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    Be Mains Ready-2019 वैकि पक िवषय इितहास-I

    : ऋ वै दक युग के लोग के सामािजक जीवन का वणन क िजये। उ र-वै दक काल म सामािजक संरचना म आन ेवाली कठोरता क चचा क िजये।

    िव छेद ● पहला भाग ऋ वै दक युग के लोग क सामािजक संरचना के वणन से संबंिधत है। ● दूसरा भाग उ र-वै दक काल म सामािजक संरचना म आने वाली कठोरता से संबंिधत है।

    हल करन ेका दृि कोण ● ऋ वै दक एव ंउ र-वै दक काल के िवषय म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● ऋ वै दक युग के लोग क सामािजक संरचना का वणन क िजये। ● उ र-वै दक काल म सामािजक संरचना म आने वाली कठोरता क चचा क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: ऋ वै दक एव ंउ र-वै दक काल को मश: 1500 बी.सी. से 1000 बी.सी. एव ं1000 बी.सी. से 600 बी.सी. के म य वग कृत कया जाता है। ऋ वै दक एव ंउ र-वै दक काल के दौरान सामािजक संरचना म होने वाले प रवतन पर मुख प से भौगोिलक, आ थक एव ं तकनीक गितिविधय म आने वाली गित का ापक भाव प रलि त होता है।

    ऋ वै दक युग के लोग क सामािजक संरचना िन िलिखत प म व णत है- ● सामािजक वग करण म उ र-वै दक काल जैसी कठोरता ऋ वै दक काल म नह दखलाई पड़ती है।

    प ी ही घर-गृह थी क देखभाल करती थी एव ं मुख समारोह म भाग लेती थी। मिहला को पु ष के समान उनके आ याि मक एव ंबौि क िवकास के िलये समान अवसर दय ेजाते थे। पुरोिहत को दि णा म मु य उप से दास दये जाते थे िजनम मुख प से दािसयाँ होती थ ।

    ● ऋ वै दक समाज िपतृस ा मक था। समाज क आधारभूत इकाई प रवार या ाहम थी। प रवार के मुिखया को गृहपित कहा जाता था। एकल िववाह क था सामा य तौर पर चिलत, थी जब क ब -िववाह क था शाही एव ंकुलीन प रवार म ही चिलत थी।

    ● बाल िववाह एव ंसती था अनुपि थत थी। मिहला का लोकि य सभा म भाग लेना एव ंअपाला, घोषा, िव वारा और लोपामु ा जैसी कवियि य का उ लेख मिहला क बेहतर ि थित का सूचक है।

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    ● इस युग म समाज म कबायली त व धान थे एवं मु य आ थक आधार पशुचारण था िजससे कर सं ह और भूिम-स पदा के वािम व पर आि त सामािजक वग करण नह आ था। अत: समाज अब भी कबायली एव ंकाफ हद तक समतािन था। वसाय के आधार पर ही समाज म िवभेदीकरण आर भ आ ले कन उन दन यह ब त कड़ा नह था।

    ● उ र-वै दक काल क सामािजक संरचना म आने वाली कठोरता िन िलिखत प म व णत ह-ै ● उ र-वै दक काल के दौरान ा ण, ि य, वै य एवं शू वण व था को अ छी तरह से थािपत

    कया गया था। ा ण एव ं ि य दोन ही उ वग के लोग ने उन िवशेषािधकार का आनंद िलया िजनसे वै य एव ंशू को वंिचत रखा गया था। ा ण ने ि य क तुलना म उ ि थित पर क जा कर िलया था ले कन समय-समय पर ि य ने भी ा ण से ऊँचे दज का दावा कया। इस अविध म वसाय के आधार पर कई उप-जाितयाँ कट थ ।

    ● उ र-वै दक काल के दौरान िपता क शि म वृि ई। मिहला ने सभा म भाग लेने के अपने राजनीितक अिधकार खो दये। मिहला क ि थित म कसी भी कार का सुधार नह आ। वे अभी भी पु ष के नीचे एव ंअधीन थ मानी जाती थ । ऐ ेय ा ण के अनुसार एक बेटी को द:ुख का ोत बताया गया है। हालाँ क, शाही प रवार म मिहला ने कुछ िवशेषािधकार का आनंद िलया।

    ● गो था के अंतगत गो श द से अिभ ाय वह थान ह ैजहाँ समूचे कुल का गोधन पाला जाता है। परवत काल म इसका अथ एक ही पु ष से उ प लोग का समुदाय हो गया और फर गो के बाहर िववाह करने क था चल पड़ी एव ंसमान गो या मूल पु ष वाले लोग के बीच िववाह िनिष हो गया। इस काल म चय, गृह थ, वान थ आ म का उ लेख है। चतुथ आ म सं यास ात था ले कन सु िति त नह आ था।

    ● सामा यत: उ र-वै दककालीन ंथ म तीन उ वण एव ं शू के म य िवभाजक रेखा देखने को िमलती है। रा यािभषेक संबंधी ऐसे कई अनु ान होते थ ेिजनम शू शायद मूल आय जाित कबील के बचे ए सद य क हैिसयत से भाग लेते थे। िशि पय म रथकार आ द का ऊँचा थान था िज ह य ोपवीत धारण करने का अिधकार था। इस कार दखाई देता ह ै क उ र-वै दक काल म भी वण-भेद अिधक खर नह आ था।

    वै दक काल के दौरान सामािजक संरचना म होने वाले प रवतन त कालीन समय म व थागत अ छाइय के प रणाम क बजाय प रि थितवश भाव तीत होते ह। उ र-वै दक काल के दौरान सामािजक संरचना म होने वाल ेप रवतन िनि त प से ऋ वै दक काल क तुलना म यादा कठोरता िलये ए ह ले कन उपयु वणन से वण-भेद क खरता का वह तर अभी भी नदारद है िजसका व प हम परवत युग म देखने को िमलता है।

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    : ाचीन भारतीय इितहास के िनमाण म िवदेशी िववरण को कस सीमा तक देशी सािह य का अनुपूरक माना जा सकता ह?ै प क िजये।

    िव छेद ● कथन ाचीन भारतीय इितहास के िनमाण म िवदेशी िववरण के देशी सािह य के अनुपूरक होने क सीमा

    से संबंिधत है। हल करन ेका दृि कोण

    ● िवदेशी िववरण के बारे म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● ाचीन भारतीय इितहास के िनमाण म िवदेशी िववरण के देशी सािह य के अनुपूरक होने क सीमा का

    उ लेख क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: ाचीन भारत क अनेक यूनानी, रोमन एव ंचीनी याि य ने या ा क । इन याि य ने भारत के िवषय म अपने आँख देखी ब त ही मू यवान िववरण िलख छोड़े ह। यह स य है क इन िववरण क मह ा के साथ-साथ इनक अपनी सीमाए ँभी ह। इसके बावजूद देशी सािह य के साथ-साथ अ य ोत क अपनी अ त निहत सीमा के चलते इितहास के िनमाण के िलये इन िववरण को देशी सािह य का पूरक बनाया जा सकता है। ाचीन भारतीय इितहास के िनमाण म िवदेशी िववरण के देशी सािह य के अनुपूरक होने क सीमा िन िलिखत प म व णत ह-ै

    ● िवदेशी लेखक क धम र घटना म िवशेष िच थी, अत: उनके वणन से राजनीितक एवं सामािजक दशा पर अिधक काश पड़ता है।

