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8/6/2019 SatsangAmrit http://slidepdf.com/reader/full/satsangamrit 1/21 पपपपपप पपपपपपप पपपपप पपप पपपप पपपपपपपप पपपप पप पपपपप-पपपपपपपप प पपपपपपपपपप पप पपपपपप पपपपपप पपपप पपपपपपपप पपपप पपप पपपपपपप पपपप पपपपप पपप पपपप पपपपपपपप पपपपप  संत शी आारामजी बाप आशम माग , अहमदाबाद -380005

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8/6/2019 SatsangAmrit

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पपपपपप पपपपपपप पपपपप पपप

पपपप पपपपपपपप पपपप पपपपपपप-पपपपपपपप प पपपपपपपपपप पप पपपपपप

पपपपपप पपपपपपपपपपपप पपपप पपप पपपपपपप पपपप पपपपप

पपप पपपप पपपपपपपप पपपपप संत शी आारामजी बाप ूआशम माग, अहमदाबाद -380005

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  फोनः 079-27505010-11

 आशम रोड, जहगीरपु रा , स ूरत-395005, फोन 0261-2772201-2

  वन् दे मातरम्रोड , रवीनद रगंाला क  े साम   े ई िली -60

  फोनः गोरेगाँव (प ूव), मुंबई-400063, फोन 022-26864143-44

Email: [email protected] Website: http://www.ashram.org 

Owned by: Mahila Utthan Trustॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपपप मु षय का जनम धरती पर इिसलए होता ह  ै िक वह अप   े आमवप को पहचा ले और अप   े िआमक 

आ  ं का अु भव कर ले। इसी आ  ं की अुभ ूि त क  े िलए वह बाहर भागता िफरता ह  ै। और उसे ात कर   े क  े िलए 

ि ज -ि ज सहार को वह हीरा समझकर पकता ह  ै, हाथ में आते ही वे पतथ्र िसदध् हो जाते हैं।  संयोगवात् ही उसको कोई ऐसा था िमलता ह  ै जो उसक  े ियथत, थक  े ह  ु ए ह  ृय को ित और ीतलता का  अनु भव करा पाये और वह सथ्ान है '  महापु का ससंग'। 

 ससंग तार   तेा ह  ै, कसंुग डु बो   तेा ह  ै। इिसलए आप भी िय ससंग म जाओगे, अच् छा संग करोगे 

और सनथ का अयय करोगे तो आपका िचर उजवल होगा और जीव ऊँचा ब   गेा।

 शी हुमा सा पोारजी    े कहा ह  ःै '  ि जसकोक अप   े जीव म एक बार भी सचे संत क  े  , उप  े और करप का सौभाय ात हो जाता ह  ,ै वह परम आनन्  द और परम िान् त का सहज ही िअधकारी   

 हो जाता है। 'संत- , संतसवेा और ससंग का िकता अमोघ फल होता ह  ,ै ससंग से जीव की उत बा   े की  

क  ैसी -क  ैसी कलाए  ँ सीख   े को िमलती ह , इसका सुंर िवव  चे ातः मरणीय िवव ंीय प ूय संत शी आारामजी  बापू की अमृ तवाणी म बारबार आया ह  ै। तुत पुतक म उस ससं ग-अमृ त में से क ु छ पर् ेरक  संग को संकल िकया गया ह  ै। िय पाठको !  आप सभी इस पाव सा का बार -बार सेव करक  े अवय 

लािभानवत ह।पपपप पपप पपपपपपप पपपप पपपपप, पपपपपपपप।

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपपपपपपपप ती   ु लभ चीज

 संतसवेा का फल परम    ेही संत

 महामा की क  पृा  ि बा मृयु क  े पु जनम ! 

संतक  ृपा क  े चमकार तमाचे की करामात

 संत की यु ि त से िमुत ससंग से सुखमय िपरवार   ऊ चँी समझ 

  नाव पानी में रहे , पाी ाव म ह ... ससंग की िमहमा  या जा   ूह  ै त  ेर  े यार म ! 

ि हंसक बन गया परम भक ्त  मेटत िकठ क  ु अकं भाल क  े तव महापु   ु लभ

 जगत को तीथप बा   े वाले संत अनमोल है सत् संग  ! 

संत िमल को जाइय  े (ोह  े)ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपप पपपपपप पपपपप भगवा ं कराचाय जी कहत  े ह   - '  जगत म   ु लभ या ह  ै ?'

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सगु , ससंिगत और िवचार। सगु  िमल जाय और मुषय की अपी योयता हो तो सगु  से िवचार, चच , या ,

परमाम-सााकार ह कर पाय  ेगा। सगु  िमल गय  े िलेक अपी योयता ह ह  ै, तपरता ह ह  ै तो मुषय उसे भी ईँट , च ूा , लोहा , ल िआ संसार की तुछ चीज चाहता ह  ।ै िजसकी अपी क  ु छ आियामक कमाई ह  ै,अपने कु छ पु ण् य हैं वह सदगु रुसे सत्तत् त् व की िजज् ञासा करेगा। '  संसार का बंध क  ैसे छ   ूट  े 

? आँ ख सा क  े िलए बं हो जाय  े, इ    े की ियोत कम हो जाय  े उसक  े पहले आमियोत की जगमगाहट क  ैसे हो ?क  ु ट  ु बीज मु   ँह मो ल उसक  े पहले अप   े सवरवप की मुलाकात क  ैसे हो ?' – ऐसे कर   े वाला , आिमवचार 

और आम- यास से भरा ह  ु आ जो साधक ह  ै, वही सदगु रु का प ूरा लाभ उठाता है। बाकी तो जैसे कोई  साट स हो जाय और कोई उससे चा -ि  चउा और चार प  ैसे की युइं गम-चॉकलेट मगे,   वैसे ही  व  ेा सगु  ात हो जाय और उसे संसार की चीज ात करक  े अप   े को भायवा मा ले , वह नन् हें-मु े

बचे ज  ैसा ह  ै जो तुछ िखलौ म खु हो जाता ह  ै।पाताललोक, मृयुलोक और वगलोक-इ ती लोक म सगु , ससंिगत और िवचार की िात   ु लभ 

 है। ये तीन चीजें िजसे िमल गयीं , चाह  े उसे और क  ु छ ह िमला ,ि फर भी वह सबसे ज् यादा  भा य वा ह  ै। बाह र की सब ची ज ह   , क  ेवल य  े ती चीज ह ह तो भले चार ि क  े िलए उसे भा यवा मा लो , सािमाजक   ृि  से उसे बा मा लो िलेक वातव म उस   े जीव का फल ह पाया।

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपपपप पप पप(प ूय बाप ूजी क  े ससंग-वच स)ेक

 त  लंैग वामी ब  े उचिकोट क  े संत थे। व  े 280 साल तक धरती पर रह  ।े रामक  ृषण परमह सं क  े उक  े काी म िकय  े तो बोलेः ''  साात् िवाथजी इक  े रीर म िवास करत  े ह।" उनह   े त  ैलंग वामी को 'काी  क  े सचल िवाथ'  नाम से पर् चािरत िकया। 

 त  लंैग वामी जी का जनम िण भारत क  े िवजा िजले क  े िहोलया ाम म ह  ु आ था। बचप म उका ाम 

ि वराम था। िवराम का म अनय बच की तरह खेलक   ू म ह लगता था। जब अनय बचे खेल रह  े होत  े तो व  े मंि र क  े गण म अक  ेले चु पचाप ब  ठैकर एकटक आका की ओर या ििवलंग को िहारत  े रहत  े। कभी िकसी वृ 

क  े ीचे ब  ैठ  े-ब  ैठ  े ही सिमाधथ हो जात  े। लक  े का र गं-  ढ दं द खेकर माता -ि पता को िचतंा ह  ु ई िक कह यह साधु  

ब गया तो ! उनह   े उका िववाह करा   े का म बा िलया। िवराम को जब इस बात का पता चला तो व  े म से बोलःे "  म ! म िववाह ह कँ गा , म तो साधु बू   ँगा। अप   े आमा की , परमेर की सा का ा पाऊँगा , सामय पाऊँगा।" माता -ि पता क  े िअत आह कर   े पर व  े बोलःे "  अगर आप लोग मु झे तंग करोगे तो िफर कभी  मेरा मुँ ह ह   ेख सकोग।े"

 म    े कहाः "  ब  ेटा ! म   े बह  ु त िपरशम करक  े,ि कत   े-ि कत   े संत की सवेा करक  े तुझ  े पाया ह  ै। मेर  े लाल !

जब तक म िज ंा रह   ू  ँ तब तक तो मेर  े साथ रहो, म मर जाऊँ िफर तुम साधु हो जाा। पर इस बात का पता जर  

लगाा िक संत क  े और उकी सेवा का या फल होता ह  ।ै"

"  म ! म वच   ेता ह   ू  ँ।"

 क  ु छ समय बा म तो चली गयी भगवा क  े धाम और व  े ब गय  े साधु। काी म जाकर ब  े-ब  े िवा ,संत से सपक िकया। कई ाण , साधु -संत से पू छा िलेक िकसी    े ठोस उर ह िया िक संत-िसाय 

और संत-सवेा का यह-यह फल होता ह  ै। यह तो जर बताया िकपप पपपप पपप पपपप, पपप पपप पपपप पपप।

पपपपप पपपप पपप पप, पपप पपपप पपपपप।।

 पर तंु यह पता ह चला िक प ूरा फल या होता ह  ।ै इनह   े सोचा , '  अब क् या करें ?'

 ि कसी साधु    े कहाः "  बंगाल म बवा िजले की कटवा गरी म गंगाजी क  े तट पर उारणपुर ाम का एक 

महामा ह  ,ै  वहीं रघु नाथ भट् टाचायर्स् मिृ त गर्ं थ िलख रहे हैं। उनकी स ्मिृ त बहु त तेज   है। वे तु म् हारे पर् ्नका जवाब दे सकते हैं।  "

 अब कहाँ तो का ी और कहाँ बंगाल  , ि फर भी उधर गये। रघु नाथ भट् टाचायर्ने 

कहाः "  भाई ! संत क  े और उकी सेवा का या फल होता ह  ै, यह म ह बता सकता। ह , उसे जा   े का  उपाय बताता ह   ू  ँ। तुम मा िकार  े चले जाओ और सात ि तक माकड  ेय चडी का सपुट करो। सपुट खम  

 होने से पहले तु म् हारे समक् ष एक महापु रु ष और भैरवी उिपसथ्त होंगे। वे त ुम् हारे 

का उर   े सकत  े ह ।ं"

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 ि वरामजी    े वह से मा -ि कार  े पह  ु   ँ चे और अु ा म लग गय  े।   ेखो, भूख होती ह  ै तो आमी   

िपरशम करता ह  ै और िपरशम क  े बा जो िमलता ह  ै  , वह पचता है। अब आप लोगों को बर ्ह् मज् ञान की  तो भू ख ह  ै ह , ई रिातक  े प ु ाथकराहह  ै तो िकता स संगिमलता ह  ै , उससे पुय तो हो रहा ह  ै, फायदा  तो हो रहा ह  ै िलेक सााकार की ऊँचाई ह आती। हमको भ ूख थी तो िमल गया गु जी का सा।

 अनु ष् ठान का पाँचवाँ िदन हुआ तो भैरवी के साथ एक महाप ुरु ष पर् कट हु ए। बोलेः 

"  या चाहत  े हो ?" ि वरामजी णाम करक  े बोलःे "  भु ! म यह जाा चाहता ह   ू  ँ िक संत क  े  , िसाय और सवेा का या फल होता ह  ै ?"

 महापु बोलेः "  भाई ! यह तो म ह बता सकता ह   ू  ँ।"

  ेखो, यह िहन   ूधम की िकती सचाई ह  ै ! ि हन् दूधमर्में िनष ्ठा रखने वाला कोई भी गप ्प   नहीं मारता िक सा हैऐ , ऐसा ह  ै। काी म अ   ेक िवा थे, कोई गप मार   ेता ! िलेक ह , सात धम म सय की िमहमा ह  ै। आता ह  ै तो बोलो, नहीं आता तो नहीं बोलो। िवस् वरू प   म हापु रु  ष बोलेः "भ  ै र व ी   

! तु हार  े झोले म जो ती िगोलय पी ह व  े इको   े ो।"

 ि  फर वे िवरामजी   क ो बोलेः "  इस गर क  े राजा क  े यह संता ह ह  ै। वह इलाज कर-करक  े थक गया ह  ै। य  े ती िगोलय उस राजा की राी को िखला   े से उसको एक ब  टेा होगा , भल े उसक  े ा र ध  

म ह ह  ै। वही वजात िु तुहार  े का उर   ेगा।"

– ि वरामजी व  े ती िगोलय लकेर चल।े मा िकार  े ज गंल म आधँी तू फा क  े बीच प  े क  े ीचे सात ि  क  े उपवास, अनु ष्  ठान िवरामजी   क ा रीर कमजोर पड़ गया था। रास् ते में िकसी िबनया की   

  ु का से क  ु छ भोज िकया और एक प  े क  े ीचे आराम कर   े लगे। इत   े म एक िघसयारा आया। उस   े घास का  बंडल एक ओर रखा। िवरामजी को णाम िकया , बोलाः "  आज की िरा यह िवशाम करक  े म कल सुबह बाजार म जाऊँगा।"

 ि वरामजी बोलःे " हाँ, ठीक है ब टेा  ! अभी तूजरा पैर दबा दे। "  वह पैर दबाने लगा। िवरामजी   क ो नींद आ गयी और वे सो गये। घिसयारा आधी   

