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www.bhavanaustralia.org . का | सािहय | िशा | संकृित | दशन िसतंबर 2012, अंक 1 नंबर 5 (Vol 1. No. 5) | ISSN 2200 - 7644

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    का | सािहत्य | िशक्षा | संस्कृित | दशर्न िसतबंर 2012, अंक 1 नंबर 5 (Vol 1. No. 5) | ISSN 2200 - 7644

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    नवनीत भारत से

    साभार: नवनीत िह�दी डाइजे�ट, अगत 2012

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    साभार: नवनीत िह�दी डाइजे�ट, अगत 2012

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    संपादक�य पना

    क यूटर और हम।....क यूटर और हम।....क यूटर और हम।....क यूटर और हम।.... आज से 50 साल पहले हम म से ब त से लोग नह जानते थे क हम इस तरह क यूटर के क बोड पर टाइप करके िह दी म एक स पादक य िलख सकगे या आप अपने क यूटर के

    न पर नवनीत का यह स पादक य ंग पढ़ सकगे।

    मािनये या ना मािनये क यूटर आज हमारी ज़दगी का एक अटूट िह सा हो गया ह।ै हम सोते से जागत ेह तो सवेरे सवेरे हमारा संपक अलाम महोदय से होता ह।ै अलाम चाह ेफ़ोन का हो या घड़ी का आजकल क यूटर टे ॉलोजी से भािवत ह।ै कचन म जाय तो क यूटर, कार ाइव कर तो क यूटर, ेन म बैठ तो क यूटर, ऑ फस म काम कर तो क यूटर, साई कल पर क यूटर और हवाई जहाज़ पर क यूटर। अब हर जगह िवराजमान ह ैयह क यूटर महाशय।

    क यूटर के अिव कार ने िपछल ेकुछ साल म, एक आम आदमी के जीवन म एक हलचल सी कर दी ह।ै और सच मािनये तो हम सब ही क यूटर के गलुाम हो गये ह। जब हमारे पास यह नह होता ह ैतो लगता ह ै ज़दगी अधरूी ह।ै फ़ म तो क यूटर पर बनती ही ह अब तो लेखक और किव भी अपन ेलेख और किवता छोटे से आईपडै का सहारा लेकर ही सुनाना पस द करते ह नह तो उनको िपछड़ी ज़ात का किव माना जाता ह।ै

    यही नह क यूटर क टे ॉलोजी म इतनी तेज़ी से प रवतन हो रहा ह ै क य द आप उसके साथ साथ नह चलगे तो ब त पीछे छूट सकते ह।ै इसिलए इन महाशय को इ तेमाल करने के साथ साथ आप ने इनके साथ साथ दौड़ना भी ह।ै जी हाँ हर चीज़ क र तार इस क यूटर ने तेज़ कर दी ह।ै जो काम आप 2 महीने म करते थे वो आज आप 2 िमनट म कर सकते ह। अगर आपने इसको सीखने म ज़रा भी देर करी या आप इसक र तार के साथ साथ आग ेनह बढ़े तो आपको यह दिुनया भी छोड़ दगेी। आपको लगगेा आज तक का सारा कया आ काम अब त हो गया।

    अब यह क यूटर ब े क माँ के पेट से लेकर जीवन क आख़री साँस तक हमारे साथ कह न कह जुड़ा आ ह।ै आप पढ़ाई, काम-काज, नौकरी, वसाय, मरन े के बाद क सारी र म भी क यूटर महाशय के ारा परूी कर सकते ह। चोरी, लूट-पाट, हसा भड़काना तो ब त आसान काम ह। सभी कुछ इस क यूटर से आसानी से कया जा रहा ह।ै

    हसँ के मुझे यह कह लेने दीिजये क शायद कुछ साल म आप शादी भी क यूटर से कर सकगे। जी हाँ मेरा मतलब ह ैक पित-प ी के पिव र ते का काम और आपका वािहक जीवन िबताना भी यह क यूटर कर रहा होगा। और शायद वह ऊपर वाला िजस पर हम सब का अटूट िव ास ह ैकोई आला दज का क यूटर िलये हम सबका िहसाब कर रहा होगा। छोिडये इस मज़ाक़ को, ज़रा यह भी सोिचये क कैसा था हमारा जीवन जब क यूटर का आिव कार ही नह आ था? या हम अधूरे थे उस समय या हम अधरेू होन ेका

    यास कर रह ेह इस समय?

    आपसे िनवेदन ह ै क आप अपने िवचार इस बारे म हम ज़ र भेज “आप भिव य म क यूटर को कस प म इ तेमाल करना चाहग ेऔर कब तक इसको साथ साथ रखगे?” आपक ित या का मुझे इंतज़ार रहगेा।

    शुभ कामना सिहत

    अ�बास रज़ा अलवी, संपादक

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    रा�रा�

    रा�

    गान

    गानगान

    गान

    जन गण मन

    अिधनायक जय ह े

    भारत भा�यिवधाता

    पंजाब िस�धु गुजरात मराठा

    �ािवड़ उ�कल बंगा

    िव��य िहमाचल यमुना गंगा

    उ�छल जलिध तरंगा

    तव शुभ नामे जागे

    तव शुभ आशीष मांगे

    गाह ेतव जयगाथा

    जन गण मंगलदायक जय ह े

    भारत भा�यिवधाता

    जय ह,े जय ह,े जय ह े

    जय जय जय जय ह!े

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    �वषय-सचूी

    बात बात म� बात बढ़ गई ......................................... 7

    छोटे से कदम से ऊंची छलांग ..................................... 8

    अनुभव.............................................................. 10

    आज मुझसे बोल, बादल! ........................................ 12

    न�ष का पतन ..................................................... 12

    गहरी दिृ� .......................................................... 18

    लोरी सनुा रही ह ै�हदी जुबा ंक! खुशबू ...................... 25

    आज़ादी का एक 'प$लु' .......................................... 27

    िह%दी उदू' ह( बहन बहन ......................................... 28

    ऑनलाइन िश)ा—सबको लाभ*द ........................... 29

    ऑ,-ेिलया म� िह%दी–िश)ा स0ब%धी मेरे अनुभव .......... 36

    दोपहर क! चाय .................................................. 41

    ,वामी िववेकान%द के सुिवचार ................................ 42

    सच का सौदा ...................................................... 43

    अमर ,पश' ......................................................... 45

    कल रात तार5 न ेमुझ से पूछा .................................. 46

    बोधकथा ........................................................... 47

    साथ'कता ........................................................... 48

    आ नो भ�ाः �तवो यतु िवतः

    महान िवचार� को हर �दशा से हमारे पास आने दो

    -ऋ�वेद 1-89-1

    भारतीय िवा भवन

    भारतीय िवा भवन भारतीय िवा भवन

    भारतीय िवा भवन ऑ�ेिलया

    ऑ�ेिलया ऑ�ेिलया

    ऑ�ेिलया

    िनद�शक

    िनद�शकिनद�शक

    िनद�शक

    मंडल

    मंडलमंडल

    मंडल

    पदािधकारी

    पदािधकारीपदािधकारी

    पदािधकारी:

