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ह £

शअीदततातरयतनतर शरीयत पडित इयामसनदरलाल

तरिपाठी विरचित

हिनदीटीकासहित

मदरक एव परकाशक:

खोमाहाज शरीकरषणदापला, अधयकष : शरीवकटशवर परस,

खमराज शरीकषणदास मारग, मबई - ४०० ००४.

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ह : जनवरी २००८, समबत‌ २०६४

मलय : २० रपय मातर।

2 सरवाधिकार : परकाशक दवारा सरकषित

मदरक एव परकाशक:

खमराज शरीकषणदास," अधयकष : शरीवकटशवर परस, रबसराज शरीकषणदास मारग, सबई - ४०० ००४.

शि7॥0॥$ & ?2५७०॥औ७।३ : #(७7॥98]| 90॥॥/008॥/9085$, 20०7: 9 ४७॥७॥७७॥५/३ 2855, #0शा॥न आता॥॥090853 ॥/89, 70 /000५४8, ७७०७ - 400 004,

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“बदभह निवसततनतर ततर लकषमीः सथिरायत” महाशय ! ततरशासमरक पठन पाठन और मनन करनस अवशय हो सिदधि परापत होतो ह। जो कारय

सहखरजः वरत करनपर भी सिदध नही होता वही कारय ततर शासतरकी कवल एक करियास हो सरलतापरवक हो सकता ह । योगिराज शरीदततातरयपरणीत यह गरनथ यनतर--मन‍तराकाकषियो कौतकियो और रसायनिकोक हितारथ अदवितीय ह । इसम-अनक परकारक उपयोगी तथा सिदधि दनवाल मनतर, मोहन, मारण, उचचाटन, वशीकरण, सतमभनादि अनक परकारक परयोग उततमतापरवक बणित ह । इसक सिवाय अनयानय गरनथोम जो २ विषय अतिकलिषट ह उन सबका इस परनथम भलीभाति समावश हआ ह । मनतर-तनतरक जञाता जसा इसस लाभ उठा सकत ह उतनाही लाभ इस सामानय वयकति भी उठा सकग। यह परनय ससकतम होनस सवसाधारणको इसका लाभ नही होता था इस कारण मरा

दाबाद निवासी शरीयत प० इयामसनदरलाल तरिपाठीजीस इसकी सरल सबोध भाषादीका कराय हमन निज “शरीवकटशवर” मदरणालयम मदरित कर परसिदध किया ह। आशा ह कि यन‍नतरशासतर परमी महाशय इसक अवलोकनस लाभ उठावग और हमार परिशभरमको सफल करग ।

विदवजजनकपाकाकषी-

खमराज शरीकषणदास

“शरीवकटशवर” यनतरालयाधयकष, बसबई.,

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|

गरनथोपकरम

मारण मोहन सतमभन

सथानसतमभन, बदधिसतमभन

शसतरसतमभन

सनासतभन

सनापछायन

मनषयसतमभन

गोमहिषयादिपशसतमभन मघसतमभन, निदरासतमभन

नौकासतमभन

गरभसतमभन

विदवषण उचचाटन सरवजनवशीकरण

सतरीवशीकरण

परषवशीकरण राजवशीकरण

आकरषण परयोग इनदरजाल

यकषिणीसाधन

महायकषिणीसाधन

सरसरनदरीसाधन

विषयानकरमाणका

पषठ.

११ १४

१५

शर

१७

श८

१९

१९4

का

२०

२१ जल 3

२९ ३१ बर 24

र ड४ड

प‌ ४६

मनोहरीसाधन, कनकावती साधन ४७

कामशवरीसाधन ४८

विषय.

रतिपरियासाधन पदमिनीनटीअनरागिणीसा विशालासाधन

चनदरिकासाधन, लकषमीसाधन

सोभनासाधन, मदनासाधन

रसायन कालजञान अनाहार आहार निधिदरशन वनधयापतरवतीकरण मतवतसाजीवन काकवन‍धयाकी चिकितसा

जयकी विधि

वाजीकरण

दरावणादिकथन वीयसतमभन परयोग कशरडचनपरयोग

लोमशातन

लिगवरदधन भतगरहादिनिवारण सिहवया तरादिनिवारण

सरपभयनिवारण

बशचिकभयनिवारण अगनिभयनिवारण

॥इतयनकरमणिका समापत।।

पषठ. डट

४९ फ

५१

क पड

५८

६०

६१ धर

६ ८

ह 9०

छर

७३

छ५‌

७६

3७3

७९ 7

८०

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परथम पटल

कलासशिखरासीन दवदव जगदगरम‌ । दततातरयसत पपरचछ शकर लोकशकरम‌ ॥ १ ॥। कताञजलिपटो भतवा पचछत भकक‍तवतसल ।

भकक‍ताना च हितारथाय कलपतनतरच कथयताम‌ ॥ २ ॥॥ कलास परवतकी चोटीपर विराजमान दवदव जगत‌क गर ससारक कलयाण

करनवाल शरीशकर भगवानस दततातरयजी हाथ जोडकर पछत* हए कि ह भकत- वतसल ! भक‍तोक हितक लिय आप कलपततरको कहिय ॥। १॥ २ ॥।

कलोौ सिदधिपरद कलप तन‍तरविदयाविधानकम‌ । कथयसव महादव दवदव महशवर ॥ ३ ॥।

ह महादव ! ह दवदव ! ह महशवर ! कलिकालम सिदधि दनवाल महा कलपतनतरको विधिस कहिय ॥। ३ ॥।

सनति नानाविधा लोक यनतरमनतराभिचारका: । आगमोकक‍ता: पराणोकता वदोकता डामर तथा ॥। ४ ॥। उडडीश मरतनतर च कालोचणडशवर मत । राधातनतर च उचछिषट धारातनतर मडशवर ॥॥ ५॥।

ह परभो ! लछोकम अनक परकारक आगमोक‍त, पराणोकत और वदोकत' डामर, उडडीश, मरततर, कालीतनतर, चणडशवर, राघातनतर, उचछिषटतनतर, घारा

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र दतताजरयतनतर

तनतर और मडदवर आदि ततरोम यतर मन‍तर एव अभिचारक परयोगोका वरणन ह ।। ४ ॥। ५॥।

त सरव कीलिताइचव कलो बोरयविरवरजिताः ।

बराहमणा: कामकरोधाडया एतसमादव कारणात‌ ॥| ६ ।। सो व सब- कीलकर कलियगम शकतिहीन करदिय गय क‍योकि बराहमण

कामी और करोघी होगय ह ॥ ६ ॥। विना कोलकमनतराइच तनतराइच कथिता: शिव । तनतरविदया कषण सदधि कथयसव ममपरभो ॥ ७॥।

ह शिव ! ह परभो ! विना कील हए मनतर और तन‍तर जो कह ह सो और

कषणमातरम सिदधि दनवाली तनतरविदयाको मझस कहिय ।। ७ ।।

ईइवर उवबाच

शरण सिदध महायोगिन‌ सरवयोगविशारद । तनतराविदया महागहमा कवानामपि दलभाम‌ ।। ८ ॥।,

शिवजी बोल-ह महायोगिन‌ (दततातरयजी) ! ह सरव योगविशारद !

ततरविदया परमगपत होनक कारण दवताओको भी दरलभ ह ।। ८ ॥।

तवागर कथयत दव तन‍तरविदयाशिरोमणि: । गहमादगहमा महागहया गहया गहया पनः पनः ॥ ९ ॥॥

ह दव ! तमस तनतरविदयाशिरोमणिको कहता ह यह गपतस गपत महागपत

ह अतएव वारवार इसको गपत ही रखना चाहिय ।। ९ ।।

गरभकताय दातवया नाभकताय कदाचन ।

सम भकक‍तयकमनस दढचिततयताय च‌॥| १० ॥। जो मरी भकतिम छीन, दढचितत एव गरका भकत हो उसको तलन‍तर विदया

दनी चाहिय अभकतको नही द ।॥ १० ।।

शिरो ददयातसत ददयानन इदयाततनतरकलपकम‌ । यसस कसम न दातवय नान‍यथा मम भाषितस‌ ॥। ११ ।।

समय पडनपर अपना शिर दद, पतर दद, परनत हरएकको यह तनतरकलप

नही द यह मरा सतय वचन मानो ॥ ११ ॥।

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दर पटल ७

अथातः समपरवकषयामि दततातरय तथा शवण । कलोौ सिदधमहामनतरो बिना कीलन कथयत॥ १२॥

ह दततातरयजी ! अब म कलियगमम सिदधि दनवाल बिनाकील हए मन‍तरोको कहता ह उनको सनो ॥ १२ ॥।

न तिथिन च नकषतरनियमो नासति वासर:। न बरत नियमो होम: कालबल विवरजितम‌ ॥। १३ ॥। कवल तन‍तरामातरण हयोषधि: सिदधिरपिणी । यसय साधनसातरण कषणातसिदधिबशच जायत ।। १४ ॥।

जिसक साघनम तिथि, नकषतर, दिन, बरत, नियम, हवन और समयक विचारकी भी आवशयकता नही ह । उसम कवल तनतरमातरस औषधि सिदधि- रपिणी हो जाती ह, जिसक परयोगस मनषय कषणभरम सिदधि परापत करता ह ।। १३ ।। १४ |॥।

मारण मोहन सतमभो विदषोचचाटन वशाम‌ । आकरषण चनदरजाल यकषिणी च रसायनम‌ ॥ १५ ॥।

मारण, मोहन, सतभन, विदवषण, उचचाटन, वशीकरण, आकरषण, इनदरजाल, यकषिणीसाधन, रसायनविदया ।। १५ ॥।

कालजञानमनाहार साहार निधिदरशनम‌ । वनधयापतरवतीयोग मतवतसासतजोवनम‌ ।। १६ ॥।

कालजञान, अनाहार, आहार, निधिदरशन, वनधयापतरवतीयोग, मतवतसा- सतजीवन ॥। १६ ॥। ;

जयवाद वाजिकरण भतगरहनिवारणम‌ । सिहवयापरभय सरपवकचिकाना तथव च ॥॥ १७ ॥। निवारण भयाततषा नान‍यथा मम भाषितम‌ । गोपय गोपय महागोषय गोपय गोपय पनः पनः ॥ १८ ।॥।

जयवाद, वाजीकरण, भतगरहनिवारण, सिह, वयापर, सरप और बीछी आदिक भय निवारणक इस तन‍तरम सतय परयोग कह ह सो इनको यतनस गपत रक‍ख ॥। १७॥ १८ ॥।

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>> <€ दततातरयतनतर

सरवोपरिसनतर :-“ओ परबरहमपरसातमन नमः ।

उतपततिसथितिपरलयकराय बरहमहरिहराय तरिगणातमन सरवको-

तकानि दरशय दरशय दततातरयाय नमः तन‍तरसिदधि करकर सवाहा”

अयतजपातसिदधि: । अषटोततरशतजपात‌ कारय सिदधिभवति ।

उपरोकत 3$ परबरहमपरमातमन, स 'सवाहा' तक सरवोपरि मनतर ह ।

इस दश हजार जपकर परथम सिदध कर ल पीछ अषटोततरशत जपनस कारय सिदध

होता ह । इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवाद तनतरविषयसरवोपरिमनतरकथन

नाम परथम: पटल: ॥। १॥।

दवितीय पटल

मारण ईशवर उबाच

अथागर सपरवकषयासि परयोग. मारणाभिधम‌ । सदयः सिदधिकर नणा शयणषवावहितो मन ॥ १॥।

शिवजी बोल-ह दततातरयणी ! अब मनषयोको शीघर सिदधिदायक

मारणक परयागोको वरणन करगा तम सावधानीस सनो,।। १ ।।

मारण न वथा कारय यसय कसय कदाचन । पराणानतसकट जात करततवय भतिमिचछता ॥। २ ॥।

निषपरयोजन मारणका परयोग किसीपर न कर, मरनक समान सकट

उपसथित होनपर अपन कलयाणकी इचछास मारणक परयोगका साधन कर ।। २॥

बरहमातमान त वितत दषटवा विजञानचकषषा ।

सरवतर मारण कारयमनयथा दोषभागभवत‌ ।। ३ ॥।

जो बरहमजञानी परष अपनी का सवतरही बरहमको दखता ह वह आव-

इयकता होनस मारणक परयोगकौ कर तो ठीक ह नही तो दोष लगता ह ।॥। ३ ।।

तसमादरकषयः सदातमा हि मरण.न कवचिचचरत‌ । करतवय मारण चसतयाततदा कतय समाचरत‌ ॥॥ ४ ॥।

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ह पटल ९

अतएव अपनी रकषा चाहनवाला मनषय मारणको न कर यदि मारण

परयोग करना ही पड तो इस परकारस कर ॥। ४ ||

चिताभसमासमायक‍त धततरचरणसयतम‌ ।

यसयाडर निकषिप:दभोम सदयो याति यमालयम‌ ॥। ५ ।।

चिताकी भसमम धततरका चरण मिलाय मगलक दिन जिसक शरीर पर

डाल वह शीघर मरजाता ह ।। ५ ॥।

भललातकोडव तल कषणसरपसय दन‍तकम‌ ।

विष धततरसयक‍त यसयाडर निकषिपनमति: ॥। ६ ।॥।

भिलावका तल, काल सपक दात और विषको धतरक चणम मिलाय

जिसक अगपर छोड उसकी मतय होजाती ह ।। ६ ।।

नरासथिचरण . तामबल भकत मतयकर परवम‌ ।

सरपासथिचरण यसयाडर निशकषिपनमतयमापनयात‌ ॥ ७॥॥ मनषयकी हडडीका चरण पानम खिलानस मनषय की मतय होती ह, सरपकी

हडडीका चरण जिसक अगपर डाला जाय वह मरजाता ह।। ७ ॥।

चिताकाषठगहीतवा त भौम च भरणीयत ।

निखनचच गहीतवा त मास मतयभविषयति ॥। ८ ॥॥

ऑमवारक दिन भरणी नकषतर होनपर चितामस छकडी छाकर जिसक

दरवाजपर गाड द उसकी एक मासम मतय होजाती ह ।। ८ ॥।

कषणसपवसा गराहमा तदवति जवालयननिशि ।

धततरवीजतलन कजजल नकपालक ॥। ९ ॥।

चिताभसमसमायक‍त लवण पच सयतम‌ ।

यसयाडर निकषिपचचरण सदयो याति यमालयम‌ ।॥ १० ॥।

काल सरपक चरबीकी बतती बनाय धतरक बीजोक तलदवारा मनषयकी

खोपडीम काजल पार फिर उसम चिताकी भसम और पाचो नोनमिला चरणकर

जिसक अगपर डाल उसकी शीघर मतय होती ह ।। ९-१० ॥।

गहीतवा वाशचिक मासमलकचणसयतम‌ ।

यसयाडर निकषिपचचरणतबमतयभविषयति ॥। ११ ॥। २

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हि ० दततातरयतनतर

बीछी और उललक मासका चरण जिसक अगपर डाल उसकी मतय हो जाती ह ॥| ११ ।।

लिखतपचदशीयनतर चिताभसमविलोमत: । समशानागनौ कषिपदयनतर भौसम च खियत रिप:ः ॥। १२ ॥।

चिताकी भसमस पचदशीयनतरको विलोमरीतिस लिख मगलक दिन चिताकी अगनिम डालनस शतरकी मतय होती ह ॥ १२ ॥।

उललविषठा गहीतवा त विषचरणसमनविताम‌ । यसयाजडर निकषिपचचरण सदयो याति यमालयम‌ ॥। १३ ।।

उललकी विषठाको ल विष मिलाय चरणकर जिसक अगपर डाल वह शीघर मरजाता ह । १३ ॥।

रिपविषठा गहीतवा च नकपाल त धारयत‌ । उदयान निखनदभमो यसय नाम लिखतस हि।। १४ ॥।

यावचछषयति सा विषठा तावचछतरमतो भवत । यसस कसम न दातवय नान‍यथा शकरोदितम ॥।१५।॥।

शतरकी विषठाको ल मनषयकी खोपडीम रख उदयानम जिसका नाम

लखकर गाड तो विषठाक सखनतक नि३चय शतर मरजाता ह इस परयोगको हिरएक मनषयको न द ॥ १४-१५ ॥।

ककलाया वसातल यसयाडर बिनदमातरत निकषिपनसरियत शतरयदि रकषति शकर: ।।१६॥।।

गिरगिटकी चरबीका तल जिसक अगपर बदभर भी डाल दिया जाय तो उसकी शकरक रकषा करनपर भी मतय होजाती ह ।। १६ ।।

गहदीप त निकषिपत लवण विजयायतम‌ । यसय नामना मतिः सतय मासनकन निशचिता ॥। १७ ।॥। ओ नमः कालरपाय अमक भसमी कर कर सवाहा ।।

इस मन‍तरस अभिमनतरित करक लवण और भागको जिसक नामस दीपक म डाल उसकी एक मासम निशचय मतय होजाती ह ।। १७ ।।

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवाद मारणपरयोगो नाम दवितीय: पटल: ॥ २ ॥।

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र पटल श१

ततीय पटल

मोहन ईइवर उवाच

अथात:ः सपरवकषयामि परयोग मोहनाभिधम‌ । सतरः सिदधिकर नणा शरग योगिनदर यतनतः ॥ १॥।

शिवजी बोल-ह योगीदर ! अब मोहनक परयोगका कहता ह जिसक सननस मनषयोको शीघर सिदधि परापत होती ह उसको तम यतनस सनो ॥| १।।

तलसीबीजचरणसय सहदवया रसन च । रवौ यसतिलक करयानमोहयतसकल जगत‌ ॥ २ ।।

रविवारक दिन तलसीक बीजोका चरण सहदवीक रसम मिलाकर तिलक लगानस मनषय सब जगत‌को मोह लता ह । २ ॥।

हरिताल चाइवगनधा पषयतकदलीरस: । गोरोचनन सयकत तिलक लोकमोहनम‌ ।। ३ ।।

हरताल, असगनध और गोरोचनको कलक रसम पीस तिलक लगानस मनषय सबको मोहित करता ह ॥| ३ ॥।

शयगीचनदनसयकत वचाकषठसमनवितम‌ । धप दह तथा बसतर मख चब विशषतः ।॥

» राजपरजापकषिपशदरशनानमोहकारकम‌ ॥। ४ ॥। काकडासिघी, चदन, वच और कठकी धप दारीरम, मखम और बसतरोम

द तो दखत ही राजा, परजा और पश, पकषी मोहित होजात ह | ४ ॥। गहीतवा मलतामबल तिलक लोकमोहनम‌ ॥। ५ ॥।

पानकी जडको पीस तिलक लगानस भी सब मोहित होजात ह ॥| ५ ॥। दर ककम चब गोरोचनसमनवितम‌ ।

धातरीरसन सपिषट तिलक लोकमोहनस‌ ॥। ६ ॥। रिनदर, कशर और गोरोचनको आमलक रसम पीस तिलक लगानस

सब मोहित होजात ह ।। ६ ॥। मनःशिलाजच करपर पषयतकदली रस: । तिलक मोहन नणा नान‍यथा मम भाषितम‌ ॥ ७ ।।

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शर दततातरयतनतर

मनशिल, कपरको कलक रसम पीस तिलक लगानस सब मनषयोको मोहित करता ह यह मरा सतय वचन जानो ।। ७ ॥।

सिनदरञच वचा इवता तामबलरसपषिताम‌ । अननव त मनतरण तिलक लोकमोहनम‌ ।। ८ ।।

सिनदर और सफद बचको पानक रसम पीसकर मतरस अभिमतरित कर तिलक लगानस सबको मोह लता ह ।। ८ ।।