    ● यूनान और रोम के लेखक के वणन अिधक उपयोगी ह य क इन लेखक ने उन त य के बारे म उ लेख कया है िजनको भारतीय लेखक कोई मह व नह देते थे। इनसे ाचीन भारत का राजनीितक एव ंसामािजक इितहास िलखने म काफ सहायता िमली है।

    ● इन लेखक का समय भी ाय: िनि त ह ै िजसके कारण उनके वणन भारतीय लेखक के वणन क अपे ा अिधक ासंिगक िस ए ह।

    ● भारतीय ोत म िसकंदर के हमल ेक कोई जानकारी नह िमलती ह ैइसिलय ेउनके भारतीय कृ य के इितहास के िलये हम पूणत: यूनानी ोत पर आि त रहना पड़ता है।

    ● यह हम यूनानी िववरण से ही पता चलता ह ै क 326 ई.पू. म भारत पर हमला करने वाले िसकंदर महान के समकालीन यूनानी िववरण के स ोकोटस और च गु मौय, िजनके रा यारोहण क ितिथ 322 ई.पू. िनधा रत क गई है, एक ही ि है। यह पहचान ाचीन भारत के ितिथ म के िलय ेसुदृढ़ आधारिशला बन गई।

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    चीनी याि य का बौ दृि कोण के ित झुकाव, यूनानी लेखक क भारतीय प रि थितय एवं भाषा के ित अनिभ ता, अलब नी ारा ाय: उपल ध भारतीय सािह य, न क अनुभव के आधार पर लेखन ऐसे बद ुह जो क िवदेशी िववरण क ासंिगकता पर िच न लगाते ह। इन सब किमय के बावजूद ये िववरण अ य साधन से ा सा य के तुलना मक अ ययन के आधार पर ाचीन भारत का इितहास िलखने म काफ सहायक िस हो सकते ह।

    : बु के उपदेश पर उपिनषद के मत का भाव था। परी ण क िजये। िव छेद ● कथन बु के उपदेश पर उपिनषद के मत के भाव से संबंिधत है।

    हल करन ेका दृि कोण ● उपिनषद के बारे म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● बु के उपदेश पर उपिनषद के मत के भाव के प एव ंिवप का उ लेख करते ए उ र िलिखये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: उ र-वै दककालीन दौर म िविभ तर पर िव मान असमानता ने उपिनषदीय दशन क उ पि के साथ-साथ अ य के िलये भी अवसर उपल ध कराया। िजस समय बु उपदेश दे रह ेथे उसी समय या उनसे थोड़ा पहले दूसरे अ य िच तक भी क ठन इहलौ कक एव ंपारलौ कक का उ र ढंूढने का यास कर रह ेथे। उपिनषद उ र वै दक ंथ का िह सा था िजसका शाि दक अथ ‘गु के समीप बैठना’ है। बु के उपदेश पर उपिनषद के मत के भाव का परी ण प (समानता) एव ं िवप (असमानता) जैसे िब दु के आधार पर िन िलिखत प म व णत है- प :

    ● हद ूदशन का सार उपिनषद के लेखक ने बौ धम के अनु प शांित और मो के िलये गैर- ासंिगक था से दूर होते ए स े ान पर ज़ोर दया।

    ● वै दक कमकांड का िवरोध बु के पहल ेही उपिनषद के ानमाग क थापना म प रलि त होता है। ● उपिनषदीय िवचारक ारा बौ धम के अनु प कमकांड पर य ीय अनु ान को कमज़ोर नौका

    बताकर गहरा आघात कया गया। ● उपिनषदीय दशन का मूल व प बौ धम के अनु प सांसा रक जीवन क िन सारता, याग तथा

    सं यास है। ● उपिनषदीय दशन म साधना, तप तथा उपासना क अिधक मह ा बौ धम के िस ांत के यादा

    समीप ठहरती तीत होती है। िवप :

    ● उपिनषद म वै दक य क अपे ा साधना, तप एव ंउपासना क अिधक मह ा थािपत ह,ै जब क जैन-बौ धम म याग तथा सं यास धान जीवन को वै दक य वाद के िव थािपत कया गया है।

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    ● उपिनषद के चतक ारा वै दक पर परा को औपचा रक मा यता दी गई है, जब क महावीर और बु वेद के भु व पर उठाते थे।

    ● उपिनषदीय अ ैत िस ांत के उलट बौ धम म सावभौम ई र क क पना का अभाव था। इसिलये इस धम म वेद को देव वा य नह माना गया है।

    ● उपिनषद के िवपरीत बु ने कहा क वेद जलिवहीन म थल एव ं पंथिवहीन जंगल ह और घोिषत कया क वै दक िव ा धमहीन है।

    िन कषत: भारतीय दशन के िवकास म उपिनषदीय दशन का उदय एक मह वपूण घटना थी िजसका िमक िवकास आने वाल ेसमय म देखने को िमलता है। उपिनषद एव ंबौ धम के बीच प रलि त समानता एवं असमानता के िब दु एवं उपिनषद के बु पूव, समकालीन एव ंपरवत होने के आधार पर तीत होता ह ै क

    वे एक-दूसरे से कुछ मामल म भािवत ए ह और कुछ मामल म नह भी। : कुषाण वंश के पतन तथा गु वंश के उदय के म य क अविध को अंधकारपूण युग क सं ा दी जाती है।

    या आप इस वग करण से सहमत ह? िव छेद ● कथन कुषाण वंश के पतन तथा गु वंश के उदय के म य क अविध को अंधकारपूण युग मानने के संदभ म

    आपक सहमित एव ंअसहमित से संबंिधत है। हल करन ेका दृि कोण

    ● कुषाण वंश के पतन तथा गु वंश के उदय के म य क अविध के बारे म संि उ लेख के साथ प रचयिलिखये।

    ● कुषाण वंश के पतन तथा गु वंश के उदय के म य क अविध को अंधकारपूण युग मानने के प एव ंिवपम तक तुत करते ए उ र िलिखये।

    ● वग करण के संदभ म अपनी राय के साथ उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: कुषाण सा ा य के िवघटन के बाद गु सा ा य का आिवभाव आ। इनके म य का काल राजनैितक दृि कोण से िवक ीकरण एव ं िवभाजन का काल माना जाता ह ै िजसम एक ऐसे सा ा य का अभाव था जो एकता के सू म बांधकर गित के पथ को मज़बूत बना सके। इ ह वजह से कई िव ान ारा इस युग को अंधकारपूण युग क सं ा दी जाती है। कुषाण वंश के पतन तथा गु वंश के उदय के म य क अविध को अंधकारपूण युग मानने के प एवं िवप म तक िन िलिखत ह- प म तक:

    ● देश म कसी शि शाली मह वपूण शि के न होने से सामा यत: यह काल अराजकता एव ंअ व था से प रपूण था।

    ● एक शासन सू के अभाव के कारण ये रा य पर पर संघष म लीन थे िजससे कृिष, िश प, ापार-वािण य, कला एवं सािह य को बेहतर माहौल उपल ध कराने म असफल रहे।

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    ● समतट, डवाक, काम प, नेपाल एव ंकतपुर रा य के शासक के िवषय म कोई जानकारी नह िमलती है।

    िवप म तक:

    ● कुषाण के पतन के बाद नागवंश, मौख र वंश एव ंमघराज वंश जैसे मुख राजतं का अि त व रहा है। कुषाण स ा के िवनाश का ेय नागवंश को दया जाना इसके शि शाली होने का प रचायक है। वाकाटक एव ंप लव राजवंश जैसे राजतं का भी अि त व रहा है।

