vedant sar of sadanda yogindra and nrisimha saraswati tika

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Page 1: Vedant Sar Of Sadanda Yogindra And Nrisimha Saraswati Tika

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1-1 (4 ध स

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) | ॥ -- ध

र & ॥ शरा ॥

द दनतिः । शरीमतपरपरसपारालकाचारथ- आीकषदानिनदयोगीनदरविरचितः।

परमसार जकाचाय-शरीतसिदहसर सवततीदिरचितया ससकतटीकया,

पणडितवरय-शरीतरिवदोपाहशरीभोटान(थातमज-- पणडित-रामसवरप-षिरचिवथा

भाषाटीकया च समतः। <न

सोऽय

कमराज-ीकषणदसशरषठिना इमबसया

खतवाडी ७ वी गी लमवाठा कन, सवक यि "शरीवङकटशवर (सटीम‌) सदरणय-

नराटय अदरयितवा परकारितः ।

सवत‌ १९६८, रक १८६३, असय सरवऽधिक।राः ““शरीवङ.२› यनतरा

लयाधयकषाधीनाः सनति 1

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शरीः;

परहतान‌ । ~ -=~>* <~

समसत आतमततवजिकञाघ महाशरयोको विदित कम अताह शि, इत ससा- रका भरतत कया ह १ यह जाननक वयि अधयातशाघलत अधिक वटकर को$ शाघ नही ह. शस अधयासमशाघठकर आचायकि मदस अनक भद इए द. परत

उन भदभिन भदादिरयोग अनक मतोत मढ अदवत वदानसिदधात सवतरह सति- रषठ ह. जो करि जनादिकारत अवयाहत चछा अता. मौर वदमठक सिदानता जसारी महातमाओन इतकीदी पररोसा करीड दवीजाती ह. जिसका भ "नह

-नानासति फिचन)) (“कपवादवितीय बरह"? इतयादिशचतिया ह

इस अदत वदातसिदधात परतिपादक अनक २ गरथ आजतक छपकर जह २ रधिदध हए द. इन अनक परथम सव सिदधौत बड विसतारक साथ निखपण करिय -

गए द. निकत जञान हनतरवासत बहत पाररम करना पडता ह. इवासत परमह - सपलिाजकाचाध खदाननदयोगीदर जीन “वदत कषार › नामक परथ बना- या ह. इ परधक उपर प° शरीनशखिहखरसवतीजानि वहतदी सर ससपन- तीका बनाई ह अव इत गरथकर सव साधारण ओरविना सशकरत पटदए‌ खो-

गोको जञात होनकत वासति हपन शरीकतर करीनिवरासि पडित शाभरवशहयजीस

सरठ धसखयधरकाशच नामक भाषाटीका बनवायकर अपन सपरसिदर “शर व इशव? -सटीम‌-वरसम सदितकर परसिदध करिया द.

अव हम आशा रत द कि+-तरदातशाकशर जिजञा सहादायगण इत भधयत

उपयोगी पसतकका अवदय सगरह करभ.

खमराज शरीकषणदास. क अधयशच "शरीवङरशवर' सीम‌-परप वधर. )

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रा र

अथ वदानतखारः सरछतरीका भाषाटीकासमत ।

अदवणड सिद‌ननदमशङ‌पनसगोचरम‌ ॥ आतमानमखिलधारमाशरयऽभीषएटसिदधय ॥ १ ॥

रामानद‌ गर नखा परमाननदमदयम‌ । वकषवदानतषारसय टीका नारा सबोधिनीम‌ ॥ १ ॥ खटकथिनपहपरषोनितयाधययनविषयधीतसकखवदरा-

शीनाचिनमाताधयतनतदरपादरयाननदविषयानायनिरवचनीयभा- वसवहपाजञानविरसितानतमवरषितकामयनिषिदडवजितनितयत मिततिकभायधिततोपासनाकमभभिः समपकणपनलशवराणामिषटिका- चणादिकषरषितादशतलवदतिनिमबछाशयाना नङिनीदरगतज-

। छबिनदवदधिरणयगभौदिसतपतजीवजात सवातषनपतयोर- सयानतगत कषणभगर तापजथािदददयपानमहि शमातमनयन‌- पशयतामतिविषकिनाम‌ अत एमहिकसकचनदनादिविषयभोगषय आमषमिकहिरणयगम।यमतभोगशयशच वाताशन इवातिनिरषिणण- मानकषाना शमादिकषाधनकषपननानामापाततोधिगतासिखदारथ- सादहायहकारपयनत नडपदाथतदविरकषणसवपकाशसवरपषतय- गातमनि बजञानदस सशयापननाना " ४

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(४) वदानतसार । |

मराजञाननिवततिषरमानदावापिसिदपभकरणमारभमाणतसत- |

मापिपरचयगमनादिफरकसय शिषाचारारमापषटददतानमसका- |

रलकषणमगङासरणसयाषशयकतवयता परदशयषकचणयारबधच तषटय निरपयन‌ परणातमान नमसकरतऽखडभितयादिना॥अ- खडभिति ॥ अभीषटसय निःशयसः सिदधय पराघयथमातपाशरय एकतवन परतिपय इतयरथःननवविषयसयासनः कथ परतिपततिरि- ` | तयाशकयाह‌ । अखिकाधारमिति । अखिरसय चराचसारकभ- पचसयविवरताधिषठानसवन कारणतवाकरति बहव परतिष; तन त शमितयरथः । ननवव च सति परतिपततिविषथतयन इ- शयतवापततिरितयाशकयाह । अवाङमनसगोचरमिति। “तो बा- । चो निवरतत" दतयादिशरतिभिरविषयतवपरतिषादनासतिपततिषि- । षयतव कारणतवोपरकषित वरहमविषयतवनोपचारकमिति भा- व‌: । नन एवमपि बहमणः कारणतव मविडवदनितयताशका- मपहरचराह। सदिति । नाशाभावोपरकषितसवरपम‌'सदवसषौमय-

दम आसीत‌" इतयादिशरतः । नन तथापि जडलापततिभाश- कथाह । चिदिति । सवपरकाशचतनयशवहपभिति यावतर ।

॥| नन तथापयपरषाथलवाककिमितयाशरयणीयमिवयत आह‌ । आ-- ; ~ नदमिति । परमानदहपमिवयथः । नन "चितऽपि शन न

| शानत वयाधिः" इति नयायन पपथसयाधिषटानवयतिरकतया || मतीयमानतवातकथमरततिदिरितयाशका तणीटरवनाह ।

अखडमिति । सजातीयविलातीयसवमतमदशलयमितयरथः । अतर सिदानदमिति परयोजनम‌ । अखडमिति विषयः ।

न ~ ~ ~

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ससकतटीका-माषादीकासमत । (५)

शादविषययोः परतिपायपरतिपादकमावः सवध । ततकामोऽ- धिकरारीतयनवधचतषटयमरथा दकत भवति ॥ १ ॥

( भगटी° ) जो वाणी ओर मनस पर ओर ससारका ` आधारसवहप परणवजन सचचिदाननद ह उसको अपन इचछित छामयकी सिदधिक अरथ आशरय करता ॥ १ ॥

अरथतोऽपयदरवाननदतीतदरतमानतः ॥ गहनाराधथ‌ ददानतसषार वकषय यथामति ॥ २॥ ( सणटी° ) किचःसय दव पराभकतिथथा दव तथा ग-

र ॥ तसपतकथिता दथौःपरकाशत महाससनः॥ इतयादिशरतया गरनमसकारसयापि शाशचागतवपतिपादनाततननमसकारोपि अ- वशय पथकतवन काय इति तननतिपवकमभिधययनथ भतिजा- नीत । अथतोपीति । अपशबदन न कवल शबदतः डि तथकापितथादिवससञामातन वयवसथितमाप त अरथतः शबद‌ तशचति अदरयानदाच‌ गषनाराधय वदातसार यथामति वकष इतयनवयः । अदरयशवासावानदशवादरयानदसतानदरयानदान‌ । अतर हतमाह । अतीतदरतभानत इति । अतीत त दरतभान यतः त‌- समादतीतरतमानतः निरसतसमसतमवजञानवादितयरथः । ता- नगनाराधय कायवाडमनोभिनमसकारगोचरीकतय वदातसार वदातानारपनिषदराकयजाताना मधय यतसार सिदधातरहसय ` यसमिन‌ जञात पनङगोतवय नावशिषयत त वदानतसार यथामति

| १ अदर“ बहवचनमिति शिषटोपदशादरसवादसातत।निति बहवच जनिदशोऽलावगनतवयः।

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(६ ) वदानतसार ।

बदधिमनतिकरमय वकषय भरतिषादयिषय इतयथः ॥ २ ॥

( भ‌[नटी० ) जिनको कदापि रतभान नही होय स अदरतसवरप अदरयाननदनामवार गरदवो नमसकार कर

क वदानतशाचका सारभत ““ वदानतसार! नामक भरनथ-

कौ बनाताह ॥ २॥ वदानतो नाम उपनिषसरपणम‌ ॥ तदप- कारीणि शारीरकसतादीनि च ॥ ३॥

( स टी ° ) इदानी सषसयापि वसतषिचारसयोदशपवक- तासतिजञात वदति नामतो निरदिशति । वदानत इति। उपनिः षद‌ एव परमाणमपनिषसरमाण उपनिषदो यत परमाणमिति वा । तदपकारीणि वदातिवाकयसमाहकाणि शारीकसतादीनि “अ-

थातो बहमजिजञासा''शयादीनि सतराणि। आदिशबदन भगवदरी- तायधयातपशाकचाणि गदयत । तषामपयपनिषचछबदवाचयवादि-

ति भावः ॥३॥ ( भाषटी ) सवतःसिदधपमाणसवहप उपनिषदोका ना-

म वदानत ह .तथा परमाणसवहप उपनिषदोक अनकर जौ मीमासाषप शारीरक सतरको आदिट अधयातमशाघ ह व भी वदानत नामस कह जात ह ॥ ३ ॥

असय वदानतभरकरणतवाततदीयरवावव- नधसतदरततासिदधनत परथगालोचनीयाः ॥ ४ ॥

( स °टी° ) नन यरयपयवातरानबधचतषयमपाय नि-

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ससकतदीका-भाषारीकासमत । (७)

दि तथापि परमानवधचतषटयसयानिषटपिततयादन पकषयावरता रतनिन सयादितयत आह । असयति । असय वदानतसारसय- वयरथः॥ ४ ॥ ( भा गट ° )यह परनथ वदानतशाचक अनतरत ह इसकारण वदानतशाशचक अनय अनथोक पटन जो फ होताह वही फक इस वदानतकषारफ पहनषभी होतार इसी कारण वदानतक अनध मनथोम जो चार अनबनध ( अधिकारी, विषय, समबनध, परयाजनः ) कह उनी चार अनबनथो दवारा दस यनथकी अनबनधकासयततिदधि होजातीह इसकारण दस अनथम विचा- रका कोदर परगोजन नरीह ॥ ४॥

तताढबनधो नाम अधिकारिवि- षयसमबनधपरयोननानि ॥ ९ ॥

सणटा°) नन वदानतशाचसमापि किमनषधचतषटय यना- सथापि तदततासिदिरिषयाशसकय मरशाखसयानवधचतशयमा- विषकरोति ॥ तति ॥ ५ ॥

( भागटी° ) अधिकारी) विषय, समबनधभरयोजन, इसीको वदानतम अनबनधचतषटय कहत ह । इनही चार अनबनधौको लकर वदानतशाच परवतत होता ॥ ५ ॥

अधिकारी ठि. विधिवदधीतवदवददतव- नापाततोऽधिगतासिखवदारथोऽसमिचः नभनि जनमानतर व काभयनिषिदधवज

न क

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2) ~ वदानतसार ।

नपरःसर निसयनमिततिकपरायथितोषा- सनाऽचषठनन निमतनिखिरकलमष- तया नितानतनिमरसवानतः पाधनच- तषटथसमपननः परपाताधिकारी ॥ & ॥

( स°टी° ) अनबनधचतषटयमवाह । यथोदशमधिकारिण कषयति । अधिकारी विति । '“सवाधयायोऽधयतवय‌ः?1 इति वरचनालरवणिकानायपनीतानामधययन नियमन विधीयत। अधय‌- -यनविधिपरयकतमवाधययन नाधयापनविविपरयकतम‌।तथा चाधीतो वदो बदागानि च शिकषाकतलपभयाकरणचछदोजयोतिषनिरकछा- : 'शयानि यतसतनापाततोधिगताखिखवदारथः । अचर सरवषदारथर-

ध जञात सति उततरयनथवयथयपारहाराथापातत इतयकतम‌ । ‌-

-नवनधीतवदानामपि विदरादीना तचकनानोसततिदशनदिवाधय- -यनतसयकतकमानषटानपयथयमाशकयोततगमाह‌ । जनसातर इति। तषामाधनिकाधययनायभावषि जनमातरीयाधययनादिनिमित- पारपाकवतामसमिञचनमनि विनापयधययनादिना जञानोसनौ ग- 'धकाभावाननाधययनादिवयधयमिति भावः । कामयति । कामय- सयामि कमणो भममसाधनलपि यातायातसपादकतवन वनध‌- कताच निषिदधवततदरलनपरःसरमिवकतम‌ । तथा च नितयादि कममानषटानन निगतनिखिरकलमषतयानिःशषनिरसतसकरक- लमषसन । अतर निखिरपद कामयनिषिदजनितसकतदषकतपर- म । तन निततातनितमटसवानतः नितातमवयत निमट सव-

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1 1 ॥

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ससकतरीका-भाषारीकासमत । (९)

चछ सदानतमनतःकरण यसय स‌ तथोकतः वकषयमाणसाधनचत- हयसपचःपसाता अतःकरण परतिबिबित चतनयमितयरथः ॥६॥

( भाशटी° )(खवाधयायोऽधयतवयः-सषदा सवाधयायाच- रण छरना चाहिय ) दस परशठार वदोकत विधिवाकयोक अ नसार जिरषको वद ( ऋष‌ःयजसाम,अथव, ) वदाङग ८ शि-

कषा, कलप) वयाकरण) निरकत, छनद, जयोतिष, ) अधययन करक सामानयतः सकर वदाथ परापत होगया ह । तथा जिस‌- का इस जनभ तथा जनमानतर कामय ओर‌ निषिदध कमम परितयाग करक नितय नभिततिक परायि ओर उपासनना इ तयादि कामयक अनषठान करन समपण पपोका नाश होन- स अनतःकरण‌ अतयनत निरम होगयार । तथा जो परष साधनचतषटयससपनन परष‌ इशवरततवफ विचार फरनम‌ अथात‌ वदानतशाघम अधिकरी होताह ॥ ६ ॥ कएयानि सवगादीषटसाधनानि जयोतिषटोमादीनि॥ निषिदधानिनरकावनिषरसाघनानिवरहमहननादीनि॥ नितयानि अकरण परतयकरायसाघनानि सनधयाबनद‌- नदीनि।नमिततिकानिषजजनमाययषनधीनिजाति- यादीनि ४ भायधिततानि पापकषयमरसाधना- नि चानदरायणादीनि। उपासनानि सथणवरहमविषय कमानरबयापारदकाणि शाणडिसयवियादीनि ॥ एतषा नितयादीना बदधिशदधिः पर परयोजनम‌ । उपापतनानानत चिततक।गयम‌ ॥ ““तमतमातथान

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१ च

(१०) वदानतसार ।

वदाचवचनन तराहमणाविविदिषनति यजञन''इतयदि- थतः “तपा कलमष हनति " इतयादिसपरत ¦ नितयनमिततिकयोरपासनानाञच अवानतरफल पितरछोकसतयलोकपरापनिः ” कभपणा पिततरोको विचया दवलोकः “ इतयादिशरतः ॥ ७ ॥ ( स °टी °) एतदव सपषट वयाकरोति ॥ कामयानि सव-

गादीनि ॥ ७ ॥ ( भागटी° ) सवगादिसमातिका कारणरप--अशनिषटो-

मादि यजञका नाम कामयकरम ह । नरकादि दःखभोगकना साधन-जाहमणवधादि निषिदधकमम कहता । जिनक न क- रनस अनक पाप उतननहोजारय, एस सनधयावनदनआदि निल कमम कहातह । पतरोतति आदि कममकि उदशस किय- जार एस जातषटि आदि कामाफो नमिततिक कमप कहत- ह । जिनक करन पापका नाश हो रत चानदरायण आदि वत भरायधितत कात ह । सगण वबरहमविषयक चिततकी एका- गरताहप शानतिआदि विया ( शाणडिलयविया ) को उपा- सना कहत । उपरोकत नितय, नमिततिक, भायधितत इनका कवर चिततशदधिक निमितत परयोजन ह । उपासनाका मखय परयोजन कवर चततकी एकायरताक निभितत ह । अनतःकर णकी निमभरता होनपर परिर कहहए नितयआदिकायो- का कोई भरयोजन नही रहता ह। इस विषयम भरति परमाण ह-'“वद पटना यजञ करना तप करना ओर अनशन (चानदरा

+ गत

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ससछतरीका-भाषारीकासषमत । (१३)

यण ) आदि वरतकरनस बाहमणगण परम‌{साक जाननकी दचछा करत ह" । इस विषय समतिभी परपाण ह-पतप करनत अनक पापोका नाश होता ह" । ओर नितय, नमि- तिकर, उपासनाका क परासङधिक फर होताह । कयोकि शरतिन कहा ह-““कमभदराया पितटोकपापि होतीर ओर तपसया, ओर उपासनादरारा दवलोककी पराति होतीह'' ॥७॥

साधनानि निधयानितयवसतविषवकदाभरचरफल मोगधिरागशमद मादिसमपततिषशचतवानि ॥ < ॥ ( भागटी> ) परवोकत साधनचतषयको दिखलातह ।

निसय ओर अनितय वसतका विचार । इस टोकम आर पर- लोकम फर भोगनकी इचछा न फरना । शम दम‌ आदि सा- धनसमपति । यभशचत ( मोकष होनकी इचछा होना) । यही साधनचतषटय कात ह ॥ < ॥

नितयानिवयसपषिवकसवावदरञव नितय वसत ;तोऽनयदखिलपरनिसयमिति विवचनम‌ ॥ ९ ॥ (भ‌ागदी० ) दम‌ ससार कवर बहमही नितय ह उसम

भिनन मसत वसत अनितय ह । इसपरकार विचारको नि- तयानितयवसतविवक कहत ॥ ९ ॥

दहिकाना खकचनदनादिविषयभौगाना कममजनयत- या अनितयलवदापषपिकञानामपयमतादिविषशमो गानामनितयतयः तभयो नितरा विरतिरिह।रफ- कभोगविसरः ॥ ३० ।

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(१२) ददानतकषार ।

( मानटी° ) जितत पकार कसमोनसार पात शहोनवाखा इस ससारका माका चनदनादि भोग अनितय ह हसी परकार- क अनसार पराप होनवाखा पररोकका ( सखगौदिका ) अम- तादि भोगभी अनित ह दस भरकार अतयनत दोनो छोकौक भोगकी छचछाकी निवतिही कलयाण करनवाटी ह इस भ कारकी बदधिको इहामरफलमोगविराग कहत ॥ १० ॥

शपदमादयसत शमदमोपरतिति- तिकषासमधिनिशरदधाः ॥ ११ ॥

(मागटी०) अष शषदमादिका निरपण करत । शम, दम, उपरति, तितिकषा, समाधान ओर अदधा इनको शमदमादि नामस वयवहार करत ॥ ११ ॥

शमसतावत‌ अषणाहिमयतिरिकत विषयभयो मनोनिरहः ॥ १२ ॥

( स °दी° ) ततर शम छकषयति। शभरसतावदिति । तथा तीवाया बभशचाया भोजनादनयो वयापारो मनसो न रोचतभो- जन विब न सहत तथा सकचनदनादिविषयषववयतमरचिः । तयजञानसाधनष भवणमननादिषववयतमभिरचिज।यत तदा पववासनाबरचछवणादिकाधनतय उडवीयमान सकचनदनादि- विषष गमयमान मनः यनातःकरणवतिविगषण नियवत स‌ शम‌ इतयथः ॥ १२ ॥

(भ‌। नटीर ) दवरविषयक शरवण, मनन, निदिधयासन

^ = न भव

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सरकतरीका-भाषादीकासमत । ( १३ )

त भिनन जो अनय विषो अनतारनदिथ (मन ) का हटा- वह शम कषहाता ह ॥ १२ ॥

दम) बहयनदरयाणा तदरयतिरिकत विषयभयो निवततनन‌ ॥ १६॥

{ स गटी° ) इदानी दमसय रकषणमाह॥ दप इतिजञान पाधनभरवणादिसाधनणयो विरकषणष शबदादिषिषपष परत मानानि शरोतरादीनि बनदियाणि यन वतिविशवण निवरतत सत दम‌ इतयथः ॥ १३ ॥

(भागयी °) भोवदि बाहयनदिय का शयरविषय ङ रष णादि मिनन विषयोस हटाखना दम‌ कहाता ह ॥ १३ ॥

निवतिततानापतषा तदवयतिरिकतविषय भय उपरमणघपरतिः। अथवा विहित ना कममणा विधिना परितयागः ॥ १४९ ॥

( स°टी° ) ददानीगपसतहकषणमाह । निरवतितानामि ति । निगहीतानामव तषा बादयनदरियाणा शरवगादिकाधनध‌- विरकतव यथा तानीदियाणि सषथा नागचछति तथा तषा निथ- हौ यन पततिविशषण करियत सोपरतिरिवयथः । उपरतकषणा- तरमाह । अथवति । विहिताना निषयादिकमपणा विधिना चतथाशरमसवीकरणकरमणा परतयागः नाह कततयवसथानएष- रतिशितयरथः ॥ १४ ॥

( भागदी° ) तदरयतिरकत विभयो हरा बाखइनदि-

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(१४) वदानतसार ।

यका दमन करना अथवा विधिवाकषयोस विदित कसमका

विभिपवक परितयाग उपरति कडाता ह ॥ ५४ ॥

तितिकषा शीतोषणादिसरिषणता ॥ १५ ८ सनी ० तितिकषया रकषणमाहातितिकषति । शरी

धरमसय शीतोषणादः तजनयघखदःखादशव शरीरसय वयकतम

शकयलात‌ सवपरकाशचिदरष सवासनि च शीतोषणादरतयताभाः

वादिति विपकदीषन मिषपामानसप‌ शीतोषणाददरदसय यतत

हन सा तितिकषवयथः ॥ १५}

८ भाणटी =) शीत उषणता, शख, दःख इतयादिक सहट

नको तितिकचा कहत ॥ १५ ॥ नभररीतसय मनसः वणाद तदबषण- िषय च समाधिः समाधानम‌ ॥ ३६॥

( सजटी° दानी समाधानरकषणमाह. । निगशहीतसय नष इति । शबदादिविषभयो निगहीतसयानतःकरणशय भव-

णादौ तदतगणष तदपकारकड अमानिलादिाधनविषयष समा- धिरनरतयण तथितन सामाधानमितयथः ॥ १६ ॥

( म‌।जटी° ) वरविपयक शरवणादि अथ तससशश ओर दिषयोदरास निगरह मनकी एकायरता अवसथाका नाम‌

ससाधान ह \॥ ३६ ॥

यरवदानतवाकयष विशवासः अदध!॥१७॥ घ नटी° ) दादयः खशाः ॥ १७ ॥ ,

( भाजटी० ) गरदव वचनो तथा उपनिषदादि

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वक ~ ~ --- न ----- ~ - -- ~=.

ससकतरीका-भाषाीकासमत । ८१५ )

दानतशाचक वाकयो विशवास करना भरदा कहातीर ॥१७॥ सषषचख मोकषचछा ॥ १८ ॥

(भाणटी°) मोकषम जो इचछा होती ह उसको यपशचत कहत ॥ १८ ॥

एवमभतः परपाताऽपिकरी । "(शानतो दानतः ” इतयादितः ॥ वथा चोकतम‌--“परशानतवितताय जितनदरियाय परकषीणदोषाय यथोकतकारिण ॥ बणानवितायावगताय सवदा परदयमततसकल सषकषप हति ॥ १९॥ ( स गटी° ) तथाच परवोकतकषकखविशषणविदिशभरमाता-

धिकारीतयथः। असमि शरति भयाणयति शत इति ॥१९५॥ ( भ‌(गटी° ) जो परवोकत साधनचतषटपयकत होताह उ-

सीषटो वदानतशाम अधिकारी कहत ह । इष विषय धर ति ओर समतिका भरमाण दिखात ह~ “जिततका चितत शानत हौ ओर जितनदरिय हो) ओर भष विपरिपादि दोषरहित, आकञाकारी, गणवाच‌) सवदा अनगत ओर मोकषी इचछा करनवाखा हो रष शिषयको सव विवध उपदश करना चाहिय" ॥ १९ ॥ 3

विषयो जीवरनशय शदढचतनयपरतरथम‌। ततव वदानताना कपययौत‌ ॥ २० ॥

( स ०2} ° ) यथो विषय निरपयति । विषथहति। अवियाधयारोपितपतवततयकरितिलादिविरदधमपषशयाग-

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( १६) वदानतसार )

नावशिषट शदधयतनय जञयसवटपमव सरवषा वदातथाकयाना

विषय इतयथः ॥ २० ॥ ( भाटी ° ) जीवचतनय ओर बहचतनयका रकयसव ~

रप शदवतनयका परमयभाग विषय ह कयोकि वदानतशाशच-

का दसी विषयम तावयह ॥ २० ॥

समबनधसत तदकयगरमयसय तलमतिपा- दकोपनिषतरमाणसय च बोधयबोधक- मविलकषणः ॥ २३ ॥

( सनदी ० ) कमरा सध रशचयति । सवधसतविति। बोधयोधकभाव इति । बोधयसय बरहलासकयसवरपसय बोधकः सथ वदातशाबचसय च वोधयबोधकभाव एव सबध इतयथः २१

( भागटी० ) जीव ओर बहक रकयरप भरमयषदित त- तयतिवादक उपनिषदादि पमाणका वोधयबोधक नाप समबनध

मरयोजननत तदकयपरमयगताजञाननिष- ततिः 1 ततसवपाननदावादिशच ॥ २३ ॥

(स ०टी< ) अवशिषर परयोजनमाह । परयोजयदविति । बहलातमक वरकषणचिनमातरगवाजञानततकायसकलपरप चनिषततिः पनरखसयभावखपसवसवरपाखडानदपरापिः फररितरथः नन रोक अपापसय करियासाधयसय सवगौदः परषाथतवन फरतव दषटम‌, अतर त नितयपापसयाससवहयसय करियाकषा- धयतवाभाषन परषाथलाभावाकथफरतभिति चनन । अपरापत- सयव परषाथतनियमामावात‌ । यथा रोक कसयिदविसत-

~

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ससकतरीका-भाषादीकासमत । ( ९७ )

कटमणः तखयकतशोकाधिसदयमानसयापोपदशोततरकाछ सवकठगतचामीकरपरापतरपि परषारथतवारतव इषटमवमजापि नितयपापसयातनः अजञानयोहानधकारावतवन विसमरतशव- सवरपसय परषसय शरशरतिवाकयशरवणानतरमनञानमोहधका- रनिकतौ सतया सवयभकाशमानचिदषसय सिदसयवासनः फ- ठतवमपचरत इति भावः ॥ २२ ॥

(भागटी° ) जीव बहमक एकता परमय विषयक अ- जञानक निवतति ओर उसका फरषप आननदकी भापतिका नाम वदानतशाचम परयोजन ह ॥ २२ ॥

तरति शोकमातमवित‌" इतयादिशतः। भरह वद बरहयव भवति" इतयादिथतशच ॥२३॥

< सटी ° ) उकतरथ धति भमाणयति ॥ तरति शोकमा- तसविदरन वदतयादीति ॥ २३ ॥ ( भारटौ° ) उपरोकत विषयम शरति भरमाण ह “आ

सजञानी शोकम विपकत होजाता'' । “जो बरत होता ह वह बहमका सखवहप होजाताह'' ॥ २३ ॥ अयमधिकारी जननमरणादिषसारानलसनतततो दीपरशिय जलराशिभिवोपह।रपणिः ओोभिय बरहमनिषठ गरयपसतय तमनसरति "तदविजञानारथ स गरमवाभिगचछतमितपाणिःओतिय बरहनिषठम‌ " इतयादिशतः । स यरः परमङपया अधया- रोपापवादनयायननपदिशति । " तसमविदरच-

म‌ १६1

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[निमिना त

(१८ ) वदानतसषार‌ ।

पसतराय पमयहपरशानतचिततायशमानविताय।यना- कषर पशष वद सतय परोवाच ता ततवतो बरहमविदयाम‌” इतयादिशरतः ॥ २९ ॥ ( स°टी°) अधनाशाघचारभनिमिताधिकारयादिनिषहपणा-

ननतर शाम परसतोति। अथवारकषितसयाधिकारणःकरववय दशयति। अयमधिकारीडइति । उकतरकषणरशषितोबदधिसनि- हितोधिकारी गरमपसरतीयथः। नन ससारासकतविततसय वि- पयटोटपसयातिरहितसय यषपसरपणमयकतमियाशकयाह । स- सारानठसषतपत इति । सताप हतमाह । जननति । आदिशबदन वयाधयादयो गनत। सतपतसथव गपसरषणमितयतर दषट तमाह 1 भदीपरशिरा इति । अधदगधमसतको द‌ाहनिदततिकामो यथा शीतर जछराशिमनसरति तथा ससारतापतरयददयमानसतचचिष- तिकामः सवसवषपजिकञाघः सपठारनिवकतक शोतिय कनिषठ करतछामलकवतछपरकाशातमसवहपसमषक गरसमीप गला- नसरति मनोबाषटायकरममिः सवत इयरथः । असमि शतिम‌- दाहरति । समितसाणिरिति । अथ गशछतयमाह । स गरःपरम- कपयति । स पवोकतो गररन शिषयमपदिशतीतयनवयः। नन प- रपरहसयम‌पि बहमवरप कसमादपदिशतीतयत आह । कपयति । पावयतिरकणसाधनातराभावादिवयथः । ननवसडसय वबहसव- रपसयागोचरतवनोपदषटमशकयतव। कथमपदिशतीतयत आह । अधयारोपति । अखडबरहमसवपसपागोचरसन विधिमखतनो- पदटमशकयतवषि“नहनानासतिकिचन)! इतयादिशतिमतसतया-