भडधराजो हयपामारगो लाजा च सहदविका । एभिसत तिलक कतवा तरलोकय मोहयननर: ।। ९ ॥।

भागरा, अपामारग, लजजावती और सहदवीको पीस /तिरक लगाकर मनषय तरिलोकीको मोह लता ह ॥। ९ ।।

इवतदरबा गहीतवा त हरितालडच पषयत‌ । एभिसत तिलक कतवा तरलोक‍य मोहयननर: ॥॥ १० ॥।

सफद दरवाको हरितालक साथ पीस तिलक लगाकर मनषय तरिलोकीको मोह लता ह ॥ १० ॥।

गहीतवोदमबर पषप वरति कतवा विचकषण:। नवनीतन परजवालय कजजल कारयनलिशि ॥| ११ ॥।

कजजल चाञजयननतर मोहन सरवती जगत । यसम कसम न दाततवय दवानामपि दरलभभ‌ ॥। १२ ॥।

बदधिमान‌ मनषय गलरक फलकी बतती बनाय मकखनस दीपक रातरिम बालकर काजल पार । उस काजलढको नतरोम लगानस मनषय सब जगत‌को मोहित करता ह, यह परयोग दवताओको भी दरलभ ह अतएव हरएकको न द॥ ११॥ १२॥

इवतगञजारस पषय बरहमदणडीयमलकम‌ । लपमातर शरीराणा मोहन सरबतो जगत‌ ॥| १३ ।॥॥

बरहमदणडीको सफद घघचीक रसम पीस शरीरम लपमातर करनस सब जगत‌को मोहित करता ह ।। १३ ॥।

बिलवपतर गहीतवा त छायाशषक त कारयत‌ । कपिलापयसा यक‍त वटी कतवा त गोलकम‌ ।॥ १४ ॥।

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डः पटल श३

एभिसत तिलक कतवा मोहन सरवतो जगत‌ । कषणन मोहन याति पराणरपि धनरपि॥ १५॥

बलक पततोको ल छायाम सखाय कपिला गौक दधम पीस गोली बनाव। इस गोलीक तिलक लगानस समपरणजगत‌ पराण और धनस मोहित हो जाता ह।। १४ ॥। १५ ॥।

इवताकमलमादाय इवतचनदनसयतम‌ । अनन लपयदवह मोहन सरवतोी जगत‌ ॥ १६ ॥।

सफद आककी जडको सफद चदनम मिलाकर शरीरम लगानस सब जगत‌ मोहित होजाता ह ॥। १६ ||

विजयापतरमादाय इवतसपसयतम‌ । अनन लपयदह मोहन सरवतो जगत‌ ॥ १७ ॥।

भागको सफद सरसोम मिला शरीरम लप करनस जगत‌ मोहित हो जाताह।१७॥

गहीतवा तलसोपतर छायाशषक त कारयत‌ । अदवरगधासमायकत विजया बीजसयतम‌ ।! १८ ॥॥ कपिलादगधसारदधन बटी टकपरमाणत: । भकषिता परातरतथाय मोहन सरवतो जगत‌ ॥ १९ ॥।

तलसीक पततोको छायाम सखाय असगध और भाग मिलाकर कपिला गौक दधक साथ चार मासकी गोली बनाव। यह गोली परात: समय खानस मनषय सब जगत‌को मोह लता ह ॥। १८ ॥ १९॥

कटतमबीबीजतल जवालयतपटरवाततिकाम‌ । कजजल चाउजयजनतर मोहन सरवतो जगत‌ ॥। २० ॥।

कडई तोबीक तलम कपडकी बतती डा दीपक 'जलाय काजल वार

फिर उस नतरोम लडगानस सब जगको मोह लता ह ॥ २० ॥॥

पचागदाडमी पिषटवा इवतगजासमनविताम‌ । एभिसत तिलक कतवा मोहन सवतो जगत‌ ॥| २१। ।

दाडमीक पचागोको सफद घघचीक साथ पीसकर तिलक लगानस सब

जगतको मोह लता ह ॥। २१ ॥।

इतिशरीदततातरयततर दततातरयशवरसवाद मोहनपरयोग कथननाम ततीय:पटल: ६

१ फल, फल, पतत, छाछ और जडको वकषका पचाग कहत ह ।

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र हा दततातरयतनतर

चतरथ पटल

सतमभन ईइवर उवाच

अथात:ः सपरवकषयामि परयोग सतमभनाभिधम‌ । यसय साधनमातरण सिदधि: करतल भवत‌ ॥। १ ॥।

शिवजी बोल-दततातरयजी ! अब सतमभनपरयोग कहता ह जिसक साधनस मनषयकी हथलीम सिदधि होजाती ह।। १ ॥।

ततरादौ सपरवकषयासि अगनिसतमभनमततमम‌ । बसा गहीतवा माणडकी कौमारीरसपषणम‌ ।। २ ।॥।

मणडकसय वसा गराहम करपरणव सयता । लषमातर शरी राणामगनिसतमभ: परजायत ।। ३ ।।

परथम शरषठ अगतिसतभनको 2.2५ इगा, मढककी चरबीको लकर घीकवारक रसम पीसकर अथवा मढककी चरबीम वव और कपरको पीसकर शरीरम लप कर तो शरीर अगनिस नही जलगा ॥। २-३ ।।

कमारी रसयकतन तलनाभयगमाचरत‌ । अगनिइच न बहदजभमगनिसतमभः परजायत ।। ४ ॥।

घीकवारक रसम तल मिलाय शरीरम लगानस शरीर आगस नही जलता ह ।। ४ ||

कदलीरसमादाय कमारी रसपषणम‌ । अकदगधसमायकतमगनिसतमभ: परजायत ॥ ५ ॥।

कलक रसम घीकवारका रस और आकका दध मिलाकर लप करनस आगस नही जलता ह ।। ५ ।।

कमारी रसलपन किडचिहवसत न दहमत । अगनिसतसभनयोगो5य नान‍यथा मम भाषितम‌ ॥ ६ ॥।

घीकवारक रसक लप करनस कोई वसत आगस नही जलती ह. अगनि

सस‍त मभनक योग मर कह सतय जानो ॥।| ६ ।॥।

पिपपली मरिच शठी चरवयितवा ततः पनः । दीपतागार नरो भकषकन ततो दहमत कवचित‌ ॥॥७॥!

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ज पटल १५

पीपल, गोल मिरच, और सोठको चाबकर जलत हए अगारको मखम

रखनस मख नही जलता ह ॥। ७ ॥।

आजय शरकरया पीतवा चरवयसतगर तथा। तपतलोह लिहतपइचाहकतर न दहमयत कवचित‌ ॥ अगनिसतमभनयोगो5य नान‍यथा मम भाषितम‌ ।॥ ८ ॥।

तगरको चाब ऊपरस घी और शककर पिय तो जलत हए लोहको मखरमो

रखनस मख नही जलगा, इस अगनिसतभन योगको मरा कहा सतय जानो ॥८।॥।

मतर :-३४ नमो अगनिरपाय मम शरीरसतभरन

करकर सवाहा । अयतजपात‌ सिदधि: ॥

उपरोकत मनतर अगनिसतभनका ह १०००० जपनस यह सिदध होजाता ह।

सथानसतमभन नकपाल मद कषिपतवा शवतगजाउच निववपत‌ । गोदगघन त ससिचय करययादगजालता शभाम‌ ॥ ९ ॥।

यसयाग तल‍लता कषिपता सथानसतभः परजायत ।

यसय नासता च लवणः इमशानागनो हनततथा ॥१०॥) ओ नमो दिगसवराय अमकसयासन सतभय २ फद‌ सवाहा । असय मतरसय लकषजपातसिदधिभवति ॥११॥॥

मनषयकी खोपडीम मटटी भरकर सफद घघचीक बीज बोव और गौक

दधस सीच उसम जो घघचीकी लता उतपनन हो उस लताको जसक अगपर डाल

उसका आसन सतभित होता ह । जिसका नाम लकर इमशानकी आगरम लवणक

साथ मनतर पढकर उस लछताका हवन कर उसका आसन सतभित होजाता ह।

मनतर मलम सपषट लिखा ह, वह एक लकष जपनस सिदध होता ह ।। ९-११॥

बदधिसतमभन उलकसय करपरवाषि ताबल यसयदापयत‌ । विषठा परयतनतसतसय बदधिसतभ: परजायत ॥॥ १२ ॥

भ गराजो हमपामारग: सिदधारथ: सहदविका । बचा च‌ इवताकससततवमषा समाहरत‌ ॥ १३ ॥।

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क ६ दततातरयतनतर

लोहपाजर विनिकषिपय तरिदिन सरदयतसधी: । ललाट तिलक करयाद‌ दषटबदधिः परणशयति ॥॥ १४ ॥ मतर:-३+ नमो भगवत अमकसय सतभन कर- कर फट‌ सवाहा । लकषकजपातसिदधि: ॥ १५ ॥।

उलल‌ पकषीकी और बनदरकी विषठाको पानम रखकर खिलानस बदधि सतभित होती ह । भागरा, अपामारग, सरसो, सहदवी, ककोली, वच और

सफद आकक सतको लकर लोहक पातरम डाल तीन दिन तक मनतर पढता हआ बदधिमान‌ परष मरदन कर चौथ दिन शतरक नामस मसतकपर तिलक लगाय शतरक आग जानस शतरकी बदधि नषट होजाती ह । मनतर मलम लिखा ह । एक लाख जपनस सिदध होता ह।। १२-१५ ।।

शसतरसतमभन पषयाक त समदधतय विषणकरानता समलिकाम‌ । वक‍तर शिरसि धारय तचछसतरसतमभ: परजायत | १६ ॥।

रविवारको पषयनकषतर होनस विषणकनाताको जडसमत उखाडकर मखम अथवा शिरम धारण करनस शसतर सतभित होता ह ।। १६ ॥।

पषयाक त समादाय अपामारगसय मलकम‌ । घषटवा लिपचछरीर सव शसतरसतमभः परजायत ॥ १७ ॥

रविवारको पषयनकषतरम आपामागकी जड .छाकर घिसकर अपन शरीरम लगानस शसतरका असर शरीरपर नही होता ह ।। १७ ॥।

कर सौदरशन मल बदधवा तालसय व मख । कतकया मसतक कषिपत खडगसतमभः परजायत ।। १८ ।।

हाथम सदशनकी जड, मखम ताडकी जड और मसतकम कतकीकी जड

धारण करनस उसपर खजभ असर नही करता ह।। १८ ।।

एतानि तरीणि मलानि चरणितानि घत पिबत‌ । आयाताइनकशसतराणा समह स निवारयत‌ ॥ १९ ॥।

सदरशनकी जड, ताडकी जड और कतकीकी जडका चरण कर घीम मिला

कर मन‍तरस अभिमतरितकर पीनस चलत हए अनकपरकार शसतरोको वह निवारण

करता ह अरथात‌ कोई शसतर उसक शरीरम नही लगता ह ।। १९ ||

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छः पटल १७

सरयत हम मधयसथा कर बदधवा च कतकी । भजदणडसथित चारक सवशसतरनिवारणम‌ )॥। २० ॥।

खजरको मखम रख हाथम कतकी और भजदडम आकको बाधनस

सब शसतरोका निवारण होता ह ॥। २० ।।

गहीतवा रविवार च बिलवपतर सकोमलम‌ ।

पिषटवा विषसम चव शसतरसतमभनलपनम‌ ।। २१ ।।

रविवारक दिन कोमल बलक पततोको लाव और विष मिलाकर पीस

लप करनस शसतरका सतमभन होता ह ।। २१ ॥।

पषपाक इबतगझजाया मलमदधतय धारयत‌ ।

हसत शसतरभय नासति सगर च कदाचन ।। २२ ॥।

मनतर:-ओ नमो भगवत महाबलपराकरमाय शतरणा

शसतरसतमभन कर २ सवाहा । लकषकजपातसिदधि: ।

रविवारक दिन पषयनकषतर म सफद घघचीकी जड उखाडकर

घारण करनस सगरामम शसतरका भय नही रहता ह। ओ नमो भगवत

'सवाहा' तक सतमभन मनतर ह एकलाख जपनस सिदध होता ह ॥॥ २२ ॥।

<..

सनासतमभन चिताडभारण विलिखनमनतर पातर च मनमय ।

रिपनामयत तचच जलकणड बिनिकषिपत‌ ॥॥ २३ ॥

चिताक अगारस मटटीक पातरम मनतर पढकर शतरका नाम लिख

कडम डालनस सनासतमभन होता ह ॥। २३ ।।

सनतरभाव गहीतवा त इवतगजा विधानतः । निखनतत इमशान च पाषाणसत पिधापयत‌ ।। २४।॥।

मतर पढकर सफद घघचीको लाकर इमझानम गाड, ऊपरस पतथर

रख द ॥। २४ |।

अषटौ च योगिनीः पजय ऐनदरी माहशवरो तथा ।

वाराही नाररासहो च वषणबो च कमारिकाम‌ ॥॥| २५ ॥।

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ड‌ < दततातरयतनतर

लकषमो बराहमी च समपजय गणश वटक तथा । कषतरपाल तथा पजय सनासतमभो भविषयति ॥| २६ ।॥। पथक‌ पथक‌ बलि दयाततसय नामाभिभागत:ः। मदय मास तथा पषप धप दीप बलिकरिया ॥। २७ :।

१ ऐनदरी २ माहशवरी ३ वाराही ४ नारसिही ५ वषणवी ६ कमारिका ७ लकषमी ८ बराहमी आठो योगिनी का: एव गणश, वटक और कषतरपालका पजन करक पथक २ मदय, मास, पषप, धप, दीपकी मतरपवक बलि द तो सनाका सतमभन होजाता ह ॥ २५-२७ ।

ओनमः कालरातरि शलधारिणि मम शतरसना । सतभन कर २ सवाहा । लकषजपातसिदधि: ॥।

उपरोकत सनासतमभनका मतर ह, एक लाख जपनस मतर सिदध होता ह । जय

सनापलायन भौमवार गहीतवा त काकोलकसय पकषको । भजपतर लिखनमतर तसय नामसमनवितम‌ ॥। २८ ।॥। गोरोचनगल बदधवा काकोलकसय पकषको । सनानीसममख गचछननानयथा शकरोदितम‌ ॥ २९ ।॥।

मजजलवारक दिन कौआ और उललक परोस भोजपतरपर मतर लिख शतरक नामस अभिमतरित कर कौआ और उललक पर गल म बाध सनाक सममख जाय तो निशचय सना भाग जाती ह ॥ २८ ॥ २९ ॥

शबदमातर सनयमधय पलायनत सनिशचितम‌ । राजा परजा गजादयाइच नानयथा शकरोदितम‌ ।। ३० ॥।

उपरोकत परयोगका अनषठान करक सनाम जाय ललकारनस राजा परजा और हाथी आदि निशचय भाग जात ह ।। ३० ॥|

ओऑनमो भयकराय खडगधारिण मम शतरसनय- पलायन कर २ सवाहा । लकषकजपातसिदधि: ॥।

उपरोकत सनापलायनका मतर एक लाख जपनस सिदध होता ह ॥।

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र पटल शर

मनषयसतभन ऋतमतया योनिवसतर लिखदगोरोचननरम‌ ।

तननामना परकषिपतकभ नरसतभः परजायत ॥। ३१ ॥

रजसवला सतरीक योनिक वसतरपर गोरोचनस मनषयका चितर बनाय

उसक नामस अभिमतरित कर घडम बद कर दनसमनषयका सतभन होजाता

ह ।। ३१ ॥।

गोमहिषयादिपशसतमभन उषटसपासथि चतददिकष निखनद‌ भतल झवम‌ ।

तदा धनमहिषयादिपशसतमभः परजायत ॥ ३२ ।॥।

ऊटकी हडडीको जिस पशक सथानम चारो ओर गाड द तो भस आदि

पशका सतभन होजाता ह ।। ३२ ॥।

मघसतममन इषटकासमपरट कतवा तसमिनसघ समालिखत‌ ।

इसशानभससना सथापय भमो सतमभ परजायत ॥| ३३ ॥।

दो ईटोको सपट बनाय बीचम चिताकी भसमस मघ लिखकर भमिम

गाड दनस मघ सतमभित होता ह ॥ ३३ ॥।

निदरासतमभन मधना बहतीमलरञजयललोचनदवयम‌ ।

निदरासतमभो भवततसय नान‍यथा मम भाषितम‌ ॥ ३४ ॥।

कटरीकी जडको शहदम घिसकर दोनो नतरोम लगानस निदरा सतमभित

होजाती ह ।। ३४ ।॥।

नोकासतमभन भरणया कषोरकाषठसय कील पञचाडगल खनत‌ ।

नौकामधय तदा नौकासतमभन जायत झलबम‌ ॥। ३५ ।।

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क ० दततातरयतनतर

भरणीनकषतरम गलरकी लकडीकी पाच अगलकी कील बनाय नौकाकी पदीम गाडनस नौका सतमभित होजाती ह । ३५ ॥।

गभसतमभन पषयाकण त गहलीयातकषणधततरमलकम‌ । कटबा बदधवा गरभिणीना गरभसतमभ: परजायत ॥ ३६ ॥।

रविवारक दिन पषयनकषतरम काल धतरकी जडको लाय कमरम बाधनस गरभिणी सतरीका गरभ नही गिरता*ह ।। ३६ ।।

तनदलीमलक चब दय तदलवारिणा । धततरमलचरणनत योनिसथ गरभधारणम‌ ।। ३७ ॥।

चौलाईकी जडको चावलोक पानीक साथ पीनस तथा घतरकी जडका चरण पोटलीम रख योनिम घरनस गरभ नही गिरता ह ।। ३७ ।।

ललना शारकरा पाठा कनदइच मधनानवितः । भकषितो वारयतथव पतनत गरभभझजसा ।। ३८ ।।

कशर, मिशरी, पाठा और कदको शहतक साथ खानस गिरता हआ गरभ

रक जाता ह ॥। ३८ ॥

कलाल पाणिसलगनः पकः कषौदरसमनवित: । अजाकषीरण सपीतो गरभसतमभ करोतयलम‌ ।। ३९ ॥।

कमहारक हाथम लगी हई मटटीम शहत मिललाय बकरीक दधक साथ पीनस गरभ नही गिरता ह ॥। ३९ ।।

ओऑनमो भगवत महारौदराय गरभसतमभन कर कर सवाहा । लकषजपातसिदधि: ।

उपरोकत मनतर गरभसतभनका ह, एक लाख जपनस सिदध होता ह ।

इस मनतरस अभिमतरित करक जल पिलानस भी गरभ नही गिरता ह ।

इति शरीदततातरयतनतर शरीदततातरयशवरसवाद सतभतकथन नाम चतथ: पटल: ॥। ड

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डर पटल २१

पचम पटल

विदवषण इशवर उवाच

विदवष नरनारीणा विदवष राजसनतरिणो: । महाकौतकविदवष शवण सिदधि परयततनत: ।। १॥। शिवजी बोल-ह दततातरयजी ! परष सतरियोका विदवष, राजा और मतरियो

का विदवष और महाकौतककारी विदवषकी सिदधिको यतनस सनो ॥ १॥।

एकहसत काकपकषमललपकष करषपर । मतरयितवा मिलतयगर कषणसतरण वषटयत‌ ।

यद‌गह निखनदभमौ विदवषतसथ जायत ॥। २ ॥। एक हाथम कौआका पख और दसर हाथम उललक पखको ल दोनोक

अगरभागको मिलाय काल सतस लपटकर जिसक घरम गाड उसको विदवष

होता ह ।। २ ॥।

गहीतवा गजकश च गहीतवा सिहकशकम‌.। गहीतवा मततिका पादतलादधि निखनदभवि ॥ ३ ॥। तदपरि सथापयदरगनि मालतीपषप होमयत‌ । विदवष करत तसय नान‍यथा शकरोदितम‌ ॥॥ ४ ॥।

