िवरिचत रामचिरतमानस · 2016. 1. 15. · ramcharitmanas is written...

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रामचिरतमानस - 1 - लंकाकांड गोःवामी तुलसीदास िवरिचत रामचिरतमानस लंकाकाड Sant Tulsidas’s Rāmcharitmānas www.swargarohan.org Lankā Kānd

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  • रामचिरतमानस - 1 - लकंाकांड

    गोःवामी तुलसीदास िवरिचत

    रामचिरतमानस लकंाकाण्ड

    Sant Tulsidas’s

    Rāmcharitmānas

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    Lankā Kānd

  • रामचिरतमानस - 2 - लकंाकांड

    RAMCHARITMANAS : AN INTRODUCTION

    Ramayana, considered part of Hindu Smriti, was written originally in Sanskrit by

    Sage Valmiki (3000 BC). Contained in 24,000 verses, this epic narrates Lord Ram of

    Ayodhya and his ayan (journey of life). Over a passage of time, Ramayana did not remain

    confined to just being a grand epic, it became a powerful symbol of India's social and

    cultural fabric. For centuries, its characters represented ideal role models - Ram as an ideal

    man, ideal husband, ideal son and a responsible ruler; Sita as an ideal wife, ideal daughter

    and Laxman as an ideal brother. Even today, the characters of Ramayana including Ravana

    (the enemy of the story) are fundamental to the grandeur cultural consciousness of India.

    Long after Valmiki wrote Ramayana, Goswami Tulsidas (born 16th century) wrote

    Ramcharitamanas in his native language. With the passage of time, Tulsi's Ramcharitmanas,

    also known as Tulsi-krita Ramayana, became better known among Hindus in upper India

    than perhaps the Bible among the rustic population in England. As with the Bible and

    Shakespeare, Tulsi Ramayana’s phrases have passed into the common speech. Not only are

    his sayings proverbial: his doctrine actually forms the most powerful religious influence in

    present-day Hinduism; and, though he founded no school and was never known as a Guru

    or master, he is everywhere accepted as an authoritative guide in religion and conduct of

    life.

    Tulsi’s Ramayana is a novel presentation of the great theme of Valmiki, but is in no

    sense a mere translation of the Sanskrit epic. It consists of seven books or chapters namely

    Bal Kand, Ayodhya Kand, Aranya Kand, Kiskindha Kand, Sundar Kand, Lanka Kand and

    Uttar Kand containing tales of King Dasaratha's court, the birth and boyhood of Rama and

    his brethren, his marriage with Sita - daughter of Janaka, his voluntary exile, the result of

    Kaikeyi's guile and Dasaratha's rash vow, the dwelling together of Rama and Sita in the

    great central Indian forest, her abduction by Ravana, the expedition to Lanka and the

    overthrow of the ravisher, and the life at Ayodhya after the return of the reunited pair.

    Ramcharitmanas is written in pure Avadhi or Eastern Hindi, in stanzas called chaupais,

    broken by 'dohas' or couplets, with an occasional sortha and chhand.

    Here, you will find the text of Lanka Kand, 6th chapter of Ramcharitmanas.

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    ☼ ☼ ☼ ☼ ☼

  • रामचिरतमानस - 3 - लकंाकांड

    ौीगणेशाय नमः

    ौीरामचिरतमानस ष सोपान

    लंकाकाण्ड

    ोक

    रामं कामािरसे यं भवभयहरणं कालम ेभिसंहं योगीन्िं ानग यं गुणिनिधमिजतं िनगुणं िनिवकारम । मायातीत ं सुरेशं खलवधिनरतं ॄ वनृ्दैकदेवं वन्दे कन्दावदातं सरिसजनयनं देवमुव श पम ॥१॥

    शखेंन् ाभमतीवसुन्दरतनुं शादलचमा बरं ू काल यालकरालभूषणधरं गंगाशशांकिूयम । काशीशं किलक मषौघशमनं क याणक पिमं ु नौमी यं िगिरजापितं गुणिनिधं कन्दपहं श करम ॥२॥

    यो ददाित सतां श भुः कैव यमिप दलभमु । खलानां दण्डकृ ोऽसौ श करः श ं तनोतु मे ॥३॥

    दोहा

    लव िनमेष परमानु जुग बरष कलप सर चंड । भजिस न मन ते ह राम को कालु जासु कोदंड ॥

    सोरठा िसंधु बचन सुिन राम सिचव बोिल ूभु अस कहेउ । अब िबलंबु के ह काम करह सेत ु उतरै कटकु ॥ु सुनह भानुकुल केतु जामवंत कर जोिर कहु । नाथ नाम तव सेत ु नर च ढ़ भव सागर तिर हं ॥

    यह लघु जलिध तरत कित बारा । अस सुिन पुिन कह पवनकुमारा ॥ ूभु ूताप बड़वानल भार । सोषेउ ूथम पयोिनिध बार ॥१॥ तब िरपु नार दन जल धारा । भरेउ बहोिर भयउ ते हं खारा ॥ सुिन अित उकुित पवनसुत केर । हरषे किप रघुपित तन हेर ॥२॥ जामवंत बोले दोउ भाई । नल नील ह सब कथा सुनाई ॥ राम ूताप सुिमिर मन माह ं । करह सेतु ूयास कछु नाह ं ु ॥३॥

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    बोिल िलए किप िनकर बहोर । सकल सुनह िबनती कछु मोर ॥ ु

  • रामचिरतमानस - 4 - लकंाकांड

    राम चरन पंकज उर धरहू । कौतकु एक भालु किप करह ू ॥४॥ धावहु मकट िबकट ब था । आनह िबटप िगिरन्ह के जूथा ॥ ु सुिन किप भालु चले किर हहाू । जय रघुबीर ूताप समूहा ॥५॥

    दोहा

    अित उतंग िगिर पादप लील हं ले हं उठाइ । आिन दे हं नल नील ह रच हं ते सेतु बनाइ ॥१॥

    सैल िबसाल आिन किप देह ं । कंदक इव नल नील तेु लेह ं ॥ देिख सेतु अित सुंदर रचना । िबहिस कृपािनिध बोले बचना ॥१॥ परम र य उ म यह धरनी । म हमा अिमत जाइ न हं बरनी ॥ किरहउँ इहाँ संभ ु थापना । मोरे दयँ परम कलपना ॥२॥ सुिन कपीस बह दत पठाएु ू । मुिनबर सकल बोिल लै आए ॥ िलंग थािप िबिधवत किर पूजा । िसव समान िूय मो ह न दजा ू ॥३॥ िसव िोह मम भगत कहावा । सो नर सपनेहँ मो ह न पावाु ॥ संकर िबमुख भगित चह मोर । सो नारक मूढ़ मित थोर ॥४॥

    दोहा

    संकर िूय मम िोह िसव िोह मम दास । ते नर कर ह कलप भिर धोर नरक महँ बास ु ॥२॥

    जे रामेःवर दरसनु किरह हं । ते तनु तिज मम लोक िसधिरह हं ॥ जो गंगाजलु आिन चढ़ाइ ह । सो साजु य मुि नर पाइ ह ॥१॥ होइ अकाम जो छल तिज सेइ ह । भगित मोिर ते ह संकर देइ ह ॥ मम कृत सेतु जो दरसनु किरह । सो िबनु ौम भवसागर तिरह ॥२॥ राम बचन सब के िजय भाए । मुिनबर िनज िनज आौम आए ॥ िगिरजा रघुपित कै यह र ती । संतत कर हं ूनत पर ूीती ॥३॥ बाँधा सेत ु नील नल नागर । राम कृपाँ जसु भयउ उजागर ॥ बूड़ हं आन ह बोर हं जेई । भए उपल बो हत सम तेई ॥४॥ म हमा यह न जलिध कइ बरनी । पाहन गुन न किपन्ह कइ करनी ॥५॥

    दोहा

    ौी रघुबीर ूताप ते िसंधु तरे पाषान । ते मितमंद जे राम तिज भज हं जाइ ूभु आन ॥३॥

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    बाँिध सेतु अित सु ढ़ बनावा । देिख कृपािनिध के मन भावा ॥

  • रामचिरतमानस - 5 - लकंाकांड

    चली सेन कछु बरिन न जाई । गज हं मकट भट समुदाई ॥१॥ सेतुबंध ढग च ढ़ रघुराई । िचतव कृपाल िसंधु बहताईु ॥ देखन कहँ ूभु क ना कंदाु । ूगट भए सब जलचर बृंदा ॥२॥ मकर नब नाना झष ब्याला । सत जोजन तन परम िबसाला ॥ अइसेउ एक ितन्ह ह जे खाह ं । एकन्ह क डर तेिप डेराह ं ॥३॥ ूभु ह िबलोक हं टर हं न टारे । मन हरिषत सब भए सुखारे ॥ ितन्ह क ओट न देिखअ बार । मगन भए हिर प िनहार ॥४॥ चला कटकु ूभ ु आयसु पाई । को क ह सक किप दल िबपुलाई ॥५॥

