न िं है | प्रभाििावदर् िं के मान शमशेर मे भी रिंग -दीन्द्रप्त एििं चमक का मािेश है |कत्थई, नीला, पीला, गेरूिं आ,

गुलाबी, हरा, ािंिला, और बैगनी आवद रिंग िं का मािेश अनेक कविताओिं में है |" "15 “बादल िं के मौन गेरू पिंख "कविता में बादल िं की गवत

का और उनके रिंग का िंकेत है | गेरू पिंख के द्वारा बादल िं के रिंग का वबम्ब द्रिव्य वकर्ा गर्ा है | र्था: -

ुरमई गेरू पिंि, आूँिबिं मे िबलते है श्याम पर् पर, कौन गसत गहन!

शमशेर रिंगकमी रचनाकार है |िे कविता में प्रकाश ि रिंग विर्ा-प्रवतविर्ा के रूप में स्वाभाविक एििं प्राकृवतक रूप में करते है |"उषा"

कविता में उषा के जल में (लाल रिंग) ूर्य का स्तम्भ वहल रहा है | र्ह एक प्रकार े प्रकाश और रिंग की जयना करता हुआ विर्ा -प्रवतविर्ा

क ाकार कर रहा है | र्था: -

न पलटना इधर सक, सजधर उषा के जल में, र्य का स्तिंभ सहल रहा है, न उधर नहाना सप्रर्!

" ागर -तट" कविता में अमूतय भाि िं क मूतय रूप देकर अमूतय वबम्ब जयना हुई है; र्था: - र्ह मिंदर की पछाङ, त ङती है हाङ तट का --

अवत कठ र पहाङ! मौन; मर् के आघात े प ली खङी दीिारें , वज तरह घहरें , एक के बाद एक ह ा!

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शमशेर काव्य रचना िं ार मे एक रिंगकमी भी है |रिंग िं के वमश्रण क िे भलीभािंवत जानते है | र्था: -

प्रात: नभ र्ा, बहुत न ला शिंि जै े, भबर का नभ

राि े ल पा हुआ चौका (अभ ग ला पङा है) ...........

न ल जल मे र्ा सक क गौर सझलसमल देह जै े सहल रह हब!

प्रात: कालीन नीवलमा क बताने के वलए नीले शिंख का वबम्ब चुना है |र्हाँ नीले शिंख े अवभप्रार् नावर्का के काले केश भी है |ग र शब्द भी

मानिीर् देह े जुङा हुआ है || प्रकृवत े ज ङकर कवि उ े मानिीर् स्पशय देते है |ज एक मृदु काम चेतना (इर वटक)जगाता है |शाम ागर

है, आकाश इिधनुषी ताल है:|पूरा आ मान का आ मान है /नीला ािंिलापन, गुलाबी /बादल िं का धुआँ, पीला धुला! कवि ने ऐ े रिंग िं का

िंर् जन वकर्ा है, ज स्पशय वकरे् जा के |

शमशेर एक वचत्रकार है |अत: उन्हें रिंग िंर् जन की परख है | उषा, शाम, मुद्र, वदि , ूर्य, वकरणें, आकाश, विवतज, नदी, धूप, लहरें ,

बादल आवद रिंग वबम्ब िं की जयना करते है | र्था: - वदन वकशवमशी, रेशमी ग रा, मु कराता आब, द म वतर् िं क छुपारे् अपने आँचल तले!

5. प्रत कात्मक सबम्

प्रतीक का अथय है -वचह्न र्ा िंकेत |अिंगे्रजी मे प्रतीक का मानाथी है -व म्बल |प्रतीक भाि िं क मूतय रूप प्रदान कर काव्य अवभव्यन्द्रक्त क

फल बनाते है | काव्य वबम्ब ऐन्द्रिर् ब ध कराते है , जबवक प्रतीक ूक्ष्म ब ध |वबम्ब का वनमायण कल्पना के द्वारा ह ता है ,जबवक प्रतीक

शब्द के गभय में छुपे रहते है। जब प्रतीक रूढ बन जाते है तब िे वबम्ब बन जाते है | वबम्ब मे ऐन्द्रिर्ता अवनिार्य धमय है जबवक प्रतीक मे ऐ ा

नही िं है | कवि शमशेर के काव्य मे फल प्रतीक र् जना है |"एक नीला दररर्ा बर रहा " रचना में नीला दररर्ा आ मान का प्रतीक है |

नीला रिंग आध्यान्द्रत्मकता का प्रतीक है | कवि का वप्रर् विशेषण नीला रिंग रहा है | नीला रिंग शुवचता (पवित्रता) का प्रतीक है | एक दररर्ा और