हाथीक बाल और सिहक बाल लकर वातरक परक नीचकी मटटी ल

पथवीम गाड द । तिसक ऊपर अगनिको सथापित कर मालताक फलोस जिनक

नामस हवन कर उनम विदवष हो जाता ह ।। ३-४ ।।

सारजारकमषकयोविषठामादाय यतनतः ।

विदवषपपादतलतो मदसादाय सिशरयत‌ ॥ ५ ॥ जपनमनतरशत करयाननर पततलिका शभाम‌ । नीलवसतरण सवषटय तदगह निखनदयदि । विदषो जायत शीघर पतरपितरोरपि शरवम‌ ।। ६ ।॥।

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हि २२ दततातयतनतर

बिलली और चहकी विषठाको लकर जिनम वर कराना हो उनक परतल की मटटी लकर मिलाव । फिर उस मटटीको सौबार मन‍तरस अभिमतरित कर मनषयक आकारकी पतली बनाव फिर नील कपडस पतललीको लपट घरम माड दनस पतर और पिताम भी वर हो जाता ह ॥। ५-६ ॥।

चिताभसमयत बरभन सरपयोदनतचरणकम । पथक पततलिका कतवा तततननामनाभिमतरिताम । उदयान निखनदभमो विदवथो जायत धरवम‌ || ७ ।।

चिताकी भसमम नौल और सरपक दातोका चरण मिलाय दो पतली बनाव फिर जिनम वर कराना ह उनक नामस अभिमनतरित कर दोनो पतलियोको अलग २ बगीचकी भमिम गाड द तो दोनोम बर हो जाता ह ॥॥ ७ ॥।

गजकसरिणोदनताननवनोतन पषयत‌ । यननामना हयत चागनो तयोविदवषण भवत‌ ॥ ८ ॥॥

हाथी और सिहक दातोका चरण मकखनम मिलाकर जिनक नामस हवन किया जाय उनम वर होजाता ह ।। ८ ॥।

अशवकश गहीतवा च माहिषकशसयतम‌ । सभाया दीयत धपो विदवषो जायत कषणात ।। ९ ॥।

घोड और मसक बालोकी जिनक नामस सभाम धप द तो उनम वर होजाता ह ॥॥ ९ ॥

गहीतवा सल‍लकीकणट निखनदभवि दवारक । कलहो जायत नितय तदगह नातर सशय: ।। १० ॥।

सहीक काटको लकर जिसक दवारपर गाड तो उस घरम नि सदह कलह होता ह ॥| १० ॥॥

यसय कसय भवददवषो यावजजीव भवततदा । ततपादमततिकायकता शशरपाससमनविताम‌ ॥॥ ११ ॥। पततली करियत समयक‌ इसशान निखनदभवि । विदबो जायत सतय सिदधयोग उदाहतः ॥ १२ ॥।

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बषठ पटल ; ड

जिस किसीम जलमभर वर कराना हो तो उन दोनोक परतलकी मिटटी

को ल परसपरम मिलाय दो पतली बनाकर चिताकी भमिम पथक‌ २ जतरक

नामस अभिमनतरित कर गाड दनस निशचय इस सिदधयोगस विदवष होजाता

ह।॥ ११॥ १२॥।

मतर:-३# नारदाय अमकसय अमकन सह ।

विदवष कर कर सवाहा । लकषकजपाहसिदधि: ॥

उपरोकत विदवषकारक मनतर एक लाख जपतस सिदध होजाता ह ।।

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयदवरसवाद विदवषणपरयोगो

नाम पञचम: पटल: ॥। ५ ॥।

षषठ पटल

उचचादन ईइबर उवाच-

अथागर सपरवकषयासि उचचाटनविधि परम‌ ।

यसय साधनमसातरण भवदचचाटन नणाम‌ ।। १।॥।

शिवजी बोल-अब म उचचाटनविधिको कहता ह, जिसक साधन

मातरस मनषयोका उचचाटन होता ह ॥। १।॥।

यनाहत गह कषतर कलतर धनपतरकम‌ ।

उचचाटन वरध करययाचछण योगीनदर यतनत: ॥ २ ॥॥

ह योगिराज ! (दततातरयजी ) जिसन घर, खत, सतरी पतरादिका हरण

किया हो उसका उचचाटन और मारण कर (उसको ) सनो ॥। २।॥।

बरहमदणडी चिताभसम शिवलिडर परलपयत‌ ।

सिदधारथन च सयकत शनिवार कषिपदगह ॥। ३ ॥॥

उचचाटन भवततसथ सतरीपतररबानधवससह ।

उचचाटन पर चतननानयथा मस भाषितम‌ ॥। ४ ॥।

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रड दततातरयतनतर

बरहदणडी, चिताकी भसम और सरसो मिलाय शिवलिजभपर लप कर शनदचरक दिन मनतरस अभिमनतरित कर जिसक घरनम डाल उसक सतरी, पतर और कटमबीजनोक साथ उचचाटन होजाता ह यह शकरका सतय वचन ह ॥। ३-४ ॥।

गहीतवा रासभो धलि वामपादन निशचितम‌ । मधयाहन भोमवार च यदगह परकषिपननर: ॥। ५ ।। उचचाटन भवततसय जायत मरणानतकम‌ । बिना मन‍तरण सिदधिरव सिदधयोग उदाहत: ॥। ६ ॥।

जिस सथानम गदहा लटा हो उस सथानकी घलको मगलक दिन दपहरक समय बाय परस उठाकर जिसक घरम फकी जाय उसका जीवनपरयनत उचचाटन होता ह यह विना मन‍तरक सिदधि दनवाला सिदध परयोग ह ।। ५-६ ।।

सिदधारथाडछिवनिरमालय यदगह निखनननरः । उचचाटन भवततसथ उदधत च पन: सखी ।। ७ ॥।

सरसो और शिवनिरमालयको ल मनषय जिसक घरम गाड द उसका उचचाटन होता ह उखाडा जाय तब वह मनषय सखी होता ह ।। ७ ।।

काकपकषान‌ रवरवार यद‌गह निखनननरः । उचचाटन भवततसथ नान‍यथा मम भाषितम‌ ।। ८ ॥।

काकक पखको रविवारक दिन लकर मनषय' जिसक घरम गाड द उसका निशचय उचचाटन होता ह ॥। ८ ॥॥

घकपकष भौसवार यदगह निखनननरः । उचचाटन भवततसथ बिना मन‍तरण सिदधघति ॥| ९ ॥।

उलल पकषीक पर मगलक दिन लकर जिसक घरम मनषय गाड द उसका उचचाटन होता ह यह बिना ही मनतरक सिदध होता ह ।। ९ ॥।

घकविषठा च सगहय सिदधारथन समनविताम‌ । यसयाडर निकषिपचचरण सदय उचचाटन भवत‌ ॥ १० ॥

उलल पकषीकी वीटम सरसो मिाय सखाकर पीसल फिर उस चणको जिसक अगपर डाल उसका ततकाल उचचाटन हो जाता ह ॥॥ १० ॥

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चटल र५

गहोतवोदमबर कील मतरण चतरगलम‌ । यसय व निखनददवार सयाततसयोचचाटन धरवम‌ ।। ११॥।

चार अगलकी गलरकी लकडी मन‍तरस अभिमनतरित कर जिसक दर- वाजपर गाढ उसका उचचाटन होजाता ह ।। ११ ॥

काकोलकसय पकषाणि यसय चललया खनदरवो । यजनाममनतरयोगन सयाततसयोचचाटन धरवम‌ ॥ १२ ॥।

कौआ और उलल पकषीक परको रविवारक दिन जिसक चलहम मनतरस अभिमतरित कर गाड उसका उचचाटन होता ह ॥ १२ ॥।

नरासथिकीलमादाय निखनचचतरगलम‌ । सनतरय कत रिपोरडार शीघरमछचाटन भवत‌ | १३ ॥।

चार अगल मनषयक हडढीकी कील मनतरस अभिमतरितकर शतरक दर वाजपर गाडन स शी पर ही उचचाटन होजाता ह ।। १३ |।

3३% नसो भगवत रदाय करालाय अमक पतरबाधवससह शीघरमचचाटय उचचाटय सवाहा ठ: ठ: ठ: । मनतरसथायतजपातसिदधि: ।।

'ओ नमो भगवत' स 'ठ: ठ: ठ:' तक उचचाटनका मनतर ह यह विधानस ददय हजार जपनपर सिदध हो जाता ह ।।

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवाद उचचाटनपरयोगो नाम षषठः पटल: ॥। ५ ॥।

सपतम पटल

- सरवजनवशीकरण ईइबर उवाच

अथागर सपरवकयामि वशीकरणमततमम‌ । यतपरयोगाहश याति भरा नायइच सरवशः ।। १ ॥।

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र ६ दततातरयतनतर

शिवजी बोल-(ह दततातरयजी ! अब शरषठ वशीकरण परयोग वरणन करता ह जिसक करनस समपरण नर नारी वचनम होजात ह ॥ १॥

बरहमदडीबचाकषठचरण तामबलमधयत: । दापयदय रवौ बार स बहयो बतत सदा ।। २ ॥।

रविवारक दिन बरहमदडी, वच और कटक चरणको पानम रखकर जिस दिलवा द वह सदा वशीभत रहता ह ॥। २ ॥

गहीतवा बटमल त जलन सह घरषयत‌ । विभतया सयत भाल तिलक लोकवबयकत‌ ॥। ३ ॥।

बडकी जडको जलम घिसकर विभति मिलाय मसतकम तिलक लगानस मनषय सब जनोको वशीभत करता ह ॥ ३ ।।

पषय पननबामल कर समभिमतरितम‌ । बदधवा सरवतर पजयोडसो सरवोकवशकर: ।। ४ ॥।

पषय नकषतरम मन‍तरस अभिमतरित कर पनरनवाकी जडको हाथम बाधनस मनषय सवतर पजनीय होकर सबको वशीभत करता ह ॥। ४ ॥।

कपिलापयसा यकत पिषटवापामागमलकम‌ । ललाट तिलक कतवा वशीकरययाजजगतरयम‌ ॥। ५ ॥।

चिरचिटकी जडको कपिला गौक दधम पीस मसतकम तिलक लगानस मनषय तरिलोकीको वशीभत करता ह ॥ ५ ॥

गहीतवा सहदवो च छायाशषका त कारयत‌ । तामबलन त तचचरण सबलोकवशकरम‌ ।। ६ ।।

सहदईको छायाम सखाय चरणकर पानक साथ खिलानस सब जनोको वश करता ह ॥ ६ ॥।

रोचनासहदवीभया तिलको लोकवहयकत‌ ।। ७ ।। गहीतवोदमबर मल ललाट तिलक चरत‌ ।

गोरोचन और सहदईका तिलक लगानस मनषय सब जनोको वशीभत कसता ह ।। ७॥।

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पटल

गहीतवौदमबर मल ललाट तिलक चरत‌ ।

परियो भवति सरवषा दषटमातरो न सशय: ॥। ८ ॥।

गलरकी जडका तिलक मसतकम लगानस मनषय दखत ही सबको परिय

हो जाता ह और पानम रखकर गलरकी जड सवन करनस सबजनोको वशी भत

करता ह ॥। ८ ।॥।

सिदधारथदवदालयोइच गटिका कारयदबध: ।

म निकषिपय भाषत सरवलोकवशकरम‌ ॥। ९ ॥।

सरसो और दवदालीकी गोली बनाय मखम रखकर भाषण करनस

मनषय सब जनोको वशीभत करता ह ॥ ९ ॥।

ककम नागर कषठ हरिताल मनःशिला ।

अनामिकाया रकक‍तन तिलक सरववशयकत‌ ।। १० ॥।

कसर, सोठ कठ, हरताल और मनशिलरम अनामिका अगली का रकत

मिलाय मसतकपर तिलक लगानस मनषय सबको वशीभत करता ह ।। १० ॥।

गोरोचन पदमपतर परियग रकतचनदनम‌ ।

एषा त तिलक भाल सरवलोकवशकरम‌ ।। ११ ॥।

गोरोचन, कमलपतर, कागनी और लालचनदनको मसतकरम लगाकर

मनषय सबको वश करता ह ॥ ११॥।

गहीतवा इवतगजा च छायाशषका त कारयत‌ ।

कपिलापयसा सादध तिलक लोकबशयकत‌ ॥ १२ ॥।

सफद घघचीको छायाम सखाय कपिला गौक दधम घिस तिलक लगानस

मनषय सबको वशम करता ह ।। १२ ॥।

इवतारक च गहीतवा च छायाशषक त कारयत‌ ।

कपिलापयसा सादध तिलक लोकवधयकत‌ ॥। १३ ।॥।

सफद आकको छायाम सखाय कपिला गौक दधक साथ घिस तिलक

छगानस मनषय सबको वशीभत करता ह | १३ ॥।

इवतदबा गहीतवा त कपिलाइगधमिशचिताम‌ ।

लपमातर शरीराणा सरवलोकवशकरम‌ ॥। १४ ॥।

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८ दततातरयतनतर

सफद दबको कपिला गौकदधम मिलाय शरीरपर लप करनस मनषय सबको वश करता ह | १४ ।॥।

बिलवपतर त सगराहम 4४४६: ९ २८४८९ | तथव च । अजादगधन तिलक सरव करम‌ ॥। १५ ॥।

बलकी पतती बिजौरा नीबक रसम पीस बकरीका दध मिला तिलक लगानस मनषय सबको वशीभत करता ह ।। १५ ॥

पा मशन शा विजयाबीजसयतम‌ । $ करियत भाल सबलोकवशकरम‌ ।। १६ ।।

घीक‍वारकी जड और भागक बीजोका तिलक बनाय मसतकपर लगा- नस मनषय सबको वशीभत करता ह ॥। १६ ।।

हरिताल चाइवगधा सिदर कदलीरसः । एषा त तिलक भाल सरवलोकवशकरम‌ ।। १७ |।

हरताल, असगनध और सिनदरको कलक रसम मिला मसतकपर तिलक लगानस मनषय सब जनोको वश करता ह ॥। १७ ॥।

आपामारगसय बीजानि चछागदगधन पषयत‌ । अनन तिलक भाल सरवलोकवशकरम ।। १८ ॥।

चिरचिटक बीजोको बकरीक दधम पीस उसका मसतकपर तिलक लगानस मनषय सब-जनोको वश करता ह ।। १८ ॥।

तामबल तलसीपतर कपिलादगधपषणम‌ । अनन तिलक भाल सरवलोकवशकरम‌ ।। १९ ॥।

पान और तलसीक पततोको कपिला गौक दधम पीस मसतकपर तिलक लगानस मनषय सबको वशीभत करता ह।। १९ ॥।

ओ नमो नारायणाय सवलोकानमस वशानकर कर सवाहा (असय मन‍तरसयायतजपातसिदधि:)

ओ नमो नारायणाय' स 'सवाहा' तक सरवजनवशीकरण मनतर ह। दशहजार जपनस सिदध होता ह-

इति शरीदततातरयमतर दततातरयशवरसवाद सवलोकवशीकरण नाम सपतम पटल ॥ ७ ॥।

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र पटल २९५

अषटम पटल

सतरीवशीकरण रविवार गहीतवा त कषणधततर पषपकम‌ ।

शाखा लता गहीतवा त पतर मल तथब च ॥ १॥।

महादवजी बोल (ह दततातरयजी ! ) रविवारक दिन काल धतरको

पषप, लता, पतत और जडसहित लाव ॥। १ ॥।

पिषटवा करपरसयकत ककम रोचन समम‌ ।

तिलक: सतरीवशकरो यदि साकषादरन‍धती ।। २ ॥।

और उसम कपर, कशर एव गोरोचन मिलाय तिलक बनाकर

मसतकपर लगाव तो अरनधतीक समान सतरीको भी वशीभत करता ह ॥२॥

काकघा बचा कषठ शकर शोणितमिशचितम‌ ।

दतत त भोजन बाला वशीक रणमदभतम‌ ।। ३ ॥।

काकजघा, वच और कठको (चरणकर) अपन वीरय और रक‍तम मिला

जिस सतरीको भोजनम द तो अदभत वशीकरण होता ह ।। ३ ॥।

चिताभसम वचा कषठ रोचनाककम: समम‌ ।

चरण सतरीशिरसि कषिपत वशोकरणमदभतम‌ ॥। ४ ॥।

१ काकजघा (कौआटीडी ) जडी होती ह २

चिताकी भसम, वच, कठ, गोरोचन और कसरका समान भाग

लकर चरण बनाय सतरीक शिरपर डालनस अदभत वशीकरण होता ह ।। ४ ॥

भौमबार लबड च लिडभचछिदर विनिकषिपत‌ ।

बध निषकासय ताबल दरयातसा वशगा भवत‌ । ५

मगलक दिन लौगको लिगक छिदरम रकख और बधक दिन उस निकाल

पानम रख जिस सतरीको खिलाव वह वजञीमत होजाती ह ॥। ५ ॥।

करपादनखाना च भसम ताबलपतरक ।

रखिवार परदातवय वशोकरणमदभतम‌ ।। ६ ॥॥

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क ० दततातरयतनतर

हाथ परोक नखोकी भसम बनाय पानम रख रविवारक दिन जिस सतरीको दीजाय वही वशीभत होजाती ह ॥। ६ ।॥।

जिहनामल दनन‍तमल नासाकरणमल तथा । ताबलन परदातवय बशीकरणमदभतम‌ ।। ७ ॥।

जीभका मल, दातोका मल, नाकका मल और कानक मलको ल पानम रख सतरीको दनस अदभत वशीकरण होता ह ।। ७ ।॥।

धकमास गहीतवा त खादय पय परदापयत‌ ।

सिदधयोगो हवय जञगो वशीकरणमदभतम‌ ॥॥ ८ ॥। उलल पकषीका मास खिलानस पिलानस अदभत वशीकरण होता ह इसको

सिदधयोग जानो ॥। ८ ॥। वामपादतलातपास वनिताया:ः शनो हरत‌ । तसय पततलिका करययाततसथ: कशाननियोजयत‌ ।॥९।। नोलबसस‍तरवषटयितवा सववोरय त भग कषिपत‌ । सिदरण सामायकत निखनददवारदशक || १० ॥। उललडघनाइश याति पराणरपि धनरपि । कतजञ: सववद करययानमोदतत च चिर भवि ।। ११ ॥।

शनिक दिन सतरीक बाय परक तलकी घलि लकर पतली बनाव और उस सतरीक कश पतलीक कशक सथानपर लगाव। नील कपडम पट उस पतलीक भगम अपना वीय डाल और मसतकपर सिदर लगाय दरवाज पर गाड द। उस सथानको छाघनस वह सतरी धन और पराणस मनषयक वशीभत ह जाती ह, कतजञ परष ऐस सतरीको वशकर चिरकालतक आननद भोगता