    दोहा

    सेतुबंध भइ भीर अित किप नभ पंथ उड़ा हं । अपर जलचरिन्ह ऊपर च ढ़ च ढ़ पार ह जा हं ॥४॥

    अस कौतुक िबलो क ौ भाई । िबहँिस चले कृपाल रघुराई ॥ सेन स हत उतरे रघुबीरा । क ह न जाइ किप जूथप भीरा ॥१॥ िसंधु पार ूभु डेरा क न्हा । सकल किपन्ह कहँ आयसु द न्हा ॥ु खाह जाइ फल मूल सुहाएु । सुनत भालु किप जहँ तहँ धाए ॥२॥ सब त फरे राम हत लागी । िरतु अ कुिरतु काल गित यागी ॥ खा हं मधुर फल बटप हलाव हं । लंका सन्मुख िसखर चलाव हं ॥३॥ जहँ कहँ फरत िनसाचर पाव हंु । घेिर सकल बहु नाच नचाव हं ॥ दसनिन्ह का ट नािसका काना । क ह ूभु सुजसु दे हं तब जाना ॥४॥ िजन्ह कर नासा कान िनपाता । ितन्ह रावन ह कह सब बाता ॥ सुनत ौवन बािरिध बंधाना । दस मुख बोिल उठा अकुलाना ॥५॥

    दोहा

    बां यो बनिनिध नीरिनिध जलिध िसंधु बार स । स य तोयिनिध कंपित उदिध पयोिध नद स ॥५॥

    िनज िबकलता िबचािर बहोर । िबहँिस गयउ मह किर भय भोर ॥ मंदोदर ं सुन्यो ूभु आयो । कौतुकह ं पाथोिध बँधायो ॥१॥ कर ग ह पित ह भवन िनज आनी । बोली परम मनोहर बानी ॥ चरन नाइ िस अंचलु रोपा । सुनह बचन िपय पिरहिरु कोपा ॥२॥ नाथ बय क जे ताह स । बुिध बल स कअ जीित जाह स ॥ तु ह ह रघुपित ह अंतर कैसा । खलु ख ोत दनकर ह जैसा ॥३॥ अितबल मधु कैटभ जे हं मारे । महाबीर दितसुत संघारे ॥

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    जे हं बिल बाँिध सहजभुज मारा । सोइ अवतरेउ हरन म ह भारा ॥४॥

  • रामचिरतमानस - 6 - लकंाकांड

    तासु िबरोध न क िजअ नाथा । काल करम िजव जाक हाथा ॥

    दोहा राम ह सौिप जानक नाइ कमल पद माथ । सुत कहँ राज समिप बन जाइ भिजअ रघुनाथ ु ॥६॥

    नाथ द नदयाल रघुराई । बाघउ सनमुख गएँ न खाई ॥ चा हअ करन सो सब किर बीते । तु ह सुर असुर चराचर जीते ॥१॥ संत कह हं अिस नीित दसानन । चौथपन जाइ ह नपृ कानन ॥ तासु भजन क िजअ तहँ भता । जो कता पालक संहता ॥२॥ सोइ रघुवीर ूनत अनुरागी । भजह नाथ ममता सब यागी ॥ ु मुिनबर जतनु कर हं जे ह लागी । भूप राजु तिज हो हं िबरागी ॥३॥ सोइ कोसलधीस रघुराया । आयउ करन तो ह पर दाया ॥ ज िपय मानह मोर िसखावनु । सुजसु होइ ितहँ पुर अित पावन ु ॥४॥

    दोहा

    अस क ह नयन नीर भिर ग ह पद कंिपत गात । नाथ भजह रघुनाथ ह अचल होइ अ हवात ु ॥७॥

    तब रावन मयसुता उठाई । कहै लाग खल िनज ूभुताई ॥ सुनु तै िूया बथृा भय माना । जग जोधा को मो ह समाना ॥१॥ ब न कुबेर पवन जम काला । भुज बल िजतेउँ सकल दगपाला ॥ देव दनुज नर सब बस मोर । कवन हेतु उपजा भय तोर ॥२॥ नाना िबिध ते ह कहेिस बुझाई । सभाँ बहोिर बैठ सो जाई ॥ मंदोदर ं हदयँ अस जाना । काल बःय उपजा अिभमाना ॥३॥ सभाँ आइ मंिऽन्ह त ह बूझा । करब कवन िबिध िरपु स जूझा ॥ कह हं सिचव सुनु िनिसचर नाहा । बार बार ूभ ु पूछह काहा ु ॥४॥ कहह कवन भय किरअ िबचाराु । नर किप भालु अहार हमारा ॥५॥

    दोहा

    सब के बचन ौवन सुिन कह ूहःत कर जोिर । िनित िबरोध न किरअ ूभु मिऽंन्ह मित अित थोिर ॥८॥

    कह हं सिचव सठ ठकुरसोहाती । नाथ न पूर आव ए ह भाँती ॥ बािरिध नािघ एक किप आवा । तासु चिरत मन महँ सबु गावा ु ॥१॥

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    छुधा न रह तु ह ह तब काहू । जारत नग कस न धिर खाह ॥ ू

  • रामचिरतमानस - 7 - लकंाकांड

    सुनत नीक आग दख पावाु । सिचवन अस मत ूभु ह सुनावा ॥२॥ जे हं बार स बँधायउ हेला । उतरेउ सेन समेत सुबेला ॥ सो भनु मनुज खाब हम भाई । बचन कह हं सब गाल फुलाई ॥३॥ तात बचन मम सुन ु अित आदर । जिन मन गुनह मो ह किर कादर ॥ ु िूय बानी जे सुन हं जे कहह ं । ऐसे नर िनकाय जग अहह ं ॥४॥ बचन परम हत सुनत कठोरे । सुन हं जे कह हं ते नर ूभु थोरे ॥ ूथम बसीठ पठउ सुनु नीती । सीता देइ करह पुिन ूीती ु ॥५॥

    दोहा

    नािर पाइ फिर जा हं ज तौ न बढ़ाइअ रािर । ना हं त सन्मुख समर म ह तात किरअ ह ठ मािर ॥९॥

    यह मत ज मानह ूभु मोराु । उभय ूकार सुजसु जग तोरा ॥ सुत सन कह दसकंठ िरसाई । अिस मित सठ के हं तो ह िसखाई ॥१॥ अबह ं ते उर संसय होई । बेनुमूल सुत भयहु घमोई ॥ सुिन िपतु िगरा प ष अित घोरा । चला भवन क ह बचन कठोरा ॥२॥ हत मत तो ह न लागत कैस । काल िबबस कहँ भेषज जैस ॥ ु सं या समय जािन दससीसा । भवन चलेउ िनरखत भुज बीसा ॥३॥ लंका िसखर उपर आगारा । अित िबिचऽ तहँ होइ अखारा ॥ बैठ जाइ तेह मं दर रावन । लागे कंनर गुन गन गावन ॥४॥ बाज हं ताल पखाउज बीना । नृ य कर हं अपछरा ूबीना ॥५॥

    दोहा

    सुनासीर सत सिरस सो संतत करइ िबलास । परम ूबल िरपु सीस पर त िप सोच न ऽास ॥१०॥

    इहाँ सुबेल सैल रघुबीरा । उतरे सेन स हत अित भीरा ॥ िसखर एक उतंग अित देखी । परम र य सम सुॅ िबसेषी ॥१॥ तहँ त कसलय सुमन सुहाए । लिछमन रिच िनज हाथ डसाए ॥ ता पर िचर मदृल मगृछालाु । तेह ं आसान आसीन कृपाला ॥२॥ ूभु कृत सीस कपीस उछंगा । बाम द हन दिस चाप िनषंगा ॥ दहँ कर कमल सुधारत बानाु ु । कह लंकेस मंऽ लिग काना ॥३॥ बड़भागी अंगद हनुमाना । चरन कमल चापत िबिध नाना ॥ ूभु पाछ लिछमन बीरासन । क ट िनषंग कर बान सरासन ॥४॥

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    दोहा

  • रामचिरतमानस - 8 - लकंाकांड

    ए ह िबिध कृपा प गुन धाम रामु आसीन । धन्य ते नर ए हं यान जे रहत सदा लयलीन ॥११(क)॥ पूरब दसा िबलो क ूभ ु देखा उ दत मंयक । कहत सब ह देखहु सिस ह मगृपित सिरस असंक ॥११(ख)॥