    : :

    :

    अ9य)

    सुरे��लाल मेहता

    काय'कारी सिचव होमी न�ोजी द�तूर

    *धान शंकर धर

    सिचव �ीधर कुमार क�दपेुदी

    अ�य

    अ�यअ�य

    अ�य

    िनद�शक

    िनद�शकिनद�शक

    िनद�शक:

    ::

    :

    अ�बास रज़ा अलवी, रोजेन कुलकण#, प$लादम नारायणा सथानागोपाल,

    , ,

    ,

    क$पना �ीराम,

    , ,

    , जग(ाथन वीराराघवन,

    , ,

    , मो)ा व

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    बात

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    बात

    बात

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    बात

    म�

    म�म�

    म�

    बात

    बातबात

    बात

    बढ़

    बढ़बढ़

    बढ़

    गई

    गईगई

    गई

    (ग़सा त�काल शांत नह� होता प�रणाम भुगतने के बाद शांत होता

    ह)ै

    बात

    बात म�

    बात बढ़ गई

    क� बात, िबना बात

    इसने कुछ ऐसा कह डाला

    उसने मारी लात।

    लात पड़ी तो इसने उठकर

    �दया पेट म� घूंसा,

    उसने इसके मुंह म�

    गदा फूल तोड़ कर ठंूसा।

    ह�ठ हो गए पीले-पीले

    चेहरा हो गया लाल,

    नील पड़ ेदोन� के तन पर

    �ई गुलाबी चाल।

    लड़े-िभड़ ेऔर िगरे-पड़ ेतो

    दब गई सारी घास,

    रोते धोते दोन� प�चंे

    टीचर जी के पास।

    टीचर जी ने बात सुनी

    झट हाथ म� थामा �ल—

    यही सीखने आते हो �या

    तुम दोन� �कूल?

    लुटे-िपटे दोन� ब�� क�

    हो गई और िपटाई,

    नह� िशकायत करनी आगे

    बात समझ म� आई।

    पुन: िपटे वे दोन� ब�े

    चुप-चुप बाहर

    िनकले,

    वे �या िनकले उनके

    मन के

    ग़��स ेबाहर िनकले।

    बाहर आकर हाथ िमलाए

    ख़तम �आ हगंामा,

    पहले ने झाड़ी कमीज़

    और दजूे ने पाजामा।

    ——

    —अशोक च"धर

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    अशोक

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    अशोक

    च�धर

    च�धरच�धर

    च�धर

    जी

    जीजी

    जी

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    काका

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    �लॉगÑच�

    च�च�

    च�

    रे

    रेरे

    रे

    च�पू

    च�पूच�पू

    च�पू

    छोटे

    छोटेछोटे

    छोटे

    से

    ससेे

    से

    कदम

    कदमकदम

    कदम

    से

    ससेे

    से

    ऊंची

    ऊंचीऊंची

    ऊंची

    छलागं

    छलागंछलागं

    छलागं

    —च; रे च0प!ू तोय वो ीस सौ उ%ह?र क! जुलाई। नील

    आम',-ांग के िनधन का समाचार पढ़ा

    तारीख भी पता चल गई, बाईस। म( उस

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    —दसूरा अ%धिवKास! च%=मा से जुड़ े �ए िजतने भी

    अंधिवKास थे उन पर काका ने *हार �आ जब

    िव:ान से कला-)ेa म� आ गया। छोटे से क़दम से लगाई

    ऊंची छलांग।

    ——

    —अशोक

    अशोकअशोक

    अशोक

    च धर

    च धरच धर

    च धर, उपा9य), िह%दी अकादमी,

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    आधी उॆ बीत गयी और बात

    करना न आया। (पित से) खड़े

    सोच �या रहे हो, तु�ह डर

    लगता हो; तो म� जाकर कह

    आऊँ ?’

    मुंशी 3ेमच�द क> अनमोल कृितयाँ

    अनभुव

    अनभुवअनभुव

    अनभुव

    दवेीजी ने जैसे पहलेी बूझकर कहा, अRछा समझ गयी, कुछ

    खु

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    म� इस दया-सागर म

    डुब�कयाँ खाने लगी। बोलती

    �या। शाम को जब �ान

    बाबू लौटे, तो उनके मुख पर

    वजय का आन#द था।

    साथ बड़ा अ%याय कर रही हो बहनजी। म( यह कभी नहF

    दखे सकती

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    आज

    आजआज

    आज

    मझुसे

    मझुसेमझुसे

    मझुसे

    बोल

    बोलबोल

    बोल,

    , ,

    , बादल

    बादलबादल

    बादल!

    !!

    !

    तम भरा तू, तम भरा म,

    ग़म भरा तू, ग़म भरा म,

    आज तू अपने %दय से %दय मेरा तोल, बादल

    आज मुझसे बोल, बादल!

    आग तझुम�, आग मुझम�,

    राग तुझम�, राग मुझम�,

    आ िमल� हम आज अपने *ार उर के खोल, बादल

    आज मुझसे बोल, बादल!

    भेद यह मत दखे दो पल-

    +ार जल म, तू मधुर जल,

    ,थ. मेरे अ0ु, तेरी बूंद ह ैअनमोल, बादल

    आज मुझसे बोल, बादल!

    ह�रवंश राय ब�न (27 नवंबर, 1907 - 18 जनवरी, 2003) िह�दी भाषा के �िस� किव और

    लेखक थे। उनक� किवता� क� लोकि�यता का �धान कारण उसक� सहजता और संवेदनशील

    सरलता ह ै । ‘मधुबाला’, ‘मधुशाला’ और ‘मधुकलश’ उनके �मुख सं&ह ह' । ह�रवंश राय ब�न को

    ‘सािह(य अकादमी पुर+कार’, सर+वती स,मान एवं भारत सरकार .ारा सन् 1976 म0 सािह(य एवं

    िश1ा के 1े2 म0 प3 भूषण से स,मािनत 5कया गया। साभार: किवता कोश,

    http://www.kavitakosh.org, िच2: http://gadyakosh.org

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    न�ष

    न�षन�ष

    न�ष

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    काका

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    पतन

    पतनपतन

    पतन

    म1-सा न�ष चला बैठ ऋिषयान म�

    ,ाकुल से दवे चले साथ म�, िवमान म�

    िपछड़ ेतो वाहक िवशेषता से भार क�

    अरोही अधीर �आ 3ेरणा से मार क�

    �दखता ह ैमुझे तो क6ठन माग. कटना

    अगर ये बढ़ना ह ैतो क7 ँम �कस ेहटना?