रात तक उक  े प  ैर बाता रहा और िफर सो गया। सुबह ह  ु ई,ि वरामजी    े उसे पुकारा तो   खेा िक वह तो मर गया   है। अब उससे सेवा ली है तो उसका अंितम संस ्कार तो करना पड़ेगा। द ुकान से 

लकी िआ लाकर मा क  े पाव तट पर उसका ियाकम कर िया और गर म जा पह  ु   ँच।े राजा को सं  ेा भ  ेजा िक '  मेर  े पास   वैी औधी ह  ,ैि जसे िखला   े से राी को पु होगा।

 राजा    े इनकार कर िया िक "  म राी को पहले ही बह  ु त सारी औिधय िखलाकर   ेख चु का ह   ू  ँ पर तंु कोई सफलता ह िमली।"

 ि वरामजी    े मंी से कहाः "  राजा को बोलो जब तक संता ह होगी , तब तक म तुहार  े राजमहल क  े पास 

रह   ू  ँगा।" तब राजा    े िवरामजी की औिध ले ली। ि वरामजी    े कहाः "  मेरी एक त ह  ै िक पु  जनम लेत  े ही तुर तं हला -धु लाकर म रे े सामने लाया  

जाय  ।े मुझ  े उससे बातचीत करी ह  ,ै इिसीलए तो म इती मेहत करक  े आया ह   ू  ँ।"

 यह बात मंी    े राजा को बतायी तो राजा आय से बोलाः "   नवजात बालक बातचीत करेगा ! चलो   ेखत  े ह ।"

 राी को िगोलय िखला । स मही   े बा बालक का जनम ह  ु आ। जनम क  े बा बालक को ा िआ  

कराया तो वह बचा आस लगाकर ा मु दा म ब  ैठ गया। राजा की खुी का िठकाा रहा। राी गग हो उठी  ि क "  यह क  ैसा बबल ूह  ै िक प  ैा होत  े ही ॐऽऽऽ कर   े लगा ! ऐसा तो कभी   खेा -सु ा ह।"

 सभी लोग िचकत हो गय  ।े िवरामजी क  े पास खबर पह  ु   ँची। व  े आय  े, उनह भी महसू स ह  ु आ िक ' हाँ,अनु ष् ठान का चमत् कार तो है !'  वे बालक को देखकर पर् सन् न हु ए , बोल,े "  बालक ! म तु मसे एक 

सवाल प ूछ   े आया ह   ू  ँ िक संत-िसाय और संत सेवा का या फल होता ह  ै ?"   नवजात ि ु बोलाः "  महाराज ! म तो एक गरीब, लाचार, मोहताज िघसयारा था। आपकी थोी सी  

सवेा की और उसका फल   ेि खय  े, म    े अभी राजपु होकर जनम िलया ह  ै और िपछले जनम की बात सुा रहा ह   ू  ँ। 

इसक  े आगे और या -या फल होगा , इता तो म ह जाता ह   ू  ँ।।"

  का ा पा   े वाल,े की िा म रह   े वाले महापु  बह  ु त ऊँचे होत  े ह पर तंु उसे भी कोई िवलण 

 होते हैं िक जो बर ्ह् मरस पाया है वह िफर छलकाते भी रहते हैं। से महापु रु षों केऐ  

 , िसाय व सेवा की िमहमा तो वह िघसयार  े से राजपु बा वजात बबल ूबोल   े लग गया ,ि फर भी उनकी  िमहमा का प ूरा वण ह कर पाया तो म क  ैसे कर सकता ह   ू  ँ !

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

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पपप पपपपपप पपप ससंग से हम वह राता िमलता ह  ै,ि जससे हमारा तो उार हो जाता ह  ै, हमारे इक् कीस कु लक भी तर  

जात  े ह ।पपपप पपपपपप प पपपपपप पप पपप पपप प पपप।

पपप पपप पपपप पपप पप, पपपपपप प पपपप पपपपपपपप।।

 ससंग की जगह पर जा   े से, एक - एक कदम रखने से एक - एक यज् ञ करने का फल िमलता   है। देिवषर्नारद दासी के प ुतर्थे....ि वद् याहीन , िजातही , धनहीन , क  ु लही और यवसायही  ासी क  े पु। चतुमस म वह ासी साधुओं की सेवा म लगायी गयी थी। साधारण ासी थी। वह साधु ओं की सेवा म  आती थी तो अप   े छोट  े बचे को भी साथ म ले आती थी। वह बचा कीत करता , ससंग सु ता। साधुओं क  े ित 

उसकी शा हो गयी। उसको कीत , ससंग, ध् यान का रंग लग गया। उसको आनंद आने लगा।  संत    े ाम रख िया िहरास। ससंग, ध् यान और कीतर् न में उसका िचत् त दरि् वत होने लगा।  जब साधु जा रह  े थे तो वह बोलाः "  गु जी ! मुझ  े साथ ले चलो।"

 संतः "  ब  ेटा ! अभी तु झे हम साथ नहीं ले जा सकते। जन ्मों-जनम का साथी जो ह  ृय म ब  ठैा   है, उसकी िभत कर, ाथा कर।"

 संत    े या -भज का तरीका िसखा िया और वही िहर ास आग े चलकर   े िव ा र  

बा। िजातही ,ि वद् याहीन , कुलही और धही बालक था , वह देिवषर्नारद बन गया। नारदजी को  तो   वेता भी मात  े ह , मुषय भी उकी बात मात  े ह और रास भी उकी बात मात  े ह । कह तो ासी पु ! िजातही ,ि वद् याहीन , क  ु लही और कह भगवा को सलाह   े   े की योयता !

 ऐसे महा ब   े क  े पीछ  े ारजी क  े जीव क  े ती सोपा थेः  एक सोपान था -ससंग, साधु समागम।    ूसरा सोपा था -उसाह। तीसरा सोपा था -शा।

ससंग, उसाह और शा अगर छोट  े से छोट  े आमी म भी ह तो वह ब  े से ब  े काय कर सकता ह  ै। यह  तक िक भगवा भी उसे मा   ते  े ह । व  े लोग धभागी ह िजको ससंग िमलता ह  ै !  वे लोग िव ेष धनभागी   

 हैं जो सत् संग दू सरों को िदलाने की सेवा करके संत और समाज के बीच की कड़ी   

ब   े का अवसर खोज लेत  े ह , पा लेत  े ह और अपा जीव धनय कर लेत  े ह !

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपपपप पप पपपप प ूय बाप ूजी क  े ससंग-वच से

 ि बहार त की बात ह  ःै  एक लड़के के िपता मर गये थे। वह लड़का करीब 18-19 साल का होगा। उसका ाम था  

ताप। एक बार भोज करत  े समय उस   े अपी भाभी से कहाः "  भाभी  ! जरा मक   े   ।े"

 भाभीः "अरे, या कभी मक मगता ह  ै तो कभी सजी मगता ह  ै ! इता बा ब  लै ज  ैसा ह  ु आ, कमाता तो  है नहीं। जाओ , जरा कमाओ,ि फर नमक माँगना। "

 लक  े क  े िल को चोट लग गयी। उस   े कहाः "  अच् छा भाभी ! कमाऊँगा तभी मक मग ूगा।"

  वह उसी समय उठकर चल िदया। पास में पैसे तो थे नहीं। उसने स ुन रखा था िक  मुंबई म कमाा आसा ह  ै। वह िबहार से   े म ब  ैठ गया और मुंबई पह  ु   ँ चा। काम-धंधे के िलए इधर -उधर 

भटकता रहा पर ं तु अजा आमी को कौ रखे !  िआखर भू ख-  यास से याकुल होकर रात म एक 

ि वमंि र म पा रहा और भगवा से ाथा कर   े लगा िक "   हे भगवान ! अब तूही मेरी रक ्षा कर। "    ूसर  े ि की सुबह ह  ु ई। थोा सा पाी पीकर िकला ,ि  भर घ ूमा पर तंु कह काम िमला। िरा को  

पुः सो गया।    ूसर  े ि भी भ ूखा रहा। ऐसा करत  े-करत  े तीसरा ि ह  ु आ।  हर जीव िसच् चदानंद परमात् मा से ज ुड़ा है। जैसे रीर के िकसी भी अंग में  

कोई जंतु काट  े तो हाथ तु रंत वह पह  ु   ँ च जाता ह  ै यिक वह अंग रीर से जु ा ह  ै,  वैसे ही आपका व ्ियष् ट  ास सिम से जु ा ह  ै। उस लक  े क  े ो ि तक भ ूखे- यासे रह   े िपर क  ृि त म उथल-पुथल मच गयी।

 तीसरी िरा को एक महामा आय  े और बोलःे "  ि बहारी ! ि बहारी ! ब  ेटा , उठ। त ूो ि से भ ूखा ह  ।ै ले, यह 

ि मठाई खा ल।े कल सु बह ौकरी भी िमल जाय  ेगी , ि चतंा मत करा। सब भगवा का माा , अपना मत  

माा।"

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 महामा लँ गोटधारी थे। उका वण काला व क िठगा था। लक  े    े िमठाई खायी। उसे आ गयी। 

सु बह काम की तला म िकला तो एक हलवाई    े ौकरी पर रख िलया। लक  े का काम तो अछा था , वभाव भी  अच् छा था। परि् ितदन वह पर् भुका स ्मरण करता और पर् ाथर् ना करता। हलवाई को कोई संतान  

 नहीं थी तो उसने उसी को अपना पु तर्मान िलया। जब हलवाई मर गया तो वही उस दु कान का  िमालक ब गया।

 अब उसने सोचा िक  '  भाभी    े जरा सा मक तक ह िया था   , उसे भी पता चले िक  उसका   ेवर लाख कमा   े वाला हो गया ह  ै।' उस   े 5 हजार रू पये का डर ्ाफ् ट भाभी को भेज िदया िताक  उसको भी पता चले िक साल ो साल म ही वह िकता अमीर हो गया ह  ै। तब महामा व म आय  े और बोले िक 'त ू अपना मानने लग गया ?'

 उस   े इसे व माकर सु ा -अनसु ना कर िदया और कु छ समय के बाद िफर से 5000 हजार  पय  े का ाट भ  जेा। उसक  े बा वह बुरी तरह से बीमार प गया।

 इत   े म महामा पधार  े और बोलःे "  त ूअपा माता ह  ै ? अपना हक रखता है ? ि किसलए त ूसंसार म आया था और यह या कर   े लग गया ? आयुषय हो रहा ह  ै, जीव तबाह हो रहा ह  ै। कर िया धोखा  ! म    े कहा था िक अपा मत माा। त ूअपा य माता ह  ै ?"

"  गु जी ! गती हो गयी। अब आप जो कहगे वही क  ँ गा।"

 महामाः "  ती ि म   ु का का प ूरा सामा गरीब गुरब को लु टा   े। त ूखाली हो जा।"

 उस   े सब लुटा िया। तब महामा    े कहाः"  चल मेर  े साथ।"

 महामा उसे अप   े साथ मुंबई से कटी ले गय  ।े कटी क  े पास िलंगा ामक गव ह  ै,  वहाँ से थोड़ी     ूरी पर ब  ैलोर की गुफा ह  ।ै वह उसको बं कर िया और कहाः "  ब  ैठ जा , बाहर ह आा ह  ै। जगत की आिसत 

 छोड ़और एकागर्  ता कर। एकागर्  ता और अनािसक् त -  य  े ो पाठ पढ ले, इसम सब आ जाय  ेगा। जब तक य  े पाठ प ूर  े हगे, तब तक गुफा का रवाजा ह खुलेगा। इस िखकी से म भोज रख िया  

क  ँ गा। िडबा रखता ह   ू  ँ ,   वह ौचालय का काम देगा। उसमें ौच करके रोज बाहर रख िदया   

करा , सफाई हो जाय  गेी।"

 इस कार वह वं तक भीतर ही रहा। उसका   ेखा , सु ा , स ू  ँघा , खाा -  पीा िआ कम हो गया ,िआमक बल बढ गया , िानत बढ   े लगी। को तो उस   े जीत ही िलया था। इस कार 11 साल ह  ु ए तब महामा  

 ने जरा सा ितात् त् वक उपदे िदया और दुि नया के सारे वैज् िञानक और परध्ानमंतर्  ी भी   ि जस ध से व ंि चत ह , ऐसा महाध पाकर वह िबहारी लका महापु  ब गया। महामा    े कहाः "  अब तु म  मुतामा ब गय  े हो, ाी ब गय  े हो। मौज ह  ै तो जाओ,ि वचरण करो। "

 तब व  े महापु िबहार म अप   े गव क  े िकट क  ु ि टया बाकर रह   े लगे। िक ं तु व  े िकसी से क  ु छ कहत  े,ित से ब  ैठ  े रहत  े थे। सु बह 6 से 10 बज  े तक क  ु ि टया का रवाजा खुलता। इस बीच व  े अपी क  ु ि टया की झा ू बु हारी करत  ,े खाा पकात  े,ि कसी से िमला -  जुला िआ कर लेत  ,ेि फर किु टया का दरवाजा बंद हो जाता। 

  वे अपने मीठे वचनों से और म ुस्  कान से ोक  , पाप, ताप हर   े वाले, ित   े   े वाले हो गय  े। चार व  े पढ  े ह  ु ए लोग भी समझ पाय ऐसे ऊँ चे अुभव क  े व  े धी थे। ब  े-  ब  े धाय, उोगिपत,

ि वद् वान और बड़े-  ब  े महापु उक  े करक  े लािभानवत होत  े थ।े ि वामी अखंडा  ंजी सरवती , ि जक  े चरण म िइनरा गधी की गु , म आ  ंमयी कथा सु   े 

ब  ठैती थ ,  वे भी उनके दर् न करने के िलए गये थे।  ईर क  े क  े बा भी आमा -  परमामा का सााकार करा बाकी रह जाता ह  ै। रामक  षृण परमह सं,

 हनु मानजी और अजु र् न को भी ई ्वरके दर् न करने के बाद भी आत ्मसाक् षात् कार करना   

बाकी था। वह उनह   े कर िलया था -  महामा की क  ृपा , अपने संयम और एकांत से। वह साक् षात् कार  उस िबहारी युवक को ही ह ,   े क  े िकसी भी युवक को हो सकता ह  ै। ह  ै कोई माई का लाल ?