    पूरब दिस िगिरगुहा िनवासी । परम ूताप तेज बल रासी ॥ म नाग तम कंुभ िबदार । सिस केसर गगन बन चार ॥१॥ िबथुरे नभ मुकुताहल तारा । िनिस सुंदर केर िसंगारा ॥ कह ूभु सिस महुँ मेचकताई । कहह काह िनज िनज मित भाई ु ॥२॥ कह सुग़ीव सुनह रघुराईु । सिस महँ ूगट भूिमु कै झाँई ॥ मारेउ राह सिस ह कह कोईु । उर महँ पर ःयामता सोई ॥३॥ कोउ कह जब िबिध रित मुख क न्हा । सार भाग सिस कर हिर लीन्हा ॥ िछि सो ूगट इंद उर माह ंु । ते ह मग देिखअ नभ पिरछाह ं ॥४॥ ूभु कह गरल बंध ु सिस केरा । अित िूय िनज उर द न्ह बसेरा ॥ िबष संजुत कर िनकर पसार । जारत िबरहवंत नर नार ॥५॥

    दोहा

    कह हनुमंत सुनह ूभु सिसु तु हारा िूय दास । तव मूरित िबधु उर बसित सोइ ःयामता अभास ॥१२(क)॥

    नवान्हपारायण सातवाँ िवौाम

    पवन तनय के बचन सुिन िबहँसे रामु सुजान । दि छन दिस अवलो क ूभु बोले कृपा िनधान ॥१२(ख)॥

    देखु िबभीषन दि छन आसा । घन घंमड दािमिन िबलासा ॥ मधुर मधुर गरजइ घन घोरा । होइ बिृ जिन उपल कठोरा ॥१॥ कहत िबभीषन सुनह कृपालाु । होइ न त ड़त न बािरद माला ॥ लंका िसखर उपर आगारा । तहँ दसकंघर देख अखारा ॥२॥ छऽ मेघडंबर िसर धार । सोइ जनु जलद घटा अित कार ॥ मंदोदर ौवन ताटंका । सोइ ूभ ु जनु दािमनी दमंका ॥३॥ बाज हं ताल मदंृग अनूपा । सोइ रव मधुर सुनहु सुरभूपा ॥ ूभु मुसुकान समुिझ अिभमाना । चाप चढ़ाइ बान संधाना ॥४॥

    दोहा

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    छऽ मुकुट ताटंक तब हते एकह ं बान ।

  • रामचिरतमानस - 9 - लकंाकांड

    सबक देखत म ह परे मरम ु न कोऊ जान ॥१३(क)॥ अस कौतुक किर राम सर ूिबसेउ आइ िनषंग । रावन सभा ससंक सब देिख महा रसभंग ॥१३(ख)॥

    कंप न भूिम न म त िबसेषा । अ स कछु नयन न देखा ॥ सोच हं सब िनज दय मझार । असगुन भयउ भयंकर भार ॥१॥ दसमुख देिख सभा भय पाई । िबहिस बचन कह जुगुित बनाई ॥ िसरउ िगरे संतत सुभ जाह । मुकुट परे कस असगुन ताह ॥२॥ सयन करह िनज िनज गहृ जाईु । गवने भवन सकल िसर नाई ॥ मंदोदर सोच उर बसेऊ । जब ते ौवनपूर म ह खसेऊ ॥३॥ सजल नयन कह जुग कर जोर । सुनह ूानपित िबनती मोर ॥ु कंत राम िबरोध पिरहरहू । जािन मनुज जिन हठ मन धरह ू ॥४॥

    दोहा

    िबःव प रघुबंस मिन करह बचन िबःवासुु । लोक क पना बेद कर अंग अंग ूित जासु ॥१४॥

    पद पाताल सीस अज धामा । अपर लोक अँग अँग िबौामा ॥ भकुृ ट िबलास भयंकर काला । नयन दवाकर कच घन माला ॥१॥ जासु यान अिःवनीकुमारा । िनिस अ दवस िनमेष अपारा ॥ ौवन दसा दस बेद बखानी । मा त ःवास िनगम िनज बानी ॥२॥ अधर लोभ जम दसन कराला । माया हास बाह दगपाला ॥ु आनन अनल अंबुपित जीहा । उतपित पालन ूलय समीहा ॥३॥ रोम रािज अ ादस भारा । अिःथ सैल सिरता नस जारा ॥ उदर उदिध अधगो जातना । जगमय ूभु का बह कलपना ु ॥४॥

    दोहा

    अहंकार िसव बुि अज मन सिस िच महान । मनुज बास सचराचर प राम भगवान ॥१५(क)॥ अस िबचािर सुनु ूानपित ूभु सन बय िबहाइ । ूीित करह रघुबीर पद ममु अ हवात न जाइ ॥१५(ख)॥

    िबहँसा नािर बचन सुिन काना । अहो मोह म हमा बलवाना ॥ नािर सुभाउ स य सब कहह ं । अवगनु आठ सदा उर रहह ं ॥१॥ साहस अनतृ चपलता माया । भय अिबबेक असौच अदाया ॥

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    िरपु कर प सकल त गावा । अित िबसाल भय मो ह सुनावा ॥२॥

  • रामचिरतमानस - 10 - लकंाकांड

    सो सब िूया सहज बस मोर । समुिझ परा ूसाद अब तोर ॥ जािनउँ िूया तोिर चतुराई । ए ह िबिध कहह मोिर ूभुताई ु ॥३॥ तव बतकह गूढ़ मगृलोचिन । समुझत सुखद सुनत भय मोचिन ॥ मंदोदिर मन महँ अस ठयऊु । िपय ह काल बस मितॅम भयऊ ॥४॥

    दोहा

    ए ह िबिध करत िबनोद बह ूात ूगट दसकंधु । सहज असंक लंकपित सभाँ गयउ मद अंध ॥१६(क)॥

    सोरठा

    फूलह फरइ न बेत जदिप सुधा बरष हं जलद । मू ख दयँ न चेत ज गुर िमल हं िबरंिच सम ॥१६(ख)॥

    इहाँ ूात जागे रघुराई । पूछा मत सब सिचव बोलाई ॥ कहह बेिग का किरअ उपाईु । जामवंत कह पद िस नाई ॥१॥ सुनु सब य सकल उर बासी । बुिध बल तेज धम गनु रासी ॥ मंऽ कहउँ िनज मित अनुसारा । दत पठाइअ बािलकुमारा ू ॥२॥ नीक मंऽ सब के मन माना । अंगद सन कह कृपािनधाना ॥ बािलतनय बुिध बल गुन धामा । लकंा जाह तात मम कामा ु ॥३॥ बहत बुझाइ तु ह ह का कहऊँु । परम चतुर म जानत अहऊँ ॥ काजु हमार तास ु हत होई । िरपु सन करेह बतकह सोई ु ॥४॥

    सोरठा

    ूभु अ या धिर सीस चरन बं द अंगद उठेउ । सोइ गुन सागर ईस राम कृपा जा पर करह ॥ु १७(क)॥ ःवयं िस सब काज नाथ मो ह आद दयउ । अस िबचािर जुबराज तन पुल कत हरिषत हयउ ॥१७(ख)॥

    बं द चरन उर धिर ूभुताई । अंगद चलेउ सब ह िस नाई ॥ ूभु ूताप उर सहज असंका । रन बाँकुरा बािलसतु बंका ॥१॥ पुर पैठत रावन कर बेटा । खेलत रहा सो होइ गै भटा ॥ बात हं बात करष ब ढ़ आई । जुगल अतुल बल पुिन त नाई ॥२॥ ते ह अंगद कहँ लात उठाईु । ग ह पद पटकेउ भूिम भवाँई ॥ िनिसचर िनकर देिख भट भार । जहँ तहँ चले न सक हं पुकार ॥३॥ एक एक सन मरमु न कहह ं । समुिझ तासु बध चुप किर रहह ं ॥

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    भयउ कोलाहल नगर मझार । आवा किप लंका जेह ं जार ॥४॥

  • रामचिरतमानस - 11 - लकंाकांड

    अब ध कहा किर ह करतारा । अित सभीत सब कर हं िबचारा ॥ िबनु पूछ मगु दे हं दखाई । जे ह िबलोक सोइ जाइ सुखाई ॥५॥