    ● इस दौरान राजतं के साथ-साथ मालव, अजुनायन, यौधेय, िल छिव जैसे गणतं का भी अि त व था। इन गणतं म से कुछ के ा िस े एव ंलेख इनके राजनीितक जीवन, ापार-वािण य एव ंलेखन कला जैसे प पर भी मह वपूण काश डालते ह।

    ● इस दौरान इन राजतं ारा धम एव ंवा तुकला के े म भी योगदान दया गया िजसक पुि मौख र वंश के शासक ारा वै दक धम का पोषण एव ं ि रा य क मृित म पाषाण यूप के िनमाण से होती है।

    ● नागवंश के भ मघ एव ंअिहछ तथा अयो या के शि शाली राजतं ारा चलाए गए िस े संबंिधत राजतं के ापार एव ंवािण य क एक सीमा तक बेहतर ि थित को व णत करते ह।

    हालाँ क, केवल राजनीितक दृि कोण से ही देखा जाए तो इस दौर म भी कई शि शाली राजवंश का अि त व रहा है। यह स य ह ै क ऐसे राजतं िविभ कारण से गित के िलय ेमौय सा ा य जैसा वातावरण िन मत नह कर सकते थे ले कन एक तर तक िविभ े म गित को देखते ए इस युग के अंधकारपूण युग होने क पुि करना उिचत वग करण तीत नह होता है।

    : हड़ पा स यता के िवघटन संबंधी िविभ मा यता का परी ण क िजये। िव छेद ● कथन हड़ पा स यता के िवघटन से जुड़ी िविभ मा यता से संबंिधत है।

    हल करन ेका दृि कोण ● हड़ पा स यता के िवषय म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● हड़ पा स यता के िवघटन से जुड़ी िविभ मा यता के प -िवप का उ लेख क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: िसधु घाटी स यता को हड़ पा सं कृित भी कहा जाता है। हड़ पा स यता का नामकरण हड़ पा नामक थान के चलते आ जहाँ यह सं कृित सव थम खोजी गई थी। पुरात विवद ारा ‘सं कृित’ श द का योग पुराव तु के ऐसे समूह के िलये कया जाता ह ैजो एक िविश शैली के होते ह एवं सामा यतया एक साथ, एक िवशेष भौगोिलक े और काल-खंड से संब पाए जाते ह। हड़ पाई िलिप के अभी तक अप ठत होने के कारण इसके उ व के बारे म प तौर पर जानना िजतना क ठन ह,ै उतना ही इसके अंत के िवषय म भी है। इसके बावजूद अनेक िव ान ारा हड़ पा स यता के िवघटन म अपने-अपने मत तुत कये गए ह।

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    हड़ पा स यता के िवघटन से जुड़ी िविभ मा यता के प -िवप संबंधी कथन िन िलिखत ह- ● कुछ िव ान का मानना ह ै क न दयाँ सूख गई ह गी, कुछ इलाक म बाढ़ आ गई होगी और मवेिशय

    के बड़े-बड़े झुंड से चरागाह और घास वाले मैदान समा हो गए ह गे। ● कुछ अ य िव ान का मानना ह ै क जंगल का िवनाश हो गया होगा िजसका कारण ट पकाने के िलये

    धन क ज़ रत को माना जा सकता है। ● उपयु व णत कारण से यह प नह हो पाता है क सभी नगर का अंत कैसे हो गया। य क बाढ़

    और न दय के सूखने का असर कुछ ही े म आ होगा। ● मोहनजोदड़ो के उपरी तर पर कई सारे कंकाल के अ वेषण एव ंऋ वेद म वै दक देवता इं का

    उ लेख दुगसंहारक के प म होने के आधार पर कुछ िव ान स यता के अंत का कारण आय के आ मण को मानते ह।

    ● मोहनजोदड़ो के उपरी तर के कंकाल का कसी एक काल से संबंध न होने एवं ऋ वेद क सही-सही ितिथ िनधा रत नह हो पाने के कारण अिधकांश आधुिनक िव ान स यता के पतन के िलये आय के आ मण को वीकार नह करते ह।

    ● एक आधुिनक मत यह ह ै क स यता ने अपने साधन का ज़ रत से यादा उपभोग कर डाला िजससे उसक जीवन शि न हो गई। हालाँ क, इसे एक आकषक प रक पना माना जाता ह ैले कन इसक जाँच के िलये िव तृत अनुसंधान क आव यकता है।

    ● एक अ य आधुिनक मत यह है क कसी िववतिनक िव ोभ के कारण मोहनजोदड़ो म सधु नदी का पूव बांध व त हो गया होगा िजससे सधु के बहाव म कावट आई होगी और इसके उपरी भाग, जहाँ मोहनजोदड़ो ि थत था वहा ँ िम ी जमा हो गई होगी। प रणाम व प कुछ समय बाद लोग यहा ँ से कह और पलायन कर गए ह गे। इस िस ांत क जाँच के िलये भी िव तृत अनुसंधान क ज़ रत है।

    कुल िमलकर देखा जाए तो हड़ पा स यता के िवघटन के िलये उ रदायी कारक का ठीक-ठीक पता अभी भी नह चल पाया है। स यता के स पूण े म इसके पतन के सही-सही कारण ात नह हो पाए ह। उपयु व णत कुछ मा यताए ँकाफ आकषक तीत होती ह िजनके भावी अनुसंधान से स यता के पतन के संदभ म आने वाल ेसमय म ठोस प से कुछ कह पाना समीचीन तीत होता है।

    : अशोक एक कुशल शासक होन ेके साथ-साथ उदार ि भी था। परी ण क िजये। िव छेद ● कथन अशोक के कुशल शासक होने के साथ-साथ उदार ि होने के परी ण से संबंिधत है।

    हल करन ेका दृि कोण ● अशोक के बारे म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● अशोक के कुशल शासक होने के साथ-साथ उदार ि होने के प एव ं िवप म तक तुत करते ए

    उ र िलिखये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: अशोक न केवल मौय राजवंश बि क इितहास के महानतम राजा म से एक था। उसने रा य क

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    आव यकता के अनु प अपनी नीितय के व प को िनधा रत कया जो इसके भेरीघोष एव ंध मघोष क नीितय म प रलि त होता है। इसम उसे मह वपूण सफलता भी िमली। अशोक के एक कुशल शासक होने के साथ-साथ उदार ि होने के प एव ंिवप म तक िन िलिखत ह- प म तक:

    ● स ाट अशोक ने शासक बनने से पूव कई सा ा य म उठने वाल ेिव ोह का सफलतापूवक दमन कर अपनी कुशलता को िस भी कया था।

    ● क लग यु के प ात शांितकालीन प रि थितय म ावहा रकता के अनु प भे रघोष क बजाय ध मघोष क नीित अशोक क दूरद शता के साथ-साथ कुशल शासक होने का माण है।

    ● स ाट अशोक ने ीलंका और म य एिशया म एक बु शासक के प म चार के ारा अपने राजनीितक भाव े को िव तृत कया।

    ● अशोक ने पड़ोसी रा य को सैिनक िवजय के उपयु े समझना अनुिचत समझा और उ ह आदश िवचार से जीतने का यास करने लगा।