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपप पपपपपप पप पपपपपपपपप !  एक चोर ने राजा के महल में चोरी की। िसिपाहयों को पता चला तो उन  ्होंने 

उसक  े पिच का पीछा िकया। पीछा करत  े-करत  े व  े गर से बाहर आ गय  ।े पास म एक गव था। उनह   े चोर क  े पिच गव की ओर जात  े   ेख।े गव म जाकर उनह   े   ेखा िक एक जगह संत ससंग कर रह  े ह और बह  ु त से लोग 

ब  ठैकर सु  रह  े ह। चोर क  े पिच भी उसी ओर जा रह  े थे। िसिपाहय को सं  ेह ह  ु आ िक चोर भी ससंग म लोग क  े बीच ब  ैठा होगा। व  े वह ख  े रहकर उसका इंतजार कर   े लग।े

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 ससंग म संत कह रह  े थे-जो मु षय सचे ह  ृय से भगवा की रण चला जाता ह  ै, भगवा उसक  े  

सप ूण पाप को माफ कर   ते  े ह। '  गीता म भगवा    े कहा ह  ःैपपपपपपपपपपपपपपपपपपपप पपपपपप पपपप पपपपप।

पपप पपपप पपपपपपपपपपपप पपपपपपपपपपपपप पप पपपपपप।।

'  सप ूण धमं को अथत् सपू ण कतयकमं को मुझम यागकर तू क  वेल एक मु झ सवितमा सवधार 

परमेर की ही रण म आ जा। म तुझ  े सप ूण पाप से मुत कर    ू  ँगा , त ूोक मत कर।' (18.66)  वाल् मीिक रामायण (6.18.33) म आता ह  ःै

पपपपपप पपपपपपपपप पपपपपपपपप प पपपपप।

पपपप पपपपपपपपपपपप पपपपपपपपपप पपपपप पप।।

'  जो एक बार भी मेरी रण म आकर '  म तुहारा ह   ू  ँ ' ऐसा कहकर रा की याचा करता ह  ै, उसे म सपू ण  – िाणय से अभय कर   तेा ह   ू    ँ यह मरेा वत ह  ै।'

 इसकी याया करत  े ह  ु ए संत शी    े कहाः जो भगवा का हो गया , उसका मा    ूसरा जनम हो गया। अब  

 वह पापी नहीं रहा , साधु हो गया।पपपपपपपपपपपपपपपपप पपपप पपपपपपपपपपप।

पपपपपपप प पपपपपपपप पपपपपपपपपपपपपप पप पपपप।।

'  अगर कोई दु राचारी -से-  ु राचारी भी अनय भत होकर मेरा भज करता ह  ै तो उसको साधु ही माा  िचाहए। कारण िक उस   े बह  ु त अछी तरह से िय कर िलया ह  ै िक परमेर क  े भज क  े समा अनय क  ु छ भी ह  

 है। ' (गीताः9.30)

 चोर वह ब  ैठा सब सु  रहा था। उस पर ससंग की बात का बह  ु त असर पा। उस   े वह ब  ठै  े-ब  ठै  े यह   ृढ 

ि न ्चयकर िलया िक  '  अभी से मैं भगवान की रण लेता ह ूँ , अब मैं कभी चोरी नहीं  

क  ँ गा। म भगवा का हो गया। ' ससंग समात ह  ु आ। लोग उठकर बाहर जा   े लग।े बाहर राजा क  े िसपाही चोर 

की तला म थे। चोर बाहर िकला तो िसिपाहय    े उसक  े पिच को पहचा िलया और उसको पक क  े राजा क  े साम   े प  े िकया।

 राजा    े चोर से प ूछाः "  इस महल म तुह    े चोरी की ह  ै  ? सच-सच बताओ, तुम   े चुराया ध कह रखा ह  ै ?"

 चोर    े   ृढता प ूवक कहाः "  महाराज ! इस जनम म म    े कोई चोरी ह की।"

 ि सपाही बोलाः "  महाराज ! यह झू ठ बोलता ह  ै। हम इसक  े पिच को पहचात  े ह। इसक  े पिच चोर क  े पिच से िमलत  े ह , इससे साफ िस होता ह  ै िक चोरी इसी    े की ह  ।ै"

 राजा    े चोर की परीा ले   े की आा ी ,ि जससे पता चले िक वह झू ठा ह  ै या सचा। चोर क  े हाथ पर पीपल क  े ाई पे रखकर उसको कचे सू त से बध िया गया। िफर उसक  े ऊपर गम 

करक  े लाल िकया ह  ु आ लोहा रखा पर तंु उसका हाथ जला तो    ूर रहा , स ूत और पे भी ह जले। लोहा ीचे जमी  पर रखा तो वह जगह काली हो गयी। राजा    े सोचा िक '   वास् तव में इसने चोरी नहीं की , यह ि ह  ।ै'

 अब राजा िसिपाहयों पर बहु त नाराज हआु िक "  तुम लोग    े एक ि पु  पर चोरी का आरोप 

लगाया ह  ।ै तुम लोग को ड िया जाय  ेगा।" यह सुकर चोर बोलाः "   नहीं महाराज ! आप इको ड । 

इका कोई ो ह ह  ै। चोरी म   े ही की थी।"

 राजा    े सोचा िक '  यह साधुपु ह  ,ै इिसलए िसिपाहय को ड से बचा   े क  े िलए चोरी का ो अप   े िसर 

पर ले रहा ह  ै।'

 राजा बोलाः "  तुम इ पर या करक  े इको बचा   े क  े िलए ऐसा कह रह  े हो पर म इनह ड अवय    ू  ँगा।" चोर बोलाः "  महाराज ! म झू ठ ह बोल रहा ह   ू  ँ , चोरी म   े ही की थी। अगर आपको िवास हो तो अप   े 

आिमय को मरे  े पास भ  ेजो। म    े चोरी का ध जंगल म जह िछपा रखा ह  ,ै वहाँ से लाकर िदखा द ूँगा। " राजा    े अप   े आिमय को चोर क  े साथ भ  ेजा। चोर उको वह ले गया जह उस   े ध िछपा रखा था और  

 वहाँ से धन लाकर राजा के सामने रख िदया। यह देखकर राजा को बड़ा आ ्चयर् हआु।  राजा बोलाः "  अगर तु मने ही चोरी की थी तो परीक ्षा करने पर तु म् हारा हाथ क् यों नहीं 

जला ? तुहारा हाथ भी ह जला और तु म   े चोरी का ध भी लाकर   े िया , यह बात हमारी समझ म ह आ रही ह  ै। 

 ठीक - ठीक बताओ , बात या ह  ै ?" चोर बोलाः "  महाराज ! म   े चोरी कर   े क  े बा ध को ज गंल म िछपा िया और गव म चला गया। वह एक  

जगह ससंग हो रहा था। म वह जाकर लोग क  े बीच ब  ठै गया। ससंग म म   े सुा िक '  जो भगवा की रण लेकर 

पुः पाप कर   े का िय कर लेता ह  ै, उसको भगिवा सब पाप से मुत कर   ते ह । उसका या जनम हो जाता   है। ' इस बात का मु झ पर असर पा और म    े   ृढ िय कर िलया िक '  अब मैं कभी चोरी नहीं करू ँगा।  अब मैं भगवान का हो िलया िक  '  अब मैं कभी चोरी नहीं कर ूँगा। अब मैं भगवान का हो  

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गया।' इिसीलए तब से मेरा या जनम हो गया। इस जनम म म    े कोई चोरी ह की , इिसलए मेरा हाथ ह जला। 

आपक  े महल म म   े जो चोरी की थी , वह तो िपछले मैंने जन् म में की थी। " क  ैसा िय भाव ह  ै ससंग का ! मा क  ु छ ण क  े ससंग    े चोर का जीव ही पलट िया। उसे सही  

समझ   ेकर पुयामा , धमार् त्  मा बना िदया। चोर सत् संग - वचनों में दृ ढ़ िनष् ठा से कठोर  परीा म भी सफल हो गया और उसका जीव बल गया। राजा उससे िभावत ह  ु आ, जा से भी वह सिमात ह  ु आ 

और भु क  े रात  े चलकर भुक  ृपा से उस   े परम प को भी पा िलया। ससंग पापी से पापी ियत को भी पुयामा  बा   तेा ह  ।ै जीव म ससंग ह होगा तो आमी क  ु संग जर कर  गेा। क  ु संगी ियत क  ु कम कर अप   े को पत  क  े गत म िगरा   तेा ह  ै िलेक ससंग ियत को तार   ेता ह  ,ै महा बा   तेा ह  ै। ऐसी महा ताकत ह  ै ससंग म !

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपपपप पप पपपपपपप सौराष (गुज.) की भू ि म क  े सुिस िकवर हो गय  े '    ु ला काग'  । िव .सं. 1958 क  े िकातक मास की  

 एकाद ी िितथ को मोडवदरी गाँव में उनका जन ्म हआु। उनकी माता का नाम आई धानबाई   

तथा िपता का ाम भाया काग था।ि  वचार ीलता  ,ि मिभाता एव ं एकितयता -य  े सगु ण   ु ला क  े जीव म बचप से ही   खेे गय  े। पचव  

का क  े बा   ु ला    े पढाई छो ी। सुबह-सु बह वह गाय को लेकर िकल जाता। गाय चर रही होत तो वह ी म ा कर आता ,ि फर पेड़ की छाँव में बैठकर अपनी छोटी -सी गठरी म बधी ह  ु ई गणिपतजी क  े मू ि त ि नकालता और उसकी प ूजा करता ,  नामजप करता और मु गध् मन से पर ्ाथर् ना करता िक  ' हे 

गणिपत   ेव ! मु झ  े तीव िबु ो।' ि फर रामायण के दोहे -चौपाइय ब  े चाव से गाता। एक समय भोज करता  और िफर से भज म लग जाता।

   ु ला क  े िपता का जगत इससे िबक  ु ल अलग था। व  े जागीरार थे और यवहार म रचे पचे रहत  े थे। अतः 

 वे दु ला को भजन करते देखते तो बड़े नाराज होते परंतु द ुला अपने िनयम में द ृढ़ 

रहता। समय बीतता गया। पौ मास की योी िितथ थी। ोपहर की तपती ध ूप म   ु ला ा करक  े आ ही रहा  

था िक एक त  ेजवी महामा उसक  े िकट आकर ख  े हो गय  े और बोलःे "  बालक ! या तु झ  े िकवता सीखी ह  ै ?"" हाँ। ""  मरे  े साथ चलेगा ?""  ऐसे ह आ सकता। मेर  े िपता जी को पता चलेगा तो मुझ  े मारगे और य  े गाय भी िबा मेर  े वापस ह  

जायगी।"

"  बचे !  अगर गायें चराने के िलए तेरे िपताजी को कोई िबढ़या ग  ्वाला िमल  जाय  े और व  े खु तु झ  े मुझको सप , तब तो त ूमेर  े पास आय  ेगा  ?"

"  ि फर तो बह ुत अच् छा होगा। " संत चले गय  ।े   ु ला जब घर पह  ु   ँ चा तो उस   े   ेखा िक िपताजी से कोई वाला काम मग   े आया ह  ै और व  े 

उससे बात कर रह  े ह। यह   ेखकर   ु ला क  े आय का िठकाा रहा  ! उसे महामा क  े वच या आय  े। उस   े सोचा िक यह सब उ संतपु  क  े संकप से ही हो रहा ह  ।ै

   ु ला को   ेखकर भाया काग    े कहाः "य , अब गया चराना छोड़ना है न  ? आय ह  ै ! रजवा   े

का कारोबार छोकर ब  े

टा गाय चरा   े

म लगा ह  ै

।"

   ु ला    े हामी भर ी। गाय चरा   े का काम उस वाले को सप िया गया।   ु ला तो ािा करक  े प ूजा म ब  ठै गया। िजस कमर  े म वह या -भज करता था उसी म उसक  े िपताजी की तलवार रखी ह  ु ई थी। 

भाया काग तलवार ले   े आय े तो   ु ला को जागीर का कारोबार सँभाल  े क  े बजाय गणे  

जी की प ूजा करत  े   खेकर ाराज हो गय  े और बोलःे "  चल मेर  े साथ ! पीपावाव गव क  े महाराज गीगारामजी मेर  े िम 

 हैं। उनके यहाँ म ुक् तानंद जी नाम के एक परि् सदध् संत आये हैं। मैं त ुझे उनके 

 हवाले कर आता ह ूँ,ि फर वहीं बैठकर तूमाला जपते रहना। " भाया काग    े उसे ले जाकर मु ता   ं जी महाराज क   े चरण म अप ण कर  

ि या।   ु ला संत मुता  ंजी महाराज क  े चरण म अपण कर िया।   ु ला संत मुता  ंजी क  े िसाय म पल   े-बढ   े लगा। धीर  -ेधीरे उसे िवचार सागर , प चंी , शीम ् भगव ् गीता िआ सा क ं ठथ हो   े लग।े एक ि    ु ला    े गु जी से कहाः "  गुजी ! म भु ज जाा चाहता ह   ू  ँ। सु ा ह  ै िक वह क  े प ंि डत की पाठाला म िकव िपरपव 

 होते हैं। "

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 मुता  ं जी बोलेः "  यह भुज ह  ै और यह पाठाला ह  ।ै भुज ह जाा ह  ।ै" ऐसा कहत  े ह  ु ए उनह   े अप   े  हाथ के पंजे दु ला के पंजों से िमला िदये, घु टन से घेु टन सेटा िदय औेरएकटक दखेत हेु एदु लापर  ितपात िकया। िफर उसकी आँख पर हाथ फ  ेरत  े ह  ु ए बोलेः "  जा ब  ेटा ! सव  यैा िलखकर ले आ।"

   ु ला    े कलम उठायी और संतक  ृपा से   ु ला की लेखी ऐसी चली िक व  े एक भतिकव क  े प म सु िस हो 

गय  े।   ु ला काग की थम रचा इस कार की थीःपपपपप पप पपप, पपपपप पपपप, पपप पपपपप पपपप पप पपप ?

