आखर # पड़ाव का दुख sec/aakhiri-parav-ka-dukh...2 i.s.b.n. :...

122
1 आखरȣ पड़ाव का :(कहानी संĒह) लेखक सभाष नीरव भावना Ĥकाशन, Ǒदãलȣ. 110091

Upload: others

Post on 13-Jun-2020

6 views

Category:

Documents


0 download

TRANSCRIPT

  • 1

    आ खर पड़ाव का द:ुख (कहानी सं ह)

    लेखक सभाषु नीरव

    भावना काशन, द ल .110091

  • 2

    I.S.B.N. : 978-81-7667-202-3 कॉपीराइट : सभाषु नीरव

    म यू : 150.00 पये ।

    काशक : भावना काशन 109-ए, पटपड़गंज, द ल -110091 दरभाषू : 011-22756734

    थम सं करण : सन ्2007

    श द संयोजन : पंकज ा फ स, द ल -92

    आवरण प रक पना : राजकमल

    म कु : पाराशर ंटस, सीलम परु, द ल -110053 Aakhiri Padav ka Dukh by Subhash Neerav

  • 3

    आ ख़र पड़ाव का द:ुख सभाषु नीरव क कहा नया ँ

    म प संह च देल एवं

    बलबीर माधोपरु के नाम....

  • 4

    लेखक क ओर स.े.. मेरा पहला कहानी-सं ह ''दै य तथा अ य कहा नया'ँ' वष 1990 म का शत हआु था और दसराू कहानी-सं ह ''औरत होने का गनाहु '' वष 2003 म। बीच म लगभग 13 वष का एक ल बा अंतराल रहा। इस ल ब ेअंतराल के जहा ँकई कारण रहे, उनम एक मखु कारण यह रहा क अपने मौ लक लेखन से अ धक म अनवादु क ओर उ मखु हो गया था। पंजाबी भाषा के े सा ह य- कहानी, उप यास, लघकथाु , आ मकथा और क वता- का चरु मा ा म ह द अनवादु इसी अव ध म कया। अनवादु काय अभी भी जार है ले कन अपने मौ लक लेखन म इधर मने कसी कार का ग तरोध नह ंआने दया। कहा नया,ँ लघकथाएँु (और क वताएँ भी) नरंतर लखता रहा हँू, य प इसक ग त कभी तेज नह ं हो पाई, धीमी ह रह । अपनी कहा नय के बारे म अपनी ओर से 'कछु कहना' मझेु कभी अ छा नह ं लगा। कहा नया ँ लखने के बाद पाठक के लए छोड़ द ं। आ खर, अ छ या बरु का फैसला तो उ ह ह लेना होता है। ''आ खर पड़ाव का द:ुख'' मेरा तीसरा कहानी-सं ह पाठक के स मखु है। इस सं ह क कहा नय के बारे म म अपनी ओर से कोई ट पणी नह ंकरना चाहता। ये कहा नया ँवयं पाठक से संवाद रचाएंगी और अपने बारे म बताएंगी।

    इस भ मकाू के बहाने म अपने उन कछेकु अंतरंग लेखक म को याद कर लेना ज़ र समझता हँू, िज ह ने न केवल समय-समय पर मेर कहा नय को लेकर चचा क , बि क कसी भी

  • 5

    दंद-फंद से अलग बैठे मेरे जैसे लेखक का उ साहवधन भी करते रहे। इनम प संह च देल, बलराम अ वाल, सरेशु यादव, स ीु अलका स हा, बलबीर माधोपरु (पंजाबी क व) और बल वंदर संह बराड़(पंजाबी कथाकार) मखु ह।

    यहा ँ ी सतीश च म ल, भावना काशन( द ल ) का भी म दय से आभार हँू, िज ह ने मेरे इस कहानी-सं ह को का शत कर आप तक पहचानेु ँ का बीड़ा उठाया।

    - सभाषु नीरव

  • 6

    अन मु आवाज़/8 अ तत:/15 दै य/22 चि पयु के बीच तैरता संवाद/33 वेलफेयर बाबू/46 इतने बरुे दन/59 सापँ/66 आ खर पड़ाव का द:ुख/84 लौटना/93 जीवन का ताप/108 सफ़र म आदमी/ 115 एक और क बा/117 मक ड़या/ँ119 चटके घड़े/121

  • 7

    आवाज़

    पापा को कह ंबाहर जाना था। कल रात दकानु से लौटकर पापा ने बस इतना ह कहा क वह सबहु सात बजे वाल ेन पकडग़े और परस लौटगे, कुछ लोग के साथ। यह सब बोलते समय पापा का वर कतना ठंडा था। ऐसा लगा, जैसे कछु छपा रहे ह । सबहु वह पापा से पहले उठ गई। पापा को जगाया और खदु काम म लग गई। पापा अममनू छह-साढ़े छह बजे तक उठ जाया करते ह। जब तक वह नहा-धोकर तैयार होते ह, वह सारा कामकाज नपटा चकु होती है। पापा आठ बजे तक नकल जाया करते ह- दकानु के लए। नौ बजे तक वह भी कालेज के लए नकल पड़ती है। पंक का कलू उसके रा ते म पड़ता है, इस लए रोज उसे अपने साथ लाती-ले जाती है वह। आज छ ीु का दन है। छ ीु के दन वह खदु को बहतु अकेला महससू करती है। अकेलेपन का अहसास न हो, इस लए वह खदु को घर के हर छोटे-मोटे काम म जानबझकरू उलझाये रखती है। पापा के चले जाने के बाद उसने परूे मन से घर क साफ-सफाई क । खड़क -दरवाज के पद धोकर सखनेू के लए डाल दए। द वार पर क धलू को झाड़ा-प छा और खड़ कय के शीशे चमका दए। और तो और, सी लंग-फैन को भी साफ कर दया है और से फ म इधर-उधर बखर पड़ी प तकु भी कर ने से सजा द ह। कल 'कछु लोग' आ रहे ह, पापा के साथ। 'कछु लोग...' उसके परूे शर र म सहरन-सी दौड़ गई यह सोचकर। णांश, उसके तन और मन

  • 8

    म गदगदु ु -सी हईु और दसरेू ह ण भय और घबराहट। दय क धड़कन बढ ग ।... कैसे वह उन लोग के स मखु जा पाएगी ? वे या- या करगे उससे ? पहला अवसर है न... वह तो एकदम नवस हो जाएगी। म मी जी वत होती तो बहतु सहारा मल जाता। उसक सहेल समनु ने ऐसे अवसर के कतने ह क से एका त म बैठकर सनायेु ह उसे। उन क स क याद आते ह उसका दल घबराने लगता है। कैसे अजीब-अजीब से पछतेू ह ये लोग ! एजकेशनू कहाँ तक ल है ? स जे स या-या थे ? यह वषय ह य लया ? खाना बनाने के अलावा और या-या जानती हो ? फ म देखती हो ? कतनी ? कैसी फ म अ छ

    लगती ह ? वगैरह-वगैरह। अ छा-खासा इंटर यू ! उ र 'हाँ' 'न' म नह ं दया जा सकता। कछु तो बोलना ह पड़ता है। शायद, मंशा यह रहती हो क लड़क कह ंगंगीू तो नह ं, हकलाती तो नह ं। लड़क को जानबझकरू इधर-उधर बठाएंगे-उठाएंगे, उसक चाल परखगे। कह ं पांव दबाकर तो नह ंचलती ? यानी हर तरह से देखने क को शश क जाएगी। कई दन से पापा कछु यादा ह परेशान से नज़र आते ह। कहते तो कछु नह ,ं पर उनक च पीु जैसे बहतु कछु कह जाती है। सबहु पापा के कमरे म अधजल सगरेट का ढेर देखकर वह हैरत म पड़ जाती है। पहले तो पापा इतनी सगरेट नह ंपीते थे !... लगता है, पापा रात भर नींद से कशमकश करते रहते ह। रातभर जझतेू रहते ह अपने आप से, अपनी अ तरंग परेशा नय से। ले कन, उसे लेकर अभी से इतना परेशान होने क या ज़ रत है? भीतर ह भीतर घटतेु रहने क या आव यकता है ? या पापा अपनी च ता को, अपनी परेशा नय को उससे शेयर नह ंकर सकते ? वह जवान होने पर या इतनी परायी हो गई है ? इस तरह के न जाने कतने उसके अंदर धमाचौकड़ी मचाये रहते ह आजकल।