    ● अशोक ने म य एिशया एव ंयूनानी रा य म अपने शांितदूत भेजे और पड़ोसी देश म भी उसने मनु य एव ंपशु के क याण के िलये काय कया।

    ● स ाट अशोक ने सा ा य क सम या के ित संवेदना करते ए ध म-महामा नाम के अिधका रय क िनयुि क जो जगह-जगह जाकर ध म क िश ा देते थे।

    ● अशोक ने सड़क बनवा , कुएँ खुदवाए और िव ामगृह बनवाए तथा मनु य व जानवर क िच क सा क भी व था क ।

    िवप म तक: ● कुछ िव ान अशोक क धा मक नीित, शांिति यता एव ंअ हसा क नीित को मौय सा ा य के पतन का

    कारक मानते ह जो कुशल शासक व के गुण पर िच न लगाता है। ● अशोक क भे रघोष क बजाय ध मघोष क नीित उसके उदार ि व का प रणाम न होकर

    त कालीन समय म सा ाि यक आव यकता से े रत थी। अशोक क आटिवक जनजाितय को चेतावनी, भे रघोष के बने रहने एव ंअशोक के उदार च र पर िच न है।

    ● कुछ िव ान का मानना ह ै क अशोक का शासन एव ं सेना-संगठन, संचार-साधन और जनता के क याण क बजाय धा मक स दाय को क जाने वाली दानशीलता से अथ था पर िवपरीत असर पड़ा, िजसक प रणित सा ा य के पतन के प म ई।

    यह स य ह ै क अशोक क नीितयाँ सा ाि यक आव यकता के अनु प थ ले कन इससे स ाट अशोक के कुशल शासक एव ंउदार च र के ि होने पर िच न लगता नह तीत होता है। वंशानुगत सा ा य क अपनी कमजो रयाँ होती ह िजसम क म यो य शासक का होना िनतांत आव यक होता ह ैऔर इसे ही पतन के िलये मुख कारण माना गया है। उससे पूव ऐसा कोई दृ ा त इितहास म नह िमलता ह ै क िजससे उसने ेरणा ली हो। शासक बनने से पूव एव ंप ात् उसने िविभ तर पर अपनी कुशलता को िस कया है।

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    : ाचीन भारतीय इितहास के अ ययन म मु ा के मह व क ा या क िजये। िव छेद ● कथन ाचीन भारतीय इितहास के अ ययन म मु ा के मह व से संबंिधत है।

    हल करन ेका दृि कोण ● मु ा के बारे म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● ाचीन भारतीय इितहास के अ ययन म मु ा के मह व का उ लेख क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: िस के अ ययन को मु ाशा ( यूिम मे ट स) कहा जाता है। पुराताि वक ोत के अंतगत िस का थान बेशक मह वपूण ह ैले कन ाचीन भारतीय इितहास के अ ययन म सभी िस क ासंिगकता एक जैसी नह है। इससे इनकार नह कया जा सकता क मु ा णाली का आगमन मानव क गित का एक मुख चरण है। अत: मु ाशा का योग आ थक इितहास के गठन क दृि से काफ ासंिगक है। ाचीन भारतीय इितहास के अ ययन म मु ा का मह व िन िलिखत प म ह-ै ● उ र-पि मी भारत पर बैि या के िह द-यूनानी शासक ारा अिधकार के प ात् इन शासक के

    साथ-साथ भारतीय शासक ने भी िस ा-लेख वाल ेिस े चलाए िजन पर ब धा िस े को चालू करने वाले शासक क आकृित भी होती थी। ये िस े ाचीन भारतीय इितहास के अ ययन म ब त उपयोगी िस ए ह।

    ● िस के बड़ी सं या म एक थान पर िमलने से यह अनुमान लगाया जाता है क िस े ाि का थान संबंिधत शासक के रा य का भाग था। य द िस पर कोई ितिथ उ क ण है तो इससे शासक के रा यकाल क जानकारी िमलती है।

    ● जब िस म सोने क अपे ा खोट क मा ा अिधक होती ह ैतो अनुमान लगाया जाता है क त कालीन समय म रा य क आ थक दशा बेहतर नह थी।

    ● िस के पृ भाग पर देवता क आकृित बनी हो तो इससे शासक के धा मक िवचार क जानकारी ा होती है। उदाहरण व प समु गु के कुछ िस पर यूप बना ह ैऔर ‘अ मेध परा म:’ श द खुद ेह िजससे इस बात क पुि होती ह ै क उ ह ने अ मेध य कया था।

    ● िस का काम दान-दि णा, खरीद-िब और वेतन-मज़दूरी के भुगतान म पड़ता था इसिलये िस से आ थक इितहास पर मह वपूण काश पड़ता है। राजा से अनुमित लेकर ापा रय एव ं वणकार क ेिणय ने भी िस े जारी कये िजससे संबंिधत समय क िश पकारी एव ं ापार क उ ताव था सूिचत होती है।

    ● सबसे अिधक िस े मौय र काल म िमले ह जो िवशेषत: सीसा, पो टन, तांबा, कांसा, चांदी एव ंसोने के ह। गु शासक ारा सोने के सवािधक िस े जारी कये गए। इससे पता चलता ह ै क ापार-वािण य िवशेषत: मौय र काल एवं गु काल के अिधक भाग म खूब फला-फूला। वह , इसके िवपरीत गु ो र काल के ब त कम िस े िमलने से उस काल म ापार- वािण य क िशिथलता कट होती है।

  • 10

    ● हालाँ क, भारत के ाचीनतम िस (आहत िस ) पर अनेक कार के िच न उ क ण ह िजन पर कसी कार के लेख नह ह और इसी कारण इन िच न का सही-सही अथ भी ात नह हो पाया है। इसिलये संभवत: इन िस के राजा के अित र ापा रय , ापा रक िनगम एव ंनगर िनगम ारा जारी करने के बारे म इितहासकार को िवशेष सहायता नह िमल पाई है।

    मु ा से भौगोिलक, सां कृितक, राजनीितक, सामािजक एव ंआ थक मह व क अनेक सूचनाएँ ा होती ह िजनसे संबंिधत े के इितहास के अ ययन म मह वपूण सहयोग िमलता है। िस के मह व का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है क पांचाल के िम शासक , मालव एव ंयौधेय आ द गणरा य का पूरा इितहास िस के आधार पर ही िलखा गया है। िस का िभ -िभ धातु का पाया जाना, धातु क मा ा का िनधारण, िस के भार मानक का िनधारण, िस क धानता एव ंअनुपि थित ये सभी ाचीन भारत के इितहास के अ ययन एव ंलेखन को नई दशा दान कर सकते ह।

    : अशोक क अ हसा मक नीित मौयवंश के पतन का मुख कारण थी। परी ण क िजये। िव छेद ● कथन मौयवंश के पतन के िलये अशोक क अ हसा मक नीित को मुख कारण मानने के प एव ंिवप से

    संबंिधत है। हल करन ेका दृि कोण

    ● अशोक एव ंउसक अ हसा मक नीित के बारे म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● मौयवंश के पतन के िलये अशोक क अ हसा मक नीित को मुख कारण मानने के प व िवप का उ लेख

