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इश्क़ के धागे
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ISBN: 978-1-5457-2941-0
Price: ` 290.00
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Printed in India
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इश्क़ के धागे
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इन्तिसाब
किताब...
शरीिे-सफ़र...रफ़ीिे-हयात िे नाम
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साांस िी डोर है बहुत िच्ची
और पके्क हैं इश्क़ िे धागे
किल िे चरखे पे टूट जाते हैं
कजनिे िचे्च हैं इश्क़ िे धागे
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1
जब बार बार भेज े गये रुख़सती के पान तंग आके मझुको खाने पड़े रुख़सती के पान
दीदारे-यार करने से पहल े ही साज़िशन महज़िल में मरेे सामने थे रुख़सती के पान
मेंहदी का रंग जैसे चढे उनके हाथ पर होठों प े मेरे ऐसे रचे रुख़सती के पान
अंदािे बेरुख़ी में भी तहिीबे-इश्क़ ह ैउसने बड़े अदब से ज़दये रुख़सती के पान
कुछ ख़ास दोस्तों प े ज़गरेंगी ये ज़बजज़लयााँ
महफ़िल में कब हैं सबके ज़लय े रुख़सती के पान
ये सनुके ज़िर से इश्क़ की उम्मीद बंध गई थे ज़सिफ़ ज़दललगी के ज़लये रुख़सती के पान
उल्ित की ख्वाज़हशों को ज़कया ज़जसने बे-मिा
खाने में बे-मिा से लगे रुख़सती के पान
राज़शद हमें भी पासे-अदब था ज़नकल पड़े हम बेज़दली से खाते रुख़सती के पान
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इश्क़ के धागे
2
हमारे तुम्हारे यहााँ भी वहााँ भी
ज़दलो-जााँ से प्यारे यहााँ भी वहााँ भी
ये परचम ये नारे यहााँ भी वहााँ भी ज़सयासी ख़सारे यहााँ भी वहााँ भी
ज़सयासत न े बांटा ह ै दोनों वतन को ज़सयासत के मारे यहााँ भी वहााँ भी
ज़कस े हम पराया कहें तुम बताओ हैं अपने ही सारे यहााँ भी वहााँ भी
यहााँ कोई आया वहााँ कोई पह चंा ह ए बेसहारे यहााँ भी वहााँ भी
हैं अच्छे बरेु लोग दोनों ही घर में ये मीठे ये खारे यहााँ भी वहााँ भी
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3
पड़ौसी न हरज़गि बदल पाओगे तमु ये समझो इशारे यहााँ भी वहााँ भी
यहााँ िलु्मों-निरत वहााँ क़त्लो-ग़ारत हैं यकसााँ निारे यहााँ भी वहााँ भी
यहााँ भी वहााँ भी ह ै बेरोिगारी तलाशें सहारे यहााँ भी वहााँ भी
सभी अपना अपना मकुद्दर बनान े लगे हैं बेचारे यहााँ भी वहााँ भी
सजाते हैं जो इश्क़ के आसमााँ को
वही माह-पारे यहााँ भी वहााँ भी
वही रात ज़दन ह ै वही दोपहर ह ै वही चााँद तारे यहााँ भी वहााँ भी
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