  • 9

    पापा ऐसे न थे। कतना बड़ा प रवतन आ गया है, पापा म अब। म मी क मौत ने उ ह भीतर से तोड़कर रख दया है जैसे। कतने हँसमखु थे पहले ! इस घर म कहकहे गँजतेू थे उनके ! दकानु पर भी यादा नह ंबैठते थे। जब-तब कसी न कसी बहाने से घर आ जाया करते थे। यार से उसे 'मोट ' कहा करते थे। म मी से अ सर कहा करते- ''देखो, बलकलु त हारु तरह नकल रह है। जब त हु याहकर लाया था, तमु ठ क ऐसी ह थीं।...'' म मी पहले तो ल जा जाती,ं फर नाराजगी जा हर करते हएु कहतीं, ''यह या हर समय मेर बेट को 'मोट -मोट ' कहा करते हो ? नाम नह ंले सकते ?'' म मी क याद आते ह उसक ऑ ंख भीग ग । कतना चाहती थीं उसे ! जवानी क दहल ज पर पांव रख ह रह थी क यकायक उसने म मी को खो दया। वह दन उसे भलू सकता है या ?... नह ,ं कदा प नह ं। वह य उसक ऑ ंख के सामने अब भी तैर जाता है। िज़ दगी और मौत के बीच संघष करती म मी। म मी मरना नह ंचाहती थी और मौत थी क उ ह और िज दा नह ं रहने देना चाहती थी। ऐसे ददनाक ण म म मी को उसी क च ता थी। आ खर सांस लेने से पहले म मी

    ने पापा से कहा था- ''देखो, स मु को अ छे घर याहना। मेर पर -सी बेट का राजकमारु -सा द हाू हो।'' पापा ने शायद तब पहल बार महससू कया होगा क उनक बेट जवान हो रह है। उसके लए अ छा-सा वर ढँढ़नाू है। और शायद तभी से पापा क खोज जार है। पापा का उदास, चि तत चेहरा कभी-कभी उसे भीतर तक ला देता है। ऐसे म, दौड़कर पापा क छाती से लपट जाने और यह कहने क इ छा होती है क पापा, म अभी शाद नह ंक ँगी। अभी तो म बहतु छोट हँ।ू ... ले कन, कहा ँकह पाती है यह सब। पापा और उसके बीच, म मी क मौत के बाद जो खाई उभर आई है, चि पयु से भर , उसे वह

  • 10

    मटा नह ंपाती। या जवान होने का अहसास, बाप-बेट के बीच इतनी खाइया ँपैदा कर देता है ! बस, वह सोचती भर रह जाती है यह सब। ''म ज दबाजी म कछु नह ंकरना चाहता।'' पापा का अ फटु -सा वर।

    ''ठ क है, आप अ छ तरह सोच ल।'' बचौ लयानमाु य क आवाज़। ''...'' ''पर, नणय तो आपको ह करना है, द नयाु का या है ?'' दबी-दबी जबानु म होती ंइस कार क बात के कछु टकड़ेु बगल के कमरे म बैठे हएु या कचन म चाय तैयार करते समय उसके कान म अ सर पड़ते रहते ह। पछले कछु मह न से इन लोग का आना-जाना बढ़ा है। कौन है ये लोग, वह नह ंजानती। पछले कई दन से पापा कई बार मौसी और मामा के घर आये-गए ह। िजतनी ज द -ज द उनके यहा ँआना-जाना हआु है पछले दन , पहले नह ंहोता था। पापा य आजकल बार-बार मौसी और मामा के यहा ँआते-जाते ह ? आ खर, बेट का मामला ठहरा। कोई कदम उठाने से पहले वह अपने से बड़ क राय ले लेना चाहते ह शायद। ले कन, यह भी सह है, पापा जब-जब मौसी और मामा के घर से लौटे ह, यादा ह थके और मायसू-से लौटे ह।

    कभी-कभी वह सोचती है, अभी तो इ टर ह कया है उसने। घर का सारा कामकाज उसी के कंध पर है। पंक क देखभाल भी उसे ह करनी पड़ती है। म मी क मौत के समय तो वह बहतु छोट थी। वह उसके लए सब कछु है- म मी भी, द द भी। वह चल जाएगी तो कौन करेगा घर का सारा काम ? पापा तो दकानु पर रहते ह, सारा-सारा दन। शायद, तब कोई आया रख ल। पर, ऐसे म पंक क पढ़ाई, उसक देखभाल, उसका वकास या सह ढंग से

  • 11

    हो पाएगा ? या सोचकर पापा इतनी ज द मचा रहे ह ? शायद, लड़के वाले ज द म ह और पापा को लड़का जँच गया हो। मन म उठते जाने कतने ह के उ र वह खदु ह गढ़ लेती है और उनसे संतु भी हो जाती है। ले कन, जवान होती उ के साथ-साथ दल म उमंग का वार कभी-कभी इतनी जोर से ठाठ मारने लगता है क वह ज़मीन से उठकर आकाश छनेू लगती है। अकेले बैठे-बैठे वह सपन क रंगीन द नयाु म पहँचु जाती है। लड़ कया ँशायद इस उ म ऐसे ह व न देखती ह। अपने सपन के राजकमारु क श ल आसपास के हर

    जवान होते लड़के से मलाती ह। उनका हर व न पहले से यादा हसीन और खबसरतू ू होता है। आसपास गल -मोह ले म कह ं बारात चढ़ेगी तो दौड़कर बारात देखने म आगे रहगी। और तो और, घोड़ी पर सवार कसी के सपन के राजकमारु से अपने-अपने सपन के राजकमारु क तलनाु करगी। हर बार उ ह अपने सपन का राजकमारु अ धक हसीन नज़र आता है। तन-मन को एक सखु गदगदाताु ु हआु बह जाता है। ऐसा सखु जो न अपने म ज़ ब कए बनता है और न ह कसी से य कए। ऐसे म, कसी अ तरंग साथी क , म क , बेइंतहा ज़ रत महससू होती है। आजकल उसके साथ भी तो ठ क ऐसा ह हो रहा है। जब कभी वह खाल होती है, वयं को ऐसे ह सपन से घरा हआु पाती है। उसे लगता है, वह गल -मोह ले क औरत से, अपनी स खय से घर बैठ है, शरमायी-सी ! हथे लय पर महद क ठंडक महससू हो रह है। ढोलक क आवाज़ के साथ-साथ गीत के बोल उसके कान म गँूजते ह- ब ने के सर पे सेहरा ऐसे साजे जैसे सर पे बांध ताज, राजे-महाराजे लाडो ! तेरा ब ना लाख म एक काहे सोच करे...। और तभी उसे म मी क याद आ जाती है। सपन के महल जाद ूक तरह गायब हो जाते ह। उसके इद- गद गीत गाती,ं चहलबाजीु करती ि या ँनह ंहोती,ं खामोश द वार होती ह। चि पयु से भरा कमरा होता है। सामने, ठ क ऑ ंख के सामने, टेबलु पर रखा म मी का म कराताु च