]77९-११७॥

ताबलरसमधय च पिषटवा ताल मनःशिलास‌ । भौम च तिलक कतवा वशीकरयाजच योषितः ।। १२ ।।

मगलक दिन पानक रसम मनशिलको पीस तिलक लगानस मनषय सतरियोको वशीभत करता ह ॥ १२ ॥

गोरोचन पदमपनन लिखितवा तिलक कतम‌ । शनिवार कत योग वशञीभवति निशचितम‌ ॥ १३ ।॥।

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पटल ३१

शनिवारक दिन गोरोचनस कमलक पततपर सतरीका *।म लिख फिर

उसीका तिलक लगानस निइचय ही सतरी वशीभत होजाती ह ।! १३ ॥।

गहीतवा मालतीपषप कतवा त पटवरतिकास‌ ।

भगवार नकपाल एरडतलकजजलम‌ ॥। १४ ॥।

अडजयननतरयगल दषटिमातर वशीभवत‌ ।

बिना मन‍तरण सिदधि: सयाननानयथा मम भाषितम‌ ॥। १५ ॥।

चमलीक फलको सतक कपडम लपट बतती बनाय अडीक तलम शकर-

वारक दिन मनषयकी खोपडीक बीच दीपक जलाय काजल पार फिर उस

काजलको दोनो नतरोम ऑज तो उसक दखतही सतरिय वशीभत होजाती ह,

मरा कहा यह सिदध परयोग ह इसम मनतरकी भी आवशयकता नही ह।। १४ १५॥।

ओ नमः कामाकषय दवय अमका म वश कर-

कर सवाहा (सपादलकष जपातसिदधिभवति) ॥

ओ नमः कामाकषयस' 'सवाहय' तक सतरीवशशीकरणका मनतर ह सवालाख

जपनस यह सिदध होता ह । इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवाद सतरीवशीकरण

नामाषटम: पटल: ॥। ८.।॥।

नवम पटल

परषवशीकरण गोरोचन योनिरक‍त कदलीरससयतम‌ ।

एभिसत तिलक कतवा पति त सववह नयत‌ ॥ १ ॥।

महादवजी बोल- (ह दततातरयजी !) गोरोचन, योनिरकत और

कलका रस मिलाय तिलक बनाकर लगानस सतरी अपन पतिको वश करलती

॥ १ ॥।

2 पचाग दाडिम पिषटवा इवतसषपसयतम‌ ।

योनिलप पति दास करोतयव च दरभगा ॥ २ ॥।

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ड पट दतताजरयतसतर

अनारक पचाग और सफद सरसोको पीस योनिपर लपकर दभगा भी सतरी अपन पतिको दास बना लती ह ॥ २ ॥।

गहीतवा मालतीपषप कटतलन पाचितस‌ । भग यललपयननारी रतो मोहयत पतिम‌ ॥॥ ३ ॥।

चमलीक फलोको कडव तलम पचाय जो सतरीसमभोगसमयम अपन काममनदिरम लप कर तो वह अपन पतिको मोहित कर लती ह ।। ३ ॥।

$# नमो महायकषिणय मम पति म वहय कर कर सवाहा । (असय लकषजपातसवसिदधि:) ।

*ओ नमो महायकषिणय' स. सवाहा' तक पति वशीकरणका मनतर ह, यह लाख वार जप करनस सिदध होता ह ।

राजवशीकरण ककम चनदन चव करपरसतलसीदलम‌ ।

' गवा कषीरण तिलक राजवशयकर, परम‌ ।। ४ ।॥। कशर, चनदन, कपर और तलसीदलको गौक दधम पीस तिलक लगानस

राजाको वश करता ह ॥। ४ |।

हरिताल चाहवगगधा करपरइच मनदिशिला । आजाकषीरण तिलक राजवशयकर परम‌ ॥ ५ ॥।

हरताल, असगनध, कपर और मनशिलको बकरीक दधम मिलाय तिलक लगानस मनषय राजाको वशीभत करता ह ।। ५ ॥॥

तालीसकषठतगरलिपता कषौमो सवरतिकाम‌ । सिदधारथतल निकषिपय कजजल नरमसतक ।। ६ ।॥। पातयदजनाततसमातसवदा भवनतरय । दषटिगोचरमायात: सरवो भवति दासवत‌ ॥। ७ ॥।

तालीस, कट, तगर इनको पीस रशमी वसतरम लपट बतती बनाय मनषयकी : खोपडीम सरसोका तल भर बतती जलाय कजजल पार । इस काजलको न नतरोम

लगानस जो कोई मनषय दषटिगोचर हो वही दासक समान वशञ हो जाता ह ॥। ६-७ ।।

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डः पटल डर

कर सौदरशन मल बदधवा राजपरियो भवत‌ । सिहीमल हरतपषय कटो बदधवा नपपरिय: ।। ८ ॥।

सदरशनकी जडको हाथम बाधनस राजाका परिय होता ह । काकडासिही

की जडको पषय नकषतरम छाकर कमरनम बाध तो राजा का पयारा होता ह ।। ८ ॥।

हरतसौदरशन मल पषयम रविवासर । करपर तछसीपतर पिषटवा त वसतरलपन ॥। ९ ॥। विषणकरानतावीजतल तसय परजवालय दीपकम‌ । कजजल पारयदरातरौ शचिपरव समाहित: ।। १० ॥। कजजल चाउजयननतर राजवशयकर परम‌ । चकरवरतो भवदवतयो हमनयलोकसय का कथा ॥ ११॥।

रविवारक दिन पषयनकषतर होनपर सदरशनकी जड लाय कपर और तलसीदलोक साथ पीसकर वसतरपर लपन कर । पीछ विषणकरानताक बीजोको तलम उसकी बतती बनाय दीपक जलाकर रातरिम कजजल पार उस काजलको नतरोम लगानस राजाको वश करता ह इस काजलक परतापस चतरवरती राजा

वजञीभत होजाता ह औरकी बात ही क‍या ह ।। ९-११ ॥।

भौमवार दरशदिन कतवा नितयकरिया शकति: ।

बन गतवा हपामारगवकष पशयददझमख: ।॥ १२ ।। ततर विपर समाहय पजा कतवा यथाविधि ।

करषमक सवरणसय ददयाततसम हिजनमन ।। १३ ॥। तसय हसतन गहलीयादपामारगसय बीजकम‌ । मौनन सवगह गचछतकतवा बीजासत निसतषान‌ ॥॥ १४ ॥॥ रमश हदय धयातवा राजान खादयचच तान‌ । यन कनापयपायन यावजजीव भवदरश ।। १५ ॥।

मगलवारी अमावासयाक दिन सनान पजन भरादि नितयकी करियाको कर वनम जाय उततरको मखकरक अपामारगक वकषको दख । और उस सथानम बराहमणको बलाय विघानस उस वकषका पजन कर । फिर पजा

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र ड दततातरयतनतर

कराई सोलह मास सवरण बराहमणको द। उस बराहमणक हाथस आपा- मारगक बीजोको निकलवाय उन बीजोको लकर अपन घर मौन भावस चला आव फिर बीजोकी बसी निकाल द रमशका धयान कर किसी उपायस यह राजाको खिला द तो जीवनपयन‍त राजा वशीभत रह ॥१२-१५।॥।

अपामारगसय बीजनत गहीतवा पषयभासकर ।

खान पान परदातवय राजबशयकर परम‌ ॥ १६ ।। रविवारक दिन पषयनकषतर होनपर अपामारगक बीज लछाय खानपानम

दनस राजा वश होता ह ।। १६ ।॥॥ 3# नमो भासकराय तरिलोकातमन अमक महीरपात म वहय करकर सवाहा (एकलकष-

जपानमनतरसिदधि:) ॥। “४ नमो भासकराय' स 'सवाहा तक राजवशीकरणका मनतर ह ।

यह एक लाख जपनस सिदध किया जाता ह।

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशबरसवाद राजवशयो नाम

नवम:ः पटल: ॥| ९ ||

दशम पटल

आकरषण परयोग ईईवर उवाच

आकरषणविधि वकषय शवण सिदध परयतनतः । राजञ: परजाया: सरवषा सतयमाकरषण भवत‌ ॥| १ ॥।

शिवरजी बोल-(ह दततातरयजी ! ) अबसिदध आकरष णकी विधिको कहता ह हम सावधानीस सनो जिसस राजा परजा आदि सबका सचचा आकरषण होता ह ॥। १ ॥

कषणधततरपातराणा रस गोरोचन यतम‌ । इवतचणडाल लखनया भजपतर लिखततत:ः ।। २ ॥॥

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ड पटल ३५

मन‍तरनाम लिखनमधय तापयतखदिरागनिना । शतयोजनगो वापि शीघरमायाति नान‍यथा ।। ३ ॥।

काल धततरक पततोक रसम गोरोचन मिलाय सफद कनरकी

कलमस भोजपतरपर मनतर लिख। मनतरक बीच अमकक सथान म जिसका

नाम लिख और खरकी आगस तपाव तो सौयोजनतक पहचा हआ मनषय

भी शीघर आजाता ह ।। २-३ ।। नकपाल लिखनमनतर रोचनाकशरससह । तापयतखदिराजधार तरिसनधयास परयतनतः ।

मनतर जपतसससिदध करषयदरवशीमपि ।। ४ ॥। मनषयकी खोपडीम गोरोचन और कशरस मन‍तरको लिख खरक अगारस

तीनो सधयाओम तपाव और मनन‍तरको जप तो उवशी अपसराको भी आक- घित करलगा ।। ४ ॥।

बरहमदणडी समादाय पषपाकक ता त चरणयत‌ ।

कामारता कामिनी दषटवा उततमाड विनिकषिपत‌ ।

पषठत: सा समायाति नान‍यथा मम भाषितम‌ ।। ५ ॥।

रविवारक दिन पषयनकषतर होनपर बरहमदडीको छाकर चरणकर और

कामपीडित कामिनीक शिरपर वह चरण डाल तो कामिनी पीछ २ चली आती ह यह मरा सतयवचन जानो ॥ ५ ॥।

अनामिकाया रक‍तन लिखनमनतर त भजक । यसय नाम लिखनमधय मधमधय च निकषिपत‌ ॥ ६ ॥। तदा आकरषण याति सिदधियोग उदाहतः । यसम कसम न दातवय नान‍नयथा मस भाषितम‌ )। ७ ॥।

अनामिका उगलीक रकतस भोज पतर मनतरक बीच जिसका नाम लिख

कर शहदम डालद; उसका आकरषण होता ह इस सिदधियोगको जिस किसीको नही द यह मरा सतय वचन ह ।। ६-७॥।

3» नमो आदितयरपाय अमकसयाकरषण कर कर सवाहा (अयतजपानमनतरसिदधि:)

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३६ दततातरयतनतर

'ओ नमो आदितयस' सवाहा तक आकरषणका मनतर ह यह दश हजार

जपनस सिदध होता ह ।।

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवाद आकरषणपरयोगो नाम दशम: पटल: ॥| १० ॥।

एकादश पटल

इनदरजाल ईइबर उवाच

इनदरजाल बिना रकषा जायत न सनिदिचितम‌ ।

रकषामतरो महामनतर: सरवसिदधिपरदायकः ।। १ !।

शिवजी बोल-(ह दततातरयजी ! ) विना इनदरजालक जान निशचित

इपस रकषा नही होती ह अतएव अब इनदराजाल और रकषाक मनतर (कहता ह )

जो सब सिदधियोको दनवाल ह । १ ॥। ३& नमो नारायणाय विशवमभराय इनदरजालकौ-

तकानि दरशयदरशय सिदधि करकर सवाहा ॥।

(एकलकषजपानमनतरसिदधि:)

उपरोकत इनदराजालका कौतकादि दिखानका मनतर ह यह एक लकष

जपनस सिदध होता ह ।॥ 3 नमः परबरहमपरमातमन मम शरीररकषा कर

कर सवाहा (अयतजपानमनतरसिदधिभवति । )

उपरोकत शरीरकी रकषाका मनतर ह यह दशहजार जपनस सिदध होता ह

बषटित घणतालसय पञचाडः कनक तथा ।

दषटिसातरादषटिबनध नान‍यथा सम भाषितम‌ ।। २ ।॥।

घणातालवकषक पञचागका आर घतरक पञजचागको मिकाय (गलम

बाघ) तो दषटिमातर स दषटिबनध होता ह यह मरा सतय वचन ह ॥ २ ॥

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ड पटल ३७

कारपासबीज सरपासय भौमवार च रोपयत‌ । उदभत बीज कारपास बालरणडसथ तलक । तदगति जवालयदरातरौ सरपवददशयत धव‌ ॥। ३ ॥।

मगलक दिन सरपक मख म कपासक बीच बोव उसस जो कपास उतपनन हो उसकी बतती बनाय अडीक तलम डाल रातरिम दीपक जलाब तो सरपही सरप

दिखाई द ।। ३ ॥। वशचिकसय मख बीज कषिपटकारपसिक तथा । तदगति जवालयदरातरौ बकिचिको भवति धय बसत‌ ॥। वतिशानति: परकतवया महाकोतकशामिका ॥। ४ ॥।

बीछक मखम कपासक बीज बोद, जब कपास उतपनन हो तब उसकी बतती बनाय रातरिक समय दीपक जलाब तो बीछी ही वीछी दषटि आव बततीक निकालनपर महाकौतक शानत होजात ह ।। ४ ।।

भौम कापसिबीजानि नकलरसय मख कषिपत‌ । सनधयाया जवालयदगति नकलो दशयत धरवम‌ ॥। ५ ॥।

मगलक दिन कपासक बीजोको नौलक मखरम छोड फिर कपास होनपर उसकी बतती बताय सधयासमय दीपकम जलानस नौलही नौल दीख पडत ह ॥ ५ ||

उलकसय कपाल त घतदीपन कजजलम‌ । पारयितवाजयननतर रातरो पठति पसतकम‌ ।।. ६ ।।

उलल पकषीकी खोपडीम घीका दीपक जलाय काजल पार फिर उस काजल को नतरोम लगानस रातरिम पसतक पढ सकता ह ।। ६ ॥।

चनदर कारपासबीजानि मारजारसय मख कषिपत‌ । तह ति जवालयदरातरौ सारजारो दशयत शरवम‌ ।। ७ ।॥।

सोमवारको बिललीक मखरम कपासक बीज डाल फिर बतती बनाकर रातरिम दीपक जलानस बिलली ही बिलली दीखती ह ।। ७ ॥।

एव यसय मख कषिपत तदःडभवसरवातकम‌ । दीप परजवालयदराननो दषयत हि सनिधचितम‌ ॥ ८ ॥॥.

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क रट दततातरयतनतर

इस परकार जिसक मखम कपासक बीज बोव फिर उसकी बतती बनाकर रातरिम जलाव तो वह निशचय दषटि आता ह ॥। ८ ॥।

य च कचन जीवाइच बतनत जगतीतल । कषिपतवा मरखडकोलबीज निकषिपतपथिबीतल ॥। ९ ॥। तदवीज मरखमधयसथ तरिलोह बषटित कर । तदगपी च भवतसदो नान‍यथा मग भाषितम‌ ॥। १० ॥।

पथिवीम जितन जीव ह उनमस किसीक मखम अकोलक बीजोको भर पथवी म गाड द । उन बीजोस वकष उतपनन हो उसक बीजोको लोहक तरिकोण अनतरम लपटकर मखम रक‍ख तो मनषय उसी जीवक समान अनय

परषोक दषटि आव ॥। ९१० ॥। खडजरीट सजीवनत गहोतवा फालगन कषिपत‌ । पिजजर रकषयतताबदयाव:भादरपदो भवत‌ ॥ ११॥ अदशया जायत सतय नतरणापि न दषयत । करण त शिखा गराहमा रपययनतर च निकषिपत‌ ॥ १२ ॥। गटिका मखमधयसथा अदशयो भवति धरवम‌ ।। १३ ॥।

जीवित खजन पकषी को फालगन क महीनम लकर पिजरम बनद कर और भादो तक उस रहन द । भादोक महीनम वह खजन निरचय नतरोस नही दीखगा तब उसको हाथस पकडकर उसकी चोटी उखाड ल और उस चोटीको चादीम मढाकर गटका बनाय मखम रकख निशचय अदशय होजाता ह अरथात‌ दसरोको नही दीखता ह ।-११ १३ ॥

अकोलसय त बोजानि निकषिपय तलमधयतः । धप दततवा त तततल सरवसिदधिपरदायकम‌ ।। १४ ॥। तडाग निशषिपतपाम बोज तततलसयतम‌ । ततकषणाजजायत योगिसतडागातकमलोजभव : ॥ १५ ॥

तततलमामरबीज त निकषिपदविनदमातरतः । आमवकषसतदतपननः कषणमातरातफलानवित: ॥ १६ ।।

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ह पटल ३९

अकोलक बीजोको तलम डालद फिर घप द तो वह तल सिदधिदायक

होजाता ह । कमलक बीजोको तलम भिगोकर तलावम डाल तो उसी समय

कमलक फल उतपनन होत ह । यदि उस तलको बनद भर भी आमकी गठलीपर

डाल दिया जाय तो उसी समय फलसहित आमका वकष उतपनन होजाता

ह । १४-१६ ॥ घकविषठा गहीतवा तवरणडतलन पषयत‌ ।

यसयाग निकषिणटरिनदरभदशयो जायत नर: ॥॥ १७ ॥। उललपकषीकी वीटको अडीक तलम मिलाय जिसक अगपर बनद भर

डाल दिया जाय तो वह अदशय होजाता ह ॥। १७ ॥।

मातलडभसय बीजाना तल गराहम परयतततः ।

लपयतता मरपातर तन‍मधयाहन च विलोकयत‌ ।। १८ ॥।

बिजौर नीबक बीजोका तल यतनस निकाल तामरपतरपर लगाय मधयाहन

कालक सरयक सामन रखकर दख ॥| १८ ॥।

रथन सह चाकाहशो दहयत भासकरो पलवम‌ ।

बिना मतरण सिदधि: सयातसिदधयोग उदाहतः ॥ १९ ॥। तो रथ सहित सरय भगवान‌ आकाशरम दिखार पडग । यह सिदध योग

बिना ही मनतरक सिदधि दता ह ।। १९ ॥

वाराहीकरानतिकामल सिदधारथसनहकपितम‌ । मख परकषिपय लोकाना दषटिबनध करोतयलम‌ ॥ २० ॥।

बाराहीकद और कटलीकी जडको सरसोक तलम मिलाय जिसक

मखपर फक तो उसकी दषटि बध जाती ह ।। २० ॥।

भौमवार गहीतवा त मततिका रिपमतरतः । ककलसमख कषिपतवा ककवकष च बधयत‌ ॥॥ २१ ॥। मतरबधो भवततसय उदधत च पनः सखो । बिनामतरण सिदधि: सथातसिदयोग उदाहतः ॥ २२ ॥।

मगलक दिन शतरक मतरसथानकी मटटी लकर गिरगिटक मखरम

भर घतरक वकषतत वाध द तो उस शतरका मतर बनद होजाता ह जब

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० दतता तरयतनतर

गिरगिटको खोल उसक मखस मिटटी निकाल तब सखी हो जाता ह, यह सिदध योग विनाही मनतरस सिदधि दता ह | २१ ।॥। २२ ॥।

रविवार सकदधनयादवीघतडी तदा निशि । ततः सोम गहीतवा त मततिका रिपमननत: ॥। २३ ।॥। तचचममणि कषिपचछननमतरबनधनकारिका । उदधत च सखी चब सिदधयोग उदाहत: ॥| २४ ॥।

रविवारक दिन रातरि समय एक ही बारम छछनदरको मार सोम वारको शतरक मतरसथानकी मिटटी छाकर उस मारी हई छछदरकीखालम भर तो शतरका मतर बनद होजाता ह (यदि उस खालम मटटी भरी हई छछलदर क लकडी मार तो झतरको पीडा होन लगती ह, मतर बनद होनस कषट पाकर शतर मरजाता ह) जब छछनदरकी खालस मिटटी निकाल ली जाय तब सखी होजाता ह ॥ २३ ।। २४ ॥।

सिनदर गधक ताल सम पिषटवा मनःशिलाम‌ । धत तललिपतबसतर त धरवमगनिन‍च जायत ॥| २५ ॥।

सिदर, गनधक, हरताल और मनशिलको समान ल पीस वसतरपर लप कर तो वह वसतर निशचय अगनिक समान दिखाई दगा | २५।॥। *