    करते ए उ र िलिखये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: अशोक, चं गु मौय एवं िब दुसार क तरह ही मौय राजवंश का एक महान शासक आ िजसने सा ा य को इसक पराका ा पर प ँचाने म अपना मह वपूण योगदान दया। क लग यु के प ात् शांितकालीन प रि थितय के अनु प अ हसावादी नीित क ावहा रकता का अनुभव कया गया। इितहास म इस तरह क नीित िम म अखनातन ारा अपनाई गई थी ले कन यह प ह ै क अशोक को अतीत के अपने इस िम के समिच तक क जानकारी नह थी। मौयवंश के पतन के िलये अशोक क अ हसा मक नीित को मुख कारण मानने के प एवं िवप म तक िन िलिखत ह-

    ● क लग यु के प ात अशोक ारा कोई यु नह कया गया, प रणाम व प सा ा य क सेना का साम रक उ साह ठंडा पड़ गया था।

    ● अशोक ने यु िवजय क नीित को यागकर ध म िवजय क नीित अपना ली एव ंअपने पु को भी र पात न करने का उपदेश दया फल व प, सा ा य क शि ीण ई।

    ● अशोक के उ रािधकारी भे रघोष क बजाय ध मघोष से अिधक प रिचत थे, अत: व ेदेश क एकता को िवघ टत होने से बचाने म असफल रहे।

    ● अशोक क शांित एवं अ हसा पर आधा रत धा मक नीित से ा ण के िवशेषािधकार को ठेस प ँची।

  • 11

    इसक ा ण म ती ित या ई िजसक चरम प रणित पु यिम के िवरोध म दृि गोचर होती है। ● अशोक क नीित म क रता नह थी, वह मानवीय वभाव क ज टलता से अ छी तरह प रिचत था

    इसिलये उसने शांिति यता एवं यु याग क नीित को सीमा के अंदर िनयंि त कया। ● तेरहव िशलालेख म अशोक क आटिवक जनजाितय को चेतावनी एक शि शाली राजा क चेतावनी

    ह ैिजसे अपनी सै य मता पर पूण िव ास था। ● य ा द अवसर पर पशु बिल का ा ण ंथ ारा वयं िवरोध एवं पु यिम को सा ा य का

    सेनापित िनयु करना दशाता ह ै क अशोक क नीित कसी िवशेष धम के िव नह थी और पु यिम क रा य ांित का कारण उसक अपनी मह वाकां ा थी।

    स ाट अशोक ारा क लग िवजय के बाद ऐसा कोई िवशेष े दखाई नह देता ह ै िजसे िविजत करना अप रहाय समझा जाए। अत: अशोक क अ हसावादी नीित त कालीन समय म सा ाि यक आव यकता के अनु प ावहा रक नीित थी। सा ा य के िवघटन के िलये क म यो य शासक का अभाव, दानशीलता, दूर थ ा त के शासक के अ याचार जैसे कारक यादा वा तिवक नज़र आते ह। वंशानुगत शासन क िवशेषता होती ह ै क एक के बाद दूसरा यो य शासक आता रह ेिजसका अभाव अशोक के बाद प दृि गोचर होता है।

    : मगध उ थान के थम चरण म मगध क अवि थित क मुख भूिमका थी िजसम इसके शासक का योगदान किचत मा ही था। इस कथन स ेआप कस हद तक सहमत ह?

    िव छेद ● मगध उ थान के थम चरण म इसक अवि थित क भूिमका से जुड़ा आ है। ● मगध उ थान के थम चरण म इसके शासक के योगदान क सीमा से संबंिधत है।

    हल करन ेका दृि कोण ● मगध के िवषय म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● मगध उ थान के थम चरण म इसक अवि थित क मह ा के संदभ म अपना तक तुत क िजये। ● मगध उ थान के थम चरण म इसके शासक के योगदान के मह व के स दभ म अपना तक तुत क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: सोलह महाजनपद म मगध, कोसल, व स और अवंित अिधक शि शाली महाजनपद थे। इनम भी मगध महाजनपद क अपनी िविश अवि थित थी िजसका लाभ मगध को िमला। ले कन इितहास म ऐसे कई दृ ा त ह िजनसे प होता ह ै क मगध जैसे िवशाल सा ा य का उदय बगैर यो य शासक के संभव नह हो पाया था। मगध उ थान के थम चरण म इसक अवि थित क मह ा िन िलिखत प म व णत ह-ै

    ● लोह े के समृ भ डार मगध क आरंिभक राजधानी राजगीर से ब त दूर नह थ,े अत: लौह युग म मगध क भौगोिलक अवि थित बड़ी ही उपयु थी। इससे मगध के शासक भावी हिथयार का िनमाण करवा पाने म स म थे।

  • 12

    ● मगध रा य म य गंगा के मैदान के बीच अवि थत था। याग के पि म के देश क अपे ा यह देश कह अिधक उपजाऊ था और यहाँ से जंगल भी साफ हो चुके थे। भारी वषा के कारण इस े को िबना सचाई के उ पादक बनाया जा सकता था। फल व प यहा ँके कसान अिधशेष उपजा सकते थे।

    ● नगर के उ थान एव ं िस के चलन से भी फायदा िमला। पूव र भारत म वािण य- ापार क वृि से िब क व तु पर चंुगी लगा सकते थे िजससे सेना के खच के िलये धन जुटाया जा सकता था।

    ● मगध क दोन ही राजधािनयाँ राजगीर एव ंपाटिलपु साम रक दृि से अ यिधक मह वपूण थान पर थ । राजगीर पाँच पहािड़य क शंृखला से िघरा आ था। त कालीन समय म तोप का आिव कार न होने से राजगीर जैसे दुग को तोड़ना आसान नह था।

    ● राजधानी पाटिलपु गंगा, गंडक और सोन न दय के संगम पर थी। िजससे थोड़ी दूर घाघरा नदी भी गंगा से िमलती थी। यहाँ से सभी दशा म संचार संबंध कायम करना आसान था। ाक-औ ोिगक दन म जब यातायात म क ठनाइयाँ थ तब सेना इ ह नदी माग से होकर पूरब, पि म, उ र एवं दि ण दशा म बढ़ती थी।

    ● मगध ऐसा पहला रा य था िजसने अपने पड़ोिसय के िव हािथय का बड़े पैमाने पर योग कया जो क पूवाचल से इनके पास प ँचते थे। इनका योग दुग को भेदने म, सड़क एवं अ य यातायात सुिवधा से रिहत देश और कछारी े म बखूबी कया जाता था।

    मगध उ थान के थम चरण म इसके शासक के योगदान क सीमा िन िलिखत प म व णत ह-ै ● मगध ने िबि बसार के शासनकाल म िविश थान ा कया। इसके ारा शु क गई िवजय व

    िव तार क नीित अशोक के क लग िवजय के साथ समा ई। इसने अंग देश पर अिधकार कर इसका शासन पु आजीवक को स प दया।

    ● िबि बसार ने वैवािहक संबंध के मा यम से कोसल, वैशाली के िल छिव एव ंपंजाब के म कुल के साथ बेहतर संबंध कायम कये।

    ● अवंित एव ंगांधार जैसे रा य के साथ िवजय एव ंकूटनीित के बल पर िबि बसार ने ईसा-पूव छठी सदी म सबसे शि शाली रा य कायम कर िलया।

    ● अजातश ुक िव तारवादी नीित एव ंउसके पु उदयभ ारा काशी, अंग एव ंवि य के मगध म िवलय से सा ा य काफ िव तृत हो गया।

    ● न द राजवंश ने िबि बसार एव ंअजातश ुके ारा डाली गई न व पर थम वृहत् सा ा य क थापना क ।