    बस �या यही ह ैबस बैठ िविधयाँ गढ़ो?

    अ9 से अडो ना अरे, कुछ तो बढ़ो, कुछ तो बढ़ो

    बार बार क:ध ेफेरने को ऋिष अटके

    आतुर हो राजा ने सरौष पैर पटके

    ि+; पद हाय! एक ऋिष को जा लगा

    सात� ऋिषय� म� महा +ोभानल आ जगा

    भार बह,े बात� सुने, लात� भी सह े�या हम

    तु ही कह "ूर, मौन अब भी रह� �या हम

    पैर था या सांप यह, डस गया संग ही

    पमर पितत हो तु होकर भुंजग ही

    राजा हतेज �आ शाप सुनते ही काँप

    मानो डस गया हो उसे जैसे िपना साँप

    9ास टुटने-सी मुख-मु>ा �ई िवकला

    “हा ! ये �आ �या?” यही ,? वा�य िनकला

    जड़-सा सिच:त वह नीचा सर करके

    पालक� का नाल डूबते का तृण धरके

    शू:य-पट-िचB धुलता �आ सा दिृD से

    दखेा �फर उसने सम+ शू:य दिृD से

    दीख पड़ा उसको न जाने �या समीप सा

    चFका एक साथ वह बुझता 3दीप-सा -

    “संकट तो संकट, पर:त ुयह भय �या ?

    दसूरा सृजन नह� मेरा एक लय �या ?”

    सँभला अHय मानी वह ख�चकर ढीले अंग -

    “कुछ नह� �वI था सो हो गया भला ही भंग

    क6ठन कठोर सJय तो भी िशरोधाय. ह ै

    शांत हो महKष मुझे, सांप अंगीकाय. ह"ै

    दखु म� भी राजा मु�कराया पूव. दप. से

    मानते हो तुम अपने को डसा सप. से

    होते ही पर:त ुपद �पश. भूल चूक से

    म भी �या डसा नह� गया � ँद:डशूक से

    मानता 7 ँभूल �ई, खेद मुझे इसका

    सFप ेवही काय., उसे धाय. हो जो िजसका

    �वग. से पतन, �क:त ुगोBीणी क� गोद म�

    और िजस जोन म� जो, सो उसी म� मोद म�

    काल गितशील मुझे लेके नह� बेठैगा

    �क:त ुउस जीवन म� िवष घुस पैठेगा

    �फर भी खोजने का कुछ रा�ता तो उठायेग�

    िवष म� भी अमृत छुपा वे कृित पायेग�

    मानता 7 ँभूल गया नारद का कहना

    दJैय� से बचाये भोग धाम रहना

    आप घुसा असुर हाय मेरे ही Oदय म�

    मानता 7 ँआप लPा पाप अिवनय म�

    मानता 7 ँआड ही ली मन े�वािधकार क�

    मूल म� तो 3ेरणा थी काम के िवकार क�

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    माँगता 7 ँआज म� शची से भी खुली +मा

    िविध से बिहग.ता म� भी साधवी वह Qय� रमा

    मानता 7 ँऔर सब हार नह� मानता

    अपनी अगाित आज भी म जानता

    आज मेरा भुकJयोिजत हो गया ह ै�वग. भी

    लेके �दखा दूगँा कल म ही अपवग. भी

    तन िजसका हो मन और आJमा मेरा ह ै

    िच:ता नह� बाहर उजाला या अँधेरा ह ै

    चलना मुझे ह ैबस अंत तक चलना

    िगरना ही मुSय नह�, मुSय ह ैसँभलना

    िगरना �या उसका उठा ही नह� जो कभी

    म ही तो उठा था आप िगरता 7 ँजो अभी

    �फर भी ऊठँूगा और बढ़के र�गँा म

    नर 7,ँ पुTष 7,ँ चढ़ के र�गँा म

    चाह ेजहाँ मेरे उठने के िलये ठौर ह ै

    �क:त ुिलया भार आज मने कुछ और ह ै

    उठना मुझे ही नह� बस एक माB रीते हाथ

    मेरा दवेता भी और ऊंचा उठे मेरे साथ

    अनमोल वचन

    अनमोल वचनअनमोल वचन

    अनमोल वचन

    • हम� वह प�रवतन खुद बनना चािहये िजसे हम संसार मे दखेना चाहते ह� । ~ महामा गांधी

    • �जा के सुख म� ही राजा का सुख और �जा के िहत म� ही राजा को अपना िहत समझना चािहये।

    आमि�यता म� राजा का िहत नह� ह,ै �जा क ि�यता म� ही राजा का िहत ह।ै ~ चाण$य

    • लोकत'(, जनता क , जनता )ारा, जनता के िलये सरकार होती ह।ै ~ अ+ाहम ,लकन

    मैिथली शरण गुW (1886 - 1964) का ज�म उXर 3दशे के झाँसी िजला म. िचरगाँव Zाम म. Oआ था । इनक>

    िश)ा घर पर ही Oई और वहJ इ�ह�ने सं�कृत, बंगला, मराठी ओर *हदी सीखी । उनक> रचना “जय�थ वध”

    (1910), “भारत भारती” (1912), पंचवटी, नOष, मेघनाद वध आMद *हदी सािहRय के अमु$य रतन समझे

    जाते हB । महाका^ “साकेत” (1932) के िलये उ�ह ेमंगला 3साद पाGरतोिषक 3दान Mकया गया । भारत सरकार

    _ारा उनको प` भूषण से अलंकृत Mकया गया । इनके रचनाQ म. देशभि2, बंधुRव, गांधीवाद, मानवता तथा

    नारी के 3ित कaणा और सहानुभूित ^2 क> गई ह ै । इनके का^ का मुbय �वर राc-3ेम ह ै । वे भारतीय

    सं�कृित के गायक थे । इ�ही कारण स ेउ�ह ेराcकिव का सHमान Mदया गया ह ै। �वतंUता संZाम के िलये उ�ह े