इवबताञउजन समादाय पषयागसतयरसन च । पिषटवा सपतदिन यावदषटमडकलि यथाविधि ।। २६ ॥। अञजन चाउजयननतर दशयनत चाहनि तारका: ।। २७ ।। कककटसथाणडमादाय तचछिदर पारद कषिपत‌ । सनमख भासकर कतवा आकाश गचछति धरवम‌ ।। २८ ॥। विना मतरण सिदधि सिदधियोग उदाहत: ॥। २९ ॥।

सफद सरमको अगसतयक रसम सात दिनतक घोट आठव दिन विधान- परवक उस अञजनको आखोम लगानस दिनम तार दषटि आत ह। मरगीक अडम पारा भर सरयक सामन धरनस वह अडा निशचय आकाझञको उडजाता ह ॥। यह सिदधि योग बिना ही मनतरस सिदधि दता ह।॥ २६-२९ ||

अरककषोर वदकषीर कषीरमौदमबर तथा । गहीतवा पातरक कषिपत जलपरण करोति च । दगध सऊजायत ततर महाकोतककौतकम‌ ।। ३० ॥।

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ह पटल खद

भआकका दध, बरगदका दध और गलरका दध लकल पातरम डाल रीछ उस पातरको जलस भर द तो उस जलका दध ही दध विहित होगा यह महाकौतक ह ।। ३० ॥।

गहीतवा विजयाबीज तततल त समाहरत‌ । तततलमहिफतञच विष जातीफल तथा ॥ ३१ ॥।

धततरबीजचरणनत गहीतवा च सम समम‌ । नवनीतन तलन सरवमौषधपषणम‌ ।। ३२ ॥।

अषटयामकत ततर महाकौतककौतकम‌ । तततलबिनदमातरण लिगलप च कारयत‌ ।। ३३ ।। भोगचछा सवदा तसय दढ दीघ भविषयति ॥॥ ३४ ।॥

भागक बीजोका तल निकाल उस तलम अफीम, विष, जायफल और धततरक बीजोका चरण समान भाग मिलाय मकखन वा तलस सब औष- घियोको आठ पहरतक खरल कर तो वह महाकौतकरप होजाता

ह उस तलकी बद भी कामधवजापर लगाई जाय तो भोगकी इचछा सदा रह एव लिग दढ और दीघघ होजायगा ॥। ३१-३४ ||

षणमख मततिकाभाणड गहीतवा रविवासर । तसय मधय सथापयततदककील नवागलम‌ ।। ३५ ।॥।

इवतदरवासयत हि चाइवगनधा मनःशिला । तामबलसयत कतवा तलसीदलमव च ॥। ३६ ।।

अपामारगसय पतरनत धातरीपतर तथव च । बटठपतर तथा मधय घत मिषटाहदगधक ।। ३७ ।।

मख वसतरण सबषटय निखनतससयमधयक ।॥ तसयोपरि भजपतर यतर पचदरश लिखत‌ ।। ३८ ॥।

शलभाखमगाणा च शवगालाना तथव हि । पशपकषिनराणाञच चौराणा कीलन भवत‌ ॥ ३९ ॥॥

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| ससयपरणा न विघन: परिभयत ।

यसम कसम न दातवय नान‍यथा सम भाषितम‌ ॥ ४० ॥। रविवारक दिन छःमखकी मटटीकी हाडी लाकर उसम नौ अगलकी आकक वकषकी कील रक‍ख और उसम सफद दब, असगनध, मनशिल, पान, तलसीका दल, अपामारगक पतत, ऑमलक पतत, बरगदक पतत, घी, मीठा दध डाल पीछ उस हाडीक मखम वसतरस लपट धानययकत कषतर (हर भर खत) म जाकर गाड द उसक उपर भोजपतरपर परदर- हका यतर लिख कर सथापित कर तो टीडी, मग, मषक, सियार तथा बनल जीव जनत, पश, पकषी, मनषय, चोर आदिका कीलन उसी समय हो जाता ह और वह भमि (जिसम हाडी गाडी ह) धानयस परिपरण होती ह किसी परकार विधन नही होता यह परयोग परतयक मनषयको नही दना चाहिय ३५०४० |

पषयारक त समानीय मल इवताकसमभवम‌ । अगषठ परमिता तसय परतिमा त परपजयत‌ ॥। ४१ ।। गणनाथसवरपनत भकतया रक‍ताइवमारज: । कसमइचापिगनधयहविषयाशी जितनदरय: ॥ ४२ ॥। पजयशनाममतरइच तहीजानि नमोःनतक: । यानयानपरारथथत कामानकमासन तॉललभत‌ ॥। ४३ ॥ परतयककामसिदधचरथ' मासमक परपजयत‌ । गणशबीजमाह-ओ अस‍तरिकषाय सवाहा । अनन मतरण पजयत । ओ ही पबदया ओ ही फटसवाहा ॥। कषौदरयतानि जहयात‌ । बाछित ददाति । 3 हञी शरी मानससिदधिकरी ही नमः ।। अनन मन रक‍तकसममक जपतवा नितय कषिपत‌ । ततो भग- वती वबरदा अषटगणानामक गण डदाति ।। ४४ ॥।

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डा पटल ह

पषयनकषतरयकत रविवारको सफद आककी जडको अगठक बराबर लाय उसकी परतिमा बनाय पजन कर। फिर हविषयानन (खीर) खाय इदवियोको जीत शरीगणशजीक सवरपका भकतिक साथ लाल कनरक फल और चनद- नादिस उन‍हीक (गणशजीक) बरीजमतरक अनत “नमः शबद यकत करक पजन कर और जिस कामनास कर वह कामना मासम परण होजायगी ॥। परतयक मनोरथकी सिदधिक निमितत एक मास पजन करना चाहिय 'ओ अतरिकषाय सवाहा' यह गणशजीका बीममतर ह। ओ हरी पवदया ओ छली फट सवाहा इनको पढ लाल कनरक कलोकी हवनम आहति द इस भातिस करनपर दवता मनोरथ परण करत ह । इसक अतिरिकत “ही शरी मानससिदधिकरी ही, नमः” इस मनतरको पढकर परतिदिन हाथम लाल फल लकर चढाव तो वर दन वाली भगवती आठ गणोमस एक गण दती ह ॥ ४२-४४ ।॥

कततिकाया सनहीवकषबनदाक धारयतकर । वाकयसिदधिरभवततसय महाइचरयमिद समतम‌ ।। ४५ ॥।

कततिका नकषतरम थहरक बनदको हाथम बाधनस वाकयसिदधि होती ह महा आइचरययकत परयोग ह ।॥ ४५ ।॥।

अनन गराहयतसवातीनकषतर बदरीभवम‌ । बनदाक ततकर धतवा यहसत परारथयत जन: ।। ४६ ।। ततकषणातपरापयत सबमतर सनन‍तरसत कथयत । ओ अनतरिकषाय सवाहा ॥। अननगराहयत‌ ।। ४७ ॥।

सवाती नकषतरम परवोकत मनन‍तरस बरक बदको लाकर हाथम बाघ जिस वसतको चाह वह वसत उसको उसी समय परापत हो जाती ह ओ अत- रिकषाय सवाहा' इसी मतरस वदको अभिमतरित करक बाघ ।॥।

इति शरीदततातरयतनतर शरीदततातरयशवरसवाद इनदर जालकौतकदरशन नामकादश: पटल: ११ ॥

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डड दततातरयतनतर

हदादश पटल

यकषिणीसाधन इशवर उवाच

शवण सिदध सहायोगिनयकषिणीमतरसाधनम‌ । यसय साधनमातरण नणा सरव मनोरथा: ॥। १ ॥।

शिवजी बोल-ह महायोगिन‌ ! (दततातरयजी ) अब यकषिणी साधनकी विधिको सनो जिसक अनषठानस मनषयोक समपरण कारय सिदध होत ह ॥ १॥

आषाढोपरणिमाया च कतवा कषौरादिका: करिया: । सितजययोरमोदय_त साधयदयकषिणी नरः।॥ २॥ परतिपदविनमारमभयकरावणनदबलानवित । मासमातर परयोग त निविधनत समाचरत‌ ॥ ३॥। उगडः

महीनम परणमासीक दिन कषौर आदि कराकर गर, शकरक उदयम मनषय यकषणी साधन कर || किसी आचारय क मतस चदरमाक बलवान‌ होनपर शरावण वदी परतिपदास यकषिणी साधनका औरभ कर और इस परयोगको एक मासम विधनरहित समापत कर ।। २- ३१॥।

निरजन बिलववकषसथ मल करयाचछिवारचनम‌ । घोडशोपचारकसत रदरपाठसमनवितस‌ ।। ४ ॥

निजन सथानम बलक वकषकी जडम बठकर शिवजीका षोडशोपचारस रदरपाठक साथ पजन कर | ४ ॥।

अयमबकतयसय मनतरसय जप पञचसहसरकम‌ । दिवस दिवस कतवा कबरसथ च पजनम‌ ॥ ५ ॥।

'शयबक यजामह' इस मन‍तरका पाच हजार जप कर और परतिदिन कबर जीका पजन कर ।। ५ ॥।

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ड पदल ह

यकषराज नमसतभय हकरपरियबाधव ।

एका म बदगा नितय यकषणी कर त नमः ॥ ६ ।॥।

इति मतर कबरसयथ जपदषटोततर शतम‌ ।

बरहमचरयण मौनन हविषयाशी भवदिवा ॥| ७ ॥।

शकरजीक पयार बनध ह यकषराज ! यमको परणाम हो आप कपा

करक एक यकषिणीको मर अधीन कर दो । उपरोकत छठा इलोक कबरजी

का मनतर ह । इस मनतरको मौन धारणकर बरहमचय क साथ एक सौ आठवार जप

और दिनम हविषयाननको भोजन कर ।। ६-७ ।।

अथ यकषिणय:कथयनत-१ महायकषिणी २ सरसनदरी र मनोहरी

४ कनकावती ५ कामइवरी ६ रतिकरी ७ पदमिनी ८ नटी ९ अतरागिणी

१० विशाला ११ चनदरिका १२ लकषमी १३ शोभना १४ मदना इनही चौदह

यकषिणियोका साधन इस गरनधम वणन किया ।

महायकषिणीसाधन रातरसत मधयम याम विनिदरो मितभोजन: ।

बिलववकष समारहम जपनमतरसिस सदा ॥ ८ ॥ मतरसत-

ऑहलीकलीएऐशरो महायकषिणय सरवशवरयपरदातय नमः ।॥

अदधरातरिम निदराको तयाग अलप भोजन कर बलक वकषकी जडम आसन

लगाय “ओ हो कली ऐ शरी महायकषिणय सरवशवरयपरदातय नमः इस मनतरको

निरनतर जप ॥| ८ ॥।

इतिमतरसथ च जप सहलनतरयसमितम‌ ।

करयादवलवससारढो मासमातरमतदवित: ॥। ९ ॥।

मधवामिषरबाल ततर कलपयतससकत परः ।

नानारपधरा ततरागमिषयति च यकषणी ॥| १० ॥।

उपरोकत मनतरको बलक नीच बठ एक महीनतक निदराको तयाग तीन

हजार मतर जप । और मदिरा मासकी बलि द, बलिको पहिलहीस अपन

समीप रख लव क‍योकि अनक रपोको धारण कर वहापर यकषिणी आवगी

॥ ९-१० ।॥।

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ह दततातरयतनतर

ता दषटवा न भय करयाजजपतससकतमानसः । यसमिनदिन बलि भकतवा वर दात समरथयत‌ ॥ ११ ॥। तदा वरानव वणयाततासतानव मनसपसितान‌ । चतपरसनना यकषिणी सयातसब' ददयाजन सशय: ।। श२॥

उस आई यकषिणीको दख निरभगतास जप करता रह जब वह बलिको गरहणकर वर दनको तययार हो तब जो जो इचछा हो सो सो उसस मागल, यकषिणी परसनन होकर नि:सन‍दह सब कछ दती ह ॥ ११-१२ ॥

अशकतसत छ ज: करययातपरयोग सरपजितम‌ ॥। सहायानथ वा गहम बराहमण: साधयदव तम‌ ।। १३ ॥।

यदि इसका अनषठान करनम समरथ न हो तो बराहमणोकी सहाय- तास इसका साधन करो ।। १३ ॥

तिलरः कमारिका भोजया: परमाझन नितयशः ।। १४ ॥। सिदध धनादिक चब सदा सतकरम चाचरत‌ । ककरसणि वययदचतसयातसिदधिगचछति नान‍यथा ।। १५ ॥।

और परतिदिन उततम अननस तीन कमारियोको भोजन कराव यकषिणी क सिदध होनपर जो धन मिल उस सतकारयम लगाव यदि असतकारयम वह धन लगगा तो सिदधि जाती रहगी ॥। १४-१५ |

सरसनदरीसाधन <* ही आगचछ सरसनदरि सवाहा इति मतर: । पवितरगह गतवा पजन कतवा गगगलधप दततवा तरिसधय

पजयबरिसहरन नितय जपत‌ मासाभयनतर आगताय चनदनोदकनारघो दय: ॥ मातभगिनी भागयकरितय करोति । यदा माता भवति सिदधदरवयाणि ददाति। यदि भगिनी भवति तदा हमपरव वसतर ददाति । यदि भारया भवति तह सरवशवरय सरवषा परिपरयत‌ । वरज

यदनयासतरिया सह शयनम‌ । अनयथा विनतयति ।। 5 अक+०+|>> अनय ॥)

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का पटल ४७

ओ हली आगचछ सरसनदरि सवाहा' यह सरसदरीका मनतर ह । पवितर

सथानम जाय पजन कर फिर गगलकी धप द तीनो सघयाओम पजनकर

परतिदिन तीन हजार मनतरका जप कर तो एक मासक भीतरही सरसदरी

आती ह. आनक समय जलम चनदन मिलाय उस जलस अधय द । माता,

बहिन और सतरी इन तीन रीतिस वह साधकक सग रहती ह। माता बनकर

रहनस सिदध दरवय दती ह । बहन बनकर रहनस वह अपरव वसतर दती ह और

स‍तरी बनकर रहनस सब परकारक ऐशवरय दकर साधकका मनोरथ परण करती ह ।

जब सतरी बनकर रह तब साधक अनय स‍तरीक साथ शयन न कर करनस मर

जाता ह ॥ १६ ।।

मनोहरीसाधन नदीसगम गतवा चनदनन मडल कतवा अगरधप दततवा

मासोपरि आगता पजयत‌ । यदा आगचछति तदा चनदननारघो दय: । पषपफलरकचिततनाचन कततवयम‌ । अरदधरातर नियतमाग- चछति । आगताया सतयामाजञा दहि सबरणशत चर परतिदिन ददाति ॥| ओ आगचछत मनोहरि सवाहा ॥। मतर: ।। १७ ॥।

मनोहरी यकषिणीक साधन करनक लिय नदीक सगमम जाय चनदनस

मडल बनाकर अगरकी धप द महीनक उपरानत यकषिणीक आनक लिय पजन कर । जब आव तब चनदनका अ द पषप फलादिदवारा एकागर मनस पजन कर । आधीरातक समय सरसनदरी आती ह आन पर सतय आजञा द तो परसनन होकर परतिदिन सौ सवरणमदरा दती ह । इसका मतर मलम सपषट लिखा ह ।। १७ ॥।

कनकावतीसाधन ओ ही कनकावति मथनपरिय सवाहा ॥। मतर: ।। बटवकषतरल गतवा मरय मास च दापयत‌ । एकसहसरसनतरान‌

जपत‌ । एव सपतदिन करयात‌ । अषटमरातरो सा सरवालकारयता

आगचछति । साधकसय भारया भवति । हवादशजनाना बसतराल-

कारभोजनानि ददाति ॥। १८ ॥।

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डट दततातरयतनतर

'ओ कनकावति मथनपरिय सवाहा' यह कनकावतीका मतर ह बरगदक वकषक नीच जाय मदय मासकी बलि द और एक हजार मतर सात दिन तक जप । आठव दिनकी रातरिम सपरण अलकारोस यकत हो कनकावती आती ह । और साधककी भारया होजाती ह । बारह मनषयोको वसतर आभषण और भोजन दती ह ।। १८-।।

कामबरीसाधन 35 आगचछ कामइवरि सवाहा । इति मनतर: ।

भजपतर गोरोचनन परतिमा विलिखय ता दवी पजयत‌ । शययामारहम एकाकी सहलन जपत‌ । मासान‍त वा पजयत‌ घतदीपो दय: । पशचानमौनो भतवा पजयत‌ । ततोडछवरातर नियतमागचछति । साधकसय भारया भवति । परति दिन शयन दिवयालडकारान‌ परितयजय गचछति । परसतरी परिवरजनीया इति ॥ १९ ॥।

ओ आगचछ कामइवरि सवाहा' यह कामहवरी यकषिणीका मनतर ह। भोजपतरपर गोरोचनस परतिमा लिख यकषिणीका पजन कर, शययापर विराजमान होकर एक हजार मनतर महीनभरतक जप और पजन कर, घतका दीपक बाल फिर मौन घारण कर पजन कर अननतर आघी रातक समय कामशवरी आती ह। और साधककी 'भारया होजाती ह एव परतिदिन शयन करक दिवय अलकारोको छोडकर चली जाती ह, इस दिशाम साधक अनय सतरीको तयाग द | १९ ॥॥

रतिपरियासाधन 3३5 आगचछ रतिपरिय सवाहा । इति मनतर:

पट चितररपिणो लिखितवा कनकतसतरासवलिका रभषिताम‌ उतपलहसता कमारी जातीफलन पजयत‌ । यदि भगिनी भवति तदा योजनसातरासतरियमानीय समरपयति वसतरालकारभोजनानि

वि कक कब. ॥ २० ॥।

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न पटल ४९

ओ आगचछ रतिपरिय सवाहा' यह रतिपरिया यकषिणीका मनतर ह । कपडपर दवीका चितर लिख पीतवसतर एव समपरण अलकारोस अल-

कत कर कमर हाथम घार हए कमारीका पजन कर जायफर निवदन कर जो भगिनी होजाव तो ४ कोशस सतरीको लाकर द एव वसतरालकार भोजन दती ह ।। २० ।।

पदमिनी नटी, और अनरागिणियोका साधन १ $ हरी आगचछ पदमिनि सवाहा । २ * ही आगचछ नटि

सवाहा। ४ & हली आगचछ अनरागिणि सवाहा। मनतरा एत

ककसन भ पतर परतिमा विलिखय गनधाकषतपषपधपदीपविधिना समपजय तरिसधय तरिसहकन जपत‌ माससक यावत‌ । ततः परणिसाया विधिवत‌ पजा कततवया घतदोप परजवालयत‌ ॥ सकलरातरिपरयनत जपत‌ । अतर कवल मनतरभदः । परभात नियतसमय आगचछति दिवयरसायन ददाति ॥| २१ ॥।

ओ हली आगचछ पदमिनि सवाहा' यह पदमिनी यकषिणीका मनतर ह । ओ हली आगचछ नटि सवाहा' यह नटी यकषिणीका मनतर ह। ओ ही आगचछ अनरागिणि सवाहा' यह अनरागिणी यकषिणीका मतर ह।

उपरोकत तीनो यकषिणियोको साधनकी एकही रीति ह, कशरस भोजपतरपर परतिमा लिख गनघ, पषप, अकषत, धप, दीपस भलीभाति पजन कर तीनो सधयाओम तीन हजार मनतर जप, एक मास तक ऐस ही परतिदिन पजज कर । फिर परणमाक दिन घतका दीपक बाल विधानस पजा कर और सारी रात निदराको तयाग मनतर जप परभात समय साधकक समीप यकषिणी आती और दिवय रसायन दती ह ।

विशालासाधन &# ऐ विशाल तरा तरो कलो सवाहा । मनतर: । चिजचावकषतल लकष मन‍तरमावतयचछचि: । शतपषपोडब:ः पषप: सघतहोममाचरत‌ ।। विजञाला.च ततसतषटा दतत दिवय रसायनम‌ ॥| २२ ॥॥