    दोहा

    गयउ सभा दरबार तब सुिमिर राम पद कंज । िसंह ठविन इत उत िचतव धीर बीर बल पुजं ॥१८॥

    तुरत िनसाचर एक पठावा । समाचार रावन ह जनावा ॥ सुनत िबहँिस बोला दससीसा । आनह बोिल कहाँ कर क सा ु ॥१॥ आयसु पाइ दत बह धाएू ु । किपकंुजर ह बोिल लै आए ॥ अंगद द ख दसानन बस । स हत ूान क जलिगिर जैस ॥२॥ भुजा िबटप िसर सृंग समाना । रोमावली लता जनु नाना ॥ मुख नािसका नयन अ काना । िगिर कंदरा खोह अनुमाना ॥३॥ गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा । बािलतनय अितबल बाँकुरा ॥ उठे सभासद किप कहँ देखीु । रावन उर भा बौध िबसेषी ॥४॥

    दोहा

    जथा म गज जूथ महँ पंचानन चिल जाइु । राम ूताप सुिमिर मन बैठ सभाँ िस नाइ ॥१९॥

    कह दसकंठ कवन त बदंर । म रघुबीर दत दसकंधर ॥ ू मम जनक ह तो ह रह िमताई । तव हत कारन आयउँ भाई ॥१॥ उ म कुल पुलिःत कर नाती । िसव िबरंिच पूजेह बह भाँती ॥ु ु बर पायह क न्हेह सब काजाु ु । जीतेह लोकपाल सब राजाु ॥२॥ नपृ अिभमान मोह बस कंबा । हिर आिनह सीता जगदंबा ॥ ु अब सुभ कहा सुनह तु ह मोराु । सब अपराध छिम ह ूभु तोरा ॥३॥ दसन गहह तनृ कंठ कुठारु । पिरजन स हत संग िनज नार ॥ सादर जनकसुता किर आग । ए ह िबिध चलह सकल भय याग ु ॥४॥

    दोहा

    ूनतपाल रघुबंसमिन ऽा ह ऽा ह अब मो ह । आरत िगरा सुनत ूभु अभय करैगो तो ह ॥२०॥

    रे किपपोत बोल ु संभार । मूढ़ न जाने ह मो ह सुरार ॥ कह िनज नाम जनक कर भाईु । के ह नात मािनऐ िमताई ॥१॥

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    अंगद नाम बािल कर बेटा । तास कबहँ भई ह भेटा ॥ु

  • रामचिरतमानस - 12 - लकंाकांड

    अंगद बचन सुनत सकुचाना । रहा बािल बानर म जाना ॥२॥ अंगद तह ं बािल कर बालक । उपजेह बंस अनल कुल घालक ॥ ु गभ न गयह ब्यथ तु हु जायहु । िनज मुख तापस दत कहायह ू ु ॥३॥ अब कह कुसल बािल कहँ अहईु । िबहँिस बचन तब अंगद कहई ॥ दन दस गएँ बािल प हं जाई । बूझेह कुसल सखा उर लाई ु ॥४॥ राम िबरोध कुसल जिस होई । सो सब तो ह सुनाइ ह सोई ॥ सुनु सठ भेद होइ मन ताक । ौीरघुबीर दय न हं जाक ॥५॥

    दोहा

    हम कुल घालक स य तु ह कुल पालक दससीस । अंधउ बिधर न अस कह हं नयन कान तव बीस ॥२१॥

    िसव िबरंिच सुर मुिन समुदाई । चाहत जासु चरन सेवकाई ॥ तासु दतू होइ हम कुल बोरा । अइिसहँ मित उर िबहर न तोरा ु ॥१॥ सुिन कठोर बानी किप केर । कहत दसानन नयन तरेर ॥ खल तव क ठन बचन सब सहऊँ । नीित धम म जानत अहऊँ ॥२॥ कह किप धमसीलता तोर । हमहँ सुनी कृत पर िऽय चोर ॥ ु देखी नयन दत रखवारू । बू ड़ न मरहु धम ॄतधार ॥३॥ कान नाक िबनु भिगिन िनहार । छमा क िन्ह तु ह धम िबचार ॥ धमसीलता तव जग जागी । पावा दरसु हमहँ बड़भागी ु ॥४॥

    दोहा

    जिन ज पिस जड़ जंतु किप सठ िबलोकु मम बाहु । लोकपाल बल िबपुल सिस मसन हेतु सब राह ॥ु २२(क)॥ पुिन नभ सर मम कर िनकर कमलिन्ह पर किर बास । सोभत भयउ मराल इव संभु स हत कैलास ॥२२(ख)॥

    तु हरे कटक माझ सुनु अंगद । मो सन िभिर ह कवन जोधा बद ॥ तव ूभ ु नािर िबरहँ बलह ना । अनुज तासु दख दखी मलीना ु ु ॥१॥ तु ह सुमीव कूलिम दोऊु । अनुज हमार भी अित सोऊ ॥ जामवंत मऽंी अित बूढ़ा । सो क होइ अब समरा ढ़ा ॥२॥ िसि प कम जान हं नल नीला । है किप एक महा बलसीला ॥ आवा ूथम नग ज हं जारा । सुनत बचन कह बािलकुमारा ॥३॥ स य बचन कह िनिसचर नाहाु । साँचेहँ क स क न्ह पुर दाहा ॥ ु रावन नगर अ प किप दहई । सुिन अस बचन स य को कहई ॥४॥

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    जो अित सुभट सराहेह रावनु । सो सुमीव केर लघु धावन ॥

  • रामचिरतमानस - 13 - लकंाकांड

    चलइ बहत सो बीर न होईु । पठवा खबिर लेन हम सोई ॥५॥

    दोहा स य नग किप जारेउ िबनु ूभु आयसु पाइ । फिर न गयउ सुमीव प हं ते हं भय रहा लुकाइ ॥२३(क)॥ स य कह ह दसकंठ सब मो ह न सुिन कछु कोह । कोउ न हमार कटक अस तो सन लरत जो सोह ॥२३(ख)॥ ूीित िबरोध समान सन किरअ नीित अिस आ ह । ज मगृपित बध मेड़किन्ह भल क कहइ कोउ ता ह ॥ु २३(ग)॥ ज िप लघुता राम कहँ तो ह बध बड़ दोषु । तदिप क ठन दसकंठ सुनु छऽ जाित कर रोष ॥२३(घ)॥ बब उि धनु बचन सर दय दहेउ िरपु क स । ूितउ र सड़िसन्ह मनहँ काढ़त भट दससीस ॥ु २३(ङ)॥ हँिस बोलेउ दसमौिल तब किप कर बड़ गुन एक । जो ूितपालइ तासु हत करइ उपाय अनेक ॥२३(छ)॥

    धन्य क स जो िनज ूभु काजा । जहँ तहँ नाचइ पिरहिर लाजा ॥ नािच कू द किर लोग िरझाई । पित हत करइ धम िनपुनाई ॥१॥ अंगद ःवािमभ तव जाती । ूभु गुन कस न कहिस ए ह भाँती ॥ म गुन गाहक परम सुजाना । तव कट रटिन करउँ न हं काना ु ॥२॥ कह किप तव गनु गाहकताई । स य पवनसुत मो ह सुनाई ॥ बन िबधंिस सुत बिध पुर जारा । तदिप न ते हं कछु कृत अपकारा ॥३॥ सोइ िबचािर तव ूकृित सुहाई । दसकंधर म क िन्ह ढठाई ॥ देखेउँ आइ जो कछु किप भाषा । तु हर लाज न रोष न माखा ॥४॥ ज अिस मित िपतु खाए क सा । क ह अस बचन हँसा दससीसा ॥ िपत ह खाइ खातेउँ पुिन तोह । अबह ं समुिझ परा कछु मोह ॥५॥ बािल िबमल जस भाजन जानी । हतउँ न तो ह अधम अिभमानी ॥ कह रावन रावन जग केतेु । म िनज ौवन सुने सुनु जेते ॥६॥ बिल ह िजतन एक गयउ पताला । राखेउ बाँिध िससुन्ह हयसाला ॥ खेल हं बालक मार हं जाई । दया लािग बिल द न्ह छोड़ाई ॥७॥ एक बहोिर सहसभुज देखा । धाइ धरा िजिम जंतु िबसेषा ॥ कौतुक लािग भवन लै आवा । सो पुलिःत मुिन जाइ छोड़ावा ॥८॥

    दोहा

    एक कहत मो ह सकुच अित रहा बािल क काँख ।

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    इन्ह महँ रावनु त कवन स य बद ह तिज माख ॥२४॥