    एकािधक बार जेल भी जाना पड़ा ।

    साभार : http://hi.bharatdiscovery.or�, िचU : www.indianetzone.com

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    संत कबीरदास

    कबीरदासकबीरदास

    कबीरदास

    दोहावली

    दोहावलीदोहावली

    दोहावली

    जाित न पूछो साधु क�, पूिछ लीिजए Xान ।

    मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो [यान ॥

    जहाँ दया तहाँ धम. ह,ै जहाँ लोभ तहाँ पाप ।

    जहाँ "ोध तहाँ पाप ह,ै जहाँ +मा तहाँ आप ॥

    धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।

    माली स�चे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥

    कबीरा ते नर अ:ध ह,ै गुT को कहते और ।

    ह6र �ठे गुT ठौर ह,ै गुT Tठै नह� ठौर ॥

    पाँच पहर ध:धे गया, तीन पहर गया सोय ।

    एक पहर ह6र नाम िबन, मुि` कैसे होय ॥

    कबीरा सोया �या करे, उ6ठ न भजे भगवान ।

    जम जब घर ले जाय�गे, पड़ी रहगेी [यान ॥

    शीलव:त सबसे बड़ा, सब रतनन क� खान ।

    तीन लोक क� स[पदा, रही शील म� आन ॥

    माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।

    आशा तृaणा न मरी, कह गए दास कबीर ॥

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    माटी कह ेकु[हार से, तु �या रFद ेमोय ।

    एक �दन ऐसा आएगा, म रFदूगंी तोय ॥

    अु

    अुअु

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    यह

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    यह

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    पानीपानी

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    नहनह

    नह

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    हैहै

    ह ै

    यह पानी नह� ह,ै यह ,था चंदन नह� ह!ै अ0 ु

    यह न समझो दवे पूजा के सजीले उपकरण ये,

    यह न मानो अमरता से माँगने आए शरण ये,

    �वाित को खोजा नह� ह ैऔर न सीपी को

    पुकारा,

    मेघ से माँगा न जल, इनको न भाया dसधु खारा!

    मानस से छलक आए तरल ये Qवाल मोती, शुe

    3ाण क� िनिधयाँ अमोलक बेचने का धन नह� ह।ै

    कबीर (1398-1518) कबीरदास, कबीर साहब एवं संत कबीर जैसे dप� म. 3िसK मeयकालीन भारत के �वाधीनचेता महापुaष थे। इनका

    पGरचय, 3ाय: इनके जीवनकाल से ही, इ�ह. सफल साधक, भ2 किव, मत3वत/क अथवा समाज सुधारक मानकर Mदया जाता रहा है तथा इनके

    नाम पर कबीरपंथ नामक सं3दाय भी 3चिलत है। संत कबीर दास *हदी सािहRय के भि2 काल के इकलौते ऐसे किव हB, जो आजीवन समाज और

    लोग� के बीच ^ाW आडंबर� पर कुठाराघात करते रहे। कबीरदास ने िह�द-ूमुसलमान का भेद िमटा कर िह�द-ूभ2� तथा मुसलमान फ़क>र� का

    सRसंग Mकया। तीन भाग�; रमैनी, सबद और साखी म. िव�तृत कबीर क> वाणी का संZह ‘बीजक’ के नाम से 3िसK ह।ै

    साभार: www.hindisahityadarpan.in, http://www.kavitakosh.org, िचU : www.hindu-blog.com

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    अ0 ुयह पानी नह� ह,ै यह ,था चंदन नह� ह!ै

    नमन सागर को नमन िवषपान क� उfवल कथा को,

    दवे-दानव पर नह� समझे कभी मानव 3था को,

    कब कहा इसने �क इसका गरल कोई अ:य पी ले,

    अ:य का िवष माँग कहता ह े�वजन तू और जी ले!

    यह �वय ंजलता रहा दनेे अथक आलोक सब को,

    मनुज क� छिव दखेने को मृJय ु�या दप.ण नह� ह।ै

    अ0 ुयह पानी नह� ह,ै यह ,था चंदन नह� ह!ै

    शंख कब फँूका शलभ ने फूल झर जाते अबोले,

    मौन जलता दीप, धरती ने कभी �या दान तोले?

    खो रह ेउgछ् वास भी कब मम. गाथा खोलते ह,

    साँस के दो तार ये झंकार के िबन बोलते ह,

    पढ़ सभी पाए िजसे वह वण.-अ+रहीन भाषा,

    3ाणदानी के िलए वाणी यहाँ बंधन नह� ह।ै

    अ0 ुयह पानी नह� ह,ै यह ,था चंदन नह� ह ै!

    �करण सुख क� उतरती िघरत� नह� दखु क� घटाएँ,

    ितिमर लहराता न िबखरी इं>धनुष� क� छटाएँ

    समय ठहरा ह ैिशला-सा +ण कहाँ उसम� समाते,

    िनaपलक लोचन जहाँ सपने कभी आते न जाते,

    वह तु[हारा �वग. अब मेरे िलए परदशे ही ह ै।

    �या वहाँ मेरा प�चँना आज िनवा.सन नह� ह ै?

    अ0 ुयह पानी नह� ह,ै यह ,था चंदन नह� ह ै!

    आँसुj के मौन म� बोलो तभी मानूँ तु[ह� म,

    िखल उठे मु�कान म� प6रचय, तभी जानूँ तु[ह� म,

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    साँस म� आहट िमले तब आज पहचानूँ तु[ह� म,

    वेदना यह झेल लो तब आज स[मानू ँतु[ह� म !