    िन कषत: मगध सा ा य के उदय के थम चरण म ि तीय चरण के समान ही भौगोिलक, आ थक इ या द कारक के साथ इसके शासक का अहम योगदान प रलि त होता है। ऐसे सा ा य के उदय म अवि थित एव ंयो य शासक एक-दूसरे के पूरक होते ह िजसक झलक दोन ही चरण म बखूबी देखने को िमलती है।

  • 13

    : ाचीन भारत म ेणी नगरीय जीवन म एक अ यंत मह वपूण सं था थी िजसन ेपेशेवर एव ं वजन दोन के म य एकजुटता बनाए रखन ेका काय कया। चचा क िजये।

    िव छेद ● कथन ाचीन भारत म ेिणय का पेशेवर एव ं वजन के म य एकजुटता बनाए रखने म योगदान से

    संबंिधत है। हल करन ेका दृि कोण

    ● ाचीन भारत म ेणी के िवषय म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● ेिणय के मह वपूण नगरीय सं था के प म दोन के म य एकजुटता बनाए रखने म इनके योगदान क

    चचा क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: ेिणयाँ अिधकांशतया एक ही वसाय करने वाले लोग के संगठन होते थे। ये नगरीय संरचना का शासन, िश प, उ ोग, ापार एव ंवािण य म अहम भूिमका अदा करते थे। िश प एवं उ ोग अनेक ेिणय म संग ठत होते थे। िशि पय एव ंबकर के अपने अलग-अलग संगठन थे। भूिम के अनुदान या खरीद-िब म इनक सहमित आव यक समझी जाती थी। ेिणय का मह वपूण नगरीय सं था के प म पेशेवर एव ं वजन दोन के म य एकजुटता बनाए रखने म

    योगदान क चचा िन िलिखत ह-ै ● िश पी, विणक एव ंिलिपक एक ही सं था म काय करते थे और व ेइस हैिसयत से नगर के काय का

    संचालन करते थे। को टवष िज़ले क शासिनक प रषद म मु य विणक, मु य ापारी एव ंमु य िश पी स मिलत थे।

    ● ेिणयाँ हर हालत म अपने सद य के मामल ेदेखती थ और ेणी के िनयम, कानून एव ंपरंपरा का उ लंघन करने वाल को सज़ा द ेसकती थ ।

    ● मृितय के अनुसार, ेिणय म एक ही वसाय करने वाले अनेक थान के लोग भी हो सकते थे ले कन इसम अिधकांशतया एक थान पर रहने वाले एव ंएक ही वसाय करने वाल ेलोग होते थे।

    ● इन ेिणय क एक कायसिमित भी होती थी िजसे मृितय म कायिच तक कहा गया ह ैजो अपनी ेणी के सद य का समय-समय पर माग-िनदशन करते थे।

    ● ेिणय के दािनय ने िनि त धनरािश अ यनीवी ( थायी पंूजी) के प म जमा क िजसका योग िविभ काय म कया जाता था। ये ेिणयाँ बक का भी काय करती थ ।

    उपयु िववरण के अनुसार ेिणयाँ पेशेवर एव ं वजन के बीच पर पर मामल को सुलझाने और उनक आव यकता को पूरा करने के िलये मह वपूण नगरीय सं था के प म काय करती थ । संभव ह ै क सामंती प ित क वृि के कारण आ मिनभर ामीण अथ व था का इन पर िवपरीत असर पड़ा हो।

  • 14

    : ‘‘गु काल म भूिमदान शासनप क भूिमका दोधारी तलवार जैसी तीत होती है।’’ आलोचना मक मू यांकन क िजये।

    िव छेद ● कथन गु काल म भूिमदान शासनप क सकारा मक एव ंनकारा मक भूिमका से जुड़ा आ

    हल करन ेका दृि कोण ● गु काल म भूिमदान शासनप के िवषय म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● गु काल म भूिमदान शासनप क सकारा मक एव ंनकारा मक भूिमका का उ लेख क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: भूिमदान का सबसे ाचीन अिभलेखीय माण पहली शती के एक सातवाहन अिभलेख म िमलता है िजसे गु युग म राजा का कत समझा जाने लगा। कुछ िव ान का मानना है क इस युग म रा य कमचा रय को वेतन के बदले म भूिमदान क था भी चल पड़ी थी िजससे ा आय ही उनका वेतन बन जाता था। गु काल म भूिमदान शासनप क सकारा मक एव ंनकारा मक भूिमका िन िलिखत प म व णत है- सकारा मक:

    ● भूिमदान से राजा को राज व, आतं रक सुर ा एव ं शासिनक व था के बंध के िलये य प से चितत नह होना पड़ता था।

    ● म य भारत के जनजातीय े म भूिमदान ा ा ण पुरोिहत ने ब त सारी परती ज़मीन को आबाद कराया और खेती क अ छी जानकारी चिलत क ।

    ● गु युग म जब कोई ज़मीन खरीदता था या दान म देता था तो उस भूिम क नाप-जोख, सीमा रेखा ब त प श द म क जाती थी।

    ● सामंत लोग सामा यत: राजा को आव यकता पड़ने पर सेना भी उपल ध कराते थे, अत: राजा अ य े के िवकास पर मह वपूण ढंग से यान दे सकता था।

    ● सामंत ारा अपने-अपने े के शासन, शासन, शांित व व था इ या द के बंध से गु शासक को मौय जैसी िवशाल नौकरशाही क आव यकता नह पड़ी होगी।

    नकारा मक: ● भूिमदान के अंतगत ा ण या उ ािधका रय को ज़मीन दान म देने से राजा वहा ँक जनता क

    सुर ा का दािय व भी याग देता था िजससे उ ह थानीय भूिमपितय के शोषण का िशकार होना पड़ता था।

    ● भूिमदान प म िश पी, ापारी आ द िविभ समुदाय के लोग हीत भूिम छोड़कर नह जा सकते थे। यह ि थित समृ ापार के आग े िच न है।

    ● भूिमदान से राजा क िनभरता राज व, आतं रक सुर ा, शांित एव ं व था इ या द मामल म सामंत पर हो जाती थी। इसका वीभ स प क के कमज़ोर होने पर सामंत ारा अपने आप को वतं घोिषत करने के प म देखने को िमलता है।

  • 15

    ● धा मक एव ंअ य उ े य से भूिमदान करने क प रपाटी के ज़ोर पकड़ने से आमदनी ब त घट गई िजससे गु रा य को िवशाल वेतनभोगी सेना के रख-रखाव म क ठनाई होने लगी।

    भूिमदान क था के अ ययन से प होता ह ै क क के सश होने तक ही यह था सुचा प से काय कर सकती थी। इस था म अ त निहत किमयाँ भी कम नह थ िज ह ने गु कालीन अथ व था के साथ-साथ अ य प को भी गंभीर प से भािवत कया। म ययुगीन भारत म दृि गोचर होने वाली राजनीितक एवं सामािजक दुबलता क न व इसी युग म पड़ चुक थी।

    : ऊपरी पुरापाषाण युग क समाि एव ंम यपाषाण युग क शु आत क अव था को अ यिधक मह वपूण

    चरण य माना जाता ह?ै वणन क िजये। िव छेद ● कथन ऊपरी पुरापाषाण युग के अंत एव ंम यपाषाण युग क शु आत क अव था को अ यिधक मह वपूण