  • 12

    होता है। बेजान ! वह उठकर म मी का च अपने सीने से लगा लेती है। भीतर ह भीतर कोई रो रहा होता है उसके। म मी के बोल फर एकबारगी हवा म तैरने लगते ह- ''स मु को अ छे घर याहना। मेर पर -सी बेट का राजकमारु -सा द हाू हो।'' आज पापा को लौटना है। कछु लोग के साथ। जाने कब लौट आएं। न पंक को कलू भेजा है, न ह वह खदु कालेज गई है। पंक को और खदु को तैयार करने म िजतना अ धक समय उसने आज लगाया, पहले कभी नह ंलगाया। िजतनी देर आइने के सामने बैठ रह , खदु के चेहरे म म मी का चेहरा ढँढ़तीू रह । साड़ी म कतनी अ छ लगती है वह ! आज उसने म मी क पस द क साड़ी पहनी है- ह के पीले रंग क । साड़ी पहनते समय उसे लगा, जैसे म मी उसके आस-पास ह खड़ी ह । जैसे कह रह ह - ''नज़र न लग जाए तझेु कसी क !'' रह-रहकर उसका दल जोर से धड़कने लगता है। शाम के चार बजे ह। बाहर एक टै सी के कने क आवाज ने उसके दय क धड़कन तेज कर द है। धक्...धक्... धड़कन क आवाज़ कान म साफ सनाईु देती है। पकं दौड़कर, खोजती हईु -सी उसके पास आई और फर चपचापु बना कछु कहे-बोले बैठक म चल गई। उसक सहमी-सहमी ऑ ंख म कौतहलु साफ दखाई दे रहा था। बगल के कमरे म होने के बावजदू उसने हर ण के य को अपनी ऑ ंख से पकड़ने क को शश क ।... पापा क आवाज़ उसे प सनुाई देने लगी। कैसे हँस-हँसकर बात कर ह पापा ! पापा क आवाज़ म अचानक हएु इस प रवतन को देख वह च क गई। बलकलु वैसी ह आवाज़ ! जैसी म मी के रहते हआु करती थी। उसके चेहरे पर एकाएक खशीु क एक लहर दौड़ गई। कब से तरस रह थी वह, पापा क इस आवाज़ के लए। पापा ने सहमी-सहमी-सी खड़ी पंक को शायद गोद म उठा लया है। यार से चमतेू हएु बोले ह, ''यह है हमार पंक ब टया...।''

  • 13

    ''अरे बेटे, तमनेु कसी को नम ते नह ं क ?... नम ते करो बेटे... अ छा इधर देखो... ये कौन है ?... ये ह... त हारु ... नई म मी...।'' नई म मी ! वह त ध रह गई। सहसा, उसे लगा क वह हवा म उड़ रह थी और अभी-अभी कसी ने उसके पर काट दए ह। वह ज़मीन पर आ गर है-ध म ्से ! इसक तो उसने क पना तक न क थी ! उसक समझ म कछु नह ंआया। धराशायी हएु सपन पर ऑ ं सू बहाये या अपनी नई म मी को पाकर खशु हो ! एकाएक, उसने खदु को संभालने क को शश क और अगले ण के लए वयं को तैयार करने लगी। यह सोचकर क न जाने कब पापा उसे बलाु ल, नई म मी से मलवाने के लए ! अब उसके कान पापा क आवाज़ का इ तज़ार कर रहे थे।

  • 14

    अ तत: उसके चेहरे पर भय क रेखाएं खंच आई थीं और वह हाँफ रहा था। बेतहाशा भागते हएु उसने यह देखने-जानने क को शश नह ंक थी क वह कहा ँऔर कस रा ते पर दौड़ रहा है। जहा,ँ िजस तरफ रा ता मला, वह उसी ओर दौड़ता रहा...दौड़ता रहा और अब आगे गल ब द थी। उसने तेजी से इधर-उधर देखा और वह ंकह ं छपने क जगह तलाश करने लगा। ज द ह , उसक नगाह गल के आ खर मकान पर पड़ी। वह भीतर घसा।ु ग मय क दोपहर का स नाटा मकान के अहाते म पसरा हआु था। अहाते के बायी ंओर क द वार से सटकर म गयु का दड़बा था। उसी से लगकर कछु आड़-कबाड़ रखा हआु था। इसी आड़-कबाड़ म दो ट न क परानीु चादर द वार से इस तरह सटाकर रखी हईु थी ं क द वार और उनके बीच कछु जगह बन गई थी। उसने अब आगे कछु नह ं सोचा और तेजी से वह उसी म छपकर बैठ गया- दम साधे ! कछेकु पल ह बीते ह गे क बाहर ह का-सा शोर होता सनाईु दया। शोर धीरे-धीरे कर ब और तेज होता गया। ''कहा ँगया साला...'' ''इधर नह ंआया शायद।'' ''नह ,ं इधर ह देखा था भागते...'' वर झ लाये और खीझे हएु थे। शोर सनकरु उसक ऑ ंख खदु-ब-खदु मंदु ग और वह मन ह मन ई र को याद करने लगा। काफ देर बाद उसने महससू कया क वे लोग चले गए ह। फर भी, अभी बाहर नकलना उसे खतरनाक लगा। वह कछु देर और वह ं दबककरु बैठा रहा।

  • 15

    कछु पल बाद ह उसने वहा ँ से नकलना बेहतर समझा, य क यहा ँभी अ धक देर बैठना खतरे से खाल नह ंथा। घर के अंदर से कसी के नकलकर इधर ह आ जाने का डर था। हो सकता था, उसे यँू छपा हआु देख वह च ला उठे या पछताछू आरंभ कर दे। वह वहा ँसे उठकर बाहर नकल आया- गल म। गल सनसानु पड़ी थी। वह बहतु चौक ना होकर आगे बढ़ने लगा। हर मोड़ से पहले वह कता, ि थ त का जायजा लेता और इ मीनान हो जाने पर तेजी से मड़ु

    जाता। अब वह सड़क पर था। दरू-दरू तक वे कह ं नह ं दख रहे थे। वे लोग जो उसके पीछे भागे थे। उसने महससू कया क उसक साँस अभी भी तेज-तेज चल रह थीं और सीने म धकधकु ु मची थी। वह तेज कदम के साथ मखजु रोड पर हो लया। यह उसका पहला अवसर था। इससे पहले उसने ऐसा कभी नह ंकया था। घर से नकला था, दबूे जी के कलू गया था। वहा ँ से बस-टॉप तक उसके दमाग म यह कतई नह ंथा क वह ऐसा करेगा !

    करना तो दरू, इसक क पना तक नह ं क थी उसने। यह सब कैसे, कस ेरणा से अक मात ्हआु , वह खदु अचि भत था।

    कसी से मालमू हआु था क गल न बर दो के दबूे जी ने एक छोटा-सा कलू खोला है। उ ह एक मा टर क त काल ज़ रत है। 'सम थगं इज बेटर दैन न थगं' वाल बात सोचकर वह आज सबहु -सबहु ह दबूे जी से उनके कलू म मला था। जब वह पहँचाु , दबूे जी खदु ह ब च को पढ़ा रहे थे। कोई पचास-साठ ब चे थे। ''हा,ँ ज़ रत तो है भई, एक मा टर क ।'' दबूे जी ने उसे बैठने के लए कहकर अपने च मे का शीशा साफ करते हएु कहा, ''पर छह सौ पये से अ धक नह ंदेते हम।''

    च मा ऑ ंख पर चढ़ाकर दबूे जी ने उसक ओर एकटक देखा और फर पहचानते हएु -से बोले, ''तमु ... तमु राम काश जी के बड़े लड़के तो नह ं?''