    आज मं�दर के मुखर घिड़याल घंट� म� न बोलो,

    अब चुनौती ह ैपुजारी, ये नमन वंदन नह� ह।ै

    अ0 ुयह पानी नह� ह,ै यह ,था चंदन नह� ह!ै

    गहरी दिृ�

    गहरी दिृ�गहरी दिृ�

    गहरी दिृ�

    सरसरी िनगाह से दिुनया को दखेने पर इसम� कोई खास िवशेषता नहF मालूम पड़ती और सब काम य5 ही साधारण रीित स े

    चलते *तीत होते ह(, परंतु य गाियका, आधुिनक युग क> मीरा कही जाती हB । “प`�ी” एवं “भारतीय iानपीठ” क> उपािध से सHमािनत

    महादवेी वमा/ वेदनाभाव क> किवियUी हB । इनके का^ का आधार वा�तव म. 3ेमाRमक रह�यवाद ही ह ै। महादेवी वमा/ ने अपने अiात ि3यतम

    को �वdिपतकर, उससे अपना सHब�ध जोड़ा और अपने रह�यवाद क> अिभ^ंजना को िचUाRमक भाषा म. ^2 Mकया । उनके का^ म. शुK

    छायावादी 3कृित-दश/न िमलता ह ै । नीहार, रिkम, नीरजा, सांeयगीत, दीपिशखा और यामा इनक> 3िसK का^ कृितयाँ हB । साभार: www.

    http://hi.bharatdiscovery.org िचU : http://kv1madurailibrary.wordpress.com

    पि�डत �ीराम शमा आचाय (20 िसत�बर 1911 - 2 जून 1990) भारत के एक युगद�ृा मनीषी थे

    िज!होने अिखल भारतीय गाय(ी प)रवार क+ ,थापना क+। उ!ह/ने अपना सारा जीवन समाज क+ भलाई

    तथा सां,कृितक व चा)रि(क उ2थान के िलये सम3पत कर 4दया। उ!ह/ने आधुिनक व 6ाचीन िव7ान व

    धम का सम!वय करके आ8याि2मक नवचेतना को जगाने का काय 4कया ता4क वतमान समय क+

    चुनौितय/ का सामना 4कया जा सके। उनका :ि;2व एक साधु पुप था।

    साभार: http://www.rishichintan.org

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    ताजमहल

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    ताजमहल

    पूKणमा क� रात म� हमने जमना तट पर ताज को दखेा

    शाहजहाँ के kयार म� िलपटे महल� के सरताज को दखेा

    इं> धनुष के सब रंग� ने घुल िमल कर यह �प िलया ह ै

    या तार� ने उजले पन का धरती को उपहार �दया ह ै

    या �फर किलय� क� महारानी चादर ओढ़े सोई पड़ी ह ै

    या �फर एक किव के मन म� किवता क� त�वीर जड़ी ह ै

    पाव.ती क� अिभलाषा ह ै या शँकर का महल खड़ा ह ै

    या �फर चाँद िखलौना अपना इस धरती पर भूल गया ह ै

    या �फर कोई मुग़ल शहजादी छोड़ गयी ह ैदप.ण अपना

    या �फर पृlवी के सृDा ने दखेा ह ैधरती का सपना

    ऐसा भी महसूस �आ था ओस पड़ी तो ढह जायेगा

    चाँद क� �करण� क� गमm से पानी होकर बह जायेगा

    िहम क� यह कोमल सी गुिड़या हाथ लगा तो ढल जाएगी

    सु:दरता क� अnभुत मूरत पौ फटने से जल जाएगी

    िसडनी वासी िवbयात उदू/ किव ओम कृlण राहत ने केवल 13 साल क> उA म. उदू/ किवता का पहला संकलन 3कािशत Mकया गया था। वह उदू/, िह�दी

    और पंजाबी म. किवता, लघु कहानी और नाटक िलखते हB। राज.� *सह बेदी, bवाजा अहमद अ�बास पुर�कार और ऑ�,ेिलया क> उदू/ सोसायटी

    िनशान-ए-उदू/ के अलावा उ�ह. उXर 3दशे, हGरयाणा और पंजाब और पिoम बंगाल क> उदू/ अकादिमय� _ारा भी सHमािनत Mकया जा चुका ह ै ।

    उपरो2 कृित, ताजमहल , किव ओम कृlण राहत _ारा सन 2007 म. पका/िशत का^ संZह, दो कदम आग,े म. से संकिलत क> गयी ह ै

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    ी ग�ु �थं सा

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    ी ग�ु �थं सािहब

    िहबिहब

    िहब

    ॥ जपु ॥

    थािपआ न जाइ क�ता न होइ ॥

    आपे आिप िनरंजनु सोइ ॥

    िजिन सेिवआ ितिन पाइआ मानु ॥

    नानक गावीऐ गुणी िनधानु ॥

    गावीऐ सुणीऐ मिन रखीऐ भाउ ॥

    दखुु परह6र सुखु घ6र लै जाइ ॥

    गुरमुिख नादं गुरमुिख वेद ंगुरमुिख रिहआ समाई ॥

    गुT ईसT गुT गोरखु बरमा गुT पारबती माई ॥

    जे हउ जाणा आखा नाही कहणा कथनु न जाई ॥

    गुरा इक दिेह बुझाई ॥

    सभना जीआ का इकु दाता सो मै िवस6र न जाई ॥

    तीरिथ नावा जे ितसु भावा िवणु भाणे �क नाइ करी ॥

    जेती िसर6ठ उपाई वेखा िवणु करमा �क िमलै लई ॥

    मित िविच रतन जवाहर मािणक जे इक गुर क� िसख सुणी ॥

    गुरा इक दिेह बुझाई ॥

    सभना जीआ का इकु दाता सो मै िवस6र न जाई ॥

    जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होइ ॥

    नवा खंडा िविच जाणीऐ नािल चलै सभु कोइ ॥

    चंगा नाउ रखाइ कै जसु क�रित जिग लेइ ॥

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    जे ितसु नद6र न आवई त वात न पुछै के ॥

    क�टा अंद6र क�टु क6र दोसी दोसु धरे ॥

    नानक िनरगुिण गुणु करे गुणवंितआ गुणु द े॥

    तेहा कोइ न सुझई िज ितसु गुणु कोइ करे ॥

    सुिणऐ िसध पीर सु6र नाथ ॥

    सुिणऐ धरित धवल आकास ॥

    सुिणऐ दीप लोअ पाताल ॥

    सुिणऐ पोिह न सकै कालु ॥

    नानक भगता सदा िवगासु ॥

    सुिणऐ दखू पाप का नासु ॥

    सुिणऐ ईसT बरमा इंद ु॥

    सुिणऐ मुिख सालाहण मंद ु॥

    सुिणऐ जोग जुगित तिन भेद ॥

    सुिणऐ सासत िसिoित वेद ॥

    नानक भगता सदा िवगासु ॥

    सुिणऐ दखू पाप का नासु ॥

    साभार: http://www.gurbanifiles.org/

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    �वासी�वासी

    �वासी’

    ’’