  • रामचिरतमानस - 14 - लकंाकांड

    सुनु सठ सोइ रावन बलसीला । हरिगिर जान जासु भजु लीला ॥ जान उमापित जासु सुराई । पूजेउँ जे ह िसर सुमन चढ़ाई ॥१॥ िसर सरोज िनज करिन्ह उतार । पूजेउँ अिमत बार िऽपुरार ॥ भुज िबबम जान हं दगपाला । सठ अजहँ िजन्ह क उू र साला ॥२॥ जान हं द गज उर क ठनाई । जब जब िभरउँ जाइ बिरआई ॥ िजन्ह के दसन कराल न फूटे । उर लागत मूलक इव टटे ू ॥३॥ जासु चलत डोलित इिम धरनी । चढ़त म गज िजिम लघु तरनी ॥ सोइ रावन जग िब दत ूतापी । सुने ह न ौवन अलीक ूलापी ॥४॥

    दोहा

    ते ह रावन कहँ लघु कहिस नर कर करिस बखान । रे किप बबर खब खल अब जाना तव यान ॥२५॥

    सुिन अंगद सकोप कह बानी । बोल ु सँभािर अधम अिभमानी ॥ सहसबाह भुज गहन अपाराु । दहन अनल सम जासु कुठारा ॥१॥ जासु परस ु सागर खर धारा । बूड़े नपृ अगिनत बह बारा ॥ ु तासु गब जे ह देखत भागा । सो नर य दससीस अभागा ॥२॥ राम मनुज कस रे सठ बगंा । धन्वी कामु नद पुिन गंगा ॥ पसु सुरधेनु क पत खा । अन्न दान अ रस पीयूषा ॥३॥ बैनतेय खग अ ह सहसानन । िचंतामिन पुिन उपल दसानन ॥ सुनु मितमंद लोक बैकंुठा । लाभ क रघुपित भगित अकंुठा ॥४॥

    दोहा

    सेन स हत तब मान मिथ बन उजािर पुर जािर ॥ कस रे सठ हनुमान किप गयउ जो तव सुत मािर ॥२६॥

    सुनु रावन पिरहिर चतुराई । भजिस न कृपािसंधु रघुराई ॥ जौ खल भएिस राम कर िोह । ॄ ि सक रािख न तोह ॥१॥ मूढ़ बथृा जिन मारिस गाला । राम बयर अस होइ ह हाला ॥ तव िसर िनकर किपन्ह के आग । पिरह हं धरिन राम सर लाग ॥२॥ ते तव िसर कंदक सम नानाु । खेलह हं भालु क स चौगाना ॥ जब हं समर कोप ह रघुनायक । छु टह हं अित कराल बह सायक ु ॥३॥ तब क चिल ह अस गाल तु हारा । अस िबचािर भजु राम उदारा ॥ सुनत बचन रावन परजरा । जरत महानल जनु घतृ परा ॥४॥

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  • रामचिरतमानस - 15 - लकंाकांड

    दोहा कंुभकरन अस बंधु मम सुत ूिस सबािर । मोर पराबम न हं सुने ह िजतेउँ चराचर झािर ॥२७॥

    सठ साखामगृ जोिर सहाई । बाँधा िसंधु इहइ ूभुताई ॥ नाघ हं खग अनेक बार सा । सूर न हो हं ते सनुु सब क सा ॥१॥ मम भुज सागर बल जल पूरा । जहँ बूड़े बह सुर नर सूरा ॥ ु बीस पयोिध अगाध अपारा । को अस बीर जो पाइ ह पारा ॥२॥ दगपालन्ह म नीर भरावा । भूप सुजस खल मो ह सुनावा ॥ ज पै समर सुभट तव नाथा । पुिन पुिन कहिस जासु गुन गाथा ॥३॥ तौ बसीठ पठवत के ह काजा । िरपु सन ूीित करत न हं लाजा ॥ हरिगिर मथन िनरखु मम बाहू । पुिन सठ किप िनज ूभु ह सराह ू ॥४॥

    दोहा

    सूर कवन रावन सिरस ःवकर का ट जे हं सीस । हने अनल ु अित हरष बह बार सािख गौर स ॥ु २८॥

    जरत िबलोकेउँ जब हं कपाला । िबिध के िलखे अंक िनज भाला ॥ नर क कर आपन बध बाँची । हसेउँ जािन िबिध िगरा असाँची ॥१॥ सोउ मन समुिझ ऽास न हं मोर । िलखा िबरंिच जरठ मित भोर ॥ आन बीर बल सठ मम आग । पुिन पुिन कहिस लाज पित यागे ॥२॥ कह अंगद सल ज जग माह ं । रावन तो ह समान कोउ नाह ं ॥ लाजवंत तव सहज सुभाऊ । िनज मुख िनज गुन कहिस न काऊ ॥३॥ िसर अ सैल कथा िचत रह । ताते बार बीस त कह ॥ सो भुजबल राखेउ उर घाली । जीतेह सहसबाह बिल बाली ु ु ॥४॥ सुनु मितमदं दे ह अब पूरा । काट सीस क होइअ सूरा ॥ इंिजािल कह क हअ न बीराु । काटइ िनज कर सकल सर रा ॥५॥

    दोहा

    जर हं पतंग मोह बस भार बह हं खर बृंद । ते न हं सूर कहाव हं समुिझ देखु मितमंद ॥२९॥

    अब जिन बतबढ़ाव खल करह । सुन ु मम बचन मान पिरहरह ॥ दसमुख म न बसीठ ं आयउँ । अस िबचािर रघुबीष पठायउँ ॥१॥ बार बार अस कहइ कृपाला । न हं गजािर जसु बध सकृाला ॥

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    मन महँ समुिझ बचनु ूभु केरे । सहेउँ कठोर बचन सठ तेरे ॥२॥

  • रामचिरतमानस - 16 - लकंाकांड

    ना हं त किर मुख भंजन तोरा । लै जातेउँ सीत ह बरजोरा ॥ जानेउँ तव बल अधम सुरार । सून हिर आिन ह परनार ॥३॥ त िनिसचर पित गब बहताू । म रघुपित सेवक कर दता ॥ ू ज न राम अपमान ह डरउँ । तो ह देखत अस कौतुक करऊँ ॥४॥

    दोहा

    तो ह पट क म ह सेन हित चौपट किर तव गाउँ । तव जुबितन्ह समेत सठ जनकसुत ह लै जाउँ ॥३०॥

    जौ अस कर तदिप न बड़ाई । मुए ह बध न हं कछु मनुसाई ॥ कौल कामबस कृिपन िबमूढ़ा । अित दिरि अजसी अित बूढ़ा ॥१॥ सदा रोगबस संतत बोधी । िबंनु िबमूख ौिुत संत िबरोधी ॥ तनु पोषक िनंदक अघ खानी । जीवन सव सम चौदह ूानी ॥२॥ अस िबचािर खल बधउँ न तोह । अब जिन िरस उपजाविस मोह ॥ सुिन सकोप कह िनिसचर नाथा । अधर दसन दिस मीजत हाथा ॥३॥ रे किप अधम मरन अब चहसी । छोटे बदन बात ब ड़ कहसी ॥ कट ज पिस जड़ किप बल जाकु । बल ूताप बुिध तेज न ताक ॥४॥

    दोहा

    अगुन अमान जािन ते ह द न्ह िपता बनबास । सो दख अ जुबती िबरहु पुिन िनिस दन मम ऽास ॥३१(क)॥ िजन्ह के बल कर गब तो ह अइसे मनुज अनेक । खाह ं िनसाचर दवस िनिस मढ़ू समुझु तिज टेक ॥३१(ख)॥

    जब ते हं क न्ह राम कै िनंदा । बोधवंत अित भयउ किपंदा ॥ हिर हर िनंदा सुनइ जो काना । होइ पाप गोघात समाना ॥१॥ कटकटान किपकंुजर भार । दह भजुदंडु ु तम क म ह मार ॥ डोलत धरिन सभासद खसे । चले भािज भय मा त मसे ॥२॥ िगरत सँभािर उठा दसकंधर । भूतल परे मुकुट अित सुंदर ॥ कछु ते हं लै िनज िसरिन्ह सँवारे । कछु अंगद ूभु पास पबारे ॥३॥ आवत मुकुट देिख किप भागे । दनह ं लूक परन िबिध लागे ॥ क रावन किर कोप चलाए । कुिलस चािर आवत अित धाए ॥४॥ कह ूभु हँिस जिन दयँ डेराहू । लूक न असिन केतु न हं राह ॥ ू ए कर ट दसकंधर केरे । आवत बािलतनय के ूेरे ॥५॥