  • 16

    ''जी...'' उसके मँहु से बस इतना ह नकला। ''बड़े नेक आदमी ह। म उ ह अ छ तरह से जानता हँ।ू '' दबूे जी अब तक अपनी कसु पर बैठ चकेु थे। उसे लगा, उसका काम बन जाएगा। कछु न होने से तो छह सौ पये ह ठ क। घर से अ धक दरू नह ं है कलू क आने जाने म कराया

    खच होगा, पैदल ह आना-जाना हो जाएगा। और फर कौन-सा हमेशा यह ं पढ़ाते रहना है। अ छ नौकर मलते ह इसे छोड़ देगा। दबूे जी कछु सोचते हएु -से बोले, ''क मो त हारु ह ब हन है ?'' ''जी।'' इस पर वह थोड़ा च का। ''बड़ी अ छ लड़क है।'' दबूे जी ने तार फ क । वह चपचापु सनताु भर रहा। एकाएक, दबूे जी बोले, ''ऐसा य नह ंकरते, तमु क मो से कहो, वह ब च को पढ़ा दया करेगी। वैसे भी वह घर म खाल पड़ी रहती होगी। समय भी कट जाया करेगा और कछु आ थक मदद भी हो जाया करेगी, घर क ।'' उसने सामने बैठे दबूे जी क ऑ ंख म झांका। ऑ ंख से परे उनके दल म झांका। वहा ँएक वाथ , लोभी, कामकु य दखाई दे रहा था। क मो हाई- कलू पास थी। वह भी थड- डवीजन से और वह ेजएटू था- ू आउट फ ट लास ! पर क मो लड़क थी और वह लड़का।

    ''तमु तो लयट लड़के हो। ू आउट फ ट लास रहे हो। कह ंन कह ंतो जॉब मल ह जाएगा। यहा ँ मेरे कलू म छह सौ प ल क नौकर कर य अपना के रयर खराब करते हो...।'' दबूे जी ने समझाने के अ दाज म कहा। सहसा, वह आगे क ओर झकु आए और धीमी आवाज म बोले, ''तमु ... तमु कहो तो क मो को सात सौ दे दया क ँगा।'' उस लगा, उसके अंदर कछु खोलने लगा है। उसने एक बार मेज पर रखे पेपरवेट क ओर देखा और फर दबूे जी क खोपड़ी क ओर। दबूे जी अभी भी उसक ओर नज़र गड़ाये थे। वह कछु कर पाता, इससे पहले ह वह वहा ँ से उठकर बाहर आ गया। बाहर आकर उसने प च ् से थका।ू थकतेू व उसे लगा, उसने ज़मीन पर नह ंमानो दबूे के चेहरे पर थकाू हो।

  • 17

    बस- टॉप पर खड़ा वह अपने घर क दन- त दन दयनीय होती जाती ि थ त के वषय म सोच रहा था। अपनी बेकार के बारे म सोच रहा था। दो वष से वह नर तर सड़क नाप रहा है। कई जगह ए लाई कया। कई जगह पर इंटर यू भी दया। पर उसक क मत के ब द दरवाजे खलनेु का नाम ह नह ंले रहे थे। कह ंसोस तो कह ं र त आड़े आ जाती। अभी कछु दन पहले क ह तो बात है... शहर क मशहरू ग ाु एंड क पनी म लक क जगह खाल थी। उसने वहा ँखदु जाकर दर वा त लगाई। दर वा त लेने वाले य िजसे बार-बार अपनी नाक के बाल न चने क आदत थी, ने सवाल फका था- ''कह ंकाम कया है ?'' िजसका जवाब था- नह ं। दसराू सवाल जैसे पहले से ह तैयार था, '' कसी क सोस है ?'' इसका भी जवाब था- नह ं। एक ह तरह के जवाब पाकर वह बौखला गया, '' फर यहा ँ या करने आए हो?... बेकार है बेकार...जाओ कह ंओर जाओ...।'' उसने उस य को अपने सभी माणप दखाते हएु कछु कहने क को शश क । ले कन वह य झ ला उठा और उसके सभी माणप को एक ओर करते हएु लगभग चीखा, ''अरे भई, जानता हूँ, तुम ेजएटू हो... थरू ् आउट फ ट लास रहे हो... बी.ए. आनस म कया है... यह न! पर आजकल इनको कौन पछताू है। भले ह तमु यहा ँए लाई करो, पर रखा तो वह जाएगा, िजसक सोस होगी या जो... जो...'' कहते-कहते वह क-सा गया और फर अपनी नाक के बाल न चने लगा।

    कुछेक पल इधर-उधर देखने के बाद वह बोला, ''जो... जो जेब गरम करने क है सयत रखता हो। यहा ँतो यह होता है भई। होता आया है, और होता रहेगा। यहा ँ या, सभी जगह होता है। समझे न !'' और फर वह अपने काम म जटु गया। वह थोड़ी देर तक उस य के पास खड़ा-खड़ा सोचता रहा। आ खर, उसने धीमे से पछू ह लया, ''भाई साहब, यह जेब कतने तक म गरम हो जाती है।''

  • 18

    उस य ने एकबारगी उसे ऊपर से नीचे तक देखा और फर आ ह ता से बोला, ''ढाई हजार पये क नौकर है, है न ? इससे दगनेु से कम म या जेब गरम होगी। और फर, एक ह क जेब म तो जाता नह ,ं बंटता है सब। समझे न !'' इतने पय के इंतजाम क बाबत पता से कहना फजलू था। वह उनक त या से बखबीू वा कफ़ था। पता वह संवाद जोर-जोर से च लाने लगगे िजसे सनतेु -सनतेु उसके कान पकने लगे ह, ''कहा ँसे लाऊँ इतने पये ?... खदु को बेच दँ ू या डाका डालँू ?... चोर क ँ?...'' चीखते समय उनके मँहु से झाग नकलने लगेगा और नथनेु फलनेू लगगे। पता क ऐसी त या वाभा वक ह है। वह तीन-तीन जवान होती लड़ कय का बाप भी है। बड़ी क शाद के लए फंड के पैसे के अलावा और कोई पैसा उसके पास नह ंहै। प ी है, जो सदैव बीमार रहती है और िजसक दवा-दा के लए हर मह ने काफ पैसा डा टर को चला जाता है। बेटे को जैसे-तैसे पेट काटकर पढ़ाया है। वह खदु देख रहा है, पता दन-रात प रवार क च ता म कमजोर होते जा रहे ह। अपनी साम य म िजतना होता है, करते ह। घर क हालत बद से बदतर होती जा रह है। समय से पहले ह राशन-पानी ख म हो जाता है। और मह ने के आ खर दन म तो फाक क -सी ि थ त रहती है। वह खदु चाहता था क उसे छोट -मोट ह नौकर मल जाए िजससे घर का छटु -पटु खच वह स भाल ले। पर उसे लगता है, दरू-दरू तक फैला बेकार का म थल कभी ख म नह ंहोगा शायद।

    बस- टॉप पर खड़े-खड़े वह यह सब सोच रहा था। सहसा, उसने अपने पास वाले य क ओर देखा। वह य जेब म से बटआु नकालकर छ ेु पैसे नकाल रहा था। बटएु म सौ और पाँच सौ के नोट थे। कतने ह गे, पता नह ं। नोट को देखते ह उसे ढाई हजार पये क नौकर याद हो आई। फर, घर क दयनीय हालत... जवान बहन... अपनी बेकार ...बीमार मा.ँ.. असहाय पता... और... तभी बस आ गई। जाने कब और कैसे उसका हाथ भीड़ म बस पर चढ़ रहे उस आदमी क पछल जेब पर चला गया। बस, फर एक शोर मचा और वह उस आदमी क गर त