पपपप पप पप पपपप पपप पप पपप, पपपपप पप पपपपपप पप पपप

पपपप ?

पपपपप पपपपप पप पप पपप पपप पपपप, पपपप पपप पपपपप

पपपपप प पपपपपप।

'पपप' पपप पप पपपप पपपपपपपपप, पप पप पपपपपपपप

पपपपपपप।।

 भावाथ ः कतू री ािभ म होत े ह  ु ए भी मृग सुगं ध को बाहर    ूँ ता िफरता ह  ै। वह  

यह ह जाता की सुगधं िजससे आ रही ह  ै वह कत ूरी उसकी अपी िाभ म ही बं ह  ै।  हे मन ! तू िवचार कर िक या त  ेरी ििथत उस मृग ज  ैसी ह ह  ै ? गु मुतान कहत  े ह िक ह  े चतरु 

मु षय ! त ूअपी चतुराई क  े बल पर िहर को िकता भी खोजता िफर, ि कता भी क सह कर पर तंु िच म म 

बा रह   े से ा का का ह होगा। त ूअपी चतुराई छो तो आमा का ा अप   े आप त  ेर  े िच म िकात 

 होगा। 26 जवरी स् 1962 को गणतन िवस पर भारत सरकार    े उनह काय-  रचा क  े े म 'पशी ' की  

उिपाध से अलंक  ृत िकया। इस कार गाय चरा   े वाला बालक संत का संग पाकर आियामक ऊँचाइय को उपलध 

 हआु , अमर य का भागी हआु।  संत की कृपा र िक ारायण प म िितत कर   े का सामय रखती ह  ।ै ऐसे महापु से समाज को  

लाभ उठाा िचाहए। उक  े ससंग-  िसाय से अप   े जीव को सँवार लेा िचाहए।अनु कर् म 

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपप पप पपपपपप प ूय बाप ूजी क  े ससंग-वच से

 मुंबई क  े जीक गणेपुरी ह  ।ै गणेपुरी ,  वजर् े ्वरी में नाना िऔलया नाम के एक   

महापु रहा करत  े थे। व  े मुतांजी क  े आशम क  े जीक की सक पर मैले क  ु चैले कप  े पह   े प  े रहत  े थे अपनी िनजानंद की मस् ती में। वे िदखने में तो सादे -स ू  े थे पर बी ऊँची पह  ु   ँ च क  े धी थे।

 उस समय घोागाी चलती थी , ऑिटोरा िग   े िगाय  े होत  े थे। एक बार एक िडटी कलेटर  

(उिपजलाधी) घोड़ागाड़ीपरकहींजारहाथा। रास् त मेें बीचसड क़परनानाऔिलयाटा गँपरटा गँचढ़ायेबै ठेथ ।े  कलेटर    े गाीवा को कहाः "   हॉनर्बजा , इस िभखारी को हटा   ।े"

 गाीवा बोलाः " नहीं, य  े तो ाा बाबा ह ! म इको ह हटाऊँगा।"

 कलेटरः "  अरे ! य ह हटाय  ेगा , सक या इसक  े बाप की ह  ै ?"  वह गाड़ी से उतरा और   नाना बाबा की डाँटने लगाः "  तुम सक क  े बीच ब  ैठ  े हो, तुमको अछा लगता ह  ै ? म ह आती ?" बाबा  ि ख   े म   ु बले पतले थे िलेक उम ऐसा जो आया िक उठकर ख  े ह  ु ए और उस कलेटर का का पककर 

धड़ाक से एक ने तमाचा जड़ िदया। आस पास के सभी लोग देख रहे थे िक नाना बाबा   ने कलेक् टर को तमाचा मार िदया। अब तो पिु लस नाना बाबा का बह ुत बु रा हाल करेगी। 

 ले  िक ऐसा सुहावा हाल ह  ु आ िक 'पपपपपपप पपपपपप पपपप

पपपपपपपपपपपप पपपपप। '  की तरह 'पपपपपपप पपपपपपप

पपपपपपपपपपपपप पपप... पपपपपपपपपपपप... पपप पपपपपप

पपपपपपप।' प जंा मार िया तो उसक  े पच िवकार का भाव कम हो गया। कलेटर    े िसर ीचे करक  े बी  आवाज म गाीवा को कहाः "  गाी वापस लो।" जह िऑडट कर   े जा रहा था वह जाकर वापस गया अप   े तर म और यागप िलखा। सोचा , "  अब यह बंदों की ग ुलामी नहीं करनी है। संसार की चीजों 

को इका कर-करक  े छोकर ह मरा ह  ,ै अिपन अमर आत् मा की जागिृ त करनी है। मैं आज से  

सरकारी ौकरी को सा क  े िलए ठ  ु कराता ह   ू  ँ और अब असली खजाा पा   े क  े िलए जीव जीऊँ गा।' ब गय  े फकीर  एक थप् पड़ से। 

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 कह तो एक भोगी िडटी कलेटर और ाा साहब िऔलया का तमाचा लगा तो ईर क  े रात  े चलकर ब  गया िसपु !

 तुम म से भी कोई चल प  े ईर क  े रात  े, हो जाय िसदध्पु रु ष !  नानासाहब ने एक ही थप् पड़ 

मारा और कलेटर    े अपा काम बा िलया। अब म या क  ँ ? थप से तुहारा काम होता हो तो म उसक  े िलए भी  त  यैार ह   ू  ँ और कहाी -कथा , ससंग सुा   े से तुहारा काम होता हो तो भी म त  ैयार ह   ू  ँ लेि क तुम अपा काम बा   े का  

इराा कर लो। लग जाय तो एक वच भी लग जाता ह  ै।अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपप पप पपपपपप पप पपपपपप भगवा का ाम क  ै स े भी  ,ि कसी भी उ  ेय से जपा जाय कयाण कर   े वाला ही होता ह  ै।

पपपपप पपपप पपप पप पपप पपप पप पपपप।

पपपप पपपपप पपपपपप पपपप पपपप पपपपप।।

 अिजामल  (शीम ्  भागवत म िजका - वृ तांत आता ह )ै, मिह वािमीकजी तथा अनय कई ामी - अनामी भक् त एवं महापु रु ष हैं, जो भगवाम-जप क  े ताप से महाित को ात हो गय  े, भवसागर से  

तर गय  े।

 िण भारत म '  ा सबधंम् '  नाम के एक िववेक ील पु रु ष थे। उनकी पत ्नी का नाम था   ' ववववव  नमः िवायम् '  । नमः िवायम्  क ा देहान् त होने पर ज् ञान सम् बंधम्एक उच् चिकोट के  

आमाुभवी संत क  े पास जाकर बोलेः "  महाराज !  संसार म मेरा कोई ह रहा। अब म परमामा का िचं त  क  ँ गा।"

 संत    े उनह भगव ् या -ि चतं क  े बार  े म माग िया पर तंु जब व  े िया कर   े ब  ैठत  े तो उनह अपी पी  की या आ जाती ह  ै। व  े पु ः संत क  े पास गय  े और बोलेः "  मुझसे परमामा का िचंत ह होता , पी का ही िचंत  

 होता है। " महामा    े प ूछाः "  तुिहार धमपी का ाम या था ?" ा सबधंम् बोलःे " वववववव  नमः िवायम् ।  "

 संतवर    े कहाः "  बह  ु त िबढया  !  अब तु म अपनी पत् नी का ही नाम जपा करो  - ''पपप

पपपपपपप।"

– संत की आा िरोधाय करक  े उनह   े इसी ाम का जप ु  कर िया। मः िवायम् भगवा िव का  मं हो   े से ा सबंधम् की िमत िपव व सू म होती गयी और धीर  े धीर  े व  े आमवप क  े ितावक ा ,

तिवचतं क  े िअधकारी हो गय  ।े क  ु छ समय बीत   े पर व  े संत क  े पास आकर बोलेः "   वह तो मु दार्हो गयी ,अब उसका नाम क् यों लें ?"

 संत    े कहाः "  रीर मु  ह  ु आ, उसम जो ाण थ,े म था वह तो मु  ह  ु आ ह।"

 ा सबधंम् वापस गय  े और या म ब  ैठ गय  े। अब व  े िवचार   े लगे िक '  ाण तो ज ह व म चंचल ह  ै,उको छोो।'

 ामाग परमामिात का िवह गं माग कहलाता ह  ै। ि संत का ससंग-माग व उसक  े अुसार 

म -ि चतं का िसिलसला चलता रहा और बह  ु त ही कम समय म ा सबंधम्    े आमवप का ा ात कर 

ि लया। ईर क  े क  े बा भी आमवप का ा ात करा बाकी रह जाता ह  ै।  हनु  मानजी को भगवान र्  ीरामचन्  दर् जी के दर् न के बाद भी जो पाना बाकी था  ,

अजु र्  न को भगवान र्  ीकृ ष् ण के दर् न के बाद भी जो पाना बाकी था  ,  नामदेव को िवट् ठल  क  े क  े बा भी जो पाा बाकी था , वह सवोर् िपर ज् ञान उन् होंने पाया। बर् ह् मज् ञान सवोर् िपर  

 है।  शीक  षृण    े उव को एकत म जाकर ििथत कर   े को कहा था। वह सविपर ििथत उनह   े ात कर 

ली। संत क  े पास क  ैसी -क  ैसी ियुतय होती ह  ै जीव को भवसागर स तार   े की ! और िकती िमहमा ह  ै भगवाम व 

तिवचतं की  !  भल े ' ववववव  नमः िवायम् '  पी का ाम था िक ं तु भगवाम अपा काम करता ही ह  ।ै 

धन् यवाद है उन िअभभावकों को जो अपने बच ्चों के नामकरण के समय भगवान के  

 नामों का ही अवलम ्बन लेते हैं ! ि ज िअभभावक    े अप   े बच क  े ाम टीू , मी ू, ि पकंी , ि चकंी ,लेषमा ह  ृ इस कार रखे ह , उनह हम ाथा करत  े ह िक व  े अिजामल, ा सबधंम् की कथा से ेरणा लेकर अप   े बच का ाम ारायण, िहर , ि व, क  षृण, राम, िहरदास , िगोव, सरवती ,   ु ग ह  ृ इस कार रख। िचंता कर 

ि क ाम कम प जायगे। भारत क  े िऋय    े भी िवषणुसहाम, शी िवसहाम िआ की रचा करक  े आपक  े ि लए भगवाम का व  ैि वयप ूण भ डंार खोल रखा ह  ै अप   े सा म। और ाम भी ऐसे िक एक- एक नाम भगवान  

क  े एक- एक अदभु त गु ण का वाचक ! शी िवषणुसहाम म भगवा क  े हजार ाम ह , उम से ाम रख। क  ैसी  

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 सु  ंर यवथा ह  ै ! तो आप इसका लाभ ल और अपी वाणी को पाव व म िबु को सगु णसप, भगवन मय  

बाय।अनु कर् म 

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपपप पप पपपपप पपपपपप  एक िपता -पु यापार ध धंा करत  े थे। पु को िपता क  े साथ काय करत  े ह  ु ए वं बीत गय  े, उसकी उ भी  

चालीस को छ   ू   े लगी। िफर भी पु को िपता तो यापार की वतनता   ेत  े थे और ही ितजोरी की चाबी। पु  क  े म म स  ैव यह बात खटकती। वह सोचता , "  िय िपता जी का यही यवहार रहा तो मुझ  े यापार म क  ु छ या कर   े का कोई अवसर ह िमलेगा।' पु क  े म म छ  ु पा ोभ एक ि फ   ूट पा। ो क  े बीच झगा ह  ु आ और सपा का  ब  ँ टवारा हो गया। िपता पु ो अलग हो गय  ।े पु  अपी पी , बच क  े साथ रह   े लगा। िपता अक  ेले थे, उकी  पी का   ेहत हो चुका था। उनह   े िकसी    ूसर  े को सेवा क  े िलए ह रखा यिक उनह िकसी पर िवास ह था।  

 वे स् वयं ही रू ख -स ूखा भोज बाकर खा लते  े या कभी च   े िआ खाकर ही रह जात  े तो कभी भ ूखे ही सो जात  े थे।

 उकी पुवधु बचप से ही ससंगी थी। जब उस   े अप   े सुर की ऐसी हालत का पता चला तो उसे बा    ु ःख ह  ु आ, आमिला भी ह  ु ई। उसम बायकाल से ही धम क  े संकार थे, ब क  े ित आर व सेवा का भाव था। 

उस   े अप   े िपत को मा   े का यास िकया पर तंु व  े मा   ।े िपता क  े ित पु क  े म म सभाव ह था। अब  पुवधु    े एक िवचार अप   े म म   ढृ कर उसे कायिनवत िकया। वह पहले िपत व पु  को भोज कराकर मः   ु का और िवालय भ  ेज   तेी , बा म वय ं सुर क  े घर जाती। भोज बाकर उनह िखलाती और िरा क  े िलए भी  भोज बाकर रख   े ती। क  ु छ ि तक ऐसा ही चलता रहा। जब उसक  े िपत को पता चला तो  