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ससछतीका--भाषाटीकासमत । (१९)

विाधयारोपितमिशयानानापदारथनितधमखनोपलकषितम खडच- तनयमव पनः ““ सतय जञानमनत बहन "' इतयादिशरतिमनसतय ठकषणयाविधिमखनापयपदिशतीति भावः । ततर शरतिमाह । तसमा इति ॥ २४ ॥

( भागटी° ) यह वदानतशाशचका अधिकारी जनपमर- णप सतार।धिस सनतपत होकर समिधादि उपहार हाथम ठ- कर जित परकार किती. परषका शिर जलनरग ह ओर वह जठाशयको जाय ह इसीपरकार वदानपक पारदरशी बहमपतता गरकर समीप जाकर गषकी सवा कर कयोकि भरतिन एसा कहा ह-'वहमनिषठसहरक समीप जाय” परम‌ कपाल गर मी अधयारोप ओर अपवाद नयायदरारा अथौत‌ अखणड ब‌- दवकषका विधिवाकयादवारा उपदश नही होसक द दस‌ कारण ( नह नानासति किचन ) इतयादि शतियाका अनस‌- रण करऊ अविया करक भारित मिथया नानापदाथोक नि- पधदरारा ओर ( सय जञानमननत बहम ) इतयादि धतियोका ` अनसरण करक ठकषणाकरफ विभधिवाकयोदारा शिषको उपदश कर कयोकि भरतिम भी कहा ह-““जित वियाकर दवारा सचिदाननदमात पएणवहमका पारजञान होय बहमवतता गर उसषही बहमवियादरारा शिषयको उपदश कर" ॥ २४ ॥ असपभत रनौ सपारोपवदरसतनयवसतवारोपः वसत सचचिदाननदमदरय बरहम । अजञानादिसकलजडस- महः अवसत । अजञान त सदसदधयामनिवचनीष

क ~ 4१9

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(२०) , वदानतसार ।

िणातमक जञानविरोधिमावहप यकिञचिदिति वदति । अहमजञ इतयायभवात‌ । “ दवा तमशकति सवगणरनिगरढाय''इतयादि यतशच ॥ २९ । ( सणटी° ) असमि छौकिकटषटातमाह । अपरपभ-

तइति । गयावहारकवसतखनाभिमताया रजजाववसतभतस- पारिपोनाम रजजयवचछिचतनयविवत रजजववचछिलचत- नयनिषठावियोपादानलन नाय सपः कित रञजरति विशद- दशनोततरकाटीनाधिषठानरजजसाकषातकारण रजञजवजञाननिधततौ सपमातिनिवतत कसयथः । उकतमथ दारशतिक सोजयति । व‌- सविति । काटतरयानपायि आसव वसतशबदाथः सा विया स- पजञानामासाकारण पारणममाना रपाकारण बिवतत । अना- वतरपमाह 1 अजञानादीति । अजञानतञजनयषयोपादभिणया- तातषशयवातसावयतलादविकारवातसपकषमिदिकलवादिःयादि- हपमिरवसतरतयथः । एतदध विसतरण परतिपादयितभजञा- नसरप तावदाह । अजञान विति । किमिदसनञान सषरपमसदर- प वा \ नादयः 1 तसय शशविषाणतलयवन तचछलात‌ । नापि दवितीयः । अकषतःतकारणतवारपपततः । इतयादिहतमिः ससनास- सपन वा निरपयित न शकयत शइतयाह‌।अनिरवचनीयमिति । न- नवजञानसथानिवचनीयतव सरवथा जञातमशकयलाततदभावपरसग-

` माशकयाह‌ । तरगणासकमति । “अजामकाम‌ 'इयादिशरति- भिः सवरजसतमोगणातमकपरतिपादनादिःयरथः । ननधवमज-

|

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ससछतरीका-भाषारीकासमत । (२१ )

सयाजञानसय भतिभरिदधसय वयोभादिशपण विततसय सतयवदा- समानतन ससतारानिवतनिरितयाशकयाह ॥ जञानविरोधीति ।९- हशमपयजञानमासपराकषाकारण निवत इतयरथः 1 तदकत ,

भगवता दवी दषा गणमयी मम माया दरतयया । भामव थ भपयत मायामता तरति त'इति । जञानाभाव एवाजञानमिति ` ताककषत निराकरोति । भावहपमिति । तरिगणातमकभावर- पति हदमितथमवति पिडीकतय भदशयित न शकयत इतयाह- यतकिचिदिति । किमपयघरितवरनापदीयसीतयरथः। अनिरबचनी- यभावषपाजञानदरवनभवमवोदाहतय दरशयति । अहमजञ इति । जहमजञोपामह न जानामीवयपरोकषावभास एव परमाणमितयरथः! तसयवोपषटमकलन भरतिमदाहरति । दवातमशकतिमिति ॥२५॥

( भ[°टी° ) उपरोकत नयायकर विषयम लौकिक टषटानत दिख । रञज किसी समयमी वसततः स¶नही होती ह परनत जितत समय उसी रजज सरषका भम होय उसी अवसत म वसतक नमको अजञान क री उपरोकत अधयारोप कहाता ह । सचिदाननदमयः अदवितीय परणबरहन वत ह ओर आजञानादि सकर जइ पदाथ समह र अवसत । सत ओर असत‌ स भिनन सखगण रजोगण तमोगणषष जञानका परतिषि नधक भावरप ज) कर पदाथ-द उको अजञान करहह । दस विषय अनभवही परमाण ह जस प अङगम आ पको नही जानता यही जआजञानकाखलप ३ । भरतिमभी `

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(२२). वदानतसतार ।

का ह-दीिमान‌ आतमाकी शकति निज सगण आदि हरा वषित होकर निगहभावम‌ रहती ह ॥ २५ ॥

हदमकञानसमषिवयषटयमिपरायणकमनकमिवि च वयवहियत । तथादि-यथावकषारणातमषटयभिः परयणवनभियकतववयपदशः ॥ यथा वा जल- ना समषयसिपरायण जलाशय इति तथा नाना-

- तवन परतिभासमानजीवगताजञानाना समषयमिः परायण ; तदकतववयपदशः । “ अजामकाम‌ इतयादितः । इय समषटिरककषटो पधित‌या विषच दसचछपरधाना एतदपहित चतनय सवजञतवसव-

शवरतवसवनियतसादिशणक सदसदवयकतमनतया- मि जगतकारणमीशवर इति च वयपदिशयत ।

सकर जञानावभापतकतवादसय सवजञतवम‌ । ““

सजञः स सषवित‌" इति तः ॥ २६ ॥ (स °दी °)अजञान विभजत । इदमिति । वसतसताञजञानसय-

कतयपि समषटयभिपरायणकमिति वयवदवियत । वयषटयमिपरायणा- नकमितयरथः । तदव परपचयित परतिजानीत । तथाहीति । यथा बहना वकषाणा समदायविवकषया बनमिवयकतववयपदशः यथा बहना नयादिजठाना समदायविवकषया जखाशय हतयकखवय- पदशःतथातःकरणोपाधिभदन नानासन परतीयमानानाजीवग- ताजञानाना समदायविवकषयाऽजञानमियकलनयपदश इतयथः ।

असमिननरथ शति परमाणयति । अजामिति । 'अजा-

ऋ : ~

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सरछतदीका-माषादीकापतमत। (२३)

मकालोदहितशङकरषणा वही परजा जनयती सरपाम‌” हइतया- दिशतः । नानाजीवगतनिषषठातःकरणवयषटवपाधयपकषया सम- शपाधरसय वलकषणय दरशयति । विगतरागादिदोषसकरका- मपचरप जगतकारणमतसयाजञानसय समषटिमतोरछशोपाधितन विशदधसवभाधानयमिति भावः । एतससमषटयपाधिदारण दशवर- चतनय लकषयति । एतदपटितचतनयमिति । एततसमधबजञा नोपठकषित चतनय सरसय चराचरातमकपचसय साकषितवन सजञ इतयचयत । सवषा जीषाना करममाररपशिततनफटदा- तवनशवर इतयचयत । तथा सवषा जीवानामतषय सथिला

` बदधिनिपामकतनानतयीमीतयचयत परमाणागोचरतादवयकतमि- तयचयत । सरवसय चराचरातमपरपचसय विवरतधिषठानतवन जग- तकारणमिति वयपदिशयत इतयरथः । उकतय यकतिमाह । सकटति । अतर पमाणमाह । य इति ॥ २६ ॥

( भागटी° ) इक अजञानको समषटिरप ( एक ) वयषटि- रप (अनक ) बोकर वयवहार किया जाताह। जिस‌ कषोक समहको समषटिहप ( एक ) वन रपरा बोठत ह तथा जखक समहौको समषटिरप ( एक ) जठाशय ( तठातर ) बोलत ह । इश भकार विभकत ओर विराजित जीवोक अजञानक समहोको समषिप ( एक ) अजञान शबदस बोत ह । धर तिमभी कहा '“एकही अजञान जनमरहित ओर निगणमय- ₹ । ` यही अजञान समषटिषप उतछट उपाधिविशिषट ह इसी कारण इम विशदध सवगण मधान द इसी अङगन उपहति

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(२४) ददानतसार ।

चतनयसवहप बहम,सरवजञ सरवशवर सवनियनता अवयकत अनतयाभी

जगतकारण ओर ईशवर इन शबदार वयवहार किया जाता ह जो समपण अजनानक भरकाशका हत ह वही सवजन ह 1 शतिमभी कहा ह-“जो जगत‌को सामानयरप आ।र विशषरप जानता

ह वह सरवजञ ह" ॥ १६ ॥

ईशवरसयय समटिरखिलकारणतवात‌-कारणशरी रमाननदपरचरतवात‌ कोशवद।चछादकतवाचाननद‌-

मयकोशः सरवोपरमतवात‌ सषकनिः। अत एव सथल- ` सषषमपरपञचखयसथानमिति चोचयत, यथा वनसय वयषयभिपरायण वकषा इतयनकलवभयपदशः, यथा वा जलाशयसय ववषटयसिपरायण जलानीति, तथा ऽनञानसय वयषयभिपरायण तदनकतवनयपदशः । ५ इनदरो मायाभिः पशप इयत इतयादिशतः।

वय अव समसतवयापितवन समणिवयणटिवयपदशः॥२७॥ (सनदीर) शदानी तसयशवरसय सषदायोपाधिरव का रणशरीरतवमानदमयकोशवव सषयवशथामशिषटय च ठभत‌ इतयाह । दशवरसयति । कारणशरीरत हतमाह । अखिरति । आननदमय हतमाह । आनदपरचरतवादिति । कारणावसथाया परकतिपरषमाजवयतिरकतसय सथलसकषमकायपरप चसयवाभावा- दानदवाहलयमिति कोश यकतिमाह । आचछादकलतवादि- ति । शरीराचछादकचमवदतमाचछादकतादजञानसयष‌

कोश इति वयवहारः! नत तथापि कारणलोपापरनना- `

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ससछतदीका-भाषादीकासमत। (२५)

नसय सपपितव कत इतयत आह । सरवोपरमतवादिति । सरय सथटगषमोपः कारणोपाधौ टीनतालसषषिवमितयरथः नन‌ शधटपकषमणपचटयसथानसय कथ सवपतिवमितयाशकयसजञाभद इतयाह । अत एवति । ठयकारणातमषपिवम‌ अतएव पचीरत- भतकायसय शथटपरपचसय जागरदवसथाविशिषटसयापचीकतभत- कायसय शकषमपरपचसय सवामपपचविशिषटसय टयसथानमितयपि वयवहियत इतयथः । समषटिहपाजञान सपरपच निरपयदानी वयषिभतमजञान निरपयित इटातौ तावदरशयति । यथा वन- सयति । यथ वहवकषसमदायसय वनन रपणकलवयवहारषि भतथकविवकषया चरतादयो वहवोपि वकषाः तिषटतीति बहलवय- वहारः । यथा वापीकषतडागादिष सयदायविवकषया जरा- शय इतयकलगयवहारऽपि परतयकवापयादिविवकषया बहनि नला- निपिषठतीति बहतवयवहारः॥ तथा सकलभपचकारणसयाजञानसय समदायषपणकतपि अहकारादिकारणीमताना जीवगताजञाना- ना परतयकविवकषया वहतवयवहार इतयथः ॥ असमिन शति परमाणयति । इदर इति । नन तथापकसथवाजञानसय तदवचछि- चचतनयसय च वयषटिससषिता कत इतयत आह । अतरति । भदविवकषया वयषटितव मदररादिवत‌ । अभदविवकषा समषटि मतिडवदितयथः ॥ २७ ॥

( भाटी ° ) ईशवरकी उपाधिसवरप यह अजञान समषटि भप बहाणडका कारण ह इसी कारण इसको कारणशरीर‌

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(२६ ) वदानतसार

कहत । आननदक आभिकषय होन ओर कोपकी तरह

आचछादक होनस आननदमय कोषभी कहत ई । यह शरी

रही समपण इनदरिया क उपरामका सथान होनस सषति कहा-

ताहि इसी कारण हसक सथक आर सषषम परषचका . रयसथान

तह । जिस‌ तरह बनक वकष सवको अङग अलग परण

करनस उकषको अनक पकषोदारा वयवहार किया जाताह इसी

परकार जछाशयक ज वयषटिभावस अनक जर परतीत होय

दसी परकार नानापरकारक विराजमान जीवसमहक अजञानको

वयषटि अनक वयवहार कर ह । शरतिन भी काद-“4

नानापरकारङी माया दवारा नानाशप धारण करताह।''

सथल दरको भरतयक जीववयापी होनिस वयषटि ओर समसत

जीवनयापी हनस समषटिषप जानना ॥ २७ ॥

हय वयषिनिकषठोपाधितया मलिन सतवपधानाएत- दपहितचतनयमलपकञतवानीशवरतव।दिशणक पराजञ इतयचयत एकाजञानावभासकतवादसय पराजञ अ- सपषठोपाधितयाऽनतिपरकाशकतवम‌ ॥ २८॥ ( स ° टी ° ) ततरमहाभलयकारीनसमषटयपाधिभतविशदध-

सखपरधानाया मरटरङतः सकाशात‌ दनदिनपरखयकाटीननय- हपाधिभतजीवपरकतभद दरशयति इयवयाणिरिति । शय जी वगताजञानसषषयवसथापननाहकारादिविकषपतसकारादिषपा नि

कषटोपाधिलन मलिनसवपरधानतयथः । अभनोपाधिना परा

जञचतनय ठकषयति । एतदपहिमिति । अनरोपपततिमाह एक- "अक द. 4...

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ससछतरीका-भाषारीकासमत । (२७ )

ति । इपरगतमढाजञानसय जीवगताहकारादिविकपससकारादि- रपाजञानसय वसतत एकतवन तदभासकशवरजीवचतनययोरण- कतवमितयरथः ॥ २८ ॥

भागदी° ) उकत अजञानकी वयषटि अपरषट उपाधि दीस अजञानकी वयषटिस तमोगणमिशचित सवगण भधान ह। दसी वयषिमत अननानस उपहित चतनय पराजञशबदस कहा जाता ह इसी वयषिमत अजञानस उपहित चतनयम अतपजञत आर अनीशवरतव आदिगण रहत ह । इसी कारण वयषटिभत अजञानोपहित चतनय अरग अरग एक एक अजञानका भर काशक ह दशी कारण इसको भाजञ, ओर मटिनसचखपरभान, असपषट उपाधि उपहित होनस अनतिपरकाशक ८ अलपपरका- शक ) कहत ह ॥ २८ ॥

असयापीयमहङारादिकारणतवातछारणः शरीरम‌ आननदपरचरतवातकोशवदाचछा- दकलवाचच--आननदमयः कोशः । सरवोपर मतवातघषपनिः । अत एव सथलसकषमश- रोरलयसथानभिति चोचयत ॥ २८ ॥

( स °टी ° ) सौषपतजीवचतनयसय भराजञत साधयति । । असयति । ससकाररपासपषटोपाधितया तदावतसनातिभका- „ शकलामावासाजञलमसयलयथः । यथा जगतकारणशवरोषा- । बःकारणशरीरतवनानदधचरवन चानदमयत कोशदषटतिन | कोश तथतससव तारतमयन भराजञचतमयपयतिदिशति । उ ह

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(२८ ) वदानतसार ।

कारादीति। पररयकाट हिरणयगभादिपपचोसादकशवरगतमर- भररतिवतसषनिकाठ अहकारादिशरीरोयादकमसकारमातराव‌- शिषटजीवगताजञानसयापिकारणशरीरतवहदवियतदिशयाभावनवया सगाभावादानदबाहलयादानदमयतवकोशवदातमाचछादकला- तकोशतवचयकतमितिभावः ॥ ननसथटसषकषमशरीरटयसथान- सयकथ सषपिशबदवाचयवमितयाशकयपववससजञामदो नवसत- भददतिवकतततयकतिमाह । सवोपरमतवादिति । पचीखतसथर- शरीरसय वयावहारकसयपचीरतसषषमशरीरपातिभािकर १वि- छापतिताततसयापि परातिभासिकसय सवामपरपचसय सवकारण जञान खीनवाससरवोपरतिरषयथः । तथा चोकतम‌ “ठय फनसय तदधमा वायाः सयसदरगक । तसयापि विरय नीरतिषठसयव यथा परा । वपावहारिकजीवसय ठयःसयासातिभासिकर 1 तप साचदानदाः पयवसयति साकषिणि; इति ॥ २९ ॥

( भागटीर ) यही वयषटिभत जञान अहकारादिका कारण ` ह इसी कारण दसको कारणशरीर कहत ह आननदका आ- विकषय होनम तथा कोषकी तरह आचछादक होन आननद‌- मयकोष ओर इनदियाका उपरमसथान होन सषि कहा- जाताह‌ । इसी कारण इसी जञानको सथ सकषम परपञचका ठयसथान कहत ह ॥ २९ ॥

तदानीमतावीशवरपरजञो चतनयपरदीपताभिरतिष षमा भिरजञानवततिभिरननद‌बभवतः। “आननद- यषचतोषठखः पराजञःइति तः । घखमहमसवा

=

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ससछतरीका-मावादीकाकषमत । (२९) प न किथिपदविषम‌' इतयपथितसय परामरथाप- । ततथ॥ ३० ॥

| (सचटी° ) नत परटमकाल एषपिकाठ चातःकरणत- | शतवमावनानदाहकामावादानदभाचयसदाप भमाणाभावमा- शशय परहरति । तदानीभिति । यथा मकमतवनानतः- करणसय वतिगीकरियत तथा चतनयपदीपयाजञानसयापिशकषमा वततः सवीकरियत तथा चषरः सवकीयाजञानवततिभिःसातान- दबहलयमनमवति जीवोषि ससकारमाताविशिषटातिशयाजञान- वततिभिः सवासानदबाहलयतारतमयनालमवतीति भावः । अतरषोपषषटमकत शरतिमवतारयति । आनदभगिति । असयारथः आनदो किकपाभावोपरकषित आतमानमव भकतऽजञानवततिभि- रगचछतीतानदभक‌ चत जआतमसवहपावबोधःसएवावरणश- कतिदितो य पसय स‌ चतोमखः भाजञः प सवयपरकाश आनदातमनि अजञानवततिरपो बोधो यसय स पराजञः उकताव‌- सथादयाभावनावगमयमानलानतीयः उततरकारीनसखपराम- शपपततिरपिपरवातमतसबाहलयानमवसदाप ` परमाणमितयाह सखमहमिति । उसमहमसवापमितयानदपरामशःन करिचिद‌- । वदिषमिजञानपरामषः । तथाच एषनिदशाया परखयकार च‌ । भजञमराजञानपततिभिरानदमनभवत एवतयरथः ॥ ३० ॥ | . (मानदी° ) शर ओर जञ दोनो सपततिकाठम चत- | दारा वरहाशित होकर अतिपक अजञानवततिकि दवारा शतिर भागत ह । इत विषय शति भमाण ह-जञ चत # 1

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(३० ) वदानतसार ।

नय परकाशदराया खलको मोगता ह 7समरणक परमाणसमी जा-

नाजाता ह कयोकि जव परष शयन करक उठता ह तब

तसा कहता ह कि (आल म जिस समय सखकौ निदराम सो

रहा था तव यञञको क खबर नही थीः ॥ ३० ॥

अनयोभषषिषमघयोवनवकषयोखि ज-

लाशयजलयोरि चाभदः ॥ ३१ ॥

^ ( सनटी) तदानीमीषवरगतमखाजञानसयजीवगतससकारमा- |

जावसिषटाजञानसय च समषटिवयषटयमिभायण मदभानपिवसतता

मदो नासतीतयतसदशतमाई । अनयोरिति ॥ ३१ ॥

(भा -टी०) जितत परकार कषकी समषटि कहितवनका

ओर नकी ववयशटिसहित दकषका क भद न ही ह, ओर ,

जत जखकी समषटिसहित जलाशयका ओर जलाशयकी

वयषटि सहित जछका को मद‌ नही ह तिसी भकार अननान‌

समषटिसहित अजञानवयषटिकाभी कोष भद नही ह॥ ३१ ॥

एतडपटितयोरीशवरभाजञयोरपि वनवकषावचछिनतना-

काशयोखि जलाशयजलगतपरतिविमबाकाशयो

रिद चामदः। ““एषपवशवर एष सवज एषोनतयौ

मयष योनिः सवसय परभवापययौ हि भतानाम‌ `

इतयादि शतः॥३२॥ _._` |

( स°टी° ) उकतोपायिदरिणिशवसखाजञयोरपयमद दरशत '

शन दशयति । एतदपदितयोरिति ईशवरसय बनावचछि- |

नराकाशवसाजञसय वकषावचछिननाकाशवच तथ। सशटजकाश-

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ससकतरीका-भाषारीकपमत। ( ३१ ) ` योपाधयवचछिनना काशवत‌ जगत भतिबिय।काशगचङ।रमो- पाधयवचछिननशवरसय कायपाधयवचछिननभाजञसय च वसतत भद‌ एवतयरथः । तच भमाणमाह‌ । एष इति ।तथा चोकतमाचारः। “कायोपाधिरय जीवः कारणोपाषिरीशवरः।कारयकारणता हिता पणबोधोऽवशिषयत" इति ॥ ३२ ॥ ( भागटी° ) जिसपकार वकक समषटिरप वनम अव- सथित आकश सहित वनका ओर वयप पतयक वकषम अपरसथित आकाशका को$ भद‌ भरतीत नह होता ह तथा जलकर समषटिहप‌ जछाशयम परतिविनित आकाश सहित ज- राशयका ओर वयषिहप जलप पतिनिमबित आकराशका कोई भद नही माटम होताह । इसी भकार समषिरपअजञान- उपाधिविशिषट चतनपसवटप दशवरका ओर वयषटि अजञा- नप उपहित चतनयसवहप पराजञका कोई भद नही ह इस वि- पयम‌ शतिक भी भमाण ह -‹ यही समपणका ईशवर, यही सर- वजञ, यही अनतरयाभी, यही मपणका कारण) यही जगतकी उतति ओर परलयका हत ३" ॥ ३२ ॥

सनतदवचछिनराकाशयोजलनलाशयतहतपति- िमबाकाशयोरषा आधारभताबपहिताकाशवदन- योरजञानतपदितचतनययोराधारभत यदयपहि- त चतनय तततरीयमिदयचयत । शानतशिवमदरत चतथ मनयनत स आतर स विजञयः ” इतयादि थतः ॥ २३॥ ह

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(३२) वदानतसतारः।

(स णटी° ) उपाधिदवयावचछिननौ परजञशवय समपच नि रपपदानी अनवचछिनन तय चतनय ठकषयति ! वनति । था सथलवनोपाधयवचछिननाकाशपकषया सषकषोपाधयवचछि- लाकाशपकचया च भहाकाशसय. तदभयाधारतयानवचछिघन- तवानमहाकाशत तथा काथकारणोपाधितदवचछिननवतनयद- यापकषया तदाधारभतयदनवचछिन सववयापिचतनय विशद तततरीयमचयतदतयथः । असय चतनयसय तरीयतववकषयमाणवि- शवायकषयति दरवयम‌ । असमिरथशिसवादयति । शानतशिव- मिति। आदिपदात"नरिष धामस यदोगय भोकता मोगशवयदरषत‌। । तणयो विलकषणः साकषीचिनभातरोह सदाशिवः ” शइतयादिधरतय- तरपरहः ॥ ३३ ॥

(भागटी ) जस वन ओर वनम सथित आकाश, वकष । आर बकषम सथित आकाशः जलाशय जलाशय परतिबिभबित- | आकाश आर जरगरतिविमबित आकाशका आशरय जो अपार- चछि आकाश उसको महाकाश कहत । तिघीपरकार समषटि । ओर वयषटिमत अजञान ओर अजञानोपहित चतनयादिका आधार , जो अपारचछिनन चतनय उसतको तरीय बहमचतनय कहत ह । | दसम शरतिका भी परमाण ह-“मङगलमय अदवितीय चतनयको । चतथ ( तरीय ) कहत ह ओर उसको आमा ओर विजञय मी कहत ह ॥ ३३ ॥ इदमव तरीय शदधचतनयमनञानादितदपहितचत-

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॥.

ससछतटीका-भाषायीकासमत । (३३ ) नयाभया तततायःपिणडवदविविकत सनमहावाकयसय वाचय विविकत सकषयमिसयचयत ॥ ३४ ॥ ( स °टी° ) एतदव विशदचतनय पव कत चतनयदरयन

सरकतवविवकषाया महावाकयसय वाचयतव ठभतऽभदविवका- या च रकषयतव च कभत इतयाह । इदमिति । याणा च- तनयाना चतनयन सपणकतपि अशचछिनानवचछिननतन रपण व।चयलकषयतय समवत इति भावः ॥ ३४ ॥

( भागटी° ) जस अभरत तपय हए ठक सहित अ- भिननरप होन “छोहा जाता द" । इहपकरार वाकयकाः भयोग होता ह किनत यही अभरिही अभिनहप उकत वाकषय‌- का वाचय ओर छोट मिददशप इत वाङयका रषय होताह तित भकार यह ठरीय वहचतनय समषटिवयषटिजञान ओर अजनानोपित चतनय सदिति अभिरप होस ( ततम ) दत महाधाकयका वाचय ओर‌ भिदप उका रकषय होता ३। असयाकञानसयावरणविकषपनायक शकतिदरयमसति आवरणशकतिसतावत‌ अलपोऽपि मधोऽनकयो- जनायतमादितयमणडलपरालोकयितनयनपथपिधा- . कतया यथाचछदयतीव‌ तयाजञान परिचछिनन शववातमानमपरिचछननपसारिणमवलोकयितषदि- पिधायकतयाचछादयतीव ताटशसोमथयम‌ । त- इषम‌ घनचछतरहषटिवनचछततमक यथानिषपरभ

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(३४) वदानतसार ।

मनधत चातिमढः ! तथा बदधषदधाति यो महहः सनितयोपरनधिसवहटपोहमातपा" ॥ ३५ ॥ ( स °टी° ) अथदानी सवमकाशचिदपशयासनः कथ क

ठितपरकाशवव कथ चातोदासीनसयातमन‌ आकाशादिपरपचज‌- नकलमिततनमहाविरोधपरिहारायजञानसय‌ शकतिदवय निहपय- त। असथति) तएव नामपरो निरदिशति । आवरणपिकषपनामकरषि ति। अवरणशकतिसतावत सविदनदशवरपमादणोतीय।वरण- शकतिनहादिथावराति जगनखदरदषनामहपास विकषि- पति सजतीति विकषपशकतिरति शकतिङकयसजञानसपतयरथः।ननव- पारिचछिसयसवपकाशविदरपाखडपरिपरणसवपसयातयनः पर- चछिनननानिसनजडतमोहयणावयापकिनाजञानशकतिविरवण- थमवरणमितयाशकय वसततोजञनसयासाचछादकल।भा- वपि परभातबदधिमावविचछादकवनाजञानशयासाचछादकस‌- मपचारादचयत इतयाह । आवरणशकतिशति । यथाऽतय- लयोपि मधोजकयोजनविसतीभमादितयमडलमवलोकयितष- रषटषटिमितराचछाद‌कतनादितयमाचछादयतीषयपचारादचयत त- । था अतितचछपारचछिलमपयजञान अपारचछिननमातमानदघन भमातथदधिभवचछादकसनासानमाचछादयतीदयपचारादचय- त इतयथः । असमिननरथ बधतमतिमाह । तदकतमिति ॥३५॥

( भा-टी< ) परवोकत अजञानी दो शकति ह जत आ- वरण शकत ओर विकषपशकति । पट आवरणशकति दिख- लाति ई । जष मनषयोक नयनोका आवरण करनवाला अ- |

; ४1

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ससकतरीका-भापारीकासषमत । ( ३५ )

सपसथानभ रहनवाला मषमणडर सहसो योजन विसतीण स पयका आचछादक कषाजाताह तिकीपरकार अविवकी मन- भय जञानका आवरण करनवाला तथा सरववयापी परवहका आचछादक हप भसि अनञनकी शकछिको आवरणशकति ऊहत । हसतामठकभ छिखा भी ह-“जत अजञानी परष नत मत आचछादित होना तव कर ह कि पचयमणड- ककौ मधमणडलन आचछादित करदिया । तिसरी धरार भ इषटि परष जिसको वदध कहत ह म वही नितय जञानसहप आतमा ह" ॥ ३५ ॥ अनयतसयातमनः कततव मोकततवशठखितवहःखि- सवादिसकारसममावनापिभयति यथा सवजञाननाद- ताथा रजजवा सपतवषमभाषना ॥ ३६ ॥ ( सगटी° ) अनयवावरणशकतयाषचछिननसयातमनःकर-

तभोकरखशखदःखमोहासकलतचछससारसभावनापि सभावय- तङतयाह‌ । अनयति।दयमवावरणशकतिरासनो भदबदधिलनक- सवन सारहतारति भावः । अवातषप चतमाह । यथा सवजञाननति ॥ ३६ ॥

( भागटी° ) जप भपषशप रजजम रजखका जञान नही होय ह सनान उयनन होजाय ह तिपती पकार अजञानकी अवरण शकतिर अचछादित आम सवहपका जञान नही होय ह ओर रम कतौ द भोकता द सखी ह इती ह इतयादि मोहनाठतत वयातत सषारका बोध होता ३॥ ३ .