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ड ० दततातरयतनतर

! ओ ऐ विजञाल तरा तरी क‍ली सवाहा यह विजञाला यकषिणीका मतर

| ह । इमलीक पडतल बठकर पवितरताक साथ एक लकष मनतर जप फिर | इमली वा सौफक फलोको घतम मिछाय उनस हवन कर तो विशाला

यकषिणी परसनन होकर साधकको दिवय रसायन दती ह ।। २२ ।।

चनदरिकासाधन । ३& हवी चनदरिक हस: करी क‍ली सवाहा । इति मतर:

शकलपकष जपततावदयावससदइयत विध: । | परतिपतपरवपरणानत नवलकषमिद जपत‌ । | अमत चनदरिकादतत पीतवा जीवोईमरो भवत‌ ॥| २४ ॥।

ओ ही! चनदरिक हस: करी क‍ली सवाहा' यह चनदरिका यकषिणीका मनतर ह। शकलपकषकी परतिपदास जपका आरमभ कर और जबतक चनदर दीख तबतक मतर जपकर परणमासीतक नौ लाख मतर जप तो चनदरिका यकषिणी परसनन होकर साधकको अमत दती ह उस अमतको पीनस साघक अमर होजाता ह ॥ २३ ।॥।

लकषमीसाधन || ३& ऐ लकषमो शरी कमलधारिणी कलहसि सवाहा ।

सवगह ससथितो रक‍त: करवीरपरसनक: । लकषमावतयनमनतर होम करयाहशाशत: ॥। २४ ॥॥

होम कत भवतसिदधा लकषमीनामनी च यकषिणी । ॥ रस रसायन दिवय विधानउच परयचछति ॥| २५ ॥।

| नओ ऐ लकषमी शरी' स सवाहा' तक लकषमी यकषिणीका मतर ह । अपन घरम बठकर लाल कनरक फलोस पजन कर और एक लाख मतरोका

जप दशाश हवन कर ऐसा करनस लकषमी सिदध होकर साघकको दिवय | रसायन दती ह २४-२५ ।॥।

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क पटल हर

शोभनासाधन &# अजोकपललवाकारकरतल शोभनो शरो कषः

सवाहा । रक‍तमालमबरो मनतर चतदशदिनजपत‌ ।

ततः सिदधा भवदववी शोभना भोगदायिनी ॥॥.२६ ॥।

ओ अशोक' स 'सवाहा' तक शोभना यकषिणीका मनतर ह। छाल-

रगक वसतरोको धारण कर लालवरणकी मालास चतरदशीक दिन मनतर

जपनस शोभना दवी परसनन होकर साधकको भोग दती ह ॥| २६ ॥।

मदनसाधन

& ऐ मदन सदनविदरावण अनगसगम दहि

दहि करो की सवाहा ।। लकषसखय जपनमनतर राजहवार शति: सथिर: ।

सकषीरमालतीपषपघ, तहोमो दशाशतः ॥। मदना यकषिणी सिदधा गटिका सपरयचछति ।

तया मखसथयादइयहचिचिरसथायी भरवशजषर: ॥। २७ ।।

ओ ऐ मदन' स 'सवाहा' तक मदना यकषिणीका मनतर ह। पवितरता

स सथिरचितत होकर राजदवारम एक लाख मनतर जप और चमलीक

फल दध एव घतस दशाश हवन कर तो मदना यकषिणी सिदध होकर

गटिका दती ह। उसको मखम रखनस मनषय अदशय और चिर-

सथायी होता ह ॥| २७ ॥।

इति शरीदततातरयतनतरदततातरयशवरसवाद यकषिणीसाधन-

परयोगो नाम दवादश: पटल: ।। १२ ।।

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डः २ दततातरयतनतर

तअरयोदश पटल

रसायन इइबर उवबाच

अथागर कथयिषयासि रसायनविधि वरम‌ । कबरतलयो भवति यसय सिदधो नरो भवि ॥ १॥।

शिवजी बोल- (ह दततातरयजी ! ) अब रसायनकी उततम विधिको वरणन करगा जिसक साधन करनस मनषय सिदध होकर कबरजीक समान

हो जाता ह ॥। १ ॥

गोमतर हरिताल च गधक च मनशशिलाम‌ । सम सम गहीतवा त यावचछषक त कारयत‌ ॥ २ ।।

गोमतर, हरताल, गनधक, मनशिल इनको लछाकर जबतक सख नही खरल कर ॥ २ ॥

गोमतर रक‍तवरणाया गधक रकतवरणकम‌ । एकादशदिन यावदरकषय यतनन व शचि ॥। ३ ।।

उपरोकत परयोगम छालवरणकी गौका मतर और लालरगका हरताल ल और गयारह दिनतक पवितरतास यतनक साथ उस घोट ॥। ३ ॥।

गोल कतवा दादशअहनि रक‍तवसतरण वषटयत‌ । चतरगलमानन मद लिपतवा विशोषयत‌ ।। ४ ॥॥

बारहव दिन गोला बनाकर लाल वसतरस लपट उसपर चार अगल मटटीका लप सखाव ॥। ४ ॥।

पचहसतपरमाणन भमौ गत त कारयत‌ । पलाशकाषटलोषटसत परयद‌ दरवयमधयगम‌ ॥। ५ ॥॥

और पाच हाथ गहरा एक कड .पथवीम खोद उसम ढाककी रकडी जलाव उसीक बीचरम इस गोलाको रकख ।। ५ ॥।

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ड पटल पर

अगनि इदयातपरयतनन सवागशीत समदधरत‌ । तामरपतर ससनतपत तडजसम त परदापयत‌ ॥ ६ ॥।

फिर सावधानीस आच जलकर शीतल होजाय तब गोलको निकाल तपाव हए ताबक पतरपर उस गोलकी भसम डाल ।। ६ ||

पजक ततकषणातसवरण जायत तामरपतरकम‌ । अरणय निरजन दश शिवालयसमीपतः ।। ७ ॥।

वनम वा निरजन सथानम अथवा शिवालयक समीप इस करियाको करनस घघचीक बराबर तामरपतर उसी समय सवरण होजाता ह ।। ७ ।॥।

शकलपकष सचनदरशहनि परयोग साधयतसधी: । अयमबकति च मतरसय जप दशसहसरकम‌ ।। ८ ॥।

शकलपकषम जिस दिन चनदर बलवान‌ हो उसी दिन बदधिमान‌ परष “जयबकम‌ मनतरका दशहजार जप कराय इस परयोगका आरभ कर ॥॥८॥

परतयह कारयदविदवानभोजयददरसममितान‌ । यावत‌सिदधिन जायत तावदततसमाचरत‌ ॥। ९ ॥

जबतक सिदधि परापत न हो तबतक गयारह बराहमणोको परतिदिन भोजन

कराव ॥| ९ ॥।

दरवयमईनमतर:-३* नमो भगवत रदराय सवरणा- दीनामीशाय रसायनसय सिरदधि कर कर फट सवाहा । परतिदिन सहनसमय अयतजपा- तसिदधि: ॥ १० ॥।

उपरोकत मईनमनतरको पढता हआ खरलम रसायनकी सामगरी डालकर घोट । दश हजार जपनस यनतर मनतर सिदध होता ह ॥। १० ॥।

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवाद रसायनविधि- वरणन नाम तरयोदश: पलट: ।॥ १३ ॥।

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पड दततातरयतनतर

चतरदश पटल

कालजञान

इदवर उवबाच

अथागर सपरवकषयासि कालजञानविनिरणयम‌ । यसय विजञानमातरण कालजञान विधीयत ।। १ ॥।

महादवजी बोल-(ह दततातरयजी !) अब म कालजञानका वरणन करगा जिसक जञान होनस कालक जञानको जान लता ह ॥ १॥

न दषटा नासिका यन नतर च समलायत । षणमासा मयनतर मतय: कालजञानन भाषितम‌ ॥। २ ॥।

जिसको अपनी नासिका और नतर न दीख पड वह छः महीनम मर जाता ह ॥| २ ॥

न दषटारनधती यन सपतरषोणा च मधयतः । षणसासाभयनतर मतययदि रकषति चइवर: ।। ३ ।।

जिसको आकाझमडलम सपतरषियोक बीच अरनवतीका तारा न दीख उसकी भगवानस रकषा पानपर भी छह मासक बीचम ही मतय होजाती ह ॥ ३ ॥॥

सनानकालसय समय मतयजञान निरीकषयत । उरः शषक भवदयसय षणसासामयनतर मति: ॥। ४ ।॥।

सनान करनक समय यदि हदय सखजाय तो जान लो कि छ: महीनक बीचम मतय होगी ॥ ४ ॥

रातरौ चनदरो दिवा सरयो मासमक निरनतरम‌ । भवनमतयइचन सतसय मासामयनतर शरवम‌ ॥। ५ ॥।

रातरिम चनदर (वामसवर) और दिनम सरय (दकषिणसवर) एक महीनतक निरनतर चल तो ६ महीनक भीतर ही मतय होजाती ह ॥। ५ ।।

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म पटल पप‌

समपरण बहत सरय: सोमइचब न दशयत । पञनण जायत मतय: कालजञ: परिभाषितम‌ ॥॥ ६ ॥

जो दिनरात-दहना सवर चल और बाया न चल तो १५ दिनम उसकी मतय होजाती ह ऐसा कालक जाननवालोन कहा ह । ६ ।।

मास चव त षणसास पकष चव तरिमासकम‌ । पचरातर बहचचकसतसय मतयन सशय: ।। ७ ।॥।

जिसका एक सवर महीन, ३ महीन १५ दिनया ५ रातरि भी निरनतर चल तो उसकी मतय जानो । ७ ।।

शकलपकष वहदवाम कषणपकष च दकषिणम‌ । उभयोशच तरिदिवसानदशयत चनदरसयकौ।।८ ॥॥

शकलपकषम बाया और कषणपकषम दहना सवर एव दोनो पकषोम दोनो सवर तीन तीन दिन चलत ह ।। ८ ।।

पचभतातमक दीप चनदरसनहन परितम‌ । रकषचच सययवातन तन जीव: सथिरो भवत‌ ॥॥ ९ ॥।

इस पचतततवातमक शरीररपी दीपकम तलरपी चदरसवर (वामताडी) ह सयरपी दकषिणसवर वायस दीपककी रकषा करता ह जिसम यह जीव अचल रह ॥। ९ ॥।

आतमा दीप: सरयजयोतिराय: सनहकालातमक: । कालकजजलससार वततिरषा तनोमता ॥| १० ॥।

यह आतमारपी दीपकरम सयरपी जयोति आयरपी तलस परण ह सो इसम कायारपी काजल पडता ह मनषयोकी वततिक समान दहकी वतति जानो ॥ १० ॥।

बिजञानकरियाहोनो विपरोतसत जायत । दविमासन भनमतयनतरमसमणकषटत: ॥॥ ११ ॥

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। ६ दततातरयतसतर

बदधि, जञान, करियाकी हीनता और विपरीतता होनस और नतरोक चलानम कषटका अनभव होनस दो मासम मतय होती ह ॥ ११ ॥।

शशाक चारयदरातरो दिवा पशयदिवाकरम‌ । इतयभयासरतो नितय स योगी नातर सशय: ।॥ १२ ।।

जो वासतवम योगी ह वह रातरिम बाया और दिन म दहन सवर चलानका अमयास करलत ह ॥| १२ ॥।

गतो च पादचलन खडित खडित पदम‌ । मासन मतयमापनोति हरधपकष विशषतः ॥ १३ ॥ |

चलत समय पर अटपट पड एव घलम सन दीख पड तो एक मासम निशचय मतय होजाती ह ॥ १३ ॥।

हादशदलचकरसथ मतयकाल च वीकषयत‌ । चतरादिमाससखयाइच लिखददवादशक दल ॥| १४ ॥।

मषादिराशय: सथापयाः सरयादयाइच गरहासतथा । जनमकष जनमराशिइच वीकषयता मतयकालक: ॥॥ १५ ।।

१२ दलका एक चकर बनाय उसम मतयक समयको दख, चतरादि १२ महीनोको चकरक १२ दलोम लिख । फिर मषादि १२ राशि- योको सथापन कर नवगरहोको सथापित कर। पीछ उसम जनमकी राशि और जन‍मक नकषतरको मतयकालचकरम दख | १४-१५ ।॥।

शनिभौमोौ राहकत राशिवध त कषटता । ऋकषविदध राशिविदध मास मतयभविषयति ॥| १६ ॥।

शनि, मझल, राह, कतस राशिका वघ होनपर कषट होता ह, नकषतरका वघ और राशिका वध होनस एक महीनम मतय होती ह ॥१६।॥।

सयविदध मनसतापोबध सोखय परवततत । जीव च तोरथयातरा सयाचचनदर सतरीसखसपदः ॥॥ १७ ॥।

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ड पटल ५७

सरयक वघस मनको ताप, बधक वघस सख, गरक वघस तीरथ- यातरा और चनदरक वघस सतरी एव सखसमपतति परापत होती ह ।। १७ ॥।

अहोरातर यदकसय वहन मरतो भवत‌ । तदा तसय भवततवायः समपरण' वतसरतरयम‌ ॥॥ १८ ॥।

यदि अहोरातर एक ही सवर चल तो मनषयदी आय तीन वरषकी रह जाती ह ॥ १८ ॥।

अहोरातरदरय शरवातपगलाया: सदागति: । तसय बरषदवय परोक‍त जीवित तततववदिभि: ॥ १९ ॥।

. तरिरातर बहत यसय वायरकपट सथित: । सबतसर तदा चायः परवदनति मनीइबरा: ॥॥ २० ।।

जिसकी दो रातदिन पिगला नाडी चल तततव जाननवालोन उसकी दो वरषकी आय कही ह । जिसका तीन रातरितक एकही सवर चल उसकी मनिवरोन एक वरषकी आय कही ह । १९-२० ॥

छाया विधोन धरवमकषमालामालोकयदयो न च मातचकरम‌ । खणड पद यसय त करदमादो कफरचयतो मजजति चामबचमबी ।| २१ ।॥।

जिस चनदरकी छाया, धरव, तारा, नकषतरमाला, मातमडल न दीख कीच आदियम पर घरनस खडित जानपड और कफ जलम गिरनस नीच बठ जाय तो उस अरिषट जानो ॥| २१ ।।

अतीव तचछ बह चालपहतोरतीतसातमय: सदसतपरवततो । अपयगलकरानतविलोचनानतो न सचक चानदरकमीकषत यः ॥| २२ ।॥।

जो सहसा कम अधिक भोजन करन लग, अचछ वा बर कामम परवतत होजाय, और नतरोको मदनपर जिस चनदरिका समत तिलयकत अन- भव सिदध मोर न दीख उस अनिषट जानो ॥ २२ ॥।

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ड दततातरयतनतर

अकषलकषितलकषण च पयसि सययोनदबिमब तथा पराची दकषिणपदचिचमोततरदिशा षडदवितरिमासककम‌ । छिदर पशयति चततदा दशदिन धमराकति पशचचिम जवाला पदयति सदय एव मरण कालो चितजञानिनाम‌ ॥२३।।

जो रोगी जलम परण चनदरमा और सरयक परतिबिमबम परवकी ओर दकषिणकी एव उततर और पशचिमकी ओर छिदर दख तो वह करमान- सार ६। २। ३ ।१ मासतक जीता ह. जो सरय और चनदरमाक परतिबिमब

को धघला दख तो दश दिनम मतय होती ह और जो सरय चनदर परति- बिमबम जवाला दख तो उसकी शीघर मतय होगी यह कालक जञाताओन कहा ह ॥। २३ |॥।

इति शरीदततातरयततर दततातरयशवरसवाद कालजञान कथन नाम चतदरश: पटल: ।। १४॥

पमचदश पटल

अनाहार । ईइबर उवाच- ॥। अनतराणि ककाससथ करजसथ च बीजकस‌ । ॥॥ पिषटवा त बटिका कतवा तरिलोहन त बषटयत‌ । ॥| ता कर धारयदयोपसो कषतपपासा न वाधत ॥ १॥ |

| महादवजी बोल-(ह दततातरयजी !) गिरगिरटकी आत और | पजकी मीगीको पीसकर गोली बनाय तरिलोहस वषटित कर उसको मखम ॥॥| रखनस भख और पयास नही लगती ह ॥। १ ॥। | क‍ | पदमबीज महाशालि छागादगध च पषयत‌ ।

|

आदवादशदिन भजयातसाजय ततपायस ततः ॥॥ २ ॥।

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. पटल ५९

कमलक बीज और चावलोको बकरीक दधस पीस घी मिलाय खीर बनाव उकत खीरको बारह दिन खानस भख नही लगती ह।। २ ॥।

अपामारगसथ बीजानि दगधाजयाभया च पाचयत‌ । पायस महिषीकषीर भकत मास कषघापहम‌ ।। ३ ॥।

अपामारगक बीजोक चरणको दध और घी मिलाकर पचाव फिर भसक दधम खीर बनाकर खानस एक मासतक भख नही लगती ह ।। ३ ॥।

कोकिलाकषसथ बीजानि भगाबीजयतानि व । तामबलमलयकतानि तया घतयतानि च॥ ४ ॥।

छागीदगधन समपषय करययाह वटिका नरः । भकषयतपरातरतथाय कषतपपासा न बाघत॥। ५॥।

तालमखानक बाज, भ गराजक बीज, पानकी जड और घी मिलाय बकरीक दधस पीस गोली बनाकर जो मनषय परात:काल भकषण कर तो उसको भख पयास नही सताती ह ।। ४ ॥। ५॥।

धातरयपामारगबीजानि पदमबीजयतानि ब । तलसीमलयकतानि करयाततहटिका बध: ॥॥ ६ ॥। तसया भकषणमातरण तसयोपरि गवा पयः । कषतपिपासा हरननितय नान‍यथा मम भाषितम‌ | ७ ।।

आवलक बीज, अपामारगक बीज, कमलक बीज तलसीदलोको

मिलाय मनषय गोली बनाव ।। और परात:काल गोली खाकर गौका दध पीनस भख पयास नही लगती ह यह अनाहारपरयोग मरा कहा हआ सतय जानो ॥ ६ ॥| ७ ।।

सरसरडपतरइच पषपशचापि सलकषयत‌ । तसमानमल समादाय तासबल दढमातरत: ।। ८ ।॥। भकषण परातरतथाय कषतपिपासाहर परम‌ । अनाहार परयोगोषय नान‍यथा सम भाषितम‌ ॥। ९ ॥।

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ः ० दततातरयतनतर

अडक कोमल फल पततोको दख उसकी जड लाव और पानम भलीभातिस रखकर परात:काल उठकर खानस भख पयास जाती रहती ह इस अनाहारक परयोगको मरा कहा सतय जानो ॥ ८ ॥। ९ ॥

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवाद अनाहारपरयोगो नाम पञचदश: पटल: ।। १५ ॥।

घोडशाय पटल

आहार ईशवर उवाच

बनधकसय च वकषसय पिषटवा पषपफलानि व । योधसो भकत घतससाड भोजन भीमसनवत‌ ।। १॥

शिवजी बोल-(ह दततातरयजी !) दपहरिया वकषक फछ और फलोको पीसकर घीक साथ खानस भीमसनक समान अधिक भोजन करता ह ॥| १ ॥

शनोौ विभीतवकषसथ सनधयायामभिमतरितम‌ । परातः पतराणि सगहम भोजनडहघितल नयसत‌ ।। २ ।। शनीचरक दिन भिलावक वकषको सधयासमय अभिमतरित कर आव