  • 19

    म था। लोग का हजमु ू उस पर टटू पड़ा था। और वह जाने कैसे लोग क टांग के बीच से होता हआु िजधर भी रा ता मला, तेजी से उसी ओर दौड़ पड़ा था। अगर वह पकड़ा जाता... सोचते ह उसे कंपकंपी छटू गई। चलते-चलते उसने देखा, वह शहर के बीच बीच पहँचु गया था। आसपास बड़ी-बड़ी इमारत थीं। द तर थे। दकानु थीं। वह सड़क के चौराहे के बीच बने पॉक क ओर बढ़ा और हर घास पर लेट गया। थोड़ी ह देर बाद उसे नींद आ गई। जब उसक ऑ ंख खल ंु तो सामने बहमंिजलाु इमारत के पीछे सरजू छपने क तैयार कर रहा था। वह घास पर से उठकर फश पर सी ढ़य से लगकर बैठ गया। अचानक, उसे याद आया क आज तो मंगलवार है। उसके जेहन म यह बात तेजी से उभर क आज वह ज़ र बजरंग बल क कपाृ से ह पकड़े जाने से बाल-बाल बचा है। जाने कहा ँसे एक ताकत उसके शर र म आ गई थी क वह वयं को मजबतू गर त से छड़ाु ते हएु लोग क भीड़ को चीरता हआु बजल क -सी फतु से दौड़ पड़ा था। उसने मन ह मन बजरंग बल को याद कया। बचपन म मा ँ के कहने पर वह हनमानु चाल सा का पाठ हर मंगलवार कया करता था। मा ँउसे बताती थी क चाल सा पढ़ने से वप याँ भी रा ता बदल लेती ह। एकाएक, उसके हाथ म कछु हरकत हई।ु उसने इधर-उधर देखा और लाल ट का छोटा-सा टकड़ाु उठाकर फश पर बजरंग बल का च बनाने लगा। च बनाते समय उसक मन:ि थ त कसी ाथनारत ् य -सी रह । च बनाने म वह इतना त ल न था क उसे अहसास ह नह ं हआु क उसके आस-पास भीड़ जमा होना शु हो गई है ! च अभी पराू भी नह ंहआु था क टन.्..टन.्.. क आवाज हईु और एक स का फश पर गरा। धीरे-धीरे और स के गरे। च पराू करके वह वहा ँसे उठा और थोड़ा हटकर बैठ गया। उसने देखा, आते-जाते लोग एक ण वहाँ कते, मन ह मन शायद णाम करते और फर जेब टटोलते। 'टन.्..न' से एक स का फश पर

    फकते और आगे बढ़ जाते। अंधेरा गहराने लगा था और फश पर अब काफ स के इक ा हो गए थे। कछेकु पल वह और इंतजार करता रहा। वह चाहता था क लोग कम ह

  • 20

    तो वह उठे। कछु ह देर बाद उसने देखा, दरू-दरू तक कोई दखाई नह ंदे रहा था। वह फतु से उठा और आनन-फानन म सारे स के उठाकर पट क जेब म डाल लए। खड़े होकर एकबारगी इधर-उधर देखा और आसपास कसी को न पाकर तेजी के साथ पॉक से बाहर नकल सड़क पर हो लया। अब सड़क पर ब या ँजगमगाने लगी थी ंऔर वह घर क ओर बढ़ रहा था।

  • 21

    दै य वे दन मेर बेकार के दन थे। म इ टर कर चकाु था और नौकर क तलाश म था। माता- पता मझुे और आगे पढ़ाने म अपनी असमथता कट कर चकेु थे। घर म मझसेु बड़ी दो बहन थी-ं वमला और शा ता। वमला जैसे-तैसे हाई- कलू कर चकु थी ले कन, शा ता आठवी ंजमात से आगे न बढ़ सक । माता- पता वैसे भी, लड़ कय को अ धक पढ़ाने के प म कतई नह ं थे। उनका वचार था क अ धक पढ़ - लखी लड़ कय के लए अपनी बरादर म वर ढँढ़नेू म काफ मि कलु आती ह। दोन बहन घर के कामकाज म मा ँका हाथ बँटाती थी।ं उन दोन क बा रया ँबंधी थीं। सबहु का काम वमला देखती थी, शाम का शा ता। बीच-बीच म मा ँदोन का साथ देती रहती थी। पड़ोस क अपणा आंट से वमला सलाई-कढ़ाई सीख चकु थी और शा ता अभी सीख रह थी। पता एक सरकार फै टर म वकर थे। फै टर म सबहु -आठ बजे से लेकर शाम पाँच बजे तक वह लोहे से क तीु लड़ते और शाम को हारे हएु यो दा क भां त घर म घसते।ु पछले एक साल से फै टर म ओवर-टाइम बलकलु ब द था। ओवर-टाइम का ब द होना, फै टर के वकर पर गाज गरने के बराबर होता था। केवल तन वाह म जैसे-तैसे ह खींच-खांचकर मह ना नकलता। हमारे घर क आ थक ि थ त ठ क न थी बि क दन-ब- दन और चरमराती जा रह थी। ऊपर से जवान होती लड़ कय और बेकार बैठे लड़के क च ता, ये दो मखु कारण थे िजसके कारण पता दन-रात परेशान रहते। च ता म उनका वा य बगड़ता जा रहा था। धीरे-धीरे उनके शर र पर से मास गायब हो रहा था और हि डया ँ उभरने लगी थीं। वह नौकर से रटायर होने से पवू दोन लड़ कय क शाद कर देना चाहते थे। ऐसी ि थ तय म उनक नज़र मझु

  • 22

    पर टक ंथी ंऔर वह कह ंभीतर से आशाि वत भी थे क उनका बेटा इस वकट ि थ त म उनका सहारा बनेगा और उनके कंध पर पड़े बोझ को कछु ह का करेगा। म उनक ऑ ंख म तैरती अपने त उ मीद क करण को ना-उ मीद के अंधेर म त द ल नह ंहोने देना चाहता था। इसी लए म उस समय कसी भी तरह क छोट -मोट नौकर के लए तैयार था। ले कन, नौकर पाना इतना आसान नह ं था। बेकार के म थल म भटकते हएु मझुे एक साल से भी ऊपर का समय होने जा रहा था, पर कह ं से भी उ मीद क ह क -सी भी करण दरू-दरू तक नज़र न आती थी। मेरे सामने जो बड़ी द कत थी, वह यह क घर पर कोई अखबार नह ंआता था। पड़ोस म म कसी के घर बैठकर अखबार पढ़ना नह ंचाहता था। दरअसल, म हर उस सवाल से बचना चाहता था िजसे हर कोई मझुे देखकर मेर तरफ उछाल देता था, '' य ? कह ंलगे या अभी यँू ह ...'' इस सवाल का नकारा मक उ र देते हएु मझमु ह नता का बोध पैदा हो जाता और मझुे लगता, म एक बेकार, आवारा, फालतू, नक मा लड़का हूँ िजसे अपने बढ़ातेु बाप पर ज़रा भी तरस नह ंआता... उस जैसे लड़के तो ऐसी ि थ त म मा-ँबाप का सहारा बनते ह और एक म हूँ क... अखबार के लए म सबहु नौ-दस बजे तक घर से नकल पड़ता। दो-एक कलोमीटर पर बने पनवाड़ी के खोख पर पहँचु हचकते हएु अखबार उठाता। एक पर ह द का अखबार देखता तो दसरेू पर अं ेजी का। अखबार कोई दसराू पढ़ रहा होता तो मझुे इंतजार भी करना पड़ता। अखबार म से ' स यएशनु वेकट' के कालम देखता, कागज पर नोट करता और पो ट आ फस जाकर ए ल केशन पो ट करता। ठ क इ ह ं दन पता का प रचय राधे याम से हआु था। राधे याम एक ठेकेदार था जो सरकार , गैर-सरकार कारखान से तरह-तरह के ठेके लया करता था। सन ्47 के वभाजन म पता लाहौर के िजस गाँव से अपना सबकछु गवा ंकर भारत आए थे, राधे याम भी उसी के आस-पास के इलाके का था। यह कारण था क पता उसम दलच पी लेने लगे थे और एक दन राधे याम को अपने घर पर ले आये थे। जीप जब हमारे सरकार वाटर के बाहर आकर क तो वह मौह ले के ब च के लए

  • 23

    कौतहलु का वषय थी। आस-पड़ोस वाल के लए ऑ ंख फाड़कर देखने क चीज- खैरातीलाल और उसके घर के बाहर जीप ! पता ने राधे याम से अपने ब च का प रचय कराया था, ''ये ह मेर दोन लड़ कया-ँ वमला और शा ता। और यह है मेरा बेटा सशीलु ... अभी पछले साल इ टर कया है, सेके ड डवीजन म।'' राधे याम ने ब द गले का कोट पहन रखा था। गले म मफलर, सर पर रोयदार टोपी। कुल मलाकर वह हमारे लए आकषण का के था। पता ने सनातेु हएु , खासकर मझुे और मा ँको, कहा था, ''अरे, इनक बहतु -सी फै ट रय म जान-पहचान है। ठेकेदार का कारोबार है इनका। लाहौर म िजस गाँव म हम लोग रहते थे, उसके पास के ह गाँव म थे इनके पताजी।'' यानी राधे याम अपनी ह बरादर का आदमी है, पता यह कहना चाहते थे। इसके बाद जैसा क ाय: होता, पता उन दन क याद ताजा करने लगे थे। सन ्47 के वभाजन के दहशतजदा क से सनानेु लगे थे क कैसे वे लोग अपनी सार जमीन-जायदाद, पया-पैसा, मकान आ द छोड़-छाड़कर कट हईु लाश के ढेर म छपते,