हिाएँ गँूज रही है ; में गँूज चेतना का प्रतीक है | हिाएँ प्राण िारु् का प्रतीक है | शमशेर की "एक पीली शाम " कविता में पीला वनराशािादी

जीिन का प्रतीक है | पतझङ का जरा अटका पिा में अटका पिा वजजीविषा का प्रतीक है | पिा शब्द मानि का प्रतीक है | " ी िंग और

नाखून " शमशेर के काव्य में मनुष्य की पाशविकता के प्रतीक है |अत: प्रतीक र् जना में शमशेर मकालीन िं में कही िं अवधक आगे है | एक

फूल उषा की न्द्रखलन्द्रखलाहट करता हुआ /रात का काला किं बल उतारता हुआ /मुझ े वलपट गर्ा ! र्हाँ फूल पे्रवमका का प्रतीक है, काला

किं बल केश िं का प्रतीक है, वलपट गर्ा शब्द आवलिंगन बि का प्रतीक है | कवि की प्रतीक र् जना नर्ी कविता के भाि पि ि वशल्प ौन्दर्य

के अनुरूप है |

शमशेर के काव्य में वबम्ब बार -बार प्रतीक रूप मे आकर पाठक की चेतना क झिंकृत कर देते है| प्रतीक रूप मे वबम्ब भाि के स्तर पर

िंिेदनशील बनकर ह्रदर् क अवत िंिेदना के स्तर पर स्थावपत कर एक तादात्मर् स्थावपत कर लेते है |

6. ुर-ररर्सलखिक सबम् र्ा अ म्द्ध सबम्

वहन्दी में ' ुरररर्वलज्म' के वलए 'अवतर्थाथयिाद' िंज्ञा प्रचवलत है| अत: अवतर्थाथयिाद े ऐ ा ब ध ह ता है ,मान िं उ में र्थाथयिाद का

अवतरेक हुआ ह ,अथायत् िह प्रकृतिाद के अवधक वनकट प्रतीत लगता है | " ुरररर्वलज्म " का वनकटिती अनुिाद "परा-िास्तििाद" ह

कता है |अथायत ज ामान्य िान्द्रस्तकता े परे ह |फ्रें च में " ुरररर्वलज्म" का अथय है :-"आन ररर्वलटी" | अथायत ामान्य िास्तविकता पर

अपनी "वनजी"िास्तविकता क वनवमयत करना | ड्ा.रिंजना अरगङे के अनु ार -" ुर-ररर्वलज्म" का तात्पर्य है-' ामान्य िास्तविकता पर वनजी

िास्तविकता ,ज िास्तविकता े परे ह |" अत: ुरररर्वलज्म का अथय हुआ -अवत घ र र्थाथयिाद |

ड्ा. रिंजना अरगङे के मतानु ार -" ुरररर्ल कलाकार अचेतन की र्ात्रा करते हुए, अचेतन की ख ज मे भीतर तक जाता है | बाहरी विश्व े

कुछ ूत्र पकङकर कवि अचेतन की ओर मुङता है, और भीतर गहरे डू्बते चला जाता है! िही िं भीतर की गहराईर् िं मे ारे वबम्ब, ारी

कविता उभरती है |" "16"

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कवि शमशेर की अवतर्थाथयिादी कविताएिं ुरररर्वलन्द्रिक वबम्ब की जयना करती है | ुरररर्वलन्द्रिक वबम्ब क अ म्बि वबम्ब की िंज्ञा

भी दी गई है | अ म्बि का तात्पर्य है -भाि के स्तर पर एकरूपता का न ह ना! कारण वक इ में कवि -कलाकार अचेतन मन की गहराईर् िं

मे डू्ब जाता है, कवि की चेतना उलझी हुई िंिेदनाएिं व्यक्त करती है, वजनमें घ र र्थाथयिाद का ज्वार भाटा प्रचण्डता े कवि के मान क

उदे्ववलत करता रहता है | फलस्वरूप िंिेदना के स्तर पर अवत िंिेदना अवतिमण कर लेती है और अ म्बि वबम्ब िं की जयना ह ती है |

"एक पीली शाम " कविता में ुरररर्वलन्द्रिक(अ म्बि) वबम्ब िं की जयना हुई है | माल चक िं ने अपने -अपने दृविक ण े "पीला” शब्द मे

प्रतीक के माध्यम े वबम्ब का वनमायण तक कर वलर्ा है | शमशेर की पत्नी र ग ग्रस्त थी अत: कई आल चक "पीला" विशेषण में " पीवलर्ा