    अधेड़ िव,फाPरत नेa5 से सब दखे रहा था। वह कभी-कभी

    बुदबुदाता भी था।

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    जम और जमाई

    जम और जमाईजम और जमाई

    जम और जमाई

    बड़ा भयंकर जीव ह,ै इस जग म� दामाद

    सास-ससुर को चूस कर, कर दतेा बरबाद

    कर दतेा बबा.द, आप कुछ िपयो न खाओ

    मेहनत करो, कमाओ, इसको दतेे जाओ

    कहp ‘काका’ किवराय, सासरे प�चँी लाली

    भेजो 3ित Jयौहार, िमठाई भर-भर थाली

    लqला हो इनके यहाँ, दनेा पड़ ेदहजे

    लqली हो अपने यहाँ, तब भी कुछ तो भेज

    तब भी कुछ तो भेज, हमारे चाचा मरते

    रोने क� एd�टग �दखा, कुछ लेकर टरते

    ‘काका’ �वग. 3याण करे, िब6टया क� सासू

    चलो दि+णा दउे और टपकाओ आँसू

    जीवन भर दतेे रहो, भरे न इनका पेट

    जब िमल जाय� कँुवर जी, तभी करो कुछ भ�ट

    तभी करो कुछ भ�ट, जँवाई घर हो शादी

    भेजो लsडू, कपड़े, बत.न, सोना-चाँदी

    कहp ‘काका’, हो अपने यहाँ िववाह �कसी का

    तब भी इनको दउे, करो म�तक पर टीका

    �कतना भी द ेदीिजये, तृ; न हो यह शtश

    तो �फर यह दामाद ह ैअथवा लैटर ब�स?

    अथवा लैटर ब�स, मुसीबत गले लगा ली

    िनJय डालते रहो, uकतु ख़ाली का ख़ाली

    कह ँ‘काका’ किव, ससुर नक. म� सीधा जाता

    मृJयु-समय य�द दश.न द ेजाये जमाता

    और अंत म� तlय यह कैसे जाय� भूल

    आया dहद ूकोड िबल, इनको ही अनुकूल

    इनको ही अनुकूल, मार कानूनी िघ�सा

    छीन िपता क� संपि1 से, पुBी का िह�सा

    ‘काका’ एक समान लग�, जम और जमाई

    �फर भी इनसे बचने क� कुछ युि` न पाई ।

    हाथरस म. ज�मे काका हाथरसी (वा�तिवक नाम: 3भुलाल गग/) *हदी हा�य किव थे। काका हाथरसी िह�दी हा�य ^ंsय किवताQ के पया/य माने

    जाते हB । वे अपनी हा�य किवताQ को फुलझिडयाँ कहा करते थे । भारतीय सरकार _ारा प` �ी से सHमािनत काका हाथरसी का किवता संZह

    इस 3कार ह:ै- काका के कारतूस, काकादतू, हसंगु$ले, काका के कहकहे, काका के 3हसन, काका क> फुलझिड़याँ, लूटनीित मंथन कGर,

    िखलिखलाहट, काका तरंग, जय बोलो बेईमान क>, यार सWक, काका के ^ंsय बाण । काका हाथरसी पुर�कार, इनके नाम से चलाये गये काका

    हाथरसी पुर�कार ,�ट, हाथरस _ारा 3ितवष/ एक सव/�ेt हा�य किव को 3दान Mकया जाता ह।ै साभार: www.kavitakosh.org

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    याद�

    याद�याद�

    याद�

    भूली िबसरी याद मेरी

    कैसे तुझे बताऊँ?

    िसर पे आंचल ओढ़ के चुनरी

    जब पानी भरने जाऊं

    गग�रया ले के सिखया मोरी

    िखल िखल हसंी उडाय

    तोरे �प पे मोिहत होकर

    पेड़ पीछे छुप जायँ!!

    �कतना सुंदर सपना था वह

    �कतनी मधुर थी किलयाँ

    सुनहली धूप क# �करण% म

    िलपट रही थी डािलयाँ !

    भूली िबसरी याद लेकर

    जीवन बन गया ह ैसपना

    सब कुछ जैसे लुट चुका ह ै

    कोई नह' ह ैअपना !!

    -सुमन

    सुमन िह�दी और अं�ेजी म� किवता िलखती ह� और एक �ा�फक कलाकार ह�।

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    लोरी सुना रही ह ै हदी जबुा ंक$ खशुबू

    लोरी सुना रही ह ै हदी जबुा ंक$ खशुबूलोरी सुना रही ह ै हदी जबुा ंक$ खशुबू

    लोरी सुना रही ह ै हदी जबुा ंक$ खशुबू

    लोरी सुना रही ह ैdहदी जुबां क� खुशबू

    रग-रग से आ रही ह ैिह:दो�तां क� खुशबू

    भारत हमारी माता, भाषा ह ैउसक� ममता

    आंचल से उसके आती सारे जहाँ क� खुशबू

    भाषा अलग-अलग सी, हर 3ांत क� ह ैबेशक

    ह ैएकता म� शािमल हर इक ज़बाँ क� खुशबू

    भाषाई टहिनय� से हर 3ाँत के पxरद े

    उड़कर जहाँ भी प�चंे, प�चंी वहां क� खुशबू

    शायर ने जो चुनी ह ैशेरो-सुख़न क� भाषा

    आती िमली-जुली सी उसके बयाँ क� ख़�शबू

    परदसे म� जो आती िमyी से सFधी-सFधी

    ये तो मेरे वतन के ह ैगुलि�ताँ क� ख़�शबू

    दीपक जले ह ैहरसू भाषा के आज ‘दवेी’

    लोबान जैसी आती कुछ-कुछ वहाँ क� खुशब।ू

    -दवेी नागरानी

    11 मई 1941 कराची, पाMक�तान (तब भारत) म. ज�मJ दवेी नागरानी �यू जस#, (यू.एस.ए.) म. गिणत म. िडuलोमा 3ाW एक सेवािनवृX

    िशि)का हB। उनक> 3कािशत कृितय� म.; “ग़म म. भीगी ख़xशी”, “आस क> शमा”—*सधी गज़ल-संZह, “उडुर-पिखअरा”—*सधी-भजन, “*सध जी

    आँऊ ञाई आ{ा”ँ—*सधी-का^, “चराग़े-Mदल”, “Mदल से Mदल तक”, “लौ दद|-Mदल क>”—*हदी ग़ज़ल-संZह, “द जन#”—अंZेजी का^-संZह,

    “भजन-मिहमा”—िह�दी भजन संZह 2012, “ग़ज़ल”—िस�धी ग़ज़ल संZह 2012 शािमल हB। किव-सHमेलन, मुशायर� म. भाग लेने के अलावा

    उनक> कई कहािनयाँ, गज़ल., गीत आMद राcीय व अंतराcीय पिUकाQ म. 3कािशत हो चुक. हB। समय समय पर उनका आकाशवाणी मुंबई से

    *हदी, *सधी का^, ग़ज़ल पाठ का पसा/रण होता रहता ह।ै इसके अलावा उ�ह.; �यूयाक/ म. अंतराcीय *हदी सिमित, िवeया धाम सं�था,

    िश)ायतन सं�था क> ओर से ‘3bयात किव’, “का^ रतन”, व “का^ मिण” पुa�कार, �यू जस# म. मेयर के हाथ� “उ}ोषणा पुर�कार”, रायपुर म.