    धूँ-धूँ कर जलते मौह ल , ग लय म से डर-डरकर भागते- नकलते, यास लगने पर छ पड़ (पोखर ) का ग दा पानी पीते, जान बचाते कसी तरह ह द तानु म घसुे थे। उनका अ दाजेबया ंऐसा होता क हमारे र गटे खड़े हो जाते। दसरू बार जब राधे याम घर आया तो पता ने अपने मन क बात कह द , ''आपक तो इतनी जान-पहचान है जी... कह ं कसी फै टर म अड़ा दो न हमारे सशीलु को... इंटर पास है।'' ''हा-ँहा,ँ क ँगा म बात... आप च ता न कर,'' राधे याम ने दलासा देते हएु कहा, ''अरे अपन को नह ंलगवाएंगे तो कसे लगवाएंगे। आप फ न कर जी, जहा ँकहोगे लगवा दँगा।ू '' बस, फर या था। पता क दलच पी राधे याम म बढ़ गई। िजस दन उ ह मालमू होता, वह फै टर आया है, वह उसे जबरद ती अपने साथ घर ले आते।

  • 24

    इस कार, राधे याम का आना-जाना हमारे घर म बढ़ने लगा था। अब वह जब कभी फै टर आता, सीधा हमारे घर पहँचताु , चाहे पता घर पर होते या न होते। पता क अनपि थ तु म राधे याम जब भी हमारे घर म घसताु , परूे घर म चहल-पहल शु हो जाती। घर म तेल-घी न होने पर पड़ोस से मांग-तंगू कर याज क पकौ ड़या ँ तल जाती.ं.. चाय के कप उठाकर राधे याम को पकड़ाने के लए दोन बहन के बीच होड़ लग जाती... माँ राधे याम से 'अपना ह घर समझो' कहती रहती.ं.. खाने का व होता तो जबरन खाना खलाया जाता। वह उठकर जाने लगता तो बहन उससे थोड़ी देर और कने का इसरार करने लगती,ं '' पताजी आ जाए ं तो चले जाइएगा।'' और राधे याम कई-कई घंटे हमारे यहा ँ बताकर लौटने लगा। इस बीच, कई मह ने बीत गए। राधे याम हमारे यहा ँ आता, ठहरता, ग प-श प करता और खा-पीकर चला जाता। वह आता तो बहन के चेहरे खल उठते और जाता तो उ ह ं चेहर पर उदासी के रंग पतु जाते। पता उससे बहतु उ मीद लगाए बैठे थे। हर रोज वह सोचते, आज वह आएगा और कहेगा, ''मने सशीलु के बारे म फला ँफै टर म बात कर ल है, कल से उसे भेज दो...'' पर होता इसके उलट। राधे याम आता, इधर-उधर क बात करता, हँसता-हँसाता, खा-पीकर चलता बनता। िजतनी देर वह घर पर कता, पता क ऑ ंख और कान उसी क ओर लगे रहते। पता क बेस ी का बांध अब टटू रहा था। आ खर, उ ह ने ह मत कर एक बार फर राधे याम से मेरे बारे म बात क । वह जैसे सोते से जागा था, ''अरे, म तो भलू ह गया। आपने भी कहा ँयाद दलाया।'' राधे याम कछु सोचते हएु बोला, ''आप फ न कर जी... अब आपने याद दलाया है तो इसे कह -ंन-कह ंज़ र अड़ा दँगा।ू '' इसके बाद उसने खाना खाया और चला गया। पता इतने भर से फलकरू ग बाराु हो गए थे। काफ देर तक वह हमारे सामने उसका गणगाणु करते रहे। और फर, पराू एक मह ना राधे याम दखाई नह ं दया।

  • 25

    एक दन दोपहर के समय हमारे वाटर के बाहर जीप आकर क । शा ता दौड़कर बाहर नकल । देखा, राधे याम था। उसके हाथ म एक पैकेट था िजसे लेकर शा ता झमतीू हईु भीतर दौड़ गई थी। '' या है ?'' मेरे को उसने अनसनाु कर दया था। अब वह पैकेट वमला के हाथ म था। वमला के चेहरे पर भी खशीु के भाव तैर आए थे। म चीख-सा उठा, '' या है इसम ?'' ''त हु या ?... कछु भी हो। अंकल हमारे लए लेकर आए ह तो त हु य जलन होती है ?...'' शा ता ने पलटकर मेर चीख का जवाब दया। मझुे उससे ऐसी उ मीद कतई नह ंथी। आज तक वह मझसेु ऊँची आवाज म नह ंबोल थी। म कछु और कहता क बीच म मा ँआ गई, ''अरे कछु नह ंहै। दोन क सा ड़या ँहै इसम। मने मंगवाई थीं।'' अब तक चपु बैठा राधे याम एकाएक हँसते हएु बोला, ''अहमदाबाद गया था। लौटते व सोचा लेता जाऊँ... स ती ह।'' फर मेर ओर मखा तबु होते हएु बोला, ''त हारेु लए भी पट-शट देखी थी, पर सोचा, मालमू नह ंत हु कौन-सा रंग पसंद है। इस लए नह ंला सका। अबक बार जाऊँगा तो पछकरू जाऊँगा।'' शाम छह बजे तक वह हमारे घर पर रहा। अहमदाबाद क बात बताता रहा। मा ँऔर बहन त मय होकर उसक बात सनतीु रह ं। पता के फै टर से लौटने का व हआु तो राधे याम उठकर जाने लगा। मा ँ ने कहा, ''उनके आने का व हआु तो आप जा रहे ह... इतने दन बाद आए ह, उसने मलकर ह जाते।'' राधे याम को कना पड़ा। कछु ह देर बाद पता आ गए। वह तपाक से उनसे मला और उनके कछु बोलने से पहले ह अपने अहमदाबाद चले जाने क बात करने लगा। पता चपचापु उसक बात सनतेु रहे। कछु बोले नह ं। बहन उठकर पहले ह दसरेू कमरे म चल गई थी ंऔर मा ँ रसोई म चाय का पानी चढ़ाने लगी थी। कछेकु ण तक कमरे म चि पयु का बोलबाला रहा। एकाएक, राधे याम ने मँह खोला, ''अगले ह ते फरोजाबाद-आगरा जा रहा हूँ... वहा ँक कई फै ट रय म मझुे काम ह। सशीलु के लए बात क ँगा।''