उस   े पी को ऐसा कर   े से रोकत  े ह  ु ए कहाः "  ऐसा य करती हो ? बीमार प जाओगी। तुहारा रीर इता िपरशम 

 नहीं सह पायेगा। " पी बोली "  मेर  े आरणीय सु र जी भू खे रह तकलीफ पाय और हम लोग आराम से खाय-ि पय, यह म ह   ेख सकती। मेरा धम ह  ै ब की सेवा करा , इसक  े िबा मु झ  े संतो ह होता। उम भी तो मेर  े भगवा का वास ह  ै। म उन ह िखलाय े िबा ह खा सकती। भोज क  े समय उकी या  

आ   े पर मरेी आँख म आँस ूआ जात  े ह। उनह   े ही तो आपको पाल-पोसकर बा िकया ह  ै, तभी आप मु झ  े िपत क  े प 

म िमले ह । आपक  े म म क  ृतता का भाव ह ह  ै तो या ह  ु आ, म उक  े ित क  ैसे क  ृत क  ैसे हो सकती ह   ू  ँ !" पी क  े सुंर संकार    े, सभाव    े िपत की िबु पलट ी। उनह   े जाकर अप   े िपता क  े चरण छ  ु ए, मा  

मगी और उनह अप   े घर ले आय  े। िपत पी ो िमलकर िपता की सेवा कर   े लगे। िपता    े यापार का सारा भार  पु पर छो िया। िपरवार क  े िकसी भी ियत म सचा सभाव ह  ,ै मावीय संव  ेाए  ँ ह , ससंुकार ह तो वह सबक   ेम को जो सकता ह  ,ै घर -िपरवार म सुख ित बी रह सकती ह  ै। और यह तभी सभव ह  ै जब जीव म ससंग 

 हो , भारतीय सं क  िृ  त क  े उच सं कार ह   , धमर्का सेवन हो। जीवन का सा कौन ऐ -सा े ह   ैजह ससंग की आवकता ह ह  ै ! ससंग जीव की अयावयक मग ह  ै यिक सचा सुख जीव की मग ह  ै और 

 वह सत् संग से ही िमल सकता है। पप पपपप पपपपप पपपपपपपपपपपपप पपप प पप।  

पपपप।।

(पपपपपपपपपपप.पप.पपप. 2.3)

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपप पपप(प ूय बाप ूजी क  े ससंग-वच स)े

  एक संत के पास बहरा आदमी सत ्संग सु नने आता था। उसे कान तो थे पर वे  

  िनाड़यों से जु ड़े नहीं थे। एकदम बहरा ,   एक ब् द भी सु न नहीं सकता था। िकसी ने  

संतशी से कहाः"  बाबा जी !  वे जो व ृदध् बैठे हैं, वे कथा स ुनते-सु त  े ह  ँ सत  े तो ह पर व  े बहर  े ह ।"

– बहर  े मुयतः ो बार ह  ँ सत  े ह एक तो कथा सु त  े-सु त  े जब सभी ह  ँ सत  े ह तब और    ूसरा , अनु मान  करक  े बात समझत  े ह तब अक  ेले ह  ँ सत  े ह।

 बाबा जी    े कहाः "  जब बहरा ह  ै तो कथा सु   े य आता ह  ै ? रोज एकम समय पर पह  ु   ँच जाता ह  ।ै चाल ू कथा से उठकर चला जाय ऐसा भी ह ह  ,ै घ टंो बं ठैारहताह ।ै "

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 बाबाजी सोच   े लग,े "  बहरा होगा तो कथा सुता ह होगा और कथा ह सु ता होगा तो रस ह आता   होगा। रस नहीं आता होगा तो यहाँ बैठना भी नहीं िचाहए , उठकर चले जाा िचाहए। यह जाता भी   नहीं है !''

 बाबाजी    े उस वृ को बुलाया और उसक  े का क  े पास ऊँ ची आवाज म कहाः "  कथा सुाई पती ह  ै ?" उस   े कहाः "  या बोले महाराज ?"

 बाबाजी    े आवाज और ऊँ ची करक  े प ूछाः "  म जो कहता ह   ू  ँ , या वह सु ाई पता ह  ै ?" उस   े कहाः "  या बोले महाराज ?"

 बाबाजी समझ गय  े िक यह ितत बहरा ह  ै। बाबाजी    े सेवक से कागज कलम मँगाया और िलखकर प ूछा।  वृ दध् ने कहाः "  मेर  े का प ूरी तरह से खराब ह। म एक भी ह सु  सकता ह   ू  ँ।"

 कागज कलम से ोर ु  हो गया।"  ि फर तु म सत् संग में क ्यों आते हो ?""  बाबाजी ! सु  तो ह सकता ह   ू  ँ िलेक यह तो समझता ह   ू  ँ िक ईरात महापु जब बोलत  े ह तो पहले 

परमामा म ड  ु बकी मारत  े ह। संसारी आमी बोलता ह  ै तो उसकी वाणी म व बु ि  को छ   ूकर आती ह  ै िलेक ाी  संत जब बोलत  े ह तो उकी वाणी आमा को छ   ूकर आती ह। म आपकी अमृतवाणी तो ह सु पाता ह   ू  ँ पर उसक  े आंोल मेर  े रीर को प करत  े ह ।    ूसरी बात, आपकी अमतृवाणी सु    े क  े िलए जो पुयामा लोग आत  े ह उक  े बीच ब  ैठ   े का पुय भी मुझ  े ात होता ह  ।ै"

 बाबा जी    े   ेखा िक य  े तो ऊँ ची समझ क  े धी ह। उनह   े कहाः "  आप ो बार ह  ँ सा , आपको िअधकार ह   ैि क ं तु म यह जाा चाहता ह   ू   ँिक आप रोज ससंग म समय पर पह  ु   चँ जात  े ह और आगे ब  ैठत  े ह , ऐसा य ?"

"  म िपरवार म सबसे बा ह   ू  ँ। ब  े ज  सैा करत  े ह व  ैसा ही छोट  े भी करत  े ह । म ससंग म आ   े लगा तो मेरा  बा लका भी इधर आ   े लगा। ुआत म कभी -कभी म बहाा बा क  े उसे ले आता था। म उसे ले आया तो वह  

अपनी पत् नी को यहाँ ले आया , – पी बच को ले आयी सारा क  ु ट  ु ब ससंग म आ   े लगा , क  ु ट  ु ब को संकार िमल गय  ।े"

चच , आमा का ससंग ऐसा ह  ै िक यह समझ म ह आय  े तो या , सुाई ह   तेा हो तो भी इसम  िामल हो   े मा से इता पुय होता ह  ै िक ियत क  े जनम -जनम क  े पाप-ताप िमट   े एव ं एकाताप ूवक सु कर 

इसका म -ि िनदध् यासन करे उसके परम कल् याण में सं य ही क ्या  !

अनु कर् म 

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐपपप पपपप पपप पपप, पपपप पपप पपप

पपपप.....पपपपप पपपप पप

 सु बह म से उठ क  े ास िगो और त हो जाओ। अप   े परमामा म, आमा मे ही खु रहा। 'मरेा  प  ैसा कह ह  ै ? मेरा छोरा कह ह  ै ?'   न ्वरदुि नया की चीजों की क् या इच् छा करना  ! '  म अमर आमा ह   ू  ँ। 

रीर मर  गेा , म तो अप   े-आप म मत ह   ू  ँ। मुझ  े मार  े ऐसी कोई तलवार ह , कोई मौत ह। अमर आमा क  े आगे तो मौत की मौत हो जाय  े। म तो अमर आमा ह   ू  ँ। ॐ.... िहरॐ....ॐ....' – इस कार अमर आमा का िवचार कर  े तो अमर आत् मा को पायेगा और बेट -ब  टेी का िवचार कर  ,े नाती -पोत  े का िवचार कर  े तो अंत म उनह की या 

आय  ेगी और वह जनमेगा। भगवा    े गीता म कहा ह  ै ः

पप पप पपपप पपपपपपपपपप पपपपपपपपपपप पपपपपपपप।

पप पपपपपपप पपपपपपप पपप पपपपपपपपपपप।।

'  हे कु न् तीपु तर्अजु र् न ! यह मुषय अंतकाल म िजस-ि जस भी भाव का मरण करता ह  ु आ रीर का  याग करता ह  ,ै उस उस को ही ात होता ह  ै यिक वह सा उसी भाव से िभावत रहा ह  ै।' (8.6)

  एक बार संत कबीर जी ने एक िकसान से कहाः "  तु म ससंग म आया करो।"

 ि कसा बोलाः "   हाँ महाराज ! मेर  े लक  े की सगाई हो गयी ह  ,ै ाी हो जाय  े िफर आऊँगा।"

 लक  े की ाी हो गयी। कबीर जी बोलःे "  अब तो आओ। ""  महेमा आत  े जात  े ह। महाराज ! थो  े ि बा आऊँगा।"

 ऐसे ो साल बीत गय  ।े बोलेः "  अब तो आओ। ""  महाराज ! मेरी बह   ूह  ै  , वह माँ बनने वाली है। मेरा छोरा बाप बनने वाला है। मैं 

ाा ब   े वाला ह   ू  ँ । घऱ म पोता आ जाय,ि फर कथा में आऊँगा। " पोता ह  ु आ। "  अब तो सत् संग में आओ। "

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"  अरे महाराज ! आप मेर  े पीछ  े य प  े ह ?    ूसर  े ह िमलत  े ह या ?" कबीर जी    े हाथ जो िलय  ।े क  ु छ व क  े बा कबीरजी िफर गय  े,   ेखा िक कह गया वह खेतवाला  ?

  ु का भी थ , खेत भी था। लोग बोलेः "   वह तो मर गया !""  मर गया।"

" हाँ। "

मरत  -े  मरत  े वह सोच रहा था िक '  मरे  े खते का या होगा ,   ु का का या होगा ?' कबीर जी    े या लगा क  े   ेखा िक   ु का म च ूहा बा ह  ै िक खेत म ब  लै बा ह  ै ?   ेखा िक अरहट म ब  ँ धा ह  ै, ब  ैल ब गया ह  ै। उसक  े पहले हल 

म जु ता था , ि फर गाड़ी में ज ुता। अब बू ढ़ा हो गया है। कबीर जी थोड़े -  थो  े ि म आत  े जात   ेरह  े। िफर उस बू ढ  े ब  ैल को, अब काम नहीं करता इिसलए तेली के पास बेच िदया गया। तेली  

 ने भी काम िलया िफर बेच िदया कसाई को और कसाई ने '  ि िबमलाह !' करक  े छ  ु रा िफरा िया। 

चमा उतार क  े गा  ेवाला को ब  चे िया और टुक  -े  टकु  े कर क  े मस ब  ेच िया। कबीर जी    े साखी बायीः

 कथा म तो आया ह , मरकरपपप पपप पप पपप पपपप, पप पपपपप पपप पपपप।

  हल नहीं खींच सका तो गाड़ी ,  छकड़े को खींचने में लगा िदया। पपपप पप पपपपपप पपप, पपपप पप पपपप पपपप।

पपपप पपप पपपप पपपप, पपपपप पपपप पपपप।

पपप पप पपपप पपपप पपप, पपप पप पपपपप पपपपप।।

  नगारे पर डंडे पड़ रहे हैं। अभी कमर्बाकी हैंतो उसे डंडे पड़ रहे हैं।   मेरा ब  ेटा कह ह  ै ? मेरी ब  ेटी कह ह  ै ?....'  डंडे पड़ेंगे िफर।  '  मेरा परमामा कह ह  ै ? अमर आत् मा  कह ह  ै ? यह तो मर   े वाला रीर मर रहा ह  ै, सप   े ज  ैसा ह  ै। कई ब  ेट  े-ब  ेटी सपा हो गय  ,े संसार सपा हो रहा ह  ै िलेक जो बचप म मेर  े साथ था , ाी म साथ था , बुढाप  े म साथ ह  ,ै मर   े क  े बा भी जो साथ ह छो  ेगा वह मेरा  भु आमा क  ैसा ह  ै ? ॐ आनंद .... ॐ ांित  ...' –  ऐसा करक  े उस आमा को जा   े तो मुत हो जाय  े और 

'   छोरे क् या क् या होगा ? खेती का या होगा ?' ि कया तो ब  ैल बो ब  ेटा ! जाओ। इिसलए म को संसार म ह लगाा। ाव पाी म रह  े लेि क पाी ाव म ह रह  े। रीर संसार म रह  े 

ि क ं तु अप   े िमाग म संसार ह घुसे। अप   े िमाग म तो '  ॐ आनन् द ... ॐ ांित  .... ॐ माधु यर.्.. संसार 

सपा , परमामा अपा ....' – ऐसा िचंत चलता रह  ।े िचंत करक  े ििंत ारायण म िविशानत पाय,ि  न ि ् चंत    नारायण - व् यापक बर् ह् म में आयें। अनु कर् म 

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपपप पप पपपपप  एक बार देिवषर्नारद भगवान िवष् णु के पास गये और पर ्णाम करते हु ए नमर्वचन  

बोलःे "   हे लक् ष् मीपते, हे कमलनयन ! क  ृपा करक  े इस ास को ससंग की िमहमा सुाइय  े।"

 जगिपत    े मं-मं मुकरात  े ह  ु ए अपी मधुर वाणी म कहाः ह  े ार ! ससंग की िमहमा का वण कर   े म तो वाणी की िगत ह ह  ै।" ि फर क् षण भर रू  ककर र्  ी भगवान बोलेः " हाँ, यह से तुम आगे जाओ। वह  इमली क  े प  े पर एक बा ििवच, र गंी िगिरगट ह  ै,  वह सत् संग की िमहमा जानता है। उसी से प ूछ  

लो।"    ेिव खुी -खुी इमली क  े प  े क  े पास गय  े और योिगवा क  े बल से िगिरगट से बात कर   े लग।े उनह   े ि गिरगट से प ूछाः "  ससंग की िमहमा या ह  ै ? क  पृया बतलाइय  ।े"

 सवाल सु त  े ही वह िगिरगट प  े से ीचे िगर गया और छटपटात  े ह  ु ए ाण छो िय  े। ारजी को बा  अचंभा हुआ। वे डरकर लौट आये और भगवान को सारा व ृत् तान्त कह सु नाया। भगवान ने 

मुकरात  े ह  ु ए कहाः "अच् छा , नगर के उस धनवान के घर जाओ और वहाँ जो तोता िपंजरे में 

ि खेगा , उसी से ससंग की िमहमा प ूछ लेा।"

  नारदजी क् षण भर में वहाँ पह ुँच गये एवं तोते से वही सवाल प ूछा , मगर   ेिव क   े  ेखत  े ही   ेखत  े उस   े आँख मू  ं ल और उसक  े भी ाणपखे उ गय  े। अब तो ार जी ब  े घबरा गय  े।

  वे तु रंत भगवान के पास लौट आये और कहने लगेः "  यह या लीला ह  ै भगव्  ! या  ससंग का ाम सु कर मरा ही ससंग की िमहमा ह  ै ?"