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    दोहा

  • रामचिरतमानस - 17 - लकंाकांड

    तर क पवनसुत कर गहे आिन धरे ूभु पास । कौतुक देख हं भालु किप दनकर सिरस ूकास ॥३२(क)॥ उहाँ सकोिप दसानन सब सन कहत िरसाइ । धरह कु िप ह धिर मारह सुिन अंगदु मुसुकाइ ॥३२(ख)॥

    ए ह िबिध बेिग सूभट सब धावहु । खाह भाल ु किप जहँ जहँ पावह ॥ु ु मकटह न करह म ह जाईु । िजअत धरह तापस ौ भाई ु ॥१॥ पुिन सकोप बोलेउ जुबराजा । गाल बजावत तो ह न लाजा ॥ म गर का ट िनलज कुलघाती । बल िबलो क िबहरित न हं छाती ॥२॥ रे िऽय चोर कुमारग गामी । खल मल रािस मंदमित कामी ॥ सन्यपात ज पिस दबादाु । भएिस कालबस खल मनुजादा ॥३॥ याको फलु पाव हगो आग । बानर भालु चपेटिन्ह लाग ॥ रामु मनुज बोलत अिस बानी । िगर हं न तव रसना अिभमानी ॥४॥ िगिरह हं रसना संसय नाह ं । िसरिन्ह समेत समर म ह माह ं ॥५॥

    सोरठा

    सो नर य दसकंध बािल ब यो जे हं एक सर । बीसहँ लोचनु अंध िधग तव जन्म कुजाित जड़ ॥३३(क)॥ तब सोिनत क यास तिृषत राम सायक िनकर । तजउँ तो ह ते ह ऽास कट ज पक िनिसचर अधम ॥ु ३३(ख)॥

    मै तव दसन तोिरबे लायक । आयसु मो ह न द न्ह रघुनायक ॥ अिस िरस होित दसउ मुख तोर । लंका ग ह समुि महँ बोर ॥१॥ गूलिर फल समान तव लंका । बसह म य तु ह जंतु असंका ॥ ु म बानर फल खात न बारा । आयसु द न्ह न राम उदारा ॥२॥ जुगित सुनत रावन मुसुकाई । मूढ़ िसिख ह कहँ बहतु झुठाई ॥ बािल न कबहँ गाल अस माराु । िमिल तपिसन्ह त भएिस लबारा ॥३॥ साँचेहँ मु लबार भुज बीहा । ज न उपािरउँ तव दस जीहा ॥ समुिझ राम ूताप किप कोपा । सभा माझ पन किर पद रोपा ॥४॥ ज मम चरन सकिस सठ टार । फर हं रामु सीता म हार ॥ सुनह सुभटु सब कह दससीसा । पद ग ह धरिन पछारह क सा ु ॥५॥ इंिजीत आ दक बलवाना । हरिष उठे जहँ तहँ भट नाना ॥ झपट हं किर बल िबपुल उपाई । पद न टरइ बैठ हं िस नाई ॥६॥ पुिन उ ठ झपटह ं सुर आराती । टरइ न क स चरन ए ह भाँती ॥ पु ष कुजोगी िजिम उरगार । मोह िबटप न हं सक हं उपार ॥७॥

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  • रामचिरतमानस - 18 - लकंाकांड

    दोहा को टन्ह मेघनाद सम सुभट उठे हरषाइ । झपट हं टरै न किप चरन पुिन बैठ हं िसर नाइ ॥३४(क)॥ भूिम न छाँडत किप चरन देखत िरपु मद भाग ॥ को ट िब न ते संत कर मन िजिम नीित न याग ॥३४(ख)॥

    किप बल देिख सकल हयँ हारे । उठा आपु किप क परचारे ॥ गहत चरन कह बािलकुमारा । मम पद गह न तोर उबारा ॥१॥ गहिस न राम चरन सठ जाई । सुनत फरा मन अित सकुचाई ॥ भयउ तेजहत ौी सब गई । म य दवस िजिम सिस सोहई ॥२॥ िसंघासन बैठेउ िसर नाई । मानहँ संपित सकल गँवाई ॥ ु जगदातमा ूानपित रामा । तासु िबमुख किम लह िबौामा ॥३॥ उमा राम क भकुृ ट िबलासा । होइ िबःव पुिन पावइ नासा ॥ तनृ ते कुिलस कुिलस तनृ करई । तासु दत पन कह किम टरई ू ु ॥४॥ पुिन किप कह नीित िबिध नाना । मान न ता ह कालु िनअराना ॥ िरपु मद मिथ ूभु सुजसु सुनायो । यह क ह च यो बािल नपृ जायो ॥५ ॥ हत न खेत खेलाइ खेलाई । तो ह अब हं का कर बड़ाई ॥ ूथम हं तासु तनय किप मारा । सो सुिन रावन भयउ दखारा ु ॥६॥ जातुधान अंगद पन देखी । भय ब्याकुल सब भए िबसेषी ॥

    दोहा

    िरपु बल धरिष हरिष किप बािलतनय बल पुंज । पुलक सर र नयन जल गहे राम पद कंज ॥३५(क)॥ साँझ जािन दसकंधर भवन गयउ िबलखाइ । मंदोदर रावन ह बहिर कहा समझुाइ ॥ु ३५(ख)॥

    कंत समुिझ मन तजह कुमितहु । सोह न समर तु ह ह रघुपितह ॥ रामानुज लघु रेख खचाई । सोउ न हं नाघेह अिस मनुसाई ु ॥१॥ िपय तु ह ता ह िजतब संमामा । जाके दत केर यहू कामा ॥ कौतुक िसंधु नाघी तव लकंा । आयउ किप केहर असंका ॥२॥ रखवारे हित िबिपन उजारा । देखत तो ह अ छ ते हं मारा ॥ जािर सकल पुर क न्हेिस छारा । कहाँ रहा बल गब तु हारा ॥३॥ अब पित मषृा गाल जिन मारहु । मोर कहा कछु दयँ िबचारह ॥ ु पित रघुपित ह नपृित जिन मानहु । अग जगनाथ अतुल बल जानह ॥ु ४॥ बान ूताप जान मार चा । तास ु कहा न हं माने ह नीचा ॥

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    जनक सभाँ अगिनत भूपाला । रहे तु हउ बल अतुल िबसाला ॥५॥

  • रामचिरतमानस - 19 - लकंाकांड

    भंिज धनुष जानक िबआह । तब संमाम िजतेह कन ताह ॥ु सुरपित सुत जानइ बल थोरा । राखा िजअत आँिख ग ह फोरा ॥६॥ सूपनखा कै गित तु ह देखी । तदिप दयँ न हं लाज िबषेषी ॥

    दोहा

    बिध िबराध खर दषन ह लीलाँ ह यो कबंधू । बािल एक सर मारयो ते ह जानह दसु कंध ॥३६॥

    जे हं जलनाथ बँधायउ हेला । उतरे ूभु दल स हत सुबेला ॥ का नीक दनकर कुल केतू । दत पठायउ तव हत हेतू ू ॥१॥ सभा माझ जे हं तव बल मथा । किर ब थ महँ मगृपित जथा ॥ ु अंगद हनुमत अनुचर जाके । रन बाँकुरे बीर अित बाँके ॥२॥ ते ह कहँ िपय पुिन पुिन नर कहहू । मुधा मान ममता मद बहह ॥ू अहह कंत कृत राम िबरोधा । काल िबबस मन उपज न बोधा ॥३॥ काल दंड ग ह काह न माराु । हरइ धम बल बुि िबचारा ॥ िनकट काल जे ह आवत सा । ते ह ॅम होइ तु हािर ह ना ॥४॥

    दोहा

    दइ सुत मरे दहेउ पुर अजहँ पूर िपय देहु ु ु । कृपािसंधु रघुनाथ भिज नाथ िबमल जसु लेहु ॥३७॥

    नािर बचन सुिन िबिसख समाना । सभाँ गयउ उ ठ होत िबहाना ॥ बैठ जाइ िसंघासन फूली । अित अिभमान ऽास सब भूली ॥१॥ इहाँ राम अंगद ह बोलावा । आइ चरन पंकज िस नावा ॥ अित आदर सपीप बैठार । बोले िबहँिस कृपाल खरार ॥२॥ बािलतनय कौतुक अित मोह । तात स य कह पूछउँ तोह ॥ु रावनु जातधुान कुल ट का । भुज बल अतुल जासु जग लीका ॥३॥ तासु मुकुट तु ह चािर चलाए । कहह तात कवनी िबिध पाए ॥ ु सुनु सब य ूनत सुखकार । मुकुट न हो हं भूप गुन चार ॥४॥ साम दान अ दंड िबभेदा । नपृ उर बस हं नाथ कह बेदा ॥ नीित धम के चरन सुहाए । अस िजयँ जािन नाथ प हं आए ॥५॥