  • 26

    पता अभी भी चपु थे। वह सनु रहे थे बस। ''सशीलु को साथ लेता जाऊँगा। आमने-सामने बात हो जाएगी।'' राधे याम मेर ओर देखकर बोला, ''कभी आगरा गए हो ?...ताज देखने क चीज है... इस बहाने तमु उसे भी देख लेना।... ऍ.ं..।'' मेरे मन म ताजमहल देखने क इ छा पछले कई साल से थी। कालेज क ओर से एक टरू गया था, छा -छा ाओ ंका। सबने सौ-सौ पये मलाये थे। म सौ पय के कारण न जा सका था। ''इधर ह कह ं देखते तो अ छा रहता।... इतनी दरू...।'' पता के मँहु से काफ देर बाद बोल फटेू थे। लगता था, जबरन आवाज को भीतर से बाहर धकेलने क को शश कर रहे ह । ''अरे भाई साहब... एक-दो साल उधर कर लेगा। कछु ए सपी रयस हो जाएगा तो इधर कसी अ छ फै टर म लगवा दँगा।ू आप फ य ँकरते ह ?...'' उस दन म बहतु खशु था। एक दन पहले ह मने अपनी इकलौती पट-शट धोकर, ेस कराकर रख ल थी। और दन क अपे ा उस दन म सबहु ज द उठ गया था और नहा-धोकर तैयार होकर बैठा था। पता के फै टर चले जाने के तर तु बाद राधे याम पहँचाु था। कछु देर बैठने के बाद उसने आवाज़ लगाई, ''अरे भई, तमु लोग ज द तैयार होओ... नह ंतो लौटने म देर हो जाएगी।'' म तैयार था और राधे याम मझुे देख चकाु था। ले कन उसका 'तमु लोग' मझुे हैरान करने लगा। थोड़ी ह देर म सार ि थ त साफ हो गई। शा ता और वमला तैयार होकर बाहर नकल आई थीं। मेरा सारा उ साह एकाएक ठंडा पड़ गया। मेर इ छा कपड़े उतारकर फक देने क हई।ु बहन क हँसी मझुे अ दर तक चभु रह थी। राधे याम क चालाक पर मझुे ग साु आ रहा था। मेर और पता क अनपि थ तु म राधे याम और बहन के बीच ज़ र कोई खचड़ी पकती है। मझुे नौकर दलाने नह , इस बहाने वमला और शा ता के साथ मौज-म ती के उ े य से जा रहा था वह।

  • 27

    ''कोई नह ंजाएगा... न म, न शा ता, न वमला।'' म चीखकर कहना चाहता था, पर चीख मेरे अ दर ह तड़फड़ा कर दम तोड़ गई। मा ँको भी शायद इस बारे म अ धक जानकार नह ंथी। दोन लड़ कय को तैयार हआु देख, उसने पछाू , ''तमु दोन कहा ँचल ं तैयार होकर !'' राधे याम उठकर आगे बढ़ आया, बोला, ''बि चया ँहै, ताज देखने क उ सकताु होना वाभा वक है ब च म। इस बहाने सशीलु के संग ये भी घमू लगी आगरा... कहा ँरोज-रोज जाना होता है।'' ''वो तो ठ क है पर, इनसे पछूे बना म कैसे लड़ कय को भेज सकती हँ।ू ... ये फर कभी चल जाएंगी। अभी तो आप सशीलु क नौकर के लए जा रहे ह। जाने कहा-ँकहाँ, कन- कन फै ट रय म जाना- कना पड़ेगा आपको... आप सशीलु को ह ले जाएँ।'' मा ँक बात पर राधे याम भीतर-ह -भीतर मन मसोस कर रह गया था। ऐसा उसके चेहरे से लग रहा था। बहन के चेहरे लटक गए थे। लटके हएु चेहरे लए वे पैर पटकती हईु अ दर दौड़ गई थीं। णभर को गमी जैसा वातावरण बन गया था। राधे याम चपु था। मा ँद वधाु म थी। म खशु भी था और नह ंभी। ''चलो...'' राधे याम ने मेर ओर देखकर कहा और जीप म जा बैठा। जीप टाट हो चकु थी ले कन म अभी भी मा ँके पास असमंजस क ि थ त म खड़ा था। मा ँ ने प लू म बंधे सौ पये मझुे थमाए और कहा, ''रख ले। ज़ रत पड़ जाती है कभी-कभी।'' म चपचापु जाकर जीप म बैठ गया। मेरे बैठते ह जीप झटके से आगे बढ़ गई। दोपहर का समय था जब फरोजाबाद क एक फै टर म हमार जीप घसी।ु परूे रा ते न राधे याम मझसेु बोला था, न म राधे याम से। जीप से उतरकर वह सीधे फै टर म जा घसाु था। म वह ं जीप म बैठा रहा। कोई एक घंटे के बाद वह फै टर से नकला। मझुे अब कछु -कछु भखू व यास लग आई थी।

  • 28

    जीप अब फर सड़क पर दौड़ रह थी। आधे घंटे के सफ़र के बाद जीप फर एक फै टर के बाहर क । मझुे उतरने का इशारा हआ।ु म उतरकर राधे याम के पीछे हो लया। रसे शन पर मझुे बठा, वह फै टर म घसु गया। बीस-प चीस मनट बाद राधे याम लौटा तो बेहद खशु नज़र आ रहा था। मने सोचा, नौकर क बात प क हो गई लगती है शायद। रसे शन पर बैठे एक आदमी से उसने हँस-हँसकर बात क ंऔर फर उसे लेकर फै टर के बाहर बने खोखे पर चाय पीने लगा। रसे शन के शीशे के दरवाज के पार म उ ह चाय पीता देखता रहा। दोन को चाय पीते देख मेर भखू व यास एकाएक तेज हो उठ थी। वहा ँ से नकलने के बाद जीप फर दौड़ रह थी- सड़क पर। राधे याम अब कोई फ मी गीत गनगनातेु ु हएु म ती म जीप चला रहा था। एकाएक बोला, ''मालमू है, अभी हम िजस फै टर म गए थे, उस फै टर से मझुे नेट डेढ़ लाख का मनाफाु होने जा रहा है... यह मेरा अब तक का सबसे बड़ा ठेका होगा।'' उसके चेहरे पर रौनक थी। वह कसी फ मी ह रो क तरह जीप चला रहा था। झमताू ... गाता... सीट बजाता। ''सरकार से हवाई जहाज म इ तेमाल होने वाल काँच क छोट चम नय का ठेका मला है- एक लाख चम नय का। यह फै टर बनाने को तैयार हो गई है। त चमनी फै टर का ढाई पया खच होगा। सोढ़े तीन म मझुे देगी। म उसे सरकार को पाँच म दँगा।ू यानी एक लाख चम नय पर नेट डेढ़ लाख का लाभ !'' उसक खशीु का कारण अब मझसेु छपाु नह ंथा। उसक खशीु के पीछे मेर नौकर आ द क कोई बात नह ंथी। यह तो उसके ठेके म हो रहे मनाफेु क बात थी। मेर नौकर क बाबत उसने कोई बात भी क होगी, इसम मझुे स देह हो रहा था। राधे याम के अनसारु अब हम आगरा के बहतु नज़द क चल रहे थे। इससे पवू रा ते म एक छोट फै टर म राधे याम ने मेर नौकर क बात क थी। मैनेजर ने फलहाल कोई वेकसी नह ंहोने पर खेद कट कया था। साथ ह , भ व य म ज़ रत पड़ने पर बलानेु का आ ासन देते हुए मेरे पट कलसु आ द रख लए थे।

  • 29

    हमार जीप एक बार फर एक फै टर के बाहर क । इस बार राधे याम भीतर घसाु तो दो घंट से भी अ धक समय लगाकर बाहर नकला। जीप म बैठे-बैठे उसका इ तज़ार करते म तंग आ गया था। इस बीच मने फै टर के बाहर बने हड प प से पानी पया था और व काटने के लए इधर-उधर चहल-कदमी करता रहा था। पानी पीने के बाद मेर भखू तेज हो उठ थी। सबहु ह का-सा ना ता करके ह चला था म। पास ह ढाबेनमाु एक दकानु थी। सोचा, राधे याम के बाहर नकलने से पहले कछु खा लँ।ू पैसे तो थे ह मेरे पास। मगर तर तु ह जाने या सोचकर मने अपने इस वचार को झटक दया। दरअसल, म भीतर से भयभीत था क कह ंराधे याम बाहर न नकल आए और मझुे खाता हआु न देख ले। म जीप म बैठ गया और अपना यान इधर-उधर उलझाने लगा। ले कन यह सल सला अ धक देर न चला। भखू के मारे मेरे सर म ह का-ह का दद शु हो चकाु था। तभी राधे याम बाहर नकला। शाम के साढ़े चार का व हो रहा था तब। जीप म बैठते हएु राधे याम बोला, ''इस फै टर का मैनेजर बाहर गया है, होता तो त हारु बात प क थी। अपना यार है, साथ-साथ पढ़े ह हम।'' जीप टाट कर वह बोला, ''त हु ताज दखा द, फर लौटते ह। बहतु देर हो जाएगी नह ंतो। रात यारह से पहले नह ंपहँचु पाएंगे।'' म चपु था। ताज देखने क इ छा ने थोड़ी देर के लए मेर भखू को कम कर दया था। कछु कलोमीटर चलने पर ह ताज दखने लगा था। राधे याम बोला, ''वो देखो... ताज। कतना संदरु लगता है। दरू से ऐसा लगता है जैसे कोई खबसरतू ू सफेद प र दा आकाश म उड़ने को तैयार बैठा हो।... है न ?'' म उ सकताु भर नज़र से ताज देखने लगा। ''देख लया, अब यह ं से लौट चल।... य ?'' राधे याम जीप धीमी करता हआु बोला। मझुे लगा, मेर सार उ सकताु का कसी ने जैसे हाथ बढ़ाकर बेरहमी से गला घोट दया हो।