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( ३६ ) वदानतसार ।

किकषपशकतिसत यथा रनवजञान सवाघदरनौ सव शकतयासपादिकषचदधावयति, एवमजञानमपि सवाघर- ततमिनि सवशकया आदयाशादिपरपञचदधावयति

` तादश सामयम‌।तदकतम‌-“विकषपशकतिलिजदि- बरमाणडानत जगचसजत‌ '' इति ॥ ३७ ॥ ( सगटी° ) यदकछपतगोदासीनसयातपनः कथ जगतछा- ,

[क

रणतवमिति ताननराकत विकषषशकतिसददपमाह । षिकपशचसि- ` (५ सतविति । यथा रनजविषयकमजञान सरषशवादयति तथासवि- `

षयकमजञानमपि सवावचछिनन आतमनि विकषपशकतिपिमावणा- | काशादकि परपचटदडावयतीवयथः । असनन धरथातरसमततिद‌ । शयति । तदकतमिति । नन किमातमा चराचरातपकभवचसय निमिततकारण उपादानकारण वा । नायः । दडदविलछका- वयापितव न सयादातमनः“ततषवा तदवाटपादिशतइतिशचरया- | कायवयापिलशरवणात‌ । न दितीयः। अचतनशय जडसय भद । सय चतनयोषादानकतवासभवाव‌ ।॥ ३७॥ `

( भार री ०)अब‌ विकषपशकतिको दिखाति ह | जत रजस-

विषयक अजञान अपनी शकतिदवारा रउ सका सदय भद‌- ` शन कर सी पकार यह शकति अजञानापत आतमाम आ- काशादि पशचभतका करम भदशन कर ह । कसीको विकषपशकति

शकतिदरयवदञानोपहित चतनय सवपरषानतया

|

५ | कहत ह । षनथानतरभ भी दसा ठिखा ह कि-“अजञानकी वि. | | षपशकति बह ठकर सतमबपसयनत जगतको उसन कर ३"

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[~

सतछतरीका-भाषारीकासमत । (३७)

` निमितत सवोपाधिपरपानतया उपादानञच भवति यथ दता तनतकायमपरति सवपरधानतया निमि- त सवशरीरपरधानतयोपादान च भवति ॥ ३८॥ ( सगटी° ) उपादानतन च कायकारणयोरमदन पपव-

सयापि चतनयहपवपरसगादनितयत न सयादितयाशकय जड- भरच भतयातमनः चतनयपराधानयन निभिततत सवाजञानपाधा- नयनोपादनतव च सभवतीतयाह । शकतिदरयवदिति । यथा- यसकातसननिधान जडमय लोह चषटत तथा चतनयसनिधान जडभङञान चषटत इतयजञानविकार भति चतनयसय निमितततव जऽकाशादिकाय पति मायायाः साकषादपादानसखन भाया- विन दशवरसयापि परपरयोपचारादषादानल नाविरषयत इतय- थः । तदकत चतनयसय निमिततकारणत कारयानभवशोनसयादि- ति । तनन । कारणसय कारयानपरवथनियमसयोपादानकारणविष‌- ` यतवननिमिततकारणविषयतयाभावात‌ "ततपषा 'इतयादिशरतरपय- पादानकारणपरतवात । यदपयकत आतमन उपादानकारणतभष चसयानितयतय न सयादिति तदपि न ! तय पारणामधिषयतन‌ विवचविषयतवामावापपचसय बहाविवततवादविवततव च सव- सवरप परितयागनसवपातरमदशकतम‌। यथारञजयषचछिनय- तनयनिषठजञानसय रजजखरपपरितयागन‌ सपोदिसवषपातरभद‌- शकतवतथशवरचतनयनिषजञानशकतरपि चतनयसवरपपार- तयागन आकाशादिखहपातकारण पदशकलम‌।एतावताका- शादिषिपचसय नितयतव न सभवति । अजञानसपमिथपाहपतन त-

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( ३८ ) वदानतसचार ।

जजनयाकाशादिपपचसयापि भिथयावष‌।नयवमजञानसय भिथया- तव तलयकतवधमोकषयोरपिमिथयातवभसग इति वाचयम‌ दटापनतः तदकत भगवता “वदधो बकति वयाखया गणतो म न वरततः॥ गणसय माथामरखलानन प मोकषो न बधनब‌''&ति।अखरयतिविसत- रण । एकसयवातमनो निमितोपादानकारणल दषटतमाहययथाः तातति । यथा एतातत। सवोपयमानततखकषणकारथ भति सवचतनयपरधानतयानिमितत वतनयसनिधानवयतिरकण जदशय दहसय मतशरीरखतततजनकलासभवादखशरीराधानयनोका- । दान च भवति । अशरीरसय साकषातततजनकलासमवावछशरी- रभाधानयनोपादान च मवति । शरीरसय साकषातततषादानतवन तदवचछिलचतनयसयापयपादानतवनोपचारात‌ ॥ ३८ ॥

( भागटी° ) जस उरणनामकीट ( पकडी ) शवत भ- धानरपसजाठका निमितत कारण ओर शरीरपधानहपत तिरी तनतका उपादान कारण होता ह । तिसीपरकारस आवरण ओर विकषपशकतिविशिषट अजञानदवारा समावत चतनय सवय धानरपस भपचविशवका निमितत कारण ओर उपाधय अजञानरपस उपादान कारण होता ह ॥ ३८ ॥

तमः परधानकिकषपशकतिमदञानोपहितचतनयादा- कारा आकाशादरायवायोरथिरयशपःअदधयः परथि-

चोतयत । 'तसमादराएतसमादातमन आकाशः ~ समभरतः इतयादिथतः ॥ ३९ ॥ |

। (सणटी° ) एवमीशरसयापि सवचतनयपरधानतया निमि- `

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ससकतटीका-भाषारीकासमत । (३९ )

ततव सवोपाधिपरधानतयोपादानतय च भवतीलरथः।इदानी विकष- पशकतिकतयमाह । तरमइति। आकाशादजडताततमोगणपरधा- नविकषपशकतयकताजञानावचछितयतनयसयवाकाशादिपरपचजन- कतवभितिभावः । असमि शति परमाणयतिः। “तसमाय एत- समादातमनञकाशःसमतः "हति । एतनाविसखयनयायिकपकषौ निरसत । शकतजञानसय शकतिमसरतनताससवतनसय तसय कवसय जडसयाजञानसय जगतकारणलवानपपततः । ' इकषरना- शबदम‌ । रचनारपपततशवनाटमानम‌' 'इतयादिनयायनिरसततवाच परमागोरपयकतदोषथासतवासानपायात‌ । अभिनननिमिततोपा- दानपतिपादकशतिसमतिनयायविरोधाचच । "यतो वा इमानि भतानि जायत यन जातानि जीवति यससयधिसविशति । सदव सोमथदमथ आसीत।एतसमाजायत भाणो मनःसरवदरियाणिच । अह सवसय पमवो मतः सरव भवरतत। बीज मा सवभतानाम इतयादिशतिरगतिमिरीषवरसयवजगतकारणलपतिपादनात‌ ३९॥

(भा गटी °) तमोगणणधानककषपशकतिविशिषअजञानस आ चछादित चतनय आकाश उसन दभा ह आकाश वाय वायत अधि अभि जर जर पथिवी उसनन हई हशसी ` भकार कमस भपधयविशच उतत हआ शतिम भी रसाही ` खा ह ॥ ३९ ॥ | तष जाडयाधिकदरशनाततमःपराधानय ततकारण- सय तदानी सतछरजसतमासि कारणयणपरकमण तषवाकशादिपपयनत । इमानयव सषमभतानि

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८४०) वदानतसार ।

तनमराणयपचीकतानि चोचयनत । दतभयः सषमशरीराणि सथखभतानि चोतपयनत ॥ ४० ॥ ( सगटी ° )ननवाकाशादिपचोतादकदतनयावचछदका-

जञानकतःतमःपभाधानयमितयाशकपाह । तषविति । कारणगणा हि कायगणानारभत इति नयायादिति भावः । नत निगणातम- .कतलादजञानसय कथ ;तमोगणमातभराधानपनाकाशादिजनकल- ` मितयाशकयाह । तदानीमिति । तदानीएयाततिषखारथाचवादयः योपि गणाः तारतमयन कारणपरकरमनयपन तषवाकाशादिष पचभतभततरोततराधिकयन जायत इतयरथः । दमानयव सषषम- शरीरादिकारणभतानयपचीरतानि सषपषटपतनमाचाणीलयचय- त शतयाह। एतानयवति। “प चपराणमनोबदधिदगनदियसमनवितम‌। अपचीरतमवोतथसकषमाग भोगसाधनम‌" इति वचनादपयपची- रतभतभयो पचीकतसकषमशरीराणि पचीरतसशटमतानि चो- सयत इतयाह । एत१य‌ इति ॥ ४० ॥ ।

( भारटी° ) उन उनन आकाशादि जदताका आ- । धिकय होन उनका कारण तमोगण भधान माल होता ह | उन आकराशादिकी उतति अननतर उनक कारण गणोक ` तारतमयक अनसार सवगण रजोगण ओर तमोगण इनकी ` उततति होती ह । पव पवोकत अवसथाको भाप हए आका- ` शादिक सषषममतः महामत, पचतनमाचा भौर अपञचीरत | कह जात ह इनही सकषममतति सकषमशरीर ओर सथरशरीर- ` -उपननहोतह॥४०॥ `

= अ "वआ ~

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ससकतरीका-माषारीकासमत । (४१ 9.

सकषपशीराणि सपतदशावयवानि छिगशरीरणि । अवयवासत जञननदरियपचक बदधिमनसी करमनिदि- यपचक‌ वायपचक चति । जञनिनदरिपाि ओरतव कचकषजिह'णाखयानि । एतानथाकाशादीरननासा ततिकाशभयोवयसतभयः पथककरमणोतपथनत । ब- दिनम निशयति नतःकरणवततिः। मनो नाम सकहपविकलपातपिकानतःकरणवततिः ॥ ४१ ॥ ( स °टी ° ) मषषमशरीरसवषपभतानवयवानाह । अवय

उासतविति । तानदियाणि भोचतकषवकचनिहाघाणाखयानि साचिशाशादाकाशचछरोरययत। साचिकषशादरायोः तमि वियम‌ । साचिकाशतजपः चशः । साचिकाशाजरानिह।। साचिकाशायाः पथिवयाः सकाशात‌ घणदरिय चति । कम णोखयत इतयाह । एतानीति । वदधरशचणमाह । बदधरति । बहवाहमिति निशवयसिकवानतःकरणवततिव बदधिरितयरभः । मनसो ठकषणमाह । मनोनामति । अय चिपो दहो वति सशयासिमिकातःकरणवकतिरव मन इतयरथः ॥ ४१ ॥

( भागटी° ) सकषमशरीर दिखात ह । सपदश १७ अवयवयकत लिङगशरीरको कषमशरीर कहत ह । पञच जञान- नदरिय परथ करमपदिय पच वाय भन ओर बदधि यह सपदश- १७ -अवयव‌ कहलात ह । न कण नासिका जिहवा ओर

सवचा यह पाच अवयवही पञच जञाननदरिय कहात ह यह.जञा-

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(४२) वदानतकषार। _ `

ननदरिय आकाशदिक साचिक अशस उनन होती ह । तज- क साखिक अश नत अकाशक साचिक अशकत कण प थवीक साचिक अशस नासिका जलक साचिक अशसःजि-

# १

हा वायक साचिक अशस तवचा उवनन होत ह । निशवया- ` तमक अनतःकरणकी पतिका नाम वदधि ट । सकलपविकलपा- तमक अनतःकरणकी पततिका नाम मन ह ॥ ४१ ॥ अनयोरव वितताहकारयोरनतमावः।अनसनधाना- तमिकानतःकरणवततिशिततम‌। अमिमानातमिका- नतःकरणवततिरहकारः । एतएनराकाशादि गतसा- ततिकाशभयो मिरितभय उतपधत।एतषा परकाशा तपकतवाःसाततिकाशक।यतवन‌ ॥ ४२ ॥ ( स शटी ° ) समरणासमकचिततसय गरवासकाहकारसय च

बदधिमनसोरतभीव इतयाह । अनयोरषतति । ययपयतःक- ` रणतवन चतणमिकतव तथापयकसयव परषसय पाचकः पा- क इतयादिधततिमदादधदवदकसयापयतःकरणसय निशवयसशय- समरणादकारविपयभदवदवादिभद इतयरथः । बदधयादीनागल- ततिभकार दशयति । एत पनारति । एतषा चतरणा साचिका- गभयो मतय उलततौ निमिततमाह । एतषामिति । बदधयादीना भकाशातमकतवातसाचिकाशमतकायतवमितयरथः ॥ ४२ ॥

( भागटी° ) चितत ओर अरहकार यह दोना बदधि ओर मनक अनतगत दो भकारकी धतति द । अनसनधानातपक अ- नतःकरणकी दततिका नाम चितत ह । ओर अमिमानसहित जो

| ।

मथथ

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ससछतरीका-माषारीकमसमत। ` (४३)

चिनतकी वतति ह उसका नाम अहकार ह। बदधि ओर मन यह दोनो भिरकर आकाशादि पशमतक साचिक अशस उ- तनन होत ह । पशचजनाननदरिय बदधि ओर मन यह सषब सव- काशक सवभाव ह । इसी कारणः इनका पञचमतक साततिक

अशतत उसनन होना अनमान किया जाता ह ॥ ४२ ॥ इय दधिजञाननियः सरिता सती विजञान- मयकोशो मवति । अय कततवभोकततवाभि- = मानितवन इहलोकपरलोकगामी वयाव- हारिको जीव इतयचयत ॥ ९३ ॥

( सगटी° ) वदविजञानमयकोशव दशयति । इयमिति ! . बदधः सछकायवाजजञानदियसाहितयन ` पकाशाधिकषया- जञानमल आसमाचछादकलवा कोशतमितयरथः । विशदध- बदधिमतिविबितचिदातमनो जीवतव दरशयति । अयमिति । त- पतायःपिडवदरदयारोपित चतनय वसततो कतभोकतनितयानदा- परिचछिननमकरियमपि मौकतकवसखिवदःखितपार- । चछिलिवकरियावखायभिमानन सवारगादिलोकातरगामिद वयावहमारकजीववव च लभत इतयथः ॥ ४३ ॥ (भागटीः ) समण जञनिनदरियौक सहित भिरकर ब-

दिको विजञानमयकोष कहत र । - यही विजञानमयकोष म कतत मोकतार म सखी दर म दःखी ह इतयादि अभि- मानयकत दइसटोकषम रहनवाट। ओर परलोकम जनवारा, इसपकार वयवहार इसको जीव कहत द ॥ ४३ ॥

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{ ४४) वदानतसार ।

मनसत कममरिदयः सहित उनमनोपभयकोशो भवति । कममनदरियाणि वाङफाणिपादपायष- सथानि । एतानि पनराकाशादीना रजोशभयो वयसतभयः पथककमणोतपदयनत ॥ ४ ॥ ( स°टी° )मनोगयकोशव निरपयति । सनसतविति।

सवगणभरधान मनःसखगणाशषयो जातः शरोतादिजञाननदरय- रव सहित सनमनोमयकोश‌ दतयरथः। अचर त मनसः ससोप- हितरजोविकरचछाहपववातसकलपविकलपासकसन बदव‌- पकषया जाडयाधिकयात‌ मनोभयतव आताचछादकतवा-

-तकोशतमिति भावः । कपददिय!णयपदिशति । करमनदियाणीति- एतषापततो साधनपिकचायामाई।रतानि पनरिति भताना रिग- णतवपि रजोगणबहखयो वयसतमतषयो वागादीनि पथकपथ‌ कमणोतपयत । मताना चरिणणसपि रजोगणपरधानादाकाशात‌ वागिनदरियएययत रजोगणपरधानादायोः पाणीनविय रजो- गणपरधानादभः पादनदरिय रजोगणपरधान(नलात शिशचदविथ

: रजोगणपरधानायः पथिषय(: पाथिदवियपतयत इतयरथः ४४॥ ( भागटी° ) पोच करममनदरियक सहित भिरकर मनो-

: मयकोष कहाता ह वाकपाणि पाद पाय ओर उपसथ इन पचि अवयवोक। नम करममनदिय ह यही पाच करममनदरिय आका-

` शादि पञचमहभतोक राजक अशप उनन होती ह । आका- शक रजोभागस वाकय वायक रजोभागत पाणि जखक रजोभा- गत पद तज रजोभागस पाय पवीक रजोभागस उपसथ उसन होत ह ॥ ४४॥

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ससकतरीका--भाषरीकासमत। (४५ )}

वायवः परणापाननयान‌दानससमानाः । पराणोनाम मरागममनबाद‌ नासायसथानऽती । अपानो नाम अवागगमनवाच‌ पायवादिसथानवतती । वयानौनामः विषवगयमनवानखिलशरीरती । उदानः कणड- सथानीयः उदधममनवादकमणवायः । समानःश- रीरमधयगताशितपीताननादिसमीकशणकरः । समी- करणनत-पपाककसण रस‌ एथिरनकर पादिक- रणम‌ ॥ ४५ ॥ ( स गटी° ) वगरटदिशति । वाय इति। यथो भमा-

णमाह । पराणोनापति । उ दरगमनशीलो नासयसथायी बा यः पराण इतयथः । अपानसय कषणमाह । अपानो नति । अ- धोगमनशीटः पासवादिसथायी वायरान तयथः ।उपानसय,र- कषणमाह । वयानौ नामति । सरवनाडीगमनशीरोखिलशरीर- सथायी वायवयीन इतयरथः । उदानसय रकषणमाह । उदानोना- मति उधवरतकमणशीरः कटसथायी वारदान इतयथः । स‌- भानसय लकषणमाह समानोनामति । शरीरमधयगवोननरसाः दिनता वायः समान इतयरथः । पराणादीना वायखन रपण- कतवपि करियाभदन भद इतयरथः ॥ ४५ ॥

( भागटीर ) भाण, अपान, वयान उदान, ओर समान इनको पशच वाय कहत ह । उपरको दरनदाखा नासिकाङ अभरभागम रहनवाड बाडका नाम भाणवायर । नीवको च- नबाटा गदारथानम रदनवाड बायको अपानवाय कहत ह

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| | | (४६ ) वदानतकषार ।

सव नाडियोम चरनवाखा सव शरीर रहनषार वायको वयान कहत ह । उपरको चरतवाला कणठसथान रहनवाट , ` वायको उदान कहत ह । ओर भोजन किगरहए अघरकर ओर पान किगहय जरविकि समीकरण करमवाट वायको समान वाय कहत द । परिपाक करिपाहयारा भोजनकरी इट वसतका रधिर‌ वीमय ओर परीषादि कसका नाम समीकरण र॥ ४५॥ कचिद नागकमपककलदवदततथननयासथाः प- चनय बयः सनतीतयाहः- तच नागःउदिरणकरः ! कमः निमीलनादिकरः ककलः शधाकरः । दव-

| | दततः जभभणकरः धनञनपः पोषणकरः । एतषा । | | भ।णादिषवनतभौवातपाणादयः पचवति कचिव‌ । | | 1

बः 1

, इद पराणादिपचक अकशादिगतरजोशभयो भि- छितभय उतपदयत ॥ ०६ ॥

| | ( सगटी2 ) कषिलमतातसारिणः करियमरनानयऽपि । पच वायवः सतीति वदतीतयाह। कविततिति । तषामव | नामानि निरदिशति नगयादिना । नागति । वदातिनसत ना- । गादीना पराणादिषयतमष वरदतीतयाह‌ । एतषा भाणादिषविति। । भरागादिवाषरनामखततौ कारणपिकषायामाह एतदिति । अपची-

कतपचमहामतभयो रजःपधानभयः पराणादयो जायनतदतयथः । (भागटी> ) सारयमतावरमबी तो रा कहत ह कि

नाग) दम,ककठ दवदकतःधनञय, यह ओर भी पाच वाय = उिरण करानवाठ वायकठो नाग कहत ह । निप वायस नव )

4 च वः 4 ह ५2 ॥ ३ † पः ट

ह [~ ~ - [१

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ससकतीका-माषाटीकासमत । (४७)

भिचजाय वह करमवाय कहाता ह । जिस वाय शधा कम उपतको ककर कहत ह । जमभा करानवार वायको दवदत कहत ह । जिबायपत पषट होती ह उसको धनय कहत ड । परत वदानतमतक आचाय कवक पराणादि पोच वायही मानत ह ओर अलग कोई घाय नही मानत ह बह भराणादि पञचवायभ नागादि वायका अनतमीव मानत ह । यह भा- णादि १७च‌ वाय मिषए अकाशादि पञचभतक राजतअ- श उतनच होत ई ॥ ४६ ॥

हद पराणादिपचक करमनदरियपषहित सत‌ पराणमयः कोशो भषति । असय करियातमकतवन रजोशका- ययतवम‌ । एतषकोशबमधय विजञानमयो जञनश- कतिमावछचरपः। मनोभयः-इचछाशकतिमान‌ क रणहपः पराणमयः करियाशकतिमान‌ काययहपःयो गयतरादवमतषा विभागः-इति वयनति । एतत‌- कोश भिरित सत‌ सकषपशरीरमिशयचयत ॥४७॥ ( स °टी° ) एतषा भाणादीना भाणभरचरखासाणम‌-

खम‌ आतमाचछादकतातकोशख च भवतीतयाह । इदमिति । भागादीना रजःरधानभतकायख निमिततमाह । असयति । शरा णादीना करिष(सकलादरजः करयमितयथः । एतपपचकोष मधय विजञानमयमनोमयपरणमयकोशाना करमण जञनिचछाकरि- याशकतिभदन कतकरणकरिधारपतव दशयति । पतषवति । तत ततमाह । योगयलादिति । दमव कोश सकषपशसीरमिति

भयपदनियत इतयाह एतदिति ॥ ४७ ॥

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(४८) वदानतसार ।

८ भागटी° ) प कहहए भाणादि पञचवाय भौर करमम नदरयोका मिरकर पराणमय कोश होता ह गमन आगमन इ- तयादि करिया भाणादि पञचवायका सवभाव ह इती कारण यह पञचवाय समपण राजसअशका कारय मालम‌ होता ह । पव ` कहहए कोशक मधयम जञानशकतियकत विजञानमय कोश कतो | ह } इचछाशकतियकत मनोमयकोश करण ३ । कियाशकति- यकत पाणमय कोश कामय ह इततपकार तीनोकोशोका वि- भाग वणन करद । यही तीनो कोश मिखकर कोशमषटि- का सकषमशरीर कडछता ह ॥ ४७ ॥

अबरापयदिलमसषषमशयीरमकःदधिविषय- तया वनवनख{शयवदरासपषठिः। अनक- बदिविषयतया वकषवनटवद‌ा वयशिश भवति । एततसमषठपहित चतनय स- अतमा हिरणयगभः पराण-इति चोचयत साबसथततवात‌ । जञानचछाकरियाशकति- मदपचीकतपचमहाभतामिमारिखाच ॥ ४७॥

( स°टी°) असय समषटि हतमाह । अवापीति। 1 एकबदधयति । चराचरपाणिमासय यातयनतानि सकषषश- ` रीराणि तषा सरवषा सकषमशरीराणा सरासना हिरणयगरमाखयन सवीयकडदया विषयीरतवातसमधिमितयथः । ततर इषटातमाह । वनवदितयादि । अरथव सषशरीरसय वय- |

` शिल दशयति । अनद ति । अनकषा जीवाना भतक ससव `

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ससकतरीका-भाषाटीकासमत । (४९) ठिगशरीरसप सवबदधिविषयतनानकषदिविपयतया वयषटित‌- मितयरथः । ततर दषटातमाह‌ । तदितयादि । उकतसमयवचछि- ननचतनयसय पवातमलादिरङञा दशयति । एतदिति।ततर हत- माह । पवतरानसयतलादिति। सरभाणिछिगशरीरषनसयतला- दियमानलादितयथः हतव तरमाह । जञानचछति । जञानचछा- करियाशकतिमतकोशतरयोपाभयवचछिनिवादिलयरथः ॥ ४८ ॥ ( भागय ) जष वन ओर ताराव, वक ओर जलका समि ६ । तिची परकार समसत परषमरीर एकरप शरीर समि द इषी भकार जत वकष भौर जठ, वन ओर तारा- वका वयषटि ह । तिसीपरकार अनक दवारा शरीर वयषटि ॥ दसी पकमशरीरका समप उपाधितत उपहित चतनय भ- ` नातमा, दिरणयगम ओर पराण कहाजाता ह । इसी कारण यही चतनय व सथित पनकी तरह स परिवयापत तथा ञान इचछा ओर करियाशकतिपिशिषट अपनचीरत पञचमत‌- का अभिमानी होता ह ॥ ४८ ॥ असयष समषटिः सथलमरपचपिकषया सषषमतवात‌ ममशरीर विजञानमयादिकोशय जारदरासना- मयतवात‌ सवपर: । अत एव सथलपरपचलयसथान-

चोचयत । एतदरयटयपदित चतनय तज‌- सो भवति तजोमयानतःकरणोपहिततात‌ ॥ ४९॥ ( सऽटी°) विजञानमयादिकोशनयसय सकषषशरीरता ध 1 4

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(५०) वदानतसार !

दशयति । असयषति । असय सतरातमनो हिरणयगरभायसय विजञानमयादिकोशचय शरीर असप सथटपरपचपशषया मकषम- तादितः असयव विजञानमयादिकोशतयसय सवभतव यकति- माह । जायरदिति। विरारसवरपणानमतसथरपरपचविषय- वासनामयलारसवभतवमसयतयरथः यतः सवपतय पषषमय च । अत‌ एव सथटपरपचरयसयसथानमितयचयत दतयथः।विजञा- नमयादिसमषटयपाधयवचछिननचतनयसय दहिरणयगभल भरति- पायदानी. तदववटपकषितचतनयसय तजकषस निपयति । एतमिति । अतर हतमाह तजोमपति ॥ ४९ ॥

( भागदी° ) हिरणयगभको उपाधिसवरप इसी सथश- रीरक समषटि सथर भषस सकषम होता ह । दसी कारण उस को पकषमशरीर ओर कोशतरय कहत ह । तथा जायत‌ अव‌- | सथाका वसनातक हत, सम ओर सथर, भपशवका ठय‌- | सथान कहा जाताह । इसी शशटशरीरफ वयषटि उपाधि उपहित चतनथको तजस कहत ह ! इसी कारण तजोमय‌ अ- नतःकरण उसका उपाधि ह ॥ ४९ ॥ असथापीय वयषटिः सथलशरीरपकषया शषषमलात‌ समशरीर विजञानमयादिकोशनय जाद सना- मयतवातसवपरः । अत एव सथटशररखयसथान‌- मिति चोचयत । एतौ सरतमतनपौ तदानी स- हपाभिमनोवततिभिः. सषषपमविषयानदमवतः । ^परिविकतमऊ तजसः” इतयादिशवतः ॥ ९५० ॥

= कनय ~ - =

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ससछतरीका-भाषारीकासमत । (५१)

( सणटी° ) वयषटि विजञानमयादिकोशतरय तजससया- पि सकषम शरीरमिति दरशयति । असयापीति । सकषमशरीर- स हतमाह । सथरति । असयापि सवभववहतमाह । जायरदि- ति । विभवचतनयनानभतसशरीरविषयवासनामयलातछम- मितयरथः । जसयव सषमशरीरसय सयखशरीरठयसथानत यकति माह । अत एवति । यथा परवभाजञषरावजञानवततिभिः सष- सयवसथायामानदमनभवतः तथा हिरणयगमतजसावपि छ वसथाया मनोवतिमिवानामयान‌ शबदादिषिषयाननभव- त इति दशयति । एताविति । असमिरथ धरतिरदाहरति । भवि- विकतति । परषिविकत भकत इति भविविकतभष‌ तजपतः तजोनतः करण कारयादिमावन परिणत तदव सथकशरीरादिहीन यसव स तजसः तजोतःकरणसवामीतयरथः ॥ ५० ॥

( म‌।गदी° ) पवौ तजस उपाधिसवरप इती वयषटि भत सकषमशरीरसथरशरीरकी अपकषा अतयनत सम ह। शसी कारण उसको सकषमशरीर आर कोशजय‌ कहत ह । यह‌ सकषम शरीर वपतनामय‌ ह इसको सवम ओर सथरशरीरका कयसथान ऊहत ह । सपि अवसथाय यही हिरणयक ओर तजस दोनो तषम मनकी वततिदरारा सकषम विषया अनभव करत ह । इपर विपषम शतिक परमाण ह कि ^ तनपही सषम पसतका उपभोग करता ह ॥ ५० ॥ ~ म अनापिपमषिषयषटयोसतदपहितम‌तरातमतनसयो- अनदकषततदनचछिनाकाशवचजलाशयनलव-

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( ५२) वदानतसार !