    चरण मानने से संबंिधत है। हल करन ेका दृि कोण

    ● ऊपरी पुरापाषाण एव ंम यपाषाण युग को प करते ए प रचय िलिखये। ● ऊपरी पुरापाषाण युग का अंत एव ंम यपाषाण युग क शु आत क अव था के मह व के िवषय म िलिखये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: ऊपरी पुरापाषाण का अंत 10000 ई.पू. के आस-पास िहमयुग के अंत के साथ आ। तरयुगीन सं कृित म 9000 ई.पू. म म यवत अव था क शु आत ई जो म यपाषाण युग कहलाता है। इसके अंत एव ंशु आत क अव था िविभ तर पर मह वपूण प रवतन का कारक िस ई। इसने पेड़-पौध एव ंजीव-ज तु को दीघकािलक प से भािवत कया। ऊपरी पुरापाषाण एव ंम यपाषाण युग क सं मणकालीन अव था का मह व िन िलिखत प म व णत ह-ै

    ● िहमयुग के अंत के साथ ही जलवायु गम एव ं शु क हो गई िजससे मानव के िलये नवीन अनुकूलन आव यक हो गया।

    ● इस प रवतन से पेड़-पौध म प रवतन आ और साथ ही मानव के िलये नए े क तरफ अ सर होना भी संभव आ।

    ● प रणाम व प मौसमी जल ोत के सूखने से जीव-जंतु दि ण या पूव क तरफ वास कर गए जहाँ वषा के कारण घनी वन पित बनी रहती थ ।

    ● मनु य क बढ़ी ई जनसं या और जलवायु प रवतन के ाकृितक दबाव के कारण मनु य क छोटी-छोटी टोिलय को काफ गितशील रहना पड़ता था।

    ● इन प रवतन क शंृखला के साथ समायोजन क आव यकता के अंतगत सबसे मौिलक प रवतन ेपा तकनीक के िवकास के यास म आया, जो िन य ही एक महान तकनीक ांित थी।

    ● तकनीक के िवकास के यास का उ े य सुन यता को बढ़ाकर इसे सव म लाभ के िलये उपयोग म लाकर कायकुशलता के िहत को सुिनि त करना था।

  • 16

    ● इन प रवतन ने म यपाषाण युग के लोग को आखेटक एव ंपशुपालक के प म िवकिसत होने म मह वपूण सहायता क ।

    िन कषत: इस अव था म होने वाल ेजलवायवीय प रवतन ने वन पितय के साथ-साथ जीव-ज तु को भी गंभीरतापूवक भािवत कया। इस अव था के प ात् यानी क 9000 ई.पू. से जलवायु म कोई बड़ा प रवतन घ टत नह आ है।

    : संगमयुगीन समाज तथा अथ व था के व प क चचा क िजये। िव छेद ● कथन संगमयुगीन समाज तथा अथ व था के व प क चचा से संबंिधत है।

    हल करन ेका दृि कोण ● संगम युग के संदभ म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● संगमयुगीन समाज तथा अथ व था के व प क चचा क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: संगम युग के दौरान तिमल देश पर चोल, चेर और पां तीन राजवंश का शासन था। संगम तिमल किवय का संघ या स मलेन था जो कसी सामंत या राजा के आ य म आयोिजत होता था। संगम पां के शाही संर ण के अंतगत िवकिसत आ। संगम सािह य से राजनीितक जीवन, रा य के गठन एव ंराजनीितक गितिविधय के िवषय म भले ही यथे जानकारी न िमलती हो ले कन इससे सामािजक, धा मक एव ंआ थक जीवन पर पया काश पड़ता है। संगमयुगीन समाज एव ंअथ व था का व प िन िलिखत प से व णत ह-ै

    ● तोलकाि पयम अरासर (Arasar), अ थानर (Anthanar), वेिनगर (Vanigar) और वे लालर (Vellalar) चार जाितय को संद भत करता है। शासक वग को अरासर कहा जाता था, वेिनगर ारा ापार एव ं वािण य का संचालन कया जाता था, अ थानर ने राजनीित और धम म मह वपूण

    भूिमका िनभाई। ● आरंिभक तिमल संगम सािह य म भी गाँव म रहने वाले िविभ वग के लोग का उ लेख ह,ै

    वे लालर या बड़े जम दार; हलवाहा या उणवर (Uzhavars) और दास अ दमई नैर कडौिसयार (Adimai)।

    ● अ य आ दवासी समूह, जैसे-परतावर, पानार, आइनेर, कादंबर, मारवाड़ और पुलाइयार थे, जो संगम समाज म भी पाए गए। ाचीन आ दम जनजाितयाँ, जैसे-थॉडस (Thodas), इ लास (Irulas), नागा (Nagas) और वेदार (Vedars) इस अविध म यहा ँरहती थ ।

    ● तोलकाि पयम म भूिम का पाँच- तरीय िवभाजन-कु जी/ Kurinji (पहाड़ी), मु ल/ै Mullai (देहाती), म दम/ Marudam (कृिष), नेथल/ Neithal (तटीय) और पालै/ Palai (रेिग तान) के प म कया गया है। इसी के आधार पर संबंिधत े म रहने वाले लोग अपना मु य वसाय करते थे।

  • 17

    ● संगम युग के लोग का मु य वसाय कृिष काय था। चेर देश म कटहल फल और काली िमच िस थे, जब क धान चोल और पां देश म मु य फसल थी।

    ● संगम काल के ह तिश प लोकि य थे िजनम बुनाई, धातु का काम और बढ़ईिगरी, जहाज िनमाण तथा मोितय , प थर एव ंहाथी दांत का उपयोग करके गहने बनाना सि मिलत है। कपास और रेशम के कपड़ क कताई और बुनाई ने उ गुणव ा को ा कया।

    ● आंत रक एव ं िवदेशी ापार दोन अ छी तरह से संग ठत थे और इ ह संगम युग म ती गित से संचािलत कया जाता था। दि ण भारत एव ंयूनानी रा य के बीच बा ापार कया जाता था। रोमन सा ा य के भु व के बाद, रोमन ापार को मह व िमला।

    ● सूती कपड़े, मसाल ेजैसे- काली िमच, अदरक, इलायची, दालचीनी और ह दी, हाथी दांत के उ पाद, मोती एवं क मती प थर मु य िनयातक व तुए ँथ । सोना, घोड़े और मीठी म दरा मु य आयातक व तुए ँथ ।

    संगम युग कृिष, िश प एव ं ापार-वािण य क दृि से काफ समृ था, यहा ँ के समाज पर भौगोिलक एवं आ थक गितिविधय का मह वपूण भाव प रलि त होता है। हालाँ क, तीसरी सदी के अंत म संगम युग म धीरे धीरे िगरावट देखी गई। इसके प ात् कल ने तिमल देश पर क जा कर लगभग ढाई शतक तक राज कया।

    : सुदूर दि ण के रा य के उदय म उ र भारत के योगदान को आप कस सीमा तक वीकार करत ेह? इस कथन से आप कहा ँतक सहमत ह क समकालीन समय म दि ण के पास उ र को देन ेके िलय ेकुछ भी नह था? मू यांकन क िजये।

    िव छेद ● पहला भाग सुदूर दि ण म रा य के उदय म उ र भारत के योगदान क सीमा से संबंिधत है। ● दूसरा भाग समकालीन समय म दि ण भारत ारा उ र भारत के िलये कये गए योगदान क सीमा से