और परातःकाल उसक पततोको छाय चरणतल दाबकर भोजन कर तो अधिक भोजन करगा ॥। २ ॥।

गहीतवा मतरित मतरी विभीततरपललवम‌ । धारयदकषिण हसत पषकलाहाभगभवत‌ ॥। ३ ॥।

मतरस अभिमतरित कर भिलावक पतत तोडकर दहन हाथम बाध भोजन कर तो अधिक भोजन करगा ।। ३ ॥।

आहार सतपरयोगोधय भोजन भोमसनवत‌ । यसम कसम न दातवय गोपनीय परयतनतः ॥। ४ ॥। ओ नमः सरवभताधिपतय ह फट‌ सवाहा ।

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ड पटल ६१

“ओ नमः सरव भताधिपतय ह फट सवाहा' यह मनतर ह। इस मनतरस अभिमतरित कर इस शरषठ परयोगका अनषठान करनस भीमसनक समान मनषय भोजन करसकता ह । इस परयोगको हर किसीको न दकर गपत रक‍ख ॥। ४ |॥।

इति शरीदततातरयततर दततातरयशवरसवाद आहारपरयोगो नाम षोडश: पटल: ॥ १६ ।॥।

सपतदश पटल ५ क

निधिदशन, इईइबर उवबाच-

शिरीषवकषपचाग कटतलन पाचितम‌ । धततरबीजसयकत विषणव यत तथा ॥। १॥

शिवजी बोल-(ह दततातरयजी ! ) सिरस वकषक पचागगो लकर कडडए तलम पकाव फिर उसम घतरक बीज और विष मिलाव ॥ १॥

पजचाग करवीरसय इवतगडजासमनवितम‌ । उलकविषठासयकत गनधक च. मनहशिला ॥ २ ।। धप दततवा जपनमनतर निधिसथान विशषतः ।

पलायनत निधि तयकतवा यथा यदधष कातरा: ॥ ३ ॥। राकषसमा भतवताला दवदानवपननगाः । सखनाश निधि परापय परमाननदभगभवत‌ ।। ४ ॥।

सनतर:-३# नमो विधनविनाशाय निधिदरशन कर कर सवाहा ॥। कनरक पचागम सफद घघची, उललकी बीट, गनधक और मनशिल

मिलाव फिर मतर पढकर निधिसथानम उसकी धप दनस जस कायर परष यदधस भाग जात ह वसही निधिसथानको छोडकर राकषस, भत वताल, दव, दानव और पननग भागजात ह, तब सखसहित निधिको

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छः र‌ वततातरयतनतर

पाय मनषय परमाननदको भोगता ह ।। २-४ ओ नमो विघनविनाशय ०' यह मतर ह ॥।

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवर सवाद निधिदरशन नाम सपतदश: पटल: ।। १७ ।॥।

अषटादश पटल

वनधयापतरवतीकरण इदबर उबाच

जनमवधया: काकवनधया मतवतसा: कवचिततसतरिय: । तासा पतरपरापणाय. कथयामति विधि वरम‌॥ १॥

शिव बोल-जनमवधया (जिनक सन‍तान हई ही नही ) काकवनधया (जिनक एक वार सन‍तान होकर फिर नही होती) और मतवतसा (जिनकी सन‍तान होकर मर जाती ह) इनक पतरपरापतिक कारण शरषठ विधिको कहता ह ॥ १॥

पतरमक पलाशसय गरभिणीपयसानवितम‌ । ऋतवनत तचच पीत चहवनधया पतरवती भवत‌ ।। २ ॥। एव सपतदिन करयाचछोकोदव गविरवाजतम‌ । पतिसगगता सा च नातर कारया विचारणा ॥ ३॥

ढाकक पततोको गरभवती सतरीक दधम पीस ऋतकालक उपरानत वनधया सतरी पीनस पतरवती होती ह। उकत परयोगको सात दिन तक शोक और उदबगको तयाकक कर तो वह पतिक सहवास करनस निःस- नदह पतरवती होती ह ॥ २ ॥। ३ ॥।

समलपतना सरपाकषो रविवार समदधरत‌ । एकवरणगवा कषोर कनयाहसतन पषयत‌ ।। ४ ॥।

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ड पटल शर

ऋतकाल पिबदधया पलाध तददिन दिन । कषीर शालयजनमदगो च रधवाहार परदापयत‌ ।

एव तपतदिन कतवा वधया भवति पतरिणी ॥ ५ ॥।

रविवारक दिन जड सहित सरपाकषी वकषको उखाड एक रगवाली गौक

दधम कनयाक हाथस पिसाव और ऋतकालम उसको १ तोला परति-

दिन पीव साथम दध भात मग आदि हलका अनन भोजन कर तो वनधया सतरी

पतरवती होती ह ।

एकमव रदराकष सरपाकषो करषमातरिकाम‌ ।

परववञच गवा कषोर ऋतकाल परदापयत‌ ॥ ६ ॥॥

महागणशमतरण रकषा तसयाइच कारयत‌ ॥ ७ ॥।

प मनतर-सदनमहागणपत रकषामत मतसत दहि ॥॥

एक रदराकष दो तोल सरपाकषी एक रगावली गौक दधम कनयाक

हाथस पिसाय ऋतकालम सतरीको पिलाव और महागणशक मन‍तरस

रकषा कर ॥ मनतर मलम सपषट लिखा ह ॥ ६।॥। ७ ॥।

उददग भयशोकौ च वयायाम परिवजयत‌ । अनडडममषणशीत च दिवा निदरा तथव च ॥। ८ ॥।

न करम कारयतकिडिचदरजयचछीतमातपम‌ ।

न तया परमा सवा कारयतपबवतकरियाम‌ ॥॥ ९ ॥॥

पतिसगादगरभलाभो नातर कारया विचारणा ॥। १० ॥।

उददश, भय, शोक, वयायामको छोड द कामकरीडा, गरमी, सरदी

और दिनम सोना तयाग द । परिशरमका काम न कर । अधिक सरदी और

गरमक कामोको तयाग द। अधिक सवा और परवक समान काम न

कराव तो पतिक सहवासस निदचय पतर परापत होगा ॥ ८-१० ॥।

पतर इवतकदमबसथ बहतोसलमव च।

एतानि समभागानि अजाकषोरण पषयत‌ ॥ ११ ॥

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ढ वततातरयतनतर

तरिरातर पञचरातर वा पिबदव महौषधिम‌। सतय पतरवती वनधया नान‍यथा मम भाषितम‌ ॥। १२ ।।

सफद कदमबक पतत और बडी कटाईकी जडको बराबर ल बकरीक दधस पीस फिर इस महौषधिको तीन वा पाच रातरि पीव तो वधया सतरी निशचय पतरवती होती ह ।। १११२ ।।

कषणापरजितामलमजकषीरण सपिबत‌ । ऋतसनाता तरिधा या त वधया गरभधरा भवत‌ ॥। १३ ॥।

काल विषणकराजताकी जडको बकरीक दधक साथ ऋतकालक पीछ तीन दिन पीनस वनधया सतरी गरभगो धारण करती ह।। १३ ॥। तरगगनधाधतवारिसिदध साजय पय: सनानदिन च पीतवा । परापनोति गरभ विषय चरनती वनधयापि पतर परषपरसगात‌ ।।१४।॥।

असगनधको घी और जलम सिदध कर पीछ उस घी और दधक साथ ऋतसनानक दिन पिलाव और शयन करनक समय घत पिय तो बनधया सतरी पतिक सगस गरभधारण करती ह ।। १४ ।।

सपिपपलीकशरशयगवर कषदरायण गवयघतन . पीतम । वधयापि पतर लभत हठन योगोततमो5य हि शिवन परोक‍त: ।।१५॥।

पीपल, कशर, अदरख और छोटी गोल मिरचको ,घीक साथ पीनस वनधया सतरी पति क सहवासस गरभ धारण करती ह यह उततम योग शिवजीन कहा ह ।। १५ ।।

शीततोयन सपिषय शरपखयाइच मलकम । पिबदगरभधरा नारी सा वधया पतिसगतः ।। १६ ॥।

शरपखकी जडको शीतल जलम पीसकर पीनस वधया सतरीभी पतिसगम गरभभो धारण करती ह ।। १६ ॥।

समला सहदवी च सगराहमा पषयभासकर । छायाशषक च चरणनत एकवरणगवा पयः । परबबदया पिबननारी वधया भवति पतरिणी ॥ १७ ॥।

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छः पटल श५‌

पषयनकषतरयकत रविवारक दिन जडसमत सहदवीक वकषको लाय

छायाम सखाकर चण कर उस चरणको एकरगवाली गौक दधक साथ

यव कही रीतीक अनसार पीनस वनधया सतरी पतरवती होती ह ॥॥ १७॥

नागकशरचणनत नतन गवयदगधक ।

पिबतसपतदिन दगध घतभोजनसाचरत‌ ॥।

ऋतवनत लभत गरभ सा नारी पतिसगतः ॥। १८ ॥।

नागकशरका चरण नई वयाई हई गौक दधक साथ ऋतसनानक ,

उपरानत सात दिन पीव. और घी दधका भोजन कर तो वह नारी

पतिक सहवासस गरभभो घारण करती ह ॥। १८ ॥।

गोकषरसप च बीजसत पिबननिगणडिकारसः

तरिरातर पचरातर च वधया भवति पतरिणी ।। १९ ॥।

गोखरक बीजोका चरण निरगणडीक रसम तीन बा पाच दिन पीनस

बनधया सतरी पतरवती होती ह ।। १९ ।।

करकोटबीजचरणनत एकवरणगवा पयः ।

घत पिबचच मासनत वनधया भवति पतरिणी ॥। २० ॥।

करकोटवकषक बीजोका चरण एक रगवाली गौक दध और घीक साथ

एक मास पीनस वनधया सतरी पतरवती होती ह ॥॥ २० ॥।

इति शरीदततातरयतनतर शरीदततातरयशवरसवाद इनदरजालकौतकदरशन-

नाम अषटादश: पटल: ॥ १८ ॥।

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६ दततातरयतनतर

एकोनाविशपटल -

मतवतसाजीवन ईशवर उवाच-

गरभ: सजजातमातरो वा पकष मास च वतसर । खियत दविशरिवरषादियसथा: सा मतवतसका ।। १ ॥

शिवजी बोल- (ह दततातरयजी ! ) जिस सतरीक गरभ रहत ही गिर जाय, या गरभम बालक खडित होजाय वा बालक उतपनन होत ही मर जाय या दो तीन वरषका बालक होकर मरजाय तो उस सतरीको मतवतसा कहत ह ॥। १ ॥

गहीतवा शभनकषतर हपामारगसय मलकम‌ । गहीतवा लकषम'णामल एकवरणगवा पयः ।। २ ॥ पीतवा सा लभत गरभ दीघजीवी सतो भवत‌ । यसम कसम न दातवय नान‍यथा सस भाषितस‌ ॥ ३ ॥।

शभ नकषतरम अपामागकी जड और लकषमणाकी जड लाकर एक रगवाली गौक दधक साथ पीनस सतरी गरभ घारण कर दीघधजीवी पतरको परापत करती ह इस मर सतय परयोगको हर एक मनषयको न द | २॥ ३ ॥7

वधया करकोटिकाकनद भ‌ गराजन पषयत‌ । ऋतकाल तयह पीतवा दौघजी बिसत लभत‌ ॥ ४ ॥।

कषमाडीकी जडको भागरक रसम पीस ऋतकालक उपरानत तीन दिन पीनस वन‍धया सतरी दीघजीवी पतरको परापत करती ह ४॥।

मारगशीरष तथा जयषठ परणाया लपित गह । नतन कलश परण गनधतोयदच कारयत‌ ।। ५ ॥।

अगहन वा जठकी परणिमाको घर लीप नवीन ' कलश सथापित कर और उसम चनदन आदिस यकत सगधित जल भर ॥ ५॥

१ जिसक गौक दधक समान सफद . फल, पानक समान दल और बीचम लाल रखा हो उस लकषमणा कहत ह ।

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क चटल दर

कदलोसतभसयक‍त नवरतनसमनवितम‌ ।

सवरणमदरिकायकत घटकोणसथितमडलम‌ ॥। ६ ॥।

तनमधय पजयददवोमकानत नामविशवताम‌ । रनधपषपाकषतरधपदोपनवदयसयत: ।। ७ ॥।

और उसक आग षटकोण यनतर लिख चारो ओर कलक खमभ

गाड नवरतनोकी बदनवार लगाय सवरणकी अगठी यनतरक बीचम

रक‍ख और एक मन होकर गध पषपाकषत धप दीप नवदयस आग लिख

दवियोका नाम लकर पजन कर ॥ ६ ॥ ७ ॥।

वाराही च तथा चनदरी बराहमी माहशवरी तथा ।

कौमारी बषणवी दवी षटस पतरष सातर:॥ ८ ॥।

पजयनमतरभावन तथा सपतदिनावधि ।

अषटमईनहि सत चक कनयानवकसयतम‌ ॥। ९ ॥। भोजयदकषिणा दहयातपइचातकतवाभिवादनम‌ ।

विसजय दवता चाथ नदया ततकलशादिकम‌ ॥। १० ॥।

परतिवरषमिद करययादवीघजीबी सतो भवत‌ । सिदधियोगो हमय जञगो गोपनीय: परयतनतः ॥। ११ ॥।

सनतर:-#परबरहमपरमातमन अमकीगह दीघजीविसत कर कर सवाहा

१ वाराही, २ ऐनदरी, ३ बराहमी, ४ माहशवरी, ५ कौमारी और ६

वषणवीका उपरोकत षटकोण दलक चकरम मतरभावस ७ दिन पजन

कर आठव दिन एक कमार और नौ कमारियोको भोजन कराय

दकषिणा द फिर उनको परणामकर दवियोको विसरजन कर कलशका

नदीम विसरजन कर । परतयक वरष इसभाति अनषठान करनस दीरघ

जीवी पतर उतपनन होता ह ततकाल सिदधि दनवाला यह परयोग यनतरक

साथ गपत रक‍ख 'ओ पर बरहमपरमातमन०” इतयादि मतर ह।। ८-११॥

या बीजपरदममलमक कषीरण सिदध हवरिषा विमिशरम‌ । ऋतो

निपीय सवरपात परयाति दीरघायष सा तनय परसत ॥ १२ ॥॥

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ड ८ वततातरयतनतर

जो दाडिमवकषकी जड दधस सिदध कर घी मिलाय ऋतसनानक पीछ पीकर पतिक पास जाय तो वह दीवजीवी पतरको उतपनन करती ह ।। १२ ॥

इति शरीदततातरयतनतर शरीदततातरयशवरसवाद मतवतसासतजीवन परकारो नामकोनविजञतितम: पटल: ।॥॥ १९ ॥

विश पटल

काकवधयाकी चिकितसा ईइबर उवाच

परव पतरवती या सा परचाहधया भवदयदि । काकरवधया त सा जञया चिकितसा ततर कथयत ।। १ ॥

शिवजी बोल-(ह दततातरजी !) जो एकही बार सतान उतपनन करक पीछ वनधया होजाय उसको काकवन‍धया कहत ह अब उसकी चिकितसा कहता ह । १ ॥।

विषणकरानता समला च पिषटवा माहिषदगधक । सहिषीनवनीतन ऋतकाल च भकषयत‌ ॥॥ २ ॥। एव सपतदिन करयातपथययकत च परवबत‌ । सा गरभ लभत नारो काकवधया सझोभनम‌ ।। ३ ॥।

विषणकानताको जडसडित भसक दधम पीस और भसकही मकख- नक साथ ऋतसनानक पीछ सात दिन खाय और परवक समान हलका भोजन कर तो काकवनधया नारी सनदर गरभभो घारण करती ह ॥ २॥ ३॥

अहवगधीयमल त गराहयतपषयभासकर । योजयनमहिषीकषोर: पलाढ भकषयतसदरा ।। ४ ॥। सपताहाललभत गरभ काकवधया न सशय: । यसस कसम न दातवय तान‍यथा मस भाषितम‌ ॥। ५॥।

पषयनकषतरयकत रविवारक दिन असगनधकी जड लाय भसक दधम आध पलभर सदा भकषण कर।इस भाति ७ दिनक सवन करनस

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एकविश पटल दर९

काकवनधया नारी निहइचय गरभशो धारण करती ह । हरक मनषयको मर

कह इस सतय परयोगको न द ॥| ४ || ५ ॥। इति शरीदततातरयतनतर शरीदततातरयशवरसवाद काकवनधयाचिकि-

तसाबरणन नाम विशतितम: पटल: ॥। २० ॥।

एकविश पटल

जयकी विधि ईशवर उबाच

मारगशीरषसय परणाया शिखीमल समदधरत‌ ।

बाहौ शिरसि वा धारय विवाद विजयी भवत‌ ॥ १ ॥।

जिवजी बोल-(ह दततातरयजी !) मारगशीरषकी परणिमाक दिन

चितावकषकी जडको उखाड भजाम वा शिरम धारण कर तो विवादम

विजय होती ह ।। १ ॥।

कर सौदरशन मल बदधवा रणकल जयी । आरदराया वटवनदा वा हसत बदधवाउपपराजित: ।। २ ॥।

हाथम सदरशनकी जड बावनस रणम जय होती ह, आरदरा नकषतर

म बरगदका बनदा वा अपराजिताका बनदा हाथम बानधनस रणम जय |

मिलती ह ॥। २ ||

तदकष चतवनदाक गहीतवा धारयतकर। सगराम जयमापनोति जया समतवा जयी तथा ।॥। ३ ॥।

आरदरानकषतरम आमका वदा हाथम बाघनस सगरामम जय परापत होती ह और जयादवीका समरण करनस भी जय परापत होती ह || ३ ।।

कततिका वा विशाखा वा भौमवारण सयता । तहिन घटित शसतर सगराम जयदायकम‌ ।। ४ ।।

कततिका वा विशाखा नकषतर मगलवारक दिन हो तो झसतर बनवाव

उस दिनका बना शासतर सगरामम जय दता ह ।। ४ ॥।

|

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छ० दततातरयतनतर

गहीतवा पषयनकषतर इवतगझजा समलिकाम‌ । धारयददकषिण हसत सगराम विजयी भवत‌ ॥। ५ ॥।

पषय नकषतरम सफद घघचीकी जडसहित उखाड दहन हाथम धारण करनस सगरामम जय होती ह ।॥। ५ ॥।

धततर करवोर च अपामारगसय मलकम‌ । हरितालयत करयाततिलक सदिन कती ॥ ६ ।। अजाकषीरण सपषय रण राजकल जयी । विरोध दतकाय च नान‍यथा मम भाषितम‌ ।। ७।

घतर कनर और अपामारगकी जड हरतालक साथ बकरीक दघम पीस तिलक लगानस राजदरबारम, विरोधम और दतक कायम निशचय जय परापत होती ह ॥ ६ ।। ७ ।।

इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवाद जयसवादौ नामक- विशतितम: पटल: ।। २१ ॥।

दाविश पटल

वाजीकरण ईइवर उवाच

बलन नारी परितोषमति न हीनवीयसय कदापि सौखयम‌ । अतो बलारय रतिलमप- टसय वाजी विधान परथम परवकषय १ ॥॥

शिवजी बोल- (ह दततातरय जी ! ) बलस नारी परसनन होती ह अतएव बलहीन परषको कभी सख नही होता इस कारण रतिक अभिलाषी परषकी निरबलता दर करनक लिय परथम वाजीकरणको कहता ह ।। १ ॥