  • 30

    '' फर कभी आएंगे।... सभी... तो देखगे कर ब से। पु म देखने म कछु और ह मजा है।...'' जीप क गई थी। राधे याम क ऑ ंख मेरे चेहरे पर ि थर थीं। शायद वह मेर त या जानने क को शश कर रहा था। ''नह ,ं म तो आज ह ताज देखकर जाऊँगा।... इतने नज़द क पहँचकरु म बना देखे नह ंजाऊँगा।'' म हैरान था, मेरे गले से यह सब कैसे नकला। मेरा चेहरा तना हआु था। ऑ ंख अभी भी ताज को देख रह थीं। राधे याम ने बना कछु बोले जीप सड़क पर दौड़ानी आरंभ कर द थी। कोई आधे घंटे बाद हम ताज के पास थे। जीप पाक कर राधे याम बोला, ''म यह ंठहरता हँ।ू तमु आधे घंटे म देखदाख कर आओ। म यह ं पर मलँगा।ू ठ क !'' म अपनी अंत ड़य म तेजी से छरु क तरह कछु घमड़ताु हआु महससू कर रहा था अब। भखू और सरदद क वजह से खबसरतू ू द खने वाला ताज अब मझुे कतई अ छा नह ंलग रहा था। अनमने भाव से म ताज क ओर बढ़ा। दरू से खबसरतू ू सफेद प र दे-सा द खने वाला ताज मझुे अब कसी वशाल सफेद दै य-सा लग रहा था। उसक चार मीनार मझुे ल बी-ल बी बांह के समान लग रह थीं। एक औरत क लाश को अपन चंगलु म फँसाये दै य हँस रहा था। लगता था, सर क नस फट पड़गी। पेट क अंत ड़य म ऐंठन हो रह थी। म इस दै य के साये से खदु को ज द ह बाहर नकाल लाया। बाहर नकलकर देखा, राधे याम कह ंनह ंथा। जीप भी खाल थी। लोग के आते-जाते हजमु ू म म राधे याम को ढँढ़ताू रहा था, कछु देर तक। भखू और सरदद के कारण मझुे च कर आ रहा था। लगता था, कसी भी ण गर पडँग़ा।ू एकाएक, मझुे सामने कछु ह दरू पर बने रे तरा ं के बाहर बछ एक बच पर राधे याम प रयाँू खाता दखाई दे गया। वह ज द -ज द मँहु चला रहा था। ठ क इसी ण मने अपने भीतर, ऊपर से नीचे चीरती जाती तेजाब क एक धार को महससू कया। म अ धक देर वहा ँखड़ा न रह सका।

  • 31

    वहा ँ से हटकर मने तर तु बस- टै ड के लए र शा कया। घर पहँचनेु के लए मा ँके दए हएु सौ पये मझुे काफ लग रहे थे।

  • 32

    चि पु य के बीच तैरता संवाद

    मझुे यहा ँआए एक रात और एक दन हो चकाु था। पताजी के सी रयस होने का तार पाते ह म दौड़ा चला आया था। रा ते भर अजीब-अजीब से याल मझुे आते और डराते रहे थे। मझुे उ मीद थी क मेरे पहँचनेु तक

    बड़े भैया कशन और मंझले भैया राज दोन पहुँच चकेु ह गे। पर, वे अभी तक नह ंपहँचेु थे। जब क तार अ मा ने तीन को एक ह दन, एक ह समय दया था। वे दोन यहा ँ से रहते भी नज़द क ह। उ ह तो मझसेु पहले यहा ँपहँचु जाना चा हए था, रह-रहकर यह सब बात मेरे जेहन म उठ रह थीं और मझुे बेचैन कर रह थी।ं म जब से यहा ँआया था, एक-एक पल उनक ती ा म काट चकाु था। बार-बार मेर ऑ ंख वत: ह दरवाजे क ओर उठ जाती थीं। मझुे तो ऐसे मौक का जरा-भी अनभवु नह ंथा। कह ंकछु हो गया तो म अकेला या क ँ गा, यह भय और दि ताु मेरे भीतर रह-रहकर साँप क तरह फन उठा रह थी। पताजी क हालत म र ीभर भी सधारु नह ंथा। कल शाम जब से म आया हूँ, उ ह नीम-बेहोशी म ह देख रहा हँ।ू अ मा ने बताया था क मेरे आने से चार-पाँच घंटे पहले तक तो उ ह ने दवा वगैरह ल थी। ट ी-पेशाब भी कया था। शर र म हरकत भी थी। क तु, उसके बाद से न तो ऑ ंख खोल ह, न ह हले-डलेु ह। अ मा कई बार उनका पायजामा वगैरह भी देख चकु ह। ट ी-पेशाब तक लगता है, ब द हो गया है। अ मा अब बेहद घबराई हईु -सी थीं। उनसे कह ंअ धक म घबरा रहा था। पताजी को हला-डलाकरु बात करने क मेर को शश बेकार रह थीं। सारा दन म उनके पास बैठा रहा था। बैठे-बैठे कभी लगता, अभी पताजी करवट लगे... कभी लगता, अभी उनके ह ठ हलगे... कभी लगता,

  • 33

    वे गदन हलाने क को शश कर रहे ह... पर, ऐसा मझुे लगता था, होता कछु नह ंथा। परूे घर म स नाटे क एक चादर तनी थी। एक दि ताु और च पीु क गर त म हम सब बरु तरह जकड़े हएु थे। हम लोग आपस म बात भी करते थे, तो लगता था, फसफसाु ु रहे ह ।... गले से आवाज खलकरु नकल ह नह ं पा रह थी। छोट बहन पंक और छोटा भाई व क कल से ह मझसेु बहतु कम बोले थे। उनके चेहरे पर चि पयाँु च पा ंथीं। मझुे आ य हो रहा था क व क जैसा शरारती बालक इतना शा त और खामोश कैसे रह सकता है ! उसे तो उठते-बैठते, खाते-पीते बस शरारत ह सझतीू थी। हम चपु थे। हमारा एक-एक पल भय और घबराहट म बीत रहा था। घड़ी ने शाम के छह बजाए तो म पताजी के पास से उठकर दसरेू कमरे म आ गया। व क कोई कताब खोले पढ़ रहा था चपचाप।ु पंक कसी परानेु कपड़े पर कढ़ाई कर रह थी। बाहर, गल म ब चे खेल रहे थे। ह का-ह का शोर खलु खड़क से कदकरू अ दर आ रहा था। शायद आइस-पाइस या छपाु -छपीु का खेल था। कभी-कभी कोई ब चा हमारे घर से लगे जीने के नीचे छपु जाता था। दसराू ब चा उसे ढँढ़तेू हएु जब वहा ँपहँचताु तो शोर तेज हो उठता और हमारे घर म स नाटे क तनी हईु चादर हलने लगती। एक-दो बार अ मा बाहर नकलकर शोर न करने का इशारा कर आई थी ंले कन ब चे तो आ खर ब चे थे। थोड़ी देर बाद ह उनका शोर फर सनाईु दे जाता। इ