 शी भगवा हँ सकर बोलःे "   वत् स ! इसका मम भी तु मको समझ म आ जाय  ेगा। इस बार गर क  े राजा क  े महल म जाओ और उसक  े वजात पु से अपा प ूछो।"

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  नारदजी तो थरथर काँपने लगे और बोलेः "   हे पर् भु! अब तक तो बच गया ल िेकन  अब की बार तो लगता है म ुझे ही मरना पड़ेगा। अगर वह नवजात राजप ुतर्मर गया तो  राजा मुझ  े िज ंा ह छो  ेगा।"

 भगवा    े ारजी को अभया िया। ारजी िल मु ी म रखकर राजमहल  

म आय  े। वह उका बा सकार िकया गया। अब तक राजा को कोई संता ह थी। अतः पु क  े जनम पर ब  े 

आनोलास से उसव माया जा रहा था। ारजी    े डरत  -े डरते राजा से प ुतर्के बारे में पू छा।   नारदजी को राजपु तर्के पास ले जाया गया। पसीने से तर होते ह ुए , म - ही -म  

शीिहर का ाम लते  े ह  ु ए ारजी    े राजपु से ससंग की िमहमा क  े बार  े म िकया तो वह वजात िु ह  ँ स पा  और बोलाः "  महाराज ! चं को अपी सुगंध और अमृत को अप   े माधुय का पता ह होता। ऐसे ही आप अपी  िमहमा ह जात  े इिसलए मुझसे प ूछ रह  े ह । वातव म आप ही क  े णमा क  े संग से म िगिरगट की ियो से मुत हो गया और आप ही क  े मा से तोत  े की ुद ियो से मुत होकर इस मुषय जनम को पा सका। आपक  े िसायमा से मेरी िकती सारी ियोय कट गय और म सीध  े माव-त म पह  ु   ँ च गया , राजपु बा। यह ससंग 

का िकता अभुत भाव ह  ै !  हे िऋषवर ! अब मु  झे आ ीवार् द दें िक मैं मन ुष् य जन् म के  

परम लय को पा ल ू  ँ।"

  नारदजी ने खु ी  -खुी आीव िया और भगवा शी िहर क  े पास जाकर सब क  ु छ बता िया। शीिहर बोलःे "सचमुच, ससंग की बी िमहमा ह  ै। संत का सही गौरव या तो संत जात  े ह या उक  े सचे 

ेमी भत !" या यह अमृतमय कथा पढकर आपका ह  ृय पाव ह ह  ु आ ? या आपक  े म म भुमे क  े पुषप ह िखले 

? या िभतरस का मकर ं आप   े ह चखा ? संत का िसाय तो महाकयाणकारी होता ही ह  ै िक ं तु अगर हमारी  ओर सेपू णर्तत् परता , प ूण रणािगत हो एव ं मो पा   े की तीव ललक हो तो उसका भाव और भी बढ जाता ह  ै तथा ी फल   ेता ह  ै। साचरण क  े साथ िमल बु ि  भी हो तो ससंग का भाव ु  िभत को जगा   ेता ह  ै और 

ि फर भक ्त भगवान में ही लीन हो जाता है , प ूणता को पा लेता ह  ै।अनु कर् म 

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपप पपपप पप पपपप पपपपप पपप ! ि कसी गव म एक चोर रहता था। एक बार उसे कई ि तक चोरी कर   े का अवसर ही ह िमला , ि जससे 

उसक  े घर म खा   े क  े लाले प गय  ।े अब मरता या करता ,  वह िरातर्के लगभग बारह बजे गाँव  क  े बाहर बी एक साधु की क  ु ि टया म घुस गया। वह जाता था िक साधु ब  े यागी ह , अपने पास कु छ नहीं रखत  े िफर भी सोचा , '  खा   े पी   े को ही क  ु छ िमल जाय  ेगा। तो एक ो ि का गुजारा चल जाय  ेगा।'

 जब चोर क  ु ि टया म व  े कर रह  े थे, संयोगव उसी समय साधु बाबा या से उठकर लघुंका क  े ििम 

बाहर िकले। चोर से उका सामा हो गया। साधु उसे   ेखकर पहचा गय  े यिक पहले कई बार   ेखा था , पर 

साधु यह ह जात  े थे िक वह चोर ह  ै। उनह आय ह  ु आ िक यह आधी रात को यह य आया ! साधु    े ब  े मे से प ूछाः "  कहो बालक ! आधी रात को क  ैसे क िकया ? क  ु छ काम ह  ै या ?"

 चोर बोलाः "  महाराज ! म ि भर का भ ूखा ह   ू  ँ।"

 साधुः "   ठीक है, आओ ब  ठैो। म    े ाम को धू ी म क  ु छ करक ं डाले थे,  वे भु न गये होंगे,

ि नकाल देता हू ँ। तु म् हारा पेट भर जायेगा। ाम को आ गये होते तो जो था हम दोनों  

ि मलकर खा लेत  े। प  ेट का या ह  ै ब  टेा !

अगर मन में संतोष हो तो िजतना िमले उसमें ही मन ुष् य  

खु रह सकता ह  ै। '  यथा लाभ संतो' यही तो ह  ै।"

 साधु    े ीपक जलाया। चोर को ब  ैठ   े क  े िलए आस िया , पाी िया और एक पे पर भु    े ह  ु ए करक ं  

रख िय  े। िफर पास म ब  ठैकर उसे इस तरह िखलाया , ज  ैसे कोई म अप   े बचे को िखलाती ह  ै। साधु बाबा क  े सयवहार से चोर िहाल हो गया , सोच   े लगा , '   एक मैं हू ँ और एक ये बाबा हैं। मैं चोरी करने 

आया और य  े इत   े यार से िखला रह  े ह ! मुषय य  े भी ह और म भी ह   ू  ँ। यह भी सच कहा ह  ःै आमी -  आमी म अंतर,कोई हीरा कोई क ं कर। म तो इक  े साम   े क ं कर से भी बतर ह   ू  ँ।'

 मु षय म बुरी क  े साथ भली वृि य भी रहती ह , जो समय पाकर जाग उठती ह । ज  सैे िउचत खा-पाी  पाकर बीज पप जाता ह  ै,  वैसे ही संत का संग पाकर मन ुष् य की सदवृि त् तयाँ लहलहा उठती  

 हैं। चोर के मन के सारे क ुसंस् कार हवा हो गये। उसे संत के दर् न  , िसाय और 

अमृ तवषार्दिृ ष् ट का लाभ िमला। 

पप पपपप पपप पपपप, पपप पपप पपपप पपप।पपपपप पपपप पपप पप, पपप पपपप पपपपप।।

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 उ ि साधुपु क  े आध  े घ टं  े क  े समागम से चोर क  े िकत   े ही िमल संकार हो गय  े। साधु क  े साम   े अपा अपराध कब ूल कर   े को उसका म उतावला हो उठा। िफर उसे लगा िक '  साधु बाबा को पता चलेगा  

ि क म चोरी की ियत से आया था तो उकी जर म मेरी या इजत रह जाय  ेगी ! या सोचगे बाबा िक क  सैा िपतत 

ाणी ह  ,ै जो मु झ संत क  े यह चोरी कर   े आया !' िलेक िफर सोचा , '  साधु म म चाह  े जो समझ, म तो इक  े साम   े अपना अपराध स् वीकार करके पर् ाय ि ् चत करू ँगा। इतने दयालूमहाप ुरु ष हैं , य  े मेरा अपराध 

अव ्यक् षमा कर देंगे।  ' संत क  े साम   े ाियत कर   े से सार  े पाप जलकर राख हो जात  े ह। उसका भोज प ूरा हो   े क  े बा साधु    े कहाः "  ब  ेटा ! अब इतनी रात में तु म कहाँ जाओगे, मेर   े

पास एक चटाई ह  ,ै इसे ले लो और आराम से यह सो जाओ। सुबह चले जाा।"

  नेकी की मार से चोर दबा जा रहा था। वह साधु के पैरों पर िगर पड ा़ और फ ूट - फू ट  कर रो   े लगा। साधु समझ सक  े िक यह या ह  ु आ ! साधु    े उसे ेमप ूवक उठाया , ेम से िसर पर हाथ फ  ेरत  े ह  ु ए 

प ूछाः "  ब  टेा ! या ह  ु आ ?"

रोत  -े  रोत  े चोर का गला   ँ ध गया। उस   े बी िकठाई से अप   े को सँ भालकर कहाः "  महाराज ! म बा  अपराधी हू ँ। "

 साधु बोलेः "  ब  ेटा ! भगवा तो सबक  े अपराध मा कर    े वाल े ह । उकी रण म  

जा   े से व  े ब  -ेस-े  ब  े अपराध मा कर   ेत  े ह। त ूउनह की रण म जा।"

 चोरः "  महाराज ! मेर  े ज  ैसे पापी का उार ह हो सकता।"

 साधुः "  अरे पगले ! भगवा    े कहा ह  ै ः यि कोई अितय   ु राचारी भी अन य भाव  

से मेरा भत होकर मु झको भजता ह  ै तो वह साधु ही मा   े योय ह  ै।"

"   नहीं महाराज ! म    े बी िचोरय की ह। आज भी म भू ख से याकुल होकर आपक  े यह चोरी कर   े  आया था िलेक आपक  े सयवहार    े तो मेरा जीव ही पलट िया। आज म आपक  े साम   े कसम खाता ह   ू  ँ िक आग े

कभी चोरी ह क  ँ गा , ि कसी जीव को ह सताऊँगा। आप मुझ  े अपी रण म लेकर अपा िषय बा िलीजय  े।"

 साधु क  े यार क  े जा   ू   े चोर को साधु बा िया। उस   े अपा प ूरा जीव उ साधु क  े चरण म सा क   ेसिमपत करक  े अमू य माव जीव को अमू य-स-े  अमू ल् य परमात् मा को पाने के रास ्ते लगा िदया। 

 महापु की सीख ह  ै िक "  आप सबसे आमवत् यवहार कर यिक सुखी जीव क  े िलए िवु िःवाथ ेम ही असली खुराक ह  ै। संसार इसी की भू ख से मर रहा ह  ै, अतः पर् ेम का िवतरण करो। अपने ह ृदय  क  े िआमक ेम को ह  ृय म ही मत िछपा रखो। उारता क  े साथ उसे बटो, जगत का बह  ु त-  सा   ु ःख    ूर हो 

जाय  गेा।"अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपप पप पपप पपप पपपप पर परमामा क  े साथ एकव क  े अुभव को उपलध वामी रामतीथ   े-  ि  वदे में घू म  - घू मकर 

 िवा का उप  े   ेत  े थे। बात फरवरी स्  1902 की ह  ,ै '  साधारण धमसभा ,  फैजाबाद ' क  े    ूसर   े िवाषर् कोत् सव में स् वामी रामतीथर्भी पधारे। स् वामी जी तो वेदान् ती थे। '  सबम ह  ै, सब 

म ह  ,ै सब ह  ै। म ह   ू  ँ , आप भी ह , क  े िसवाय क  ु छ ह ह  ै।' – इसी सात सय ा की पहले ि  उनह   े याया की। शोताओं म एक सज शी ौर गंमल भी मौजू  थे। उक  े पास एक मौलवी मोहम मुतजा  अली खाँ भी बैठे थे। नौरंगमल जी ने मौलवी साहब से कहाः "  सु त  े हो मौलाा ! यह युवक 

या कह रहा ह  ै ! कहता ह  ै िक म खु ा ह   ू  ँ ।" यह सु कर मौलवी आप  े से बाहर हो गय  े और कह   े लगेः "  अगर इस   वक्  त मु  सलमानी राज्  य होता तो मैं फौरन इस िकाफर की गदर ् न उड़ा देता। िलेकन  अफसोस ! म यह मजब ूर ह   ू  ँ।"

    ूसर  े ि मौलवी साहब िफर धमसभा म गय  ।े वह सुबह का ससंग चल रहा था। मंडप शालुओं से भरा   हआु था। स् वामी रामतीथर्फारसी में एक भजन गा रहे थे िजसका मतलब थाः "   हे नमाजी  ! त  ेरी यह माज ह  ै िक क  ेवल उठक-  ब  ैठक ? अरे,  नमाज तो तब है जब ई ्वरके िवरह में सा  ऐ  