    दोहा

    धमह न ूभु पद िबमुख काल िबबस दससीस । ते ह पिरहिर गुन आए सुनह कोसलाधीस ॥ु ३८(((क)॥

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    परम चतरुता ौवन सुिन िबहँसे राम ु उदार ।

  • रामचिरतमानस - 20 - लकंाकांड

    समाचार पिुन सब कहे गढ़ के बािलकुमार ॥३८(ख)॥

    िरपु के समाचार जब पाए । राम सिचव सब िनकट बोलाए ॥ लंका बाँके चािर दआराु । के ह िबिध लािगअ करह िबचारा ु ॥१॥ तब कपीस िर छेस िबभीषन । सुिमिर दय ँ दनकर कुल भूषन ॥ किर िबचार ितन्ह मंऽ ढ़ावा । चािर अनी किप कटकु बनावा ॥२॥ जथाजोग सेनापित क न्हे । जूथप सकल बोिल तब लीन्हे ॥ ूभु ूताप क ह सब समुझाए । सुिन किप िसंघनाद किर धाए ॥३॥ हरिषत राम चरन िसर नाव हं । ग ह िगिर िसखर बीर सब धाव हं ॥ गज हं तज हं भालु कपीसा । जय रघुबीर कोसलाधीसा ॥४॥ जानत परम दग अित लंकाु । ूभु ूताप किप चले असंका ॥ घटाटोप किर चहँ दिस घेरु । मुख हं िनसान बजावह ं भेर ॥५॥

    दोहा

    जयित राम जय लिछमन जय कपीस समुीव । गज हं िसंघनाद किप भाल ु महा बल सींव ॥३९॥

    लंकाँ भयउ कोलाहल भार । सुना दसानन अित अहँकार ॥ देखह बनरन्ह केिर ढठाईु । िबहँिस िनसाचर सेन बोलाई ॥१॥ आए क स काल के ूेरे । छुधावंत सब िनिसचर मेरे ॥ अस क ह अ टहास सठ क न्हा । गहृ बैठे अहार िबिध द न्हा ॥२॥ सुभट सकल चािरहँ दिस जाहु ू । धिर धिर भालु क स सब खाह ॥ ू उमा रावन ह अस अिभमाना । िजिम टि टभ खग सूत उताना ॥३॥ चले िनसाचर आयसु मागी । ग ह कर िभं डपाल बर साँगी ॥ तोमर मु दर परसु ूचंडा । सुल कृपान पिरघ िगिरखंडा ॥४॥ िजिम अ नोपल िनकर िनहार । धाव हं सठ खग मांस अहार ॥ च च भंग दख ितन्ह ह न सूझाु । ितिम धाए मनुजाद अबूझा ॥५॥

    दोहा

    नानायुध सर चाप धर जातुधान बल बीर । कोट कँगूरिन्ह च ढ़ गए को ट को ट रनधीर ॥४०॥

    कोट कँगूरिन्ह सोह हं कैसे । मे के सृंगिन जनु घन बैसे ॥ बाज हं ढोल िनसान जुझाऊ । सुिन धुिन होइ भटिन्ह मन चाऊ ॥१॥ बाज हं भेिर नफ िर अपारा । सुिन कादर उर जा हं दरारा ॥

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    देिखन्ह जाइ किपन्ह के ठ टा । अित िबसाल तनु भाल ु सुभ टा ॥२॥

  • रामचिरतमानस - 21 - लकंाकांड

    धाव हं गन हं न अवघट घाटा । पबत फोिर कर हं ग ह बाटा ॥ कटकटा हं को टन्ह भट गज हं । दसन ओठ काट हं अित तज हं ॥३॥ उत रावन इत राम दोहाई । जयित जयित जय पर लराई ॥ िनिसचर िसखर समूह ढहाव हं । कू द धर हं किप फेिर चलाव हं ॥४॥

    छंद

    धिर कुधर खंड ूचंड ककट भालु गढ़ पर डारह ं । झपट हं चरन ग ह पट क म ह भिज चलत बहिर पचारह ं ॥ ु अित तरल त न ूताप तरप हं तम क गढ़ च ढ़ च ढ़ गए । किप भालु च ढ़ मं दरन्ह जहँ तहँ राम जसु गावत भए ॥

    दोहा

    एकु एकु िनिसचर ग ह पुिन किप चले पराइ । ऊपर आपु हेठ भट िगर हं धरिन पर आइ ॥४१॥

    राम ूताप ूबल किपजूथा । मद हं िनिसचर सुभट ब था ॥ चढ़े दग पुिन जहँ तहँु बानर । जय रघुबीर ूताप दवाकर ॥१॥ चले िनसाचर िनकर पराई । ूबल पवन िजिम घन समुदाई ॥ हाहाकार भयउ पुर भार । रोव हं बालक आतुर नार ॥२॥ सब िमिल दे हं रावन ह गार । राज करत ए हं मृ यु हँकार ॥ िनज दल िबचल सुनी ते हं काना । फेिर सुभट लंकेस िरसाना ॥३॥ जो रन िबमुख सुना म काना । सो म हतब कराल कृपाना ॥ सबसु खाइ भोग किर नाना । समर भूिम भए ब लभ ूाना ॥४॥ उम बचन सुिन सकल डेराने । चले बोध किर सुभट लजाने ॥ सन्मुख मरन बीर कै सोभा । तब ितन्ह तजा ूान कर लोभा ॥५॥

    दोहा बह आयुध धर सुभट सब िभर हंु पचािर पचािर । ब्याकुल कए भालु किप पिरघ िऽसूलिन्ह मार ॥४२॥

    भय आतुर किप भागन लागे । ज िप उमा जीितह हं आगे ॥ कोउ कह कहँ अंगद हनुमंता । कहँ नल नील दिबदु बलवंता ॥१॥ िनज दल िबकल सुना हनुमाना । पि छम ार रहा बलवाना ॥ मेघनाद तहँ करइ लराई । टट न ार परम क ठनाू ई ॥२॥ पवनतनय मन भा अित बोधा । गजउ ूबल काल सम जोधा ॥ कू द लंक गढ़ ऊपर आवा । ग ह िगिर मेघनाद कहँ धावा ु ॥३॥

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    भंजेउ रथ सारथी िनपाता । ता ह दय महँ मारेिस लाता ॥ ु

  • रामचिरतमानस - 22 - लकंाकांड

    दसर सूत िबकल ते ह जानाु । ःयंदन घािल तुरत गहृ आना ॥४॥

    दोहा अंगद सुना पवनसुत गढ़ पर गयउ अकेल । रन बाँकुरा बािलसुत तर क चढ़ेउ किप खेल ॥४३॥

    जु िब बु ौ बंदर । राम ूताप सुिमिर उर अंतर ॥ रावन भवन चढ़े ौ धाई । कर ह कोसलाधीस दोहाई ॥१॥ कलस स हत ग ह भवनु ढहावा । देिख िनसाचरपित भय पावा ॥ नािर बृंद कर पीट हं छाती । अब दइ किप आएु उतपाती ॥२॥ किपलीला किर ितन्ह ह डेराव हं । रामचंि कर सुजसु सुनाव हं ॥ पुिन कर ग ह कंचन के खंभा । कहेिन्ह किरअ उतपात अरंभा ॥३॥ गिज परे िरपु कटक मझार । लागे मद भुज बल भार ॥ काह ह लातु चपेटिन्ह केहू । भजह न राम ह सो फल लेह ु ू ॥४॥

    दोहा

    एक एक स मद हं तोिर चलाव हं मुंड । रावन आग पर हं ते जनु फूट हं दिध कंुड ॥४४॥

    महा महा मुिखआ जे पाव हं । ते पद ग ह ूभु पास चलाव हं ॥ कहइ िबभीषनु ितन्ह के नामा । दे हं राम ितन्हह िनजू धामा ॥१॥ खल मनुजाद जािमष भोगी । पाव हं गित जो जाचत जोगी ॥ उमा राम मदृिचतु क नाकर । बयर भाव सुिमरत मो ह िनिसचर ॥२॥ दे हं परम गित सो िजयँ जानी । अस कृपाल को कहह भवानी ॥ ु अस ूभु सिुन न भज हं ॅम यागी । नर मितमंद ते परम अभागी ॥३॥ अंगद अ हनुमंत ूबेसा । क न्ह दग अस कह अवधेसा ॥ ु लंकाँ ौ किप सोह हं कैस । मथ ह िसंधु दइु मंदर जैस ॥४॥