"का प्रतीक ग्रहण कर वबम्ब जयना कर रहे है| कई विद्वान "पीला" शब्द क वनराशािादी जीिन का प्रतीक मानकर वबम्ब का वनमायण कर रहे

है | कविता इ प्रकार है: - एक प ल शाम, पतझर का जरा अटका हुआ पत्ता, शान्त! मेर भावनाओिं में तुम्हारा मुि कमल कृश

म्लान हारा ा, (सक मै हूँ वह मौन दपयण में तुम्हारें कह िं) वा ना ड ब , सशसर्ल ... पल में से्नह काजल में, सलए अद्भुत रूप

कबमलता, अब सगरा.... अब सगरा वह .... अटका हुआ .... आूँ ! ान्ध्य तारक - ा, अतल में!

िसु्तत:" एक पीली शाम " कविता मे अ म्बि वबम्ब र् जना तलाश की जा कती है | र्हाँ पीला विशेषण पे्रवमका का गौर िणय है; शाम शब्द

में शे्लष है, ज पे्रवमका के केश ि आकाश की नीवलमा के वलए प्ररु्िंक्त हुआ है |पे्रवमका का मुख कवि ने कमल रूपी बतार्ा है | पे्रमी स्वर्िं क

कृश, वनराशािादी घ वषत कर रहा है |मौन दपयण पे्रवमका के भाि है, ज मपयण हेतु मौन है | िा ना डू्बी े तात्पर्य स्पि ह जाता है वक रवत

िं गय चरम त्कषय पर पहँच गर्ा है | कवि कहता है: - वशवथल पल मे! रवत िं गय के बाद स्वाभाविक है वक पे्रवमका पे्रम रूपी काजल का

टीका लगाकर मस्त ह जाती है | रवत िं गय पश्चात रूप मे लािण्य (वनखार)भी आ ही जाता है |अटका हुआ आँ ू मे र्ौन वबम्ब की

पररकल्पना की जा कती है |

" ी िंग और नाखून "कविता मे ुरररर्वलन्द्रिक वबम्ब र् जना देखी जा कती है | कविता इ प्रकार है: - * ी िंग और नाखून, ल हे के बक्तर

कन्ध िं पर! ीनें में ुराख हड्डी का, आँख िं मे: घा -काई की नमी! एक मुदाय, हाथ पािंि पर वटका उलटी कलम थामें! तीन त ल िं मे कमर का

घाि ङ चुका है! जङ िं का भी कङा जाल, ह चुका पत्थर! *

" ी िंग और नाखून" अवतर्थाथयिादी कविता है | ी िंग, नाखून, ल हे के बख्तर के द्वारा कवि ने वद्ववतर् महारु्ि के बाद वनपजी जीिन की

विड्म्बना की ओर िंकेत वकर्ा है | ी िंग, नाखून आवद मनुष्य की िंिेदना शून्य तथा पशुता के प्रतीक है | ल हे के बख्तर कठ रता का प्रतीक

है | िंिेदना शून्य मनुष्य वहिं क पशु मान ह गर्ा है ; ज ितयमान प्रा िंवगक है | ीने में वदल (ह्रदर्) की जगह हड्डी का ह ना आदमी की

वि िंगवत ि विड्म्बना का प्रतीक है | िंिेदना शून्य ि जङता के कारण व्यन्द्रक्त की ृजनिमता भी लुप्त प्रार्: ह गई है | "मुदाय हाथ" ि "उल्टी

कलम" का तात्पर्य र्ह है वक बौन्द्रिक बल मुदाय ह गर्ा है;िह शा न िा के विरूि कलम की एक लकीर भी नही िं खी िंच पा रहा है ;

बौन्द्रिक िािंवत के विचार जीवित ही मृत प्रार्: ह गरे् है | िसु्तत: उलटी कलम थामे जै े िाक्ािंश (वबम्ब) अतावकय क ह ते हुए भी अपनी

अथयििा में अवतर्थाथयिाद(िास्ति) की व्यिंजना करते है |

शमशेर की कविता "शीला का खून पीती थी " में घ र र्थाथयिाद है | कवि ने िास्तविक विड्म्बना का वबम्ब बािंधा है | शीला रूवढिादी

मानव कता का प्रतीक है! "िह जङ" आत्मा का प्रतीक है | कवि ने मनुष्य की िास्तविक न्द्रस्थवत क एक वबम्ब के द्वारा व्यक्त वकर्ा है |अथायत्

रूवढिादी मानव कता मनुष्य के बौन्द्रिक ि आन्द्रत्मक विका क प्रभावित ही नही िं करती अवपतु विशालकार् रूप धारण कर आन्द्रत्मक

विका का धराशार्ी कर देती है | कविता मे कवि शमशेर कहते है: -- और र्ह पक्का चब तरा, ढाल में सचकना, ुतल र्ा, आत्मा के

कल्पतरू का!