ब  चेै और अधीर हो जाय िक तुझ  े ब  ैठत  े चै िमले और ख  े होत  ।े असली माज तो तभी कहलाय  गेी ,  नहीं तो  यह क  वेल कवाय मा ह  ै।"

 वामी रामतीथ यह भज िबक  ु ल तली हो कर गा रह  े थे और उकी आँख से आँसू झर रह  े थे। उस 

समय उक  े चेहर  े से अिलौकक त  ेज बरस रहा था। मौलवी साहब वामी रामतीथ की उस तलीता  ,

भगव े म और भगव स म प ण से बह  ु त िभाव त ह  ु ए। भज समा त होत  े ही मौलवी    

अपनी जगह से उठे और स ्वामी रामतीथर्के पास पह ुँचकर अपने वस् तर्  ों में छु पाया   हआु एक खंजर (कटार) ि नकालकर उनके कदमों में रख िदया और बोलेः "   हे राम ! आप 

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 सचमुच राम ह  ,ै म आज इस वत बह  ु त बुरी ीयत से आपक  े पास आया था। म आपका गु हगार ह   ू  ँ। मु झ  े माफ कर 

िीजय  े। म बह  ु त िमना ह   ू  ँ ।"

 वामी रामतीथ मुकराय  े और बोलःे "  य गंा बंा बता ह  ै ? जो त ूह  ै वही तो म ह   ू  ँ। म तु झसे अलग कब ह   ू  ँ  ? जब, आइंा िकसी से भी फरत मत करा यिक सबक  े भीतर वही सवयापी खुा मौजू  ह  ै। हालिक त ूउससे ब  खेबर ह  ,ै पर वह त  रेी हर बात को जाता ह  ै। अप   े खयालात िपव रख। खुी को भू ल जा और खुा को या  

रख, जो त  ेर  े जीक से भी जीक ह  ै, याी जो त ूखु ह  ै।" – ऐसा कहकर वामी जी    े बह  ु त यार से मौलवी क  े ि सर पर हाथ फ  रेा और मौलवी अपा िसर वामी जी क  े चरण पर रख बच की तरह रो   े लगे। रोत  े-  रोत  े मौलवी की  आँख लाल हो गय। व  े िकसी कार से भी वामी जी क  े चरण छो ह रह  े थे। बस,  एक ही रट लगा रखी थीः 

"  मु झ  े माफ कर िीजय  े, मु झ  े माफ कर िीजय  े।" बी मु ि कल से उनह त िकया गया। तब से वह मौलवी मुहम 

मुतजा अली ख उका अनय भत हो गया। उस   े अप   े आपको वामी जी क  े शीचरण म सिमपत कर िया और 

उसका जीव िभतमय हो गया। ि महापु सभी क  े आमीय वज ह  ै। व  े िकसी को भी अप   े से अलग ही   ेखत  े और िाणमा पर 

अपनी करू णा -  क  ृपा रखत  े ह। व  े सभी का आमोथा चाहत  े ह। व  े हमार  े अतंःकरण म भर  े क   ू  े-  कचर  े को अप   े उप  े ारा बाहर िकाल फकत  े ह और हमार  े ह  ृय को िमल व िपव बा   ते  े ह। व  े हम जीव जी   े की सही राह 

ि खात  े ह और जीव को जीवाता भगवा की ओर ले जात  े ह।– वामी रामतीथ का रसमय जीव आज भी िख रहा ह  ै कह कोई बापू जी कहता ह  ै, कोई स कहता ह  ै 

पर तंु अठिखेलय वही िसचा  ं की .... सभी को िहराम क  े ारा अप   े सुख का रस ा कर   े वाले ऐसे कौ   हैं इस समय ? जा गय  े, मा गय  ,े  – पहचा गय  े वामी रामतीथ का यार, भले ाम बलकर ,  वही तो   डाँ ट रहा है !

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपप पपपप पपपपप पपप पपपपपपप पपपप पप पप पपपपपप-पपपपपप पप

 गु  ाक   वे जी घू मत  -े   घामतेिकसी नगरके बाहरडे राडाले हु ए थे । भावु  क र् दध्ालु  लोगदर्न करने  

गय  े। धीर  -े  धीरे बात राजा तक पहु ँची और वह भी दर् न करने गया। नया  -   नया राजा था , पहली  बार जा रहा था िकनह संत क  े चरण म।

 राजा    े   ेखा िक ाक जी को सब लोग झुक -  झुक क  े णाम करत  े ह , ब  े आर से िहारत  े ह और य  े बाबाजी तो सब छो क  े संत ब   े ह । अब इको लोग मकार णाम कर इसकी या जरत !  हम लोगों को  कोई सलाम कर   े तो ठीक ह  ै,  हमको जरा मजा भी आये। अब बाबा बन गये,  घर -  बार छो िया िफर 

णाम करवा   े की या जरत ! राजा क  े िच म संकप-  ि वकल् प होते रहे।   नानकदेव तो नानक देव थे। प ूछाः

"  या सोचता ह  ै भ  यैा ?" राजा बोलाः "  बाबाजी ! गु ताफी माफ हो..." और राजा    े सारी बात कह ी।

  नानक देव ने कहाः "  अभी नहीं कहू ँगा। कल स ुबह आना। " राजा अप   े महल म चला गया , खाया -  ि पया और सोया। सौ जा   े पर सपा   ेखता ह  ै िक वह ज गंल म 

ि कार कर   े गया। एक िबढया िहर िखा , उसक  े पीछ  े घोा भगाय  े जा रहा ह  ।ै िहर हवा को गया। राजा िसाथय  

स,े ि म से जु ा हो गया और ऐसी जगह पर पह  ु   ँचा िक जह कोई राता ही ह िमलता। भू खा -   यासा राजा भटक रहा ह  ै। जामु का रस और चावल िलय  े एक चडाली जा रही ह  ।ै राजा चडाली क  े आगे िगिगाता ह  ःै '  तू मुझ   ेभोज   े   े। '

 चडाली बोलती ह  ैः '    हम लोग चांडाल हैं। िबना स ्वाथर् के िकसी से पर्  ि ीत नही  ं

करत  े। तुम मेर  े भत हो जाओ तो म तु ह िखलाऊँ।'

 जो वाथ होत  े ह , जो चडाल म क  े होत  े ह व  े िबा मतलब िकसी का उपकार ह करत  े और जो संत होत  े  हैं वे कोई मतलब रखे िबना उपकार करते हैं। भ ूखा मरता हआु राजा चांडाली के साथ   हो गया। उसे छः-  सात बचे ह  ु ए। ि को तो पुओं की िह संा कर  े, रतपा कर  ,े िरा को चम सुखाय  े। ऐसा  जीव िबतात  -े  ि बतात  े उसे बारह व बीत गय  े।

   ु षकाल क  े ि ह। िबार कम पी ह  ै, तालाब स ूख गया ह  ।ै जावर ह िमल रह  े ह । ो ि -  चार ि  तक कोई िकार ह िमलता ह  ।ै चडाल बा   ु ःखी होता ह  ै। घर जाता ह  ै तो बचे बोलत  े ह - '  लाओ मस।'

 चडाल बोलता ह  ैः '  मस ह ह  ।ै मरेा ही मस खा लो।'  छोटा बच् चा बोलता हैः '  तु हारा ही   े ो।'

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 चडाल क  े बचे भी चडाल ! गुसे म उस चडाल    े अपा रीर जला   े क  े िलए लिकय इकी क ,आग लगायी और उस आग म आमहया कर   े क  े िलए य क   ूा तो राजा पलंग से ीचे िगर पा , आँख खुल गयी  और धक बढ गयी।   खेा िक '  अरे ! म तो महल म सोया ह   ू  ँ। ा म िलखा ह  ै िक संत क  े कर   े से   ु ःख    ूर होत  े ह। ऐसा म    े सुर रखा ह  ै पर तंु ह  ु आ उलटा !  नानकजी के दर् न िकये और रात हराम हो   

गयी ! इत   े ि तो ब  े मधुर सप   े   ेखे पर इस रात खु  क  े चडाल हो   े क  े बारह व जो   ेखे ह , ब  े जु म क  े, ब   े

बु र  े   ेखे।'पपपपप पपपपप पप पपपप पपपपपप पपपपपप।

पपपपप पपपपप पप पपप पपप पपपपपप।

पपपपप पपपपप पप पपपप पपपप पपपपपप।

पपपपप पपपपप पप पपप पपपपप पपपपप पपपप।

पपपप पपपपप पप पप पपपप पपप पपप पप पपपप पपपपप। ।

पप पप पपपपप पपपप पपपपपप पपप पपप पपपप पपपप पप पपपप। ।

पप पप पपप पपप पप पपपपपपप पपप पप पपपप पपप। ।

(पपपपपप पपपपप)

 राजा सुबह होत  े ही हा -  धो के ग ुरुनानक के पास पह ुँच गया। बोलाः "  बाबाजी ! मेरी रात य  खराब हो गयी ? आपक  े क  े बा तो आमी को तसली से सोा िचाहए पर मेरी हराम हो गयी। म   े बी बु री  तरह का सपा   ेखा।"

  नानक देव जी बोलते हैं- "  या सपा   ेखा , म बता   तेा ह   ू  ँ तुझ  े।" और ाक जी    े सारी बात 

बतात  े ह  ु ए कहाः "  राजा का फज होता ह  ै जा का पाल करा। इसक  े िलए जा से कर (Tax) ि लया जाता ह  ,ै जा  का खू  -  पसीा िलया जाता ह  ै। उसकी रा , उसक  े िहत क  े िलए तू    े खू  -  पसीा तो ोचा पर तंु जा क  े उस खू   को जा क  े उपयोग म लगाकर त ू   े उससे िवलास िकया ह  ै। इिसलए    ूसरा जनम तु झ  े चडाल का िमल   े वाला था ,पर तं ुसंत से पास आया तो वह संत क  े िसाय और से सप   े म प ूरा हो गया।"

 अभी जीव िवज् ञान की घोषणा है िक सज ्जन आदमी , ेम से भरा ह  ु आ, कणा से भरा ह  ु आ,

ित से भरा ह  ु आ, परोपकार से भरा ह  ु आ सपु जब िकसी बीमार ियत को िहारता ह  ै तो उसकी आँख की  िरमय , आँख की आभा प   े से बीमार ियत क  े अंर वाय सज कर   े वाले रत क  े ेत कण य  ेक घ  

ि म.मी . रत म 1500 की संया से बढ जात  े ह और   ु  आमी जब िगाह डालता ह  ै तो ित घ िम.मी . रत म 

1600 ेत कण हो जात  े ह । अभी िवा िस करता ह  ै पर ाकजी , कबीर जी , लीलााहबाप ूजी िआ महापु    े स क व पहले घोणा कर ी।पपपपपप पपप पपप पपपपप पपपपपप

पपप पप पपपपप पपप पपपपप।

(पपपपपप पपपपप पप पपपपप पपपपप पप पपपप पपपपप पप पपपप

पप।)

 उकी िगाह से थू ल कण म तो िपरवत होता ह  ै िक ं तु उक  े सपक से स ूम म म भी िपरवत हो जाता   है। कोई नतर् की आ जाय ,  – कोई िअभ   ेता आ जाय तो उसको   खेकर म म जो भाव प  ैा होत  े ह उसे सब 

जात  े ह िक िकत   े चचंल,  हलकट , ि वकारी भाव उत ्पन् न होते हैं और ियद कोई िकन ्हीं संत  क  ,े  नानकजी , कबीर जी या लीलााहजी बाप ूक  े िच ही   ेख ले उको   खे   े का तो सौभाय िमला पर तंु उक  े सु ि मर व उक  े िच को   ेख   े से सभाव व ित आ जाती ह  ै। ऐसे ावा क  े कारण   ु ि या म थोी रौक ह  ै,

थोी ईमाारी ह  ।ै थोा ेम और सता िख रही ह  ै सपु क  े कारण। ऐसे पु  बोल तो िबढया ह  ,ै ि मल तो िबढया ह  ै,  नहीं तो जहाँ भी रहते हैं उनका भजन -  ध् यान और ई ्वरके साथ एकता बड़ा   

मंगलकारी भाव डालती ह  ै। हमार  े राष पर उकी बी -  बी कणा और क  ृपा ह  ै। ऐसे लोग क  े िलए फकीर बोलत  े  हैं-

पपपप पप पपप पपपपपप प पप,

पपपपप पपपप पप पपप पपपपप पप पपप पपप पपपपपप,

पपपपप पपप पपप पप पपपप पपपपपपपप।।

'  शीरामिचरत मास' म संत तु लसी ास जी भगवा िवजी की वाणी उचारत  े ह -पपपपपप पपप पपपपप पप प पपप पपप पपप।

पपपप पपप पपपप प पपप पप पपपपपप पपप पपपपप।।

पप पपपप पपप पपपप, पपप पपप पपपप पपप।

पपपपप पपपप पपप पप, पपप पपपप पपपपप।।

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(पपपपपपपपपपप. प.पपप. 125 प)

 राजा    े आधी घी , चौथाई घी संत क  े िकय  े तो चडाल क  े जनम से बचाव हो गया। कबीर जी अपी  भा ा म कहत  े ह   -

पपप पपपपप पपपप पप पपपप, पपपप पपप पप पपपप।

पप पपपप पप पप पपपपप, पपप पपपपप पपप।।

  हम लोगों का स ् नेह तो रीर में हो सकता है ,  नाटक िआद में हो सकता है  िलेक फकीरी का    हे तो परमामा म होता ह  ै। िजका परम म    हे ह  ै ऐसे लोग जब िमलत  े ह तो   ु ःख    ूर होत  े ह ,आमी पाप से िवमु त होता ह  ै।

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपपपपपप पपपपपपपप पपपपपप  एक बार यिु िधष् ठर , अजु र्  न और भगवान र्  ीकृ ष् ण वन में घू मते -   घू मते एक योगीसंतके

 पास पह  ु   ँचे। वह व  े थोी   ेर ब  ठै  े। ियुिधर अचाक रो   े लगे। साथ ही व  े संत, शीक  ृषण एव ं अजु भी रो   े लगे और खू ब रोय  े। भगवा    े अजु से प ूछाः "  तु म य रोय  े ?"