    दोहा

    भुज बल िरपु दल दलमिल देिख दवस कर अंत । कूदे जुगल िबगत ौम आए जहँ भगवंत ॥४५॥

    ूभु पद कमल सीस ितन्ह नाए । देिख सुभट रघुपित मन भाए ॥ राम कृपा किर जुगल िनहारे । भए िबगतौम परम सुखारे ॥१॥ गए जािन अंगद हनुमाना । फरे भालु मकट भट नाना ॥

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    जातुधान ूदोष बल पाई । धाए किर दससीस दोहाई ॥२॥

  • रामचिरतमानस - 23 - लकंाकांड

    िनिसचर अनी देिख किप फरे । जहँ तहँ कटकटाइ भट िभरे ॥ ौ दल ूबल पचािर पचार । लरत सुभट न हं मान हं हार ॥३॥ महाबीर िनिसचर सब कारे । नाना बरन बलीमुख भारे ॥ सबल जुगल दल समबल जोधा । कौतुक करत लरत किर बोधा ॥४॥ ूािबट सरद पयोद घनेरे । लरत मनहँ मा त के ूेरे ॥ ु अिनप अकंपन अ अितकाया । िबचलत सेन क िन्ह इन्ह माया ॥५॥ भयउ िनिमष महँ अित अँिधयारा । बिृ होइ िधरोपल छारा ॥६॥

    दोहा

    देिख िनिबड़ तम दसहँ दिस किपदल भयउ खभारु । एक ह एक न देखई जहँ तहँ कर हं पुकार ॥४६॥

    सकल मरमु रघुनायक जाना । िलए बोिल अंगद हनुमाना ॥ समाचार सब क ह समुझाए । सुनत कोिप किपकंुजर धाए ॥१॥ पुिन कृपाल हँिस चाप चढ़ावा । पावक सायक सप द चलावा ॥ भयउ ूकास कतहँ तमु नाह ं । यान उदयँ िजिम संसय जाह ं ॥२॥ भालु बलीमुख पाइ ूकासा । धाए हरष िबगत ौम ऽासा ॥ हनूमान अंगद रन गाजे । हाँक सुनत रजनीचर भाजे ॥३॥ भागत पट पटक हं धिर धरनी । कर हं भालु किप अ त करनी ॥ ु ग ह पद डार हं सागर माह ं । मकर उरग झष धिर धिर खाह ं ॥४॥

    दोहा

    कछु मारे कछु घायल कछु गढ़ चढ़े पराइ । गज हं भालु बलीमखु िरप ु दल बल िबचलाइ ॥४७॥

    िनसा जािन किप चािरउ अनी । आए जहाँ कोसला धनी ॥ राम कृपा किर िचतवा सबह । भए िबगतौम बानर तबह ॥१॥ उहाँ दसानन सिचव हँकारे । सब सन कहेिस सुभट जे मारे ॥ आधा कटकु किपन्ह संघारा । कहह बेिग का किरअ िबचारा ु ॥२॥ मा यवंत अित जरठ िनसाचर । रावन मातु िपता मंऽी बर ॥ बोला बचन नीित अित पावन । सुनह तात कछु मोर िसखावन ु ॥३॥ जब ते तु ह सीता हिर आनी । असगुन हो हं न जा हं बखानी ॥ बेद पुरान जासु जसु गायो । राम िबमुख काहँ न सुख पायो ु ॥४॥

    दोहा

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    हरन्या छ ॅाता स हत मधु कैटभ बलवान ।

  • रामचिरतमानस - 24 - लकंाकांड

    जे ह मारे सोइ अवतरेउ कृपािसंधु भगवान ॥४८(क)॥

    मासपारायण, पचीसवाँ िवौाम

    काल प खल बन दहन गुनागार घनबोध । िसव िबरंिच जे ह सेव हं तास कवन िबरोध ॥४८(ख)॥

    पिरहिर बय देह बैदेहु । भजह कृपािनिध परम सनेह ॥ ु ताके बचन बान सम लागे । किरआ मुह किर जा ह अभागे ॥१॥ बूढ़ भएिस न त मरतेउँ तोह । अब जिन नयन देखाविस मोह ॥ ते ह अपने मन अस अनुमाना । ब यो चहत ए ह कृपािनधाना ॥२॥ सो उ ठ गयउ कहत दबादाु । तब सकोप बोलेउ घननादा ॥ कौतुक ूात देिखअह मोराु । किरहउँ बहत कह का थोरा ु ॥३॥ सुिन सुत बचन भरोसा आवा । ूीित समेत अंक बैठावा ॥ करत िबचार भयउ िभनुसारा । लागे किप पुिन चहूँ दआरा ु ॥४॥ कोिप किपन्ह दघट गढ़ घेराु ु । नगर कोलाहलु भयउ घनेरा ॥ िबिबधायुध धर िनिसचर धाए । गढ़ ते पबत िसखर ढहाए ॥५॥

    छंद

    ढाहे मह धर िसखर को टन्ह िबिबध िबिध गोला चले । घहरात िजिम पिबपात गजत जनु ूलय के बादले ॥ मकट िबकट भट जुटत कटत न लटत तन जजर भए । ग ह सैल ते ह गढ़ पर चलाव हं जहँ सो तहँ िनिसचर हए ॥

    दोहा

    मेघनाद सुिन ौवन अस गढ़ पुिन छका आइु । उतय बीर दगु त सन्मुख च यो बजाइ ॥४९॥

    कहँ कोसलाधीस ौ ॅाता । धन्वी सकल लोक िब याता ॥ कहँ नल नील दिबद सुमीवाु । अंगद हनूमंत बल सींवा ॥१॥ कहाँ िबभीषनु ॅातािोह । आजु सब ह ह ठ मारउँ ओह ॥ अस क ह क ठन बान संधाने । अितसय बोध ौवन लिग ताने ॥२॥ सर समुह सो छाड़ै लागा । जनु सप छ धाव हं बह नागा ॥ ु जहँ तहँ परत देिखअ हं बानर । सन्मुख होइ न सके ते ह अवसर ॥३॥ जहँ तहँ भािग चले किप र छा । िबसर सब ह जु कै ईछा ॥ सो किप भालु न रन महँ देखा । क न्हेिस जे ह न ूान अवसेषा ॥४॥

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  • रामचिरतमानस - 25 - लकंाकांड

    दोहा दस दस सर सब मारेिस परे भूिम किप बीर । िसंहनाद किर गजा मेघनाद बल धीर ॥५०॥

    देिख पवनसुत कटक िबहाला । बोधवंत जनु धायउ काला ॥ महासैल एक तुरत उपारा । अित िरस मेघनाद पर डारा ॥१॥ आवत देिख गयउ नभ सोई । रथ सारथी तुरग सब खोई ॥ बार बार पचार हनुमाना । िनकट न आव मरमु सो जाना ॥२॥ रघुपित िनकट गयउ घननादा । नाना भाँित करेिस दबादा ॥ ु अ स आयुध सब डारे । कौतुकह ं ूभु का ट िनवारे ॥३॥ देिख ूताप मूढ़ िखिसआना । करै लाग माया िबिध नाना ॥ िजिम कोउ करै ग ड़ स खेला । डरपावै ग ह ःव प सपेला ॥४॥

    दोहा

    जासु ूबल माया बल िसव िबरंिच बड़ छोट । ता ह दखावइ िनिसचर िनज माया मित खोट ॥५१॥

    नभ च ढ़ बरष िबपुल अंगारा । म ह ते ूगट हो हं जलधारा ॥ नाना भाँित िपसाच िपसाची । मा काट धुिनु बोल हं नाची ॥१॥ िब ा पूय िधर कच हाड़ा । बरषइ कबहँ उपल बह छाड़ा ॥ ु ु बरिष धूिर क न्हेिस अँिधआरा । सूझ न आपन हाथ पसारा ॥२॥ किप अकुलाने माया देख । सब कर मरन बना ए ह लेख ॥ कौतुक देिख राम मुसुकाने । भए सभीत सकल किप जाने ॥३॥ एक बान काट सब माया । िजिम दनकर हर ितिमर िनकाया ॥ कृपा ि किप भालु िबलोके । भए ूबल रन रह हं न रोके ॥४॥

    दोहा

    आयसु मािग राम प हं अंगदा द किप साथ । लिछमन चले बु होइ बान सरासन हाथ ॥५२॥

    छतज नयन उर बाह िबसालाु । हमिगिर िनभ तनु कछु एक लाला ॥ इहाँ दसानन सुभट पठाए । नाना अ स ग ह धाए ॥१॥ भूधर नख िबटपायुध धार । धाए किप जय राम पुकार