तदरतपरतिधिमबिताकाशवचाभदः । षवमकषमश‌- ` रीरोतपततिः ॥ ५१ ॥

( स° टी° ) इहापि धिजञानमयादिकोशतरयसय समषिह- पसय तदबचछिनसजातमनशव वयषटिषपविजञानमयादिकोशन- यसथ तदवचछिनतजशषचतनयसथ च वनदकषादितददचछिनना- काशादिषतयखनाऽभद दशयति । अवापीति । समि वयषटयपाधयोवनवकषवनराशयजखवचाभदः उपाधिदरयाद- चछिनचतनययोः सतरातपतजपयोरपि वनवषावचछिननाका- शवणनखाशयजठगतपरतिविबाकाशवचामद इतयरथः सषषमश- रीरोतततिपरफरणयपसहरति । एवमिति ॥ ५१ ॥

( भागदी = )जस वन ओर वकष यह‌ परसपर विभिनन नही ह नस वनावचछिनन आकाश वकषावचछिनन आकाश कोष विभिनन नही ३ जस ताटावका ओर जठका कोई भद नही ह जष जगत परतिबिमबित आकाशकी ओर जलाशय क परतिबिमबित आकाशकी कोड विभिननता नही ह इसी भकार तकम शरीरकी समषटि ओर वयषिकी तथा तदपहित हिरणयग ओर तजसी परसपर विभिननता नही ह । दसीभकार सम शरीरकी उयतति ह ॥ ५१ ॥ ` वि सधरलभरतानि त पचीकतानि । पचीकरण त आ- काशादिषचसवकक दविधा सम विभजय तष दश-

॥ भागष पराथमिकान‌ पच भागान‌ परतयक चतरधा ॥ सम विभजय तषा चतरणा भागाना सवसवदविती-

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ससकतदीका-माषारीकासमत ! ८५३)

यदधभाग पारतयजय भागानतष सयोजनम‌ 1 तद- पम‌ “दविधा विधाय चकक चतधा परथम पनः ॥ सवसपतरदवितीयाशरयोजनातपचपचत"§ति॥५२॥ ( स गटी° ) अथदानी सथठशरीरोलनि निरपयितमपः-

कत । सथलभतानि तविति । रदः परवसमदरषमय योत- यति । पदीरतानीति । अरपचीकतसकषमभतापकषया सथरभता- नि पचीकतानीलयरथः । पचीकरणमव परतिपादयित परतिजानी- त । पचीकरणतविति । पचीकरणपकारमवाह। आकाशादीति। अयमथः । सिकाठ सकटमराणयदछवशादीशवसरणयाका- शवायतनोबननानयनायवियासहायभतासरमासमनः सकाशा- दनकरपजातानि तानयपचीकतानि सकषमाणि वयवहारासमथौ । नीति छता तदीयसथौलयापषाया वयवहतभाणिजातधरमा- धमपिकषयव तानयव भतानि पचीकतानि भवति तानिचपतयक दविधयभापवत तषवाकाशादिष दशस भागष भाथमिका- नपचभागानधरतयक चतधौ सम विभजय सवाधभागपारतयागन‌ चतणा पतयक भागातरष सनिवशन पचीकतानि सथानि भरवतीति । असमिननरथ दधसमतिमाह । दविधति ॥ ५२ ॥

( भ‌[ °टी° ) इकठहए आकाश आदिषञचभतोको सथख- भत कहत ई इसी आकाशाआदि पञचभता क मधयत पतयक भतको समान भाग करनस दश १० भाग होत ह तदनत उनही दश भागक पथम‌ पञचमभागको लक पञचभतक स‌ भान चार भाग करक उनही सपण परतयक चार भागक दवि

१.

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(५४) वदानतसार )

तीय अदधको छोडकर ओर चारभतक दवितीया भागक सहित मिकानको पचीकरण कहत ह । इस विषयक परमाण सवरप अनयानय भनथारमभौ ठिखा ह-'"पञचभतक भयकक समान दौ भाग कर फिर उसी पञचभतक भवयक परथम‌ भाग‌ क चार भाग कर दितीय पञचभतक परतयक भथम अश भ- तयक चार भागक भिानको पञचीकरण कहत ह"?॥५२॥

असयापरामाणय नाशङकनीय भिवतकरणशच- तः पचीकरणसयापयपलकषणारथतवात‌ । पचाना पचातमकतव समनऽपितष च वशिषयाच तदवादसतदवादः" इतिनयायन आकाशादिवयपदशः सभवति ॥ «३ ॥

( स°टी° ) पचीकरणसय बिवतकरणमरतिपादकशरतव तरविरोधमाशकय पारहरति । असयापरमाणयमिति । भत- जयसत सषटिपारिषणाथमनयञच शतमपि मतदरयमाभितव ` भतपचकामिपरायण भततरयमषटिपरतिपादनादविरोध इतयरथः । आकाशादीना पचभतानाचतषौ विभकतानामनयोनय भरयका- नपरवशन पचीकताना पचातकलाविशषादाकाशादिवयपद- शो न सयादिवयाशकय पारहरति । पचानामिति । आकाशा- दीना पचाना पचातकसय समानपि तषपचभतष ततदरि- शषानपवशातनामभिवयवहारःसभवतीतयरथः ॥ ५३ ॥ ` (भागयीर ) कहहए पञचीकरणक परमाण विषयकी श नही करनी कयोकि बरिवतकरणकी शरतिस पञचीकरण-

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ससकतरीका-भाषारीकासमत । (५५ )

काभी उख होजाता ह पशचमतक पचातमको हम समान अथात‌ मिषहए होनपर परसक पशभतका अलग अलग बय‌- वहार होता ह इस विषयम नयाय परमाण ह-“भकाशादि पथवभतम अपन अपन अशक आधिकय होनस सव तोका आकाशादि नाम होता ह" ॥ ५३ ॥

तदानीमाकाश शबदोऽभिवयजयत, वायौ शबदसपरशौगअभौ शबदसपशषपाणि, अ- पप शबदसपशहपरसाःपरथिवया शनद- सपशषपरसगनाशच ॥ ५8 ॥

( स षटी? ) तदानीमिति । यदा पचीकतानयाका- शादीनि तदानी सथलन सवकायोसादानसमरथतादाकाशड- वयकतरपण सथितः शबद‌ःअभिनयजयत वयकतो भवतीपयरथः4४

( भा °टी ° ) परचभतकर पञचीकरणक समय आकाश शबदगणः वायम शबद‌ आर सपश, अभिम शबद‌ सपश ओर रप जम शबद सपश रप ओर रस पथवीम शबद‌ सपश रप रक ओर गनध गण परकाशित होतिह ॥ ५९४ ॥ `

एतभयः पञचीकतभयो भतभयो भवःसवमहजन- सतपःसतयमितयतननाभकानाशरपयपरि षिदयमाना- नामतरवितलसतलरसातरतरखातलमदातलपा तालनामकानामधोऽधो विमानाना लोकाना बर वमाणडसय तदनतगतचतरविधसथलशरीराणामनन पानादीनाओतपततिभवति ॥ ५4 ॥

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( ५६ )} वदानतसार ।

(सगटी० ) उकतषयो भतशयः चतदशमवनोखततिपकार दशयवि । एतभय {इति । एतभयो मतषयः समखननतरहला-

| | | | वतीतयथः ॥ ५५ ॥ | | ( भागदी० ) इनही समण पञचीरत आकाशादि भतो | | ऊपर ऊपर विथमान भरछोक मवरटोक सवरछोक महरछोक ` ज- | नोक तपलोक ओर सतयलोक उतवनन होत ह. इनहीस कमस नीच नीच होनवाठ अतठ वितल षत रसात तठातङ

महातर ओर पाता य सपण खोक उलन होत ह। इसी पकार इनपभत सही रहमाणड ओर चार परकार सधरशरीर ओर शरीरक भोजय अननपानदि उखनन होतर ॥ ५५ ॥ चततिधसथलशरीराणि जराधनाणडजसदनोदधि- नाखयानि ॥ जरायजानि जरायभयो जातानि म जषयपशवादीनि । अणडजानि अणडभयो जातानि पकिपतरगादीनि । सवदजानि सवदभयो जातानि यकमरकादीनि । उदविजजानि भमिदधिव जातानि लतावकषादीनि ॥ 48 ॥ ( स°टी° ) चलरविधशरीराणयदिशति । चतविथति।

तानि च यथोदश विदरणोति । जरायभय इति ॥ ५६ ॥ (भारटी °) सधरलगरीरक चार मद ह । जरायज, अ-

पश जदिको जरायज कहत ह । अणड उलनन होनवाल ` -- क

णडज, सपदजः व उदभिव । जराय ऽयनन होनवाठ मनषय |

दसय चतविधशरीराणा च तयोगयावानादीना चोसतिम- 3

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ससछतदीका-भाषाीकासमत । (५७ )

पकषी सरपादिको अणडज कहत ह । सवद (पररीना ) स उसनन होनवाठ यका मशक आदि सवदज कहात ह । पथवीको भदकर‌ उनन होनबाठ बर वकष इतयादिको उदभिज कहत ह ॥५६॥ अचापि चतविधसथलशरीरम‌ ॥ शएकानकङचदधि- विषयतया वनवललाशयवदरा समषटिः वकषवनल- बदधा भयषठिरपि मवति । एततसमषटयपहित चतनय वशौनस विराडिति चोचयत । सरवनरामिमानि-

` तवाहिविध यजमानतवाजच असयषा समषटिः सथल- शरीर अघनविकारतवादननमयकोशः । सथलमोभाय- तनलानारदिति चोचयत ॥ ९७ ॥ ( स °टी ° )पववदरापि समषटिव वयषटिद दशयति । अ-

पीति । चरविधशरीरजातमपि शरीरमिवयकबदधिविषय- तथा वनवतसमषटितव परतयक तततचछरीरविषयतयाऽनकबदि- विषयतात‌ वयषटितव च ठमत इतयथः । अधना भरादिचत- . दशमदनातगतचतविधसथरशरीरसमषटयपहितवतनयसयवशवान- रतापरपयय वराजतव दशयति । एतदिति } तत यकतिमाह । सवनराभिमानिलादिति 1 शवपराणिनिकायषवहमितयमिनवा- शवानरतव विविध नानापरकारण परकाशमानतवा वराजतव रत इतयरथः । असयति । असय विराट‌ चतनयसयषा परवोकता या बरहमा डातिगतचतविधसथकशरीरसमधिरव सथहशरीरमितयरथः। अननविकारतवादिति । अननविकारबाहलयादनमयतवमारमा- चछदकतवातकोशतव सथरशरीरादिविषयपयकतसखदःखभो-

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(५८) वदानतसार )

गायतनलाच रधरकशरीरतवम‌ ददियरथोपठमानवायदसया ` धरत इतयरथः ॥ ५७ ॥ | _ (भाटी) जत वन कषसगहकी समषटि ह ओर सभय ` प वनकी वयषटि ह ओर ताव जठकी समषटि ह ओर जर , ताखावकी वयषटि ह । इसपरकार यहोभी चार परकारक शसश | एक जगह इकढ हए समषटि कहात ह ओर अलम अङग | वयषटि कात ह । इसी सथरशरीरकी समचित उपहित ¦ चतनय सव दहका अभिमानी अनक भकार विराजमान व- | शानर ओर विराटशबदस कहा जाता ह । इस समिरप‌ शधकशरीरको अलक विकार निमितत अचमयकोश कहत ह आर वही समषटि सथलमोगका सथान ह ससकारण | जापरव शबद कहा जाता ह ॥ ५७ ॥ एतदवयषटपदित चतनय विशवहतयचयत । सकषम- शरीराभिमानमपारितयनय सथलशरीरादिगरवष- तवात‌ । असयापयषा वयषटिः सथलशरीरमततविका रतवात‌ अतनमयकोषः ॥ सथरभोगायतनतवात‌ जारदिति चोचयत ॥ ५८ ॥ ` ( स°टी° )चविध सधकशरीर समणयपहित चतनय सपरपचममिधायदानी तदरबषटयपहित चतनयमभिधतत।एतदिति ।

एतषा चतविभशरीराणा या वयिः तचछरीरनयकति; तदपहि- | त चतनय विशव इतयचयत इतयरथः । तच हतमाह । सकषमशरीरामिमानमिति । कमङगिशरीराभिमानमपारितयजय

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ससछतरीका--भाषारीकासमत‌ । (५९)

सथकशरीरष विशय तततससथकशरीरष सरवष परतयकमहमि- यमिमानवचवादविशवखमियरथः । असयापीति । असय विशव चतनयसयापयषा तततचछरीरवयकतिविशषलकषणा वयषटिः सव सथकशरीरमियरथः अतरापयसविकारवाहलयादननमयतवच- तनयाचछादकलातकोशलमिनदियरथोपटभानाधर च कमण. दशयति । अननविकारतादिति ॥ ५८ ॥

( भागदीऽ ) वयषटिरप सथटशरीरस जो उपहित चतनय ह उसको विशवशबदस कहत ह । इसी कारण यह‌ चतनय सषषमशरीरक अभिमानको विना छोडही सथशरीरम भरवश करता ह परवोकत वयषिको सथकशरीर कहा ह इसक अननवि-. कार‌ सवहपको अननमयकोश कहत ह । ओर वही वयषटि सथ ठभोगका सथान ह इसकारण जाथरतशबदस कहा जाता ५८ तदानीमतौ विशववशवानरौ दिगवाताकपरचतो ऽशिभिः कमातरियनवितन ओवादीनदियपञचकन करमाचछबदसपशहपरसगनधाच‌ अथरीनदरोपनदरयम- परजापतिभिःकरमातरियनवितन वागादीनदरियपञच कन करमादरचनादानगमनविषगौननदाजवनदरवत‌- यखशङकराचयतः कमातरियनवितमननोबदधयहङ-

रचितताखयनानतारिनदरियचतषकण कमात‌ सश- यनिशवयादङायचतशि सरवानतान‌ सथल षयानतभवतः । "जागरितसथानो बहिःपरजञः" इतयादिशचतः ॥ ५९ ॥ ।

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(६०) वदानतसार ¦

( सगटी° ) अधना जागरदवसथाया विशवकवानरयोःत‌- तदवताधिषठितभोतादिभिः चपदशभिः करणः शबदादिषिष. ययहणभकार दशयति । तदानीमिति । असमिन धति , सवादयति । नागारतति। जागार सथन यसय स जागारित- सथानः बही रपादौ चकषरादिषाय भजञा यसय स बहिन ५९ | ( भागटी° ) जायत‌ काठम विशव ओर वषानर य. -दोनो दिशा वाय ससय वरण ओर अशिनीकमार इनक रा ऋरणा कियहए कण तवचा चशच मिह ओर धाण कन पचि | ञननदियकरक कमत शबद सश रप रस ओर गनध इन पचि मिषया अनभव करत ह । दतीमकार अभि इनर पि- षण यम‌ ओर‌ बरहमा इनक दवारा तररणा करियहए बाणी पराणि शाद पाय ओर उपसथ इन पाच करममनदयो करकः ऋमत | वाङयगरहण चलना तयाग ओर आननद इन पि बाहय वि- | पयाका अनभव करत ह ओर चनदरमा बहमा शिव ओर गिषण इन चार दवताओक परणा कियहए मन बदधि अहकार ओर चितत दन चार इनदियो क कमस सशय निशवय अहकार ओर‌ चत इन चार सथख बिषयोका अनभव करत ह इस विषयम शतिभ भमाण ह-“जायत‌ अवसथानम विशव ओर वशवानर बालय सथर विषयोका अनभव करत ह"? ॥ ५९ ॥ अनापयनयोशरकबयषटिसिमयषटयोसतदपहितयोवि शववशवानरयोशच वनवकषवततदवचछितनाक!शवनच जटाशयजलकततदरतमतितिमबाकाशवचच वा परव

अ, =

| ॥ ॥

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ससछतटीका-भाषारीकासमत । ( ६१ )

बदभद‌ः । एव‌ पनचीकतपनचभतभयः सथलपरमञचो तपाततः ॥ &० ॥

( स °दी ° ) अनोविशवपशवानरयोनवकचावचछिनाका- शषटन जलाशयगतघरतिषिवाकाशदषटतन च पववदभद सा- धयति। अनरापीति । सथर चोतनिगपसहरति।एवमिति€ «

(भाऽटी० ) जष वन ओर वकषम वनावचछिनन आका- श ओर वकषावचछिनन आकाशम तथा जकाशयम ओर जर म ओर ताखाव भरतिबिमबिति आकाश ओर जटमरतिनिमबित आकाशम कछ भद नही ह तिसीपरकार सथरशरीरकी समषटि ओर वयषिस तथासथलशरीरकी समषटिगत उपहित वशवानर ओर‌ सथलशरीरकी वयषटिमत उपहित विशवकाभी कछ भद नही ह दसपरकार इकड कियहए पञचमतस सथरशरीरकी उतति होती ह ॥ ६० ॥

एतषासथलसकषमकारणशरीररपनचानासमधिर को महानपरपञचो भवति । यथाञबानतरवनाना समषटिरको महाजखाशयः।तदपदितविशववशवान- रादीशवरपयनत चतनयमपि अवानतरवनावचछि- तराकाशवदवानतरजलाशयगतपरतिबिभबिताका- शवचचएकमव ॥ &१ ॥ ( स °टी° ) सथलषषमकारणमपचाना वयषठिभताना भ-

तयक विवकषयाऽवावरपपचतवमभिधायदानी तषा समषटरषक

==

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६२) वदानतसार !

महामरपचतव दशयति । एतषामिति ! वशतभाह । यथ ति । यथा पवसखदिरपछाशायवातरवानाना समषटि; समदा- यबिषकषया एक सहदन भवति ¦ यथा दपीषपतडागा- ¦ यवातरजलाशयाना समषटिः समदाविवकषया एको महाः छाशयो भवति । तथतषा सथरषमकारणावातपचानाम- पि समषटिः सपदायविकषया एको महानपरपचो भवतीतयरथः ! एतदवाऽवातरमहापपचोपहिताना विभरतजसभाजञाना कषान रहिरणयगभीञयाकताना चावातरवनावचछिपनाकाशवदवातर- जलाशयगतमतिविबाकाशवचचाभददतयाह । एतपदितमिति ॥

( यागयी० ) नितषषकार अलग अलग वनो समस एक‌ बडा वन हौ जाताह तथा अरम अलय ताठबोकी समिस एक बडा ताठाब होजाता इसीपकार सथर कारण ओर भकषम शरीर परपञचकी समषटत एक वडा भपञच होजा ताह ज समपण वनादचछिनन आकाश ओर यावत‌ जलाश- यगत भतिविसित आकाश एकी आकाश ह तिसीभरकार स‌- मण भरपञचापचछिन वशवानर) विशव) हिरणयगम, तज, भराजञ ओर दवर यह सव एकी चतनय ह ॥ ६१ ॥

आभया महपरपञचतडपहितचतनयाभया तपतायः पिणडवदविविकत सत‌अवपहित चतनय “सव खदिरहव$तिपदवा- कयवाचयमषति षिविकत सदकयमपिभवति । ( सदी ° ) चतनयपरचयोरभद “सव खमविद बह! इति

^" कःय

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रकतटीका-भाषारीकासमद । (६३ )

शतया विसधमाशकय परिहरति ! आभयामिति । उकतमहः सपच तदवचछिनचतनयारया ततायःपिडवदनयोनयतादातमया- धयासतापननयदवसत शत तदवचछिनचतनय ८“सरवख- लविई हन? इति वाकयसय वाचय भवति । अनयोनयतादा- तमयाधयासरहित सशषठकषय भवतीतयरथः ॥ ६२ ॥

( मावटी० ) जस जरतहए लोहस अभिनन अधि “अयो दहति" इस वाकयका वाचय होता ह ओर‌ पथक‌ शप इस‌ वाकयका रकष‌ होता ह तिसीपरकार महतपचावचछिनन चतनय इस महसपशचस अभिनन होकरः( सव खलविद बह ) दरस वाकयका वाचय होता ह ओर ओर परथक‌ हप होकर दस यहावाशयका लकषय होता ह ॥ ६२ ॥

एव वसतनयवसतवायोपोऽधयारोपः सामानयन परद‌- (शतः । इदानी परतयगातमनि इदमिदमयमारो धथतीति विशष उचयत । तथाच अतिपात सत “ आतपाव जायत पचः इतयादि अत सपसपिचिव सवषतरऽपि परमदशनात‌ पर पष नघ ऽहपव पएो नघरभतयायदभवाच प अलमिति ब‌- दति । चावोकसत “सख बाएष परषोऽतरमयः"~. इतयादि थतः परदीपरशहातसवपध परितयजयापि सव- सथ निरगमदशन‌त‌ सथलोऽह कशोऽहमितयाघन-

भषाचर सथलशरीरामतमति वदति । अपसथवा- ` कः“^त ह पराणाः परजापति समतय कयः" इतयादिः

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( ६% ) वदानतसार !

अतः इनदरियागामभप शरीरचलनाभावतकाणो- ` ह बधिरोह हतयाघनभवाञ इनदरिपाणयालमति' वदति ॥ ६३ ॥ | ( स°टी° ) अधयारोपपरकरणसपहरति । एवमिति। ईशवरचतनय सामानयतो महमपचाधयारोपपरकार समरपच- मभिधायदानी भतयगातनि विशषाधयारोपभरकार दशयितम- | परकरमत । इदानीमितयादिना । अ धयारोपमवाह । इदमिदमि. ति । भरतयकषादिसनिदितसयापतयादिधमिण इदमिद वििरदशः | करियत । हदमिदमितयादषीपता । तथा चातिशथरबदधिसत इद‌- मपतयादिकमवाहम‌ । अय पव एवाहमितयतयतवादयधरममि- गषणालनयधयारोपयतीतय‌ः । अबर शतिमाह । आतवा वाइति । ततर यकतिमाह । सवसमिनिति \ यथा ` सवशरीर ममदशनादातमतवभमः एव सवपनादिशरीरपि ममदशनादास- तवभम‌ इतयथः । अवरानहपमनमवमाचर । पतर इति । एतदप. षया विशिषटवदधिरनयः कथिदधिकारी सवदहमवातमान मनयत इतयाह । चावाकसतविति । अनरापि शरतिमाह । स वा इति । तनादिशरीरसयातमतवाभाव यकति दशयन‌ पवोकताधिकारणः तकाशालवय वलकषणय दशयति । भदीपतगहादिति । दह- सयातमलतवऽभव च पमाणयति । सथोहमिति । ततपयतछ- टः कोपयषिकारी शतियकतयतभयः ईदियाणयातमतिवदति इतयाह । अपर इति. ॥ ६३ ॥

( भागटी° ) इसमकार सपस वसम बह वतनयम ह श

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ससकतदीका-भाषाीकासमत । (६५) अवका आरोपसहप अधयारोप दिखाया । अव दिशष- - हपस जीषचतनयम अधयारोप अथौत‌ कौन कौन मतावर- मबी किप किस वसतको जीवातमा कहत ह सो दिखात ह । अति अजञानी पषष पतरको आतमा कहत ह ओर इस शरति का भमाण दत ह-“आतपाही पतरहपहोकर जनम छता ५ परत यकतिभी आशव ठगकी दत ह -कहतह अपन जि- सभकार भम होता ह परमभी तिकतीभकार ममकषा अनभव होता ह इसकारण पतरहमी आतमा ह इस विषयम जर अन- भव भी ह जत पक पषट होनषर भ पष हयगया ओौर पतरक नषट होनपर ष मषट होगया दसभकार जञान होता ह इषकारण‌ पही आतमा ह” ओर चारवाक मतावरमबी तौ सथरशरीरको आतमा कहत ह ओर इसन धतिका परमाणभी दत ह-अनन- मय‌ रमक विकारयकत यह वरषही आतमा ह" । ओर यह‌ कति दत ह कि “सव पष पतरकामी पतयाग करक जकत इए परमत अपन बचानका उपराय करत ह” ओर इस विषय स अनभव भौ ह. पसा कहत ह कयोकि व पट हम दवर ह"? एता जञान सवसाधारणको होता ह इस कारण सथक शरीरही आतमा ह दर चारषाकमतावलमबी तौ दनदियोक समह‌- को आमा कहत ह ओर इस शिका परमाण दत ह- इनवियोका समह काक समीप जाता ह तव इनदियोक न . होन शरीर कछ वयापार नही कर‌ सकता ह 'इसकारण इ- नवियतमहही आतमा ह ओर यह यकति दत ह भ अनधा हः ष

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{ && ) वदानतसार ।

म बधिर ह इसपरकार जञान सवको होता र इस दनदिय- गणही आता ह” ॥ &३ ॥

अपरथावोकः"'अनयोऽनतर आतमा पराणमय‌ः"'ह तयादिशतः पराणामाव इनदरियचलनायोगा8 अई-

` यशनायावानह पिपासावबइतयादयनभवाचचपराण आतमति बदति । अनयसत चाकः “अनयोनतर आतमा मनोमयः''इतयादिशतः मनसिषठप पराणा- दरथावात‌ अह खङलपवानह विकलपवानितयाय‌- बभवाचच मन आतमति वदति ॥ && ॥ ( सशटी° ) तवोपयततमोऽधिकारी कषिचछरतिभमाणा-

नभवयकिछात‌ पराण एवासतयाह । अपर इति । तती विशिषटोधिकारी कथितसवमतारकढशरतयादिबरानमन एवा- सतयाह । अनयसतिति ॥ ६४ ॥

(भाणटी° ) कोई को$ चावौकमतावरमबी पराणको

आतमा कहत ह ओर दस भतिका भरमाण दत -'भाणमय अनतरातमा शरीरादिति भिनन ३!" ओर मतक सथापनक अथ

ठसी यकति दत ह कि “नितत समय शरीस पराण नही रहता र ` तव इनदरियोक समह कोद किया नही हसनती ह । इस भराणही आतमा र" ओर यह यकति दिखात ह." शधात ष । पिषासातर ह इसपरकार आपणडितपामरपययनतको अनभव होता ह इसकारण भाणही आसमा ह” । कोई कोई चावक-

मतावरमबी मनको आतमा कहत ह ओर इस शरतिका भमाण

(9 व

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ससकतदीका-माषारीकासषमत । ( ६७)

दत ह-“मनोषय अनतरातमा शरीर, इनदरिय ओर पराण इनत भिनन ह " दसकारण मनही आतमा ह । ओर अपन मतकी भाधानयता ओर रकषक अरथ यह यकति दत ह -““निसर समय सन सवमावसथाम होता ह तव पराणादिका अभाव होता ₹। ओर भको यह‌ सकतप ह ओर यह विकलप ह इकार अन- भवभी सवहीक होता ह''पकारण मनही आसा ह ॥६४॥

बोदसत “ अनयोऽनतर आतमा विजञानमयः " इतयादिशचतः कठरभव करणसय शकतय भावात‌ अह कतत अह भोकता इतया ` भवाच बदधिशतमति वदति ॥ &< ॥ ( स°टी° ) उकतयः पचयो विखकषणः कथिदवजञान-

वादी शरतयादिमिरविजञानमासतयाह । बौदधसतविति ॥ &« ॥ | (ागटीर ) बौदमतावरमबी बदधिको आतमा कहत ह ओर इस शतिका भमाण दत ह - “विजञानमय .अनतराता शरीर, पराण ओर‌ मन इनत भिनन ह" ओर यह यकति दतह- ““जिस समय कतताका अभाव होता ह तभही करणकी श- कतिका अभाव होता ह । दसी भतीति ह ओर बदधिक अभा होनपर इनदरियाकी शकतिका अभाव दखनम आता ह । ओर भ कतौ ह म भोकता ह इस पकार अनभवभी आपामर पणडित साधारण सबहीको होता ह इस रकार बदिहीको. आ तमतवसिदध होता ह" ॥ ६५ ॥ |

परामाकरताकिको त “अनयोऽनतर आतमा

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(६८ ) वदानतसार ।

आननदमयः” इतयादिशतः सषप बदधया- दीनामजञान लयदशनात‌ 'अहमजञ' इतया- चन यवाजच अजञानमातमति षदतः ॥ &&

( स °दी° ) रउकतषयोतिरकतौ भाभाकरतारफिकोसवमतो पयोगिशरतयादिसदधावादजञानमासति वदत इतयाह । पराभाक- रताकिकाविति ॥ &8& ॥ ( भागदी° ) भराभाकर ( मीमासक ) ओर ताकिक ( न-

यायिक ) तो दोनो अजञानकोही आतमा कहत ह ओर इकष शरतिका परमाण दत ह--"“अनतरातमा शरीरादिप भिनन ओर आननदमय ह 1 ' ओर इसपरकार यकति भमाण दतह कि (“षपति अवसथाम अजञानम बदधयादिका खय होता ह ओर प मख ह म जञानी ह" इसपरकार अनभव भी यावनभातरको हो ता ह इषकारण अजञानही आतमा ह'" ॥ ६६ ॥

मटसत“'परजञानघनएवाननदमयआतपा” इतयादिशचतः सषपतो परकाशापरकाशषदवा- वात‌ मामह जानामीतयाघयनभवाच अ- जञानोपदहित चतनयमासमति वदति ॥ &७ ॥

( सरटी> ) अनयभटरसवजञानावचछिननचतनयमास- 1ह । भटसतविति । ६७ ॥ ( भा०टी० ) भटरमतावठमबी कोई मीमासक अननान-

समषटदरारा उपहित चतनय अरथात दशवरचतनयकोही आतमा कहत ह ओर ईस शतिका भमाण दत ह-““आतमाही भरजञान- `

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ससछतरीका-पाषादीकासमत । (६५)

वन तथा आननदमय ह '' ओर इसपरकार यकति भरमाणदत ह कि--'(पतिकाठम सवक छीन होनपरभी अजञनोपहित च- तनयकरा परकाश रहता ह ओर म अपनको नही जानता ह रा अनभव होता ह । इसकारण अननानोपित च- तनयही आता ह" ॥ ६७ ॥

अपरो बोदः.असदवदमयआसीत‌"' इ- सयादितः सषपतौ सवीभावादहसपतः स- षपौनासमिलयनथितसय सवभावपरमश- विषयाभवाचच शनयमातमति वहति ॥ ६८ ॥

( स°टी° ) बौदकदशी कथिनछरयादिभिः शनयमा- समति वदतीयाह । अपर इति ॥ &< ॥

( भागदी° ) कोह वौदमतावरमबी शनयकोही `आ समा कहत ह । ओर इस शरतिका रमाण दत ह -“जगत प~ हर असत‌ था” ओर यह यकति दत ह कि-- सषतिकालम बदधयादि सवका अभाव होता र ओर सपतनिस उटकर परष- कोरताजञान होता रक सषिम मरा अभाव शोभ था इस अनभव कारण शलयही आसा ह” ॥ ६८ ॥ एतषा पजयना शनयपयनतानामनातमतवमचय- त। एतरतिपर ताविदिमिशकतष थतिधकतय- भवाभासष पवपवोकतशतियकतयतमकाभसानाः यतरोततरथतियकतयदभवाभसिरातमवाददशनातप- बदीनामनातमलव सपषठमवति ॥ ९६ ६