निकषिपनमषसय पातर चतवकषसय वलकलम‌ । तसथोपरि जल कषिपतवा ततो बसतरण रकषयत‌ ॥ २ ॥।

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छ पटल ७१

आमकी छालको लकर मिटटीक पातरम रकख फिर उसम जल डाल कर बसतरस ढक द ।। २ ॥

पराररदगधन सहित यः पिबनमदनातरः । धातवदधिकर लोक बलपषटिकर नणाम‌ ॥| ३ ॥।

परातसमय जो परष दधक साथ पिय तो धातकी वदधि हो एव

बलवान‌ और पषट हो ।। ३।।

कमारीकदमादाय गोकषोरण च यः पिबत‌ । बलपषटिकर धातरजायत नातर सशय: ।। ४ ॥।

घीगवारकी जडको गोक दधक साथ पानस मनषय निशचय बल-

वान‌ होजाता ह और उसकी धात पषट होती ह ।। ४।।

भिणडीफल गहीतवा त रविवार च परवबत‌ ।

छायाशषक च तचचणमइवगनधा समनवितम‌ ।। ५ ॥।

मशली गोकषर चब विजयाबीजसयतम‌ ।

एकवरणगवा कषीर यः पिबटटडट.मातरत: ॥। ६ ॥।

बलपषटिकर दह सतमभक धातबदधिकत‌ । सिदधयोगमिम कतवा कामदवो भवजलर: ।। ७ ॥।

रविवारक दिन भिडीक फलको ल परव समान छायाम सखाय

उसका चरणकर फिर असगनध, मशली, गोखर और भागक कनीज मिलाय

जो मनषय ४ मास गौक दधक साथ पीव तो उसका शरीर

बलवान‌ एव पषठ होताह और उसकी धात अचल होकर बढती ह,

इस सिदधयोगस मनषय कामदवक समान रपवान‌ होजाता ह ॥ ५-७ ॥।

अदवतथफलमानीय छायाशषक तकारयत‌ ।

दगधसाद पिबतसतय जायत मकरधवज: ॥ ८ ॥।

पीपलक फलको ल छायाम सखाय चरण कर दधक साथ पीनस

ननिइचय कामदवक समान बलवान‌ होजाता ह ।। ८ ॥।

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छ२ दततातरयतनतर

| गहीतवा हयमतामल रविवार$भिमतरितम‌ । | छायाशषक यसय चरण शकरासहित परम‌ ।। ९ ॥॥ । महापषटिकर पसा तसयोपरि गवा पय: । | यस‍म कसम न दातवय रकषणीय सयतनवत‌ ॥। १० ॥। | रविवारको गिलोयकी जड ल मनतरस अभिमतरित कर छायाम सखाय । चरणकर चीनी मिलाव।फिर उस खाय ऊपरस गौका दध पीब तो मनषयको | महापषटि दता ह इस परयोगकी यतनस रकषा कर हरक को न द ||९-१०॥। |

| इति शरीदततातरयतनतर दततातरयशवरसवादबाजीकरण- परयोगो नाम दवाविशतितम: पटल: ॥। २२ ॥

| | |

|

तरयोविश पटल

दरावणादिकथन ईइबर उबाच-सिता चोशी रतग रकसभकषोदरलपनम‌ । दरावण करत सतरीणा विना मतरण सिदधयति ।। १ ॥

शिवजी बोल-(ह दततातरयजी ! ) मिशरी, खस और तगरको शहतम मिलाय कामधवजापर लप करनस सभोग समयम सतरी शीकर सखलित होजाती ह ।। १॥।

बहतीफलमलानि पिपपलीमरिचानि च । मधना रोचनासादध लिग लिमपददरवः सतरिया: ॥। २ ॥।

कटरीक फल और जड लकर पीपल, मरिच, गोरोचन और शह- तक साथ मिलाय इनदरियपर लप करनस रतिकालम सतरी दरवित हो जाती ह ॥। २ ॥।

। गधक च शिलाघषट लपयरकषौदरसयतम‌ ॥॥ यसम कसम न दातवय नान‍यथा सम भाषितम‌ ॥। ३॥।

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पटल छ

गघकको शहतक साथ पतथरपर घिसकर लप करनस सतरी शीघर दरवीभत

होती ह यह मरा कहा हआ सतय परयोग हरएक मनषयको न ही दना ॥।३॥

वीरयसतमभनपरयोग करपरषटकण सत तलय मनिरसमध ।

महयितवा लिपललिडध सथितवा याम तथव च‌ ।। ४ ॥।

ततः परकषालयललिडर रमदरामा यथोचिताम‌ ।

वीरयसतभकर पसा सिदयोग उदाहतः ॥। ५ ॥।

कपर,सहागा और पारको बराबर ल शहतम घोट कामधवजापर लप

कर और एक पहरक पीछ कामधवजाको घो डाल फिर उचित समयम रमण

करनस परषका वीरय सतभित होता ह यह सिदध परयोग मन कहा ह।।४-५

सधना पदमबीजानि पिषटवा नाभि परलपयत‌ ।

यावततिषठतयसौ लपसतावद‌ बीय न मचति ॥। ६ ॥।

कमलगटटोको जहतक साथ पीस नाभिपर लप कर. जबतक यह लप

नाभिपर रहगा तबतक परषका बीरय नही गिरगा ॥। ६ ।।

सकरसय त दषटरागर दकषिण च समाहरत‌

कटघया बदधवा पटनव शकरसतभः परजायत ॥। ७ ॥।

सकरकी दाहिनी दाढको ल वसतरस लपट कमरम बाधकर रमण

करनस वीरय सतभित होता ह ।। ७ ।।

तलसीबीजचणनत बणनत तामबलससह भकषयत‌ ।

न मचति नरो वीरय नाडीना सपतकावधि ॥॥ ८ ॥॥

बलसीक बीजोका चरण पानम रखकर खानस रमणकालम सात घडीतक

परषका वीय नही गिरता ह ।। ८ ॥।

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रा दततातरयतनतर

इनदरवारणिकामल पषय नगन: समदधरत‌ । कदतरयगवा कषोर समपिषय गोलकीकतम‌ ।। ९ ।॥। छायाशषक सथित चासय वीयसतमभकर परम‌ । नीलीमल समशानसथ कटचया बदधवा त बीयधक‌ ॥ १० ॥

पषयनकषतरम नगन होकर इनदरायणकी जडको उखाड सोठ, मिरच पीपल क साथ गौक दधम पीस गोली बनाव इन गोलियोको छायाम सखाव इस गोलीको मखम रखनस वीय सतभित होता ह। समशानम सथित नीली वकषकी जडको लाकर कमरम बाधनस वीय सतभित होता ह ॥| ९-१० ॥।

रकतापामारगसल त सोमवार निमतरयत‌ । भौम परातससमदधतय कटया बदधवा तवीययधक‌ ।। ११ ॥।

लाल आपामारगकी जडको सोमवारक दिन नयोता द आव और मगल- वारको परात:समय उखाडकर कमरम बाघनस वीरय सतभित होता ह ॥ ११ ॥।

तिलगोकषरयोइचण छागोदगघ च पाचितम‌ । शीतल मधना यकत भकषित दरावक सतरिया: ।। १२ ॥।

तिल और गोखरका चरण बकरीक दधम पकाव शीतल होनपर शहत मिलाय भकषण करनस रमण समय सतरी सखलित होजाय और परषका वीय रका रह ।। १२ |

चटकाड गहीतवा त नवनीतन पषयत‌ । तन परलपयतपादो शकरसतभ: परजायत ॥। यावचन सपशत भमि ताबद‌ बीय न मचति ।। १३ ॥।

चटकपकषीक अडको लकर मकखनम पीस चरणक तलवोम लप करनस वीयसतभित उस समयतक रहता ह जबतक भमिपर चरण न रकक‍ख।। १३॥।

डडभो नामतः सरप: कषणवरणसतमाहरत‌ । तसयासथि धारयतकटचया नरो वो न मचति ॥ विमचति विमकत त सिदधयोग उदाहतः ॥ १४ ।।

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क पटल ७५

डडभनामक काल सरपकी हडडीको कमरम बाघनस परषका वीरय

नही गिरता इस सिदधयोगक परतापस जब वह हडडी कमरस खोलीजाय तभी

वीय गिरता ह ॥। १४ ॥।

आमलकया वलकलाना जलन कषालय:भगम‌ । बदधापि कामिनी कास बालावतकरत रतिम‌ ॥ १५ ॥

परतिदिन आवलक वकलोको जलम पीसकर उस जलस यदि काम-

मनदिरको धोव तो बदधा नारी भी बालाक समान रति करती ह ॥। १५ ॥

खसपलशठिकवाथ: षोडशषण गडन निशि पीतः । करत रतो न पीतो रतः पतन विनामलन ।। १६॥॥

एकपल खस लकर सोठक कवाथरम सोलहवा भाग गड मिलाय रातरिक

समय पीसकर रति कर तो जबतक खटाई न खाय तबतक परषका वीय सखलित

नही होता ॥| १६ ॥।

कशरञननवरणन तरिफलालौहचणनत वारिणा पषयतसमम‌ ।

हयोसतलयन तलन पचनमहगनिना कषणम‌ ।। १७ ॥। तलतलय भ गरस तततल त विपाचयत‌ । सनिगधभाडगत भमो सथित मासानसमदधरत‌ ॥ १८ ॥।

सपताह लपयहरषटय कदलयाइच दल: शिरः ।

निरवात कषोरभोजी सयातकषालयततरिफकाजल: ॥ १९ ॥।

नितयमव परकरतवय सपताहादजन भवत‌ ।

यावजजीब न सनदहः कचा: सयरलसरोपमा: ।॥ २० ॥।

तरिफलका (हरड बहडा आमलका) चरण और लोहचरण समान लकर

जलम पीस फिर दोनोक वराबर तल डाल मनद २ आचस पकाव। शीतल

होनपर उस तलकी बराबर भागरका रस मिलाय आचरम पकाव फिर चिकन

बतनम भरकर पथवीम गाडद महीनभरक पीछ निकाल ॥ उस तलको

शिरम ७ दिनतक लगाव और ऊपरको कलको पततको ऐस लपट

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£ ७६ दततातरयतनतर

जिसम वाय न लग सक इन दिलोम दध पीव और खोलनक समय तरिफलक जलस घो डाल । इस सात दिनक परयोगस कशरजन होता ह कशरजन होनपर जीवन परयनत मनषयक शिरक बार भौरक समान काल बन रहत ह ॥१७-२०॥

काइमरया मलमादो सहचरकसम कतकीना च मल लोह चरण भग जरिफलजलयत तलमभिविपकवम‌ । कतवा व लोहभाड लषितितलनिहित सासमक विधाय कशाकाशपरकाशा गरमरकलनिभा लपनादव कषणा: ॥। २१ ॥

कमहररकी जड, पियावासाक फल, कतकीकी जड, भागरा, तरिफला, जल और तलको मिलाय लोहक बततनम रखकर पकाव, फिर एक मासतक पथवीम गडा रहन द उपरानत निकालकर कशोम लगाव तो कश भौरक समान काल और रमब होजात ह ॥ २१॥

तरिफला लोहचरण च इकषभडररससतथा । कषणमततिकया साउ भाड मास निरोधयत‌ । तललपादजयतकशाइचतरमास सथिरो भवत‌ ॥ २२ ॥

तरिफला, लोहचरण, ईख और भागरक रसको बराबर और सबकी आधी काली मटटी मिलाय एक महीनतक गडा रक‍ख फिर कशोपर लप करनस चार मासतक बाल काल बन रहत ह ॥। २२ ॥।

लोहकिटट जपापषप पिषटवा धातरीफल समम‌ । तरिदिन लपयचछी पर तरिमासावधि रजनम‌ ।। २३ ॥।

लोहकी कीट, गडहलक फल और आमलोक बराबर लकर पीस तीन दिनतक कशोम लप कर तो कश तीन मासतक काल बन रहत ह ॥ २३ ॥।

लोमशातन हरितालसधालप कतवा लपसय वारिणा सदय: निपतति कशनिचयाः कोतकमिदमदभत करत | २४॥

हरताल और चनको समान लकर चनक पानीस पीस लप करन स बाल अतिशीघर गिरजात ह और दखनम बडा कौतक मालम होता ह ॥॥२४।॥

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चतरविश ७७

रमभाजल: सपतदिन विभावय भसमानि कमबो-

मसणानि पशचात‌ । तालन यकतानि विलपननत

रोमाणि निरमलयति कषणन ॥। २५ ॥

कलस जलक शखकी भसमको सातदिन भावना द हरताल मिलाय

अली भातिस घोट फिर रोमसथानपर लगात ही रोम गिर जात ह ॥ २५ ॥।

पलारशाचचातिलमाषशखानदहदपासागग सपि-

पपलानपि । मनदिशलातालक चरणलपातकरोति

निरलोम शिरः कषणन ॥ २६ ।॥।

ढाक, इमली, तिल, उडद, शख, अपामारग पीपल, मनशिल और

हरतालक चरणम चना मिलाय लप करनस कषणमातरम कश गिर जात ह

और फिर नही निकलत ह ।। २६ ।। 3

लिडगवदधन वराहवसया लिख मधना सह लपयत‌ ।

सथल दढ च दीरघ च मसलाकति जायत ॥। २७ ॥

सअरकी चरबीम शहत मिलाय कामधवजपर लप करनस काम-

घवजा सथल दढ और मसलक समान लमबी होजाती ह ।। २७ ।।

“ <ति शरीदततातरयतनतरदततातरयशवरसवाद दरावणादि-

कथन नाम तरयोविशतितम: पटल: ॥। २३ ॥। न

चतरविश पटल

भतगरहादिनिवारण ईइबर उवाच

बिलवमल दवदार गोशयडध च परियग च |

पिषटवा धपो निहनतयाश भतगरहजवरादिकान‌ ॥ १ ॥।

शाकिनयो राकषसाः परता: पिशाचा बरहमराकषसा: ।

ऐकाहिको दचयाहिकइच जबरो नहयति तस‍तकषणात‌ ॥ २ ॥॥

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छट वततातरयतनतर

शिवजी बोल-(ह दततातरयजी ! ) बलकी जड, दवदार, बबर परियगक फल इन सबको बराबर ल पीसकर घप बनाव उस घपक दनस भत- बाघा गरहबाधा जवरादिक नषट होत ह। शाकिनी, राकषस, परत, पिशाच जनितपीडा एव दो दिनम आनवाला जवर उसी समय दर होजाताह। १-२ ॥।

शिरीषनिमबयो: पतर गोशयडभसय च तवगवच । वशतवक‌ शिखिपचछ च कगना च घत समम‌ ॥। धपो बालगरहानहनति हमोतनमन‍तरण मतरित: ॥। ३ मतर:-३ दत मझच उडडामरबबर आजञापयति सवाहा ॥।

शिरस और नीमक पतत एव बबरकी छाल, मोरकी पछ, कागनी- धान और ,घीको बराबर लकर इनको नीच लिख मतरको पढकर धप दनस बालगरह नषट होजात ह ॥ ३ ॥ 'ओऑ दरत मझच उडडामरशवर आजञापयति सवाहा' यह मतर ह ।।

शरीवास सनधव कषठ बचा तल घत बसा । धपो बालगरह दयो गरहराकषसशञानतय ।। ४ ।।

चनदन, सधा, कठ, वच, तल, घी और चरबीको बराबर ल घप दनस बालगरह और राकषसजनित भय दर होजाता ह।। ४ ॥।

पननवानिमबपतरसषपघतविरचितो घप: । गरभिषया बालाना सतत रकषाकर: कथित: ।। ५॥।

सोठ, नीमक पतत, सरसो घी इनको बराबर मिलाय धप दनस बालकोकी निरनतर रकषा रहती ह ।। ५ ॥ पषयाकक इवतगडजाया मलमदधतय धारयत‌ । बालना कणठदश त डाकिनीभयनाशनम‌ ।। ६ ॥।

पषपनकषतर यकत रविवारक दिन सफद घधचीकी जड उखाडकर बालकक गलम बाधनस डाकिनीका भय जाता ह ॥ ६ |

दाडिमसय च बनदाक जयषठकष त समदधरत‌ । दारबध च बालाना सरवपरहनिवारणम‌ । ७ ॥

आदरानकषतरम दाडिमीका बनदा लाकर: घरक दरवाजपर बाघद तो तब गरहजनित पीडा दर होजाती ह ।। ७ ॥॥

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ह पटल

नसिहमतरवीजनत सकदचचरित हरत‌ ।

डाकिनीपरतभतानि तमः सरयोदयो यथा ॥॥ ८ ।।

नसिहमतर:-“5 नसो नसिहाय हिरणयकशिपवकषसथलविदार-

णाय तरिभवनवयापकाय भतपरतपिशाच डाकिनी कलोनमलनाय

सतमभोजभवाय समसतदोषान‌ हरहर विसरविसर पचपचहनहन

कमपयकमपय सथमथ ही ही ही फटफद‌ 5: ठ: एहनहि_रदर आजञा

पयति सवाहा ॥।

उपरोकत नसिह भगवान‌क वीजमतरको एक वार पढनस ही डाकिनी,

भतजनित पीडा दर हो जाती ह जस सरयोदयस अधकार दर होजाता ह ॥॥८॥

इबतापराजितापतर जपापतर दयो रसम‌ ।

नसय करयातपलायनत डाकिनीदानवादय: ॥। ९ ॥। सफद अपराजिताक पतत और जयतीक पततका रस निकाल नसय दनस

डाकिनी दानवादिक भाग जात ह ॥| ९ ॥।

सिहबयातरादि भयनिवारण पषयारक त समानीय इवताकसथ च मलकम‌ ।

धारयदकषिण हसत सिहबयाघभय नहि ॥ १० ॥

पषयनकषतरयकत रविवारक दिन सफद आककी जडको लाकर दहिन

हाथम बाघनस सिहवयापरादिका भय नषट होता ह ॥ १० ॥।

गहीतवा शभनकषतर कषणधततरमलकम‌ । धारयदविकषिण हसत वयाधवाधाभय नहि ॥ ११ ॥।

शभनकषतरम काल धतरकी जड लाकर दहिन हाथम बाधनस वयापरका

भय नही रहताह ।। ११ ॥। सरपभयनिवारण सरपभयनिवारण

आसतिक मततिराज च नमसकतय पतर: पनः सवपन सरपभय नासति तया सरपनिवारण‌ ॥॥ १२ ॥।

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<० दतताजयतनतर

आसतिक मनिराजको वारवार नमसकार करनस सवपनम भी सरपका भय नही रहता और उस दख सरप भाग जात ह ।। १२ ।।

गहीतवा पषयनकषतर हममतामलक पनः । तनमाला धारयतकठ सपवाधाभय नहि ॥ १३ ॥।

पषयनकषतरम गिलोयकी जड लाकर उसकी माला बनाय गलम धारण करनस सपका भय नही रहता ह।। १३ ॥।

वशचिकभयनाशन गहीतवा शभनकषतर अपामारगसथ मलकम‌ । धारयदकषिण करण वशचिचका:दरीन विदयत ॥। १४ ।।

शभ नकषतरम अपामारगकी जड लाकर दहिन कानम धारण करनस वीछी का भय नही रहता ह ॥। १४ ||

अगनिभयनिवारण गहीतवा रविवार च इवतकरवीरमलकम‌ । धारयदकषिण हसत हयगनिबाधाभय नहि ॥। १५ ॥।

मतर:-३& नमो5गनिरपाय ही नमः । अनन मनतरण सपता- लिजल वहिमधय निकषिपततदा अगनिदञानतिभवति ।। १६ ॥। रविवारक दिन सफद कनरकी जड लाकर दहिन हाथम घारण करनस

अगनिका भय दर हो जाता ह । ओओ नमोउगनिरपाय ही नम: ।' इस मतरको पढकर सात अजलि जल अगनिम छोडद तो अगनि शञानत होजाती ह।। १५।१६।।

इति शरीदततातरयततर दततातरयशवरसवाद भतगरहादिनिवारण नाम चतविशतितम: पटल: ॥ २४ ॥।

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