"पक्का चबूतरा ' कठ र ि रूवढिावदता का प्रतीक है | ढाल में वचकना े तात्पर्य है वक कृवत्रम रूवढिावदता वचकने फशय की तरह है, जहाँ

व्यन्द्रक्त वगरेगा ही; चाहे रूवढिादी चबूतरा पक्का ही क् िं न ह |कवि र्ह प्रश्न करता है वक क्ा र्ह जङीभूत चबूतरा, आत्मा के कल्पतरू के

वलए ाथयक पृथ्वी(धरातल) है | वज पर आत्मा का विका ह के | आत्मा की र्ह आिंतररकता आध्यान्द्रत्मक िा की ओर िंकेत करती है |

आगे कवि अवतर्थाथयिाद के कटघरे क लािंघकर अवतिमण करना चाहते है |

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शमशेर कृत "राग”; " वदन वकशवमशी रेशमी ग रा "चुका भी नही िं हँ मै आवद रचनाओिं मे ुर-ररर्ल वबम्ब क आत्म ात वकर्ा जा कता है |

िास्ति में कवि शमशेर बहादुर व िंह का काव्य वबम्ब िं का जाल ा है | कवि शमशेर के जीिन मे उलझी हुई िंिेदनाएिं रही है; ज प्रतीक

बनकर वबम्ब के रूप मे दृविग चर ह ती है | ड्ा. रिंजना अरगङे के अनु ार --"शमशेर मे िास्तविक जीिन की विड्म्बना वबम्ब िं के रूप मे है;

जहाँ िे सृ्मवत पटल पर ुखद अतीत का स्मरण कर वबम्ब िं की जयना करते है |

िंदभय

(1.) रामस्वरूप चतुिेदी: - वहन्दी ावहत्य और िंिेदना का विका ; पृ. २०५, भारतीर् ज्ञान पीठ प्रकाशन िाराण ी १९६४

(2) ड्ा. रिंजना अरगङे: - कविर् िं का कवि शमशेर; पृ.४८, िाणी प्रकाशन नर्ी वदल्ली, वद्वतीर् िंस्करण १९९८

(3) शमशेर ( िं.) पृ. ९६, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, िंस्करण, १९८४

(4) शमशेर: कुछ कविताएिं ; पृ. १३३, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, िंस्करण, २००४

(5) ड्ा. रिंजना अरगङे: - कविर् िं का कवि शमशेर; पृ. ५४, िाणी प्रकाशन नर्ी वदल्ली, िंस्करण, २००४

(6) अम्न का राग: कुछ कविताएिं ; पृ. १८, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, िंस्करण, २००४

(7) ड्ा. िीरेि व िंह: -वबम्ब िं े झाँकता कवि: शमशेर; पृ. १०, पिंचशील प्रकाशन जर्पुर, िंस्करण, १९८३

(8) शमशेर: - कुछ कविताएिं ; पृ. ५७, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, िंस्करण, २००४

(9) शमशेर: - टूटी हुई वबखरी हुई पृ ०५ राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, प्रथम िंस्करण, १९९०

(10) शमशेर: - कुछ कविताएिं ; पृ. २६, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, वद्वतीर् आिृवत, २००४

(11) टूटी हुई, वबखरी हुई; पृ. १५५, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, िंस्करण, १९९०

(12) कुछऔर कविताएिं ; पृ.१३३, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, िंस्करण, १९८४

(13) शमशेर: -कुछ कविताएिं ; पृ. ३६, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, वद्वतीर् आिृवत, २००४

(14) शमशेर: कुछ कविताएिं (भूवमका); पृ.०९, राधा कृष्ण प्रकाशन नर्ी वदल्ली, िंस्करण, १९८४

(15) ड्ा. िीरेि व िंह: -वबम्ब िं े झाँकता कवि शमशेर; पृ. ५२, पिंचशील प्रकाशन जर्पुर, िंस्करण, १९८३

(16) ड्ा. रिंजना अरगङे: - कविर् िं का कवि शमशेर; पृ. १४८, िाणी प्रकाशन नर्ी वदल्ली, वद्वतीर् िंस्करण, १९९८

* Corresponding Author

डा. सत्यने्द्र कुमार

गाांव-पोस्ट मोरवा (पपलानी)

तहसील -सूरजगढ, पजला-झुन्द्झुन ू(राज.)

[email protected], Mob. +918003657445