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(७०) वदानतसार ।

( सगटी° ) अधना परादिशलयपरयतानामातमतभतिषा- दकशरतयादराभासतादवपवमतसयोततरोततरषतवाधयलाचच ह- शयतवजडतवादिहतकदबकशवान।तमतव परसिदधभवति भरति- पादयित भरतिजानीत । एतषामिति । पतरायातमवादिना- मतिमदाधिकारसवाचतततरतिपादितशरयादरपि पवपवसयोतत- रोततरवाधयखादतरादिशनयातानामनासतव भरसिदधमवति परति- जञातमवारथ भरकययति । एतरति ॥ ६९ ॥

( भागदीऽ ) ठीक तौ यह‌ ह। परको आदिल शर पथयनत किसीको आतमा नही कहा जाता ह कयकि पतरादि- कोका अनातमत सपषट माटम होता ३ जो परादिको जसा कह ह ष बड मढ ह उनका पदिठ दिखाया ह शरतिपरमाण यकतिपरमाण ओर अनभवपरमाण य सब उततरोततर दिखाय हए परमाण यकति ओर अनमानदवारा सवका खणडन होजाता ह दसी कारण परवोकत मतावरमबियोन जो पचादिको आला कहा ह सो दीक नही ह॥ ६९ ॥

“(किञच परतयगसथलो अवकषराणो अपना अक- ततो चतनय चिनमाय सत‌ 'इतयादिपरषटशवतिषिथ चात‌ असय‌ पचादिशनयपययनतसय जडसय चत- नयभासयतवन बटादिवदनितयतवात‌ अर परदयति विदरदसभवपराबसयाचच तततचछतियकतयनभवाभा साना षाधिततवाहपि पचरादिशनयपययनतमखिल-

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ससकतरीका-भाषारीकासमत । (७१ )

( सगटी° ) नन पतरादिशनयपरथतानामनासतव सिदध क- सतदयहपतययविषय आसतयाशकय असथढादिनिषधवा- कयजातोषित.'सलयजञानमनतवहन इतयादिविधिवाकयकोरि- बोधित यतसवय जञानानतादवय बजच तदवादहषतययाखबनमिति वटशरतियकयनभवःभरतिपादपितमाहकिचति । अशथटादि- पवटशतिवाकयः पतरादिशनयपरतासमातिरिकतातमसवरपपति- पादनात‌ पतरादीना जडतवादिहतभिरनासतवमिवयरथः । असमि- सरथ भरवखविदरदनभव भमाणयति । अहमिति । पादिशरतया- दीना बलय दशयति । तततदिति । यतःपचरादीना जलादि हतभिरनासमतमतः पतरादिभासक निवयशदधलादिसवषपमवा तमवसवतयथः । नहीद विश यदयतराणामातमखपरतिपादकट- तीनामपरामाणय असथटादिशरतीना परामाणयमिति नहि व दवाकथष फषाविदभामाणय कषावितमामाणयमिति चाशकय ` परतिपादयितम‌ । एव चदतरादिधतीना भामाणयमसथलादिवा- कयानामपरामाणयमिति वपरीतय कि न सयात‌ 1 वदवाकयला- विशषात‌ । किच कषाददरदवाकयानामभामाणय कषाचिदर दवाकयाना परामाणयपरतिपादनारथमिद परकरणमारधमरअतःकथ निय इति चत‌, उचयत । पचादिशतीना सरवथव भामाणय नासतीतयसमाभिन निषिधयत किखसथटादिभवटशरतिसथति नयायविरोधातसवाथ तासरयाभावाततषा सथछारधतीनयायन पपवनिराकरणदवारा सषकषममकषमवसतपदश तासरयमिति एता- पदव परतिपायत । तथाहि धरवमरधती च दरशयतीति विधि-

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[२ (७२) वदानतसार ।

बलादररवधवोररधतीदशन परापत परमसषषहटपाया अरधतयाः भथमककषायामव परतिपततमशकयताखथम चदरजयोतीषहपार- धतीवयचयत ततः चदरभिचा तारकारषतीसयचयत तत इतर तारकामिनना सपततारकातमकारघतीरयचयत तदनतरमितरता- ¦ रकाचतषटयभिनना तारकातरितयातमकसयचयत ततः तनमधय तारकतयचयत ततसततसमीपवरतिनी परमसकषमारधतीतयचयत न चतावततष पचाना वाकयाना परसरविशदारथपतिपादक- तवनाभरामाणयशकय परतिषादयितम‌ । चरित अरतिपततवदयनसारण सोषानकरमवतपवपवनिराकरणदवारा सकषमारधतीपरतिषादन ता- पथय तदवदतरापि अननमयः पराणमयो मनोमयो विजञानमय आन- दमय आतमा वरहयचछ परतिषटति पचछबहमपयवसिताना षच- कोशवाकयानामपि परसपरविरदाथपरतिपततबदयनसारण सो- ` पानकरमवतवपवनिराकरणदरारा परमसषषमपचछवहमपतिपाद- न ततय तसमतसरवष वदवाकयाना साकषायरपरया बादिती- यवसतपरतिपादन तावरयासराणयदपविरोध इति सकषपः ॥७० ॥

(भा नदी ° ) यदि पतरादिको आतमा कहोग तव शरति आदि परमाणोको अतयनत विरोध पडगा कयोकि--५आला सथक नही ह, आतमा इनदरियगण नही ह, भाण नही हमन नही ह, ओर कतता नही ह, परनत कवर चतनयमय सतयसव- द 1 दि ह स रप ह । इतयादि पवर शरतिदरारा परमाण होता ह । पतरादि

शनयपसयनत जक चतनयक भासक हत षटादिकी तरह | - अनितय ह अथात‌ हतवाभास द र जञानियोको मही बह ह

[श

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ससछतरीका-माषाटीकासमत । (७३ )

ईस परकार इद अनमव होता ह इसकारण पतरको आदिल शलय पयनत क पदारथ आतमा नही कहाजासकता । पतरा दिको आतमा कहनपर परवोकत धति, यकति, अनभव, परमा- णका विरोध होगा इसकारण पादिको अनास‌ सपषट माटम होता ह ॥ ७० ॥

अतसतततदरासक नितयञजदबदशकतसतय सवभाव परतयकचवतनयमवातमततवमिति- वदानतविदबभवः । एवमधयारोपः ॥ ७१ ॥

(सणटी °) विशषाधयारोपपरकरणमपस हरति एवमिति ७१ ( भागटी° ) दीक तौ जो परको आदिङ शनय पय

नतका परकाशक ह ओर जो नितय, शदध; सरवजञ, यकत, सय- सवषटप, परयक चतनय ह वही आतमा ह ठसरा वदानतशासच- क जाननवालोका अनभव ह । इतभकार वतप अवससका अधयारोपसवकप अधयारोप यायविशषहपस रखाया ॥७१३॥

अपवादोनाम रजखविषततसय सषसय रजलमत- वत‌ वसतषिवततसयावसतनोऽननानादः परपञचसय वशतमचरतवम‌ । तदकतम‌““सखततवतोऽनयथपरथा विकारहयदीरितः । अततवतोऽनयथापरथाविवतत- इतयदाहतः ॥ ७२ ॥ ( सरी ° ) आसवसतनि पिधयापरपचसय सामानयतो

विशषतशाधयारोपभकार समपचमभिधायदानी तदपवादप

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( ७४) वदानतकचार ।

कार वकतमारभत । अपवादो नामति । असगोदासीन पर मातमवसतनि तदविवततावसतभताजञानादिमिथयापपचसय चिद सतमातरावशषतयाऽवसथानमवापवाद‌ इति वकत पथम लौकिक. । दषटातमाह । रजजडति । रजजसवषटपापारतयागन सरपाकारण भासमानसय रञजविवतसयापवादो नाशो नामाधिषानरजजमा- चतयाऽवसथानवचिदविवतसयाजञानादिभपचसय अपवादो ना- शो नामाचिनमारतनावसथानमियरथः। अचः यथाशवहटपणाव- सथितसय वनोऽनयथामावो दविधामवति पररणामभावो विव- तभावधयति तचच भारणामभावो नाम वसतनो यथारथतः सवसय रप पारयञय सवहपातरापततिः यथा दगधमव सवशवहप पार- | तयजय दधयाकारण परिणमत । विवततभावसत वसततः सव. हपापारतयागन सवहपतरण मिथयाभतीतिः । यथा रजजः सवषपापारतयागन सपाकरण मिथयापरतिमासत । अचर वदाः | त बरहमणि भरपचभानसय परिणामभावो नागीकरियत दगधा- दिवदरकषण विकारिखमरसगादनितयलादिदोषापततः । विवः भावागीकार त नाय दोषः, बहमणि परपचभानसय मिधयालत । विकारलमावात‌। तदकतम‌''अधिषठानावशषो हि नाशःकलपि | तवसतनः" इति ) तसमाचिदिवरतसय भपचसय चिनमावावशषत- यावशथानमवापवाद इति भावः । असििननय बरातरसवाद ` दशयति । तदकतमिति ॥ ७२ ॥

( भाटी ) अब अपवादनयाय दिखात ह । रजजम स पका भम होकर जिस समय वह भम नषट होजाता ह उस स

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न 2

ससकतरीका-भाषादीकासमत । (७५ )

मय ज सरपजञान न होजाय ह तब कवर रजजका जञान रह जाय ह । तिसीपरकार सचिदाननद बरहमम अवसतहप अजञाना दि जड पदाथका भम होकर जिस समथ उस भमका नाश हो जाता ह तव कव वरहममाच अवसथित रहता द कयोकि यह . हप जञानका विष ह जसा अनथानतरम कहा ह-“जो सव- षपफो विदत करक काययको उसादन कर वह विकारी वा पारणामी उपादान कारण काता द जष दध दधिका विकारी वा परिणामी उपादानकारण ह" ओर जौ कारणसवषपका विकार विनाही कर कायका उतपादन कर ह वह उसको विवतत कारण कहत द जस रजज सपक जञानक भरति विवरत छारण ह ॥ ७२ ॥ तथाहि खटचयत यथा हतदरोगायतन चतरविध सथलशरीरजात एतदोगयहपाननपानादिक एत- दाशरयभतयरादिचतदशयवनानि एतदशरयभरत बरहमणडञचतत सरव एतषा कारणहपपञचीकतयत- माञच भवति । एतानि शबदादिविषयसदितानि प शवीकतभतजातानि सकषमशरीरजातञचतत‌ सवम- तषा कारणहपमपओीञतथतमथि भवति एतदः

` जञनम‌ अजञानोपहित चतनयचशवरादिक एतद‌।- धारभतानपहितचतनयषप तरीयनरहममाय भवति आभयामधयारोपापवादायाततवपदाथशोधनम- पि सिदध मवति ।तथाहि । अकञानादिसमषठिः ए-

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(७६ ) वदानतसार ।

तडपडित सवजञतवादि विशिष चतनयम‌ एतदन हित चतनयञचतलय तततायःपिणडवदकतवनावभ।- समन ततपदवाचपारथो मदति एतदषाधयपरिः ताधारभतमवपहित चतनय ततददलकषयारथो भवति ॥ ७३ ॥ ( स°टी ) सामानयतो दशितामपवादपकरिया विकष-

रण भरतिषादयित परतिजानीत । तथाहीति । सथरपषषमकाः रणमपरपचानायवततिपरीपयन ततततकारणरपणाषसथानततवा पवाद शतयाह । रएतदधोगायतनमिति । एतशशथलशरीर सवा भयवहलाडसहित सवकारणमतपचीरतष पचमषामतष ीन सततनमाजतयावशिषयत तानि च पचीकतानि भतानि शबदा दिसहितानि सपतदशावयवातसकटिगशरीशणि च शवकारण | षवपचीकतभतष खीनानि भरवति तानयपचीकतानि भताति सतवादिगणसहितानि खकारणकनानोपहितचतनय लीनानि । भवति तचचाजञान तडपहितचतनय सरवजञतवादिविशिषटच शवाधाः रभतानपहितचतनथ छीन भवति चतनयमवावशिषयत शव- ' थः । फकितिमाह । आशयामिति । तचवपदारथशोधनपरकार १ तिजानीत । तथाहीति । अजञान तदधचछिननशवरचतनय तद | नपहितचतनय चततरय तततायपिडवदनयोनयन तादासया- धयासनकवन परतीयमान सत‌ तसदवाचयारथो भवतीवयरथः। तपदलकषयारथम।ह । एतदपाधीति । अजञानावचछनषर

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ससकतदीका-माषारीकासमत । ( ७७ )

चतनययोराधारमत यदनपहित चतनय ततताभया विविकत सदधदविवकषया ततपदलकषयारथो मवतीवयथः ॥ ७३ ॥

( भागदी2 ) नमक नषट होनपर जिरषकार यह समपण मपशच अपन २ कारणप लीन होकर वहमहपम अवसथित होता ह सो दिखात ह ।- “सथकभोगका सथानसवशप चार भकार सथरशरीर आर मोगय अननपानादि इन सबक आ- धारसवहप मोकको आदिर चौदह छोक ओर नही शवक वततमान सथानसवरप बललाणड यह समपण पचीकत पशचमहा- भत मातर ह । शबद सयशौदि विषयो सहित यह सपण पी कत पशवभत ओर सषषपशरीर यह सब अपन अपन कारण- रप अपथचीकत पञवमहाभतमा ह सव आदि गणयकत यह समपण अपचीकत पशवमहाभत उवततिक उषट कमत अरथा- त‌ पथिवी जरस जक अभिस अभि वायतत वाय आकाशत अर आकाश अजञान इसपरकार कारणरप अजञानोपहित करणप चतनय मातर ह । यही अजञान ओर अजञानोपशित चतनयरप दशपरको आदिल सबही उकषक आधारभत अन- पहित चतनयषप तरीय बह ह पकत अधयारोप ओर अप‌- वाद कदी रीतिक दवारा “'तत‌” ओर “तवम‌” इन दोनो पदाथोका शोधन (सङगति ) दीक होती र अजञानादिकी सम-

` षि अथात‌ अजञानः सषषमशरीर ओर सथकशरीरकी समि तदपहित चतनय अथात‌ ईशवर, हिरणयगम ओर विराट च- तमप, अर अनपहित चतनय।तरीय जह चतनय, यह तीन‌

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( ७८ ) वदानतसार ।

परकारक पदाथ दश(तपहए) रोहकौ तरह अतिरकतहप^तत‌ इस पदक वाचय होत ह ओर अजञानादिकी समषटिहप उपाधि ओर तदपहित ` ईषरादि चतनयका आधारभत तरीयतरहच तनय “'तत‌'' पदका रकषयाथ होता ह ॥ ७३ ॥ |

अनजञानादिभयषठिः ददपहितारपकञतवादिषिशिष- चतनयम‌ एतदजपहित चतनयञचवहछय तपतायमपि णडवदकतषन यासषमान तवपदवाचयो भवति । एतः दपाधयपरिताधारभतववपहित परतयगाननद तरी य चतनय तवपदछकतयारथो मवति ॥ ७४

स दी ° ) वपदवाचयारथमाह । अङगानीति । वय भतपदजञानमतःकरण तदवचछिनन जीवचतनय तदनपरहित च तनय चतय तपताथःपिडवसरसपरतादसमयाधयाभनामदवि वकषया तषदवाचयाथो मवतीतयथः रकषयाथमाह । एतदपाः । धीति । अतःकरणोपहितचतनयसयाधारभतयदतपहित भरवयगा समानद तरीय चतनय ववपदलकषयाथो भवतीदथः ॥ ७४ ॥

( भागयी० ) अजञानादिकी वयषटि अरथात‌ अजञानः घः कषमशरीर ओर सथरशरीर तदपहितचतनय अरथात‌ परन | तजस ओर विशच तथा अनपहत चतनथ अरथात‌ तरीय व चतनय, य तीनो तप लोहपिणडकी तरह अभिननहष “तवम‌” पदकर वाचय होत ह तथा अजञानादिकी वयषटि भः | परान आदि चतनयका आधारसवहप अनपहित आननदहप त" रीयनरहचतनय ““तवम‌ दस पदका कयाथ होता ह ॥७४॥

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सरछतीका-भाषाीकासमत । (७९ )

अथ महावकयारथो वणयत । इद ततवमसि वाकय समबनधयण अखणडारथबोधक भवति । समबनध- जय नाम‌ पदयोः सामानाधिकरणय पदाथयोरवि- शषणविशषयम‌ःवः परतयगातपपदाथयोटकषयलकष- भवयति । यदकतम‌ “सामानाधिकरणय च विः शषणरवशषयताखकयलकषणदमबनयःपद‌थ,परतय- गालमनाम‌'' इति ॥ ७५ ॥ ( स गटी° ) पदाथमभिधाय वाकयारथमाह । अथति।नन

जीवशवरयोः किचिजजञतवसरवजञवादिविशिषटयोरयतविलकषण- ` योः तचयमशयादिमहावाकयानि परसपरविशदाथषरतिपादकानि कथमखडकरस बहन परतिपादयतीवयाशकय साकषादकयपरतिषा-

. दकतवामाकपि लकषणया सवषजयणाखडकाथ परतिपादथती- सयाह । इदमिति । सवधतरयसवषटपमाह । सबधतरयमिति । पद- पदाथपतयगातमनासवधजयसदराव वधसमतिमाह । यदकतमिति ।

( भाशटीऽ ) अव महावाकयकर अरथका विचार कर- त ह "ततवमसि" यह वाकय तीन पकार समबनधक दरा रा अखड बह चतनयकरा बोधक होता ह समबनध जय कहत ह-पहछा सामानाधिकरणय) दसरा विशपयविशषणभाव, ती- सारा टकषयलकषणभावः “^तत‌"' ओर “तम‌” इनदोनो षदो की एक‌ अधिकरणम अवसथिति होनपर सामानाधिकरणय समबनध होता द दोनो पदाका परसपर विरषयविशषणरप समबनधको विशषयविशषणभाव करहतह 1 ओर परतयगा-

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(८० ) ` वदानतसार ।

तमा लकषय ओर दोनो षद‌ ठशचण इस परकारक समबनधको लकषयलकषणभाव समबनध कहत ह अनथानतरम कहा भी ह-““सामानाधिकरणय) विशवयविशषणभाव ओर रकषयल- कषण भाव, गरह तीन परकारका समबनध ह 1 ॥ ७५॥ समानाधिकरणयसमबनधसतावत‌ यथा सोऽय दव- _ दतत इति वाकय ततफालषिशिषदवदततवाचकश- \ ` दसय एततकाटविशिषव।चकायशबदसथ च एक. । समिनदवदततपिणड तातपययसमबनधः । तथा च