    अंतराcीय लघुकथा सHमेलन म. सृजन-�ी आMद पुर�कार� से सHमािनत Mकया जा चुका है।

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    �णय गीत

    �णय गीत�णय गीत

    �णय गीत

    गीत 3णय का अधर सजा दो ।

    िz{ध मधुर kयार छलका दो ।

    शीतल अिनल अनल दहकाती,

    सोम कौमुदी मन बहकाती,

    रित यािमनी बीती जाती,

    3ाण 3णय आ सेज सजा दो ।

    गीत 3णय का अधर सजा दो ।

    गीत 3णय का अधर सजा दो ।

    िz{ध मधुर kयार छलका दो ।

    ताल निलन छटा िबखराती,

    कंुतल लट िबखरी जाती,

    गुंजन मधुप िवषाद बढाती,

    ि3य विनता आभास �दला दो ।

    गीत 3णय का अधर सजा दो ।

    गीत 3णय का अधर सजा दो ।

    िz{ध मधुर kयार छलका दो ।

    नंदन कानन कुसुम मधुर गंध,

    तारक संग शिश नभ मलंद,

    अनुराग मृदलु िशिथल अंग,

    रोम रोम मद पान करा दो ।

    गीत 3णय का अधर सजा दो ।

    गीत 3णय का अधर सजा दो ।

    िz{ध मधुर kयार छलका दो ।

    आई. आई. आई. dडक> (उXराँचल) से िशि)त किव कुलवंत *सह का^, लेखन व *हदी सेवाQ के िलए राजभाषा गौरव से सHमािनत Mकये जा

    चुके हBI वे अनेक पिUकाएं व रचनाएँ पका/िशत कर चुके हBI उनमे िनिलिखत हB—िनकंुज, परमाणु व िवकास, शहीद-ए-आजम भगत *सह,

    िचरंतन व अ�य रचनाएँI कॉपी राईट: कुलवंत *सह, िवiान 3शन मंच

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    आज़ादी का एक

    आज़ादी का एक आज़ादी का एक

    आज़ादी का एक '

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    'प+लु

    प+लुप+लु

    प+लु'

    ''

    '

    आओ नाच� और पqलु गाएँ

    आज़ादी ले ली ह ैहमने, इसक� ख़�शी मनाएँ

    आओ नाच� और पqलु गाएँ ।

    वे �दन अब दरू �ए जब |ा}ण मािलक कहलाता

    जब गोरी चमड़ी वाला कोई बनता था हमारा आका

    जब झुकना पड़ता था हमको उन नीच� के आगे

    धोखे से गुलाम बनाकर हम पर जो गोली दागे

    आओ नाच� और पqलु गाएँ

    आज़ादी ले ली ह ैहमने, इसक� ख़�शी मनाएँ

    आओ नाच� और पqलु गाएँ ।

    आज़ादी ली ह ैहमने, बात हमारे हक़ क�

    अब हम सभी बराबर ह, यह बात हो गई प�

    िवजयघोष का शंख बजाकर चलो, िव9 को बतलाएँ

    आज़ादी ले ली ह ैहमने, इसक� ख़�शी मनाएँ

    आओ नाच� और पqलु गाएँ

    आज़ादी ले ली ह ैहमने, इसक� ख़�शी मनाएँ

    आओ नाच� और पqलु गाएँ ।

    बहा पसीना तन का अपने, जो खेत� म� मरता

    उठा हथौड़ा, कर मज़दरूी, उोग� म� खटता

    उसक� जय-जयकार कर�गे, हम उस पर सब कुछ वार�

    जो हराम क� खाता ह,ै उसको हम िधार�

    नह� झुक� गे, नह� सह�गे, शोषण को मार भगाएँ

    आओ नाच� और पqलु गाएँ

    आज़ादी ले ली ह ैहमने, इसक� ख़�शी मनाएँ

    आओ नाच� और पqलु गाएँ ।

    अब यह धरती हमारी ही ह,ै हम ही इसके �वामी

    इस पर काम कर�गे हम सब, हम ह इसके हामी

    अब न दास बन�गे हम, न दबना, न सहना

    जल-थल-नभ का �वामी ह ैजो, उसके होकर रहना

    केवल उसको मान�गे हम,

    उसको ही अपनाएँ

    आओ नाच� और पqलु गाएँ

    आज़ादी ले ली ह ैहमने,

    इसक� ख़�शी मनाएँ

    आओ नाच� और पqलु गाएँ ।

    - सु���यम भारती

    सुयम भारती (11 Mदसंबर 1882 - 11 िसतंबर 1921), तिमलनाडु भारत, म. ज�म. एक �वतंUता सेनानी, समाज सुधारक होने के साथ-

    साथ एक उXम �ेणी के तिमल किव थ।े महाकिव भारती को कई भारतीय भाषाQ म. महान अथ/ किव के dप म. जाना जाता ह।ै भारती ग;

    और किवता दोन� dप� म. मािहर थ।े भारती तिमल किवता क> एक नई शैली शुd करने म. एक अZणी थ।े उनक> रचनाQ ने जनता रैली करने

    के िलए दि)ण भारत म. भारतीय �वतंUता आंदोलन का समथ/न करने म. मदद क>। महाRमा गाँधी, बाल गंगाधर ितलक, �ी अर*बदो आMद

    उनक> समकालीन महान हि�तयाँ थJ।

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    िह,दी उदू. ह/ बहन बहन

    िह,दी उदू. ह/ बहन बहन िह,दी उदू. ह/ बहन बहन

    िह,दी उदू. ह/ बहन बहन

    ब�ती-ब�ती जंगल जंगल

    हम साथ चले ह� शांह� स े

    �हदी उदू� को साथ िलय े

    गुजरे पथरीली राह� स े

    ऐ तेज हवा के झोक�

    मत र#दो न%ह& किलय� को

    �हदी उदू� क' बिगय� म(

    जो िखलती ह� अरमान� से

    - अबास रज़ा अलवी

    गुलद�ता

    गुलद�ता गुलद�ता

    गुलद�ता से

    सेसे

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    गुलद,ता िह!दी और उदू मूल ऑ,Aेिलया मB रहने वाल ेभारतीय उपमहाCीप के पेशेवर और शौ4कया किवय/ Cारा किवता का एक