 अजु र् न बोलेः "  भगवा  ! म तो आप सबको रोत  े   ेखकर रोया पर तंु आप लोग य रोय  े ?"

 भगवा    े योिग राज स े रो   े का कारण बता े की िवत ी की तो व  े बोल ेः "  म    े घर  छोड़ा , संबधंी छो  ,े   े छोा , इत   े घ   े एकत म िवकार और वासाओं क  े भाव से बचकर म -  िइनदय से पार 

अपने परमात् म स् वभाव में, वभाव म आमा का आ  ं ले   े यह आया पर तंु म    े ऐसे कौ -  से पापकम ि कय  े ह  ु ए ह िक इता कर   े पर भी एकत म मेर  े आ  ं को भ गं कर   े यु ि िधर ज  ैसे िस राजा आ पह  ु   ँचे ह , यह 

सोचकर मुझ  े रोा आ गया।"

 ियुिधर से प ूछा तो व  े बोलेः "  मु झ  े पु यभ ूि म भारत म   ु लभ मुषय जनम िमला , शे िबु िमली , रायप 

ि मला। उसका उपयोग तुछ राजकाय म ही होता ह  ।ै म अप   े अमू य जीव का उपयोग ऐसे यागी महापु क  े  तक म ह कर पाता , उका िसाय ह ले पाता। क  ैसा मेरा   ु भय ह  ै ! यही िवचारकर म रोया।"

 ि  फर कु  छ रू  ककर युि िधष्  ठर ने पू छाः "    हम तो रोये परंतु भगवान आप तो  ि लोकीाथ ह , आप य रोय  े ?"

 शीक  षृण बोलेः "  मुझ  े इिसलए रोा आया िक अब िकलकाल आय  ेगा। िकलकाल म तो ऐसे ा  ं म रह   े  वाले महात् मा िमलने दु लर् भ होंगे और उनकी िमहमा जानने वाले से महान धमार् त् मा ऐ  

 – राजा भी   ु लभ हगे यही िवचारकर रोा आता ह  ।ै"

 ऐसे सचे संत संसार से    ूर रहा चाहत  े ह यिक उक  े पास लोग र और तुछ वतुओं की मग करत  े  हैं। यह सा है जैसे िकसी जौहरी के पास देने के िलए हीरे जवाहरात और सोना ऐ -

 ची ह  ,ै कोई उससे चार प  ैसे की सेव, गिठया और चटी की मग कर  े। िय उक  े (  संत क  )े पास आमा क   ेि लए आय  े तो अलग बात ह  ै। ऐसे संत सुख   ेा चाहत  े ह िलेक लोग 'त ू-त  रे  'े की , 'म -मेर  े' की बात म उका  समय खा जात  े ह।

अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपप पप पपपपपपपप पपपपप पपपप पपप ो संनयासी यु वक याा करत  े-  करत  े िकसी गव म पह  ु   ँ च।े लोग से पू छाः "   हमें एक िरातर्यहाँ 

रहा ह  ।ै िकसी िपव िपरवार का घर िखाओ।" लोग    े बताया िक "   वह एक चाचा का घर है। साधु- महामाओं का आर सकार करत  े ह। 'पपपप पपपपपपपपपपपपप पप पपप पपपपपपप'

का पाठ उका पा हो गया ह  ै। वह आपको ठीक रह  ेगा।" उनह   े उ सज चाचा का पता बताया। ो संनयासी वह गय  ।े चाचा    े ेम से सकार िकया , भोज कराया और िरा -  ि  व र् ाम के  

ि लए िबछौा िया। िरा को कथा -   वातार्के दौरान एक संन ्यासी ने पर् ्िनकयाःक "  आप   े िकत   े तीथं म ा िकया ह  ै ? ि कती तीथयााए  ँ की ह। ?  हमने तो चारों धाम की तीन -

 ती बार याा की ह  ै।"

 चाचा    े कहाः "  म    े एक भी तीथ का या ा ह िकया ह  ।ै यह रहकर भगवा का भज करता ह   ू  ँ  और आप ज  सैे भगववप िअितथ पधारत  े ह तो सेवा कर   े का मौका पा लेता ह   ू  ँ । अभी तक कह भी ह गया ह   ू  ँ ।"

 ो संनयासी आपस म िवचार कर   े लगेः"

 ऐसे ियत का अ खाया !

अब यहाँ से चले जायें तो िरा कह िबतायगे ? यकायक चले जाय तो उसको   ु ःख भी होगा। चलो, क  ैसे भी करक  े इस ििवच वृ क  े यह  

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 िरा िबता । िजस   े एक भी तीथ ह िकया उसका अ खा िलया ,  हाय !" िआ-  िआ। इस कार िवचारत  े ह  ु ए 

 वे सोने लगे िलेकन नींद कैसे आवे ! करवट बलत  -े  बलत  े मयिरा ह  ु ई। इत   े म ार से बाहर 

  ेखा तो गौ क  े गोबर से लीप  े ह  ु ए बराम  े म एक काली गाय आयी .... ि फर दू सरी आयी .... तीसरी , चौथी ....पचव ... ऐसा करत  े-  करत  े कई गाय आय। हर  ेक गाय वह आती , बराम  े म लोटपोट होती और सफ  े हो जाती तब  

अदृ ्यहो जाती। सी िकतनी ही काली गायें आयीं और सफेद होकर िवदा हो गयीं। दोनों ऐ  

संनयासी फटी आँ ख से   ेखत  े ही रह गय  ।े व  े  गं रह गय  े िक यह या कौतुक हो रहा ह  ै ! िआखरी गाय जा   े की त  ैयारी म थी तो उनह   े उसे णाम करक  े प ूछाः

"   हे गौ माता ! आप कौ हो और यह क  ैसे आा ह  ु आ ? यह आकर आप ेतवण हो जाती हो इसम या  रहय ह  ै ? क  पृा करक  े आपका िपरचय ।"

 गाय बोल   े लगीः "   हम गायों के र ूप में सब तीथर्हैं। लोग हममें गंगे हर ... यमु    े  हर ....  नमर् दे हर ... िआ बोलकर गोता लगात  े ह। हमम अप   े पाप धोकर पुयामा होकर जात  े ह और हम 

उक  े पाप की िकालमा िमटा   े क  े िलए न -  मोह से ििवमु  त आमाी , आमा -  परमामा म िविशानत पाय  े ह  ु ए 

सपु क  े आँग म आकर िपव हो जात  े ह। हमारा काला ब पुः ेत हो जाता ह  ।ै तुम लोग िजको िअित,

गँ वार, ब ूढा समझत  े हो व  े बुजुग तो जह से तमाम िवाए  ँ िकलती ह उस आम  ेव म िविशानत पाय  े ह  ु ए आमव  ेा संत 

 हैं। "पपपपपप पपपपपपपपप पपपपप.... ऐसे आमारामी व  ेा महापु  जगत को तीथप 

बा   ेत  े ह। अपी   ृि  से, संकप स,े संग से ज -  साधारण को उत कर   ते  े ह । ऐसे पु  जह ठहरत  े ह , उस 

जगह को भी तीथ बा   ते  े ह। ज  ै धम    े ऐसे पु को तीथ कंर (  तीथ बा   े वाल)े कहा ह  ै।अनु कर् म 

ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपपपप पप पपपपपप !'  माव सेवा संघ' क  े संथापक वामी रणा  ं जी से िकसी    े प ूछाः "  आप ससंग-  समारोह तो करत  े ह  

पर तंु उस पर इता खच ! आपको ससंग-  समारोह बह  ु त ही सागी क  े साथ करा िचाहए।"

 रणा  ंजी    े कहाः "  म आपको िवास िलाता ह   ू  ँ िक इत   े खच क  े बा अगर एक भी भाई क  े जीव म, एक भी बहन के जीवन में जीवन की वास ्ितवक माँग जागृ त हो जाये तो उस पर सारे  

ि व ्वकी सम् िपत् त न् योछावर कर देना भी कम है। आपने सत् संग का महत् त् व नहीं समझा   

 है। सत् संग के िलए हँसते-   हँसते पर् ाण भी िदये जा सकते हैं। सत् संग के िलए क् या   नहीं िदया जा सकता ! आप यह सोच िक ससंग जीव की िकती आवयक वतु ह  ै। अगर आपक  े जीव म सफलता होगी तो वह ससंग से ही होगी। अगर जीव म असफलता ह  ै तो वह असत् क  े संग से ह  ै।"

 उत व  े ही कर सकत  े ह िजको ससंग क  े मू य का पता ह ह  ै, ि जकी िमत-  िगत भोग से भटकी ह  ु ई 

 है।  अगर दिु नया की सब सम् िपत् त खचर्करके भी सत ्संग िमलता है तो भी सस ्ता है।  

ससंग से जो सुधार होता ह  ै,  वह कु संग से थोड़े ही होगा ! ससंग से जो सनिमत िमलती ह  ै वह भोग संह 

से थो  े ही िमलेगी ! लाख पय  े खच िकय  ,े  व् ियक् त को पढ़ा िदया ,  डॉक् टर , ब  ैि रटर बा िया िलेक ससंग ह  

ि मला तो बचा सक  गेा अप   े को क  ु संग से ?... नहीं। 

 ससंग ियत को भोग-  संह से बचाकर आंितरक सुख का एहसास कराता ह  ै।अनु कर् म ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ

पपप पपपप पप पपपपप पप। । । ।

 कबीर सोई ि भला जा ि साधु िमलाय। अंक भरै िभर भेंिटये पाप रीरां जाय।।  1।। 

 कबीर र साधु क  े ब  े भाग राय। जो होव  े स ूली सजा काट  ै ई टरी जाय।।2।। 

 र कीज  ै साधु का ि म कई कई बार। आसोजा का मेह य बह  ु त कर  ै उपकार।।3।। 

 

कई बार ह कर सक  ै ोय बखत िकर लेय। कबीर साधु रस त  े काल गा ह   ेय।।4।। 

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 ोय बखत ह कर सक  ै ि मे क इक बार। कबीर साधु रस त  े उतर  ै भौ जल पार।।5।। 

    ूज  ै ि ह िकर सक  ै तीज  ै ि क जाय। कबीर साधु रस त  े मो िमुत फल पाय।।6।। 

 तीज  ै चौथे ह कर  ै सात ि क जाय। या म िवलंब िकीजय  े कह  ै कबीर समु झाय।।7।। 

 सात ि ह िकर सक  ै पाख पाख िकर लेय। कह  ै कबीर सो भतज जम सु फल िकर लये।।8।। 

 पाख पाख ह िकर सक  ै मास मास क जाय। ता म   ेर लाइय  े कह  ै कबीर समु झाय।।9।। मात-  ि पता सु त इतरी आलस बधंु िका। साधु रस को जब चलै य  े अटकाव  ै िखा।।10।। 

 इ अटकाया ा रह  ै साधु रस को जाय। कबीर सोई संतज मो िमुत फल पाय।।11।। 

 साधु चलत रो िीजय  े कीज  ै िअत समा। कह  ै कबीर कछ  ु भट ध  ँ अप   े िबत अु मा।।12।। 

 तवर सरोवर संतज चौथा बरसे मेह। परमारथ क  े कारणे चार िधरया   ेह।।13।। 

 संत िमल को जाइय  े तजी मोह माया िअभमा। य य पग आगे धर  े िकोट य समा।।14।। 

 तु लसी इस संसार म भित भित क  े लोग। ि िहलये ििमलये पर्  मे सों नदी नाव संयोग।। 15।। 

 चल वप जोब सुचल चल व  भैव चल   ेह। चलाचली क  े वत म भलाभली कर लेह।।16।। 

 सुखी सुखी हम सब कह सुखमय जात ही। सुख वप आतम अमर जो जा   े सुख पिह।।17।। 

 िसुमर ऐसा िकीजय  े खर  े िा   े चोट। म ईर म ली हो हले िजा होठ।।18।।    ु ि या कह  े म   ु र ंि ग पल म पलटी जाऊँख।

 सु ख म जो सोय  े रह  े वा को   ु ःखी बाऊँ।।19।।  माला ासोवास की भगत जगत क  े बीच।

 जो फ  ेर  े सो गुमुखी ा फ  ेर  े सो ीच।।20।।  अरब खरब लों धन िमले उदय अस् त लों राज। 

 तुलसी िहर क  े भज िब सब  े रक को साज।।21।।  साधु सेव जा घर ह सतगु प ूजा ही।

 सो घर मरघट िजाय  े भ ूत बसै त  ेि ह मिह।।22।।  ि नराकार िनज र ूप है पर् ेम पर्  ीित सों सेव। 

 जो चाह  े आकार को साधु परतछ   ेव।।23।।  साधु आवत   ेि ख क  े चरणौ लागौ धाय।

 या जाौ इस भ  े म िहर आप  ै िमल जाय।।24।।  साधु आव   ेख िकर िहस हमारी   ेह।

 माथा का ह उतरा    ै बढा स   हे।।25।। अनु कर् म 

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