, “तचवपरसि” वाकयऽपि परोकषतवादिविशिषच

~~~

| & ` तनयकाचकतचछनदसयाऽपरोकषतवादिविशिषट-वत- `

। 8 मिततष‌ अपरोकषवकिचिञञलादिपशिषटय तपदपरवरतिनिमिर

नयवाचक तवपदसय चकसमिन वचतनय तातप- सथसमबनथः ॥ ७६ ॥ ( स°टी ° पदयोः सामानाधिकरणयम‌ उदारणनिषठ क- ¦

तवा परदशयति । पषामानाधिकरणयभिति । भिननपहिनि- ` मिततयोः शबदयोरकसमिचरथ परवततिः सामानाधिरणय ततर | | सोय दवदतत इति वाकय स इति ततकाठतदशवशिषटय स शबदसय परवततिनिमिततभ‌ अयमिति एततकाठतदशपशिषटवमरय- | बदसय परवततिनिमितत यथा च भिननपरवतिनिमिततयोः सोय | | शबदयोरकसमिन‌ दवदतपिड तासथ सवधःसामानाधिकरणय मितयथः । उकतमथ दाटीतिक योजयति।तथाचति।तथा तच- मभीति वाकपि परोकषतवसरवजञतादिवशिषटय ततपदपततिनि

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ससकतरीका-भाषारीकासमत । (८३ ) तथा च भिपवततिनिमिततयोः तवपदयोरकसमनय ता- सय सवथः सामानाधिकरणयमितयरथः ॥ ७६ ॥

`. ( भागदी> ) अव सामानाधिकरणय समबनध दिखला- त ह । जस “'सोऽय दवदततः” इसवाकयम “सः? शबद पट दखीहदई वसतका बोध होताह ओर ‹ अयम‌" शबदस वरतमान टट वतका बोध होता ह ओर दोन शबदारथोका एक दवदतत वयकतिम बोध होता र । इसी भकार "तवमि" इस वाकयम भी अमरतयकच चतनयका बोधक “तत‌” शबद ह ओर परतयकष चत- नयक बोधका “तलम‌” शबद ह इन दोनो शबदारथोका एक चत- नयमय बहम तातपय ह।यही सामानाधिकरणय समबनधह७६॥ विशषणविशषयभावसमबनधसत यथा ततरव वाकय सशबदाथ-ततकारविशिषदवदततसयाय-- शबदारथ ततकारषिशिषईवदततसय चानयोनयभदवयावत- कतया विशषणविरषयभाकः । तथाथापि बाकषय ततपदाथपरोकषतवादिषिशिषटवतनयसय तवपदारथा- परोकषतवादिविशिषटवतनयसय चानयोनयभदवया- वततकतथा विशषणविशषयभावः ॥ ७७॥ ( सनटी°) विशषणविशषयमावरसवभसवहपमाह । वि- शषणति। वयावपक विशषण वयावरतय विशषयम‌ । तथा च तोय दवदततः” इति वाकय एवायशबदवाचयो योषावतकल- ` तदशवपविशिषटो दवदततपिडः अथ स इति तचछबदवाचया- ततकाठतदशविशिषटदवदततपिडादिननो नति यदा ~

९. विरिषटवदततिडादिननौ नति यदा ॥# ` +

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(८२) वदानतषार ।

तदा तचछगदाथसयायशबदवाचयारथनिषटमदवयावतकतया विश-

णतवम‌ अयशबदारथसय वयादतयतादवकषयल यदा च स इ- ति तचछबदवाचयः ततकारतदशविशिषटो दवदततपिडः स अय‌- भितीदशनदवाचयादततकारतदशनधविशिशद समादवदततपि-

डाञच भिदयत इति यदा परतपयत तदायशबदवाचयसय तचछ-

वदारथनिषठमदवयावरकतया विशषणतवतचछनद‌थसय वयाव-

इकलवाषविशषयल तथा चायमव सः स एवायमिति अनयोनय-

मदवयावरतकतया सोऽयशबदारथयोः परसपरविशषणविशषय‌- भाव इतयरथः । उकत विशषणविशषयभाव दारशतिक योजयति ।

तथातरापीति । इहापि तवमसीति दाकषि सषदवाचय यदपः सोकचतव किचिजजञलादिविशिषट तसदवाचयातसरवजञतवादिवि-

शिषटचतनयाच भियत इति यदा भतीयत तदा तचछबदाथसय |

सपदारथनिषटमदवयावतकतया विशषणत पदारथसय वया

बतयतात‌ विशषयतवयदा च तसदवाचपयतसवजञवादिवि- `

शिषटवतनय ववपदवाचयारकिचिजञञतवादिविशिषटचतनयान भित‌ इति यदा भतीयत तदा लषदारथसय ततदाथनिषठमद- ¦

वयावतकतन विशषणतव तसदाथसय भयावतयतवात‌ विश | |

पलव तथा च ख तदसि तखमसीति तरपदाथयोः परसर । भदवयावतकसवन परसपर विशषणविशषयभाव इतयथः ॥७७॥

( भाऽटी° ) अब विशषविशषणभाव समबनध दिख- । कात ह । नस-पहट क दए “सोऽय दवदततः? इस वा- | कथम “ सः" पदका अथ पहठ दखी हई वयकतिका बो |

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सछतरीका-भाषारीकासमत । ( <३ ) धक होताह ओर “अयम‌” पदका अरथवतमान कालम ₹- गोचर वसनका बोधक होता ह ओर इन दोनो षदो अ- शोका परसपर वरिशषयविरषणदप समबनध ह कयोकि ए- कही वयकतिम‌ दोनो पदोक अरथोका तावयय अभिचररपत भाम होता ह । तिसी भकार ““तवमि? इस वाकयम भी ^ तत‌" ¶दका अरथ अभयकष चतनय ओर “तम षदका अ- थ भरलयकष चतनय ह इन दोनो पक अथोका परसर दि शषयविशषणभाव‌ ममबनध ह कयोकि दोनो पदोक अरथा एक वशम अभिननरपस तासय माटम होता ह ॥ ७७ ॥

कषयलकषणभ‌वसमबनधसत यथा ततव सशबदाथ- शबदयोसतदथयोवाषिरदततकाटततकारषिशिष- तवपररतयागन अविरददवदततन सष लकयलकषण- भविः । तथतरापि वयि तचछपदयोसतदथयोवा विशदपरोकषतवापरोकषवादिविरिषटखपरितयागना- विरदवतनयन सह रकयलकषणभावः । यमव भागलकषणचयचयत ॥ ७८ ॥ ( सगटी °) कमपरापत ठकषयरकषणभावरवधलवह निर

पयितमाह । लकषयलकषणति । अपताधारणधभतिपादक बा- कष ठकषणवाकषय तसरतिपायमवशिषट वसत रकषय तथाच सोय दवदनदयपमनव वाकय सोऽशषदयोः तदथयोवा वि रदततकारतदशततकाकतदशविशिषतवपारहारणाविरदरवदन- १िडिनसह ररयरकषणमावसवथ इतयथः । उकतम ा-

(न " "च.

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(८) वदानतसार ।

तिक योजयति । तथारापीति । इहावि तखपदयौसतदथ-

योरवा विरदपरोकषतवापरोकषतवादिविशिषटववपारतयागन तचछ- पदाऽया तदथा वा रकषयाऽविरदचतनयन सह‌ तपदयो- ठकषयलकषणभावरवध हतयरथः । अतरतचवपदयोः तदथयोशव सय‌-

कतविशदशयोशचणलम‌ असडचतनयशय रकषयतवमिति भा-

वः 1 नन सखमसयादिवाकयाना लकषयलकषणमावसवधपरसकाः

रण चतनधबोधकववमितयकतम‌ अनयच त शासर तषा वा-

कयाना भागलकषणयव चतनयवोधकस परतिपायप ठचच

मसयादिवाकयष ठकषणाभागलकषणवयादिविधमाशकय सजञा- भदो न वसतमद इतयाह । दयमवति । तचवमरयादिवायाना

विरदाशपरितयागनाविरदधवतनयमाजवोधकसवमव भागटशच-

णतयचयत‌ इतयरथः 1 ७८ ॥ ।

( भणडीर ) अव लकषयलकषणभाव समबनध दिखराति

ह-जस पद कटहय “सोऽय दवदततः इसत वाकयम “स

पदका अथ परवकारम दतव ह ओर““अयम'? पदका अरथ वततमानकाटम दषट र इन परसपर विशद दोनो अरथोका

तयाग करक कवर एक दवदतत वयकतिही रकषय होता ह ओर -

५५स‌; अयम‌'' य दोनो पद लकषण होत ह इसकारण . टकषयलकषणभाव समबनध ३। तिसीपरकार (तचवमसि"ः इस वाकयम भी “ततर पदका अथ अपरतयकषख ओर ““वम‌ पदका अथ परतयकषतव ह । इन परसपर विरदध दोनो अथो- का सयाग करक कवर एक अविरदध चतनय रकषय हयता ह

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ससकतरीका-भाषारीकासमत । (८५) - स ओर “'तत‌-खम‌"' पद लकषण होत ह इसको शारकार

भागलकषणा समबनध‌ कहत ह ॥ ७८ ॥ | असमिन वाकय नीलशतपमिति वाकयवदरा-

कयारथो न सदगचछत । तञ नीलपदाथनीखयणसय‌ उतपरपदारथोयलदरभयसय च शदधपदादिवया- वततकतयाऽनयोनयविशषयषिशषणदपससगसया- नयतरविशिषटसयानयतरसय वा तदकयसय वाकया तवादगीकरण परमाणानतरमिरोषाभावादराकथाथः सङगचछत।अ द ततपदाथपरोकषतवादिविरिषटव- नयसय तवमपदाथापरोकषवादिविशिषटचतनयसय चानयोनयभदवयावततकतया विशषणविशषयभा- वसससय अनयतरविशिषटसयानयतरसय वा तद- कयसय वाकयारथवादगीकार परतयकषादिपमाणविरो- ` धादराकयारथो न सङगचछत ॥ ७९ ॥ ( सगटी ° ) नन यथा नीरोलमिति वाकय नीरतवविशि-

शनीरगणसय उकरलविशिषटोररवयसय च सववयतिरकत- ` शङकादिगणातरपरादि दरवया तरबयावततकसवन विशषणविशषय‌- भावनिरपिततदधिचससषगसय नीटयणशिषटवसय वा षाकया- थव तथहापि ततवभसयादिवारय तसदारथसय परोकषलादिवि- शिषशवरचतनयसय ववपदारथयापरोकषतवादिविशिषटजीवचतनय‌- सयचानयोनयभदगयावतकतया पिशषणविशषयभतसरषजञव- किचिञजञतवोभयनिरपितससगो वा सरवजञवादिविशिषटसय `

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(८६ ) वदानतसार ।

किचिजजञतवादिविशिषटन सरकय वा वाकयारथो भवलि- तयाशकय दषटातदारटतिकयोरवषमयाचवमितयाह‌ असमिननिसा- दिना 1 असमिशचिति । असमिसतवमसीति वाक नीलो- तटमितयादिपाकयवतससरगो वा विशिषटो वा पाकथाथन सग- चछत इतयथः । नीरोलङमिति वाकयसय ससगवरिषटयारथपति- पादकखकलपन विरोधाभाव दशयति । ततर चिति । नीलव खपदारथयोगणगणिनोरविषणविशषयभावससगसय नीटमणवि- शिषटोवलयोरकयसय वा वाकयारथतवागीकार परतयकषादिभ‌- मारणातरविरोधाभावातततर तथा सगचछत दति भावः । तच‌- मसीतिवाकय त तचवपदारथयोः किचिञजञवादिविशिषटजीवच-, तनयसय सवजञतवादिविशिषटचतनयसय चानयोनयविशषण- विशषयभावससगसय तदभयविशिषटचतनयकयसय गावाकथा- थतवागीकार परतयकषादिपरमाणातरविरौधायवशसादरषमय द‌

शयति । अचर विति ॥ ७९ ॥ ( भागटी° ) “नीखयटम‌"” इस वाकयस जसा वा-

कयाथ होता रः तिस परकार “तमसि दस वाकयका वाकयाथ सङगत नही होता ह शयक ““ नीटमखटम‌'! इष वाकय म नीर पदका अरथ नीटगण ह ओर उसर पदका अरथ उतपर दरवय ह यद दोनो शङकखादि गण ओर धटषटादि- वयक वयावरतक ह इस कारण परसपर वपिशषयविशषणभाव समबनध अथवा एककी दसरक सग वाकयारथसङगति होती ह तिस परकार “ ततवमसि! इस वाकय सवजञव ओर कििजजञ

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ससकतटीका-भापारीकासमत } ( ८७ )

खम भरलयकषादि पमाणका विसष होनष “'नीटमयलम‌'” इ- सक वाकयारथकी तरह “ततवमसि? इसका वाकयारथ सङगत नही होता ह ॥ ७९ ॥ अर त गङगाया वोषः परतिवसतीतिवजजहकषणा न सदचछत ) ततर त गङाघोषयोराधाराधयभाव- लकषणसय वाकषयाधसयाशषतो विरदसवादराचयाथ- मशषतः परितयजय ततघमबनधितीरलकषणाया य- तातवानहछकषणा सङगचछत । अच त परोकषतवाप- रोकषतवादिविशिषचतनयकतवहपसय वाकयाथ सय भागमनि षिरोधादधागानतरमपरितयनयानयर- कषणाया अथकततवानजहछकषणा न सङगचछत॥८०॥ ( सगटी० ) नत तमसयादिवाकयमखडरथ कथ बो .

धयति जहहकषणया वा किमजहदकषणया आदहोखिनहद- जहदकषणयति तरिधा विकलपः । आय दषणमाह । अर ति ति । ततवमसीतिवाकय जदकषणा न सगचछत इतयनवयः \ तदव दशित जहषकषणाया उदाहरण तावदाह \ भगाया- मिति । मानानतरविरोष त मखपारथसयापाशयह सयारथना- विनाभत भरतिककषणषयत' इति वचनादरगाया ` षोषवलास- भवदरगाया घोष इति वाकयसय गखयाथविरोध सति य- षयाथ परितयजय लकषणया वरया ततसमधिनि तीर षोषाव- सथानपतिषादनातततर जहदकषणागीकारो यजयत इतयाह । ततर लिति । ततर त गगायोषयोराधारापयभावलकषणा सवथा प-

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(<< ) वदानतसार ।

रितयजयतयथः । तचछमसीति व कय पाकभतिजञात जहकषणा- सभवमाविषकरोति । अतर सिति 1 त शबदः पवषमदरषमय यो- तयति । तततवमसीति वाकय परोकषलापसकषतविशिषटवतनय- कतवठकषणसय वाकयाथसय विरोधामवाससोकचलवापरोकषव- परतिपादक विरोधाचतनयकल विरोधाभावाघगाघो- षादिवाकयवतसवातमना यखयारथपरतयागाततमवाजहकषणा न समवतीतयथः । ततर हतमाह । भागातरमिति । विश- योः परोकषतवापरोकषवयरकलवामवन तसरितयागपि चतनय‌- भागसयकतव विरोधाभावात‌ लागो न यजयत इयरथः ॥८७॥

( भागटी ) जस “गङकाया घोषः परतिषसति'" इ वाकयभ जहतसवारथलकषणा वतित वाकयारथङगत होता ह, तिस भकार “ तमसि `? दस वाकयफा जहसछारथल- कषणा दवारा वाकयारथ सङगत नही होता ह कयोकि “गङगाया वोषः परतिवसति दस वाकयम भगीरथसथखातावचछिनन जलपरषाहरप गङगा ओर घोष ( आभीरी ) इनका आ- धाराधयभाव असमभव होनस वाकयारथ बाधित होता ह दस कारण विरोष दर करक अभ तासथकी अनपपतति होनष गङगा पदका शकया जो भगीरथरथखातावचछिनन जल- वाह उसका परितयाग कफ लकषणादरारा गङगाक समीप- वरती गङगातीरम गङगापदका अरथ यकतिदारा कलपना किया जाता । इस भकार शबदकरा मखय अथ परितयाग करक अनय अधका सवीकार करना रकषणा अरथात‌ जहतसवाथलकषणा

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ससकतरीका-भाषारीकासमत । (८२)

होती । तिस भकार “ ततवमसि 1? ईस वाकयम भतयकष ओर अपरयकष इन दोनोक रकयसवप वाकयारथ कोई विरोध नहीर कवर भरतयकष ओर अपतयकषको परतिपादक अश वि- रोध ह! सौ शकयाथको पशतयाग कर लकषया सवीकार नही करत । दसी कारण “ तमसि ›› इस वाकयम अजह‌- तसवाथलकषणा सङगत नही होतीर ॥ ८० ॥ न च गहधापद सवाथपरितयागन तीरपदाध यथा लकषयति तथा ततपद तवषद बा वाचयाथपरितयाग- न‌ तवपदारथ ततपदारथ वा बोधयत तत‌ तोऽजदट- कषणा न सङगचछत इति वाचयम‌। तञ तीरपदाशचव- णन तदरथापरतीतौ लकषणय। ततपतीतयपकषायाम- पि तचवपदयोः शरयमाणतन तदथपरतीतौ लकष

` णया पनः अनयतरपदनानयतरपदाथपरतीतयपकष(- भावात‌ । शरतवाकयसय यखयाथवियध स खयाथसमबधिनयशचतपद(य लकषणति सषजनपर- सिदधम‌ ॥ ८१ ॥ ( सगटी° ) नन यथा गगाया घोषः परतिवसतीति वाकप

गगापद भरवाहटकषणसवाथ परितयजय सवसरबधितीरपदाभ क- कषयति, तथा तमसतीति वाकय तसद सवाथ परोकषखवि- शिषट परितयजय जीवचतनय कषयत एव तवपदमपि सवाय किचिञजञवादिविशिषटपरितयजयशवसचतनय वा रकषयत त‌- समाजहकषणव भवतीतयाशकय निराकरोति । न चति । नि-

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(९०) वदानतसार ।

राकरणपरकारमवाह । ततरति । तथा च ममाय घोष इतयतर शरतवाकयारथसय गगाघोषयोराधारषयमावरसवधसय विरोध ष‌. ति शरयमाण गगापद सवारथपारतयागन तीरपदाश रकषयदीति यकत गगापदारथसय तीरपदारथमतीतिसागषववादिरतशयमाण‌ तखपदयोगखयतयव तदरथसरबकञयकरिचिजकञतादिविशिषटभ- तीतौ सतयामपि लकषणया तसखदन सपदारथपतीतयतकषाभा- वाचवपदन तसदारथपतीसयपकषाभावाच मखयारथ समति ल- कषणाया अनयाययलानजहदकषणा न सभवतीवयरथः ॥ ८१ ॥ ( भागटी ) जस मङगापदका वाचयारथ परितयागकरक

छकषणादमारा तीर अरथ रहण करिया जाताह तिसीरकार ल- कषणादवारा ततपदका वाचयारथ परितयाग करक ववषदाथ- म अथवा तवपदका शकयारथ परतयाग करक ततपदाथ- भ रकषित होजाय । तव तौ "तवमसि" दाकयम भी जह- तसवाथ लकषणा सङगत होजायगी ! सो दीक नहीर कयोकि “गगाया घोषः?” इस वाकयम तीरशबदका उचचारण नहर इसकारण तीर अरथकी अपकषा करक जहतसवारथलकषणास- जगत होतीर । परनत “ तवमसि '” इसवाकयत “तत‌ ओर “तवम‌ "यह दोनो पदारथ यकत ह ओर दोनौक अरथ परसिदध ट इस कारण यहा ठकषणादरारा अनय पदको अनयतर अरथः की आवशयकता नही ह दस कारण ““ ततवमसि 7" वाकयम जदतसवाथलकषणा असङगत होती ह कारण कि, जो को वाकय सना जातार उस वासयका मखय अरथ समञचन वरि-

८५१" ^ "°

9 भ

1६.

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1.

| सरछतटीका-भाषाटीकासमत। (९१ )

रोध अव, तौ वहा उस पषय अथक सवधी, नही सनह पदाथम उस मखय अथकी रकषणा करणा, यह बात तौ सव लोकम परसिद ह ॥ ८१ ॥ 8

अनर शोणो धावतीति वाकषयवदजदछकषणापि न स- | दचछत । ततर शोणगणममनलकषणसय वाकयाथ-

सय विहदधतवाततदपरितयागन तदाशचरयाशचादिलकषः णाया तदविरोधपरिहारसमभवादजदहकषणा समभ- वति अ त परोकषतवापरोकषतवादिविशिषटचतनयक- तवसय वाकयारथसय विशदचवाततदपारितयागन त- तछमबनधिनो यसय कसय विदथसय रकषिततवऽपि- तदविरोधाऽपरितयागादजददकषणापि न समम

| तयव ॥ ८२ ॥ | ( स टी ) दवितीय पकष दषयति अलकषणापि न सभ. । वतीतयाह ¦ अच शोणो धावतीति) अतर तवमसीति वाकय । शोणो धावतीपि वाकयवत‌ अजदकषणापि न सभवतीतय-

नवयः] कत दसयत आह । ततरति । ततर शोणो धावतीतयादिः वाकय शोणगणसय गमनासभवन वाकयसय मखयारथविरोष ` सति शरयमाणशोणपद सवाथापरितयागन सवाशरयमशवादिक छ- कषयतीति यकतम । अतर विति । अनर तचवमसयादिवाकय त-` सपदारथसथ परोकषलादिविशिषटवतनयकतवलकषणसय पखय- ` वाकयारथसय विरदतवासरोकषखापरोकषवायपारतयागन ततत--

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(९२ ) वदानतसार 1

दविशिषटचतनयरकषणारथसय ठकषितसपि तदविसोधपरिहाराभा- वादजहटकषणा न सभवतीतयथः ॥ <२ ॥

(भागटी° ) ओर “ शोणो धावति? दम वाकयम जिस भकरार अनजहसवाथ रकषणा सङगत होती ह तिसभकार “ततवमसि' ' वाकयम अजहससवाथलकषणा भी सगत नही ह । कयोकि “शोणो धावति” दसवाकयभ शोण ( ाङरग ) गणक गमनकरिया वाधित ह दसर कारण शोणपद शकयाथ- को विना परितयाग‌ करक आथीत‌ रकतिम अरथसहित त णादरारा शोणगणविशिषट अशवादिकम रकषित होता ह तव गमनकरियाका विरोध नह होता ह सी कारण (शरोणो धावति” इसत वाकयम अनहतसवाथलकषणा सङगत होती ह । परनत“ तमसि "” इस वाकयम भयशच ओर अपयकष चतनय परतयकच खप वाकयाधय परतयकष ओर अपरतयकष पतिपादक अशक विरोधक कारण विरदध अका विना

` पारतयाग कर रकषणा दवारा उका समबनधी जो कोई अध रकषित होकर विरोध दर नही होता ह दसकरारण अनह -ससवाथरकषणा असगत ह ॥ <२ ॥ न च ततपद तवमपद वा सवाथविरदाशपरितया- गनाशानतरसदित ततपदारथ सपदाथ वा लकष- यत।अतः कथ परकारानतरण भागलकषणाङगीकरण- ) मिति ाचयम‌। एकन पदन सवारथाशपदारथानतरोत ॥॥ -भयलकषणाया असमभवात‌. पदानतरण तदरथपरती-

नम ध धर 0

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ससछतरीका-भाषारीकासमत \ (९३ )

तौ लकषणया पनरनयतरपदारथपरतीतयपकषाभा- वाञच ॥ <३ \ ( सनटी< ) नन तद सवाथ. विरदढपरोकषतवादिधरम

परितयजयाविरदधचतनयाशापारतयागन तवपदाथ किचिजजञ- तवादिविशिषट जीवचतनय ठकषयत ववपद वा सवारथविरदपरो- कषलादिधरभ परितयजयाविरदचतनयाशपारतयागन तदाथ सवजञतवादिविशिषटमीशवरचतनथ रकषयत कि भागलशकषणागी- कारणताशकय निराकरोति । नचति । एकन तवदन तवपदन वा सवारथौशपारतयागषदारथानतरसवीकारोभयलकषणा- सभवादिवयरथः । अजहकषणासभव हततरमाह‌ । पदातरण- ति । तसदन सषदन वा तततदथपतीतौ सतया रकषणया पनर नयतरसयानयतरभतीतयपकषामावादितयथः । अतः पार शषा ॥ <३ ॥

( भागटी० ) ओर यह मी नही सकत कि “"तत‌"वा “तपर पदारथका सवसवविरद अरथाश पारतयाग करक अ- विरदध अथक सहित (“तत‌ वा “तम‌ पदका अरथ कशचित‌ होकर भागलकषणाका सवीकार करना भी निषफढ ह । कयोफ एक पदक दवारा सवीय अविशद अशका परितयाग ओर अनय पदारथ इन दोना अरथोका टकषणास होना असमभ- व ह । तथा अनय पददारा जो अथ परतीत होता ह लकषणा- ` दवारा । दसरको उसम अनय पदाथका बोध नही होसकता<३॥

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(९४ ) वदानतसार ।

तसमायथा सोऽय दवदतत इति वकषय तदरथो बा ततकारततकारविशिषटदवदततलकषणसय बाचयाथ- सथाशविरोधात‌ । विरदततकङततकारदिशिष-

, तवाश पारितयनयाविरद दवदतताशमाञ सकषयति । तथा ततवमसीतिवकय तदरथो वा परोकष सवापरोकषतवादिविशिषचतनयकतवलकषणसथ बा चयाथसयाशविशधादविरढपरोकषतवापयोकषतखावि- - ` शिषट शरिश परितयनयाविषढमणखणडचतनयम‌त लकषयति ॥ ८९ ॥ ( सनटी° ) ततीयपकषः एव चागीकतवय इतयपरहरति ।

तासमदिति । यसमाचतखमसयादिवाकय जहदकषणाऽजह- छकषणयोरसभवः तसमाजहदजहदकषणया विशढाश पारतय-

` जयाकिरदयासडचतनयमातर कषयतीति योजना । ततर दटत- माह । यथति । यथा सोय दवतत इति वकष परागकतजहदह- कषणाजहकषणयोरसभवन तदरथसय ततकारतदशविशिषटसय इदमथसयततकाटतदशविशिषटदवदततरकषणवकयाथसयकसमि- श ततकाङ ततकाखपशिषटयभगि विरोधदशनाततरितयाग- नाविरडदवदतपिडमात लकषयतीतयथ न मानातरविरोध इ- सयकतनयायनतयथः । उकतमथ दारटीतिक योजयति । तथति ।

` तखमसीरथादिवाकयसयापि परोकष परोकषलादिविशिषटचत- नधकतलवठकषणपखयाथभतिपादकलवासमवाजहदजहहकषणया

1

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सरछतरी शा-भाषारीकासमत । ९ ~ न

विशदपरोकषवादिषशिषटयाशपारतय गनाविरदाखणडचतनयमा- चरतिपादफतव तसपतयथः ॥ <४ ॥

(भागदी° ) जत “होऽ दवदततः? हस वाकयम प काम दखाहभा ओर वचमानकारम दखाहभा जो दवदतत हप वाचयाथ उसका एक अशम विरोध होन दिर अश जो वकार ह उसम ओर कतमान काप ह उसका पारतयाग करक दवदतत रप अश टशषयाध होताह । तिसी भकार “तवमसि? ईस वकयम भतयकच ओर अपरतयकष चपनय- का रकयहप‌ जो वाचयारथ ह उस एकाशम विरोध होन विरड अश जौ रवयकषत ओर अपतयकषख उसका पारतयाग क- रक अविरड अखणड वचतनयाशमाज रकषयाथ होतार॥ ८४॥ अथाधना अह बरह(समीतयतभववाकयारथो वणथत। एवमाचययणाधयारोपापवादपरःसर तवमपदा- थो शोधयितवा वकयनाखणडरथऽरबोधितऽधिका- रणोऽह नितय-लद-बद-यकत-पतय-सथभाव- परमाननदा-ननतादरय बरहमासपीतयलणडाकायका- रिता चिततवततिरदति । सा त वितपरतिषिमबसदहिता सती परतयगमितरभजञत पर बरहन विषथीकतय तदर- ताजञानमव बाधत तदा पटकारणतनतदाह परदाह- वदखिलकायथकारणऽजञान बाधित सति ततका यथसयाखिलसय बाधिततवात‌ तदनतभरतालणडाः काराकारिता चिततततिरपि बाधिता भवति ॥ ८९॥

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( ९६ ) वदानतसार 1

( स णटी° ) अखञचतनयपरतिपादकसय तखमकीतिवा- कयसयाथ समपचममिधायदानी यवदानभववाकयारथो वणय- त इतयाह । अथाधनति । गरमखाननवकतवःतचवमसयादिवा- कयभवणादहायहकारानतजडपदारथसकटदशयविलकचणमतय- गातमनः शदधन परमातमना सरकतवबोधानतर कथिदधिका- री रभधावसर सरवोपाधिविनिधकत सिदानदकरसमतभवन जि- जञासराचायोपदिषटमह बहासमीति वाकयारथमनसमरन‌ सवासा- नदकरसमनभवतीतयरथः ¦ तलकारमवाह‌। एवमितयादिना एव कषपण । परमाणवकषयमाणपरकारणाधिकारणः चिततवततिरद- तीति सवधः । कदतयपकषायामादह‌ । आचयणति। आवचारयणा- विषयऽसग निषकटचतनय शशशगायमानाऽवियाहकारादि- शरीरात मिधयापदाथमधयारोपय तदपवादपरःर तपदाथ | शोधयितवा बमसतीतिवाकयन जहदजहकषणया विरदधाश- पारितयागनाखडारथकचतनय जञात सतीतयरथः! किविषयिणी चिनतवततिरदतीतयाशका निवारयति । अहमिति । अह परस‌- ` गाता पर बहलासमीतयनवयः । बहलानिवयवका निराकास- ति । निवयति । शदधपदनाऽवियादिदोषराहितय बखपदन सवभ काशसवरषतव मकतपदन सरवोपाधिराहितय सवयपदनाविनाशि- सवभावतव परमानदपदन वषयिकमनषयानदादिचतमखबहान- दपयनताना कमजनयतवनसातिशयतवन कषयिषणतन च तचछ- पवतो विलकषण निरातिशयानदसवरपतवभरतिपायत अ-

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ससकतरीका-माषादीकासमत । (९७)

नतपदन षरादिवतपचछदराहितयन दशतः काठपो वसततशवा- परिचछिननतव बोधयत । दवयमिति । नानाखनिपन एक- तय बोधयत इतयरथः । नम यथा दीपपभादितयमडट न वया- महि न च भरयोजनमसति तथा नितयशदसवभकाशमासारन जडचिततवततिरक विषयीशतयोदति । कि परयोजन चतया कयाई । साविति । सा चिततवतति शदधवहविषयिणी कित- जञानविशिषटभतयगभिननपरबकविषयिणी सा च चतनयपरतिषि- वसवा सती चतनयगतमजञान निवपयति तसयाः चत- नयावरका : न निवततिरव परयोजनमितयरथः ननव धिकारणः तवमशयादिवाकयशरषणोखननाऽखडचतनयतरचया तदाभरिताजञाननिवारतपि ततकासय सकरचराचरामकम‌- पचसय परतयकषतया माकषमानतवातकथमदरतसिदिरितयाशकय कारणाजञाननाश ततकारयसकठमपचनाशाददसिदधिरयत- तसदशतमाह । यथति । ननवजञाननाश ततकायपपचसय ना- शौसत तथापयसशकारचिपततरनिषततरतहानिरितयारकया- ह । तदतभतति । अखशकाशवततरपि अजञानततकायानत- भततवाचितसया तचनिषतनौदतहानिरितथः ॥ ८५ ॥ `

( भाटी ° ) अव अह बहासमि' इस अतभववाकयका अथ छिसित ह । आचाय पहठ कहहए अधयारोप ओर अप- | ` बादनयायक दवारा “तत‌” ओर “तवम? इन दोनो पदोक अथ

का शोधन करफ जिस समय “ततवमसि ” इस वाकय दारा | ७

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(९८ ) वदानतसार ।

अखणड चतनयका बोध होजायद उस समय म नितय) शदध,

बदध, रकत सतयसवहप, परमाननद) अदवितीय, -बह ह इस

परकार अखणड अनतःकरणवकति होती ३ दह अनतःकरण

भतति चतनयभरतिरविनित होती ह तववह चिततवतति चतनय

दारा भरकाशित होकर भरतयगाता ( जीव बकञका अभद जञान)

ओर अभिनन परवरहन विषयक अजञानका नाश कदतीर । ज

वच तनतका नाश होनस वञच नष हो जाताह तत समपण

ससारक कारण अनञानका नाश होन तदनतमत अखणड

कार अनतःकरणकी वततिमी नष होजातीह ॥ ८५ ॥

तच वततौ परतिषिमबित चतनयसपि यथा परबीपः

मरभा आदितयपरभावभासनसमथौ सती तयाभिः

भतामवतिततथासवयपरकाशमानपरतयगभिननपरननाः वभासनानरतया तनाभिभत सतसवोपाधिभताः

खणडवलरबोधिततवाहपणाभाव सखपरतिबिमबसय

` सतवमाघवसपतयगभितरपरतरहममाञ भवति ॥ ८६॥

-(सनटी ) नन तथापयसडाकायततिपतिविबितचतः नयाभाससय सतवातकथमदतसिदधिरितयाशकयाह । ततरति ।

वतिनिरतौ तसखतिविबितचतनयसय बिबावभासनासमरथल‌- दरयपाधिबाधन तसतिविवयतनयमपि चतनयमाचतयावि- खयत दपणोपाधिविगम तततिबिवितमखाभाससय विबीभ-

समखमावतावशषवदितयरथः । , अयभावः । शोधिततचवपदा ` असयाधिकारिणः तदविजभितगरशाखादिणयः ततवमसीतयप-

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ससछतरीका--भाषारीकासमत । (९९ )

दशन अह नितयशदधबदधमकतसयसवभादषरमानदानतादयास बहयासमीति चिततवततिरदयमासादयति तदानीमवतसयामभि- वयकतासडचतनयवटन तसरिषीडिताजञाननाशो भवति तदानी ततकायसय सवसय नाशादभिवयजकवततिरपि सवयमव कन- करजोवदारमथनजनिताभिवददरसथदषटनटशातयथ पीततपत- जटवचच नषटा भवति तदानी तदरताभासोपिसवोपाधिभतवतत नाशाससवपकाशासावभासमानासमथतया दपणविगम त- दपाधिकसय सवाधिषटानगखमाचतवदधिषठानमानो भवतीति वदानतसिदधातरहसयमिति । अनरतसयानभवः । “लोकाशच भातिपरममयिमोहजनयाः सवमदजा ठमरनीरसमाविचिताः ॥ वयतथानकाटइह न सयरट विशदधभतयङगखाभधिपरमामतचि- वततो ॥ १ ॥ मततः पर न खट‌ विशवमथापि भाति मधय च पवमपर नरशगतलयम‌ । मायोतथशाखगरषाकयसमतथ-' बोधमतपरभा विरसत क गत न जान ॥ २ ॥ निरतिशयस- खामधौ सभकाश परसमिन‌ कथमिदमविवकादसथित खष- णीव ॥ क न गतमधना दशिको वा भरतिवौ परमविमरयोष ऽयतथितह न जान ॥ ३ ॥ › तदततसरव मनसि निधायोपतत- हरति । परतयगभिननति ॥ ८६ ॥