    संबंिधत है। हल करन ेका दृि कोण

    ● सुदूर दि ण म रा य के उदय क पृ भूिम के साथ प रचय िलिखये। ● सुदूर दि ण म रा य के उदय म उ र भारत के योगदान क सीमा का उ लेख क िजये। ● समकालीन समय म दि ण भारत ारा उ र भारत के िलये कये गए योगदान क सीमा का उ लेख

    क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: ईसा-पूव दूसरी सदी तक भारतीय ाय ीप म ऐितहािसक युग क मुख िवशेषताए ँमहापाषािणक लोग के लोह ेके योग से प रिचत होने के बावजूद नह पाई जाती ह। हालाँ क, उ र एव ंदि ण के बीच ईसा-पूव दूसरी सदी से सां कृितक एव ंआ थक संबंध क थापना बड़े मह व क हो गई िजसने दि ण म रा य के उदय म अपना अहम योगदान दया।

  • 18

    सुदूर दि ण म रा य के उदय म उ र भारत के योगदान क सीमा िन िलिखत प म व णत ह-ै ● उ र भारत से संपक के चलते कृिष णाली के िवकास से धान क खेती ापक प से होने लगी

    फल व प, समु त कृिष से ि थर आ थक जीवन एवं ाम का उदय संभव आ। ाम और नगर म कृिष तथा ापार पर आधा रत ि थर जीवन से समाज म वग करण क या का आरंभ आ।

    ● उपयु भाव के चलते◌ ेसुदूर दि ण म राजनीितक जीवन भी िवकिसत आ और राज व था का प उभरने लगा जो शि शाली रा य के उदय क आधारिशला िस ई।

    ● ब त सारे ापारी एव ंिवजेता लोग और जैन, बौ तथा कुछ ा ण धम चारक उ र से ाय ीप के छोर तक प ँचे िजससे इनके साथ आई भौितक सं कृित के ब त से त व का महापाषािणक लोग से संपक आ।

    ● उ र से◌ े संपक के प रणाम व प ही महापाषािणक लोग ने धान क रोपनी क प रपाटी को अपनाया, अनेक गाँव और नगर बसाए तथा इनके बीच सामािजक वग बन गए।

    ● अशोक क उपािध ‘देव का यारा’ को एक तिमल राजा ने भी हण कया जो क धम एव ंसं कृित के सार का प रणाम था। जैन , बौ एव ंआजीवक तथा इनके अनुयाियय ने इसके सार का माग श त कया था।

    ● समकालीन समय म दि ण भारत ारा उ र भारत के िलये कये गए योगदान क सीमा िन िलिखत प म व णत है-

    ● दि ण क तरफ जाने वाला रा ता अथात दि णापथ उ र के लोग के िलये ब त ही लाभदायक था इससे उ ह सोना, मोती और िविवध र ा होते थे।

    ● तिमल सं कृित के भी ब त से त व उ र म फैल,े अत: ा ण धम संबंधी ंथ म कावेरी क गणना देश क पिव न दय के प म देखने को िमलती है।

    ● महापाषाण से संबंिधत थल पर रोमन सा ा य एव ंमगध टाइप क मु ाए ँआतं रक एवं बा ापार क ापक समृि को दशाती ह। अत: इस ापार म उ र को भी दि ण से मह वपूण लाभ

    िमलता था। उपयु िववरण उ र एव ं दि ण भारत के बीच िविभ तर पर पर पर आदान- दान के भरपूर सा य तुत करते ह। दोन ही े ने अपनी-अपनी िवशेषता के अनु प अपना योगदान दया। जनपद टाइप या

    मगध टाइप क आहत मु ा से उ र-दि ण के ापार का पता चलता है।

  • 19

    : हष न केवल िव ान का आ यदाता था बि क वय ंभी उ कृ सािह यकार था। ट पणी क िजये। िव छेद ● कथन हष के िव ान का आ यदाता एव ंएक उ कृ सािह यकार होने से संबंिधत है।

    हल करन ेका दृि कोण ● हष के िवषय म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● हष के िव ान का आ यदाता एव ंएक उ कृ सािह यकार होने क जाँच क िजये। ● उिचत िन कष िलिखये।

    उ र: गु वंश के पतन के बाद उ र-पि मी भारत लगभग आध ेदजन सामंत राजा के हाथ म चला गया। इ ह म से एक हषवधन ने धीरे-धीरे अ य सामंत पर अपनी भुता कायम कर एक सश सा ा य के उदय का माग श त कया। हष ने शासन व शासन को सुदृढ़ बनाने के यास के साथ-साथ न केवल िव ान को आ य दया बि क वयं भी उसने कई रचनाए ँक िजनको हष ारा रचे जाने क िव सनीयता को लेकर म यकालीन लेखक ारा भी खड़े कये गए ह। हष के िव ान का आ यदाता एव ंएक उ कृ सािह यकार होने के प व िवप म तक िन िलिखत ह-

    ● बाणभ हष का दरबारी किव था िजसने हषच रत नामक पु तक क रचना क इससे हष के शासनकाल के आरंिभक जीवन क जानकारी िमलती है।

    ● चीनी या ी वेनसांग ईसा क सातव सदी म भारत आया और इसने हष के दरबार म कई वष तीत कये। वेनसांग ने हष के दरबार एव ंउस समय के जनजीवन का सजीव वणन कया है जो फा ान के िववरण से कह अिधक िव तृत एव ंिव सनीय है।

    ● हष ने महायान के िस ांत के चार के िलये क ौज म िवशाल स मलेन आयोिजत कया िजसम शा ाथ के िलये िविभ स दाय के कई हज़ार पुरोिहत भी जमा ए।

    ● वेनसांग के अनुसार, नालंदा िव िव ालय का भरण-पोषण 100 गाँव के राज व से होता था। यहा ँपर बौ िभ ु को महायान सं दाय के बौ दशन क िश ा भी दी जाती थी। इस कार हष के काल म नालंदा म एक िवशाल बौ िबहार था।

    ● हष को ि यद शका, र ावली एव ंनागानंद नाटक के रचियता के प म भी याद कया जाता है। उसे बाणभ ने अ भुत किव व ितभा संप कहा ह ैऔर बाद के लेखक ने तो सािह यकार-स ाट तक क सं ा दी है।

    ● हालाँ क, म यकाल के कई लेखक यह िव ास नह करते ह क ये रचनाएँ हष ारा वयं रची गई ह। कहा जाता ह ै क धावक नामक किव ने उससे पुर कार लेकर ये नाटक िलखे ह।

    िन कष प म संभव ह ै क हष ने भी कुछ रचनाए ँक ह । उपयु िववरण से प होता ह ै क हष ने अपने रा य म िव ान को आ य दया था। कहावत है क राजा केवल नीम-हक म, सािह यकार होते ह। म यकाल म भी शासक क याित म वृि के िलये का -कौशल सिहत हर कार के गुण आरोिपत कर दय ेजाते थे। इसका उ े य श ुक दृि म शासक क मज़बूत ि थित को दशाना होता था।

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    : आय क उ पि से जुड़ी िविभ अवधारण का वणन क िजये। या आय लोग भारत के मूल िनवासी थ?े िव छेद ● कथन आय क उ पि से जुड़ी िविभ अवधारणा के वणन से संबंिधत है। ● यह आय का भारत के मूल िनवासी होने या न होने के संदभ म आपके तक से जुड़ा आ है।

    हल करन ेका दृि कोण ● आय के िवषय म संि उ लेख के साथ प रचय िलिखये। ● आय क उ पि से जुड़ी िविभ अवधारणा के प -िवप के वण�

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