    संDह हIै िह!दी और उदू भाषा इितहास के सEे गौरवशाली 6ितFबब हGI यह पु,तक ऑ,Aेिलयाई 6वािसय/ क+ भावना को दशाती

    हIै किवय/ के ऑ,Aेिलयाई जीवन के अनुभव/ और सं,कृित पर इसके 6भाव को :; करती हGI गलुद,ता िह!दी (देवनागरी िलिप)

    और उदू (उदू िलिप) मB 6कािशत Iई हIै यह अनूठी पु,तक भारतीय िवKा भवन, भवन बुक िवLिवKालय, मंुबई, के साथ

    भारतीय िवKा भवन ऑ,Aेिलया Cारा 6कािशत हIै गुलद,ता एक ऑ,Aेिलयाई पहल ह ैऔर ऑ,Aेिलया से अिCतीय का: पु,तक

    के >प मB िबM+ के िलए दिुनया भर मB उपलNध हIै

    अिधक जानकारी के िलए संपक�

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    ले-आउट एवं िडज़ाइ*नग : समीर पारेख - MएGटव पेज सेटस/, गोरेगांव, मुंबई – 104, फ़ोन: 98690 08907

    संपादक : िवनाथ सचदेव

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    िश0ा—

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    —सबको लाभ�द

    सबको लाभ�दसबको लाभ�द

    सबको लाभ�द

    िश)ा के नाम पर बr5 को हमेशा सतान ेवाल ेमाँ-बाप5 का

    जमाना बीत चुका ह।ै आजकल के माँ-बाप चाहते ह(

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    तलुसी दास के दोहे

    तलुसी दास के दोहेतलुसी दास के दोहे

    तलुसी दास के दोह े

    नामु राम को कलपत� किल कqयान-िनवासु।

    जो सुिमरत भयो भाँग त� तुलसी तुलसीदासु।।

    राम नाम जिप जीह ँजन भए सुकृत सुखसािल।

    तुलसी इहाँ जो आलसी गयेा आजु क� कािल।।

    नाम गरीबिनवाज को राज दते जन जािन।

    तुलसी मन प6रहरत नdह घुर िबिनआ क� बािन।।

    कास� िबिध बिस तनु तज� ह6ठ तनु तज� 3याग।

    तुलसी जो फल सो सुलभ राम नाम अनुराग।।

    मीठो अ� कठवित भरो रFताई अ� छेम।

    �वारथ परमारथ सुलभ राम नाम के 3ेम।।

    राम नाम सुिमरत सुजस भाजन भए कुजाित।

    कुत�क सुरपुर राजमग लहत भुवन िबSयाित।।

    �वारथ सुख सपने� ँअगम परमारथ न 3बेस।

    राम नाम सुिमरत िमटdह तुलसी क6ठन कलेस।।

    मोर मोर सब कह ँकिहस तू को तू को क� िनज नाम।

    कै चुप साधिह सुिन समुिझ कै तुलसी जपु राम।।

    हम लिख लखिह हमार लिख हम हमार के बीच।

    तुलसी अलखिह का लखिह राम नाम जप नीच।।

    राम नाम अवलंब िबनु परमारथ क� आस।

    बरषत बा6रद बूँद गिह चाहत चढ़न अकास।।

    तुलसी दास (1479–1586) ने िह!दी भाषी जनता को सवािधक 6भािवत 4कया। इनका Dथं “रामच)रत मानस” धमDथं के >प मB मा!य

    ह।ै तुलसी दास का सािह2य समाज के िलए आलोक ,तंभ का काम करता रहा ह।ै इनक+ किवताO मB सािह2य और आदश का सु!दर

    सम!वय Iआ ह।ै साभार: www.anubhuti-hindi.org, िच(: www.dlshq.org

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    नवनीत

    नवनीतनवनीत

    नवनीत

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    2012

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    शहीद

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    शहीद-

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    -ए

    एए

    ए-

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    -आजम

    आजमआजम

    आजम

    भगत

    भगतभगत

    भगत

    सह

    सह सह

    सह

    युग� युग� से गौरव उत, िहम का आलय

    झुका था अवनत। िवषम

    सम�या से था ?ािसत,

    िवकल, द{ध Qवाला से Bािसत।

    ‘पुय भूिम’ जब मिलन �ई थी,

    पद के नीचे दिलत �ई थी।

    ‘तपोभूिम’ संताने ,ाकुल,

    ,ाल घूमते डसने आकुल।

    हीरे, प,े मिणयां लूट�,

    किलयाँ �कतनी रFदी टूट�।

    आन दशे क� नोच खसोटी,

    कृषक �वयं न पाये रोटी।

    चीर हरण नारी के होते,

    भारत िनिधयां हम थे खोते।

    वैभव सारा लुटा दशे का,

    व�त �आ स[मान दशे का।

    बाट जोहते सब रहते थे, ितिमर

    हटाओ सब कहते थे। भाव %दय म� सदा

    मचलते, मौन परंतु सब सहते रहते।

    -किव कुलवंत *सह, शहीद-ए-आजम भगत *सह खंड का^

    उपरो2 किवता, शहीद-ए-आजम भगत 9सह, किव कुलवंत *सह _ारा सन 2010 म. पका/िशत खंड का^, शहीद-ए-आजम भगत 9सह, म. से संकिलत

    क> गयी ह।ै

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    नवनीत

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    2012

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    अब कै माधव

    अब कै माधवअब कै माधव

    अब कै माधव,

    , ,

    , मो ह उधा3र

    मो ह उधा3रमो ह उधा3र

    मो ह उधा3र

    अब कै माधव, मोdह उधा6र।

    मगन हF भव अ[बुिनिध म�, कृपािस:धु मुरा6र॥

    नीर अित गंभीर माया, लोभ लह6र तरंग।

    िलय� जात अगाध जल म� गह े?ाह अनंग॥

    मीन इि:>य अितिह काटित, मोट अघ िसर भार।

    पग न इत उत धरन पावत, उरिझ मोह िसबार॥

    काम "ोध समेत तृaना, पवन अित झकझोर।

    नाdह िचतवत दते ितयसुत नाम-नौका ओर॥

    थ�यौ बीच बेहाल िबवल, सुन� कTनामूल।

    �याम, भुज गिह का�ढ़ ड