( भागटी° ) जस दीपक की परभा सपकी परभाक ष- काश होनपर असमथ होकर अपन आप निषपरभ होजातीह तिपरी भकार अनतःकरण वततिम भतिनिमबित चवनय सवभकारा सवरप बहमचतनयक भकाश करटको समरथ नही होताह ओर

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(१००) वदानतसार ।

सवमा बहम चतनय सवय अभिभत होजाताह । ओर ज दपणक न होनपर मखपतिबिभब मखही रहता ह तिषी भ- कार उपाधिभतअनतःकरण वतिक न हौनपर सदपकाशपरवहन मातरही रहताह इस भकार जञानियोको “म बह हर " इपर- कार अनभव होताह ॥ ८६ ॥

एवञच सति"मनसवाबदरषमयम‌।यनपनकतानयतत ' इतयनयोः धतयोरविरोधः । वततिवथापयतवादगीका- रण फछखवयापयतवपतिषधपरतिषादनात‌ । उकतञच "“फरवयापयतवमवासयशाखकदविनिरङतम‌। बरहम- पयजञाननाशाय वतिवयािरपकषिवा '"' ॥ इति । सवयपरकाशमानतवातराभासउपयलयत‌इति ॥ ७७॥ ( सणटी> ) नन "मनभवानदरशवय सनसवदमवापतथय ह-

शयत खया बदधया सकषमयासषषमदशिभिः । बदधववरोकनसा- धयसमिनवसपनयसतमिता यदि । बदधियोगयपाभितयमचचिततःसतत भव? इतयादिशरतिसमतीना '“यतोवाचोनिवरतनत अपरापयमन- सासषह । यनमनसा न मनत अनयदव तदविदितादथोऽविदिताद- धीहि । अविजञात विजानता विजञातमविजानताम‌ । अनाशि- ` नोपरमयसय । यदिजञात तया विपरयननविजञातमातमना । ता- ¶#यामनयसरविदधि यदयतञजडम‌ तयादि शरतिसमतीनापरस- रविरोधमाशकय पारहरति । एवमिति । एवमकतपरकारण अ-

` जञातचतनयसय वततिषयापयतवागीकारण फकवयापयतय परति- षिदध सतीतयथः । तदवाह वततिवयापयतति । अतःकरणव-

=

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ससकतरीका-भाषारीकासमत । (१०१ )

1 तर वरणनिवपथमनञानावचछि चतनय वयाभोतीयतदव- ततिवयापयतव ¶ीकरियत आवरणमभगानतर सवय परकाशमान च- तनयफरचतनयमितयचयत तसमिनफलचतनय निषफला का- चिदततिन वयाभोति आदरणभगसय परागव 'जञाततन भयोज- नाभावादितयथः । असमिन भनय वररथातर सवादयति । तद- कतमिति । वतिभतिबिसवितचतनयाभाससयापि : फलवतनय- पकाशकतव नतयच।पि समतिमाह । सवयमिति ॥ <७ ॥

( भ।°ट]° ) परवोकत अनभव परकार सिद होनषर "ज- सच मन करक धारण करिया जाता ह । बरहम मनस धारण नही किया जाता इन परसपर विरद दोनो शरतियोका विरोष भी दर होगया । सयोकि मनोदिदवाण बहविषयक अकञानका नाश होताह किनत अनतःकरणवततिम परतिति [मबत चतनय परतवरहका भक।श नही करसकता । इस विषय- म परमाण मी ह शाघचकारौन अनतःफरणपरतिनिमबित चतनय-

रा परवह चतनयक परकाशफ निषधपरवक अनतःकरण- वततिक दवारा तदिषयक अजञानका नाश होना सवीकार कि याह कयाकि परम बहम सवपर काशशवरप ह । इसी कारण उ- सका परकाश दततरका कराहजा नही होसकता ३ ॥ ८७ ॥ जडपदाथाकाराकासतिचिततवरततरविशषोऽसति । त थ‌[हि अय घट इति वटकाराकषारितचिततवततिरः जञ/त घट विषयीकतय तदरताजञाननिरसनपरः पर वगतविद।मासन जडमपि वर भाकषथति । त-

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(१०२) . वदानतसार ।

दकतम‌-“वदधिततसथचिदाभास दवावपि गयाघतो घटम‌॥तवाजञान‌ पिया नशयदाभासन चट सपरत‌" इति । यथापरदीपपरभा मणडलमनधकारगत घग- दिक विषयीकतय तदरतानधशारनिरसनपरःसर सवपरभया तदवभासयतीति ॥ ८८ ॥ ( स °टी° ) इदानी जडपदारथविषयकचिनतवततबहयाका-

रवतयपशचया वरकषणय दयितमाह । जडपद‌(यति। अह बहलासमीवयजञानावचछिवहलाकारा चिनतपततिसतदावर- कमजञानमाच निवतयति । बहन त सवपरकाशातलाससवयमव पर काशत न त वततिपरतिषिवितचिदाभासन चतनय परकाशयत ततर तसयाषामयात‌ । अय घट इति वटाकाराकारतचिन- वततिसत धटावचछिलचतनयावरकमकञान निवतय निवरवमा- ना सवपरतिविवितविदाभासन जड घटमपि परकाशयति ।अतः ततो विशषोसतीतयथः । एतदव भरपचयित भतिजानीत । त- धाहीति । जडपदाथविषिणी चिततवततिमभिनीय दरशयति । अयमिति । वनिसवधातमागधरसयाजञाततवात‌ अजञात घट वि- षयीकरतय पवतताचिततयततिवटगताजञान दरीकवाणा घटि भासयतीतयथः असमिरथ वदधसमतिमाह । तदकतमिति ।

= बदधिशच ततर बदधौ परतिविनितचिदाभासशव वदधिततसथचिदा- भासौ दवावतौ बदिविदाभासौ घर वयापनतः । ततर तयोरमधय धिया वया घटाजञान नशयचिदाभासन त घटः सफरदियरथः। अचानरप दटातमाह । यथति । यरथाधकारावसथितघरादिक

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ससछतरीका-माषारीकाकषमत‌ । (१०३)

विषयीषतय परवतमान दीपपरभामडछ षरपरावरकाधकारनि- रसनपरःसर सवपरभया तदपि भासयति तदरदिवयथः ॥ ८८ ॥

( ानटी ° ) अखणडाकार अनतःकरणकी वतति स ध‌- गदि जड पदारथाकार अनतःकरणकी वततिका क विशष ह । घटका परतयकष होनक समय घराकार चिततवतति अजञात- घटको विषय करक उसक अजञानका नाश करती हह अनत करणवरततिफ परतिविमबदवारा अरथात‌ सवगत चिदाभासक दवारा घटका परकाश करतीह । इस विषपरम भरमाण भी ह-५अनतः-

करणघतति आ।र तदवत‌ परतिविमबित चतनय यह दोनाही घ‌- टको भरातत हौतह परनत अनतःकरणकौ वततदवारा षटक अजञानका विनाश होताह ओर परतिबिमबित चतनयदरारा घर परकाशित होति । नस दीपककी पभा अनधकार रशखहण‌ घटपरादिको भरात होकर घटपरादिगत अनधकारका विनाश करफ उनका परकाश करतीह । तिसी परकार अनतःकरणकछी वततिदरारा षादिका अजञान नषटहोताह ओर अनतःकरण परतिबिमबित चतनयक दवारा वादिका परकाशक हौताह ८८॥

एवभरतसवसवहपचतनयलाकषतकरपसयनत वणः

मनननिदिषयासनसमाधयवषठानसयापथपकषिततवा- तऽपि परदशयनत। शरवणनाम षडिपिलिङगरशषवदा- नतानामदवितीयवसतनि तातपययावधारणम‌।छिदधा- नि त उपकरमोपसहाराभयासापरवताफलाथवादो पपतयाखयाति । तङकतम‌-उपकरमोपकषहायवभया-

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(१०४) वदानतसार ।

सोऽपवता फलम‌ । अरथवादोपपतती च छिद तातप- ययनिणयः ८९ ॥ ( स° टी° ) इयता भरथजारन परतिपादितसय परतयगमि

लपरमानदाखडचतनयसय साकषातकाररकषणयदखडकारातःक- रणबतति परतिषिपादयिषः ततसाधनभतशथवणादरवशयानयल तषा छकषणानि च करमण दशयति।एदभततयादिना दरत वस भासत इतयतन परथन । एवभतति । एवभतसथोककशतिय तयनभवनिरसतसमसतोषाधिपतयमभिननपरमानदविदरपसय सा- कषाचकारपयत भरवणादीनयनषटयानीति पतिजानीत । दफीति । शरवणादयोपीतयथः । ततर शरवणसय रशचणमाह । षडषति । टीनमथ गमयतीति टिङशबदसय बययततः वरहमालसकतनि- ` शयायकरपकरमोपसहारादिषडधलिङगः सरवषा वदातवाकषयाना- मदवितीध बहमणि तातयनिशवयशचरवणवितयथः । तानि च छि गानि कमणोपदिशति । उपकरमति । तथ। चोकतम""ठपकरमोप- सहारावभयासोऽपरवता फठपर । अथवादोपपतती च छिग ता- तपयनिणय ›› इति ॥ ८९ ॥

(भागटी° ) उसर परकार परमातमा चतनथकर साकषाकार होनतक शरवण, मनन, निदिधयासन, समाधि ओर अनषठान यह आवशयक होत ह इस कारण अव शवणादकरि लकषण दिखात ह । छः परकारक लिङगक हवारा अदवितीय बहम समधण वदानत तासथयछा अवधारण करना शरवण कहाता ह । छशरकारक िङग य ह-उपकमोपसहार, अणया, अ-

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| ससकतदीका-मापषारीकासमत । (१०५ )

पवत, फर, अथवाद ओर‌ उपपतति । भरनथानतरम भी छिखा- ह~'षपरवोकत छः भरकारफ छिङग तासरयारथक निशवायक | होत ह" ॥ ८९ ॥ |

तञच परकरणपरतिपादयसयाथसय तदायतयोरपा- ` दानयपकरमोपसडरौ । यथा छानदोगय प परपा- ठक परकरणपरतिपायसयादवितीयवसतनः ““एकम- बदवितीयस‌' इतयादौ .“तद‌।तमयमिद सरवम‌ इतय नतचपरतिपादनप‌ । परकरणपरतिपायसय वसतनः तनमधय पौनःपनयन परतिपादनमभयासः । यथा त- जषादवितीयवसतनो मधय तवमसीति नवकः परतिपादनम‌ । पकरणपरतिषादसय वसतनः परभा- णानतरणाविषयीकरणपयपवतवम‌ । यथा तववादि- तीयवसतनो मानानतराविषयीकरणम‌ । फल त परकरणपरतिपायसयतसजञानसय तदबषठानसयवा तञ तच शरयमाण परयोजनप‌ । यथा ततरव"'आचा- यव‌।न‌ परषो दद, तसय तावदव चिर यावतन वि

_ . मकष, अथ पषमपरसय" इतयदवितीयवसतजञ(नसय ततपापतिपरयोजन शरयत । परकरणपरतिप।यसय त तच परशसनमथवादः । यथः तव उत तमाईश- मपराकषो यनाशरत अत मवतयमत मतमविजञात विजञतमितयदवितीयवसतपरशषनम‌ । बरकरणपरति- पयथसधघन तवर त शरयपाणाचकतिः उपपतति।

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(१०६) वदानतसार ।

यथा ततव" यथा सौमयकन भततिणडन सरव भर- नमय विजञात सयात‌ वचारममण विकासनामघ- य मततिकतयव सतयम‌" इतयादषदवितीयवसतसा- धन विकारसय वावारसभणभातव उकतिः शरयत ॥ ९० ॥ ( सणटी० ) उपकरमोपसहारौ तावदशयति । ततभरक-

रणपरतिषायसयति । तददाहतय दशयति । तथति । एकम- वादितीयमियपकरमय रतदातमयमिद सरवमिति परतिपादन पकरमोपरसहारावितयथः । अभयाससय ठकषणमाह । पौनःपनय नति 1 अतर।पि शरतिमदाहरति । यथति अपषवसय रकष णमाह‌ । परमाणातरति । “त तोपनिषद पचछामि"'इतयादिशति- भिरपनिषनमाचषयलपरतिपादनादरबमणोपरवतवमितयरथः अथवा सवपरकाशतवन सववयवहार सवातिरकतपमाणानवकषलात‌ बर लणोपवतवमिवयथः । कपपरापतसय फठसय लकषणमाह फ विति । अवरानषपणदाहरणमाह । आचारयवानितयादिशरवणा

` दिकषाधनानाबहलासकलविजञान परयोजन वरहञानसय त त- साः फम‌ “'वहयविद‌ बहयव मवति । तरति शोकमातमवित‌ इतयादिशतरितयथः । पचमठिगसयापयथवादसय रकषणमा- ` ह । भरशततनमिति । भरकरणपरतिपायदवितीयवहसवहपसतावषी दाकयमरथवाद इतयथः । अतरापि शरतिमाह‌ । उततमादशमपा- षयदतयादि.यनाधत शरत भवति" यन सकटपरपचाधिषठानवहन- सवरपशववणनाशरत भपचजातमपि शरत भवति यन वहकनान- ¦

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ससकतरीका-भाषाटीकासमत। (१०७ )

नाजञात सरव जगत‌ जञात भवति यन बहनसाकषातकारणासा- कषातकत साकषातकत भवति बहमणः सवतः सषठतोदकसथानीय- तवादितयथः ! अवशिषटाया उपपततरटकषणमाह । भरकरणति । तागरदाहरति । यथति । पदविकारष घसादिष विकारनाम- मथयोव‌।चारभणमातरतन तथा मनमयतमवावशिषयत ना- नयततथा चिदविवतसय परपशय गिरनदीसमदराससमकविकारना- मधययोवौ चारभणमाचतवाचचिनमाजमवावशिषयत रञजविष- तसय ससय रजजमातरावशषवदियरथः ॥ ९० ॥

( भागटी° ) जिसपरकरणम जो वत परतिपादन करन क योगय हौ उसन परकरणम आदि ठकर अनतपरथनत उसी वसतक परतिपादन करना उपकरमोपसहार कशाताह । जसा कि छानदोगयक पषठ अधयायकी आदिम ( एकमवादवितीयबन ) '“ अदवितीय बहमही एकह '' ओर अनतम-मी “यह आसमाही जगनमय ह'' सपरकार परकरणका परतिपादय वसत अदवितीय बहमका ही भरतिपादन कियाह । इसी परकार जि परकरणम जो वसत परतिपादन करनक योगय उसी वसतका वारमबार भरति- पादन करना अकयास कहाता ह । छानदोगयक षषठधयायम ही जिनन परकार “तमसि इस वाकयदरारा अदवितीय बहमका नौ ९ बार परतिपादन कियाह । जि परकरणम जो वसत भति- पादन करन योगय हौ उसवसतक परमाणस अतिरकत परमाण क विषयक छोडकर उसी वसतक परतिपादन करको अ- परवता कहत ह । उसी षषठाधयायम ही कव उपनिषदाक १-

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(१०८ ) वदानतसार ।

मागत ही जिसपरकार अदवितीय तरहका परतिपादन किया उरविषम अनय भरमाणका नाममी नही लिया । जिस भर. करणम जौ वसत परतिपादन करन योगय हय उस परकरणम उसी वसतका अथवा उङ‌ वसतफ अरणानका रवण करना फर कहाता र जसा कि उसी पषठाधयायम टिखाह “जा चाययवान‌ परष बरहकर जाननभ समरथ होताह वही जञानी परष विमकति पयनत परतीकषा करताह ओर विमकति होनपर परबहमम रीन होजाताह" इस भकार अदवितीय बह जञानका बह पराति हौनम भयोजन ह । एसा शरतिम कहाह। जिस परकरणम जो वसत परतिपादन करन योगय हो उस वसत की परशसाका नाम अवाद ह । जभा कि दसी षषठ अधयाय म कहाह । गर शिषयको कहत ह ह शिषय) तन हम जिका परशन कियाह उसको सन । नही सन हय पदारभका भवण क- रनाःभट हय पदाथका समरण करना नही जान हय पदारथका- जाना । दस परकार उसष अदवितीय बहम वसतकी पशसा कही ह । जिन परकरणम जो वसत भतिपादन करन योगय हो उ ` भरकरणम उसी वसतक परतिपादन की यकतिका नाम उपपति ह 1 जसा कि उसी षषठाधयाय कहार कह सौमय] जिस पकार । एक यततिकाक पिणडका जञान होनपर सपरण मततिकाक पारा | | दिकोका जञान हौ जाताह मततिकाकी कमबधीवादि विकति ओर नाम कहना माज र यथाथ मततिकाही ह । दसीपर-

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ससकतटीका--माषादीकासमत । (१०९ )

| कार अदवितीय वसत बरहफ परतिपादन कमत विकारकी कथनमाच यकति दखनम आतीह वासतविक नही ॥ ९० ॥ मनन त धतसयादवितीयवसतनो पदानतारथाशण- यकतिभिरनवरतमवचिनतनम‌ । विजातीयदहा- दिपरतययरहितादवितीयवसतसजातीयपरतययपरवाहः निदिषयसनम‌।समाधि दविषिधः । सविकलपको निविकपकशचति तर सविकलपको नाम जञाङग- नादिविकलपलयानपकषया दवितीयवसतनि तदाकाः . शकारितायाशिततवततरवसथानम‌ । तदा मनमय- गजादिभनऽपि मदधानवत‌ दरवभानऽपयदरत वसत भाकतत ,। तदकतमभियकतः-“टशिसखप

करियातमको न मऽसतिवधो न च म विमोकषः" इतयादि ॥ ९१ ॥ ( स °टी ° ) भरषणनिषपणानतर तदततरागसय मननशय

लकषणमाह । मनन तविति । षडपिटिगतालयपवक शरत- सयादवितीयतरहमणो पदाताऽविरोधिनीभिकतिमिनःतरयगाननि- तन मननमियथः । निदिधयासनसय छकषणमाह । विजाती- यति । विजातीयदहादिवदधयनतजडपदारथविषयकपतययनि- राकरणन सजातीयादवितीयवसतविषयकपरतययभरवाहीकरण निदिषयाकषनमियथः । वयतथाननिरोधससकारयोरभिभवपा-

~ + गगनोपत पर सङकदविभात तवजमकमवययमत ॥ ध

तदव चाह सतत विशवतो! दशिषसत शदधोऽहमबि- ^ < `

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(११०) वदानतसार ।

दभाव सति चिततसथकागरतापारणामः समाधिः । स च दविषि- ध इतयाह । सविकलपको निविकलपकशवति।तसय रकषणमाह‌ । ततरति । ततर तयोः सविकलपनिरविकलपकयोषय, सविकलपको- पि दिविषः। अह बजञसमीति शबदातरविरदतयाऽदितीय वसत नि चिततवततरवसथानमितयकः । दीतियसतजञातजञानजन- यतनिपटीविलयानपकषयाबहलासमीति दशयानषिदतयाऽदवितीय- वसतनयविचछदन चिततवततरवसथानमितयथः । नन “ भकषितषि टशन न शतो. वयाधिः ” इति नथायनोकविकलपक- सम(धयोः सकटमदनिराकरणाय भवतमानयोरपि जञातादि- दविषयतन नादरतवसतमाचभान ततरतयाशशयतरमाह । त- दति । तदा सविकलपकसमाधयनतभवकार जञाजादिभदपर- तीतावपयदत‌ वसत भासत एवसवणमयडलादिभान हवण- भानवनमनमयवटादिभान मदधानवच पटादिभानसय वाचार भणमारतात जञातरादिभानसयापि वाचारभणमाचतवाददरत- व‌ वसत भासत इतयथः। यदवा “सव खलविद बहम एतदातमयमिद सः वम‌"इतयादिशतिवरातसममहमिति गिरनदीसमदातमक स जगससवाभिननसचिदानदबहमतवनातभय तसय दगधपटनयायन पर पचमानपयदत सचिदानदलकषण वसत भासत एव इतयरथः। तदकत भगवता “'वासदवः सरवमिति स महातमा सदकभः ति मककोरोपयसमिननथ भथातरसमति दशयति । तदकतमिति । &- मिति यतर बहम तदवाहमितयनवयः । कि तदितयाह । हशि सवरपमिति । दशिः दषटिः तसयाः रप दरव तदयसय परमातम-

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ससकतटीका-माषारीकासमत । (१११ )

सवषपसय तहशिसवरप साकषिसवहपमिवयरथः । तदकत भगवता उपदरशानमता च भता भोकता महशवरः ॥ पररमासति चापय- कतो दहसमिनपरषःपरः? इति । पनः किषप तत‌ गगनोषम गग- नर‌ उपमा दरशतो यसय तदगगनोपम गगनवननिरटपसवरपमितयरथः तथा च भगवदवचन “यथा सरवगत सौकषमयादाकाश नोपरिपयत सवनावसथितो दह तथातमा नोपरिपयतः? इति। यदवा गगनोपम गगनवदपतसवषपमितयथः 'आकाशरीर बरहम"'इतिशतः। पनः किभत सकदकदव विभात सषदकसवरपण भासमान चादि काशवनवरदधकषयशीरमितयरथः।पनःकिषटपम‌ अज जनमरहित,ए क निरसतसरवोपाधिभदम‌,अकषर विनाशधरमराहिवयन कटसथसव- हपमितयथः।तथा च‌ भगवानाह । “ कषरः सरवाणि भतानि कट- सथोऽकषर उचयत" "इति । अछपकअभगतादवियादिदोषरदि- तमितयथः असगो हय परषः" इतिशतः॥ सरवगत सरवतर बहला- दिसथावरतष गत वयाततम‌ अदवय सजातीयविजातीयसवगत- मदराहितयन दवितीयरहित सतत विमकतमिति सरवदाकाथका- रणातमरकसरवोपाधिविनिमकतसयन सततमकलपमितयरथः । तथाच भागवत “दधोकत इति वयाखया गणतो म न वसततः? इति तथा च एतादश निरतिशयानद यतर बहन तदवाहयअहमिति। भावयता निषधपरतियोगितन तततदपाधिभानाततततसरयकतभद‌- भानषयदवत म[सत एवतयरथः ॥ ९१ ॥ ।

( भाशटी ०)अव मननका रकषण कहत वदानतक अन कल यकतिदठारा चिरकाटस भवण किय हए अदवितीय बह

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(११२) वदानतसार ।

वसतकी चिनतना का नाम मनन । तवजञानक विरोधी द हादि जड पदा जञानको तयाग कर अदवितीय वकष वसतक अनकर जञानक परवाह ( आधिकय ) को निदिधयासन कह तह । समाधि दो परकारका र।एक सविकलपकः)दषरा निरवि कलपक । जञाता जञान आर जानन योगय वत हन तीन पदाथाको परथक‌ पथक‌ जञान होनपरभी अदितीय बहम वसम अखडाकार चिकी वतति होना सविकतपक भाषि कहातार । जस मततिकाक हसतीम हसतीका जञान होनपर भी मतिकाही ह फसा जञान होतार तिस परकार दतजञान होन परभी अदवत जञान होताह ! इस विषयम परमाण मी कहाह-““ सवसाकची, सवहयापी, सवोछषट+ सवपरकाशसवरप, जनममयरहित, निरि, आर सवदा मकतसवभाव जो अदवितीय बहम ह सोम ह 7 ॥९१॥ निरविकलपकसत जञातजञानादिभदलयापिकषया दिः तौयवसतनि तदाक।रकषारिताया अदधिषततरतितः रामकोभविनावसथानम‌। तदा त जलाकाराका- रितलवणानवभासन जलमाजावभासवत‌, दवितीयः वसतवाकाराकारितचिततवचयनवभासनादितीयव- सतमाचमवावभासत । ततशचासय सषपतधामदश- ड न भवति । उभयतर वयमान समानऽपि त- तदधावासदधावमातरणानयोदोपपततः ॥ ९२ ॥

, (सगटी° ) समाधिसवरपमाह । निरविकलपकसति- च

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ससछतीका-भाषाीकासषमत । ( ११ ३) ति । अय च दविविधः चिरकालायसतपटतरसविकलपकस- माधयनभवजनितसकारसहछतायाः चिततवतरातरादितरिष- रीटयपवकमदतवसतनयकभावनासकः भथमः । एतनिरविक- तपकततमाधयभयासपाटवन दपततसकारतया जञारादितरिपटी- खयपवकमखडाकारितायाधितपतविनापिसवसपतिकवरचि- दतम‌ना च सथानातमको दवितीपः। त दवितीयवकषममिमतयाह। लातजञानादीति । ननवव समाधिदपयोविकपामावन वतय भानादमभदमाशकय पारहरति । ततर यकतिमाह । उभयतरति । समाधिसषयोरितयथः । ततसदधावति समाधाजञायमानवति- सदावात सष वरयभावाच तयोरभदोपपततरितयरथः ॥ ९२ ॥

(भागटीर) जञाता जञान ओर जानन थोणय वसत तीन‌ पदारथोक मद‌ जञानका अमाव होनषर अदवितीय बहमव- सतम अखणडाकार चिचतकी वतति होना निरविकतपकष समा- धि कहाताद । इस समाभिक समय जितत भकार जल मिठ हए खवणक खवणल जञानका अमाव होतषर‌ कव जलका जञान दहोताह तिसी भकार अदवितीय बलाकार चितपरति$ जञानकी सतताका अभाव होनपर भी बरहन वसतमातर जञान रहताह अरथात‌ अखणड बहम वि तवततिक रीन होनपर ओर भिननरप कछ जञान नही होताह अखणड बहमय‌ जञानही होताह इसी कारण स- पति अवसथास निविकलपक समाधिका मद कोई भद नही ह इस परकार आशकाभी नही होतीह कयोकि सष

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( ११४ ) वदानतसार ।

अवसथा ओर निषिकलपक समाधि अवसथाम वतिजञान -की अभाव अशम समानता होनपर भी वततिकी सतता ओर

सततादारा समाधि ओर सषपिका मद ह ॥ ९२ ॥

असयाडमनि यमनियसाखनपराणायापपरसणाहार घारणाधयानसमाधयः ! तताहिसाकतयासतयतरह चयौपरिहा यरमाः । शोचषनतोषतपःसवाधयाय शररपरणिषानानि नियमाः । करचरणादिचसथान विशषलकषणानि पयसवसतिकादीनि आसनानि । रचकपरकङकमभकरकषणाः पराणनिथदपायाशराणाः याणः । इनदरियाणा सवसवविषयभयः परतयाहरण गरतयाहारः ! अदधितीयवसतनयनतरिदरियधारण धारणा । ततादवितीयवसतनि विचछियविचछिबः अनतरिनदियवततिपरवाहः धयानम‌ । समाधिसत उकतः सविकलपक एव ॥ ९३ ॥ ( स दी ) उकतसमाधः साधनपिकषायामाह । असयति।

तानि च साधनानि कमणोदिशति । यमति । यमायषटगानि समाधरतरगसराधनानीतयथः। परथम यमसय लकषणमाह । ततति। तष यमायषटागष मधय अहिसादयः पच यमाः अवशयाः अत या इतयथः तदनतर नियमानाह । शौचति ।शौचादयः पच नि यमा दसयथः। आसन लकषयति । आसनानीति । करचरणादिर

` सथानविशषरकषणानि पञमकसवसतिकादीनि आसनानि । भरः णायामरकषणमाह । रचकति । “"डया परयदवाय प

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सरछतदीका-भाषादीकासमत । ८११९५ )

णयानिरम‌ । यावचछरस समासीनः कभयतत सषशचया?' यदा योगी परासन उपविशय योगमशयसयति तदा शलफाा ग- दम निषपीडय खचरीमदरासहायन पराणधारणया सषघना- भरगण बरराधाराकछडलिनीषतथापय सवाधिषठानमणिपरानाह- तविशदाजञानिरवाणारयपट‌चकरभदकमण सहसदककमठक- णिकाया वियमानपरमातमना सह पराण सयोजय ततव चिनत निवातदीपननिशवर कला सवातमानदरस पिबतीतयतसाणाया- सफम‌ । स च दिविधः-अगभः सगभभतिचदकषिणया बाध साराहिनमननपधीः(रयदरामया तदरकभयच सषशनया ॥ याव- चछरास जितशवासो भवनमासानजितनिः1 इति वचनात‌ भरण- वीचारणराहितयनोकतरचकपरककमककमण भराणनिरोधोऽग- भषाणायामः ^ रचत‌ पोडशनव तदगणयन परयत‌ । कभयच चतःषषटया भणवाथमनससरन‌ इतिवचनात‌ पोडशषणत स नसा जपनदकषिणा वाय विरचय दतरिशतसलयाकषणव मनसा समचरन‌ वामया वायमापय चतःषषटसखयाक पणव मनसा ज- पसतदथ च अकारोकारमकारारडमानातक साधनिभाकरासक- सानिवठयाकरकडटिनीषटचिदानदकद च गढाधारादि- बहधात भरतदधसखपतया चिततमपि तदकभवण कवन‌ याम- चछरास कभयत‌ । तदकतमाचारयः ““पोडशतदधिगणचतषबिमा-

` आणि च कषशः ॥ रचकपरककमकमदशचिषिधः भमजनाया- मः'इति भाणायामपरकारः । कमपापत परतयाहार निरपयति । ददरियाणाभिति । भोरादीनाभिदरियाणा सवसविषययः श-

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( ११६ ) वदानतसार ।

बदादकयिः सकाशातवाषाणोपार भयकतः शरसवातः तदरसः तयावतन भरतयाहारः । ननविदवियाणा सवसवविषयभयो निवत परतयाहार इतयकत तनन सभवति शबदादिविषमाणा सखसाधः नतवन वषयिकसखवयतिर करनिरतिशयानदसदवाय परमाणाः मावादधरणयगमायमतभोगसपशवरणापि वयकछमशकषयतादिति चत‌ न ! हः करमजडरविषयरपटः तयछमशकयसवपि शद तःकरणन ससषारावियकतवदशिना विषयदोषदशनन तचछी कतशबदादिविषयपरपचन परषोततमन परीषवत‌ वयक शकयतवात‌ । अनयथा सनथासष एव टङपपत (तसमात‌ नयासमषा तपसरामतिरकरमाहः । एतमव छोकमभी पसतः परवाजिनः परबजति । एततसरव भः सवाहरयपत पार

तयजयातमानमविचछतः? “न कणा न परजया धनन तयागन कनामततवमानशः"। बहमचयादव परवजत यदहरव विरजतदः

हव परवजत‌ वनादहादवा । “ सवधानपारतयजय मामक शः

रण बज इति । ससारमव निःसार षटा सारदिदकषयाभवरनय कतोदाहाः परवरागयमाभिताःभयगविविदिषासिदधय वदारव चनादयः। बहमावाघयवततयागमभीपयतीतिशरतधटात‌''हयादि शरतिसपतिभिः तथा “आनदो बहति वयजानात‌ एतसयवानद सयानयानि भतानि माचामपजीवतीति एषोसय परमानदः अति | वानदः यदष आकाश आनदो न सयात‌ आनदादधयव खट । इतयादिशतिभिशच नितयातमशरखसय परतिपादिततवाचछनदाः

दकिषयिकसखवयतिरिकतनितयनिरतिशयानदसदवाव भरमाणा

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ससछतरीका-भाषारीकासमत । (११७ )

भावादितयतदपि निरसत बोदवयमर‌ ॥ सपरति धारणा कषयति अदधितीयवसतनीति । सरवषा वदधिसाकषितया वियमान व- सतनि चिततनिकषपण धारणा इतयरथः । धारणपाटवाभावन चिततसथयाभावाददवितीयवसतनि विचछियविचछिय चितत यततिपभवाहकरण धयानमितयाई । ततरति । समाधिरकत एव सवि- कलपकः समततवय इतयाह । समाधिरति ॥ ९३ ॥

( भागटी° ) यम‌, नियम) आकषनः पराणायाम) भरतया- हार, धारणा, धयान ओर समाधि य समपण निरविकलपक समाधिक अङग ह । अहा, सतय, चोरीका वयाग, बहनचय ओर‌ अपाररह‌ इन सवक धारणका नाम यम‌ ह । पवितरता, सनतोष), तपसया, अधययन ओर दशवरपणिधान इनको नियम कहत । हसतपादाकिकि ससथान विशष जो सवसतिक पञच इतयादि ह सो आसन कहातिद । रक, परकः कमभकरप पराण वायक निगरह करनकत उपायका नाम भाणायाम ह । श- वदादि विषयोम शरवणादि इनदियोका हटाना भतयाहार कहाताह । अदवितीय बहम वसतम अनतःकरणक अभिनि- वशका नाम धारणा ह । अदवितीय बहमवसतम चिततवकतिक परवाहका नाम धयान ह । एवोकत सविकलपक समाधिका ना- म समाधि ह॥ ९३ ॥ एवमसयाङधिनो निरविकलपकसय छयविकषपकष।य- रसासवादलकषणाशचतवारो विघरः समभवनति ति । रखयसतावत‌ अखणडवसतवनवलमबनन चिततवतति

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चरपाशवति । वादयाः पजादिविषयाः। आणयतरा मनोराजया- |

(११८ ) वदानतसार ।

निदा ॥ अखणडवसतवनवलमभनन चिततवततर <तयवलमबन विकषपः । कयविकषपाभविमपि चि तवततरागादिवासनया सतनधीमावात‌ अखणडव सतवनवलरमबन कषायः । अखणडवसतवनवहछमबन- नापि चिततवततः सविकलपाननदासवादन रसासवा दः । सपाधयारमभरसयय‌ सलवकलटपारननदसवाद‌ नवा ॥९॥ ( स °धी° ) उकतयमायषटगसहितनिषिकलयककषमापनि-

विघरानषठानसिदयथ विघरञानषयतिरकण तचनिवारणसय करव मशकयतवादसय चतरो षघराब दशयति । एवदरसयति । ततरा वघच लकषयति । ठयसतावदिति । लयो दविविधः चिरकालपरय कताटगसहितनिविकलपकसमाधयभयाकषपारवनातितपलोहतट- - कषिपजलिदवततररहितदीपकठिकावच भरयगाभनपरमानदः चिततवततखयः परथमः । दवितीयसत सरछावसथावत‌ आखघयन ` चिततततवादयशबदादिविषययरहणानादर सति भरतयगाससष- ` पानवभासनादरततः सतबधीभावखकषणनिदाहपः। ततरायभगीक ` दवितीगरसय विघरसन ततयागाय ततसवरपमाह । ठयसताव- दिवि । दवितीय विघमाह। अखडति । अखडवसतपरहणारया- ` तमखतया परवततायाः चिततवततः चिदनवरबनन असतपशिव नबादयविषयथरहणाय परवततिषिकषप इतयरथः । ततीय विघना लयति । रागादयः निविधाः । बाहया आशयतरा वासनमा-'

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ससछतरीका-भाषारीकाषमत । (११९ )

दयः । ससकाररपा वासषनामया । ततरानकजनमाभयसतबादया- १यतररागायनभवजनितससफरिः कटषीडत चितत कथचिचछ- वणादिकाधननातयखमपि चतनयगरहणसामथयाभावानमधय एव सतवथीभवति यथा राजदशनाय सवगहानिगतय राजमनदिर- भविषटसय कसयचिदरषसय दवारपारनिशषन सतबथीभावः।तथा परियकतवादयिषयसयाखडवसतहणाय पवततसय चिततसयो- हदरागादिससकारः सतधीमभावादखडवसतवहण कषाय इय

। चतथविघरमाह । अखडति। उकतसविकलपकसमाधयोरभधप दवितीयः शबदानविदधः चरिपटीविशषटः तसमिनानदो बादयश- वदादिविषयमरपचभारयागपयकछतो न त चतनयपयकतः यथा निधिगरहणाय पवततसय निधिपारिपाकमतमतायावतसय नि- धिपराघयभावपरि भतायनिषटनिवततिमातरण कोपि सहानान- दौ भवति तथा सविकलपकसमाधावखडवसवनबरबननि- तयानदरसासवादनाभावपि अनिषटवादयपप चनिवततिजनयानद सविकलप बहलानदभमणासवादयतीति तत‌ रसासषादनमि- तयरथः । छकषणातरमाह । समाधीति । निरविकलपकसमाधयार- भकाठऽनभयमानसषविकलपकानदतथागासहिषणतया पनः त- सयवाशवादन रसासवाद इतयरथः ॥ ९४ ॥

( मागीर) परवोकत यमादि अङगयकतनिरविकलपककषमा- `

पिक चार वितर होत ह। जस खयः विशषप,कषाय,ओर रसासवा- दन। अखणड बहमवसतक अवटठमबनकरनम असषमथ चिततपतति- कीजो निदरा ह उसका नाम ठय ह।भखणड बरहमवसतक अवल-

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(१२०) वदानतसार ।

मबन करनम असमथ अनतःकरणवततिका जो अनय पसतका अवठमबन ह उसको विकषप कहत ह, ठय ओर विकषप न होनपर रागादि वासनास.अनतःकरण सतभ होजाताह तव अखणड बहमवरतक अवठमबनकी असामथयका नाम‌ कषाय ह । निरविकलपक .अखणड बहमवसतक अवटमबन करनम असमरथ अनतःकरणकी वततिक सविकलपक आननद आसवादन कानाम‌ रसासवादन ह अथवा निरविकलपक समाधिक आरमभक समय सविकलपक : रसासवादनकोभी रसासवादनकहतर ॥ ९४ ॥

` अनन विरवतषटयन रहित चितत निवोतदीपवद- चक सदखणडचतनयमामवशिषयत यदा तदानि- विकलपकः समाधिरितयचयत तदकतम‌-“लय स- `

-मबोधयचचितत विकषिपत शमयतपनः। सकषायिना- -नीयाचछमपरापत न चालयत । नासवादयदरस तव निःसङगः परजञया मवत‌ इतयादि "यथा दीपो नि- वातसथो नङत सोपमा समता" इतयादि च ॥ ९५ ॥ ( स°टी° ) पोकतविघरचतषटयनिवततः फलमाह । अनन.

ति । सयादिविघराभावसहित चितत सदा निवौतदीपवदचलमसख- उचतनयमाचमवतिषठत तदा निषिकलपकसमाधिरितयरथः । छया दिविघरसदधाव तचनवरततिभकार च वदधसमतिमाह। तदकतमिति । परवोकतनिदरारकषण रय जात सति तननिवतय चितत सवोधय- ` त‌ चिततगतजाडयादिपिरितयागन चितमदरोधयत‌ उकतविपषष- शकत चितत यदा भवति तदा .विषयधरागयादिना चितत शमयत‌

9 4

। ॥

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ससकतरीका~माषादीकासमत । ( १२१ )

बहियलता परितयजयातथख ` करयातउकतरागादिकषाय- सहित चितत यदा भवततदा विजानीयादिय रागादिवाकषनावा- दविषयपरापिका नवशडवसतभािका अतो नय समीचीतति विविचय भतयकटवणवासनायाः सकाशादिय निशशाऽतकया- ञययमिति जानीयादियरथः । यदरा समयगवसतनयपापत चितत यदा भवति तदा तचितत कषायसहित जानीयात वितत यादताकाट- न रागादिवासनाकचयकषहित भवति तावतकारतचितत सवसथानाच चारयद(सनाकषयानतर चितत सवत एव पदयकपभरवण भवतीय थः। नासवादयदिति। परवोकतसषविकलपकरस विषयपरपचभारतया- गजनय नासवादपनानभवत‌ । ततर यकतिमाह । निःसग इति । यतो निःसगो वषयिकसखदःखापिसगरहितः अतः भरजञया पततो भवत सथिजञो भवदितयथः । तदकत भगवता “¶ज‌- हाति यदा कमानमरवानपाथ मनोगतान‌ । आसनयवातमना त- षः सथितपरजञसतदोचयत'" इति । तसमाहयादिविघराभावविशि- चितसय चिनमाजतयावसथान निरविकलपकसमाधिरितयभः । ततर भगवानाह । यथति । अथ निरविकतपकसमाधौ सव- गपदिषटमागण यथामति किचिदविचायत । पचभमिकोपतसय चिततसय भमिकातरयपरतयागनावशिट भमिकादरय समाधिरि- सयचयत। कासताः पचममिकाः । किप मढ विकषिपमकाय निर- `

` द चति पच वितभमिकाः । ततर सरसपदठोकशाचदहवासना- छ वतमान कषिपमिलयचयत, निदातनदरादियसत वित शढमितय-

चयत, कदाचिरछतधयानयकतभपि बहगिमनशीटम‌ उकताषपा-

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= = (१२२ ) वदानतचार ।

विशिषटतया विकषिपत चिततमितयचयत, ततर कषमढदयोः सभा- धितवशकव नासति विकषिपत त चकषि विकषिपातगततया दह- नातगतबीजवचिततसय सय एव विनाशाततदापि न समाधिः । ए- कता पतञचिः सचयति “शातदितौ तलयभतययौ चिततसथ- कायता परिणामः इति। असयाथः-शातोऽतीतः उदितो वरतमानः चिकतवराततिरतीतवरतमानभतययौ भवतः । अतीतपतययो य‌ पदाकष गहणाति उदितोपि तमव चत‌ गहणीयात‌ तदा तावभौ तलयौ भ- वतः । ताश एव चिततसय परिणाम एकाथतसयचयत, एकाथरता- भिवरदिलकषण समाधि सतरयति । सवाथकायतयोः कषयोदयौ चिततसय परिणामः समाधिरिति रजोगणन चालयमान चित कमण सवानथानपदारथानपशयहणाति तसय रजोशणसय निस- धाय करियमाणन परयलनविशषण दिन दिन योगिनः सरवारथता कषीयत एकथता चोदति तादशः चिततसय पारणामः समाधि- ` (रथः । असय समरषटागिष यमानयमासनपराणायामपरतयाहा- राः पच बहिरगानि । हिसादिकयोनिषिदधभयो योगिनःकरममभयो यमयति निवतयतीतयदिसादयो यमाः । जनमहतोः कामयधरमा- निवत मोकष हतो निषकाम नियमयति पररयतीति शौचा- दयो नियमाः। यमानियमयोरनषटानवटकषणणय समभतयमानत- वत सतत न नितय नियमान‌ बधः। यमानपततयकरवाणोनियमा- नकवछान‌ भजन‌ इति बदधया यमानयमौ समीकष यमवह- टष भरयलष बदधिमततदधीत । आसननभाणायाममतयाहारा वयाखयाताः ॥ «५ ॥

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ससछतरीका-माषादीकासषमत । (१२३ )

(भा.टी° ) जिस समय चितत परवोकत चार परकारक विषनोभ रहित होकर वायरहित सथानम सथित दीपककी तरह अचरषमा कवर अखणड चतनयमातरकी चिनताम ततपर होता ३ उसन समय चिततका निरविकलपक समाधि कहाता ह शतिक परमाणसभी जाना जाता ह-““छयप विघन उपसथित होतपर अनतःकरणम उदरोधकको उखनन कर अनतःकरणक विकषपहपविशक तिरसक होनपर उसको शानत कर । कषायदप विघनयकत हए चिनतको जानकर निधतत खस । निकत ` सभय अखणड बरहन वसतम परणिधान होय उससमय अनतःक- रणको चायमान न कर । उस समय कद सविकलपक ` आननद आसवादन न कर । ओर परञाङार निःसग होजायर।

दस विषय समतिका परमाण भी ह-'“जिपरकार दीपक वाय- रहित सथानम सथित होकर निशवर रहता ह तिसीपरकार भ- णिधान होनपर अनतकरण निशच होता ह" ॥ ९५ ॥

अथ जीबनधकतलकषणञचयत । जीवनपकतो नाप सवसवषट खणड बरहमणि साकषातकत सति अजञा तततकायपञितकममषशयविपयययादीनामपिषः पिततवादखिलबनधरदितो बरहमनिषठः । “(भिदयत दयभरनयिशिचयिनत सरवसशयाः । कषीयनत चासय करमाणि तसमिनहष परावर" । इतयादि तः ॥९६॥ ( सरी ° )धयानधारणासमाधिचय मनोविषयलासमभ‌

ञासमाधरतरग यादि त वहम तथाच कनापि पणवा ५

नल

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(१२४) ` वदानतसार ।

परथम छशध सति बहिरगाभाय नातिभरयासः करवयः ! यय- पि परतजछिना भोतिकमततनमातरनदियाहकारविषयाः सष- जञातषमाधयो बहधा पपचिताः तथापि तषामतरधानाकाश- गमनादिसिदिहततया पकतिहतसमाधिषिरोधिखाचासमाभिः ततरादरः करियत । तथा चोकत वाषषठ। “‹ शरीराम उवाच । जीषनपकतशरीराणा कथमातमविदावर । शकतयो नह दशयत आ- काशगमनादिकाः ॥ शरीवसिषठ उवाच । अनातमविदयकतोपि सि- दविजानि वाछति । दवयमचकरियाकाठयकतथाभोववराधव ॥ नालनगसयष विषय आलङञो दयातमनासमदक‌ । आतमना- तमनि सतषटो नावियामनधावति । य कचन जगदधावा- सतानविधामयानविहः । कथ तष किरालकञतयकलवा वि- © निमजति । दवयमतरकरियाकाठयकतयः साधिदिदाः ।

` परमातमपदपापौ नोपकरववि कशवन ।।'› इति। आतमविषयसत सभजञातसमाधिवासनाकषयसय निरोधकषमाधशव हतः तसमा- ततादरः कतः । अथ पचमभमिकारढचिततसय निरोध‌- छकषणः समाधिनिरपयत । त च समाधि सतरयति “'यतथा- ननिरोधरतसकारयोरमिभवपरादभावो + निरोधरकषणविततानवयो निरोधः परिणामः इति । वयलथानससकाराः समाधिविरोधिनः त च निरोधहतना योगिपरयलन परतिदिन परतिकषण वाऽमिभ- यत तदविसधिनश निरोधसकाराः परादभवति तथा सति नि- रोध एवकरिमन‌ कषण चिततमनगचछति सोऽयमीदशः चिततसय पारणामो भवति यदा तदाऽतभजञातसमाधिरचयत हतयरथः ।

नर.

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|

ससकतदीका-भाषादीकासमत । (१२५ )

ततसमाधिदय जीवनपकतसयव भवति नानयसयति मनसि नि- धाय परथम जीवनमकतसय सवरप परतिपादयित भतिजानीत । अथति । तसय खशचणमाह । जीवनमकतो नामतयादिना बहमनि- षट इतयतन । जीवनमकतोः नामति । अतराखिरबधरहितो बम- निषठो जीवनपकत हति । तय लकषण जीवतः रषसय हि कततवभोकतवघखदःखटकषणोऽखिलो यः चिततधभः स दध शषपवादवधो मवति तन रहितः पारतयकतवधनः बरहमणि निषठा तदकपरता यसय स बरहमनिषठः जीवनमकत इवयरथः । सकष धराहिय हतमाह । शवशवरपति । गरशतिसवानभलला- सकतवविजञानन मलाजञानततकायसचितकरमादीनामपि बा- धितलातसषसशयाः कषीयत इति । तथा च शरतिः “भियत ह- दययरथिशछियत सवकषशयाः । कषीयत चासय कमणि तसमिनद- ह परावर"? दति ॥ ९६ ॥

( भागदी° ) अव जीवनपकतका रकषण निरपण करत ह । जो परष अखणड चतनयसवकप बहाजञान होनक अननतर अजञानका नाश होनस सरववयापी चतनयसवशटप बहमका सा- षातकार करक अजञान ओर अजञानक कायःककट कियहय

पापशणयःसशय,ओर भमादिको दरकरक ससारवनधनस विमकत

होकर बहमनिषठ होता ह उसको जीवनमकत कहतह । इसका परमाण शरतितमी जाना जाता ह-““रवभषठ परवहयका साकषा- तकार होन हदयका भम नषट होता ह । समपण सशय दर हो

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( १२६ ) वदानतसार ।

जात ह । ओर अचछ बर कमपति फर नष होजातह ॥९६॥ अयनत वयतथानकषमय मासशोणितयवपरीषाहि- भाजनन शरीरण आनषवमानबापटलादिभाजन- ` ननदियामण , अशनायाकपिपासाशोकमोहादि- भाजननानतःकरणन च ततततपरवपरववाशनया किय माणानि कममोणियजयमानानि जञानाविकशदानया- रनधफलानि च पशयननपि बाधिततवात‌ परमाथतो न पशयति यथा हदभिनदरथजामिति जञानवान‌ तदिनिदरथजार पशयननपि परमथमिदभमिति न पशयति।“खचषषशचकषशिव.सकणोऽकण इव समना अमना इव सपराणोऽपराण इव इतयादिशचतः । उकतञच“ सवनायति यो नपशयतिदरयजच प शयननपि चादरथतवतः ॥ तथापि इरवतरपि निषकि यशच यः ष आतमवितरानय इतीह निशचयः" इति ॥ ९७ ॥ ( स°टी ° ) ननवतादशसय जीवनयकतसय दहदरियादिभा-

नमसति न वतयाशकय दगधपरनययननदरनाठनिितसौधतम- दादिवच बाधितानवतया मिथयातवन भानपि परमारथतया भा- न नतयाह । अयमितथादिना न पशयतीतयतन । असमि- चरथ शरतिमाह सचकषारति । उकतय आचारथवचन परमा- णयति । उकत चति । इह जगति स एवातमविननानय इति म नि-

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ससकतशीका-भाषारीकाकषमत । ( १२७ )

शय इतयनवयः । स फ इतयपकषायामाह । य इति । यः कोपि महापरषो बलासकखतसाकषाकरण निरसतसमसतमदवदधः छषतयवसथाया यथादवत न पशयति तथा बहहटिदायन जाथदषसथायामपि दत न पशयति तहषटया बरहवयतिर- कतजडपदाथोभावातस तथोकतः । किच कदाचित‌ बयतथान- दशायामावियकरसकारटशवशादधकषानादिषयवहारण दय पशयननपि समाधयणयाससामधयवशाददरयतवन पशयति स तथो- कतः यशव ठोकसबरहाथ नितयादिकरमाणि करवलपि आतसनि कतलाभावनिशवयन निषकियः करित भवति करफटन न छिपयत स जीवनबकतो नातर सशयः कतषय इतयरथः ॥९७॥

( मा ऽट०) जिसभरकार साधारण परष इदजाठक प- दारथोको दखकर विचार करता ३ कि य इवजालक पदारथ भरत दशयमान पदाथ नही ह । तिसीपकार जीवनत परष जाभरदवसथाम रधिरः मास, विषठा; सवादिकाका भाणड शत शरीरदवारा, अनधापन‌, वहिरापन हयादि दोषोका भाणड रत इनदरियोक दवाराः ओर भखःपयास, शोक, मोह इतयादि भाणड एस अनतःकरणदरारा पहिली वारनास उसनन हए जञानक विरोधी सञचित कमोका फक भोगनक अननतर दशयमान यह जगत सतय वसत नही होय र।.इसभकार विचार करता ह। इस ` विषयम भतिकाभी भमाण र -““जीवनकत परष बालय वसत नवयकत होकर नवहीनकासा {वयवहार करता ह, कण

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(१२८ ) वदानतकषार‌ ।

हानपरभी वधिरकसा वयवहार करता ह, मन होनपरभी म. नोहीनः.सा वयवहार करता ह, ओर भाण होनपरभी पाणर- हितकसा वयवहार करता ह 1 ओर जगहभी कहा ह-““जा- यत‌ अवसथाम सपततिकी तरह बाहय वसतम वयवहार करता हजो दवत वसतकोभी अदवत बोल ह भौर जो कमम कता हभाभी अनतःकरणको निषकिय मान ह वह‌ बरहपरायण प- रष निशवय करक जीवनमकत ह । उसस अनयक जीवनपकत नही कह ॥ ९७ ॥ | असय जञानारव विदमानानामषाहारषिहायदी- नाम‌ अनवततिवचछमवासनानामवाववततिरभवति शभाशभयोरोदासीनय वा । तदकतम‌-“बदधदरतष ८ ततवसय यथषटाचरण यदि । शना ततवहशा चव कौ भदोऽलयचिभकषण । बरहमवितव तथा सकता स‌ आतमजञो न चतरः! इति ॥ ९८ ॥ § ( स °टी° ) ननवसय जीवनमकतसय योगीशवरसय मम ष-

णय पाप च नासतीतयमिमानवशायथषटाचरणपरसगपाशकय' परहरति।असयति ॥ असय परोकतजीवनमकतसय जञानासग- व शायादिगणरशभवासनाया निधाशितलातपारदशायाम- भयलनाहारादिमदततिवत‌ तचजञानोततरमपि शभानामव वा नानामनवततिमवति नाशभानामितयथः । नन शभवासनानषर- तरपि भयोजनाभावारकि तदनवयतयत आह । शभाशभयोर ..

५ ¢ +

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ससकतवीका-भाषायकाषमत । (१२९ ) ति । तसमाजीषनपकतशय यथशचरणपरतगो नासतीति भावः । असमिनन यनथातर सवादयति । तदकतमिति । जीवनमकतसय नशजञानलाभिमानो नासतीतयपि समतिमाह । बहमवि- मिति । नन विदषा यथषटाचरणपरसगो नासतीषयकत तदनपप- भभ ।न मातवधन म पितषषन।"यसयनाहकतो भावो बदधियसय न िपयत । हलापि स वरमषोकानन हति न निवधयत।5ति। हयमधशतसहकताणयथ करत बहमवातलकषाणिपरमातमविन- यन च परवरिपयत ममजः१॥ अशवमधसहनताणि बहहतयाश- .. तानि च । कवपि न छिपत पथकलत भपशवति। समयादभय थ भापसतदष यतत च यः।स पनः सय त छन हीचछ- ति । आखधकमनानालदधधानामनयथानपथा । वतन तन शा-

खाथ विभतवय न पडितः” इतयादिधतिसमतयभियकतवाशयषि- दषा यथषटाचरणलागीकारादितिन तसतयम‌ । तषा च वचनाना विदततिपरसयन ततकरवयमितयतर तातयाभावात‌ । तदकत माचाय-“अधरमीजजायतऽञान यथषट चरण ततः ॥ परमक कथ तससयायतर धरमो विनशयति” इति ॥ ९८ ॥

( भागटी° ) इ पवोकत जीवनकतको जञान होक भ- थमही शमदमादिक गणा करक अशभवासनाका १८ हो- जनम भी सपतारदश जपरी आहार विहार आदिक अभि- मानरहित होकर परवतति की जाती ह, इसीही रीति त- जञान होनक पशवातमी आहार विहार आदिकम तति होती

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(१३० ) वदानतसार 1

ह. परत तचयजञान रहोनक पशवा अशभवासनाकी परवतति विठकर होती नही. कवर शभवासनाओकाही अनषतन कि- या जाता ह. अथवा शभवासना तथा अशमवासना इन दो नामभी उदासीनभाव रहता ह दस जीवनबकत हआ परष यथचछ आचरण करता नही, यह‌ सिद हआ. इस विषयम अरनथातरका यह‌ भरमाण ह कफिः-'“जो कोह परष एक‌ बहमत- तवको जानट, ओर यथचछ आचरण कर, तौ फिर अपवितर पदारथक भकषणम कगाहभा कतता, ओर वह अहततववतता इन दोनीम मद कौनसा रहा१ " ओर जौ जीवनमकत ह उसको अपन बरहमजञपनका अभिमानही रहता नही. इसम भाण यह ह कि,-“जहयवततापनाको परापत होकरभी जीवनमकतपरष अपन आसाको कषर जानता ह) दसरा कछ जानता नही अभिमानभी करता नही” इति ॥ ९८ ॥

तदानीममानितवादीनि जञानसाधनानि अदरषरतवा दयशचालकारवदबवतनत । तदकत-““उतपतरातमा- वबोधसय दयदषतवादयो शणाः ॥ अयतरतो भव- नतयसय न त सधनकपिणः” इति ॥ ९९॥

सणटी° ) ननववम‌ “अमानितवमदभितवमरहिसा कष तिराजवम‌'” इतयादिसमतयकतसाधनसय “अदरषठा सरषभतानाम‌ दरयादिवचनः भरतिपायमानषटतवादिगणसमहसय च विदषा

, पायमानतवशरवणाततन सह विरोधमाशकय अमानिवादिसपाद-

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ससकतरीका-माषारीकासमत‌ । ( १३१ )

नसय विविदिषासनयाततविषयलादिष त ठकषणववनार- क रवदनवतमानानना विरोध इतयाह । तदानीमिति । नजीव- "यकतावसथायामिवयथः । असमि वातिकसमतिमाह । तड-. कतमिति । असय विदरततनथासषिनो जीवनमकतसयादवषवादयो गणाः अपरयलन सवत एव भवति, । न त साधनरपिणः, त भ- ति त साधनहपा न भवति ततर हतमाह । उसननति । यत उवनासावबोधो वहलालकलखनिशवयहपः ततः तसय त ग- णाः लकषणलनव‌ भरवतीवयनवयः ॥ ९९ ॥

( भाणटी° ) उपत जौवनपकत अवसथाम अमानीपना, अदभीपना आदिक जञानसाधन; अदवटव, निठोभव, अमा- तथ, अहिना आदिक सदण, अलकार सरीख ऽस तचजञा- नीक प पीछ चट आत ह. इस विषयम वारतिकथथम यह भरमाण ह कि)-““जिको आतमबोध उनन हभ ह उस परषको अदर) अरदमिव) असर आदकि गण विना यतनसही होजातद, परत व गण उसक साधनषपी होत नही. '' इति ॥ ९९ ॥ |

कि बहना अय दहयाामातरथमिचछनिचछापर चछपापितानि इखदःखलकषणानयारनधफलनय- वभवनतकरणाभासादीनामवभासकः सन‌ तद- वसान परसयगानदपसरहमणि परणि लीन सति अजञा नततकाययससकाराणामपि विनाशात‌ परमकव- , `

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(१३२ ) वदानतषार ।

सयमाननदकरसमखिरमदपरतिभासरहितमखणड बहमवितिघठत। “न तसय पराणा उतरायनतयतरव समवलीयनत विकत विसचयत" इतयवमादि अतः ॥ ॥१००॥ इति वदानतसारः समापतिमितः। ( सणटी° ) दयता परवधन परतिपादितऽसमिनवदतपारा-

खय मनथ शरीमतपरमगरपरमहसपरवाचकाचाधषदाननदयो- गीदरण महापरषणाथ वदातो नमतयार^य साधनचतषटयसपनन- सय भमातरधिकारिणः मटढाजञाननिदततिपरमानदपापिसिदय भतीयमानाियकसतकरमपचजातसय बरहमणयधयारोपापवादप- रर सविसतर निषपरपचतव परतिषाय ततसाधन च भरवणा दिक स परपचमभिधाय‌ तसथवाधिकारणः तचवमसयादिवाकय- भवणानतर बहमासकतवसाकषातकारण निरसतसमसतमदवदधः ` जीवनमकतत भरदशितम‌ । एतावतव कारयसिदधिः कि ॥ वहरखन- नति मनसि निधाय सपसयसयव जीवनमकतसय सवपरकाशा- तमानदानमधकनिषठसय भदपरतीतयभावऽपि अवियाटशवशा- सारबधकभभजानोमिकषारनादिदहथाजामाचकरियावशिषटो बहम- भत एवावतिषठत इतयपतहरति।कि बहना इतयादिना । भारशधः- फर चिविध सवचछारत परचछाकतम‌ अनिचछाङत चति। ततर वयतथानदशायामीशवरभारततयासवकीयचछयाशत सवचछारत मिकषारनादिकषमाधयवसथाया शिषयादिभिदीयमानमादिक परचछाङतम‌ । समाधयवसथया वयतथानदशाया वा आका- शफरपातवदकसमानायमान पाषाणपतनकटकवधादिकमनि-

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कसछतटीका-मापादीकापतमत । ( १३३ ) चछकतम । स चाय जीवनमकतः भोकतविविधपरारधपापिक उलदःखममवनवदधयादिसाकषितया सवावभासकः सनभोग- नारजधकमभकषय सति भयगभिननपरमासनि पाणादिटयान- तर परनषटावियकतसारः छतरतयः सन गकितिसकलमदप- तिभानो वहवावतिषठत इति सकरवदरहसयतासरमितयथः । अय जीवनमकतो बदधयाधपाधिविलय सति वटाययपाधिवि-

निगकताकाशवनपकतदतयषचाखयवहारमागभवति बदधतसया- (पवतवितवात‌ । तदकतमाचारयः “न निरोधो न चोल- तिन वदधोन च साधकः । न मकष वा मकत इयषा परमाथता। "असय जीवनपकतसयोपाधिविगमसमयपाणासयटि- गशरीर अतितपलोहकषिपनीरविदवसतयगमिननपरमानद टीन- वतढशरीरनोततिठतीति।अन शरतिमाह । न तसयति । अय जीवनमकतो जीवव दशयमानादरागदषादिवधनादिशपण मकतः सन‌ वतमानदहपात सति भाविदहवधादविशषण चयत इतय- चापि शतिमाह । विगकतति। बरहदारणयकपि “यदा पव भ- चयत कामा यऽसय हदि सथिताः । अथ मरतयो भतो भवतय- त बरहम समशचत' इति । वापिषपि“जीवगकतपद तयकता सदह काटसरातछत । मवतयदहमकतस पवनोसपदतामिव"” इति“अतगो लय परष आकाशवलगगतशच नितयः। असति शदमपापवि- - दभर" इतयादा यगासनो नितयलपाशरणरसथ- सशरणातउलसयापिविकतिससकारततविधकरियाफलविरकषणः- सवन विया नितयनिवततावियामातरण परापत एवासमा पनःभात

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( १३४ ) - वदानतसार ।

एवतयपचत अधिषठानसय गमनाभावऽधयसतसय छोकातरगम-

नायोगानसारोकषयादिमकतिसभवः । ननवपरातसयकरियासाधयसय

वसतनो विमानालथनिवततध परषाथसव दषटम‌ अतर तदभावा-

तकथ परबाथखभिति चत, न 1 तयोरव परषाथलमिति नि-

यमाभावात । सवचछायायामारोपितरकचसा विसमतकटगतचा-

सीकरसय भरौतपरषसयापतवाकयन तयोनिवरचया तयोराप प

वारभतदटः 1 अतर सगरहः “आसमाजञानमर निरसतममछ

परात च ततव फ कटसथाभरणादिवदभमवशाचछायापिशाची

यथा । आोकतयापिनिवततिवचछरतिशिरोषाकयादगरोरतथिता-

दवसतरवातनिरासतः परसख भात तयोरचयत'" इति ।

च मकतारतम‌ अपि वशिषठमीषयपमतीनामपरोकषञानिना प-

नदहातरभवणाककवर जञानोसततिसभय एवालपजञानिनामसमा-

क मकतिभवतीति कथ विशवसिमः अतो जञानवयतिरकतमप

परयात किचितकतवयमिति चयम‌ । शाशचभासाणयादव तदप

पततः। “बलमविदरलव भवति। तरति शोकमातवित' रतयादि

शरतिभिनननोतततिसमथ एव पकतिभतिषादनात‌। तदकत शषण

“तीरथ शवपचगह वा नषटसमतिरपि पारतयजनदहस‌।जञानसषमकाट

रकतः कवलय याति हतशोकः”' इति । वसिषठादीना धिकार

कपरषतवन यावदधिकार परारधवगपरयकतशापादिनासवीरता-

वातरदहपातपितदहभाविभोगसय निवारयितमशकयलात‌ भार-

ञसय विना भोगन कषयालपपततः यावदधिकारमवसथितिरधि- `

कारिणामिति भगवदवयाविशषिततवात‌ । असमदादीना च `

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ससकतदीका-भाषादीकासमत । (१३५ ) भारःपकमणोऽनकदहारभकतवसमवऽपि चरमदहविनाऽप- रोकङनानोसनतरसभवात‌ पामदव तथा दषटा । अनयथा गभशथसय‌ भरवनायभावन जञानोखसयतपपततः । नत जञानि- नामपि सवावसथाया दहातरसवीकारवनयकतानामपि पनदहा- तरसवीकारः कि त सयादिति चत‌। नक सवभ समाविशत‌ इतयादिवाकयष कठानिगमनाभावशरवणादहातरभातसत “^तदन- तरभतिपततौ "तयतर दहानिगमनशरवणदरषमयम‌ । तदकत सका. द “यसमिनदह ढ जञानमपरोकच विजायत । तदहपातपरयतमव ससारदशनभ।परापि नासति समारदशन परमारथतः।कथ तदशन दहविनाशादवचयत। तसमरलासविञान दढ चरमविभरह । जायत मकतिद जञान परसादादव मचयत" इति ।तसमासषयकतवि-

मकतशवविभचयतः" इति॥ नितयशदपारिपणमदरयसचिदातमकमस- ठमकषरम‌।सवदाशचलमबोधततछरवजित सदहमसमितसरम‌॥ गो- वदधनोदरणपररणया विमकतक पित नरतिहयोगीवदानतसा- रसय चकार टीका सबोधिनी विशवपतः परसतात‌॥ जात पच- शताधिक दशशत सवतसराणा पनः सजात दशबतसर परमवरभी- शालिविाह शक । पराप दरमसवतसर शभशचौ पास नवमया ति- थो परात भागववासर नरहारीका चकारोजयटाम‌ ॥ इति शरीपरमहसपरिवाजकाचायशरीमदामानदभगषसजयपादशिषय- ससिहसरसवतीविरचिता बदानतसारसय दीका समापता १००॥ `

( भाषटीर ) बहत कनप कया होगा! यह जीव- । मक परष शरीरावाक नाह अरथ चछा, ४.

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( १३६ ) वदानतषार ।

ओर परचछा इन तीन भकारक भारबध करमत उच हए सख दःखका अनभव कशता. ह साकषी चतनयहपदधि

, आदिका परकाशक होता ह भारय कमम मोगकर अनम ~~ ण सचिदाननदशप परबरहम भराणौक छीन होनषर अजञान ओर

अजञानक काययसवरप प ससार विनाशका हत परम फ- वलयकप सचिदाननदमय अदवत पणबहयम अवसथित होकर अनिरवचनीय कवलयाननदका भोग करता र! इसविषयम पमाणभी ह-'“जीषनमकत पषषक दहका तयाग करनषर समप ण अनयलोकोफो नही जात द। उसी सचचिदाननदमय परव- हम छीन होजात ह ओर अकतार सपारक बनधनस एट- कर परम बरहमाननद निमर दहो जात ह" ॥ १०० ॥

इति शरीपरमहसपारवाजकाचामयधरीसदाननदयोगीनदरविर- .

चित वदानतसारमकरण रामपरवासतवय-तरिदभो- . छनाथातमजरामसवहपविरचितसवरपपरकाशभा-

पासहित समानिमफाणीत‌ ।

तक मिरनका ठिकाना-

` खमराज शरीकषणदास, ““ शरीवङकटशवर " सटीम‌ मस-पबई.

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